ज़िंदगी के रंग compleet

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rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 14 Oct 2014 15:19

कॉल सेंटर पे काम करते उस दिन दोनो लड़कियाँ चहक रही थी. "ये कैसा दिन है आज?" मोना सौच रही थी. 1 ही दिन मे पहले ममता का घर छोड़ कर ऐसी राह पे चल देना जहाँ कि मंज़िल का ही नही पता था तो फिर अली का ऐसे इज़हार-ए-मोहबत. जब लगा के अब वो ज़िंदगी के सफ़र मे अकेली नही तो फिर ऐसे उसका पहले ही मोड़ पे साथ ना दे पाना. फिर उसकी सहेली का ऐसे उसका साथ देना तो आख़िर मे असलम सहाब का ऐसे आ जाना और उसे अपनी होने वाली बहू मान लेना. ये सब एक ख्वाब ही की तरहा तो था. और वो जागती आँखौं से ये सपने बैठे बैठे काम पे देख रही थी. दोसरि ओर किरण उपर वाले का लाख लाख शूकर अदा कर रही थी के उसने इस तरहा से उसकी मदद की. जहाँ मनोज से छुटकारे का रास्ता ही कोई नही दिखता था तो अब वो उस लम्हे का इंतेज़ार कर रही थी जब वो घर जा के मनोज को उठा के घर से बाहर फेंकेगी. वो अपने सपनो मे यौं ही खोई हुई थी जब सरहद उसके पास आया.

सरहद:"क्या बात है किरण आज किन ख्यालो मे खोई हुई हो?"

किरण:"बस तुम्हारे बारे मे ही सौच रही थी. क्या करू तुम ने मेरी रातो की नींद जो उड़ा दी है." उसका शोख चंचल्पन भी आज वापिस आ गया था. ये सुन कर सरहद का मुँह तो शरम से लाल हो गया. वो जानता था के मज़ाक कर रही है लेकिन फिर भी इस तरहा का मज़ाक पहले तो कभी उसने नही किया था.

सरहद:"टांग खेंचने के लिए मैं ही मिला हूँ?"

किरण:"तो बता दो ना किसी और को ढूँढ लूँ क्या?"

सरहद:"नही." उसने जल्दी से जवाब दिया और फिर अपनी बेवकूफी का आहेसास हुआ. ये सुन कर किरण खिलखिला कर हँसने लग गयी. जाने सरहद ने कहाँ से थोड़ी हिम्मत कर के पूछ ही लिया

सरहद:"किरण वो मैं सौच रहा था के......क्या मेरे साथ डिन्नर पे चलो गी?" अब तक किरण को अंदाज़ा तो हो ही गया था के सरहद को उसपे प्यार है और इतने दिन उसके साथ काम कर के अंदाज़ा भी हो गया था के वो देखने मे जैसा भी हो, दिल का अच्छा बंदा है. कॉलेज के दिल फेंक आशिक़ो और मनोज जैसे दरिंदे के बाद वो सरहद की खूबियो को सॉफ देखने लगी थी.

किरण:"ज़रूर." दोनो एक दूजे की आँखौं मे देखने लगे और अन कहे वादे आँखौं ही आँखौं मे करने लगे.

सरहद:"मैं आज रात को आठ बजे आप को घर पे लेने आ जाउन्गा."

किरण:"मैं इंतेज़ार करूँगी." किरण ने मुस्कुरा कर कहा.

सरहद जल्दी से वहाँ से चला गया इससे पहले के ख़ुसी से वो कोई बेवकूफी ना वहाँ कर बैठे. मोना जो कुछ दूर ये सब देख रही थी किरण के पास आ गयी.

मोना:"क्या बात है! दोनो तरफ है आग बराबर लगी हुई."

किरण:"चल चुप कर. ऐसा कुछ नही है."

मोना:"वो तो तेरा दीवाना है ये सब ही जानते हैं. क्यूँ क्या तुझे पसंद नही? "

किरण:"शायद."

रात को जब किरण आंड मोना घर पोहन्चे तो मनोज की गाड़ी पहले ही खड़ी थी. जिसे देख किरण सौचने लगी "आज तो इसका कुछ करना ही पड़ेगा" जैसे ही वो घर मे दाखिल हुए तो देखा के मनोज ड्रॉयिंग रूम मे बैठा हुआ था..

मोना को यौं किरण के साथ देख कर उसे अजीब सा लगा. जिस दिन उसने किरण को मारने के बाद उसे घर पे कभी भी किसी लड़के के साथ यां बाहर घूमने फिरने से मना किया था उस के बाद तो कभी वो किसी लड़की के साथ भी उसे घर के आस पास नज़र नही आई. उसने जो गौर से मोना को देखा तो उसके अंदर का शैतान जाग गया. "ये तो किरण से भी ज़्यादा गर्म माल है. लगती भी अमीर घर से नही. साली किरण को कहता हूँ के इसको भी मेरी रंडी बना दे. चार पेसे लग भी गये तो कोई बात नही." वो मोना को हवस भरी नज़रौं से देखते हुए ये सौच रहा था के किरण ने उसको ख्वाबो की दुनिया से वापिस खेंचा.

क्रमशः....................


rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 14 Oct 2014 15:20

ज़िंदगी के रंग--12

गतान्क से आगे..................

किरण:"मनोज मैं चाहती हूँ के तुम ये घर फॉरन खाली कर दो. किरण अब यहाँ तुम्हारी जगह रहेगी." मोना को ये सुन कर हैरत तो हुई के किरण ने एक दम से मनोज को निकलने का कहा है और वो भी इस रूखे लहजे से पर मनोज के लिए तो जैसे ज़मीन ही फॅट गयी थी. उसकी ठोकरो पे पलने वाली उससे ये कह किस तरहा रही है उसे तो यकीन ही नही आ रहा था. मोना की वजह से अपने घुस्से पे काबू पाते हुए वो बोलना शुरू हुआ

मनोज:"किरण जी आप होश मे तो हैं ना? आप को पता भी है ये आप क्या कह रही हैं?"

किरण:"मुझे अछी तरहा मालूम है के मैं क्या कह रही हूँ. अपना समान उठाओ और निकल जाओ मेरे घर से." कोशिश करने के बावजूद मनोज का गुस्सा बर्दाश्त से बाहर होने लगा.

मनोज:"तुम्हे पता है ना के तुम किस से बात कर रही हो?"

किरण:"अच्छी तरहा से मालूम है. मैं एक ऐसे वहशी दरिंदे से बात कर रही हूँ जो दूसरो की मजबूरियो से खेलता है. पर ना तो अब मैं मजबूर हूँ और ना ही तुम्हारे जैसे ज़लील इंसान की शक्ल भी देखना चाहती हूँ." इतने आरसे से जो नफ़रत किरण के दिल मे लावे की तरहा पैदा हो रही थी आज वो फॅट कर बाहर आ गयी थी. दोसरि ओर मनोज को यकीन ही नही आ रहा था के ये वो ही लड़की है जिस की उसके सामने ज़ुबान तक नही खुलती थी. अब तो उसे मोना की भी फिकर नही थी और वो गुस्से से पागल हो चुका था.

मनोज:"साली रंडी दिखा दी ना तूने अपनी औकात. बोल हरमज़ड़ी क्या नया यार मिल गया है तुझे?"

किरण:"अपनी बकवास बंद करो और दफ़ा हो जाओ यहाँ से."

मनोज:"तो जानती है ना मे कौन हूँ? साली तेरे साथ तेरी मा को भी सड़को पे नंगा ना नचाया तो मेरा नाम भी मनोज नही. देखता हूँ मैं भी के किसी का बाप भी मुझे केसे इस घर से निकाल सकता है?" मोना उन दोनो की बाते सुन कर हैरान-ओ-परेशान वहाँ खड़ी थी. "ये हो क्या रहा है?" उसे तो यकीन ही नही आ रहा था जो आँखौं से देख और कानो से सुन रही थी. ऐसे मे घर की घेंटी बजी. मनोज और किरण तो एक दूसरे को बुरा भला कहने मे इतने मसरूफ़ थे के उन्हो ने परवाह ही नही की के घर की घेंटी बजी है. सहमी हुई हालत मे मोना ने जा कर दरवाज़ा जो खोला तो सामने सरहद खड़ा था. शोर शराबा सुन कर वो भी थोड़ा घबरा गया.

rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 14 Oct 2014 15:21

सरहद:"क्या मैं ग़लत समय पे तो नही आ गया?"

मोना:"मुझे तो खुद कुछ समझ मे नही आ रहा. किरण और करायेदार के बीच नैन लड़ाई हो रही थी. तुम पहले अंदर तो आओ बाकी सब भी तमाशा देखेंगे ऐसे तो." सरहद घर के अंदर आ गया और दरवाज़ा बंद कर दिया.

मनोज:"साली कुतिया कल तक तो चंद टाको के लिए मेरा बिस्तर गरम करती रही है और आज तेरी इतनी जुरत के तू मेरे मुँह लग रही है?" ये आवाज़ जो सरहद के कानो मे पड़ी तो उसका तो खून खूल उठा. जल्दी से वो आवाज़ की सिमत मे भागा. जो ड्रॉयिंग रूम मे घुसा तो देखा मनोज ने किरण को बालो से पकड़ रखा है और ऐसे लग रहा था जैसे के वो उसका खून ही पी जाएगा. ये देख सरहद का तो गुस्से से खून खोल उठा. उसने ज़ोर से जा कर एक घूँसा मनोज के मुँह पर मार दिया. मनोज जो सही तरहा से सरहद को अपनी ओर आते देख भी नही पाया था दूर जा कर गिरा और किरण उसकी गिरिफ़्ट से आज़ाद हो गयी. भाग के ज़ोर से एक लात सरहद ने ज़मीन पे गिरे हुए मनोज के मुँह पे जो मारी तो उसकी नाक से खून निकलने लगा. थोड़ी ही देर मे दोनो घुथम गुथा हुए पड़े थे. मनोज अब थोड़ा सा संभाल तो गया था लेकिन जो मार उसे पड़ चुकी थी उसकी वजा से उसका सर घूम रहा था. सरहद के सर पे तो वैसे ही खून सवार था. उसने जम के मनोज की पिटाई की जब तक के वो खुद थक के हांपने ना लग गया. थोड़ी देर बाद जो मनोज ने थोड़ा होश संभाला तो सरहद को बोलना शुरू हुआ.

मनोज:"ठीक है मैं जा रहा हूँ यहाँ से पर मेरी एक बात याद रखना. कल तक मेरे टुकड़ो पे पलने वाली अगर आज मेरे साथ ये करवा सकती है तो तेरी भी कभी नही बने गी." ये कह कर वो धीरे से उठा और अपने मुँह से खून सॉफ करता हुआ घर से बाहर चला गया. सरहद ने जो किरण की ओर देखा तो वो रो रही थी और उसके होंठ से खून निकल रहा था. ज़रूर मनोज ने उसे सरहद के आने से पहले मारा होगा. जल्दी से वो किरण की ओर गया और उसके आँसू सॉफ करने लगा. मोना भी किरण का खून सॉफ करने लगी और दोनो उसे चुप कराने लगे.

सरहद:"बस बस सब ठीक हो जाएगा प्लीज़ तुम रो मत."

किरण:"सरहद मुझे तुम्हे और मोना को कुछ बताना है."

मोना:"किरण तुम अभी चुप हो जाओ हम बाद मे बात कर लेंगे ना."

सरहद:"हां मोना ठीक कह रही है."

किरण:"नही कुछ बाते इंतेज़ार नही कर सकती." ये कह कर वो सब कुछ कैसे उसके पिता के देहांत के बाद उन्हे पेसौं की ज़रूरत पड़ी से ले कर जो कुछ भी मनोज ने किया सब कुछ बताने लगी. जब वो सब कुछ बता के चुप हुई तो उसके साथ साथ मोना की आँखौं से भी आँसू निकल रहे थे और सरहद की आँखे भी नम हो गयी थी.

किरण:"बोलो क्या अब भी तुम एक ऐसी लड़की के साथ जो पेसौं की खातिर किसी की रखैल रही हे से दोस्ती बढ़ाना चाहोगे?" सरहद ने ये सुन कर धीरे से उसका चेहरा अपने हाथो से पकड़ा और उसके आँसू सॉफ करते हुए बोला.

सरहद:"आज मैं भी तुम्हे एक राज़ बताना चाहता हूँ. मैं 1-2 दिन नही, सालो से तुम्हे चाहता हूँ. आज ये सब कुछ जानने के बाद तो मेरे दिल मे तुम्हारे लिए प्यार और भी बढ़ गया है. कौन भला अपनी मा के लिए इतना कुछ कर सकती है जो तुमने किया है? किरण मैं तुम्हे बहुत चाहता हूँ और सारी ज़िंदगी चाहता रहूँगा." ये सुन कर किरण की आँखौं से फिर आँसू निकलने लगे पर इस बार वो खुशी के आँसू थे. दोनो एक दोसरे के सीने से लिपट गये. मोना भी ये देख उन दोनो के लिए बहुत खुश थी. थोड़ी देर बाद जब किरण ने अपने आँसू पौंछ लिए तो बोली

किरण:"चलो मैं तुम्हे अपनी मा से मिलाती हूँ." जब वो उसके कमरे मे गये तो उसकी मा की लाश बिस्तर पर पड़ी थी और आँखौं से बहने वाले आँसू अभी तक पूरी तरहा से खुसक नही हुए थे..

अच्छे बुरे वक़्त तो सभी की ज़िंदगी मे आते हैं लेकिन ना वक़्त रुकता है और नही ज़िंदगी आगे बढ़ने से रुकती है. बीते हुए कल मे रहने वाले ज़िंदगी की दौड़ मे बहुत पीछे रह जाते हैं और हिम्मत ना हारने वाले ही अपनी मंज़िल पे पोहन्च पाते हैं. किरण की मा को गुज़रे अब 3 महीने हो गये थे. मोना की दोस्ती और सरहद के प्यार की वजा से ही वो इस सदमे को सह पाई थी. सरहद और वो कुछ ही अरसे मे एक दूजे के बहुत करीब आ गये थे. लगता था जैसे एक दूजे को सदियों से जानते हो. सरहद तो उसे सालो से चाहता था और अब जब वो उसे मिल ही चुकी थी तो उसकी ज़िंदगी की सब से बड़ी खोवाहिश भी पूरी हो गयी थी. मनोज भी उस दिन के बाद कभी लौट कर नही आया. ऐसे लोग वैसे भी अपने अगले शिकार की ऑर चले जाते हैं आंड बदक़िस्मती से दुनिया भरी पड़ी है ऐसी लड़कियो से जिन की मजबूरी का ये फ़ायदा उठाते रहे. जहाँ किरण और सरहद इतने जल्दी ही एक दूजे के करीब आ गये थे वहाँ ऐसा अली और मोना के बीच मे नही हुआ था. कहीं ना कहीं दोनो के दिमाग़ पे जो भी उस दिन अली के घर मे हुआ उसका असर तो ज़रूर हुआ था. पर धीरे धीरे ही सही दोनो फिर से अच्छे दोस्त तो बन गये थे और मन ही मन ये भी जानते थे के उन्हे एक दूजे से प्यार है. ना तो अली ने ज़रूरत से ज़्यादा करीब आने की कोशिश की तो ना ही मोना को कोई जल्दी थी. शायद उस दिन जो हुआ उसके बाद दोनो को इतनी अकल तो आ ही गयी थी के दोनो अभी इतने बड़े कदम उठाने के काबिल नही. जहाँ मोना अपने माता पिता के सहारा बनने के लिए दिन रात मेहनत कर रही थी तो वहीं अब अली भी ज़िंदगी मे पहली बार पढ़ाई मे ध्यान देने लग गया था. वो भी कल को मोना को पाने के लिए ज़िंदगी को संजीदगी से लेने लगा.

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