Thriller -इंतकाम की आग compleet

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raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:26

इंतकाम की आग--16

गतान्क से आगे………………………

वे दोनो जब सिकेन्दर के बेडरूम मे पहुँच गये. उन्होने देखा कि विस्फोट की वजह से बेडरूम बेडरूम नही रहा था. वहाँ सिर्फ़ इंट.. पत्थर, सेमेंट का ढेर बना हुआ था और टूटा हुआ समान इधर उधर फैला हुआ था. उस ढेर मे उन्हे सिकेण्दर के शरीर का कुछ हिस्सा दिखाई दिया. दोनो कॉन्स्टेबल तुरंत वहाँ पहुच गये. उन्होने सिकेण्दर की बॉडी से समान हटाकर उसे ढेर से बाहर निकाला. एक ने उसकी नब्ज़ टटोली. लेकिन नब्ज़ बंद थी. उसकी जान शायद जब विस्फोट हुआ तब ही गयी होगी.

अब वो दोनो बेडरूम के घर के बाकी हिस्सों की तरफ रवाना हो गये. जहाँ जहाँ उनके साथी तैनात थे, उनको वे ढूँढ ने लगे. कुछ लोग जख्म से कराह रहे थे, वहाँ वे उनके मदद के लिए दौड़ पड़े.

इतनी गड़बड़ मे एक ने अपने जेब से मोबाइल निकाला और एक नंबर डाइयल किया.

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इंस्पेक्टर राज और उसकी टीम की गाड़ियाँ तेज़ी से रास्ते पर दौड़ रही थी… क़ातिल का ठिकाना तो उन्हे पता चल चुका था लेकिन अब जल्द से जल्द वहाँ जाकर वह रफ्फु चक्कर होने से पहले उसे पकड़ना ज़रूरी था. गाड़ियों की गति के साथ राज का दिमाग़ भी दौड़ रहा था. वह मन ही मन सारी संभावनाए टटोलकर देख रहा था और हर स्थिति मे अपनी क्या स्ट्रॅटजी रहेगी यह तय कर रहा था. उतने मे उसके मोबाइल की बेल बजी. उसके विचारों की शृंखला टूट गयी.

उसने मोबाइल के डिसप्ले की तरफ देखा और झट से फोन अटेंड किया, “हाँ बोलो…”

“सर यहाँ एक सीरीयस प्राब्लम हो गया है…” उधर से उस कॉन्स्टेबल की आवाज़ आई.

‘सीरीयस प्राब्लम हो गया’ यह सुना और राज निराश होने लगा… उसके दिमाग़ मे तरह तरह के विचार आने लगे.

“क्या..?... क्या हुआ…?” राज ने उत्तेजित होकर पूछा.

वह अपनी निराशा को अपने उपर हावी होने देना नही चाहता था.

“सर उस बिल्ली का यहाँ किसी बॉम्ब की तरह विस्फोट हुआ है…” कॉन्स्टेबल ने जानकारी दी…

“क्या…? विस्फोट हुआ…?” राज के मुँह से आस्चर्य से निकला..

उसपर एक एक आघात हो रहे थे.

“लेकिन कैसे…?” राज ने आगे पूछा.

“सर उस बिल्ली के गले मे पहने पट्टे मे प्लास्टिक एक्सप्लोसिव लगाया होगा… मुझे लगता है कि सिग्नल ब्लॉक होते ही उसका विस्फोट हो जाय इस तरह उसे प्रोग्राम किया होगा, ताकि क़ातिल का शिकार किसी भी हाल मे उसके शिकंजे से ना छूटे…” कॉन्स्टेबल ने अपनी राय बयान की…

“शिकेन्दर कैसा है…? उसे कुछ हुआ तो नही…?” आख़िर इतना करने के बाद भी हम उसे बचा सके या नही यह जान ने की जल्दी राज को हुई थी.

“नही सर वह उस विस्फोट मे ही मर गया…” उधर से कॉन्स्टेबल ने कहा.

“शिट…?” राज के मुँह से गुस्से से निकल गया, “और अपने लोग…? वे कैसे है..?” राज ने आगे पूछा…

“दो लोग ज़ख्मी हो गये है.,. हम लोग उन्हे हॉस्पिटल मे ले जा रहे है…” कॉन्स्टेबल ने जानकारी दी.

“कोई सीरीयस तौर पर ज़ख्मी तो नही …” राज फिर से तसल्ली करने के लिए पूछा.

“नही सर… जख्म वैसे मामूली ही है…” उधर से आवाज़ आई.

“सुनो, उधर की पूरी ज़िम्मेदारी में तुम्हारे उपर सौंपता हूँ… हम लोग इधर जहाँ से सिग्नल आ रहे थे उसके आस पास ही है.. थोड़ी ही देर मे हम वहाँ पहुँच जाएँगे… उधर का तुम दोनो मिलकर अच्छी तरह से संभाल लो…”

“यस सर…”

“अपने लोगो का ख़याल रखना…” राज ने कहा और उसने फोन काट दिया…

“चलो जल्दी… हमे जल्दी करनी चाहिए… उधर सिकेन्दर को तो हम बचा नही पाए… कम से कम इधर इस क़ातिल को पकड़ने मे कामयाब होना चाहिए…” राज ने ड्राइवर को तेज़ी से चलने का इशारा करते हुए कहा.

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raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:27

जहाँ से सिग्नल आ रहे थे उस जगह के आस पास राज और उसकी टीम आकर पहुँच गयी. वह एक वेरहाउस था और वेरहाउस के सामने और आस पास काफ़ी खुला मैदान था.

“कंप्यूटर पर तो यही जगह दिखाई दे रही थी… मतलब यही वेरहाउस मे ही क़ातिल छुपा हुआ होना चाहिए…” राज अपने पास के नक्शे पर और वेर हाउस के आस पास का इलाक़ा देख कर बोला.

ड्राइवर ने राज की तरफ उसके अगले आदेश के इंतेज़ार मे देखा.

“गाड़ी वेर हाउस के कॉंपाउंड मे लो…” राज ने ड्राइवर को आदेश दिया.

“यस सर…” ड्राइवर ने कहा और उसने गाड़ी वेर हाउस के खाली मैदान मे घुसा..

उनके पीछे आनेवाली गाड़ियाँ भी उनके पीछे पीछे उस खाली मैदान मे घुस गयी.

राज की गाड़ी के पीछे सब गाड़ियाँ वेरहाउस के सामने रुक गयी. गाड़ी रोकने के बाद राज ने अपने वाइयरलेस पर कब्जा किया.

“ग्रूप 2, ग्रूप 3 तुरंत वेरहाउस को चारो तरफ से घेर लो…” गाड़ी से उतर ते वक्त राज वाइयरलेस पर आदेश देने लगा.

उसके साथी भी जल्दी जल्दी गाड़ी से उतरने लगे.

“ग्रूप 2 वेरहाउस के दाई तरफ और ग्रूप 3 बाई तरफ से वेरहाउस को घेर लो…” उनकी गड़बड़ी ना हो इसलिए राज ने अपने आदेश का खुलासा किया.

गाड़ी से उतर ने के बाद ग्रूप 2 ने वेरहाउस के दाई तरफ से तो ग्रूप 3 ने बाई तरफ से वेरहाउस को पूरी तरह घेर लिया…. क़ातिल अगर वेरहाउस मे छुपा होगा और उसे भाग कर जाना हो तो उसे इनकी बनाई यह दीवार भेदकर जाना पड़ेगा.. और वह लगभग नामुमकिन था.

अपने दोनो ग्रूप के अच्छी और पूरी तरह से वेरहाउस को घेरने की तसल्ली होने के बाद राज अपने साथ वाले ग्रूप के साथ, वेरहाउस के दरवाज़े के पास लगभग दौड़ते हुए ही गया.

“ग्रूप 1 अब वेरहाउस मे घुसनेवाला है… सबलॉग तैय्यार रहो… अंदर कितने लोग होंगे इसका अभी तक कोई अनुमान नही लगाया जा सकता है…” राज ने फिर से एकबार सब को सतर्क रहने की ताक़ीद दी.

वेरहाउस मे एक जगह कंप्यूटर का मॉनिटर चमक रहा था वह जगह छोड़कर बाकी सब तरफ अंधेरा था. उस कंप्यूटर के सामने एक उधर मुँह किए एक साया खड़ा था और उसकी अपना सामान बॅग मे भरने की गड़बड़ चल रही थी…. सब कत्ल तो हो चुके थे. अब उसकी भाग जाने की तैय्यारि दिख रही थी. अचानक सामान भरते हुए वह रुक गया. उसे वेरहाउस के बाहर या अंदर कोई हरकत महसूस हुई होगी. वह वैसे ही उधर मुँह कर खड़ा होकर गौर से सुनने की कोशिश करने लगा.

सब काम तो अब ठीक ढंग से हो चुके है… और अब मुझे क्यों अलग अलग भ्रम हो रहे है…

अब तक कोई मुझे पकड़ नही पाया जो अब पकड़ पाएगा…

वैसे मेरी प्लॅनिंग कोई कम फुल प्रूफ नही थी…

उसने अपने दिमाग़ मे चल रहे विचारों की कशमकश झटक कर दूर की और फिर से अपने काम मे व्यस्त हो गया.


raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:28

अचानक उसे पीछे से आवाज़ आई, “हॅंड्ज़ अप.. यू आर अंडर अरेस्ट..”

उसने चतुरता से अपने बॅग से कुछ, शायद कोई हथियार निकाल ने की कोशिश की.

लेकिन उससे ज़्यादा चतुराई से और तेज़ी से इंस्पेक्टर राज ने उसके आस पास बंदूक की गोलियों की बरसात कर मानो एक लक्ष्मण रेखा बनाई.

“ज़्यादा होशियारी करने का प्रयास मत करो…” राज ने उसे ताक़ीद दी.

उसके हाथ से वह जो भर रह था वह बॅग नीचे गिर गया और उसने अपने दोनो हाथ उपर किए. धीरे धीरे वह राज की तरफ मुड़ने लगा.

वह जैसे ही मुड़ने लगा. राज मन ही मन अनुमान लगाने लगा.

वह कौन होगा…?

और यह सारे कत्ल उसने क्यों किए होंगे…?

जैसे ही वह पूरी तरह राज की तरफ मुड़ा, वहाँ मॉनिटर की रोशनी मे उसका चेहरा दिखने लगा.

उसे देख कर इंस्पेक्टर राज के चेहरे पर आस्चर्य के भाव दिखने लगे.

वह दूसरा तीसरा कोई ना होकर सुधीर था, शरद और मीनू का दोस्त, क्लासमेट…!

राज को याद आया कि उसने मीनू और शरद के क्लास के ग्रूप फोटो मे इसे देखा था..

इंस्पेक्टर राज को एक सवाल का जवाब मिल गया था, लेकिन उसका दूसरा सवाल ‘यह सारे खून उसने क्यों किए होंगे…?’ का जवाब अब भी बाकी था.

इंस्पेक्टर राज और उसके साथी धीरे धीरे आगे खिसकने लगे. राज ने वाइयरलेस पर क़ातिल को पकड़ने की खबर सारे टीम को दी.. उन्होने सुधीर को चारो तरफ से घेर लिया.

राज और पवन अब भी सुधीर को घेर कर खड़े थे. सुधीर का प्रतिरोध अब पूरी तरह ख़त्म हो चुका था. राज के दो साथियो ने उसे हथकड़ियाँ लगाकर अपने कब्ज़े मे लिया था. राज उसे वहाँ सवाल पर सवाल पूछे जा रहा था… आख़िर एक सवाल अब तक सब को परेशान कर रहा था. राज को भी लग रहा था कि बाद की तहक़ीक़त जब होगी तब होगी. कम से कम सब को परेशान कर रहे सवाल का जवाब यहीं मिलना चाहिए… कि क्यों…? क्यों सुधीर ने उन चार लोगो का कत्ल किया..?

सुधीर के भी अब पूरी तरह ख़याल मे आया था कि उस के पास अब सब कुछ बताने के आलवा कुछ चारा नही था. वह सबकुछ किसी तोते की तरह बताने लगा….

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… में मीनू से प्यार करने लगा था… क्लास मे प्रोफ़ेसर पढ़ा रहे थे और विधयर्थीयों मे शरद, मीनू और सुधीर क्लास मे अलग अलग जगह पर बैठे हुए थे. सुधीर ने सामने देखते हुए, प्रोफ़ेसर का ख़याल अपनी तरफ नही है इसकी तसल्ली कर चुप के से एक कटाक्ष मीनू की तरफ डाला. लेकिन यह क्या…? वह उसकी तरफ ना देखते हुए छुपकर शरद की तरफ देख रही थी. वह आग बाबूला होने लगा था.

में इस क्लास का एक होनहार विध्यार्थि…

एक से एक लड़कियाँ मुझपर मरने के लिए तैयार…

लेकिन जिसपर अपना दिल आया वह मेरी तरफ देखने के लिए भी तैयार नही है…?

उसके अहम को ठेस पहुच रही थी..

नही यह होना मुमकिन नही …

शायद उस का अपना दिल उसपर आया है यह पता नही होगा…

उसे यह जताना और बताना ज़रूरी है…

क्रमशः……………


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