समय और संयोग : दोस्त की सच्चाई, बीवी की अच्छाई

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Re: समय और संयोग : दोस्त की सच्चाई, बीवी की अच्छाई

Unread post by admin » 18 Jan 2017 09:30

मैं- अबे साले ड्रामा बंद कर.. और आगे कभी भी तू भाभी के साथ करना चाहो
या करो.. तो मुझे बताना.. पर हमेशा सच बोलना..
संजय- हे..
मैं- हे क्या.. हाँ या ना..
संजय- ह..हाँ..

मैं- और तूने मुझे बता दिया है कि क्या हुआ था.. पर इस बारे में कीर्ति
को मत बताना।
संजय- क्यों?
मैं- उसने शायद ऐसा भी लगे कि वो झूठ बोली या फिर गैरमौजूदगी में गैर
मर्द से काम किया.. वो मुझसे नजरें नहीं मिला पाएगी.. मेरे उसके प्रेम पर
असर पड़ सकता है। पर इस बार चूंकि मैं नहीं था और ना मेरी इजाजत से ये सब
हुआ है.. इसलिए तुझे बोल रहा हूँ।
संजय- ठीक है
मैं- चलो अब काम पर चलते हैं.. तूने तो मेरी बीवी के साथ मस्ती कर ली। जब
तुम्हारी बीवी आएगी.. तब मैं उसके साथ करूँगा।
संजय- कर लेना.. मैं नहीं रोकूँगा.. हा हा हा हा हा..
इस तरह हम काम पर चले गए।

दोस्तो, सब कुछ शान्त हो गया कुछ दिन में मेरी बीवी भी सामान्य हो गई।
इसके बाद आगे भी हुआ.. पर हम दोनों की सहमति से हुआ था..

कई बार जब मेरा बाहर जाना होता तो संजय और मेरी बीवी चुदाई करते और मस्ती करते।
संजय बाद में और पहले सब बता देता..

मैं जब यहाँ शहर में होता तो कीर्ति को कभी-कभी कहता कि अगर शॉपिंग या
मूवी देखनी हो संजय के साथ चली जाए।

मेरे मन में संजय और उसके प्रति कोई सवाल या कुछ और न देख कर वो भी
बेझिझक हो गई थी इसी लिए कभी-कभी वो उसके साथ भी जाती।
पर ऐसी घटना के बाद भी हमारी एक-दूसरे के प्रति इज्जत और सम्मान वैसा ही रहा।
यह सब समय और संयोग की बात है।

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