Thriller -इंतकाम की आग compleet

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raj..
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Thriller -इंतकाम की आग compleet

Unread post by raj.. » 11 Oct 2014 09:09

इंतकाम की आग --1

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ . अब ये तो आप ही बताएँगे कि कहानी कैसी लगी . चलिए अब देर ना करते हुए कहानी पर चलते हैं .

घना अंधेरा और उपर से उसमे जौरो से बरसाती बारिश. सारा आसमान झींगुरों की ‘कीरर्र’ आवाज़ से गूँज रहा था. एक बंगले के बगल मे खड़े एक विशालकाय पेड़ पर एक बारिश से भीगा हुआ उल्लू बैठा हुआ था. उसकी इधर उधर दौड़ती नज़र आख़िर सामने बंगले की एक खिड़की पर जाकर रुकी. वह बंगले की एकलौती ऐसी खिड़की थी कि जिस से अंदर से बाहर रोशनी आ रही थी.

घर मे उस खिड़की से दिख रही वह जलती हुई लाइट छोड़ कर सारे लाइट्स बंद थे. अचानक वहाँ उस खिड़की के पास आसरे के लिए बैठा कबूतरों का एक झुंड वहाँ से फड़फड़ाता हुआ उड़ गया. शायद वहाँ उन कबूतरों को कोई अद्रिश्य शक्ति का अस्तित्व महसूस हुआ होगा, खिड़की के काँच सफेद रंग की होने से बाहर से अंदर का कुछ नही दिख रहा था. सचमुच वहाँ कोई अद्रिश्य शक्ति पहुच गयी थी?... और अगर पहुचि थी तो क्या उसे अंदर जाना था….? लेकिन खिड़की तो अंदर से बंद थी.

बेडरूम मे बेड पर कोई सोया हुआ था. उस बेड पर सोए साए ने अपनी करवट बदली और उसका चेहरा उस तरफ हो गया. इसलिए वह कौन था यह पहचान ना मुश्किल था. बेड के बगल मे एक चश्मा रखा हुया था. शायद जो भी कोई सोया हुआ था उसने सोने से पहले अपना चश्मा निकाल कर बगल मे रख दिया था. बेडरूम मे सब तरफ दारू की बॉटल, दारू के ग्लास, न्यूज़ पेपर्स, मॅगज़ीन्स एट्सेटरा समान इधर उधर फैला हुआ था.

बेडरूम का दरवाजा अंदर से बंद था और उसे अंदर से कुण्डी लगाई हुई थी. बेडरूम मे सिर्फ़ एक ही खिड़की थी और वह भी अंदर से बंद थी – क्यों कि वह एक एसी रूम था. जो साया बेड पर सोया था उसने फिरसे एकबार अपनी करवट बदली और अब उस सोए हुए साए का चेहरा दिखने लगा.

चंदन, उम्र लगभग 25-26, पतला शरीर, चेहरे पर कहीं कहीं छोटे छोटे दाढ़ी के बाल उगे हुए, आँखों के आस पास चश्मे की वजह से बने काले गोल गोल धब्बे बने हुए थे.

चंदन एक सपना देख रहा था और सपने मे वो अपने प्यार को मतलब शालिनी को देख रहा था…. शालिनी उसकी कॉलेज की फ्रेंड थी... वो तो कब का उसके प्यार मे पड़ गया था... वो दोनो उसके बेडरूम मे बैठे थे…. और शालिनी उसको बार बार बात बात पर किस कर रही थी… चंदन तो जैसे इसी मौके के इंतज़ार मैं था. उसने शालिनी को जैसे लपक लिया. नीचे बेड पर गिरा लिया और उसे कपड़ों के उपर से ही चूमने लगा. शालिनी बदहवास हो चुकी थी. उसने चंदन का चेहरा अपने हाथों में लिया और उसके होंठो को अपने होठों में दबा लिया. चंदन के हाथ उसकी चूंचियों पर कहर ढा रहे थे. एक एक करके वह दोनो चूंचियों को बुरी तरह मसल रहे थे. शालिनी अब उसकी छाती सहलाते हुए बड़बड़ाने लगी थी..ओह फक मी प्लीज़ फक मी... आइ कॅंट वेट. आइ कॅंट लिव विदाउट यू जान.

एक एक करके जब चंदन ने शालिनी का हर कपड़ा उसके शरीर से अलग कर दिया तो वो देखता ही रह गया. स्वर्ग से उतरी मेनका जैसा जिस्म... सुडौल चुचियाँ... एक दम तनी हुई. सुरहिदार चिकना पेट और मांसल जांघें... चूत पर एक भी बाल नही था. उसकी चूत एक छोटी सी मछली जैसी सुंदर लग रही थी. उसने दोनों चूंचियों को दोनों हाथों से पकड़ कर उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. शालिनी कराही… और साँसे इतनी तेज़ चल रही थी जैसे अभी उखड़ जाएँगी. पहले पहल तो उसे अजीब सा लगा अपनी चूत चत्वाते हुए पर बाद में वह खुद अपनी गांद उछाल उछाल कर उसकी जीभ को अपने योनि रस का स्वाद देने लगी.

चंदन ने अपनी पॅंट उतार फेंकी और अपना 8.5 इंचस लंबा और करीब 2 इंचस मोटा लंड उसके मुँह में देने लगा. पर शालिनी तो किसी जल्दबाज़ी में थी. बोली,"प्लीज़ घुसा दो ना मेरी चूत में प्लीज़. चंदन कहाँ मान ने वाला था उसको भी यही चाहिए था.और उसने शालिनी की टाँगों को अपने कंधे पर रखा और अपने लंड का सूपड़ा शालिनी की चूत पर रखकर दबाव डाला. पर वो तो बिल्कुल टाइट थी. चंदन ने उसकी योनि रस के साथ ही अपना थूक लगाया और दोबारा ट्राइ किया. शालिनी चिहुनक उठी. सूपड़ा योनि के अंदर था और शालिनी की हालत आ बैल मुझे मार वाली हो रही थी.

उसने अपने को पीछे हटाने की कोशिश की लेकिन उसका सिर बेड के उपरी सिरे से जा लगा था. शालिनी बोली,"प्लीज़ जान एक बार निकाल लो. फिर कभी करेंगे. पर चंदन ने अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में एक धक्का लगाया और आधा लंड उसकी चूत में घुस गया.

शालिनी की चीख को उसने अपने होटो से दबा दिया. कुच्छ देर इसी हालत में रहने के बाद जब शालिनी पर मस्ती सवार हुई तो पूच्छो मत. उसने बेहयाई की सारी हदें पार कर दी. वा सिसकारी लेते हुए बड़बड़ा रही थी. "हाई रे, मेरी चूत...मज़ा दे दिया... कब से तेरे लंड... की .. प .. प्यासी थी. चोद दे जान मुझे... आअह. आअह कभी मत निकालना इसको ... मेरी चू...त आह उधर चंदन का भी यही हाल था.

उसकी तो जैसे भगवान ने सुन ली. जन्नत सी मिल गयी थी उसको.. उच्छल उच्छल कर वो उसकी चूत में लंड पेले जा रहा था कि अचानक शालिनी ने ज़ोर से अपनी टांगे भींच ली. उसका सारा बदन अकड़ सा गया था. उसने उपर उठकर चंदन को ज़ोर से पकड़ लिया. उसकी चूत पानी छ्चोड़ती ही जा रही थी. उससे चंदन का काम आसान हो गया. अब वो और तेज़ी से धक्के लगा रहा था.

पर अब शालिनी गिडगिडाने लगी. प्लीज़ अब निकाल लो. सहन नही होता. थोड़ी देर के लिए चंदन रुक गया और शालिनी के होंठों और चूंचियों को चूसने लगा. वो एक बार फिर अपने चूतड़ उछाल्ने लगी. इस बार उसने शालिनी को उल्टा लिटा लिया. शालिनी की गांद बेड के किनारे थी और उसकी मनमोहक चूत बड़ी प्यारी लग रही थी.

शालिनी के घुटने ज़मीन पर थे और मुँह बेड की और. इस पोज़ में जब चंदन ने अपना लंड शालिनी की चूत में डाला तो एक अलग ही आनंद प्राप्त हुआ. अब शालिनी को हिलने का अवसर नही मिल रहा था. क्यूंकी चंदन ने उसको कस के पकड़ रखा था. पर मुँह से मादक सिसकारियाँ निकल रही थी. हर पल उसे जन्नत तक लेकर जा रहा था. इस बार करीब 20 मिनिट बाद वो दोनों एक साथ झाडे और चंदन उसके उपर ढेर हो गया…..

वह कुछ तो था जो धीरे धीरे चंदन के पास जाने लगा.

अचानक नींद मे भी चंदन को आहट हुई और वह हड़बड़ाकर जाग गया. उसके सामने जो भी था वह उसपर हमला करने के लिए तैय्यार होने से उसके चेहरे पर डर झलक रहा था, पूरा बदन पसीना पसीना हुआ था. वह अपना बचाव करने के लिए उठने लगा. लेकिन वह कुछ करे इसके पहले ही उसने उसपर, अपने शिकार पर हमला बोल दिया था.

पूरे आसमान मे चंदन की एक बड़ी, दर्दनाक, असहाय चीख गूँजी और फिर सब तरफ फिर से सन्नाटा छा गया… ठीक पहले जैसा….

सुबह सुबह रास्ते पर लोगों की अपने अपने काम पर जाने की जल्दी चल रही थी. इसलिए रास्ते पर काफ़ी चहल-पहल थी. ऐसे मे अचानक एक पोलीस की गाड़ी उस भीड़ से दौड़ने लगी. आस-पास का मौहाल पोलीस के गाड़ी के साइरन की वजह से गंभीर हो गया. रास्ते पर चल रहे लोग तुरंत उस गाड़ी को रास्ता दे रहे थे. जो पैदल चल रहे थे वे उत्सुकता से और अपने डरे हुए चेहरे से उस जाती हुई गाड़ी की तरफ मूड मूड कर देख रहे थे. वह गाड़ी निकल जाने के बाद थोड़ी देर मौहाल तंग रहा और फिर फिर से पहले जैसा नौरमल हो गया.

एक पोलीस की फ़ौरेंसिक टीम मेंबर बेडरूम के खुले दरवाजे के पास कुछ इन्वेस्टिगेशन कर रहा था. वह उसके पास जो बड़ा लेंस था. उसमे से ज़मीन पर कुछ मिलता है क्या यह ढूँढ रहा था. उतने मे एक अनुशाशन मे चल रहे जूतों का ‘टक टक’ ऐसा आवाज़ आ गया. वह इन्वेस्टिगेशन करने वाला पलट कर देखने के पहले ही उसे कड़े स्वर मे पूछा हुआ सवाल सुनाई दिया “बॉडी किधर है….?”

“सर इधर अंदर…” वह टीम मेंबर अदब के साथ खड़ा होता हुआ बोला.

इंस्पेक्टर राज शर्मा, उम्र साधारण 39 के आस पास, कड़ा अनुशाशण, लंबा कद, कसा हुआ शरीर, उस टीम मेंबर के दिखाए रास्ते से अंदर गया.

इंस्पेक्टर राज शर्मा जब बेडरूम मे घुस गया तब उसे चंदन का शव बेड पर पड़ा हुआ मिल गया. उसकी आँखें बाहर आई हुई और गर्दन एक तरफ ढूलक गयी हुई थी. बेड पर सब तरफ खून ही खून फैला हुआ था.

उसका गला कटा हुआ था. बेड की स्थिति से ऐसा लग रहा था कि मरने के पहले चंदन काफ़ी तडपा होगा. इंस्पेक्टर राज शर्मा ने बेडरूम मे चारो तरफ अपनी नज़र दौड़ाई.

फ़ौरेंसिक टीम बेडरूम मे भी तफ़तीश कर रही थी. उनमे से एक कोने मे ब्रश से कुछ सॉफ कर ने जैसा कुछ कर रहा था तो दूसरा कमरे मे अपने कॅमरा से तस्वीरे लेने मे व्यस्त था.

एक फ़ौरेंसिक टीम मेंबर ने इंस्पेक्टर राज शर्मा को जानकारी दी –

“सर मरनेवाले का नाम चंदन है”

“फिंगर प्रिंट्स वाईगेरह कुछ मिला क्या…?”

“नही कम से कम अब तक तो कुछ नही मिला…”

इंस्पेक्टर राज शर्मा ने फोटोग्राफर की तरफ देखते हुए कहा, “कुछ छूटना नही चाहिए इसका ख़याल रखो…”

“यस सर…” फोटोग्राफेर अदब के साथ बोला.

अचानक राज शर्मा का ध्यान एक अजीब अप्रत्याशित बात की तरफ आकर्षित हुआ.

वह बेडरूम के दरवाजे के पास गया. दरवाजे का लॅच और आस-पास की जगह टूटी हुई थी.

“इसका मतलब खूनी शायद यह दरवाजा तोड़ कर अंदर आया है..” राज शर्मा ने कहा.

उसका एक टीम मेंबर आगे आया, “नही सर, असल मे यह दरवाज़ा मैने तोड़ा… क्यों कि हम जब यहाँ पहुचे तब दरवाज़ा अंदर से बंद था….” पवन, लगभग 28 के आस पास, छोटा कद, मोटा शरीर.

“तुमने तोड़ा….?” राज शर्मा ने आस्चर्य से कहा.

“यस सर….” पवन ने कहा.

“क्या फिर से अपने पहले के धन्दे शुरू तो नही किए ….?” राज शर्मा ने मज़ाक मे लेकिन चेहरे पर वैसा कुछ ना दिखाते हुए कहा. (क्योंकि पवन तो अपना दया (सीआइडी वाला) जैसा ही था जो दरवाज़ा ना खुले उसे वो तोड़ कर ही अंदर दाखिल हो जाता था) .

“हाँ सर… मतलब नही सर….” पवन हड़बड़ाते हुए बोला.

राज शर्मा ने पलट कर एकबार फिर से कमरे मे अपनी पैनी नज़र दौड़ाई, खास कर खिड़कियों की तरफ देखा. बेडरूम मे एक ही खिड़की थी और वह भी अंदर से बंद थी. वह बंद रहना लाजमी था क्यों कि रूम एसी था.

“अगर दरवाज़ा अंदर से बंद था…. और खिड़की भी अंदर से बंद थी….तो फिर क़ातिल कमरे मे कैसे आया….”

सब लोग आस्चर्य से एक दूसरे की तरफ देखने लगे.

“और सब से महत्वपूर्ण बात कि वह अंदर आने के बाद बाहर कैसे गया….?” पवन ने कहा.

इंस्पेक्टर राज शर्मा ने उसकी तरफ सिर्फ़ घूर कर देखा.

अचानक सब का ख़याल एक इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर ने अपनी तरफ खींचा. उसको बेड के आस पास कुछ बालों के टुकड़े मिले थे.

“बाल…? उनको ठीक से सील कर आगे के इन्वेस्टिगेशन के लिए लॅब मे भेजो…” राज शर्मा ने आदेश दिया.

सुबह 10 बजे इंस्पेक्टर राज शर्मा अपने ऑफीस मे बैठा था. उतने मे एक ऑफीसर वहाँ आ गया. उसने पोस्टमोर्टिम के काग़ज़ात राज शर्मा के हाथ मे थमा दिए. जब राज शर्मा वह काग़ज़ात उलट पुलट कर देख रहा था वह ऑफीसर उसके बगल मे बैठकर राज शर्मा को इन्वेस्टिगेशन के बारे मे और पोस्टमोर्टिम के बारे मे जानकारी देने लगा.

क्रमशः…………………..

raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 11 Oct 2014 09:12

इंतकाम की आग--2

गतान्क से आगे………………………

“मौत गला काट ने से हुई है.. और गला जब काटा गया तब चंदन शायद नींद मे होगा ऐसा इसमे लिखा है लेकिन क़ातिल ने कौन सा हथियार इस्तेमाल किया गया होगा इसका कोई पता नही चल रहा है…” वह ऑफीसर जानकारी देने लगा.

“अमेज़िंग…?” इंस्पेक्टर राज शर्मा मानो खुद से ही बोला.

“और वहाँ मिले बालो का क्या….?”

“सर हमने उसकी झांच की… लेकिन वे बाल आदमी के नही है…”

“क्या आदमी के नही….?”

“फिर शायद किसी भूत के होंगे…” वहाँ आकर उनके बात चीत मे घुसते हुए एक ऑफीसर ने मज़ाक मे कहा.

भले ही उसने वह बात मज़ाक मे कही हो लेकिन वे एक दूसरे के मुँह को ताकते हुए दो तीन पल कुछ भी नही बोले. कमरे मे एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था.

“मतलब वह क़ातिल के कोट के या जर्किन के हो सकते है….” राज शर्मा के बगल मे बैठा ऑफीसर बात को संभालते हुए बोला.

“और उसके मोटिव के बारे मे कुछ जानकारी…?”

“घर की सारी चीज़े तो अपनी जगह पर थी… कुछ भी कीमती सामान चोरी नही गया है… और घर मे कही भी चंदन के हाथ के और उंगलियों के निशान के अलावा और किसी के भी हाथ के और उंगलियों के निशान नही मिले….” ऑफीसर ने जानकारी दी.

“अगर क़ातिल भूत हो तो उसे किसी मोटिव की क्या ज़रूरत….?” फिर से वहाँ खड़े ऑफीसर ने मज़ाक मे कहा.

फिर दो तीन पल सन्नाटे मे गये.

“देखो ऑफीसर…. यहाँ सीरीयस मॅटर चल रहा है… आप कृपा करके ऐसी फालतू बाते मत करो…” राज शर्मा ने उस ऑफीसर को ताक़ीद दी.

“मैने चंदन की फाइल देखी है… उसका पहले का रकौर्ड़ कुछ उतना अच्छा नही… उसके खिलाफ पहले से ही बहुत सारे गुनाहों के लिए मुक़दमे दर्ज है… कुछ गुनाह साबित भी हुए है और कुछ पर अब भी केसस जारी है.. इससे ऐसा लगता है कि हम जो केस हॅंडल कर रहे है वह कोई आपसी दुश्मनी या रंजिश हो सकती है…” राज शर्मा फिर से असली बात पर आकर बोला.

“क़ातिल ने अगर किसी गुनहगार को ही मारा हो तो….” बगल मे खड़े उस ऑफीसर ने फिर से मज़ाक करने के लिए अपना मुँह खोला तो राज शर्मा ने उसके तरफ एक गुस्से से भरा कटाक्ष डाला.

“नही मतलब अगर वैसा है तो….अच्छा ही है ना… एक तरह से वह अपना ही काम कर रहा है… शायद जो काम हम भी नही कर पाते वह काम वह कर रहा है…” वह मज़ाक करनेवाला ऑफीसर अपने शब्द तोल्मोल कर बोला.

“देखो ऑफीसर…. हमारा काम लोगों की सेवा करना और उनकी हिफ़ाज़त करना है…”

“गुनहगारों की भी….?” उस ऑफीसर ने व्यंगात्मक ढंग से कड़वे शब्दो मे पूछा.

इस पर राज शर्मा कुछ नही बोला. या फिर उसपर बोलने के लिए उसके पास कुछ लब्ज नही थे. लेकिन राज शर्मा ने मन ही मन मे कहा "जहाँ चाह वहाँ रह" ज़रूर मिलेगी.

सुबह 10 बज रहे थे, वहाँ राज शर्मा अपनी मीटिंग मे बिज़ी था और यहाँ सुनील, सांवला रंग, उम्र 25 के आस पास, लंबाई 5 ½ फुट, घुँगराले बाल, अपने बेडरूम मे सोया था. उसकी बेडरूम मतलब एक कबाड़ खाना था जिस मे इधर उधर फैला हुआ सामान, न्यूज़ पेपर्स, मॅगज़ीन्स, व्हिस्की की खाली बॉटल वह भी इधर उधर फैली हुई. मॅगज़ीन के कवर पर ज़्यादा तर लड़कियों की नग्न तस्वीरे दिख रही थी और बेडरूम की सारी दीवारें उसके फॅवुरेट हेरोयिन्स की नग्न, अर्ध नगञा तस्वीरों से भरी हुई थी. चंदन के और सुनील के बेडरूम मे काफ़ी समानता थी.

फ़र्क सिर्फ़ इतना ही था कि सुनील के बेडरूम को दो खिड़कियाँ थी और वह भी अंदर से बंद और बंद रूम एसी थी इसलिए नही तो शायद सावधानी के तौर पे बंद थी. वो नींद से जागा और उसने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डाइयल किया.. फोन एक लड़की ने उठाया…वो उसको बोला में अभी 10-15 मिनिट मे तुम्हारे घर आ रहा हूँ…

raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 11 Oct 2014 09:13

सुनील जब उसके घर के पास पहुचा और उसने दरवाजा खटखटाया.... ललिता ने दरवाजा खोलने में एक सेकेंड की भी देर ना लगाई. बिना कुच्छ सोचे समझे, बिना किसी हिचक और बिना दरवाज़ा बंद किया वो उसकी छाती से लिपट गयी.

" अरे, रूको तो सही, सुनील ने उसके गालों को चूम कर उसको अपने से अलग किया और दरवाजा बंद करते हुए बोला, मैने पहले नही बोला था"

ललिता जल बिन मछली की तरह तड़प रही तही. वो फिर सुनील की बाहों में आने के लिए बढ़ी तो सुनील ने उसको अपनी बाहों में उठा लिया. और प्यार से बोला, मेडम जी, खुद तो तैयार होके बैठी हो, ज़रा मैं भी तो फ्रेश हो लूँ".

ललिता ने प्यार से उसकी छाती पर घूँसा जमाया और उसके गालों पर किस किया. सुनील ने उसको बेड पर लिटाया और अपने बॅग से टवल निकाल कर बाथरूम में चला आया.

नाहकार जब वा बाहर आया तो उसने कमर पर टवल के अलावा कुच्छ नही पहन रखा था. पानी उसके शानदार शरीर और बालो से चू रहा था.

ललिता उसके मर्दाने शरीर को देखती ही रह गयी और बोली," तुम्हारी बॉडी तो एक दम मस्त है"... तो सुनील बोला “ह्म्‍म्म ये सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही तो है.."

“अच्छा तो चलो प्यार करते है ना…” ललिता इतना बोली ही थी कि तब सुनील का फोन बज उठा… तो ललिता ने गुस्से से उसके हाथ से फोन उठाया और बंद कर दिया और बहुत प्यार से बोली " प्लीज़ अब प्यार कर लो जल्दी"

"अरे कर तो रहा हूँ प्यार" सुनील ने उसके होंठो को चूमते हुए कहा.

" कहाँ कर रहे हो. इसमें घुसाओ ना जल्दी…" ललिता बहुत मादक आवाज़ मे बोली.

सुनील हँसने लगा" अरे क्या इसमें घुसाने को ही प्यार बोलते हैं"

"तो" ललिता ने उल्टा स्वाल किया!

देखती जाओ मैं दिखाता हूँ प्यार क्या होता है. कहते हुए सुनील ने ललिता को अपनी गोद में बैठा लिया. सुनील ने उसके होंठो को चूमना शुरू कर दिया और बड़ी शिद्दत से चूमते हुए उसे उसके बेड पर लिटा दिया. उसका नाइट सूट नीचे से हटाया और एक एक करके उसके बटन खोलने लगा.

अब ललिता के बदन पर एक पैंटी के अलावा कुच्छ नही था. सुनील ने अपना टवल उतार दिया और झुक कर उसकी नाभि को चूमने लगा. ललिता के बदन में चीटियाँ सी दौड़ रही थी. उसका मंन हो रहा था कि बिना देर किए सुनील उसकी चूत का मुँह अपने लंड से भरकर बंद कर दे. वो तड़पति रही पर कुच्छ ना बोली; उसको प्यार सीखना जो था.

धीरे धीरे सुनील अपने हाथो को उसकी चूचियों पर लाया और अंगुलियों से उसके निप्पल्स को छेड़ने लगा. सुनील का लंड उसकी चूत पर पैंटी के उपर से दस्तक दे रहा था. ललिता को लग रहा था जैसे उसकी चूत को किसी ने जलते तेल के कढाहे में डाल दिया हो. वो फूल कर पकौड़े की तरह होती जा रही थी.

अचानक सुनील पीछे लेट गया और ललिता को बिठा लिया. और अपने लंड की और इशारा करते हुए बोला," इसे मुँह में लो." ललिता तन्नाई हुई थी,बोली," ज़रूरी है क्या.... पर ये मेरे मुँह में आएगा कैसे?

सुनील: बचपन में कुलफी खाई है ना, बस ऐसे ही ललिता ने सुनील के लंड के सुपादे पर जीभ लगाई तो उसको करेंट सा लगा. धीरे धीरे उसने सूपदे को मुँह में भर लिया और चूसने सी लगी.

उसको बहुत मज़ा आ रहा था. सुनील ज़्यादा के लिए कहना चाहता था पर उसको पता था ले नही पाएगी. " मज़ा आ रहा है ना!"

"ह्म्‍म्म्म" ललिता ने सूपड़ा मुँह से निकालते हुए कहा"पर इसमें खुजली हो रही है" अपनी चूत को मसल्ते हुए उसने कहा." कुच्छ करो ना....

ये सुनकर सुनील ने उसको अपनी पीठ पर टाँगों की तरफ मुँह करके बैठने को कहा. उसने ऐसा ही किया. सुनील ने उसको आगे अपने लंड की ओर झुका दिया जिससे ललिता की चूत और गांद सुनील के मुँह के पास आ गयी.

एकदम तननाया हुआ सुनील का लंड ललिता की आँखों के सामने सलामी दे रहा था. सुनील ने जब अपने होंठ ललिता की चूत की फांको पर टिकाए तो वह सीत्कार कर उठी. इतना अधिक आनंद उससे सहन नही हो रहा था.

उसने अपने होंठ लंड के सूपदे पर जमा दिए. सुनील उसकी चूत को नीचे से उपर तक चाट रहा था. उसकी एक उंगली ललिता की गांद के छेद को हल्के से कुरेद रही तही. इससे ललिता का मज़ा दोगुना हो रहा था.

अब वह ज़ोर ज़ोर से लंड पर अपने होंठों और जीभ का जादू दिखाने लगी. लेकिन ज़्यादा देर तक वह इतना आनंद सहन ना कर पाई और उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया जो सुनील की मांसल छाती पर टपकने लगा. ललिता ने सुनील की टाँगो को जाकड़ लिया और हाँफने लगी.

सुनील का शेर हमले को तैयार था. उसने ज़्यादा देर ना करते हुए कंबल की सीट बना कर बेड पर रखा और ललिता को उस पर उल्टा लिटा दिया. ललिता की गांद अब उपर की और उठी हुई थी. और चुचियाँ बेड से टकरा रही थी.

सुनील ने अपना लंड उसकी चूत के द्वार पर रखा और पेल दिया. चूत रस की वजह से चूत गीली होने से 8.5 इंची लंड 'प्यूच' की आवाज़ के साथ पूरा उसमें उतर गया. ललिता की तो जान ही निकल गयी. इतना मीठा दर्द! उसको लगा लंड उसकी आंतडियों से जा टकराया है.

सुनील ने ललिता की गंद को एक हाथ से पकड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिए. एक एक धक्के के साथ जैसे ललिता जन्नत तक जाकर आ रही थी. जब उसको बहुत मज़े आने लगे तो उसने अपनी गांद को थोड़ा और चौड़ा करके पीछे की ओर कर लिया.

सुनील के टेस्टेस उसकी चूत के पास जैसे थप्पड़ से मार रहे थे. सुनील की नज़र ललिता की गंद के छेद पर पड़ी. कितना सुंदर छेद था. उसने उस छेद पर थूक गिराया और उंगली से उसको कुरेदने लगा. ललिता आनंद से करती जा रही थी.

सुनील धीरे धीरे अपनी उंगली को ललिता की गांद में घुसाने लगा."उहह, सीसी...क्या....क्कार... रहे हो.. ज..ज्ज़ान!" ललिता कसमसा उठी. देखती रहो! और सुनील ने पूरी उंगली धक्के लगाते लगाते उसकी गंद में उतार दी. ललिता पागल सी हो गयी थी. वह नीचे की ओर मुँह करके अपनी चूत में जाते लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. पर कंबल की वजह से ऐसा नही हो पाया.

क्रमशः…………………..

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