अधूरी जवानी बेदर्द कहानी

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अधूरी जवानी बेदर्द कहानी

Unread post by 007 » 07 Nov 2014 08:35

अधूरी जवानी बेदर्द कहानी

अधूरी जवानी बेदर्द कहानी--1
मैं अजमेर की रहने वाली 30 साल की शादीशुदा औरत हूँ। हम ३ बहनें हैं, मैं
सबसे छोटी हूँ, मेरी शादी बचपन में मेरी बहनों के साथ ही हो गई थी जब मैं
शादी का मतलब ही नहीं जानती थी। मेरी बड़ी बहन ही बालिग थी, बाकी हम दो
बहनों के लिए तो शादी एक खेल ही था।
उस वक्त हम दोनों बहनों की सिर्फ शादी हुई थी जबकि बड़ी बहन का गौना भी
साथ ही हुआ था, वो तो ससुराल आने जाने लग गई, हम दोनों एक बार जाकर फिर
पढ़ने जाने लगी। हमें तब तक किसी बात का कोई पता नहीं था, जीजाजी जीजी के
साथ आते तो हम बहुत खुश होती, हंसी-मजाक करती, मेरी माँ कभी कभी चिढ़ती और
कहती- अब तुम बड़ी हो रही हो, कोई बच्ची नहीं हो जो अपने जीजा जी से इतनी
मजाक करो !
पर मैं ध्यान नहीं देती थी।
कुछ समय बाद मेरे ससुराल से समाचार आने लग गए कि इसको ससुराल भेजो, इसका गौना करो।
और मैं मासूम नादान सी ससुराल चली गई। उस वक्त मुझे साड़ी पहनना भी नहीं
आता था, हम राजस्थान में ओढ़नी और कुर्ती, कांचली, घाघरा पहनते हैं, में
भी ये कपड़े पहन कर चली गई जो मेरे दुबले पतले शरीर पर काफी ढीले-ढाले थे।
मुझे सेक्स की कोई जानकारी नहीं थी, हमारा परिवार ऐसा है कि इसमें ऐसी
बात ही नहीं करते हैं, न मेरी बड़ी बहन ने कुछ बताया, ना ही मेरी माँ ने
!
बाद में मुझे पता चला कि मेरी सास ने जल्दी इसलिए की कि मैं पढ़ रही थी,
उसका बेटा कम पढ़ा था, वो सोच रही थी कि इसे जल्दी ससुराल बुला लें, नहीं
तो यह इसे छोड़ कर किसी दूसरे पढ़े लिखे के साथ चली जाएगी। जबकि हमारे
परिवार के संस्कार ऐसे नहीं थे, मुझे तो कुछ पता भी नहीं था। शादी के कई
साल बाद मैंने पति को तब देखा जब वो गौना लेने आया। मुझे देख कर वो
मुस्करा रहा था, मैंने भी चोर नजरों से उसे देखा, मोटा सा, काला सा,
ठिगना, कुछ पेट बढ़ा हुआ !
मेरे पति थोड़े ठिगने हैं करीब 5'4" के, मैं भी इतनी ही लम्बी हूँ। मेरे
पति चेन्नई में काम करते हैं, 6-7 पढ़े हुए हैं जबकि में ऍम.ए. किए हूँ।
वैसे मैं बहुत दुबली-पतली हूँ, मेरा चेहरा और बदन करीना कपूर से
मिलता-जुलता है, मेरा बोलने-चलने का अंदाज़ भी करीना जैसा है इसलिए मुझे
कोई करीना कहता है तो मुझे ख़ुशी होती है। मैं अपनी सुन्दरता देख इठला
उठी। जब मैं घर में उसके सामने से निकलती कुछ घूंघट किये हुए तो वो खींसे
निपोर देता ! मुझे ख़ुशी होती कि मैं सुन्दर हूँ। इसका मुझे अभिमान हो
गया और मैं उसके साथ गाड़ी में अपनी ससुराल चल दी। गाड़ी में उसके साथ उसके
और परिवार वाले भी थे, हम शाम को गाँव में पहुँच गए।
गाँव पहुँचने के बाद मैंने देखा कि मेरी ससुराल वालों का घर कच्चा ही था,
एक तरफ कच्चा कमरा, एक तरफ कच्ची रसोई और बरामदा टिन का, बाकी मैदान में
!
मेरे पति 5 भाइयों में सबसे छोटे थे जो अपने एक भाई-भाभी और माँ के साथ
रहते थे, ससुर जी का पहले ही देहांत हो गया था !
वहाँ जाते ही मेरी सास और बड़ी ननद ने मेरा स्वागत किया, मुझे खाना
खिलाया। घर मेहमानों से भरा था, भारी भरकम कपड़े और गहने पहने हुई थी,
मैंने पहली बार घूंघट निकाला था, मैं परेशान थी।
मेरी ननद मुझे कमरे में ले गई जिसमें कच्ची जमीन पर ही बिस्तर बिछाये हुए
थे, उसने मुझे कहा- कमला, ये भारी साड़ी जेवर आदि उतार कर हल्के कपड़े पहन
ले, अब हम सोयेंगे !
मैंने अपने कपड़े उतार कर माँ का दिया हुआ घाघरा-कुर्ती ओढ़नी पहन ली, मेरे
स्तन बहुत छोटे थे इसलिए चोली मैं पहनती नहीं थी। गर्मी थी तो चड्डी भी
नहीं पहनी और अपनी ननद के साथ सो गई आने वाले खतरे से अनजान !
मैं सोई हुई थी, अचानक आधी रात को असहनीय दर्द से मेरी नींद खुल गई और
मैं चिल्ला पड़ी। चिमनी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरी ननद गायब है
और मेरे पति मेरी छोटी सी चूत में जिसमें मैंने कभी एक उंगली भी नहीं
घुसाई थी, अपना मोटा और लम्बा लण्ड डाल रहे थे और सुपारा तो उन्होंने
मेरी चूत में फंसा दिया था। घाघरा मेरी कमर पर था, बाकी कपड़े पहने हुए थे
और वो गाँव का गंवार जिसने न तो मुझे जगाया न मुझे सेक्स के लिए शारीरिक
और मानसिक रूप से तैयार किया, नींद में मेरा घाघरा उठाया, थूक लगाया और
लण्ड डालने के लिए जबरदस्त धक्का लगा दिया।
मेरी आँखों से आँसू आ रहे थे और मैं जिबह होते बकरे की तरह चिल्ला उठी !
मेरी चीख उस कमरे से बाहर घर में गूंज गई।
बाहर से मेरी सास की गरजती आवाज आई, वो मेरे पति को डांट रही थी कि छोटी
है, इसे परेशान मत कर, मान जा !
मेरे पति मेरी चीख के साथ ही कूद कर एक तरफ हो गए तब मुझे उनका मोटे केले
जितना लण्ड दिखा। मैंने कभी बड़े आदमी लण्ड नहीं देखा था, छोटे बच्चों की
नुनिया ही देखी थी इसलिए मुझे वो डरावना लगा।
उन्होंने अन्दर से माँ को कहा- अब कुछ नहीं करूँगा ! तू सो जा !
फिर उन्होंने मेरे आंसू पोंछे !
मेरी टाँगें सुन्न हो रही थी, मैं घबरा रही थी। थोड़ी देर वो चुपचाप लेटे,
फिर मेरे पास सरक गए, उन्होंने कहा- मैंने गाँव की बहुत लड़कियों के साथ
सेक्स किया है, वो तो नहीं चिल्लाती थी?
उन्हें क्या पता कि एक चालू लड़की में और अनजान मासूम अक्षतयौवना लड़की में
क्या अंतर होता है !
थोड़ी देर में उन्होंने फिर मेरा घाघरा उठाना शुरू किया, मैंने अपने दुबले
पतले हाथों से रोकना चाहा मगर उन्होंने अपने मोटे हाथ से मेरी दोनों
कलाइयाँ पकड़ कर सर के ऊपर कर दी, अपनी भारी टांगों से मेरी टांगें चौड़ी
कर दी, फिर से ढेर सारा थूक अपने लिंग के सुपारे पर लगाया, कुछ मेरी चूत
पर !
मैं कसमसा रही थी, उन्हें धक्का देने की कोशिश कर रही थी पर मेरी दुबली
पतली काया उनके भैंसे जैसे शरीर के नीचे दबी थी। मैंने चिल्ला कर अपनी
सास को आवाज देनी चाही तो उसी वक्त उन्होंने मेरे हाथ छोड़ कर मेरा मुँह
अपनी हथेली से दबा दिया।
मैं गूं गूं ही कर सकी। मेरे हाथ काफी देर ऊपर रखने से दुःख रहे थे।
मैंने हाथों से उन्हें धकेलने की नाकाम कोशिश की। उनके बोझ से मैं दब रही
थी। मेरा वजन उस वक्त 38-40 किलो था और वे 65-70 किलो के !
अब उन्होंने आराम से टटोल कर मेरी चूत का छेद खोजा जिसे उन्होंने कुछ
चौड़ा कर दिया था, अपने गीले लिंग का सुपारा मेरी छोटी सी चूत के छेद पर
टिकाया और हाथ के सहारे से अन्दर ठेलने लगे। 2-3 बार वो नीचे फिसल गया,
फिर थोड़ा सा मेरी चूत में अटक गया।
मुझे बहुत दर्द हो रहा था जैसे को लोहे की छड़ डाली जा रही हो, जिस छेद को
मैंने आज तक अपनी अंगुली नहीं चुभाई थी, उसमें वो भारी भरकम लण्ड डाल रहा
था।
मेरे आँसुओं से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो पूरी बेदर्दी दिखा रहा
था और मुस्कुरा था कि उसे सील बंद माल मिला जिसकी सील वो तोड़ रहा था !
मेरी दोनों टांगों को वो अपने पैरों के अंगूठों से दबाये हुए था, मेरे
ऊपर वो था, उसके लिंग का सुपारा मेरी चूत में फंसा हुआ था। अब उसने एक
हाथ को तो मेरे मुंह पर रहने दिया दूसरे हाथ से मेरे कंधे पकड़े और जोर का
धक्का लगाया, लण्ड दो इंच और अन्दर सरक गया, मेरी सांस रुकने लगी, मेरी
आँखें फ़ैल गई।
फिर उसने लण्ड थोड़ा बाहर खींचा, मैं भी लण्ड के साथ उठ गई। उसने जोर से
कंधे को दबाया और जोर से ठाप मारी, मैं दर्द के समुन्दर में डूबती चली
गई। आधे से ज्यादा लण्ड मेरी संकरी चूत में फंसा हुआ था, मेरी चूत से खून
आ रहा था पर उन्हें दया नहीं आई,
वो और मैं पसीने-पसीने थे, मुँह से हाथ उन्होंने उठाया नहीं था और फिर
उन्होंने आखिरी धक्का मारा और उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था,
उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था।
मैं बेहोश हो गई पर दर्द की वजह से वापिस होश आ गया। मैं रो रही थी, सिसक
रही थी, मेरा चेहरा आँसुओं से तर था पर दनादन धक्के लग रहे थे, मेरे
चेहरे से हाथ हटा लिया गया था, मेरे कंधे तो कभी कमर पकड़ कर वे बुरी तरह
से मुझे चोद रहे थे।
15-20 मिनट तक उन्होंने धक्के लगाये, मेरी चूत चरमरा उठी, हड्डियाँ कड़कड़ा
उठी, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आया था और वे मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य
डालते हुए ढेर हो गए और भैंसे की तरह हांफने लगे।
मैं रो रही थी, सिसकियाँ भर रही थी, मेरी चूत से खून और वीर्य मेरी
जांघों से नीचे बह रहा था।
थोड़ी देर में सुबह हो गई, मेरे पति बाहर चले गए, मेरी ननद आई, उसने मेरी
टांगें पौंछी, मेरे कपड़े सही किये, मुझे खड़ा किया। मैं लड़खड़ा रही थी, वो
हाथों का सहारा देकर मुझे पेशाब कराने ले गई।
मुझे तेज जलन हुई, मैंने रोते-रोते कहा- मुझे मेरे गाँव जाना है !
मेरी सास ने बहुत मनाया पर मैं रोती रही, चाय नाश्ता भी नहीं किया। आखिर
उन्होंने एस.टी.डी. से मेरे घर फ़ोन किया। एक-डेढ़ घंटे बाद मुझे मेरे भाई
और छोटे वाले जीजाजी लेने आ गए और मैं अपनी सूजी हुई चूत लेकर अपने मायके
रवाना हो गई वापिस कभी न आने की सोच लेकर !
मैंने दसवीं की परीक्षा दी और गर्मियों की छुट्टियों में फिर ससुराल जाना
पड़ा। इस बार मेरे पति स्वाभाव कुछ बदला हुआ था, वो इतने बेदर्दी से पेश
नहीं आये, शायद उन्हें यह पता चल गया कि यह मेरी ही पत्नी रहेगी।
मैं इस बार 4-5 दिन ससुराल में रुकी थी पर वे जब भी चोदते, मेरी हालत
ख़राब हो जाती। पहली चुदाई में ही चूत में सूजन आ गई, बहुत ही ज्यादा
दर्द होता, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आता।
वो रात में 7-8 बार मुझे चोदते पर उनकी चुदाई का समय 5-7 मिनट रहता। रात
भर सोने नहीं देते, वो मुझे कहते- मैंने बहुत सारी लड़कियों से सेक्स
किया है, उन्हें मज़ा आता है, तुम्हें क्यों नहीं आता?
मैं मन ही मन में डर गई कि कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं है? कहीं मैं
पूर्ण रूप से औरत हूँ भी या नहीं?
अब मैं किससे पूछती? मेरी सारी सहेलियाँ तो कुंवारी थी।
फिर मैं वापिस पीहर आ गई, पढ़ने लगी। मेरा काम यही था, गर्मी की छुट्टियों
में ससुराल जाकर चुदना और फिर वापिस आकर पढ़ना। मेरे पति भी चेन्नई
फेक्टरी में काम पर चले जाते, छुट्टियों में आ जाते।
अब मैं कॉलेज में प्राइवेट पढ़ने लग गई, तब मुझे पता चला कि मुझे आनन्द
क्यूँ नहीं आता है।

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Re: अधूरी जवानी बेदर्द कहानी

Unread post by 007 » 07 Nov 2014 08:36

मेरे पति मुझे सेक्स के लिए तैयार करते नहीं थे, सीधे
ही चोदने लग जाते थे और मुझे कुछ आनन्द आने लगता तब तक वो ढेर हो जाते।
रात में सेक्स 5-7 बार करते, पर वही बात रहती।
फिर मैंने उनको समझाया- कुछ मेरा भी ख्याल करो, मेरे स्तन दबाओ, कुछ हाथ फिराओ !
अब तक मैंने कभी उनके लण्ड को कभी हाथ भी नहीं लगाया था, अब मैंने भी
उनके लण्ड को हाथ में पकड़ा तो वो फुफकार उठा। उन्होंने मेरे स्तन दबाये
पेट और जांघों पर चुम्बन दिए, चूत के तो नजदीक भी नहीं गए।
मैंने भी मेरी जिंदगी में कभी लण्ड के मुँह नहीं लगाया था, मुझे सोच के
ही उबकाई आती थी, अबकी बार उन्होंने चोदने का आसन बदला, अब तक तो वो
सीधे-सीधे ही चोदते थे, इस बार उन्होंने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी और
लण्ड घुसा दिया और हचक-हचक कर चोदने लगे।
मेरी टांगें मेरे सर के ऊपर थी, मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी पर चमत्कार
हो गया, मुझे आनन्द आ रहा था, उनका सुपारा सीधे मेरी बच्चेदानी पर ठोकर
लगा रहा था, मुझे लग रही थी पर आनन्द बहुत आया।
इस बार जब उन्होंने अपने माल को मेरी चूत में भरा तो मैं संतुष्ट थी। फिर
मैंने अपनी टांगें ऊपर करके ही चुदाया, मुझे मेरे आनन्द का पता चल चुका
था। फिर मेरे गर्भ ठहर गया, सितम्बर, 2000 में मेरे बेटा हो गया।
बेटा होने के बाद कुछ विशेष नहीं हुआ ! मैं प्राइवेट पढ़ती रही, मेरे पति
साल में एक बार आते तब मैं ससुराल चली जाती और मेरे पति महीने डेढ़ महीने
तक रहते, मैं उनके साथ रहती और जब वे वापिस चेन्नई जाते तो मैं अपने पीहर
आ जाती। इसका कारण था कई लोंगो की मेरे ऊपर पड़ती गन्दी नज़र !
मेरे ससुराल में खेती थी, जब फसल आती तो वे मुझे मेरा हिस्सा देने के लिए
बुलाते थे। लेकिन ज्यादातर मैं शाम को मेरे पीहर आ जाती थी।
एक बार मुझे रात को रुकना पड़ा, मैं मेरे घर पर अकेली थी, मेरे जेठों के
घर आस पास ही थे, मेरी जिठानी ने कहा- तू अकेली कैसे सोएगी? डर जाएगी तू
! मेरे बेटे को अपने घर ले जा !
मेरे जेठ का बेटा करीब 18-19 साल का था, मैं 27 की थी, मैंने सोचा बच्चा
है, इसको साथ ले जाती हूँ !
खाना खाकर हम लेट गए, बिस्तर नीचे ही पास-पास लगाए हुए थे, थोड़ी देर
बातें करने के बाद मुझे नींद आ गई !
आधी रात को अचानक मेरी नींद खुल गई, मेरे जेठ का बेटा मेरे पास सरक आया
था और एक हाथ से मेरा एक वक्ष भींच रहा था और दूसरे वक्ष को अपने मुँह
में ले रहा था, हालाँकि ब्लाउज मैंने पहना हुआ था।
मेरे गुस्से का पार नहीं रहा, मैं एक झटके में खड़ी हो गई, लाइट जलाई और
उसे झंजोड़ कर उठा दिया !
मेरे गुस्से की वजह से मुंह से झाग निकल रहे थे, वो आँखें मलता हुआ पूछने
लगा- क्या हुआ काकी?
मुझे और गुस्सा आया मैंने कहा- अभी तू क्या कर रहा था?
पठ्ठा बिल्कुल मुकर गया और कहा- मैं तो कुछ नहीं कर रहा था।
मैंने उसको कहा- अपने घर जा !
वो बोला- इतनी रात को?
मैंने कहा- हाँ !
उसका घर सामने ही था, वो तमक कर चला गया और मैं दरवाजा बंद करके सो गई।
सुबह मैंने अपनी जेठानी उसकी माँ को कहा तो वो हंस कर बात को टालने लगी,
कहा- इसकी आदत है ! मेरे साथ सोता है तो भी नींद में मेरे स्तन पीता है।
मैंने कहा- अपने पिलाओ ! आइन्दा मेरे घर सुलाने की जरुरत नहीं है !
मुझे उसके कुटिल इरादों की कुछ जानकारी मिल गई थी। उसकी माँ चालू थी,
गाँव वालों ने उसे मुझे पटाने के लिए लालच दिया था इसलिए वो अपने बेटे के
जरिए मेरी टोह ले रही थी। उसे पता था उसके देवर को गए दस महीने हो गए थे,
शायद यह पिंघल जाये पर मैं बहुत मजबूत थी अपनी इज्जत के मामले में !
इससे पहले कईयों ने मुझ पर डोरे डाले थे, मेरे घर के पास मंदिर था, उसमें
आने का बहाना लेकर मुझे ताकते रहते थे। उनमें एक गाँव के धन्ना सेठ का
लड़का भी था जिसने कहीं से मेरे मोबाइल नंबर प्राप्त कर लिए और मुझे बार
बार फोन करता। पहले मिस कॉल करता, फिर फोन लगा कर बोलता नहीं ! मैं इधर
से गालियाँ निकलती रहती।
फिर एक दिन हिम्मत कर उसने अपना परिचय दे दिया और कहा- मैं तुमको बहुत
चाहता हूँ इसलिए बार बार मंदिर आता हूँ।
मैंने कहा- तुम्हारे बीवी, बच्चे हैं, शर्म नहीं आती !
फिर भी नहीं माना तो मैंने उसको कहा- शाम को मंदिर में आरती के समय
लाऊडस्पीकर पर यह बात कह दो तो सोचूँगी।
तो उस समय तो हाँ कर दी फिर शाम को उसकी फट गई। फिर उसने कहा- मुझे आपकी
आवाज बहुत पसंद है, आप सिर्फ फोन पर बात कर लिया करें। मैं कुछ गलत नहीं
बोलूँगा। मैंने कहा- ठीक है ! जिस दिन गलत बोला, बातचीत कट ! और मेरा मूड
होगा या समय होगा तो बात करुँगी।
यह सुनते ही वो मुझे धन्यवाद देने लगा और रोने लगा और कहने लगा- चलो मेरे
लिए इतना ही बहुत है ! कम से कम आपकी आवाज तो सुनने को मिलेगी !
मैं बोर होने लगी और फोन काट दिया। उसके बाद वो दो चार दिनों के बाद फोन
करता, मेरा मूड होता तो बात करती वर्ना नहीं ! वो भी कोई गलत बात नहीं
करता, मेरी तारीफ
करता। इससे मुझे कोई परेशानी नहीं थी।
मेरा पति चेन्नई से नौकरी छोड़ कर आ गया था। मेरा बी.ए. हो चुका था, मैंने
गाँव में स्कूल ज्वाइन कर लिया, टीचर बन गई वहाँ भी और टीचर मुझ पर लाईन
मारते, पर मैंने किसी को घास नहीं डाली।
फिर मेरे पति को वापिस चेन्नई बुला लिया तो चले गए तो मैंने भी स्कूल छोड़
दिया और पीहर आ गई !
जब भी मेरे बड़े जीजाजी अजमेर आते तो मुझसे हंसी मजाक करते थे, मैं मासूम
थी, सोचती थी कि मैं छोटी हूँ इसलिए मेरा लाड करते हैं। वे कभी यहाँ-वहाँ
हाथ भी रख देते थे तो मैं ध्यान नहीं देती थी। कभी वो मुझे अपनी बाँहों
में उठा कर कर मुझे कहते थे- अब तुम्हारा वजन बढ़ गया है !
मेरे जीजाजी करीब 46-47 साल के हैं 5'10" उनकी लम्बाई है, अच्छी बॉडी है,
बाल उनके कुछ उड़ गए हैं फिर भी अच्छे लगते हैं। पर मैंने कभी उनको उस नजर
से नहीं देखा था मैंने उनको सिर्फ दोस्त और बड़ा बुजुर्ग ही समझा था।
इस बीच में कई बार मैं अपनी दीदी के गाँव गई। वहाँ जीजा जी मुझसे मजाक
करते रहते, दीदी बड़ा ध्यान रखती, मुझे कुछ गलत लगता था नहीं।
फिर एक बार जीजा जी मेरे पीहर में आये, दीदी नहीं आई थी।
वे रात को कमरे में लेटे थे, टीवी देख रहे थे। मेरे पापा मम्मी दूसरे
कमरे में सोने चले गए। मेरी मम्मी ने आवाज दी- आ जा ! सो जा !
मेरा मनपसंद कार्यक्रम आ रहा था तो मैंने कहा- आप सो जाओ, मैं बाद में आती हूँ।
जीजा जी चारपाई पर सो रहे थे, उसी चारपाई पर बैठ कर मैं टीवी देख रही थी।
थोड़ी देर में जीजाजी बोले- बैठे-बैठे थक जाओगी, ले कर देख लो।

मैंने कहा- नहीं !
उन्होंने दोबारा कहा तो मैंने कहा- मुझे देखने दोगे या नहीं? नहीं तो मैं
चली जाऊँगी। थोड़ी देर तो वो लेटे रहे, फ़िर वे मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपने
साथ लिटाने की कोशिश करने लगे।

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Re: अधूरी जवानी बेदर्द कहानी

Unread post by 007 » 07 Nov 2014 08:37


मैंने उनके हाथ झटके और खड़ी हो गई। वो डर गए। मैंने टीवी बंद किया और
माँ के पास जाकर सो गई।
सुबह चाय देने गई तो वो नज़रें चुरा रहे थे। मैंने भी मजाक समझा और इस बात
को भूल गई। फिर जिंदगी पहले जैसी हो गई। फिर मैं वापिस गाँव गई, मेरे पति
आये हुए थे।
अब स्कूल में तो जगह खाली नहीं थी पर मैं एम ए कर रही थी और गाँव में
मेरे जितना पढ़ा-लिखा कोई और नहीं था, सरपंच जी ने मुझे आँगन बाड़ी में लगा
दिया, साथ ही अस्पताल में आशा सहयोगिनी का काम भी दे दिया।
फिर एक बार तहसील मुख्यालय पर हमारे प्रशिक्षण में एक अधिकारी आये,
उन्होंने मुझे शाम को मंदिर में देखा था, और मुझ पर फ़िदा हो गए।
मैंने उनको नहीं देखा !
फिर उनका एक दिन फोन आया, मैंने पूछा- कौन हो तुम?
उन्होंने कहा- मैं उपखंड अधिकारी हूँ, आपके प्रशिक्षण में आया था !

मैंने कहा- मेरा नंबर कहाँ से मिला?
उन्होंने कहा- रजिस्टर में नाम और नंबर दोनों मिल गए !
मैंने पूछा- काम बोलो !
उन्होंने कहा- ऐसे ही याद आ गई !
मैंने सोचा कैसा बेवकूक है !
खैर फिर कभी कभी उनका फोन आता रहता ! फिर मेरा बी.एड. में नंबर आ गया और
मैंने वो नौकरी भी छोड़ दी। फिर उनका तबादला भी हो गया, कभी कभी फोन आता
लेकिन कभी गलत बात उन्होंने नहीं की।
एक बार बी.एड. करते मैं कॉलेज की तरफ से घूमने अभ्यारण गई तब उनका फोन
आया। मैंने कहा- भरतपुर घूमने आए हैं।
तो वो बड़े खुश हुए, उन्होंने कहा- मैं अभी भरतपुर में ही एस डी एम लगा
हुआ हूँ, मैं अभी तुमसे मिलने आ सकता हूँ क्या?
मैंने मना कर दिया, मेरे साथ काफी लड़कियाँ और टीचर थी, मैं किसी को बातें
बनाने का अवसर नहीं देना चाहती थी और वो मन मसोस कर रह गए !
फिर काफ़ी समय बाद उनका फोन आया और उन्होंने कहा- आप जयपुर आ जाओ, मैं
यहाँ उपनिदेशक लगा हुआ हूँ, यहाँ एन जी ओ की तरफ से सविंदा पर लगा देता
हूँ, दस हज़ार रुपए महीना है।
मैंने मना कर दिया। वे बार बार कहते कि एक बार आकर देख लो, तुम्हें कुछ
नहीं करना है, कभी कभी ऑफिस में आना है।

मैंने कहा- सोचूँगी !
फिर बार बार कहने पर मैंने अपनी डिग्रियों की नकल डाक से भेज दी।
फिर उनका फोन आया- आज कलेक्टर के पास इंटरव्यू है !
मैं नहीं गई।
उन्होंने कहा- मैंने तुम्हारी जगह एक टीचर को भेज दिया है, तुम्हारा नाम
फ़ाइनल हो गया है, किसी को लेकर आ जाओ।
मैं मेरे पति को लेकर जयपुर गई उनके ऑफिस में ! वो बहुत खुश हुए, हमारे
रहने का इंतजाम एक होटल में किया, शाम का खाना हमारे साथ खाया।
मेरे पति ने कहा- तुम यह नौकरी कर लो !
दो दिन बाद हम वापिस आ गए। साहब ने कहा था कि अपने बिस्तर वगैरह ले आना,
तब तक मैं तुम्हारे लिए किराये का कमरे का इंतजाम कर लूँगा।
10-12 दिनों के बाद मेरे पति चेन्नई चले गए और मैं अपने पापा के साथ
जयपुर आ गई। साहब से मिलकर में पापा ने भी नौकरी करने की सहमति दे दी।
मैं मेरे किराये के कमरे में रही, एक रिटायर आदमी के घर के अन्दर था कमरा
जिसमें वो, उसके दो बेटे-बहुएँ, पोते-पोतियों के साथ रहता था। मकान में 5
कमरे थे जिसमें एक मुझे दे दिया गया। बुजुर्ग व्यक्ति बिल्कुल मेरे पापा
की तरह मेरा ध्यान रखते थे।
मैं वहाँ नौकरी करने लगी। कभी-कभी ऑफिस जाना और कमरे पर आराम करना, गाँव
जाना तो दस दस दिन वापिस ना आना !
साहब ने कह दिया कि तनख्वाह बनने में समय लगेगा, पैसे चाहो तो उस एन जी ओ
से ले लेना, मेरे दिए हुए हैं।
मैंने 2-3 बार उससे 3-3 हजार रूपये लिए। साहब सिर्फ फोन से ही बात करते,
मीटिंग में कभी सामने आते तो मेरी तरफ देखते ही नहीं। फिर मेरा डर दूर हो
गया कि साहब कुछ गड़बड़ करेंगे। वो बहुत डरपोक आदमी थे, वो शायद सोचते कि
मैं पहल करुँगी और मेरे बारे में तो आप जानते ही हैं !
फिर मैंने कई बार जीजा जी से बात की, उन्हें उलाहना दिया कि मैं यहाँ
नौकरी कर रही हूँ और आप आकर एक बार भी मिले ही नहीं।

तो जीजा आजकल, आजकल आने का कहते रहे, टालते रहे।
मैंने कहा- घूमने ही आ जाओ दीदी को लेकर !
दीदी को कहा तो दीदी ने कहा- बच्चे स्कूल जाते हैं, मैं तो नहीं आ सकती,
इनको भेज रही हूँ !
एक दिन जीजा ने कहा- मैं आ रहा हूँ !
मैंने उस होटल वाले को कमरा खाली रखने का कह दिया जहाँ मैं और मेरे पति
साहब के कहने पर रुके थे क्यूंकि मेरा कमरा छोटा था। वो होटल वाला साहब
का खास था, उसने हमसे किराया भी नहीं लिया था।
और अब भी उसने यही कहा- आपके जीजा जी से भी कोई किराया नहीं लूँगा ! उनके
लिए ए.सी. रूम खाली रख दूँगा।
उसके होटल 2-3 ए.सी. रूम थे।

मैंने कहा- ठीक है !
जीजा जी आए मेरे कमरे पर, दोपहर हो रही थी, खाना मैंने बना रखा था, खाना
खाकर हए एक ही बिस्तर पर एक दूसरे की तरफ़ पैर करके लेट गए।
शाम हुई तो हम घूमने के लिए निकले।
मैंने कहा- साहब के पहचान वाले के होटल चलते हैं, घूमने के लिए बाइक ले लेते हैं।
उसको साहब का कहा हुआ था, उसके लिए तो मैं ही साहब थी, मेरे रिश्तेदार
आएँ तो भी उसको सेवा करनी ही थी होटल में ठहराने से लेकर खाना खिलाने की
भी !

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