कायाकल्प - Hindi sex novel

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Fuck_Me
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by Fuck_Me » 17 Nov 2015 12:18

संध्या के मुँह की गर्मी का एहसास रूद्र से अलग था और बहुत अच्छा भी। कुछ देर उसने अपनी जीभ से उस पर दुलराया और फिर चूसना शुरू किया। मेरे दोनों निप्पल पूरी तरह से कड़े हो गए थे, अतः संध्या को वह पूर्ण सुगमता से उपलब्ध हो गया। संध्या निप्पल को मुँह में भरे हुए अपने दोनों हाथों से मेरे स्तन को धीरे धीरे दबाने और सहलाने लगी।

“तुमको यह पसंद है?” संध्या बिना निप्पल को छोड़े मुस्कुराई। “जब तक मन करे, पियो” मैंने कहा। यह सीन बड़ा ही हास्यास्पद था – मेरे दोनों स्तनों से दोनों इस प्रकार चिपके थे जैसे अबोध बच्चे! कुछ देर चूसने के बाद रूद्र ने मेरे स्तन को छोड़ दिया और मेरे पीछे जा कर मेरी चड्ढी उतारने लगा। एक तरीके से यह सही भी था – हम तीनों में सिर्फ मैं ही थी, जिसने कुछ भी पहन रखा था। मैंने भी अपने पैर इधर उधर उठा कर उसकी मदद करी – अब हम तीनों ही पूर्ण निर्वस्त्र हो गए।

मैं तो एक समलैंगिक हूँ, और जब संध्या जैसी सुन्दर, सेक्सी लड़की मेरे सामने इस प्रकार रहे, तो मेरा मन भी कुछ तो करने का बनेगा ही। मुझे यह नहीं मालूम था की हम तीनों की इस कामुक क्रिया की निष्पत्ति कैसे होगी, लेकिन उसके बारे में कुछ सोचना भी बेकार था। मैंने संध्या के मुख से अपना स्तन मुक्त कर उसको पीछे ही तरफ धकेला, जिससे वह रेत पर पीठ के बल गिर गयी। मैंने कुछ पल उसको निहारा, फिर अपना चेहरा संध्या के पास ला कर अपने होंठ उसके होंठो से सटा दिए। तुरंत ही मुझे दो अत्यंत कोमल होंठो का स्वाद मिलने लगा।

मैं नहीं चाहती थी की संध्या इस नए अनुभव से डर जाए या घबरा जाए, इसलिए मैंने उसके होंठों पर हलके हलके कई चुम्बन जड़ दिए। मैंने देखा की संध्या बुरा नहीं मान रही हैम तो थोड़ी और तेज़ी और जोश के साथ उसको चूमना आरम्भ कर दिया। मैंने उसके दोनों गाल अपने हाथो में लेकर से थोडा दबा दिया, जिससे उसके होंठ खुल गए। मैंने अपनी जीभ संध्या के मुँह में डाल कर अन्दर का जायजा लेना और चूसना शुरू कर दिया।

मैंने एक हाथ उसके गाल से हटाया तो संध्या का मुँह फिर से बंद हो गया – हो सकता है की उसको मेरा इस तरह से चूमना पसंद न आया हो। खैर, मुझे भी उसके स्तनों का स्वाद चाहिए था – मेरा हाथ इस सामय उसके एक स्तन पर टिका हुआ था, और उसको धीरे धीरे दबा रहा था। अब एक साथ ही उसके होंठों और दोनों स्तनों का मर्दन आरम्भ हो गया। संध्या का पूरा शरीर पहले से ही कामोन्माद के कारण काफी संवेदनशील हो गया था, और अब इस नए प्रहार के कारण अब वह असहज होने लगी। उसके मुँह से कराहें निकलने लगीं। फिर भी, मैंने उसके दोनों निप्पल बारी बारी से अपने मुँह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। वो अब बहुत कड़े हो गए।

फिर मैंने उसकी योनि पर अपनी उंगलियाँ सटा दी, और उसे मसलने लगी। मेरी खुद की हालत कोई ख़ास अच्छी नहीं थी – संध्या और रूद्र के मैथुन, मेरी खुद की यौन भ्रान्ति (पता नहीं की मैं समलैंगिक हूँ या इतरलैंगिक?), और अब संध्या जैसी सुंदरी को इस प्रकार दुलारने से मेरी खुद की योनि भी काम रस टपकाने लगी। मुझ पर भी संध्या के सामान ही मदहोशी छा रही थी। मुझे संध्या की योनि का स्वाद भी लेना ही था – मैंने उसके पैरों के बीच में अपना मुँह लाकर उसकी योनि से सटा दिया और जीभ से उसका रस चाटने लगी। संध्या की योनि से बहुत सारा तरल निकल रहा था – उसकी योनि का रस, जिसमे रूद्र का वीर्य भी सम्मिश्रित था! अनोखा स्वाद!

मुझे अचानक ही अपने पीछे एक और जिस्म की अनुभूति हुई – किसी ने मेरे कंधे को पकड़ कर खुद को मुझसे चिपका लिया था। और उसी के साथ ही मुझे मेरी योनि की दीवार पर अभूतपूर्व खिंचाव महसूस हुआ। मुझे समझ आ गया की क्या हुआ है – रूद्र का लिंग मेरी योनि की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर घुस रहा था। थ्रीसम का ऐसा अनुभव तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

जैसे ही उसका लिंग मेरी योनि में आगे बढ़ा मेरे मुँह से एक गहरी आआअह्ह्ह निकल पड़ी। उसका लिंग मेरी योनि की गहराइयों में उतर गया, और फिर बाहर भी निकल पड़ा – लेकिन मेरे राहत की एक भी सांस लेने से लहले ही वह वापस घुस गया। मुझे यकीन हो गया की रूद्र मेरे साथ सम्भोग कर ही लेगा, लेकिन फिर भी मैंने उसको रोकने की एक आखिरी कोशिश करी।
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by Fuck_Me » 17 Nov 2015 12:18

“रूद्र…. आह्ह्ह! आई ऍम अ लेस्बियन!”

“हह हह हह … ट्राई स्ट्रैट सेक्स वन्स। देन डिसाइड… ओके?”

फिर शायद उसको कुछ याद आया,

“आर यू सेफ? आई मीन…”

“यस… आह! आई ऍम सेफ! एंड आर यू?”

“यस! नो एस टी डी!”

कह कर रूद्र ने धक्के लगाने आरम्भ कर दिए। क्या बताऊँ! उस वक्त मुझे ऐसा मज़ा आ रहा था जैसे की मैं आसमान मैं उड़ रही हूँ। मेरे मुँह में संध्या की क्लिटोरिस थी, जिसको मैं अपनी जीभ से सहला रही थी और उधर मेरी योनि की कुटाई हो रही थी।

“आह ऊह! इट इस हर्टिंग! इट इस सो बिग! माई वेजाइना इस स्मार्टिंग! हाऊ डस शी टेक इट इन?”

मैंने उसके आगे पीछे वाले धक्के से अपनी लय मिलानी शुरू कर दी। हर धक्के से उसका लिंग मेरी योनि के पूरी भीतर तक घुस जाता। वो जोर-जोर से मुझे भोगने लगा – और मैं संध्या को भोगना भूल गई। वह मुझे पीछे से होकर मेरे स्तनों को दबोच दबोच निचोड़ रहा था। उसके रगड़ने से मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ने लगी। उसके जोरदार धक्के मुझे पागल बना रहे थे। कोई चार पांच मिनट तक वह मुझे ऐसे ही ठोंकता रहा – उसके धक्कों से मैं निढाल होकर पूरी तरह थक गई। फिर मुझे मेरी योनि में गरम गरम वीर्य की बूँदें गिरती महसूस हुई। कम से कम बीस साल बाद किसी पुरुष ने मुझे भोगा था – लेकिन ऐसा मज़ा मुझे पूरे जीवन में कभी नहीं आया।

हम तीनों बुरी तरह से थक कर वही गिर कर एक दूसरे की बाहों में कुछ देर लेटे रहे। और फिर सुस्ताने के बाद हमने कैमरे को ऑटो-मोड में सेट कर हम तीनों की वैसी ही नग्नावस्था में विभिन्न प्रकार की तस्वीरें खींची, एक दूसरे के गले लगे और फिर अपने कपड़े पहन कर वापस रिसोर्ट जाने के लिए तैयार हो गए। अगले दस मिनट में हम लोग वापस हेवलॉक द्वीप के लिए रवाना हो गए।

जैसे जैसे हम लोग अपने रूम की तरफ आ रहे थे, मैंने देखा, की संध्या का चेहरा उतरता जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गुस्सा, निराशा, खीझ, घृणा, और जुगुप्सा जैसे मिले जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को देख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी तरह से उतर गया था और समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ! मैं जानना चाहता था की उसके मन में क्या चल रहा है, लेकिन उस समय मैंने खुद तो जब्त कर लिया और रूम तक पहुँचने तक का इंतज़ार किया। हम दोनों जैसे ही अन्दर आये संध्या के सब्र का बाँध टूट गया,

“आपका अपनी बीवी से मन भर गया?”

जैसे जैसे हम लोग अपने रूम की तरफ आ रहे थे, मैंने देखा, की संध्या का चेहरा उतरता जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गुस्सा, निराशा, खीझ, घृणा, और जुगुप्सा जैसे मिले जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को देख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी तरह से उतर गया था और समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ! मैं जानना चाहता था की उसके मन में क्या चल रहा है, लेकिन उस समय मैंने खुद तो जब्त कर लिया और रूम तक पहुँचने तक का इंतज़ार किया। हम दोनों जैसे ही अन्दर आये संध्या के सब्र का बाँध टूट गया,

“आपका अपनी बीवी से मन भर गया?”

“क्या! … आप ऐसे क्यों कह रही हैं, जानू?” मुझे तो जैसे काटो खून नहीं।

“आप प्लीज सच सच बताइये… मैं बुरा नहीं मानूंगी! मुझसे आपका मन भर गया है न?”

“क्या बकवास कर रही हो?”

“बकवास नहीं है! देखिये…. आपने मुझ पर पहले कभी भी गुस्सा नहीं किया.. और आज यह भी शुरू हो गया। क्या मैं आपके लिए ठीक नहीं हूँ?“ कह कर संध्या सुबकने लगी।

“जानू, मैं आप पर नहीं, आपकी बात पर गुस्सा हो रहा हूँ! आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? क्यों भरेगा मेरा मन आपसे? इसका तो सवाल ही नहीं उठता! आप यह सब क्या बातें कर रही हैं?” अब तक मेरी हवाइयां उड़ने लगी।

“क्या सोच रही हैं आप? क्या चल रहा है दिमाग में? प्लीज बताइए न? ऐसे मत करिए मेरे साथ!” मैं गिड़गिड़ाया।

“आप वो मॉरीन के साथ …. कर रहे थे! अब मैं इसको क्या समझूं?”

“ओह गॉड! … शिट! तो यह बात है!?” मैंने माथा पीट लिया।

“जानू! मैंने वो सब कुछ प्लान नहीं किया था – ऑनेस्ट! गॉड प्रोमिस! वो कुछ भी नहीं है! मॉरीन कोई भी नहीं है! मैंने मॉरीन को कुछ भी नहीं कहा – वो हम दोनों को सेक्स करते देख कर खुद भी उत्तेजित हो गई….. और इसलिए उसने आपके साथ…… दरअसल, आप दोनों को ऐसी हालत में देख कर मेरा खुद पर कोई काबू ही नहीं रहा। वह सब कुछ ऐसा लग रहा था जैसे की किसी ने मुझ पर सम्मोहन डाल दिया हो। सच में जानू! प्लीज… मुझ पर विश्वास करो!” मैंने अपनी तरफ से सफाई दी।
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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Unread post by Fuck_Me » 17 Nov 2015 12:18

“आप दोनों ने मेरे साथ यह करने का प्लान किया था?”

“नहीं जानू! मैंने आपको कहा न! और तो और, मॉरीन एक लेस्बियन है … मतलब वह आदमियों से नहीं, औरतों से सेक्स करती है। पहले तो हम दोनों को सेक्स करते देख कर, और फिर आपको देखकर … आई मीन, आप इतनी सेक्सी हैं की वह अपने आपको रोक नहीं पाई।“

“तो आपने उसको मेरे साथ यह सब इसलिए करने दिया?”

“मैंने उसको यह सब करने को नहीं कहा था जानू! प्लीज बिलीव मी!!” मेरी दलील उलटी पड़ रही थी।

“तो इसका मतलब उसने मेरे साथ वह सब कुछ यूँ ही कर लिया?”

“हाँ!” मैंने अनिश्चय के साथ हामी भरी।

“और आपने उसको रोका भी नहीं?” संध्या की आँखों से आंसू गिरने लगे।

“जानू… अररर … आपको देख कर ऐसा लग रहा था की आप भी एन्जॉय कर रही हैं.. इसलिए मैंने नहीं रोका।“ इससे बे-सर-पैर वाला बहाना या सफाई मैंने कभी नहीं दी!

“तो आपका यह कहना है की कोई भी मेरे साथ सेक्स कर लेगा…. क्योंकि मैं…. सेक्सी हूँ?”

“ऐसे कैसे कर लेगा, कोई भी! मेरे कहने का मतलब था की कोई भी आपके साथ सेक्स करना चाहेगा! आप सुन्दर हैं, जवान हैं…! कोई क्यों नहीं चाहेगा? हाँ – कुछ एक अपवाद हो सकते हैं।”

“इसका मतलब आप भी किसी सुन्दर और जवान लड़की को देख कर उसके साथ सेक्स करना चाहेंगे?”

“मैंने कहा न, कुछ एक अपवाद हो सकते हैं?”

“मतलब आप एक अपवाद हैं?”

“हाँ!”

“कैसे?”

“क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ!”

“अच्छा! और कोई कारण?”

“और हम दोनों मैरिड हैं!”

“हम्म… और?”

“और क्योंकि मैं आपसे झूठ नहीं बोलूँगा, और आपको किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने दूंगा!”

“अच्छा – तो आप किसी और लड़की को ‘मेरे लिहाज’ के कारण नहीं …. करेंगे! नहीं तो कर लेते?”

“जानू… मैं आपका गुस्सा समझ सकता हूँ.. लेकिन यह सब क्या है?”

“आप मुझे सीधा सीधा जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? अच्छा, सच सच बताइए, जब आप किसी सुन्दर दिखने वाली लड़की को देखते हैं, तो उसके साथ सेक्स करने का मन नहीं होता?”

“जानू, मैंने कभी आपसे मेरे पिछले अफेयर्स के बारे में छुपाया? चाहता तो छुपा लेता! आपको कैसे मालूम होता? बताइए?”

“आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?”

“क्या जवाब चाहिए आपको?”

“सच..”

“सच जानना है आपको? तो सुनो – हाँ बिलकुल मन में आता है की ऐसी लड़की दिखे तो पटक कर चोद दूं! लेकिन मुझमें और किसी रेपिस्ट या जानवर में कोई अंतर है… और वह अंतर है की मैं मानवता के बताये रास्ते पर चलता हूँ। मेरे अपने संस्कार हैं… और किसी की मर्ज़ी के खिलाफ जोर-जबरदस्ती करना गलत है।“

“…. और अगर लड़की चाहे, तो?”

“ज्यादातर लड़कियाँ ऐसे नहीं चाहती!”

“अच्छा! तो अब आपको ज्यादातर लड़कियों के मन की बातें भी पता हैं! वह! और आप ऐसा कह सकते हैं क्योंकि?”

“क्योंकि, मेरे ख़याल से, आदमी और औरतों की प्रोग्रामिंग बिलकुल अलग होती है!”

“अच्छा जी! आदमी चाहे तो कितनी ही लड़कियों की कोख में अपना बीज डालता रहे .. लेकिन औरतें बस एक ही आदमी की बन कर रहें, और उनके बच्चे पालें?”

“नहीं … यह तो बहुत ही रूढ़िवादी सोच है! इस तरह से नहीं, लेकिन मेरे ख़याल से लड़कियाँ पहले प्रेम चाहती हैं, और फिर सेक्स!”

“अच्छा, एक बात बताइए…. अगर मॉरीन की जगह कोई आदमी होता तो?” संध्या लड़ाई का मैदान छोड़ ही नहीं रही थी।

“तो उसकी टाँगे तोड़ कर उसके हाथ में दे देता। मैं आपसे सबसे ज्यादा प्रेम करता हूँ… और आपके प्यार को किसी के साथ नहीं बाँट सकता।“ मैंने पूरी दृढ़ता और इमानदारी से कहा।

“मतलब जो मॉरीन ने किया वह गलत था.. है न?”

“नाउ दैत यू पुट इट लाइक दैत (अब जब आप ऐसे कह रही हैं तो)… यस! हाँ .. वह गलत था।“ मैंने अपना दोष मान लिया।

“आपके लिए इतना काफी नहीं था की अपनी बीवी की नुमाइश लगा रखी थी…?” लेकिन संध्या का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था, “…. शी वायलेटेड मी!” संध्या चीख उठी! दिल का गुबार उस एक चीख के साथ निकल गया… संध्या अब शांत होकर रो रही थी। मैंने उसको रोने दिया – मेरी गलती थी … लेकिन मेरी माफ़ी के लिए उसको संयत होना आवश्यक था।

मैंने आगे बढ़ कर संध्या को अपने आलिंगन में बाँध लिया और कहा,

“श्ह्ह्ह्ह …. प्लीज मत रोइये। मेरा आपको ठेस पहुचाने का कोई इरादा नहीं था। आई ऍम सो सॉरी! ऑनेस्ट! आपको याद है न, मैंने आपको प्रोमिस किया था की मैं आपको किसी भी ऐसी चीज़ को करने को नहीं कहूँगा, जिसके लिए आप राज़ी न हों? मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, और आपको कभी दुखी नहीं देख सकता।”
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