लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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The Romantic
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:54

हम बिना कुछ कहे या बोले कोई 5-7 मिनट इसी तरह पड़े रहे। यही तो प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति है। जब प्रेम करने वाले दो शरीर अपना सब कुछ कामदेव को समर्पित करके एक दूसरे में समां जाते हैं तब शब्द मौन हो जाते हैं और प्रेम की परिभाषा समाप्त हो जाती है। फिर भला कुछ कहने की आवश्यकता कहाँ रह जाती है।

अब उनका “वो” फिसल कर बाहर आ गया तो वो मेरे ऊपर से हट गए। मुझे लगा मेरी लाडो से कुछ गर्म गर्म सा रस बह कर बाहर आने लगा है। मैंने जैसे ही उठने को हुई प्रेम ने मुझे रोक दिया।

“मधुर प्लीज … एक मिनट !”

पता नहीं अब वो क्या चाहते थे। उन्होंने तकिये के नीचे से एक लाल रंग का कपड़ा सा निकला। ओह यह तो कोई रुमाल सा लग रहा था। उन्होंने उस लाल रुमाल को प्रेम रस में भीगी मेरी लाडो की दरार पर लगा दिया। लगता था पूरा रुमाल ही लाडो से निकलते खून और प्रेम रस के मिलेजुले हलके गुलाबी से मिश्रण से भीग गया था। मैं तो उस समय कुछ महसूस करने की स्थिति में ही नहीं थी। प्रथम मिलन के इस साक्ष्य को उन्होंने अपने होंठों से लगा कर चूम लिया। मैं तो एक बार फिर शर्मा गई।

“मधुर ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद !”

मैं कुछ समझी नहीं। यह धन्यवाद इस प्रेमरस के लिए था या मेरे समर्पण के लिए। मुझे अभी भी कुछ गीला गीला सा लग रहा था और थोड़ा सा रस अभी भी लाडो से निकल रहा था।

“मधुर आओ बाथरूम में साथ साथ ही चलते हैं !” उन्होंने कुछ शरारती अंदाज़ में मेरी ओर देखते हुए कहा।

“नहीं पहले आप हो आओ, मैं बाद में जाऊँगी।” मैं बाथरूम में जाना चाहती थी पर मेरे सारे कपड़े तो नीचे गिरे थे। मुझे निर्वस्त्र होकर बाथरूम जाने में कुछ लाज भी आ रही थी और संकोच भी हो रहा था।

“ओह … चलो कोई बात नहीं !”

प्रेम अपनी कमर पर तौलिया लपेट कर बाथरूम में चले गए। अब मैं उठ बैठी। मैंने अपनी लाडो की ओर देखा। उसकी पंखुड़ियां थोड़ी मोटी मोटी और सूजी हुई सी लग रही थी। झिर्री थोड़ी खुली सी भी लग रही थी। मैंने थोड़ा सा हट कर अपनी जाँघों और नितम्बों के नीचे देखा पूरी चादर कोई 5-6 इंच के व्यास में गीली हो गई थी। मैंने झट से उसपर एक तकिया रख दिया।

अब मुझे अपने कपड़ों का ध्यान आया। जैसे ही मैं उठाने को हुई प्रेम बाथरूम का दरवाजा खोल कर कमरे में आ गया था। मुझे कुछ सूझा ही नहीं मैंने दूसरा तकिया उठा कर उसे अपनी छाती से चिपका लिया ताकि मैं अपने निर्वस्त्र शरीर को कुछ तो छुपा सकूं।

प्रेम मेरे पास आ गया और फिर मेरी गोद में अपना सर रख कर लेट गया। अब भला मैं बाथरूम कैसे जा पाती।

“मधुर !”

“हुं …?”

“तुम बहुत खूबसूरत हो…. मेरी कल्पना से भी अधिक !”

मेरे मन में तो आया कह दूं ‘हटो परे झूठे कहीं के ?’ पर मैं कुछ बोल ही नहीं पाई।

“मधुर आज तुमने मुझे अपना कौमार्य सौंप कर उपकृत ही कर दिया … मेरी प्रियतमा !” कह कर उन्होंने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी।

“हां, मेरे प्रेम ! मैं भी आपको पाकर पूर्ण स्त्री बन गई हूँ।”

उन्होंने मेरे सर को थोड़ा सा नीचे करने की कोशिश की तो मैंने मुंडी थोड़ी सी नीचे कर दी। उन्होंने मेरे होंठों को एक बार फिर से चूम लिया। मेरे खुले बाल उनके चहरे पर आ गिरे।

हम दोनों के बीच तकिया दीवार सा बना था। उन्होंने झट से उसे खींचा और पलंग से नीचे फेंक दिया। मेरे अनावृत वक्ष उनके मुँह से जा लगे। प्रेम ने एक उरोज को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगे।

मैं भला उन्हें मना कैसे कर पाती। अब मेरा ध्यान उनके पैरों की ओर गया। तौलिया थोड़ा सा उनकी जाँघों से हट गया था। अब मुझे उनका”वो” नज़र आया। अब तो वो केवल 3-4 इंच का ही रह गया था … बिलकुल सिकुड़ा हुआ सा जैसे कोई शरारती बच्चा खूब ऊधम मचाने के बाद अबोध (मासूम) बना चुपचाप सो रहो हो। मेरा मन कर रहा था इसे एक बार हाथ में पकड़ लूं या चूम लूँ।

सच कहूँ तो मैंने कभी किसी का लिंग अपने मुँह में लेना और चूसना तो दूर की बात है कभी ठीक से देखा भी नहीं था। पर सहेलियों से सुना बहुत था कि लिंग ऐसा होता है वैसा होता है। मेरी लाडो तो उसकी कल्पना मात्र से ही गीली हो जाया करती थी और फिर मैं आँखें बंद करके अपनी देह में उठती मीठी सी गुदगुदी का आनंद लिया करती थी।

मीनल तो कहती है कि ‘इसे मुँह में लेकर चूसने में बहुत आनंद आता है और इसके रस को पीने में बहुत मज़ा आता है। पुरुष स्त्री से तभी प्रेम करता है जब वो उसकी हर चीज को अपना बना ले और अपनी हर चीज उसे सोंप दे। अगर तुम उसके अमृत को पी लोगी तो वो तुम्हारा दीवाना ही बन जाएगा।’

“छी … गन्दी कहीं की !” मैं ख्यालों में खोई थी कि ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया था।

“क्या हुआ ? मधुर ?” प्रेम मेरे उरोजों को चूसने में मग्न था। मेरी आवाज सुन कर चौंका।

“ओह…. कुछ नहीं वो….. वो …” अब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ, मैंने बात संवारते हुए कहा,”वो … मैं कह रही थी आप पहले दूध पी लो !”

“दूध ही तो पी रहा हूँ !”

“ओह…. हटो परे … मैं इस दूध की नहीं वो थर्मस वाले दूध की बात कर रही थी।”

“ओह… पर मुझे तो यही दूध पसंद है …!” उसने अपनी शरारती आँखें नचाई।

“प्लीज …”

“ठीक है जी !” कह कर प्रेम उठ खड़ा हुआ।

उसने पलंग के पास पड़ी मेज पर रखे नाईट लैम्प को फिर से जला दिया। कमरा हलकी रोशनी से जगमगा उठा। मैंने झट से पास पड़ी चादर से अपने आप को ढक लिया। प्रेम ने थर्मस में रखे दूध को एक गिलास में डाल लिया और तश्तरी से बर्फी का एक टुकड़ा उठा कर मेरी ओर आ गया। फिर बर्फी का टुकड़ा मेरी ओर बढ़ाते हुए बोला,”मधुर, आप इस बर्फी के टुकड़े को आधा मुँह में रख लें !”

“क्यों ?”

“ओह.… क्या सारा ही खा जाना चाहती हैं ?” वो हंस पड़े।

मेरी भी हंसी निकल गई। मैंने उनके कहे अनुसार बर्फी को अपने दांतों में पकड़ लिया। अब प्रेम ने बाहर बचे उस आधे टुकड़े को अपने मुँह में भर लिया।

प्रेम के इस अनोखे प्रेम को देख कर मैं तो मर ही मिटी। मैंने मुस्कुरा कर उनकी ओर देखा। अब वो इतने भोले तो नहीं होंगे कि मेरी आँखों में झलकते हुए प्रेम को ना पढ़ पायें।

फिर उन्होंने दूध का गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।

“ओह.. पर दूध तो आपके लिए है ?”

“नहीं मेरी प्रियतमा … हम दोनों इसे पियेंगे…. पर वो मीनल बता रही थी कि उसने चीनी नहीं डाली है !”

“क्यों ?”

“पता नहीं !”

“तो ?”

“ओह कोई बात नहीं … तुम इसे पहले अपने इन मधु भरे अधरों से छू लो तो सारी मिठास इस दूध भरे गिलास में उतर आयेगी !” वो मंद मंद मुस्कुराने लगे थे।

ओह…. अब मुझे उनकी शरारत समझ आई। उन्होंने गिलास मेरे होंठों से लगा दिया। मैं कैसे ना कर सकती थी। मैंने एक घूँट ले लिया। अब उन्होंने ठीक उसी जगह अपने होंठ लगाए जंहा मेरे होंठ लगे थे।

दूध का गिलास उन्होंने मेज पर रख दिया और फिर से मुझे बाहों में भरने की कोशिश करने लगे।

“ओह … प्रेम प्लीज … छोड़ो ना … मुझे बाथरूम जाने दो ना प्लीज….!”

“मधुर तुम बहुत खूबसूरत हो ! प्लीज, अपनी बाहों से मुझे दूर मत करो !” कह कर उन्होंने तड़ातड़ कई चुम्बन मेरे होंठों और गालों पर ले लिए।

“ओह… प्लीज रुको…. प्लीज …वो… लाइट … ओह … ?”

पर वो कहाँ मानने वाले थे। मैं तो कसमसा कर ही रह गई। वो मेरे पीछे आ गए और आपाधापी में चादर नीचे गिर गई। मैं अपनी लाज छुपाने पेट के बल होकर पलंग पर गिर पड़ी। मेरा पेट उस तकिये पर आ गया जो मैंने उस गीली जगह को छुपाने के लिए रखा था। इससे मेरे नितम्ब कुछ ऊपर की ओर उठ से गए।

अब वो मेरे ऊपर आ कर लेट गए। उनकी दोनों जांघें मेरे नितम्बों के दोनों ओर आ गई और उनकी छाती मेरी पीठ से चिपक गई। अब उन्होंने अपने हाथों को नीचे करते हुए मेरे अमृत कलशों को पकड़ लिया। उनका मुँह मेरे कानो में पहनी बालियों के पास आ गया। उन्होंने कान की बाली सहित मेरी परलिका (कान के नीचे का भाग) अपने मुँह में भर लिया और उसे चूमने लगे। उनकी गर्म साँसें मुझे अपने गालों पर महसूस हो रही थी। पता नहीं इनको कान और उसमें पहनी बालियों को चूसने में क्या आनंद आ रहा था। मीनल ने मुझे कहा था कि मैं मधुर मिलन की रात को कानों में झुमकों से स्थान पर छोटी छोटी बालियाँ ही पहनू क्यों कि प्रेम को ऐसी बालियाँ बहुत पसंद हैं।

ओह … उनका ‘वो’ अब अपनी मासूमियत छोड़ कर फिर शरारती बन गया था। मेरे कसे नितम्बों के बीच उसकी उपस्थिति का भान होते ही मेरी सारी देह एक बार फिर से झनझना उठी। वो कभी मेरे गालों को कभी कानो को चूमते रहे। हाथों से मेरे अमृत कलशों को कभी दबाते कभी उनके चुचूकों को अपनी चिमटी में लेकर मसलते तो मेरी मीठी सीत्कार ही निकल जाती। उनका”वो” तो मेरे नितम्बों की गहरी खाई में टक्कर ही मारने लगा था। मैंने अपनी जांघें कस कर भींच लीं।

मीनल कई बार कहती थी ‘देखना मधुर, तुम्हारे नितम्ब देख कर तो वो मतवाला ही हो जाएगा। सच कहती हूँ अगर मैं लड़का होती और तुम्हारे साथ सुहागरात मनाती तो सबसे पहले तो तुम्हारी गांड ही मारती ! भैया को मोटे और कसे हुए नितम्ब बहुत पसंद हैं ! पता नहीं तुम उनसे कैसे बचोगी ?’

हे भगवान् … कहीं प्रेम कुछ उल्टा सीधा करने के चक्कर में तो नहीं है ? मैं तो सोच कर ही कांप उठी। मैं प्रेम की पूर्ण समर्पित तो बनना चाहती थी पर कम से कम आज की रात तो ऐसा बिल्कुल नहीं करने देना चाहती थी।

“इईईईईईईईईई………..”

“क्या हुआ ?”

“ओह… प्रेम ऐसे नहीं ? ओह… हटो प्लीज … मुझे सीधा होने दो।”

“ओह …”

कहते हुए वो हट गया। मैं झट से सीधी हो गई और इस से पहले कि वो कुछ करे मैंने उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। वो झट से मेरे ऊपर आ गए और एक बार फिर से हम उसी नैसर्गिक आनन्द में डूब गए।

“मधुर … मेरी प्रियतमा ! मैं जीवन भर तुम्हें इसी तरह प्रेम करता रहूँगा … !” उन्होंने मेरे अधरों को चूमते हुए कहा।

“मैं जानती हूँ मेरे प्रियतम … मेरे साजन !”

मैंने एक बार उन्हें फिर से अपनी बाहों में भींच लिया।

बाहर रोशनदान से कृष्णपक्ष की द्वितीया का चाँद अपनी मधुर चाँदनी बरसा रहा था। यह भी तो हमारे इस मधुर मिलन का साक्षी ही तो बना था।

पता नहीं कब हम दोनों की आँख लग गई। कोई 7.30 बजे मेरी आँख खुली। मैं अपने कपड़े लेकर बाथरूम में भागी। मेरी दोनों जाँघों के बीच मीठी कसक और चुभन सी अनुभव हो रही थी और मेरा अंग अंग जैसे किसी अनोखे उन्माद में डूबा था। मैंने शीशे में अपने आप को देखा। मेरे गालों, गले, बाहों, छाती, पेट और जाँघों पर तो लाल और नीले निशान से बने थे। मेरे हर अंग पर उनके प्रेम की मोहर लगी थी। आँखें किसी खुमार में डूबी नशीली सी लग रही थी। यह दो रातों की नींद के कारण नहीं बल्कि प्रेम के नशे के खुमार के कारण था। मेरे प्यासे अधर, धड़कता दिल और लरजती साँसें तो उनकी दासी ही बन गई थी। मेरा अपना अब क्या रह गया था सब कुछ तो उनका हो गया था।

मैंने मुँह-हाथ धोये और कपड़े पहन कर कमरे में आई तो देखा प्रेम अभी भी सोया है। मैं सोच रही थी उन्हें एक चुम्बन लेकर या फिर एक बार इनके सीने से लग कर जगाऊँ। मैंने जैसे ही उनके होंठों को चूमने के लिए सर नीचे किया प्रेम ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। मैं तो कुनमुनाती ही रह गई।

इतने में बाहर दरवाजा खटखटाने की आवाज आई।

“मधुर दरवाजा खोलो भाई ! 8 बज रहे हैं !” बाहर से मीनल की आवाज आई।

प्रेम झट से तौलिया उठा कर बाथरूम में भाग गए। मैंने अब पलंग पर बिछी चादर को देखा। वो भी हमारे प्रेम के रस में डूबी थी। पता नहीं मीनल इन गुलाब के मसले गज़रों, फूलों की पत्तियों और इस प्रेम रस से बने चाँद को देखेगी तो क्या क्या सोचेगी और कहेगी। मैंने झट से उस चादर को पलंग से हटाया और उसे अलमारी में संभाल कर रख दिया। मैं भला इस चादर को किसी और को कैसे देखने दूंगी। ना … कभी नहीं … मैं तो इस अनमोल स्मृति को आयु पर्यंत अपने पास संजो कर रखूंगी।

मैं तो अब मधुर माथुर नहीं प्रेम दीवानी बन गई हूँ । इसके अलावा बस और क्या लिखूं :

कलम से भिगो कर प्यार की चाँद बूंदों से बयान की है

महसूस करना हो गर तो सेज की उस चादर से पूछो ।

अपने प्रेम की सिमरन (स्वर्ण नैना)- मधुर

मैंने उस डायरी को बंद कर के एक बार फिर से चूम लिया। मेरे मुस्कुराते होंठों से तो बस यही निकला,”मधुर, तुम बहुत खूबसूरत हो ! मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ मेरी सिमरन ! मेरी स्वर्ण नैना !”

आपको हमारा मधुर प्रेम मिलन कैसा लगा मुझे बताएँगे ना ?

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 09:57

गाण्ड मारे सैंया हमारो

मैंने आपको अपनी पिछली कहानी

हुई चौड़ी चने के खेत में

जो कई भागों में है, में बताया था कि अपनी जोधपुर यात्रा के दौरान मैंने जगन के साथ उन चार दिनों में अपनी जवानी का भरपूर मज़ा लिया और दिया था लेकिन अब उन चार दिन की चाँदनी के बाद तो फिर से मेरी जिंदगी में अंधेरी रातें ही थी, मेरे दिल में एक कसक रह गई थी कि जगन के लाख मिन्नतें करने के बाद भी मैंने उससे अपनी गाण्ड क्यों नहीं मरवाई !

सूरत लौट आने के बाद मैंने गणेश के साथ कई बार कोशिश की पर आप तो जानते ही हैं वो ढंग से मेरी चूत ही नहीं मार सकता तो भला गाण्ड क्या मारता !

जगन के मोटे और लंबे लौड़े से चुदने के बाद तो अब रात में गणेश के साथ चुदाई के दौरान मुझे अपनी चूत में एक ख़ालीपन सा ही महसूस होता रहता और कोई उत्तेजना भी महसूस नहीं होती थी। मेरे मन में दिन रात किसी मोटे और तगड़े लण्ड से गाण्ड चुदाई का ख्याल उमड़ता ही रहता था।

हमारा घर दो मंज़िला है, नीचे के भाग में सास-ससुर रहते हैं और हमारा शयनकक्ष ऊपर के माले पर है, हमारे शयनकक्ष की पिछली खिड़की बाहर गली की ओर खुलती है जिसके साथ एक पार्क है, पार्क के साथ ही एक खाली प्लॉट है जहाँ अभी मकान नहीं बना है, लोग वहाँ कूड़ा करकट भी डाल देते हैं और कई बार तो लोग सू सू भी करते रहते हैं।

उस दिन मैं सुबह जब उठी तो तो मेरी नज़र खिड़की के बाहर पार्क के साथ लगती दीवार की ओर चली गई. मैंने देखा एक 18-19 साल का लड़का दीवाल के पास खड़ा सू सू कर रहा है, वो अपने लण्ड को हाथ में पकड़े उसे गोल गोल घुमाते हुए सू सू कर रहा है।

मैंने पहले तो ध्यान नहीं दिया पर बाद में मैंने देखा कि उस जगह पर दिल का निशान बना है और उसके अंदर पिंकी नाम लिखा है।

मेरी हँसी निकल गई। शायद वा उस लड़के की कोई प्रेमिका होगी। मुझे उसकी इस हरकत पर बड़ा गुस्सा और मैं उसे डाँटने को हुई पर बाद में मेरी नज़र उसके लण्ड पर पड़ी तो मैं तो उसे देखती ही रह गई, हालाँकि उसका लण्ड अभी पूर्ण उत्तेजित तो नहीं था पर मेरा अन्दाज़ा था कि अगर यह पूरा खड़ा हो तो कम से कम 8-9 इंच का तो ज़रूर होगा और मोटाई भी जगन के लण्ड से कम नहीं होगी।

अब तो रोज़ सुबह-सुबह उसका यह क्रम ही बन गया था।

सच कहूँ तो मैं भी सुबह सुबह इतने लंबे और मोटे लण्ड के दर्शन करके धन्य हो जाया करती थी।

कई बार रब्ब भी कुछ लोगों पर खास मेहरबान होता है और उन्हें इतना लंबा और मोटा हथियार दे देता है !

काश मेरी किस्मत में भी ऐसा ही लण्ड होता तो मैं रोज़ उसे अपने तीनों छेदों में लेकर धन्य हो जाती।

पर पिछले 2-3 दिनों से पता नहीं वो लड़का दिखाई नहीं दे रहा था। वैसे तो वो हमारे पड़ोस में ही रहता था पर ज़्यादा जान-पहचान नहीं थी। मैं तो उसके लण्ड के दर्शनों के लिए मरी ही जा रही थी।

उस दिन दोपहर के कोई दो बजे होंगे, सास-ससुर जी तो मुरारी बापू के प्रवचन सुनने चले गये थे और गणेश के दुकान जाने के बाद काम करने वाली बाई भी सफाई आदि करके चली गई थी और मैं घर पर अकेली थी। कई दिनों से मैंने अपनी झाँटें साफ नहीं की थी, पिछली रात को गणेश मेरी चूत चूस रहा था तो उसने उलाहना दिया था कि मैं अपनी झाँटें सॉफ रखा करूँ !

नहाने से पहले मैंने अपनी झाँटें सॉफ करके अपनी लाडो को चकाचक बनाया, उसके मोटे होंठों को देख कर मुझे उस पर तरस आ गया और मैंने तसल्ली से उसमें अंगुली करके उसे ठंडा किया और फिर बाथटब में खूब नहाई।

गर्मी ज़्यादा थी, मैंने अपने गीले बालों को तौलिए से लपेट कर एक पतली सी नाइटी पहन ली। मेरा मूड पेंटी और ब्रा पहनने का नहीं हो रहा था। बार-बार उस छोकरे का मोटा लण्ड ही मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। ड्रेसिंग टेबल के सामने शीशे में मैंने झीनी नाइटी के अंदर से ही अपने नितंबों और उरोज़ों को निहारा तो मैं तो उन्हें देख कर खुद ही शरमा गई।

मैं अभी अपनी चूत की गोरी गोरी फांकों पर क्रीम लगा ही रही थी कि अचानक दरवाज़े की घण्टी बजी। मुझे हैरानी हुई कि इस समय कौन आ सकता है?

मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा कि सामने वही लड़का खड़ा था। उसने हाथ में एक झोला सा पकड़ रखा था। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। मैं तो मुँह बाए उसे देखती ही रह गई थी, वो भी मुझे हैरानी से देखने लगा।

“वो…. मुझे गणेश भाई ने भेजा है !”

“क.. क्यों .. ?”

“वो बता रहे थे कि शयनकक्ष का ए सी खराब है उसे ठीक करना है !”

“ओह.. हाँ आओ.. अंदर आ जाओ !”

मैं तो कुछ और ही समझ बैठी थी, हमारे शयनकक्ष का ए सी कुछ दिनों से खराब था, इस साल गर्मी बहुत ज़्यादा पड़ रही थी, गणेश तो मुझे ठंडा कर नहीं पाता था पर ए सी खराब होने के कारण मेरा तो और भी बुरा हाल था।

मैं उसे अपने शयनकक्ष में ले आई और उसे ए सी दिखा दिया। वो तो अपने काम में लग गया पर मेरे मन में तो बार बार उसके काले और मोटे तगड़े लण्ड का ही ख़याल आ रहा था।

“तुम्हारा नाम क्या है?” मैंने पूछा।

“जस्सी… जसमीत नाम है जी मेरा !”

“नाम से तो तुम पंजाबी लगते हो?”

“हाँ जी…”

“तुम तो वही हो ना जो रोज़ सुबह सुबह उस दीवाल पर सू सू करते हो?”

“वो.. वो.. दर असल….!!” इस अप्रत्याशित सवाल से वो सकपका सा गया।

“तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसे पेशाब करते हुए?”

“सॉरी मेडम… मैं आगे से ध्यान रखूँगा !”

“कोई जवान औरत ऐसे देख ले तो?”


वो जी बात यह है कि हमारे घर में एक ही बाथरूम है तो सभी को सुबह सुबह जल्दी रहती है !” उसने अपनी मुंडी नीची किए हुए ही जवाब दिया।

“हम्म… तुम यह काम कब से कर रहे हो?”

“बस 3-4 दिन से ही…..!”

उसकी बात सुनकर मेरी हँसी निकल गई, मैंने कहा,”पागल मैं सू सू की नहीं, ए सी ठीक करने की बात कर रही हूँ।”

“ओह… दो साल से यही काम कर रहा हूँ।”

“हम्म…? तुम्हें सू सू करते किसी और ने तो नहीं देखा?”

“प… पता नहीं !”

“यह पिंकी कौन है?”

“वो.. वो.. कौन पिंकी?”

“वही जिसके नाम के ऊपर तुम अपना वो पकड़ कर गोल गोल घुमाते हुए सू सू करते रहते हो?”

वो बिना बोले सिर नीचा किए खड़ा रहा।

“कहीं तुम्हारी प्रेमिका-व्रेमिका तो नहीं?”

“न… नहीं तो !”

“शरमाओ नहीं …. चलो सच बताओ ?” मैंने हँसते हुए कहा।

“वो … वो.. दर असल मेरे साथ पढ़ती थी !”

“फिर?”

“मैंने पढ़ाई छोड़ दी !”

“हम्म !!”

“अब वो मेरे साथ बात नहीं करती !”

“तुम्हारी इस हरकत का उसे पता चल गया तो और भी नाराज़ होगी !”

“उसे कैसे पता चलेगा?”

“क्या तुम्हें उसके नाम लिखी जगह पर सू सू करने में मज़ा आता है?”

“हाँ… ओह.. नही…. तो मैं तो बस… ऐसे ही?”

“हम्म… पर मैंने देखा था कि तुम तो अपने उसको पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से हिलाते भी हो?”

“वो.. वो…?” वो बेचारा तो कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।

“अच्छा तुमने उस पिंकी के साथ कुछ किया भी था या नहीं?”

“नहीं कुछ नहीं किया !”

“क्यों?”

“वो मानती ही नहीं थी !”

“हम्म… चुम्मा भी नहीं लिया?”

“वो कहती है कि वो एक शरीफ लड़की है और शादी से पहले यह सब ठीक नहीं मानती !”

“अच्छा… चलो अगर वो मान जाती तो क्या करते?”

“तो पकड़ कर ठोक देता !”

“हाय रब्बा …. बड़े बेशर्म हो तुम तो?”

“प्यार में शर्म का क्या काम है जी?” अब उसका भी हौसला बढ़ गया था।

“क्या कोई और नहीं मिली?”

वो हैरानी से मेरी ओर देखने लगा, अब तक उसे मेरी मनसा और नीयत थोड़ा अंदाज़ा तो हो ही गया था।

“क्या करूँ कोई मिलती ही नहीं !”

“तुम्हारी कोई भाभी या आस पड़ोस में कोई नहीं है क्या?”

“एक भरजाई (भाभी) तो है पर है पर वो भी बड़े भाव खाती है !”

“वो क्या कहती है?”

“वो भी चूमा-चाटी से आगे नहीं बढ़ने देती !”

“क्यों?”

“कहती है तुम्हारा हथियार बहुत बड़ा और मोटा है मेरी फट जाएगी !”

“हम्म…साली नखरे करती है ?”

“हां और वो साली सुनीता भी ऐसे ही नखरे करती रहती है !”

“कौन? वो काम वाली बाई?”

“हाँ हाँ ! … वही !”

“उसे क्या हुआ?”

“वो भी चूत तो मरवा लेती है पर … !”

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