“वह होता है ना कि कभी कभी सूप शुरू शुरू मे अच्छा लगता है लेकिन आख़िर मे तले मे बैठे नमकीन की वजह से उसका मज़ा किर किरा हो जाता है…” अशोक शिकेन्दर का वाक्य पूरा होने के पहले ही बोला.
“तुम लोग क्या बोल रहे हो यह मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है…” सुधीर उसके चेहरे की तरफ कुछ ना समझने के भाव मे देखते हुए बोला.
चंदन ने शिकेन्दर की तरफ देखते हुए पूछा, “क्या इसको बोला जाय…?”
“अरे क्यो नही… उसे मालूम कर लेने का हक़ है… आख़िर उस कार्य मे वह अपना बराबर का हिस्सेदार था….” सिकेन्दर ने कहा.
“कार्य…? कैसा कार्य…?” सुधीर ने बैचेन होकर पूछा.
“खून…?” अशोक ने ठंडे लहजे मे कहा.
“आए उसे खून मत बोल… वह एक आक्सिडेंट था…” सुनील ने बीच मे टोका.
सुधीर का चेहरा डर के मारे फीका पड़ चुका था.
“कही तुम लोगो ने उस लड़की का खून तो नही किया…?” सुधीर किसी तरह से हिम्मत जुटा कर बोला.
“तुम नही… हम… हम सब लोगो ने…” शिकेन्दर ने उसके वाक्य को सुधारा.
“एक मिनिट… एक मिनिट… तुम लोगो ने अगर उस लड़की को मारा होगा… तो यहाँ कहा मेरा संबंध आता है…” सुधीर ने अपना बचाव करते हुए कहा.
“देखो… अगर पोलीस ने हमे पकड़ लिया… तो वह हमे पूछेंगे… कि लड़की का अता पता तुम्हे किसने दिया…?” अशोक ने कहा (एक येई उनमे बहुत समझदार लड़का था….).
“तो हमने भले ही ना बताने का ठान लिया फिर भी हमे बताना ही पड़ेगा…” सुनील ने अधूरा वाक्य पूरा किया.
“… कि हमे हमारे जिगरी दोस्त सुधीर ने मदद की…” सुनील शराब के नशे मे बड़बड़ाया.
“देखो… तुम लोग बिना वजह मुझे इसमे लप्पेट रहे हो…” सुधीर अब अपना बचाव करने लगा था.
“लेकिन दोस्तो… एक बड़ी अजीब चीज़ होनेवाली है…”शिकेन्दर ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा.
“कौन सी…?” अशोक ने पूछा…
“कि पोलीस ने हमे पकड़ा और बाद मे हमे फाँसी होगयि…”शिकेन्दर ने बीच मे रुक कर अपने दोस्तो की तरफ देखा. वे एकदम सीरीयस हो गये थे.
“अबे… सालो… मेरा मतलब है अगर हमे फाँसी हो गयी…” शिकेन्दर ने चंदन की पीठ हल्के से थपथपाते हुए कहा.
सुनील शराब का ग्लास सरपार रख कर अजीब तरह से नाचते हुए बोला, “हा…हाहाहा… अगर हमे फाँसी हो गयी तो…”
सुधीर को छोड़कर सारे लोग उसके साथ हँसने लगे…
फिर से कमरे का वातावरण पहले जैसे होगया.
“हाँ तो अगर हमे फाँसी हो गयी… तो हमे उसके बारे मे कुछ बुरा नही लगेगा… क्योंकि आख़िर हमने मिठाई खाई है… लेकिन उस बेचारे सुधीर को मिठाई हल्की सी चखने को भी नही मिली… उसे मुफ़्त मे ही फाँसी पर लटकना होगा…” सिकेन्दर ने कहा.
कमरे मे सब लोग, सिर्फ़ एक सुधीर को छोड़, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे.
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
“सच कहूँ तो में तुम्हारे हर एक के पास से दो-दो हज़ार डॉलर्स लेने के लिए आया था…” सुधीर ने कहा.
“दो-दो हज़ार डॉलर्स…? मेरे दोस्त अब यह सब भूल जा…” अशोक ने कहा.
सुधीर उसकी तरफ गुस्से से देखने लगा.
“देख अगर सबकुछ ठीक हुआ होता तो हम तुम्हे कभी ना नही कहते… बल्कि हमारी खुशी से तुम्हे पैसे देते… लेकिन अब परिस्थिति बहुत अलग है… वह लड़की की मौत हो गयी…” अशोक उसे समझा बुझाने के स्वर मे बोला…
“…मतलब आक्सिडेंट्ली…” चंदन ने बीच मे ही जोड़ा..
“तो अब वह सब ठिकाने लगाने के लिए पैसा लगेगा…” अशोक ने कहा.
“सच कहूँ तो… हम ही तुम्हारे पास इस सब का निपटारा करने के लिए पैसे माँग ने वाले थे…” सुनील ने कहा.
फिर सब लोग, सुधीर को छोड़कर, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे… पहले ही उन्हे चढ़ गयी थी और अब वे उसकी मज़ाक उड़ा रहे थे…
सुधीर के जबड़े कस गये… गुस्से से वह उठ खड़ा हुआ और पैर पटकते हुए वहाँ से चलते बना…. दरवाज़े से बाहर निकलने के बाद उसने गुस्से से दरवाज़ा ज़ोर से पटक दिया….
फिर उसके बाद सुधीर ने उन चारो को मारने का प्लान बनाया (जैसे राज ने डिसकवर चॅनेल पर देखा था) वैसी ही योजना सुधीर ने तैय्यार की और सुधीर ये सब प्लान बना रहा था लेकिन उसका दिमाग़ कल घटी बातों मे व्यस्त था… सुधीर अपने दिमाग़ मे चल रहे सोच के चक्कर से बाहर आगया.
अब अगर यह केस ऐसी ही चलती रही तो कभी ना कभी शिकेन्दर, अशोक, सुनील और चंदन अपने को इसमे घसीट ने वाले है…
फिर हम भी इस केस मे फँस जाय…
नही ऐसा कतई नही होना चाहिए…
मुझे कुछ तो रास्ता निकालना ही पड़ेगा…
सोचते हुए सुधीर अपने इर्दगिर्द खेल रही उस बिल्ली की तरफ देख रहा था… अचानक एक विचार उसके दिमाग़ मे कौंध गया और उसके चेहरे पर एक ग़ूढ मुस्कुराहट दिखने लगी…
अगर मैने इन चारों को रास्ते से हटाया तो कैसा रहेगा…?
ना रहेगा बाँस ना बजेगी बाँसुरी…
सुधीर ने इस मसले को पूरी तरह आर या पार करने का मन ही मन ठान लिया था. आख़िर उसे अपनी जान बचाना ज़रूरी था. क्या करना है यह उसने मन ही मन तय किया था… लेकिन पहले एक बार मीनू के भाई को मिलना उसे ज़रूरी लग रहा था. इसलिए वह अंकित के घर के पास जाने लगा…
क्रमशः……………
“दो-दो हज़ार डॉलर्स…? मेरे दोस्त अब यह सब भूल जा…” अशोक ने कहा.
सुधीर उसकी तरफ गुस्से से देखने लगा.
“देख अगर सबकुछ ठीक हुआ होता तो हम तुम्हे कभी ना नही कहते… बल्कि हमारी खुशी से तुम्हे पैसे देते… लेकिन अब परिस्थिति बहुत अलग है… वह लड़की की मौत हो गयी…” अशोक उसे समझा बुझाने के स्वर मे बोला…
“…मतलब आक्सिडेंट्ली…” चंदन ने बीच मे ही जोड़ा..
“तो अब वह सब ठिकाने लगाने के लिए पैसा लगेगा…” अशोक ने कहा.
“सच कहूँ तो… हम ही तुम्हारे पास इस सब का निपटारा करने के लिए पैसे माँग ने वाले थे…” सुनील ने कहा.
फिर सब लोग, सुधीर को छोड़कर, ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे… पहले ही उन्हे चढ़ गयी थी और अब वे उसकी मज़ाक उड़ा रहे थे…
सुधीर के जबड़े कस गये… गुस्से से वह उठ खड़ा हुआ और पैर पटकते हुए वहाँ से चलते बना…. दरवाज़े से बाहर निकलने के बाद उसने गुस्से से दरवाज़ा ज़ोर से पटक दिया….
फिर उसके बाद सुधीर ने उन चारो को मारने का प्लान बनाया (जैसे राज ने डिसकवर चॅनेल पर देखा था) वैसी ही योजना सुधीर ने तैय्यार की और सुधीर ये सब प्लान बना रहा था लेकिन उसका दिमाग़ कल घटी बातों मे व्यस्त था… सुधीर अपने दिमाग़ मे चल रहे सोच के चक्कर से बाहर आगया.
अब अगर यह केस ऐसी ही चलती रही तो कभी ना कभी शिकेन्दर, अशोक, सुनील और चंदन अपने को इसमे घसीट ने वाले है…
फिर हम भी इस केस मे फँस जाय…
नही ऐसा कतई नही होना चाहिए…
मुझे कुछ तो रास्ता निकालना ही पड़ेगा…
सोचते हुए सुधीर अपने इर्दगिर्द खेल रही उस बिल्ली की तरफ देख रहा था… अचानक एक विचार उसके दिमाग़ मे कौंध गया और उसके चेहरे पर एक ग़ूढ मुस्कुराहट दिखने लगी…
अगर मैने इन चारों को रास्ते से हटाया तो कैसा रहेगा…?
ना रहेगा बाँस ना बजेगी बाँसुरी…
सुधीर ने इस मसले को पूरी तरह आर या पार करने का मन ही मन ठान लिया था. आख़िर उसे अपनी जान बचाना ज़रूरी था. क्या करना है यह उसने मन ही मन तय किया था… लेकिन पहले एक बार मीनू के भाई को मिलना उसे ज़रूरी लग रहा था. इसलिए वह अंकित के घर के पास जाने लगा…
क्रमशः……………
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--20end
गतान्क से आगे………………………
सुधीर अंकित के दरवाजे के सामने आकर खड़ा हो गया… वह अब बेल दबाने ही वाला था इतने मे बड़े ज़ोर से और बड़े अजीब ढंग से कोई चीखा… एक पल के लिए तो वह चौंक ही गया… कि क्या हुआ… उसका बेल दबानेवाला हाथ डर के मारे पीछे खिंच गया…
मामला कुछ सीरीयस लगता है…
इसलिए वह दरवाजे की बेल ना दबाते हुए अंकित के मकान के खिड़की के पास गया और उसने अंदर झाँक कर देखा….
… अंदर अंकित हाथ मे एक गुड्डा पकड़ा हुआ था… (इसके बाद आप सभी लोग तो जानते ही हो कि अंकित क्या क्या करता है… जिन्हे नही … पता तो एक बार फिर से स्टौरी पढ़ लेना… सब पता चल जाएगा…)
खिड़की से यह सब सुधीर काफ़ी देर से देख रहा था. वह देखते हुए अचानक उसके दिमाग़ मे एक योजना आ गयी…. उसके चेहरे पर अब एक वहशी मुस्कान दिखने लगी… वह खिड़की से हट गया और दरवाजे के पास गया… उसने कुछ सोचा और वह वैसा ही अंकित के दरवाज़े की बेल ना बजाते हुए ही वहाँ से वापस चला गया….
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गतान्क से आगे………………………
सुधीर अंकित के दरवाजे के सामने आकर खड़ा हो गया… वह अब बेल दबाने ही वाला था इतने मे बड़े ज़ोर से और बड़े अजीब ढंग से कोई चीखा… एक पल के लिए तो वह चौंक ही गया… कि क्या हुआ… उसका बेल दबानेवाला हाथ डर के मारे पीछे खिंच गया…
मामला कुछ सीरीयस लगता है…
इसलिए वह दरवाजे की बेल ना दबाते हुए अंकित के मकान के खिड़की के पास गया और उसने अंदर झाँक कर देखा….
… अंदर अंकित हाथ मे एक गुड्डा पकड़ा हुआ था… (इसके बाद आप सभी लोग तो जानते ही हो कि अंकित क्या क्या करता है… जिन्हे नही … पता तो एक बार फिर से स्टौरी पढ़ लेना… सब पता चल जाएगा…)
खिड़की से यह सब सुधीर काफ़ी देर से देख रहा था. वह देखते हुए अचानक उसके दिमाग़ मे एक योजना आ गयी…. उसके चेहरे पर अब एक वहशी मुस्कान दिखने लगी… वह खिड़की से हट गया और दरवाजे के पास गया… उसने कुछ सोचा और वह वैसा ही अंकित के दरवाज़े की बेल ना बजाते हुए ही वहाँ से वापस चला गया….
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