लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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The Romantic
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:25

जब वी मेट-2

वो मुझे गोद में उठाये ही कमरे में आ गया।

अन्दर जीरो वाट का बल्ब जल रहा था। उसने मुझे बेड पर लेटा दिया पर मैंने अपने पैरों की जकड़न ढीली नहीं होने दी तो वो मेरे ऊपर ही गिर पड़ा। इस समय उसका भार तो मुझे फूलों की तरह लग रहा था। मेरे दोनों उरोज उसकी चौड़ी छाती के नीचे पिस रहे थे। उसने मेरे अधरों को चूसना चालू रखा। रोमांच के कारण मेरी आँखें बंद हो गई थी और मैं मीठी सीत्कारें भरने लगी थी। पता नहीं कितनी देर हम ऐसे ही आपस में गुंथे पड़े रहे।

थोड़ी देर बाद निखिल बोला,”नीरू तुमने तो मेरे राजा को देख लिया ! अब मुझे भी तो अपनी रानी के दर्शन करवाओ ना ?”

“मैंने तो खुद देखा था, तुमने थोड़े ही दिखाया था ?”

“क्या मतलब ?”

“ओह… तुम भी लोल (मिटटी के माधो) ही हो ? तुम भी अपने आप देख लो ना ?” मैंने तुनकते हुए कहा।

पहले तो उसे कुछ समझ ही नहीं आया। वो तो सोच रहा था मैं मना कर दूँगी। फिर वो झटके के साथ खड़ा हुआ और उसने मेरा कुर्ता उतार दिया। मेरी गदराये हुए अमृत कलश तो जैसे उस कुरते में घुटन ही महसूस कर रहे थे। अब तो वो किसी आजाद परिंदों की तरह फड़फड़ाने लगे थे। उनके चूचक तो नुकीले होकर सीधे तन गए थे।

फिर उसने मेरी सलवार का नाड़ा भी खींच दिया। मैंने अन्दर पेंटी तो पहनी ही नहीं थी। मैं बिस्तर पर चित्त लेट गई थी। हलकी रोशनी में भी मेरा दमकता और गदराया हुस्न देख कर वो तो भौंचका ही रह गया। मेरे गोल गोल उरोज, पतली कमर और छोटे छोटे रेशमी और घुंघराले बालों से ढकी छमक छल्लो के बीच कि गुलाबी और रस भरी गुफा को देख कर वो तो ठगा सा ही रह गया था। उसके मुँह से कोई बोल ही नहीं निकल पा रहा था।

कुछ देर बाद उसके मुँह से तो बस इतना ही निकला,”वाह कितनी प्यारी चूत है तुम्हारी … लाजवाब …..”

मैंने झट से अपना एक हाथ अपनी छमक छल्लो पर रख लिया। और फिर उसने भी अपना कुर्ता और पाजामा निकाल फेंका और मेरी जाँघों के बीच बैठ गया। उसने अपने हाथ मेरी जाँघों पर फिराने शुरू कर दिए। उसने होले से मेरे हाथ रानी के ऊपर से हटा दिया और अपना हाथ फिराने लगा। उसकी अँगुलियों का स्पर्श पाते ही मुझे अन्दर तक गुदगुदी और आनंद का अहसास होने लगा। जैसे ही उसने अपनी अंगुली मेरे चीरे पर फिराई मेरी मदनमणि तो मछली की तरह तड़फ उठी। उसने अपना मुँह नीचे करके मेरी छमक छल्लो के होंठों को चूम लिया। उसकी गर्म साँसें जैसे ही मुझे अपनी छमक छल्लो पर महसूस हुई उसने एक बार फिर से काम-रज छोड़ दिया।

फिर वो मेरी बगल में आकर लेट गया। और मैं भी अब करवट के बल उससे चिपक गई। उसका मोटा लण्ड मेरी जांघों से टकरा रहा था। उसने अपना एक हाथ मेरे सिर के नीचे लगा कर मुझे जोर से अपनी और भींच लिया। अब उसका दूसरा हाथ मेरे नितम्बों की गहरी खाई में फिरना चालू हो गया। मैंने अपना एक पैर उठा कर उसकी कमर पर रख दिया तो नितम्बों की खाई और भी चौड़ी हो गई। अब आसानी से उसकी अंगुलियाँ मेरी छमक छल्लो और फूल कुमारी का मुआयना करने लगी। अँगुलियों के स्पर्श मात्र से ही मुझे चूत के अन्दर तक गुदगुदी और आनद का अहसास होने लगा। मैं बहदवास सी होती जा रही थी। जैसे ही उसने छमक छल्लो की कलिकाओं को मसलना चालू किया, मेरा अब तक रुका हुआ झरना फूट पड़ा। उसका पानी निकाल कर मेरी फूल कुमारी (गांड) को भिगोने लगा।

जैसे ही उसकी अंगुलियाँ मेरी फूल कुमारी के छेद से टकराती तो उसके स्पर्श मात्र से ही मेरे सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती। मेरी लिसलिसी चिकनी चूत की फांकों के बीच थिरकती हुई उसकी अंगुली जैसे ही मेरे दाने को छूती मेरा बदन झनझना उठता। जैसे ही उसकी अंगुली मेरी गुलाबी चीरे पर घुमती तो मैं बस यही सोचती कि अब इस कुंवारे छेद का कल्याण होने ही वाला है।

फिर उसने अपनी अँगुलियों से मेरी छमक छल्लो की फांकें खोलने की कोशिश की तो मैंने उसे ढीला छोड़ दिया। जैसे ही उसकी अंगुली मेरे दाने (भगान्कुर) से टकराई मेरी कामुक सीत्कार निकल गई। उसने अपने अंगूठे और तर्जनी अंगुली से मेरे दाने को पकड़ कर दबाना चालू कर दिया। मेरा सारा शरीर अनोखे रोमांच से झनझना उठा। मैंने भी उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और जोर से दांतों से दबा दिया। जैसे ही उसका तन्नाया लंड मेरी चिकनी जाँघों से टकराया मेरा सारा शरीर कसमसा उठा। मैंने अपना पैर उसकी कमर से हटा कर अपना हाथ थोड़ा सा नीचे किया और उसके बेकाबू होते मस्त कलंदर को पकड़ लिया। उसकी साँसें तेज होने लगी थी और लंड झटके पर झटके खाने लगा था।

“नीरू यार अब नहीं रुका जा रहा है !”

“ओह … निखिल … अब बस कुछ मत पूछो ! जो करना है कर डालो … आह ….. जल्दी करो नहीं तो मैं मर जाउंगी … आह ……”

मेरी रस भरी मीठी हामी सुनते ही वो मेरे ऊपर आ गया और अपने लंड को मेरी छमक छल्लो की गुलाबी फांकों के बीच रख दिया। धीरे धीरे उसने अपना लंड मेरी फांकों की दरार में रगड़ना चालू कर दिया। मैंने दम साध रखा था। उसने मेरे दाने को भी अपने लंड से रगड़ा और वहीं जोर लगाने लगा। बुद्धू कहीं का !

उसे शायद छमिया का छेद मिल ही नहीं रहा था। मेरी छमिया तो वैसे भी बिल्कुल कुंवारी थी और छेद तो बहुत कसा हुआ और छोटा था इतना मोटा लंड उस छेद में बिना किसी सहारे के अन्दर जाता भी कैसे। उसने दो तीन धक्के ऐसे ही लगा दिए। लंड ऊपर नीचे फिसलता रहा जैसे कुछ खोज रहा हो। मुझे उसकी इस हालत पर हंसी भी आ रही थी और तरस भी आ रहा था। इसे पंजाबी में कहते हैं “अन्नी घुस्सी, डांग फेरना !” मुझे डर था कहीं वो कुछ किये बिना ही शहीद ना हो जाए। मैंने सुना था कि कई बार बहुत उत्तेजना और पहली बार अन्दर डालने के प्रयाश में ही आदमी का कबाड़ा हो जाता है। मैं कतई ऐसा नहीं चाहती थी।

(पंजाबी में ! अन्नी= अन्धी, घुस्सी=चूत, डांग=लाठी)

मैंने उसका लंड अपने हाथ में पकड़ा और थोड़ा नीचे करके ठीक गंतव्य (निशाने) पर लगाया। अब मैंने दूसरे हाथ से उसकी कमर को नीचे करने का इशारा किया। अब वो इतना फुद्दू (अनाड़ी) भी नहीं था कि मेरे इशारे को न समझता। मेरी गीली छमिया पर घिसने और प्री-कम के कारण उसका सुपारा भी गीला हो चुका था। उस अनाड़ी ने मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगा दिया। धक्का इतना जबरदस्त था कि उसका 7 इंच का लंड मेरी कौमार्य झिल्ली को फाड़ता हुआ अन्दर बच्चेदानी से जा लगा। मुझे लगा जैसे किसी नाग ने मुझे डंक मार दिया है। मैंने अपने आप को रोकने की बहुत कोशिश की पर मेरी घुटी घुटी सी चीख निकल गई। यह तो निखिल ने अन्दर आते समय दरवाजा बंद कर लिया था नहीं तो मामा मामी को जरुर सुनाई दे जाता।

मुझे लगा जैसे लोहे की कोई गर्म सलाख मेरी मुनिया में घुसा दी है। मैंने बहुत सी कहानियों और फिल्मों में कमसिन लड़कियों को बड़े मज़े से मोटे मोटे लंड अपनी चूत और गांड में लेते पढ़ा और देखा था पर मेरी हालत तो इस समय बहुत खराब थी। मेरी आँखों से आंसू निकालने लगे थे और मुझे लग जैसे मेरी प्यारी मुनिया को किसी ने चाकू से चीर दिया है। कुछ गर्म गर्म सा भी मुझे अन्दर महसूस हुआ यह तो जब मैंने सुबह चादर देखी तब पता चला कि मेरी कुंवारी छमक छल्लो की झिल्ली फटने से निकला खून था। अब वो कुंवारी नहीं रही सुहागन बन बैठी थी।

खैर जो होना था, हो चुका था। निखिल बिल्कुल चुपचाप अपना लंड अन्दर डाले मेरे ऊपर अपनी कोहनियों के बल लेटा था। उसे डर था कहीं मैं दर्द के मारे बेहोश ना हो जाऊं। मैं जानती थी कि यह दर्द तो बस थोड़ी ही देर का है, बाद में मुझे भी मज़े आने लगेंगे। निखिल ने मेरे आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया और मेरे गालों और होंठों को चूमने लग। उसका एक हाथ मेरे सर के नीचे था वो दूसरे हाथ से मेरा माथा और सर सहलाने लगा। उसका प्यार भरा स्पर्श मुझे अन्दर तक प्रेम में भिगो गया। उसकी आँखों में झलकते संतोष को देख कर मेरा दर्द जैसे हवा ही हो गया। वो बेचारा तो कुछ बोलने की स्थिति में ही नहीं था।

थोड़ी देर बाद मैं भी कुछ सामान्य हो चली थी। मेरा दर्द अब कम हो गया था और मेरे कानों में अब जैसे मीठी सीटियाँ बजने लगी थी। मैं सब कुछ भुला कर दूसरे लोक में ही पहुँच गई थी।

उसने डरते डरते पूछा,”नीरू ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा ?”

“अब जो होना था हो गया। तुम चिंता मत करो मैं सब सहन कर लूँगी !”

“ओह मेरी प्यारी नीरू ! मेरी मैना … तुम कितनी अच्छी हो ” और उसने मेरे होंठों को एक बार फिर से चूम लिया। मैं भला पीछे क्यों रहती, मैंने भी उसके होंठों को इतना जोर से काटा कि उसके होंठों से खून ही झलकने लगा। पर अब इस मीठे दर्द की उसे कहाँ परवाह थी। हाँ दोनों अपने प्रेम युद्ध में जुट गए। अब उसे भी जोश आ गया और वो उछल उछल कर धक्के लगाने लगा। वो कभी मेरे होंठों को चूमता, कभी मेरे उरोजों को चूसता। कभी उनकी छोटी छोटी घुंडियों को दांतों से दबा देता। मेरी छमिया अब रवां हो गई थी और लंड आराम से अन्दर बाहर होने लगा था। अब तो फिच्च फिच्च का मधुर संगीत बजने लगा था जिसकी धुन पर उसका मिट्ठू और मेरी मैना थिरक रहे थे। मैं तो अब सातवें आसमान पर ही थी।

सच कहूं तो इस चुदाई जैसी मधुर और आनंद दायक चीज दुनिया में दूसरी कोई हो ही नहीं सकती। इस नैसर्गिक सुख के तो सभी दीवाने हैं। और जो सुख और फल चोरी के होते हैं उनका मज़ा और स्वाद तो वैसे भी कई गुणा ज्यादा होता है। लोग झूठ कहते हैं कि मरने के बाद स्वर्ग मिलता है। अगर स्वर्ग जैसी कोई कल्पना या जगह है भी तो बस यही है…. यही है….

हमें कोई 10-12 मिनट तो हो ही गए थे। निखिल की साँसें अब तेज़ होने लगी थी। वो तो निरा अनाड़ी ही था बिना रुके धक्के लगाये जा रहा था। चलो धीरे धीरे उसे चुदाई के सही तरीके आ ही जायेंगे। मेरी छमिया ने तो इस दौरान दो बार पानी छोड़ दिया था। हम दोनों की कामुक और आनंदमयी सीत्कारें कमरे में गूँज रही थी। वो कभी मेरे उरोजों को चूसता कभी उनके चूचकों पर जीभ फिरता। कभी मेरे होंठों को कभी गालों को चूमता। एक हाथ से मेरे एक उरोज को कभी मसलता कभी होले से दबा देता। उसका दूसरा हाथ मेरे नितम्बों पर फिर रहा था। जाने अनजाने में जब भी उसकी अंगुली मेरी फूल कुमारी को छू जाती तो मेरी छमिया के साथ ही फूल कुमारी भी संकोचन करने लगती।

अब मुझे लगने लगा था कि निखिल ज्यादा देर अपने आप को नहीं रोक पायेगा। उसकी साँसें तेज होने लगी थी और उसके धक्कों की गति बढ़ गई थी। उसका चेहरा तमतमाने लगा था और उसके मुँह से गुर्रर्रर…. गुर्रर्रर… की आवाजें आने लगी थी। उसने मुझे इशारा किया कि वो झड़ने वाला है। मैंने उसे जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया।

मेरी स्वीकृति पाकर तो उसके चहरे की रंगत देखने लायक हो गई थी। जैसे किसी बच्चे को कोई मन पसंद खिलौना मिल जाए और उसे मर्ज़ी आये वैसे खेलने दिया जाए तो कहना ही क्या। मैंने कहीं पढ़ा था कि वीर्य को योनि में ही निकालने की चाह कुदरती होती है। इसका एक कारण है। नर हमेशा अपनी संतति को आगे बढ़ाने की चाहत रखता है इसलिए वो अपना वीर्य मादा की योनि में ही उंडेलना चाहता है। मेरी भी यही इच्छा थी कि निखिल अपना प्रथम वीर्यपात मेरी योनि में ही करे। मुझे पता था कि माहवारी ख़त्म होने के 5-7 दिन बाद तक गर्भ का कोई खतरा नहीं होता।

जोश जोश में उसने 4-5 धक्के और भी तेजी से लगा दिए। उसका घोड़ा तो जैसे बे-लगाम होकर दौड़ने लगा था। मेरे अन्दर तेज़ और मीठी आग भड़कने लगी थी और फिर अन्दर जैसे पानी की गर्म फुहार सी महसूस हुई और मेरा काम-रज छूट पड़ा। मेरी छमिया लहरा लहरा कर प्रेम रस बहाने लगी और उसका लंड उसे हलाल करता रहा।

फिर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और उसके साथ ही उसकी भी पिचकारी फूट गई। मेरी छमिया तो उसके अमृत को पाकर नाच ही उठी, उसका मिट्ठू तो धन्य होना ही था। उसने मेरे गालों, होंठों और मम्मों (उरोजों) पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। हम दोनों ही मोक्ष को प्राप्त हो गए जिसे प्रेमीजन ब्रह्मानन्द कहते हैं। कोई भी गुणी आदमी इसे चुदाई जैसे घटिया नाम से तो संबोधित कर ही नहीं सकता। हम दोनों ने एक साथ जो अपना कुंवारापन खोया था वो तो अब कभी लौट कर वापस नहीं आएगा पर उसके साथ ही हमने इस संसार का सबसे कीमती सुख भी तो पा लिया था।

कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है। फिर यह तो यह तो प्रेम की बाजी थी।

खुसरो बाजी प्रीत की खेलूं ’पी’ के संग,

जीतूं गर तो ’पी’ मिलें हारूँ ’पी’ के संग !

बस अब आगे और मैं क्या बताऊँ अब तुम इतने अनाड़ी तो नहीं हो की तुम्हें यह भी बताना पड़े की हमने बाथरूम में जाकर सफाई की और कपड़े पहन कर निखिल बाहर हाल में सोने चला गया और मैं दूसरे दिन की चुदाई (सॉरी प्रेम मिलन) के मीठे सपनों में खोई नींद के आगोश में चली गई।

“बस मेरे मिट्ठू मेरी पहली चुदाई की तो यही दास्ताँ है !”

“बहुत खूब … वाह मेरी रानी मैना तुमने तो जवानी में कदम रखते ही मज़े लूटने शुरू कर दिए थे।”

“धन्यवाद प्रेम ! मेरी इस पहली चुदाई के किस्से को कहानी का रूप देकर जल्दी प्रकाशित करवा देना भूलाना मत। तुम हर काम धीरे धीरे करते हो ?” कह कर वो खिलखिला कर हंस पड़ी।

“इस बार से मैं जल्दी जल्दी काम को निपटाया करूंगा ?”

“धत्त ! मैं उस काम की बात नहीं कर रही ? ओह.. मैं मतलब की बात हो भूल ही गई … हाँ … वो किसी चिकने लौंडे का फ़ोन नंबर और आई डी भी जरुर देना … अब मुझ से देरी सहन नहीं हो रही है। मुझे इन नौसिखिए और चिकने लौंडों का रस निचोड़ना बहुत अच्छा लगता है।”

“ठीक है मेरी मैना “

“बाय…. मेरे मिट्ठू ………”

दोस्तो ! तो यह थी नीरू बेन की पहली चुदाई। आपको कैसी लगी?

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:28

कम्मो बदनाम हुई

मेरा नाम कुसुम है पर प्यार से सभी मुझे कम्मो कहते हैं। मैं पूरी 18 की हो चुकी हूँ। मेरी चूत में खुजली तो बहुत पहले से ही शुरू हो गई थी पर अब बर्दाश्त से बाहर हो गया था। हर समय चूत में चींटियाँ से रेंगती रहती थी और लगता था अंदर कोई छोटी सी मछली फड़फड़ा रही है। चूत और जांघें सब टाईट हो जाती थी। जब भी किसी जवान लड़के या मर्द को देखती तो मेरी चूत अपने आप गीली होकर आँसू बहाने लगती और मैं सिवाय उसकी पिटाई करने के और कुछ न कर पाने को मजबूर थी। मेरी चूत एक अदद लंड के लिए तरस रही थी और मुन्नी की तरह मेरा मन भी किसी मोटे लंड के लिए बदनाम हो जाने को करने लगा था। सच कहूँ तो अब तक मैंने अपनी इस निगोड़ी चूत से बस मूतने का ही काम लिया था। प्रेम गुरु की प्रेम कथाएँ पढ़ पढ़ कर मेरा मन गाना गाने को करता :

“कम्मो बदनाम हुई लंड गुरु तेरे लिए”

घर में मर्द के नाम पर बस ताऊजी ही थे। पापा का बहुत पहले देहांत हो गया था। कोई भाई था नहीं। मैं तो दिन रात इसी जुगाड़ में रहती थी कि कब मौका हाथ आये और मैं अपनी फड़कती मचलती चूत की खुजली मिटाऊँ।

आज वो मौका मिल ही गया। ताईजी अपने मायके गई हुई थी और मम्मी अपने ऑफिस चली गई थी। (वो एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती हैं) मैं ताऊजी के कमरे की सफाई कर रही थी। घर में मेरे और ताऊजी के सिवा और कोई नहीं था। मैंने तय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए मैं आज चुदवा कर ही रहूंगी। सफाई के दौरान मुझे पलंग के नीचे पड़ा एक कंडोम मिला। मैं सब जानती तो थी पर ताऊजी से चुदाई की बात शुरू करने का यह अच्छा बहाना मुझे मेरी किस्मत ने दे दिया था।

मैंने उस कंडोम को मुट्ठी में दबा लिया और सब कुछ सोच लिया। मुझे थोड़ी शर्म भी आ रही थी और झिझक भी थी। मैंने बिना ब्रा के स्कर्ट और टॉप डाल लिया और नीचे छोटी सी कच्छी पहन ली। फिर मैं ताऊजी के पास बालकनी में जाकर खड़ी हो गई जहां वो कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। मैंने अपनी मुट्ठी ऐसे बंद कर रखी थी जैसे मेरी मुट्ठी में कोई कारूँ का खजाना हो।

“ओह, कम्मो बेटी” आओ… आओ… कैसे आना हुआ? कुछ परेशान सी लग रही हो? क्या बात है?” ताऊजी ने मेरी मखमली जांघें घूरते हुए कहा।

“बस यूँ ही चली आई अकेले में मन नहीं लग रहा था !” मैंने अपने हाथ की मुट्ठी जोर से कस ली कुछ ऐसा नाटक किया जैसे मैं कुछ छिपा रही हूँ।

“तुम कुछ उदास भी लग रही हो बताओ ना क्या बात है, कोई परेशानी हो तो मुझे बताओ?” ताऊजी अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए।

मैं चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था की बात कैसे शुरू की जाए। सोच कर तो बहुत कुछ आई थी पर अब मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी।

ताऊजी मेरे करीब आ गए और फिर उन्होंने मेरी ठुड्डी ऊपर उठाई और मेरे गालों को सहलाते हुए पूछा “क्या हुआ मेरी प्यारी बेटी को ? मेरी रानी क्यों उदास है ?”

मैंने थोड़ा सकपकाने का सटीक अभिनय करते हुए अपनी बंद मुट्ठी पीठ के पीछे कर ली और कहा,“नहीं क…… कुछ नहीं !”

उन्होंने मेरे नितंबों के पीछे लगा हाथ पकड़ लिया और मेरा हाथ आगे कर के मुट्ठी खोलते हए बोले “जरा देखें तो सही हमारी प्यारी बिटिया ने क्या छुपा रखा है ?”

जैसे ही मैंने मुट्ठी खोली कंडोम नीचे गिर गया। मैं अपनी मुंडी नीचे किये खड़ी रही। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। पता नहीं अब क्या होगा। क्या पता ताऊजी नाराज़ ही ना हो जाएँ।

“धत्त तेरे की…. बस इत्ती सी बात के लिए परेशान हो रही थी मेरी रानी बिटिया ?” उन्होंने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।

“ताऊजी ये आपके कमरे में मिला था यह क्या है ?”

“ओह ये…. वो…ये…?” ताऊजी थोड़ा झिझक से रहे थे।

“ओह ताऊजी बताइये ना?” क्या है यह गुब्बारा तो नहीं हो सकता ?” मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा।

मैंने महसूस किया कि उनकी साँसें तेज हो गई थी और पैंट का उभार भी साफ़ दिखाई देने लगा था। फिर वो हंसते हुए बोले “ओह…..अरे बेटी यह तो गर्भ निरोध है।”

“वो क्या होता है ?” मैं सब जानती तो थी पर मैंने अनजान बनते हुए पूछा।

“तुम्हें नहीं पता ? ओह… दरअसल इसे शारीरिक मिलन से पहले लिंग पर पहना जाता है।”

“क्यों?”

“ताकि लिंग से निकालने वाला रस योनि में ना जा पाए !”

“पर ऐसा क्यों ?” मैं अब पूरी बेशर्म बन गई थी।

“ऐसा करने से गर्भ नहीं ठहरता !” ताऊजी की हालत अब खराब होने लगी थी। उनकी पैंट में घमासान मचा था। मेरी चूत भी भी जोर जोर से फड़फड़ाने लगी थी।

“पर इसे लिंग पर कैसे पहनते हैं? मुझे भी दिखाइए ना पहनकर ?” मैंने ठुनकते हुए कहा।

“हाँ….हाँ मेरी प्यारी बेटी ! आओ मैं तुम्हें सब ठीक से समझाता हूँ !” कह कर उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर कर चूम लिया और फिर मुझे अपने से चिपकाये हुए अपने कमरे में ले आये।

“बेटी मैं तो कब से तुम्हें सारी बातें समझाना चाहता था। देखो ! सभी लड़कियों को शादी से पहले यह सब सीख लेना चाहिए। मैं तो कहता हूँ इसकी ट्रेनिंग भी कर लेनी चाहिए।”

“किसकी.. म….मेरा मेरा मतलब है कैसे ?”

“देखो बेटी ! एक ना एक दिन तो सभी लड़कियों को चुदना ही होता है। अगर शादी होने से पहले एक-दो बार चुद लिया जाए तो बहुत अच्छा रहता है। ऐसा करने से सुहागरात में किसी तरह की कोई समस्या नहीं आती। अगर तू पहले ही बता देती तो मैं तुम्हें सारी चीजें पहले ही ठीक से समझा देता !”

“कोई बात नहीं अब आप मुझे सारी चीजें समझा दो मेरे अच्छे ताऊजी !”

ताऊजी ने मुझे एक बार फिर से अपनी बाहों में भर कर चूम लिया और मेरे अनारों को भींचने लगे। मैं पूरी तरह गर्म हो गई थी। थोड़ी देर की चूसा-चुसाई के बाद वो बोले, “बेटी अब तुम अपने सारे कपड़े उतार दो।”

“नहीं, मुझे शर्म आती है ! आपके सामने सारे कपड़े कैसे उतारूं ?” मैंने शर्माने की अच्छी एक्टिंग की।

“अरे बेटी इसमें शर्माने की क्या बात है मैंने तो तुम्हें बचपन में बहुत बार नंगा देखा है। बस अब तुम सारी शर्म लाज छोड़ दो। मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ तुम नहीं जानती !”

“पर कंडोम तो आपको पहन कर दिखाना है मेरे कपड़े क्यों उतार रहे हैं?”

“ओ…हो…. चलो मैं भी अपने कपड़े उतार दूँगा तुम क्यों चिंता करती हो पहले तुम्हें कुछ और बातें समझाना जरुरी है।”

उसके बाद उन्होंने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और मुझे अपनी बाहों में भर कर फिर से चूमना शुरू कर दिया। पहले मेरे होंठों को चूमा और फिर मेरे अनारों को चूसते रहे। फिर धीरे धीरे उन्होंने मेरी चूत

को टटोला और उसकी गीली फांकों को चौड़ा करते हुए अपनी एक अंगुली मेरी चूत की दरार में डाल दी। मेरी चूत में तो पहले से ही पानी की धारा बह रही थी। अंगुली का स्पर्श पाते ही ऐसा लगा जैसे चूत के अंदर एक मीठी सी आग भड़क गई है। मैं उनकी कमर पकड़ कर जोर से लिपट गई। ताऊ जी अपनी अंगुली को जल्दी जल्दी अंदर-बाहर करने लगे। मेरी सीत्कार निकालने लगी।

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:29

कितना आनंददायक पल था। आह….. मेरी चूत उनका लंड लेने के लिए बैचैन होने लगी थी। उनका लंड भी तो मझे चोदने के लिए इठलाने लगा होगा।

अब उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी जांघें उठा कर कुर्सी के हत्थों पर रख दी। छोटे छोटे नरम झांटों से ढकी मेरी चूत की दरार अब कुछ खुल सी गई थी और अंदर का गुलाबी रंग झलकने लगा था अब ताऊजी ने मेरी चूत को पहले तो अपने हाथों से सहलाया और फिर अपना मुंह नीचे करके उसे सूंघा और फिर उस पर अपने होंठ टिका दिए। उनकी गर्म साँसें जैसे ही मेरी चूत पर महसूस हुई मुझे लगा मेरी चूत ने एक बार फिर पानी छोड़ दिया है। मेरी सिसकारी निकल गई और मैंने ताऊजी का सर कस कर पकड़ लिया और अपनी जांघें कस लीं। मेरी किलकारी सी निकलने लगी थी। ताऊजी बिना रुके मेरी चूत चूसे चूमे जा रहे थे।

“क्यों मेरी रानी मज़ा आ रहा है ना ?”

“हाँ.. आह… बहुत मज़ा आ रहा है… बस ऐसे ही करते रहो…उईईई…आह्ह्ह्ह्ह….”

थोड़ी देर चूसने के बाद बोले, “हाँ हाँ मेरी रानी बस तुम देखती जाओ जब चोदूंगा तो देखना और भी मज़ा आएगा।”

मैंने अपने मन में सोचा ‘मैं तो कब से चुदवाने को मरी जा रही हूँ मर्ज़ी आये उतना चोद लो ’ पर मेरे मुंह से तो बस सीत्कार ही निकल रही थी, “आह….उईईइ….माँ…..”

“एक बात बताऊँ ?”

“हुम्म”

“तुम्हारी चूत बहुत खूबसूरत है बिल्कुल तुम्हारी मम्मी की तरह !”

“आपको कैसे पता?”

“जब मैंने तुम्हारी मम्मी पहली बार चोदा था तो उसकी चूत भी बिलकुल ऐसी ही थी। बिलकुल मक्खन-मलाई !”

हे भगवान ! ताऊजी ने तो मेरी मम्मी को भी चोद लिया है। मम्मी भी बड़ी चुदक्कड़ है। चलो कोई बात नहीं अब तो रहा सहा डर भी खत्म हो गया। अब तो माँ-बेटी दोनों खूब मज़े ले ले कर चुदवाया करेंगी।

“कम्मो बेटी तेरी माँ चूत तो बड़े मज़े ले ले कर चुदवाती है, पर गांड नहीं मारने देती।”

मैं क्या बोलती- बस हाँ हूँ करती रही। मुझे अपनी चूत चटवाने में बहुत मज़ा आ रहा था। मेरा तो पानी दो बार निकल चुका था जिसे ताऊजी ने गटक लिया था। अब उन्होंने अपनी जीभ से मेरा दाना सहलाना चालू कर दिया था। वो उसे अपने होंठों और जीभ से मसल रहे थे जब उसे दांतों में लेकर होले से दबाते तो मेरे सरे शरीर में रोमांच के मारे झुरझुरी सी दौड़ जाती।

थोड़ी देर चूत चाटने और चूसने के बाद ताऊजी ने भी अपने कपड़े उतार दिए मैं उनका लंबा और मोटा लंड देख कर सकपका ही गई थी। मेरे मुंह से निकला “हाय राम इतना बड़ा?”

“क्या हुआ मेरी रानी ऐसे क्या देख रही हो?”

“आपका तो बहुत बड़ा और मोटा है?”

“ओह…मेरी रानी बड़े और मोटे से ही तो ज्यादा मज़ा आता है।”

“पर इतने मोटे और लंबे लंड से मेरी चूत कहीं फट गई तो?”

“अरे मेरी रानी कुछ नहीं होगा !” तुमसे छोटी छोटी लौंडियाँ बड़े मज़े ले ले कर पूरा लंड घोंट जाती हैं। बस एक बार ज़रा सा दर्द होगा उसके बाद तो समझो सारी जिंदगी भर का आराम और सुख है”

मैं तो आँखें फाड़े बस उस काले भुजंग को देखती ही रह गई।

“अब मोटा-पतला छोड़ो अपना मुंह खोल कर इसे चूसो। मुझे भी कुछ सुख मिल जाए। अब शर्माना छोड़ो मेरी प्यारी बेटी।”

“हुम्म…”

“तुम्हारी मम्मी तो बहुत मज़े लेकर चूसती है इसे.…” कह कर ताऊजी ने अपना काला भुजंग लंड मेरे होंठों से लगा दिया।

मैं भी लंड चूसने का स्वाद लेना चाहती थी। मैंने उनके लंड को हाथ में पकड़ लिया और पहले तो सुपारे को चाटा फिर उसे मुंह में भर कर चुस्की लगाई। ताऊजी की सीत्कार निकलने लगी।

“वाह मेरी रानी तू तो अपनी मम्मी से भी बढ़िया चूसती है…. आह्ह… मेरी रानी जोर जोर से चूसो मेरी जान… रुको मत…बस चूसती रहो..आह…आह…मेरी रानी आह…… शाबाश मेरी बेटी….. बड़ा मज़ा आ…रहा है… आह..”

उन्होंने मेरा सर पकड़ रखा था और अपनी कमर हिलाते हुए अपने लंड को मेरे मुंह में ऐसे अंदर-बाहर करने लगे जैसे मेरा मुंह न होकर कोई चूत ही हो। थोड़ी देर में ताऊजी का लंड झटके से खाने लगा। मुझे लगा मेरे मुंह में ही निकल जाएगा। मैंने उनका लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया।

अब ताऊजी मेरी चूत मारने के लिए तड़फने लगे थे। उन्होंने मुझे उठा कर बेड पर लेटा कर दोनों टांगें को फैला कर चौड़ा कर दिया। ऐसा करने से मेरी चूत साफ़ नज़र आने लगी। अब वो मेरी जांघों के बीच आकर प्यार से मेरी चूत को सहलाने लगे। फिर उन्होंने अपने लंड को हाथ से पकड़ा और मेरी चूत पर रगड़ने लगे। जैसे ही उनका तन्नाया लंड मेरी फांकों से टकराया मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। सारा शरीर एक अनोखे आनंद में डूबने लगा।

“ओह….कंडोम चढ़ा लो ना !” मैंने मुस्कुरा कर कहा।

“अरे नहीं मेरी रानी.. कंडोम लगा कर मज़ा नहीं आएगा। चूत में पहली अमृत वर्षा तो बिना कंडोम के ही होनी चाहिए !” उन्होंने हँसते हुए कहा।

अब उन्होंने मेरी चूत की गुलाबी फांकों को चौड़ा किया और अपने लंड पर थूक लगा कर चूत की दरार पर घिसने लगे। फिर उन्होंने छेद पर सुपारा रखा और बोले, “मेरी प्यारी बेटी बस एक बार सुपारा अंदर चला गया तो फिर मज़े ही मज़े हैं। बस एक बार थोड़ा सा दर्द होगा मेरी रानी बेटी जरा सा सह लेना अपने ताऊ के लिए।”

मैंने हाँ में मुंडी हिला दी… मुझे कहाँ होश था। मैं तो खुद चुदाई के लिए मरी जा रही थी। फिर ताऊजी ने एक हाथ मेरे सर के नीचे लगा लिया और दूसरे हाथ से मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगा दिया।

मेरी चूत भी अंदर से गीली थी। उनके लंड पर भी थूक लगा था। उनका आधा लंड मेरी कुंवारी चूत को फाड़ता हुआ अंदर चला गया। मुझे लगा मेरी चूत को किसी ने चाकू से चीर दिया है…. जैसे किसी बिच्छू ने डंक मार दिया है। भयंकर दर्द के कारण मेरी चीख निकल गई। मुझे लगा गर्म गर्म सा तरल पदार्थ मेरी चूत से बहने लगा है। शायद यह झिल्ली फटने से निकला खून था। मैं कसमसाने लगी तो ताऊजी ने मुझे कस कर अपनी बाहों में भींच लिया। आधा लंड चूत में भीतर तक धंस चुका था। चूत पूरी तरह फट चुकी थी।

मैंने उनकी बाहों से निकलने की जी-तोड़ कोशिश की पर वो बड़े धुरंधर थे। भला मुझे कसे अपने पंजों से निकलने देते। मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे। मैं दर्द के मारे छटपटा रही थी पर ताऊजी ने मुझे भींचे रखा और फिर उन्होंने मेरे होंठों को चूमना चालू कर दिया। मैंने उनके नीचे से निकलने की बहुत कोशिश की पर वो मेरे ऊपर पड़े थे और बुरी तरह मुझे अपनी बाहों में जकड़े हुए थे। उनका आधा लंड मेरी चूत में फस था। मैं तो बस किसी कबूतरी की तरह फड़फड़ा कर ही रह गई।

“बस… बस… बेटी सब हो गया… डरो नहीं… बस मेरी रानी बिटिया… बस थोड़ा सा बर्दाश्त कर लो फिर देखना बहुत मज़ा आएगा।”

“मैं मर जाउंगी… उईईई माँ…. ओह आप हट जाओ ! मुझे नहीं चुदना !”

“अरे बेटी अब अंदर चला ही गया है तो क्यों नखरे कर रही हो। बस दर्द तो दो मिनट का है, फिर देखना तुम खुद कहोगी कि जोर जोर से करो।”

ताऊजी अपनी कोहनियों के बल हो गए थे ताकि उनका पूरा वज़न मेरे ऊपर ना पड़े। पर उन्होंने अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी। हम थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहे।

अब मेरा दर्द थोड़ा कम हो गया था। ताऊजी ने मुझे फिर से चूमना चालू कर दिया। कभी मेरे गालों पर आये आंसुओं को चाटते कभी होंठों को चूमते। कभी मेरे अनारों को चूसते कभी हल्के से दबाते। अब मुझे भी कुछ मज़ा आने लगा था।

फिर ताऊजी ने एक धक्का और लगाया और उनका बाकी का लंड भी अंदर चला गया। पर इस बार मुझे ज्यादा दर्द नहीं हुआ। मैंने डर के मारे अपने दांत भींच लिए और आँखें बंद किये पड़ी रही। अब तो मैं भी चाह रही थी कि वो चुदाई शुरू कर ही दें। मैंने जितना हो सकता था अपनी जांघें चौड़ी कर ली। इससे उनको बड़ी राहत मिली और उनका लंड आराम से अंदर बाहर होने लगा। ताऊजी ने मुझे बाहों में जकड़ रखा था और अब धीरे धीरे धक्के लगाने लगे।

अब मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था। मेरी चूत में जैसे कोई मीठी छुरी उतर रही थी। जैसे ही ताऊजी का लंड अंदर जाता मेरी चूत की फांकें अंदर की ओर धंस जाती। चूत के चारों और उगे छोटे छोटे बाल चूत के रस से भीग गए थे। ताऊजी के लंड से मेरी पूरी चूत जैसे भर सी गई थी। कितना बड़ा और मोटा लंड है ताऊजी का पर पूरा का पूरा चला गया है। थोड़ा फंस-फंस कर अंदर-बाहर हो रहा है।

भगवान ने चुदाई भी क्या खूब चीज बनाई है। काश…. यह वक्त रुक जाए और सारी जिंदगी बस इस चुदाई में ही बीत जाए। मैंने अपनी सहेलियों से सुना था कि जब वीर्य की धार अन्दर निकलती है तो बहुत ठंडक मिलती है। मैंने अपने हाथों से उनकी कमर पकड़ ली। अब तो मेरे नितंब और कमर भी अपने आप उछलने लगे थे। सच कहूँ तो मैं अनूठे आनंद में डूबी थी।

थोड़ी देर चोदने के बाद ताऊजी बोले, “बेटी संभालना… आह्ह….!” और फिर ताऊजी जोर जोर से धक्के लगाने लगे। उनकी साँसें फूलने लगी थी। वो जोर जोर से धक्के लगाने लगे थे जैसे कोई बिगड़ैल सांड हों। मुझे लगा कि अब इस प्यासी धरती को बारिश की पहली फुहार मिलने ही वाली है। मैंने भी अपनी बाहें उनकी कमर से कस लीं।

मुझे लगा मेरा शरीर भी कुछ अकड़ने लगा है और लगा जैसे मेरा सु-सु निकल जाएगा। सारा शरीर और मेरा रोम-रोम जैसे रोमांच में डूबने लगा था। ओह्ह…. इस आनंद को शब्दों में तो बताया ही नहीं जा सकता। मुझे लगा मेरी चूत से पानी जैसा कुछ निकल गया है। अब तो मेरी चूत से फच्च फच्च जैसी आवाजें आनी शुरू हो गई थी। मैंने अपने पैर हवा में ऊपर उठा लिए। मेरी चूत तो जैसे पानी छोड़ छोड़ कर पागल ही हुई जा रही थी। इस अद्भुत आनंद के मारे मैं तो सिसियाने लगी थी। मेरा मन कर रहा था ताऊजी मुझे और जोर जोर से चोदें।

मैं चिल्लाई “मेरे प्यारे ताऊजी… मेरे सनम… मेरे राजा अब रुकना नहीं… आह.. मैं तो मर गई मेरी जान… आह..”

मैं ताऊजी से जोर से चिपक गई। मैं तो दुबारा झड़ गई थी। फिर 2-4 धक्के मारने के बाद ताऊजी की भी पिचकारी अंदर फूट गई। ताऊजी गूं… गूं…. की आवाज़ के साथ शहीद हो कर मेरे ऊपर पड़ गए। मैं उनका सर सहलाने लगी। मेरी तो खुशी के मारे किलकारी ही निकल गई थी। इसी के साथ मेरे पैर धड़ाम से नीचे गिर गए और मैं किसी कटी पतंग की तरह आसमान की बुलंदियों से नीचे जमीन पर गिरने लगी।

हम लोग थक कर जोर-जोर से लम्बी साँसों के साथ मीठी सीत्कारें कर रहे थे पर एक दूसरे की बाहों से अलग नहीं होना चाहते थे। ताऊजी ने मुझे एक बार फिर से चूम लिया।

उस दिन ताऊजी ने मुझे तीन बार चोदा। मैंने उनका पूरा साथ दिया। मैं तो एक बार और भी चुदवा लेती पर उनके लौड़े में अब जान कहाँ बची थी। मैंने उनका लंड भी एक बार चूस कर देखा और उसकी मलाई भी खाई पर मलाई थोड़ी ही निकली। चलो कोई बात नहीं कल फिर खा लूंगी। और कल ही क्यों ? अब तो रोज खाया करूंगी। अब मुझे बिना मलाई खाए और चुदवाये नींद ही नहीं आएगी।

आपकी कुसुम… अ … र र… कम्मो….

बस दोस्तों ! यह थी कम्मो के बदनाम होने की दास्ताँ। सच बताना कैसी लगी कम्मो की चुदाई ? मज़ा आया या नहीं ? आपका खड़ा हुआ या नहीं और मेरी प्यारी पाठिकाओं की पेंटी गीली हुई या नहीं ? उसने मुझे एक किस्सा और भी बताया था जिसे मैं जल्दी ही आपको “कम्मो की गांड गुलाबी चूत शराबी” के नाम से जल्दी ही सुनाऊंगा

आपका प्रेम गुरु

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