Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

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The Romantic
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by The Romantic » 28 Dec 2014 10:45

chha gaye guru

007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 29 Dec 2014 10:07

jay wrote:chha gaye guru
Jemsbond wrote:अच्छी पोस्ट है

shukriya dosto

007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 29 Dec 2014 10:09

बहन की इच्छा—9

गतान्क से आगे…………………………………..

"तुम्हारी शादी हो गई है तो क्या हुआ, दीदी? इसका मतलब ये थोड़ी है के तुम्हें सब मालूम पड़ गया है?"

"अच्च्छा! तो फिर बता ही दो मुझे तुम कुच्छ. जो मेरा ज्ञान बढ़ा दे. में भी अब लाज शरम छ्चोड़ देती हूँ और सुन'ती हूँ तुम्हारे अकल के तारे तुम कैसे तोड़ते हो."

"ठीक है, दीदी! अब अगर तुम्हें कुच्छ नई बात नही बताई तो तुम्हारा भाई नही कहलाउन्गा. अच्च्छा! अब जो जो सवाल में तुम'से करूँगा उस'का सच सच जवाब देना. तुम्हें स्त्री काम्त्रिप्त कैसे होती है ये मालूम है क्या?"

"नही मालूम!!"

"नही मालूम?. मेने कहा सच जवाब देना. मेरे साथ मज़ाक नही कर'ना."

"हां ! में मज़ाक नही कर रही हूँ. सच कह रही हूँ!"

"कुच्छ भी मत कहो, दीदी! तुम्हें मालूम नही ये??"

"अब मेने कहा ना.नही? तुम्हें यकीन कर'ना है तो कर लो वारना ये बात यही ख़त्म कर दो."

"अच्च्छा ठीक है, दीदी. तुम्हें मालूम हो या ना हो लेकिन फिर भी में बताता हूँ. और मेरे मूँ'ह से कुच्छ ऐसे शब्द बाहर निकले जो तुम्हें अश्लील या गंदे लगे तो मुझे माफ़ कर देना लेकिन उन शब्दो के बगैर में तुम्हें बता नही सकता."

"ठीक है! ठीक है! चालू करो तुम."

"अच्च्छा! तो स्त्री की योनी के उप्पर एक भाग होता है जिसे शिश्नमुन्द कह'ते है."

"हा! हा! हा! इस शब्द को अश्लील कौन बोलेगा.?" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ज़ोर से हंस'ने लगी.

"हँसना नही, दीदी! में सीरियस्ली बता रहा हूँ."

"अच्च्छा! अच्च्छा! ठीक है. बोल आगे."

"तो ये शिश्नमुन्द कॉम्क्रीडा में जब घिस जाता है तब स्त्री ज़्यादा उत्तेजीत हो जाती है और उसकी उत्तेजना बढ़ते बढ़ते एक चरम सीमा तक पहुन्च'ती है और फिर स्त्री की काम्त्रिप्ती हो जाती है."

"झूठ! सरासर झूठ!! तुम कुच्छ भी कह रहे हो. ऐसा कुच्छ नही होता है. स्त्री को कॉम्क्रीडा से कोई आनंद नही मिलता. मिलता है तो सिर्फ़ दर्द!. तकलीफ़!."

"यानी, दीदी. तुम्हें ये मालूम नही है! अगर तुम्हें ये मालूम होता तो तुम ऐसे नही कह'ती."

"हा! ठीक है ये मुझे मालूम नही. लेकिन तुम जो कह रहे हो उस'पर मुझे यकीन नही है."

"दीदी! सचमूच तुम'ने ये सुख लिया नही है?"

"नही!"

"जीजू के साथ कर'ते सम'य तुम्हें ये मज़ा नही मिला??"

"नही!!"

"और तुम्हें मेरी बात का यकीन नही है?"

"नही! नही!! नही!! "

"अब में तुम्हें कैसे यकीन दिला दू, दीदी??. ठीक है!. तुम्हें मेरी बात'पर यकीन नही है तो में तुम्हें कर के दिखाता हूँ." ऐसा कह'ते में उठ गया और ऊर्मि दीदी के पैरो तले आ गया.

"क्या???" उर्मई दीदी ने चीखते हुए कहा, "सागर!! . क्या कर रहे हो तुम?? तुम अब हद से बाहर जा रहे हो. चलो! यहाँ आओ. ठहरो!. तुम मेरे पैरो में क्यों बैठ गये हो?.. छ्चोड़ दो!.. छ्चोड़ दो मेरे पाँव. क्या कर रहे हो?. मेरे पाँव क्यों फैला रहे हो?. छी!! . सा. सागर!!. वहाँ मूँह क्यों लगा रहे हो?. अम!!. प्लीज़, सागर!. रुक जाओ. ये क्या गंदी बात कर रहे हो तुम?. में तुम्हारी बहन हूँ. छोड़ दो मेरे पाँव. उठो तुम वहाँ से. प्लीज़!!."

ऊर्मि दीदी की बात ना सुन के में उसके पैरो के बीच में लेट गया और उसके पाँव फैला के मेने सीधा अपना मूँ'ह उसकी चूत पर रख दिया. पहेले तो मेने उसके चूत के छेद को मेरी जीभ से उप्पर नीचे थोड़ी देर चाट लिया. फिर बाद में मैं उसके छेद के उप्पर का चूत'दाना चाट'ने लगा. वो मुझे रुक'ने के लिए कह रही थी और अप'ने पाँव हिलाने की कोशीष कर रही थी लेकिन मेने उसके पाँव जाकड़ लिए थे.

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