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Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Posted: 16 Nov 2015 21:57
by Fuck_Me
दूकानदार से कैमरा बैग लेकर मैंने सबसे पहले संध्या पर फोकस किया। संध्या की टी-शर्ट जगह के ही मुताबिक़ सफ़ेद रंग की थी – ब्रा तो उसने पहना ही नहीं था, इसलिए गीले और उसके शरीर से चिपक गए कपड़े से उसका शरीर पूरी तरह से दिख रहा था – उसके निप्पल स्पष्ट दिख रहे थे, और, चूंकि उसकी स्कर्ट भी पूरी तरह से उसके इर्द-गिर्द चिपक गयी थी और अन्दर की काले रंग की चड्ढी, और जांघें साफ़ दिख रही थी। अब चलने वाली हवा शरीर पर ठंडक दे रही थी – लिहाज़ा, संध्या के निप्पल भी कड़े हो गए। इससे पहले की संध्या अपनी इस स्थिति पर ध्यान दे पाती, मैंने दनादन उसकी कई दर्जन फोटो खींच डाली! और एक अच्छी बात यह दिखी की वहां पर जो भी लोग थे, किसी का भी व्यवहार लम्पटों जैसा नहीं था – न तो किसी ने संध्या की तरफ कामुक दृष्टि डाली और न ही किसी प्रकार की छींटाकशी करी। एक और हनीमूनर को मैंने कैमरा पकडाया जिससे वह हम दोनों की कुछ फोटो ले सके।

मैंने संध्या के नितम्ब पर एक चिकोटी काट कर उसके कान में गुनगुनाया,

‘समुन्दर में नहा के, और भी नमकीन हो गयी हो!
अरे लगा है प्यार का मोरंग, रंगीन हो गयी हो हो हो!’

मेरे हो हो करने से संध्या खिलखिला कर हंसने लगी, “अपनी बीवी को सबके सामने नंगा करने में आपको अच्छा लगता है?”

मैंने भी बेशर्मी से जवाब दिया, “बहुत अच्छा लगता है!” और गुनगुनाना जारी रखा,

“हंसती हो तो दिल की धड़कन हो जाए फिर जवान!
चलती हो जब लहरा के तो दिल में उठे तूफ़ान…”

इतने में सूर्यास्त प्रारंभ हो गया – बीच पर सूर्यास्त अत्यंत नाटकीय होता है। उन पंद्रह-बीस मिनटों में प्रकृति विभिन्न रंगों की ऐसी सुंदर छटा बिखेरती है की उसका शब्दों में बखान नहीं किया जा सकता। जब मैंने संध्या को पहली बार देखा था, तो मुझे भी ऐसी ही सांझ की अनुभूति हुई थी – मन को आराम देती हुई, पल-पल नए रंग भरती हुई! यह उचित था की ऐसी सुन्दर प्राकृतिक छटा के अवलोकन में मेरी प्रेयसी, संध्या, जो खुद भी इस ढलती शाम के समान सुन्दर थी, मेरे साथ खड़ी थी। मैं जब फोटो खींचने और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने की तन्द्रा से बाहर निकला तो देखा की बीच लगभग वीरान हो चली है। कमाल की बात है न, लोग सूर्य के अस्त होते होते गायब हो गए! लेकिन मैं और संध्या वहां कुछ और देर बैठे रहे। पास की चाय-पानी की दुकान वाला हमारे पास आया और पूछा की हम लोग कुछ लेंगे, तो हमने उसको चाय लाने के लिए बोल दिया। अभी लगभग अँधेरा हो गया था और कुछ दिख भी नहीं रहा था, इसलिए चाय पीकर, हमने वापसी करी।

रिसोर्ट वापस जाने के रास्ते में एक एटीएम से कुछ रकम निकाली और कुछ देर बाद हम लोग अपने रिसोर्ट में आ गए। हनीमून का पहला दिन बहुत बढ़िया बीत रहा था। ऑटो वाले को पैसे देकर मैंने रिसेप्शन पर एडवेंचर स्पोर्ट्स की बात करी। उन्होंने हमको स्कूबा-डाइविंग, स्नोर्केलिंग, और ट्रेकिंग के बारे में विस्तार में बताया। पुनः, चूंकि यह सब कुछ हमारे लिए नया था, इसलिए हम सबसे आसान और सुरक्षित कार्य करना चाहते थे। रिसेप्शनिस्ट ने हमको डाइविंग प्रशिक्षकों से मिलवाया। ये दोनों विदेशी महिलाएं थीं – मॉरीन और आना! दोनों बत्तीस से पैंतीस वर्षीय पेशेवर डाइवर थीं – मॉरीन ऑस्ट्रेलिया की मूल निवासी थी और आना इंग्लैंड की। और सबसे ख़ास बात – दोनों समलैंगिक थीं और साथ ही रहती थीं। यह सब बातें मुझे बाद में मालूम पड़ीं। खैर, उन्होंने बताया की फिलहाल दोनों फ्री हैं, और इसलिए वे अगले दो तीन दिनों में संध्या और मुझे विभिन्न प्रकार के डाइव करवा सकती हैं। मैंने कहा की फिलहाल तो हम लोग स्नोर्केलिंग से शुरू करना चाहते हैं – एक बार पानी की समझ आनी ज़रूरी है। मॉरीन ने कहा की वह हमको स्नोर्केलिंग करवाएगी और अगले सवेरे तैयार रहने को बोला।

देर शाम संध्या ने अपने घर पर फ़ोन लगाया और देर तक अपनी शादी के रिसेप्शन, हवाई यात्रा और अंडमान के बारे में बाते बताईं। संध्या का उत्साह देखते ही बन रहा था – स्पष्ट रूप से वह बहुत ख़ुश थी और यह एक अच्छी खबर थी। मैंने उसके बात करने के बाद कुछ देर अपने ससुराल पक्ष के लोगो से बात कर अपनी औपचारिकता निभाई। अब आप लोग ही बताइए “आप क्या कर रहे हैं?” जैसे प्रश्नों का क्या उत्तर दूं? कभी कभी मन में आता है की कह दूं की आपकी बेटी के साथ सेक्स कर रहा हूँ… लेकिन!

Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Posted: 16 Nov 2015 21:57
by Fuck_Me
खैर, शाम को रिसोर्ट में लाइव म्यूजिक का कार्यक्रम आरम्भ हुआ – बैंड के लोग अंग्रेजी और हिंदी के विभिन्न शैलियों के गाने गा-बजा रहे थे। बगल में ही एक बार था, जहाँ पर बैठ कर मदिरा और संगीत का आनंद उठाया जा सकता था।

“जानेमन, कॉकटेल पियोगी?” मैंने पूछा।

“वो क्या होता है?”

“कॉकटेल यानी अल्कोहलिक मिक्स्ड ड्रिंक… पियोगी?”

“मतलब शराब!? न बाबा! आप पीते हैं?” जब मैंने हामी भरी तो, “हाय राम! और क्या क्या करते हैं?”

“अबे! मैं कोई शराबी थोड़े ही न हूँ! मैं पीता हूँ तो बस कभी-कभार… किन्ही ख़ास मौकों पर! जैसे की हमारा हनीमून!”

“आप पीजिये, मैं ऐसे ही ठीक हूँ!”

“अरे एक बार ट्राई तो करो – यह कोई देसी ठर्रे की दूकान नहीं है। ये जो बार में बैठा है वह एक प्रोफेशनल मिक्सर है। इसको ख़ास ट्रेनिंग मिली हुई है.. एक कॉकटेल ट्राई करो, मज़ा न आये तो मत पीना! ओके?”

ऐसे न जाने कितनी ही देर मनाने के बाद आखिरकार संध्या ने हथियार डाल ही दिए। मैंने बारमैन को दो ‘लांग आइलैंड आइस्ड टी’ बनाने को कहा।

“आप तो कॉकटेल कह रहे थे, और अभी चाय मंगा रहे हैं!”

“चाय नहीं है – दरअसल इस ड्रिंक का नाम ऐसा इसलिए है क्योंकि इसका रंग और स्वाद ‘आइस्ड टी’ जैसा लगता है… जी हाँ, चाय को ठंडा भी पिया जाता है!”

“और यह लांग आइलैंड क्यों?”

“शायद इसलिए क्योंकि इस ड्रिंक के आविष्कारक को इसका आईडिया न्यूयॉर्क के ‘लांग आइलैंड’ नाम के द्वीप में आया था।“ मैं इस बात को छुपा गया की ‘लांग’ दरअसल अल्कोहल की सामान्य से कुछ ज्यादा ही मात्रा को दर्शाता है।

“ह्म्म्म… लेकिन, अगर पापा को मालूम पड़ेगा तो वो बहुत नाराज़ होंगे।“

“पहला, पापा को क्यों मालूम पड़ेगा? और दूसरा, अगर मालूम पड़ भी जाय, तो क्या? अब आप मेरी हैं! मेरी गार्जियनशिप में!” मैंने आँख मारते हुए कहा।

कुछ ही देर में हमारी ड्रिंक्स आ गईं।

“आराम से पीना… धीरे धीरे! ओके?” मैंने हिदायद दी।

संध्या ने बहुत ही सावधानीपूर्वक पहला सिप लिया – अनजान स्वाद! मीठा, खट्टा, कड़वा! आखिर किस श्रेणी में रखा जाय इस स्वाद को? अगली चुस्की कुछ ज्यादा ही लम्बी थी। कॉकटेल का आनंद उठाने का वैसे यही सही तरीका है – जीभ के सामने वाले हिस्से में कम स्वादेन्द्रियाँ होती हैं, इसलिए अगर ड्रिंक पूरी जीभ में फ़ैलेगी तो अधिक स्वाद आएगा।

“कैसा लगा?”

“पता नहीं…”

“खराब?”

“नहीं.. खराब तो नहीं.. अलग!”

“ह्म्म्म.. इसको अक्वायर्ड टेस्ट बोलते हैं… दूसरी ड्रिंक आपको ज्यादा अच्छी लगेगी।“

मेरी हिदायद के बावजूद, और शायद इसलिए भी क्योंकि मीठे स्वाद में इस ड्रिंक के जोखिम का पता नहीं चलता, संध्या ने मुझसे पहले ही अपना ड्रिंक ख़तम कर लिया। मैंने मना भी नहीं किया – वो कहते हैं न, अपने सामने किसी और को नशे में धुत्त होते हुए देखना ज्यादा मजेदार होता है। मैंने संध्या के लिए दूसरा ड्रिंक मंगाया। दूसरे के आते-आते, पहले का असर संध्या पर होने लग गया। उसकी पलकें भारी हो रही थीं, और वह अब ज्यादा ख़ुश दिख रही थी।

“आपने मुझसे मिलने के पहले तक, सबसे वाइल्ड, मतलब, सबसे पागलपन वाला काम क्या किया है?”

“मैं…ने..? कुछ नहीं – मैं बहुत अच्छी बच्ची हूँ!” संध्या ने दूसरी घूँट भरते हुए कहा।

“फिर भी… बच्ची ने कुछ तो किया होगा?”

“ऊम्म्म… हाँ, एक बार मैंने और मेरी सहेलियों ने मिल कर पास के रामदीन चाचा की बकरियां छुपा दी थीं। उन्होंने पूरे दिन भर बकरियां ढूँढी.. लेकिन उनको मिलती कैसे? हमने उनको कहा की दस रूपये दो, हम ढूंढ कर ले आएँगी! उनको समझ तो आ गया की हमारी शैतानी है, लेकिन उन्होंने शर्त मान ली। फिर हमने ढूँढने का नाटक करने के बाद देर शाम को बकरियां वापस की और उनसे दस रूपया भी लिया।“

“रामदीन चाचा आये थे शादी में?”

“हाँ – गाँव के सब लोग ही आये थे! सभी आपको देखना चाहते थे।“ उसकी दूसरी ड्रिंक आधी ख़तम भी हो गई।

“जानू, आराम से पियो! चढ़ जायेगी!”

“लेकिन मुझको तो नहीं चढ़ी…! और ये ‘लांग टी आइलैंड’ बहुत मजेदार है! अरे, अभी तक आपने पहला भी ख़तम नहीं किया?”

“हा हा!” मुझे समझ आ गया की संध्या को चढ़ गयी है। “आपको कोई जोक आता है?”

“जोक – हाँ! आप सुनेंगे?” मैंने हामी भरी।

“एक बार संता शादी की दावत में गया, लेकिन सामने रखे सलाद की टेबल को देख कर वापस आ गया। और बंता से बोला, “ओये बंता… अभी मत जा! अभी तो सब्जियां ही कट रही हैं!”

“हा हा! एक और?”

“हाँ –एक बार संता कहता है, “यार बंता, मेरी बीवी मुझको नौकर समझने लगी है… बोल क्या करूँ? बंता कहता है, अरे मौके का फायदा उठा… दो-चार घर और पकड़ ले और अपना धंधा जमा ले!”

Re: कायाकल्प - Hindi sex novel

Posted: 16 Nov 2015 21:58
by Fuck_Me
“आपको सब ऐसे ही जोक्स आते हैं?”

“हाँ! मुझको संता-बंता के बहुत से जोक आते हैं! बहुत मजाकिया होते हैं!”

“संता-बंता नहीं… कोई और जोक सुनाइये!”

“अच्छा….. कोई और? उम्म्म्म…… हाँ याद आया…. एक बार एक पत्नी अपने पति को कहती है, “चलो एक खेल खेलते हैं, मैं छुपती हूँ और आप मुझे ढूंढ़ना। अगर आपने ढून्ढ लिया तो मैं आपके साथ शॉपिंग करने चलूंगी।“ पति कहता है, “अगर नहीं ढूंढ पाया तो?” पत्नी कहती है, “ऐसा मत कहो जानू, बस दरवाज़े के पीछे ही छुपूंगी।“”

“अब आप भी तो कुछ सुनाइए… सारे मैं ही सुना दूँ?”

“अच्छा! आपने कभी कोई एडल्ट जोक सुना है?”

“एडल्ट जोक? वो क्या होता है?”

“अभी समझ आ जायेगा… यह सुनो….

“दिल्ली के एक मोहल्ले में एक बच्चा अपने घर में हमेशा नंगा घूमा करता था। घर में कोई भी आता, तो बच्चा नंगा ही मिलता और उसकी मां को ताने सुनना पड़ते। उसकी इस आदत से परेशान होकर मां ने एक उपाय सोचा और अपने बच्चे से कहा, “बेटा, जब भी कोई घर में आए, तो मैं कहूँगी, ‘दिल्ली बंद’ और तुम तुरंत निक्कर पहनकर बाहर आ जाना।“
बच्चा समझ गया। एक दिन उस बच्चे की मौसी उसके घर आई, तो मां ने आवाज लगाई, “बेटा, दिल्ली बंद।“ बच्चा निक्कर पहनकर बाहर आ जाता है और कहता है, “मौसी, आप यहां किसलिए आये हो?” मौसी कहती है, “बेटा, मैं दिल्ली देखने आई हूं।“
बच्चा कहता है, “ये लो! वो तो अभी-अभी मम्मी ने बंद करवा दी!” और कहते हुए उसने अपना निक्कर उतार दिया। मौसी हंसते हुए कहती है, “बेटा, मैं यह वाली दिल्ली नहीं, बड़ी वाली दिल्ली देखने आई हूं।“
बच्चा तुरंत कहता है, “कोई बात नहीं मौसी, मैं अभी पापा को बुलाता हूं!””

“ये भी क्या जोक है? धत्त! …..और मुझे मालूम है, वो बच्चा आप ही हैं… आपका ही निक्कर हमेशा उतरा रहता है!”

“हा हा हा!! एक और जोक सुनो – शादी के बाद सुहागरात के लिए पति और उसकी पत्नी अपने कमरे में गये। पत्नी बेड पर बैठ गई और पति “कैडबरी चॉकलेट” अपने लंड पर लगाने लगा। पत्नी ये देखकर बोली, “क्या कर रहे हो जी?” पति कहता है, “अरे! वो कहते हैं न? शुभ काम करने से पहले कुछ मीठा हो जाये।“

संध्या खिलखिला का हँस पड़ी – दो गिलास भर के कॉकटेल गटकने के बाद संध्या अब पूरी तरह से रिलैक्स्ड और आरामदायक हो गई थी। मैंने देखा की उसकी मुस्कराहट बढती ही जा रही थी और अब वह खुल कर बातें कर रही थी। मैंने अंदाज़ा लगाया की एक और पेग, और बस! लड़की ढह जायेगी!

मैंने एक बार फिर से पांसा फेंका, “अच्छा, और क्या-क्या वाइल्ड काम किया है?”

“और क्या? ऐसे कुछ तो याद नहीं आ रहा!”

“कुछ सेक्सुअल? मेरे से पहले!”

“मेरे साथ जो भी सेक्सुअल है सब आपने ही किया है!” इतनी स्पष्ट स्वीकारोक्ति!

“लेकिन…” मैं तुरंत चौकन्ना हो गया, “… जब पड़ोस की भाभियों ने मर्दों के लिंग और उसके काम के बारे में बताया तो मैं बहुत घबरा गई। उनके बताने के एक दिन बाद मैंने.. उंगली डालने का ट्राई किया था…”

“उंगली? कहाँ?” मुझे अच्छी तरह से मालूम था की कहाँ, लेकिन फिर भी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आया।

“जाइए हटिये! आप मुझे सताते हैं!”

“अरे! बिलकुल नहीं! क्यों सताऊँगा? बोलो न, कहाँ?”

“यहाँ… नीचे!” संध्या ने दबी हुई आवाज़ में कहा।

“पीछे?” मैंने फिर छेड़ा!

“हटो – मुझे नहीं कहना कुछ भी!” संध्या रूठ गई।

“अरे मेरी जान .. ठीक है, अब नहीं छेडूंगा.. बोल भी दो!”

“मेरी…” एक पल को हिचकिचाई, “… वेजाइना में! यही नाम बताया था न आपने? आधा इंच भी नहीं जा पाई, और दर्द हुआ! मैंने डर के मारे वहीँ छोड़ दिया!”

“अच्छा बेटा! मेरे पीठ पीछे यह सब करती थी? वेजाइना के साथ एक और नाम बताया था – याद है?”

“हा हा! नहीं नहीं… मैं तो बस यह देख रही थी की… की मेरी वेजाइना कितनी चौड़ी है, और कितनी फ़ैल सकती है! बस! सच्ची! बस और कुछ नहीं!”

“हा हा हा!”

“एक्सैक्ट्ली मेरी पहली उंगली जितनी ही तो चौड़ी है! और ये देखिये,” उसने उत्साह से अपनी तर्जनी दिखाते हुए कहा, “ये उंगली ही कितनी पतली है! और इतने में ही दर्द हो गया! उस दिन आपका पहली बार देखा तो मेरी सांस ही अटक गयी की यह कैसे अन्दर जाएगा!”

“देखो – उस दिन आपकी यह पतली सी उंगली ही ठीक से नहीं जा पा रही थी, और आज देखिये, मेरा ल्ल्लंड भी आराम से चला जाता है!”

“कोई आराम वाराम से नहीं जाता, आपका…!” बोलते बोलते संध्या रुक गयी, और फिर, “.. मेरी जगह पर होते तो आपको मालूम पड़ता सारा आराम!”