कायाकल्प - Hindi sex novel

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Fuck_Me
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by Fuck_Me » 17 Nov 2015 12:17

“जैसा तुम कहो!” फिर उनींदी संध्या को देखते हुए उसने मुस्कुरा कर कहा, “वेल, हेल्लो ब्यूटीफुल! नींद हो गई?” फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर, “तुम्हारी पत्नी बहुत सुन्दर और सेक्सी है। तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, दोस्त…!मेरे कहने का यह मतलब कतई मत निकालना की तुम किसी भी तरह से कम हो… लेकिन, ये बहुत सुन्दर हैं!”

“हाँ – यह बात मुझे मालूम है। इसीलिए तो मैंने इनसे शादी की है।“ हमारी बातों के बीच ही संध्या ने अपना स्विमसूट उठा कर अपने शरीर पर इस तरह से डाल लिया जिससे उसकी जाहिर नग्नता छुप जाय। “हे! हम लोग यहाँ कुछ देर और नहीं रुक सकते? यहाँ बहुत अच्छा लग रहा है।“ मैंने आगे जोड़ा।

“बिलकुल रुक सकते हैं… लेकिन हमको एक निर्धारित समय के बाद रिसोर्ट में इत्तला देनी होती है। और यहाँ पर कोई दूरसंचार की सुविधा तो है नहीं… लेकिन.. मेरे पास एक विचार है। उसको बताने से पहले मैं तुमको एक बात बताना चाहती हूँ की जब आप लोग सो रहे थे, तो मुझे आप दोनों को ऐसे देख कर इतना अच्छा लगा की मैंने आप लोगो की ऐसी न्यूड फोटोज खींच ली…”

“क्या?!! दिखाना ज़रा!”

“आपके ही कैमरे से ली हैं… देख लीजिये।“ कह कर मॉरीन ने मेरा कैमरा मेरे हाथ में सौंप दिया।
मैंने कैमरा ऑन कर, तुरंत ही रिव्यु बटन दबाया – संध्या भी अपनी छाती पर अपनी बिकिनी चिपकाए, उत्सुकतावश कैमरे की तस्वीरों को देखने मेरे बगल आ गई… इस बात से बेखबर की उसकी योनि से बिकिनी का वस्त्र हट गया है। खैर, जब हमने वो तस्वीरें देखीं तो हमको लज्जा, आश्चर्य और गर्व तीनों प्रकार के ही भाव आए।

ज्यादातर तस्वीरों में हम पूर्णतः नग्न अवस्था में आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे – मैं संध्या की तरफ करवट करके लेटा हुआ था, ऐसे की मेरा बायाँ पाँव संध्या के ऊपर था, और इस कारण मेरा लिंग और वृषण स्पष्ट दिख रहे थे। मेरा लिंग अर्ध स्तम्भन में खड़ा हुआ था और उसकी स्किन थोड़ी पीछे खिसकी हुई थी। संध्या चित लेटी हुई थी और उसका सारा शरीर प्रदर्शित था। उसके छोटे छोटे स्तन, और उन पर आकर्षक निप्पल! सुन्दर, स्वस्थ और पतली बाहें और सपाट पेट! उसका बायाँ पाँव थोडा अलग हो रखा था जिस कारण उसका योनि द्वार थोडा खुला हुआ था।

“थैंक्स फॉर दीस पिक्चर्स! लेकिन, आप क्या कहने वाली थीं?”

“मैं यह कह रही हूँ की आप दोनों अपने हनीमून पर आये हैं… क्यों न मैं आप दोनों के और भी अन्तरंग फोटोस कैमरे में उतारूँ..? वैसी जैसी 2-एक्स या 3-एक्स फिल्मों में होता है? यू नो… जैसे आपका लिंग, इनकी योनि में…? क्या कहते हैं? वस्तुतः, मेरे ख़याल से आपके हनीमून की यह एक अच्छी यादगार निशानी बनेगी! इन तस्वीरों को जब आप लोग बीस साल बाद देखेंगे तो वापस एक और हनीमून करने का मन हो जायगा!”

मैंने संध्या को संछेप में मॉरीन के सुझाव के बारे में बता दिया।

“नहीं बाबा! मैं नहीं कर पाऊंगी! इनके सामने कैसे ऐसे…?”

“जानू, देखो न… इनके सामने हम दोनों ही तो नंगे ही हैं…”

“लेकिन अगर उन तस्वीरों को कोई और देख ले तो?”

“अरे कौन देखेगा? हमारे बच्चे? हा हा! तो उनको बताएँगे की हमने उनको ऐसे बनाया था।“ मैंने शरारत भरी दलील दी।

संध्या वैसे भी मेरी किसी भी बात का कोई विरोध तो करती नहीं… अतः उसने अंत में हामी भर दी। लेकिन एक शर्त पर की मॉरीन भी हमारे साथ निर्वस्त्र होकर कुछ तस्वीरें निकलवाए। मॉरीन ने कुछ सोचने के बाद हामी भर दी।

“अच्छी बात है!” मैंने कहा, “हम लोग क्या करें?”

“सबसे पहले तो रिलैक्स होने की कोशिश करिए… आपकी पत्नी तो अभी भी नर्वस लग रही हैं। पहले इन्ही की कुछ तस्वीरें निकाल लेती हूँ… ठीक है न?” अभी भी हम तीनों में सिर्फ मॉरीन ने ही कपड़े पहने हुए थे।

मॉरीन संध्या को कभी मुस्कुराने, तो कभी कोई पोज़ बनाने को कहती – ‘हैंड्स इन एयर… हैंड्स ऑन हिप्स… लिक योर लिप्स… मेक अ पाउट.. शो सम ब्रैस्ट..’ संध्या की इन झिझक और लज्जा भरी अदाओं का असर मुझ पर होने लग गया और मेरा लिंग जीवित होने लगा। संध्या इस समय मॉरीन के निर्देशन में एक पेड़ के तने से टिक कर अपने दाहिने हाथ से खुद को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर की तरफ खींच रही थी। इसका प्रभाव यह था की संध्या की पूरी सुन्दरता अपने पूरे शबाब पर प्रदर्शित हो रही थी।

ऐसा तो मैंने कभी सोचा ही नहीं… ‘यह मॉरीन तो वाकई एक कलाकार है!’

‘पिंच योर निप्पल’ संध्या पर भी इस प्रकार के देह प्रदर्शन का अनुकूल प्रभाव पड़ रहा था। उसके निप्पल उत्तेजना से खड़े हो गए थे। ‘टर्न अराउंड… शो में सम हिप्स..’
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by Fuck_Me » 17 Nov 2015 12:17

फोटो खींचते हुए मॉरीन अब मेरी तरफ मुखातिब हुई – मैं सम्मोहित होकर संध्या के उस नए रूप को निहार रहा था और अपने उत्तेजित लिंग पर प्यार से हाथ फिरा रहा था।

मॉरीन: “एक्साइटेड? अब तुम्हारी बारी…” मेरे किसी प्रतिक्रिया से पहले ही मेरी चार-पांच फोटो उतर चुकी थी। “ये इसकी देखभाल कैसे कर पाती है? उसके लिए बहुत बड़ा है! उसके क्या, मेरे लिए बहुत बड़ा है…” एक पल को जैसे मॉरीन फोटो लेना ही भूल गयी – और फिर जैसे तन्द्रा से जाग कर उसने मेरे लिंग की कुछ क्लोज-अप तस्वीरें भी ले डालीं।

फिर उसने संध्या को रेत पर लेटने को कहा और मुझको संध्या के दोनों ओर अपने घुटने टिका कर इस तरह बैठने को कहा जिससे मेरा स्तंभित लिंग संध्या के मुख के ऊपर आ जाय। अब संध्या को कुछ बताने की आवश्यकता नहीं थी – उसने स्वतः ही मेरा लिंग अपने मुँह में भर लिया और इस पूरी हरकत को मॉरीन ने पूरी निपुणता से कैमरा में कैद कर लिया। मुझसे रहा ही नहीं जा पा रहा था – मैंने अपने लिंग को संध्या के मुख में थोडा और अन्दर तक घुसेड दिया।

“एनफ़ नाउ! प्लीज लिक हर निप्पल्स…”

मैंन संध्या के ऊपर आकर उसको अपनी बाहों में कस कर चूमना शुरू कर दिया – प्रतिक्रिया स्वरुप संद्य ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और सहलाने लगी। मैं कभी उसके होंठो को चूमता, तो कभी उसके स्तनों को। मॉरीन हमारे बिकुल करीब आकर बेहद अन्तरंग तस्वीरें उतारने में व्यस्त थी। मेरी और संध्या की हालत बहुत खराब थी – मेरा लिंग इस समय ऐसा अकड़ा हुआ था जैसे की बस एक हलके से दबाव से फट जाए। संध्या की योनि भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैंने बिना किसी निर्देशन के संध्या के होंठ चूमते हुए अपने लिंग को संध्या के योनि द्वार पर सटा कर एक ज़ोर का धक्का लगाया …. लिंग उसकी योनि में ऐसे सरकता चला गया जैसे मोम में गरमागरम चाकू घुसा दिया गया हो। संध्या के मुँह से एक कामुक सीत्कार निकल गई।

“मेरी जान… आह! मेरी हिरनी..” मैं न जाने क्या क्या बड़बड़ाते हुए पूरी गति से संध्या के साथ सम्भोग करने में व्यस्त हो गया। हमारा खेल 3-4 मिनटों में अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया। मैंने संध्या को भोगते हुए उसके घुटनों को ऊपर की तरफ उठा कर मोड़ दिया और उसके नितम्बों को सहलाना आरम्भ कर दिया। मैं जल्दी ही स्खलित होने वाला था, लेकिन कुछ और देर यह खेल खेलना चाहता था। इसलिए मैंने धक्के लगाना रोक कर, अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। योनि रस से सना हुआ मेरा लिंग, सूर्य की रौशनी में शामक रहा था। मैंने संध्या के नितम्बों के नीचे अपनी हथेलियाँ रखीं और उस हिस्से को ऊपर की तरफ़ इस तरह उठाया की उसकी योनि मेरे मुख के सामने आ जाय। और फिर उसकी योनि पर अपने मुख को ले जाकर उसको चूमा। संध्या किलकारी भरने लगी।

कुछ देर चूमने के बाद, मैंने खुद को व्यवस्थित किया और अपने लिंग को संध्या की योनि में पुनः समाहित कर के धक्के लगाने आरम्भ कर दिए। अगले 2-3 मिनटों की मेहनत में मेरा वीर्य संध्या की योनि में की गहराइयों में छूट गया। आहें भरते हुए मैंने संध्या की कमर को कस कर अपने जघन क्षेत्र से चिपका लिया। संध्या भी संयत होकर गहरी साँसे भारती हुई लेट गई – मैं उसके ऊपर ही लेट गया। लेकिन उसके होंठों, आँखों, कानों, गले और स्तनों पर चुंबनो की झड़ी लगा दी। कुछ ही देर बाद मेरा लिंग सिकुड़ कर खुद ही संध्या की योनि से बाहर आ गया।

सेक्स के इस सजीव प्रसारण ने मुझे इस प्रकार मन्त्र-मुग्ध कर दिया की मैं अपनी सुध-बुध ही खो बैठी। मेरे हाथों से कैमरा गिरते गिरते बचा। मैं एक समलैंगिक हूँ, लेकिन इस इतर्लैंगिक मैथुन ने मुझे बहुत प्रभावित कर दिया था। रूद्र अब उठ कर बैठ गया था और मेरी तरफ मुखातिब था, और संध्या अपने अभी अभी संपन्न हुए मर्दन के कारण थक कर लेटी हुई थी और सुस्ता रही थी। आखिरी कुछ तस्वीरें लेटे समय मुझे झुक कर बैठना पड़ा, जिसके कारण मेरे स्तन ब्रा के कपों से थोड़ा बाहर ढलक रहे थे। रूद्र नजरें इस समय उनको ही सहला रही थी। मैंने उसकी आँखों का पीछा किया तो तुरंत समझ गयी की वो कहाँ घूम रही हैं। मैं हांलाकि थोड़ा सचेत हो गई, लेकिन मैंने उनको छिपाने की कोई कोशिश नहीं की – वैसे भी मैंने वायदा किया था की हम तीनों नग्न तवीरें खिचायेंगे – तो देर-सबेर इन वस्त्रों से छुट्टी तो होनी ही थी। रूद्र ने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और मैं यंत्रवत उसके पास आकर बैठ गई। रूद्र है भी कितने आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक! और इसकी पत्नी, संध्या, जब कम उम्र में ऐसी बला की सुन्दर है, तो फिर जब उसका यौवन पूरा निखरेगा, तब क्या होगा!!?
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by Fuck_Me » 17 Nov 2015 12:18

रूद्र ने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे कस कर दबोच लिया और अपने होंठों से मेरे होंठ सटा कर चूमने लगा। इस स्त्यंत अप्रत्याशित हमले से मैं सकते में आ गई। उसने मेरे होंठ काट लिये और उनको चूसने लगा। एक क्षण को तो मैं अपनी लैंगिकता और सुध-बुध दोनों भूल गई और चुम्बन में उसका सहयोग करने लगी। उनके सम्भोग के दृश्य से मेरा शरीर पहले से ही कामाग्नि भड़क उठी थी, और अब इस चुम्बन ने मुझे दहकाना शुरू कर दिया। उसने मेरे होंठों को अपने दांतों के बीच दबा कर धीरे धीरे काटना शुरू किया, और फ़िर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। मैंने भी भीना इनकार किये उसकी जीभ को रसीले फल के जैसे ही चूसना शुरू कर दिया।

कुछ देर तक इसी प्रकार चूमने के बाद जब उसके हाथ मेरी ब्रा को खोलने लगे… तब मैंने अपने होंठ झटक कर उससे अलग किए।

“यह क्या कर रहे हो…? बस अब बहुत हुआ… अब चलते हैं यहाँ से!” मैंने नाटक किया।

पर वह ऐसे मानने वाला नहीं था – उसने ब्रा के ऊपर से ही मेरे दोनों स्तन अपनी गिरफ़्त में ले लिया। उसकी पकड़ बहुत मज़बूत थी – और उनको इस प्रकार दबा रहा था की मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। वैसे चाहती तो मैं वहां से हट सकती थी, लेकिन वस्तुतः मेरी कोशिश भी बस सतही तौर पर ही थी, और मैंने उसकी हरकतों का कोई ख़ास विरोध नहीं किया। कुछ ही पलों में उसने मेरी ब्रा खींच कर मेरे शरीर से अलग कर दी और मैं ऊपर से पूरी नंगी हो गई। मेरे स्तन उभर कर बाहर हो आये – निप्पल पहले ही उत्तेजना के मारे कठोर हो गए थे।

मेरे गोरे बदन पर तने हुये स्तनों देख कर उसकी आँखों में एक चमक आ गई। उसने मेरे स्तनों को अपनी उंगली से हल्के हल्के सहलाते हुए कहा, “तुम बहुत ख़ूबसूरत हो।“

उसने मुझे खीच कर अपनी गोद में बैठा लिया, ऐसे जिससे मेरे दोनों पांव उसकी कमर के अगल बगल होते हुए उसकी पीठ के पीछे आ गए। उसकी हिम्मत की दाद देनी होगी – इस समय वह मेरे बाएँ स्तन के निप्पल को अपने मुँह में भर कर बच्चों की तरह चूस रहा था और उत्तेजनावश मेरे होंठों पर सिस्कारियां फूटने लगी। मैंने उत्तेजनावश रूद्र के सर को अपने स्तनों में भींच लिया। मेरे दिमाग में इस समय गहरी उलझन हो रही थी – मैं समलैंगिक हूँ, इतर्लैंगिक हूँ, या उभयलैंगिक हूँ? इस लड़के ने मुझे भरमा दिया है।

अपने स्तनों के चूषण के आनंद के दौरान मेरी आँख अचानक ही खुली – देखा की संध्या मेरी तरफ कुछ अजीब से भाव से देख रही है। क्या वह गुस्सा है? लगता तो नहीं! उत्सुक? नहीं! लालसा? पता नहीं! संध्या की नज़र देख कर उसके भाव कुछ समझ नहीं आये – मैंने अपने आपको उसके किसी भी प्रकार के आवेग के लिए मन ही मन तैयार कर लिया। संध्या उठी, मेरे पास आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और आँखों में उसी प्रकार के भाव लिए मेरी तरफ गहरी दृष्टि डाली।

‘कहीं ये मेरी गर्दन तो दबाने वाली नहीं है?’ मैंरे मन में एक तनाव देने वाला विचार कौंधा। लेकिन बस एक दो क्षणों के लिए ही। मैं लगभग तुरंत ही तनाव मुक्त हो गई – संध्या की छरहरी उंगलियाँ मेरे दाहिने स्तन को छू रही थीं। ऐसे ही दो तीन बार छूने के बाद उसने मेरे स्तन को अपनी हथेली में भर कर दबाया। मेरे स्तन का आकार उसकी हथेली के लिए काफी बड़ा था, लेकिन फिर भी उसकी पकड़ दृढ़ थी। बीच बीच में वह मेरे निप्पल को अपने अंगूठे और उंगली के बीच पकड़ कर चुटकी ले रही थी।

उधर रूद्र आँखें बंद किये मजे से मेरे बाएँ स्तन का पान कर रहा था, और इधर उसकी पत्नी मेरे दाहिने स्तन से खेल रही थी। उसकी आँखों के भाव मुझे अब समझ आये – वह भी अपने पति की ही तरह मेरे स्तनों का पान करना चाहती है! मैंने रूद्र के सर को ज़रा हिलाया, तब जाकर वह अपने उन्माद से बाहर निकला, लेकिन उसकी सिर्फ आँखें ही खुली, मुँह में अभी भी मेरा निप्पल भरा हुआ था। उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा तो उसको भान हुआ की संध्या मेरे दूसरे स्तन से खिलवाड़ कर रही थी। वह मेरे निप्पल को मुँह में लिए मिलये ही मुस्कुराया, और फिर संध्या को कुछ बोला। ज़रूर उसने उसको मेरे स्तन पीने को कहा होगा क्योंकि अगले ही पल संध्या ने मेरे निप्पल को अपने मुँह में रख लिया।
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