Thriller -इंतकाम की आग compleet

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raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:28

इंतकाम की आग--17

गतान्क से आगे………………………

एकदिन दोपहर के वक्त मैने कॉलेज छूटने पर मीनू को अपने प्यार के बारे मे बताया और उससे शादी करने की इच्छा जताई…

लेकिन मीनू ने उसका प्रपोज़ल ठुकरा दिया… मुझे इसकी उम्मीद नही थी… इतनी सहजतासे वह मुझे कैसे ठुकरा सकती है…? उसके अहंकार ठेस पहुच रही थी…

लेकिन क्यों वो मेरे से शादी नही कर सकती मैने उसको पूछा भी तो उसने बताया कि मैं किसी और से प्यार करती हूँ…

फिर बाद मे मैने यह दूसरा लड़का कौन है जिसके लिए मेरा प्यार ठुकरा दिया इसकी खोज मे जुट गया था लेकिन ये पता करने के लिए मुझे ज़्यादा टाइम भी नही लगा… एक पार्क मे शरद और मीनू बैठ कर प्यार भरी बातें कर रहे थे… और में उसी पेड के पीछे छुप कर उनकी बातें सुन रहा और मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था.

“मैने उसपर बहुत… मतलब अपनी जान से ज़्यादा प्रेम किया…” सुधीर ने आह भरते हुए कहा.

“लेकिन मुझे जब पता चला कि वह मुझे नही बल्कि शरद को चाहती है… तब में बहुत निराश, हताश हुआ, मुझे उसका गुस्सा भी आया… लेकिन धीरे धीरे मैने अपने आपको समझाया कि में उसे चाहता हूँ इसका मतलब यह ज़रूरी नही कि वह भी मुझे चाहे.. वह किसी को भी चाहने के लिए आज़ाद होनी चाहिए…” सुधीर ने कहा.

“लेकिन तुमने उन चार लोगो को क्यों मारा…?” राज ने असली बात पर आते हुए पूछा.

“क्योंकि दूसरा कोई भी नही कर सकता इतना प्यार मैने जितना किया था…” सुधीर ने अभिमान के साथ कहा.

“शरद ने भी उससे प्यार किया था…” राज ने उसे और छेड़ने की कोशिश करते हुए कहा.

“वह कायर था… मीनू उससे प्यार करे ऐसी उसकी हैसियत नही थी…” सुधीर ने नफ़रत के साथ कहा, “तुम्हे पता है…? जब उसका बलात्कार होकर क़त्ल हुआ था तब शरद ने मुझे एक खत लिखा था…” सुधीर ने आगे कहा…

“क्या लिखा था उसने…?” राज ने पूछा.

… “लिखा था कि उसे मीनू के बलात्कार और क़त्ल का बदला लेना है… और उसने उन चार गुनहगारों को ढूँढा है… लेकिन उसकी बदला लेने की हिम्मत नही बन पा रही है.. वाईगेरह… वाईगेरह… ऐसा उनसे काफ़ी कुछ लिखा था… मैं एक दोस्त के तौर पर उसे अच्छी तरह जानता था.. लेकिन वह इतना डरपोक होगा ऐसा मैने कभी नही सोचा था… फिर ऐसी स्थिति मे आप ही बताइए मैं क्या करता… अगर वह बदला नही ले सकता तो उन चार हैवानो से बदला लेने की ज़िम्मेदारी मेरी बनती थी… क्योंकि भले ही वह मुझे नही चाहती थी लेकिन मेरा तो उसपर सच्चा प्रेम था…” इतना कह कर उसे अपने हाथ पैर कमजोर हुए ऐसा महसूस होने लगा. वह एकदम से नीचे बैठ गया. उसने अपना चेहरा अपने घुटनो मे छुपा लिया और फुट फुट कर रोने लगा. इतनी देर से रोकने का प्रयास करने के बावजूद वह अपने आपको रोक नही पाया था.

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raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:29

हथकड़ियाँ पहना हुआ और पोलीस से घेरा हुआ सुधीर वेर हाउस से बाहर निकला. उसके साथ सब हथियार से लेस पोलीस थी क्योंकि वह कोई सीधा सादा क़ातिल ना होकर चार चार क़त्ल किया हुआ सीरियल किल्लर था. पोलीस ने सुधीर को उनके एक गाड़ी मे बिठाया. इंस्पेक्टर राज वेरहाउस के दरवाजे के पास पीछे ही रुक गया. राज ने अब तक ना जाने कितने क़त्ल के केसिज हॅंडल किए थी लेकिन इस केस से वह विचलित हुआ दिख रहा था.

कातिल को पकड़ने का सबसे महत्वपूर्ण काम तो अब पूरा हो चुका था. इसलिए अब उनके साथ गाड़ी मे बैठकर जाना उसे उतना ज़रूरी नही लगा. वह कुछ वक्त अकेले मे गुज़ारना चाहता था और उसे पीछे रुक कर एकबार इस वेरहाउस की पूरी छानबीन करनी थी. उसने अपने असिस्टेंट पवन को इशारा किया,

“तुम लोग इसे लेकर आगे निकल जाओ… में थोड़ी देर मे थोड़ी ही देर मे वहाँ पहुँचता हूँ…” राज ने कहा.

जिस गाड़ी मे सुधीर को बिठाया था वह गाड़ी शुरू हो गयी. उसके पीछे पोलीस की बाकी गाडिया भी शुरू हो गयी और सुधीर जिस गाड़ी मे बैठा था उसके पीछे तेज़ी से दौड़ने लगी. वे गाडिया निकल गयी… राज गंभीर मुद्रा मे उस धूल के बादल को धीरे धीरे नीचे बैठ ता हुआ देख रहा था.

जैसे ही सब गाड़ियाँ वहाँ से निकल गयी और औरा आस पास का वातावरण शांत हुआ राज ने वेर हाउस के एक चक्कर लगाया. चलते चलते उसने उपर आसमान की तरफ देखा. आसमान मे लाली फैल गयी थी और अब थोड़ी ही देर मे सूरज उगने वाला था. वह एक चक्कर लगा कर दरवाजे के पास आ गया और भारी चाल से वेरहाउस के अंदर चला गया.

अंदर वेरहाउस मे अब भी अंधेरा था. उसने कंप्यूटर के चमक रहे मॉनीटौर की रोशनी मे वेरहाउस के अंदर एक चक्कर लगाया और फिर उस कंप्यूटर के पास जाकर खड़ा हो गया. राज ने देखा कि कंप्यूटर पर एक सॉफ्टवेर अब भी ओपन किया हुआ था. उसने सॉफ्टवेर की लाग अलग ऑप्षन्स पर माउस क्लिक करके देखा. एक बटन पर क्लिक करते ही कंप्यूटर के बगल मे रखे एक उपकरण का लाइट ब्लिंक होने लगा. उसने वह उपकरण हाथ मे लेकर उसे गौर से देखा. वह एक सिग्नल रिसीवर था, जिसपर एक डिसप्ले था. उस डिसप्ले पर एक मेसेज चमक ने लगा. लिखा था ‘ इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्षन = लेफ्ट’. उसने वह उपकरण वापस अपनी जगह रख दिया. उसने और एक सॉफ्टवेर का बटन दबाया, जिसपर ‘राइट’ ऐसा लिखा हुआ था.

फिर से सिग्नल रिसीवर ब्लिंक हुआ और उसपर मेसेज आया ‘इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्षन = राइट’. आगे उसने ‘अटॅच’ बटन दया. फिर से सिग्नल रिसीवर ब्लिंक हो गया और उसपर मेसेज आया था. ‘इन सिग्नल रेंज / इन्स्ट्रक्षन = अटॅक’. राज ने वह उपकरण फिर से हाथ मे लिया और अब वह उसे गौर से देखने लगा. इतने मे उसे वेरहाउस के बाहर किसी चीज़ की आवाज़ आई. वह उपकरण वैसा ही हाथ मे लेकर वह बाहर चला गया.

वेर हाउस के बाहर आकर उसने आजूबाजू देखा.

यहाँ तो कोई नही…

फिर किस चीज़ का आवाज़ है…

होगा कुछ… जाने दो…

जब वह फिर से वेर हाउस मे वापस आने के लिए मुड़ा तब उसका ध्यान अनायास ही उसके हाथ मे पकड़े ब्लिंक हो रहे उपकरण की तरफ गया. अचानक उसके चेहरे पर आस्चर्य के भाव दिखने लगे. उस सिग्नल रिसीवर पर ‘आउट ऑफ रेंज / इन्स्ट्रक्षन = निल्ल’ ऐसा मेसेज आया था. वह आश्चर्य से उस उपकरण की तरफ देखने लगा. उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया. उसके दिमाग़ मे अलग अलग सवालोने भीड़ की थी.

अचानक आस पास किसी की उपस्थिति से वह लगभग चौंक गया. देखता है तो वह एक काली बिल्ली थी और वह उसके सामने से दौड़ते हुए वेर हाउस मे घुस गयी थी. एक बार उसने अपने हाथ मे पकड़े उपकरण की तरफ देखा और फिर उस वेर हाउस के खुले दरवाजे की तरफ देखा, जिससे अभी अभी एक काली बिल्ली अंदर गयी थी.

धीरे धीरे सावधानी से उस बिल्ली का पीछा करते हुए वह अब अंदर वेर हाउस मे जाने लगा.

raj..
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Re: Thriller -इंतकाम की आग

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 06:30

जाते जाते उसके दिमाग़ मे एक विचार लगातार घूमने लगा कि अगर वेरहाउस के बाहर तक भी सिग्नल जा नही सकता है तो फिर जो चार लोगो के क़त्ल हुए उनके घर तक सिग्नल कैसे पहुचा…?

दुविधा की स्थिति मे राज ने धीरे धीरे वेर हाउस मे प्रवेश किया. अंदर जाने के बाद वह इधर उधर देखते हुए उस बिल्ली को ढूँढ ने लगा. पहले ही अंधेरा और उपर से वह बिल्ली काले रंग की… ढूँढना मुश्किल था… उसने वेरहाउस मे सब तरफ अपनी ढूँढती हुई नज़र दौड़ाई… अब सुबह होने को आई थी. इसलिए वेरहाउस मे थोड़ा थोड़ा उजाला हो गया था. एक जगह उसे धूल से सनी हुई एक फाइल्स की गठरी दिखाई दी. वह उस फाइल्स की गठरी के पास गया… वह गठरी थोड़ी उँचान पर रखी हुई थी. राज की उत्सुकता बढ़ गयी थी.

क्या होगा उस फाइल्स मे…

ज़रूर केस के बारे मे और कुछ महत्वपूर्ण मुझे उस फाइल्स मे मिल सकता है…

वह अपने पैर के पंजे उँचे कर उस फाइल्स के गठरी तक पहुचने का प्रयास करने लगा. फिर भी वह वहाँ तक पहुँच नही पा रहा था. इसलिए वह उछल कर उस गठरी तक पहुँचने का प्रयास करने लगा. उस गठरी तक पहुचने के प्रयास मे उसका धक्का लग कर उपर से कुछ तो नीच गिर गया. काँच फूटने जैसे आवाज़ हुई. उसने नीच झुक कर देखा तो काँच के टुकड़े सब तरफ फैले हुए थे और नीचे एक फोटो की फ्रेम उल्टी पड़ी हुई थी. उसने वह उठाई और सीधी करके देखी.. वह एक ग्रूप फोटो था लेकिन वहाँ रोशनी काफ़ी नही होने से ठीक से दिखाई नही दे रहा था. वह फोटो लेकर वह कंप्यूटर के पास गया. कंप्यूटर का मॉनिटर अब भी शुरू था और चमक रहा था. इसलिए उस रोशनी मे वह फोटो ठीक से देखना मुमकिन था. मॉनिटर की रोशनी मे उसने वह ग्रूप फोटो देखा और वह आस्चर्य से हक्का बक्का सा रह गया. वह खुले मुँह से आस्चर्य से उस फोटो की तरफ देख रहा था.

वह उस हादसे से संभला भी नही कि उसके सामने कंप्यूटर का मॉनिटर बंद शुरू होने लगा.

कुछ एलेक्ट्रिक प्राब्लम होगा…

इसलिए वह कंप्यूटर का पावर स्विच और प्लग चेक करने लगा.

उसने पवर प्लग की तरफ देखा और चौंकते हुए डर के मारे वह पीछे हट गया. उसे आस्चर्य का दूसरा धक्का लगा था.

कंप्यूटर का पावर केबल पवर बोर्ड मे लगा नही था और वही बगल मे निकाल कर रखा हुआ था.

फिर भी कंप्यूटर शुरू कैसे…?

या यह पवर केबल दूसरी किसी चीज़ का होगा…

उसने वह पवर केबल उठाकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक टटोलकर देखा, वह कंप्यूटर का ही पवर केबल था.

अब उसके हाथ पैर काँपने लगे…

वह जो देख रहा था वैसा उसने उसकी पूरी जिंदगी मे कभी नही देखा था.

अचानक कंप्यूटर का मॉनिटर बंद होना शुरू होना रुक गया. उसने मॉनिटर की तरफ देखा. उसके चेहरे पर अब भी डर और आस्चर्य झलक रहा था.

अचानक एक बड़ा भयानक हवा का झोंका वेरहाउस मे बहने लगा. इतना बड़ा झोंका बह रहा था और इधर राज पसीने से लथपथ हो गया था… बहुत जोरो से हवा चल रही थी..

और अब अचानक मॉनिटर पर तरह तरह के विचित्र और भयानक साए दिखने लगे.

क्रमशः……………


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