Thriller -इंतकाम की आग compleet

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raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:35

राज वेरहाउस मे अब भी ज़मीन पर पड़ा हुआ था… लेकिन अब वह उस ट्रॅन्सस्टेट से बाहर आ गया था… वह झट से कंप्यूटर के मॉनिटर की तरफ देखा…. अब कंप्यूटर बंद था… उसने वेरहाउस मे इधर उधर देखा… अब बाहर सवेरा हो गया था और अंदर वेरहाउस मे अच्छी ख़ासी रोशनी आ रही थी… कुछ देर पहले ज़ोर ज़ोर से बह रही हवा के झोके भी थम गये थे… वह अब उठ कर खड़ा हो गया और सोचने लगा… इतने मे उसका ख़याल कुछ देर पहले नीचे गिरे हुए फोटो फ्रेम की तरफ गया…. उसने वह फ्रेम उठाई और सीधी कर देखी… वह एक ग्रूप फोटो था… सुधीर और उन चार मीनू के क़ातिलों का…

उसे अब एक एक बात एकदम सॉफ हो चुकी थी… वह जब नीचे पड़ा हुआ था और उसे जो एक एक द्रिश्य दिखाई दिया था, शायद मीनू की अद्रुश्य और अतृप्त रूह को वह उसे बताना था… लेकिन उसे वह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ी थी…? वह उसे ना बताए हुए भी मीनू को जो चाहिए वह अब तक हासिल करते आई थी औरा आगे भी हासिल कर सकती थी…

फिर उसने यह उसे क्यों बताया था…?

ज़रूर कोई वजह होगी…?

इसमे उसका ज़रूर कोई उद्देश्य होगा…

सुधीर के केस की काफ़ी दिनो से कोर्ट मे कार्यवाही चल रही थी.. हर बार राज कोर्ट मे कामकाज के दौरान हाजिर रहता था और वहाँ बैठकर सब कार्यवाही सुनता था… इधर केस का कामकाज चलता था और उसके दिमाग़ मे वह एक ही सवाल घूमते रहता था कि मीनू ने वह सब बताने के लिए उसे ही क्यों चुना होगा…? और मीनू का वह सब बताने का क्या मकसद रहा होगा…?

कि वह सब कुछ उसने कोर्ट मे बयान करना चाहिए ऐसा तो मीनू को अपेक्षित नही होगा…?

लेकिन अगर वह सब उसने कोर्ट मे बताया तो उसपर कौन विश्वास करने वाला था…?

उल्टा एक ज़िम्मेदार इंस्पेक्टर के मुँह से ऐसे अंधश्रद्धा बातें सुनकर लोगो ने उसे ना जाने क्या क्या कहा होता…

सिर्फ़ कहा सुनाया ही नही तो उसका आगे का पूरा कैरयर् सवालो के और शक केग हियर मे आया होता…

वह सोच रहा था लेकिन आज उसे विचारों के जंजाल मे नही फँसना था… आज उसे कोर्ट की कार्यवाही पूरी तरह ध्यान देकर सुन नी थी… क्योंकि आज केस का नतीजा निकलने वाला था.

आख़िर इतनी दिनो से घसीट ते हुए चल रहे केस के सब जब जवाब हो चुके थे… राज की भी ज़बानी हो चुकी थी… उसने जो साबित किया जा सकता था वह सब बताया था.

आख़िर वह वक्त आया था. वह पल आ चुका था जिसकी सारे लोग बड़ी बेचैनी से राह देख रहे थे… केस के नतीजे की… राज अपने कुर्सी पर बैठकर जड्ज क्या फ़ैसला सुनाता है यह सुन ने के लिए जड्ज की तरफ देखने लगा… वैसे उसके चेहरे पर किसी भी भाव का अस्तित्व नही था.. कोर्ट रूम मे उपस्थित बाकी सब लोग सांस रोक कर जड्ज का आखरी फ़ैसला सुन ने के लिए बेताब थे…

जड्ज फ़ैसला सुना ने लगा –

“सारे सबूत, सारे जवाब, और खुद मिस्टर. सुधीर ने दिया स्टेट्मेंट की ओर ध्यान देते हुए कोर्ट इस नतीजे पर पहुँचा है कि मिस्टर. चंदन, मिस्टर. सुनील, मिस्टर. अशोक और मिस्टर. शिकेन्दर इन चारो के भी क़त्ल मे मिस्टर. सुधीर मुजरिम पाया गया है… उसने वह चारो खून जान भूज कर और पूरी योजना और सतर्कता के साथ किए है…”

“… इसलिए कोर्ट मुजरिम सुधीर को मौत की सज़ा सुनाता है…”

जड्ज ने आखरी फ़ैसला सुनाया था… इस फ़ैसले का जिन चार लोगो के क़त्ल हुए थे उनके रिश्तेदारो ने तालिया बजा कर स्वागत किया तो काफ़ी लोगो को यह फ़ैसला पसंद नही आया. मीनू का भाई अंकित तो नाराज़गी जाहिर करते हुए कोर्ट रूम से उठकर चला गया… लेकिन राज के चेहरे पर कोई भाव नही उभरे थे. ना खुशी के ना गम के… लेकिन फ़ैसला सुन ने के बाद राज काफ़ी दिनो से सता रहे सवाल का जवाब मिल गया था.

सुधीर को मौत की सज़ा सुनाई गयी थी… वो डेट भी अब नज़दीक आ गयी थी…

अब थोड़ी ही देर मे सुधीर को मौत की सज़ा दी जानी थी. इंस्पेक्टर राज , सज़ा देनेवाला अधिकारी, एक डॉक्टर और एक दो ऑफिसर्स फाँसी के रूम के सामने खड़े थे. इतने मे दो पोलीस अधिकारी हथकड़ियाँ पहने स्थिति मे सुधीर को वहाँ ले आए. मौत की सज़ा देने की जिस अधिकारी पर ज़िम्मेदारी थी, उसने अपने घड़ी की तरफ देखा और पोलीस अधिकारी को इशारा किया. पोलीस ऑफिसर्स सुधीर को फाँसी की तरफ ले गये…

फिर जल्लाद ने काले कपड़े से उसका चेहरा ढँका और फाँसी को उसके गले मे अटका कर पॅनल खींचने के लिए तैय्यार रहा … मुख्या अधिकारी ने जल्लाद की तरफ देखा और जल्लाद एकदम तैय्यार खड़ा था… फिर से वह अधिकारी अपनी घड़ी की तरफ देखने लगा… शायद उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी…. अचानक उस अधिकारी ने जल्लाद को इशारा किया… जल्लाद ने पल भर की भी देरी ना करते हुए पॅनल खींच दिया… थोड़ी देर मे सुधीर की बॉडी उस फाँसी की रस्सी मे लटकी हुई थी..


raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:35

“डॉक्टर…” उस अधिकारी ने डॉक्टर को पुकारा…

डॉक्टर झट से बॉडी की तरफ गया… और बोला “सर ही ईज़ डेड…”.

वह अधिकारी एक दम से मूड गया और वह जगह छोड़कर वहाँ से चला गया… वह जल्लाद वही बगल मे एक कमरे मे चला गया… वहाँ बाजू मे ही खड़ा एक स्टाफ मेंबर उस चेंबर मे, शायद चेंबर सॉफ करने के लिए घुस गया…. सबकुछ कैसे किसी मशीन की तरह चल रहा था… उन सब का भले ही वह हमेशा का काम हो फिर भी राज के लिए वह हमेशा होनेवाली बाते नही थी.. वह अब भी खड़ा एक एक चीज़ और एक एक हो रही बातें ध्यान से निहार रहा था.

अब डॉक्टर भी वहाँ से चला गया.

वहाँ सिर्फ़ राज अकेला ही बचा… वह अब भी वहाँ चुपचाप खड़ा था, उसके दिमाग़ मे शायद कुछ अलग ही चल रहा हो…

अचानक कोई जल्दी जल्दी उसके पीछे से वहाँ आगया.

“अच्छा… हो गया राज…” पीछे से आवाज़ आई.

राज ने मुड़कर पीछे देखा और उसका मुँह आस्चर्य से खुला का खुला ही रह गया… उसके सामने जल्लाद खड़ा था…. ये तो अभी अभी बगल के कमरे मे गया था…

फिर अभी के अभी ये इधर किधर पीछे से आ गया….

“साहब मुझे चिंता थी कि मेरी अनुपस्थिति मे पॅनल कौन ऑपरेट करेगा…” वह जल्लाद बोला.

“बाइ दा वे किसने ऑपरेट किया पॅनल…?” उस जल्लाद ने राज से पूछा…

राज को एक के बाद एक आस्चर्य के धक्के लग रहे थे…

राज ने बगल के कमरे की तरफ देखा…

“किसने ऑपरेट किया मतलब...? तुमने ही तो ऑपरेट किया…” राज ने अविश्वास के साथ कहा.

“क्या बात करते हो साहब…? में तो अभी अभी यहाँ आ रहा हूँ… कुछ काम से फँस गया था…” उस जल्लाद ने कहा.

राज ने फिर से चौंक कर उसकी तरफ देखा और फिर उस बगल के कमरे की तरफ देखा जिसमे वह थोड़ी देर पहले गया था.

“आओ मेरे साथ… आओ…” राज उसे उस बगल के कमरे की तरफ ले गया.

राज ने उस कमरे का दरवाज़ा धकेला… दरवाज़ा अंदर से बंद था… उसने दरवाज़े पर नॉक किया… अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी… राज अब वह दरवाज़ा ज़ोर ज़ोर से ठोकने लगा… फिर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी… राज अपनी पूरी ताक़त के साथ उस दरवाज़े को धकेलने लगा.. वह भ्रम मे पड़ा जल्लाद भी अब उसे धकेलने मे मदद करने लगा.

ज़ोर ज़ोर से धकेल कर और धक्के देकर आख़िर राज ने और उस जल्लाद ने वह दरवाज़ा तोड़ा…

दरवाज़ा टूट ते ही राज और वह जल्लाद जल्दी जल्दी कमरे मे घुस गये… उन्होने कमरे मे चारो तरफ अपनी नज़रे दौड़ाई… कमरे मे कोई नही था… उन्होने एक दूसरे की तरफ देखा… उस जल्लाद के चेहरे पर असमंजस के भाव थे तो राज के चेहरे पर अगम्य ऐसे डर के भाव दिख रहे थे.

अचानक उपर से कुछ नीचे गिर गया… दोनो ने चौंक कर देखा… वह एक काली बिल्ली थी, जिसने उपर से छलाँग लगाई थी… वह बिल्ली अब राज के एक दम सामने खड़ी होगयि और एकटक राज की तरफ देखने लगी… वे आस्चर्य से मुँह खोलकर उस बिल्ली की तरफ देखने लगे धीरे धीरे उस काली बिल्ली का रूपांतर मीनू की सड़ी हुई मृत देह मे होने लगा… उस जल्लाद के तो हाथ पैर कापने लगे थे.. राज भी बर्फ जम जाय ऐसा एकदम स्थिर और स्तब्ध होकर उसके सामने जो घट रहा था वह देख रहा था धीरे धीरे उस सड़ी हुई मर्त्देह का रूपांतर एक सुंदर, जवान तरुणी मे हो गया.. हाँ, वह मीनू ही थी… अब उसके चेहरे पर एक सुकून झलक रहा था… देखते देखते उसकी आखों से दो बड़े बड़े आँसू निकल कर गालों पर बहने लगे और धीरे धीरे वह वहाँ से अद्रिश्य होकर गायब हो गयी… दोस्तो ये कहानी यही ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त

दा एंड


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