एक बार ऊपर आ जाईए न भैया compleet

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The Romantic
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Re: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:11

वो आआह्ह्ह आअह्ह्ह्ह्ह कर रही थी और मस्ती से चूद भी रही थी, बोली "आप लड़का हैं कि भिअया हैं मेरे....?" मैंने बोला, "भैया और सैंया में बस हल्के से मात्रा का फ़र्क है, थोड़ा ठीक से पूकारो जान।" वो चूदाई से गर्मा गई थी, बोली, "हाँ रे मेरे बहनचोद....भैया, अब तो तुम मेरा सैयां हो ही गया है और हम तुम्हारी सजनी.. इइइस्स .आआह्ह्ह, इइस्स्स्स उउउउउउउ आआह्ह्ह्ह्ह भैया बहुत मजा आ रहा है और अपना सिर नीचे झुका कर तकिए पर टिका ली। उसका कमर अब ऊपर ऊठ गया था और मुझे भी अपने को थोड़ा सा घुटने से ऊपर उठाना पड़ा ताकि सही तरीके से जड़ तक उसकी बूर को लन्ड से मथ सकूँ। उसके बूर में से फ़च फ़च, फ़च फ़च आवाज निकल रहा था। बूर पूरा से पनिआया हुआ था। मेरे जाँघ के उसके चुतड़ पर होने वाले टक्कर से थप-थप की आवाज अलग निकल रही थी। मैं बोला, "तुम्हारा बूर कैसे फ़च-फ़च बोल रहा है सुन रही हो...", वो हाँफ़ते हुए जवाब दी, "सब सुन रहे हैं... कैसा कैसा आवाज हो रहा है, कितना आवाज कर रहे हैं बाहर भी सुनाई दे रहा होगा।" मैंने कहा, "तो क्या हुआ, जवान लड़का-लड़की रूम में हैं तो यह सब आवाज होगा हीं..." और तभी मुझे लगा कि अब मैं खलास होने वाला हूँ, सो मैंने कहा, " अब मेरा निकलेगा, सो अब हम बाहर खींच रहे हैं तुम जल्दी से सीधा लेट जाना तुम्हारे ऊपर हीं निकालेगें, जैसे ब्लू फ़िल्म की हीरोईन सब निकलवाती है वैसे ही।" मेरे लन्ड को बाहर खीचते हीं पिचकारी छुटने को हो आया, तो मैं उसको बोला, "मुँह खोल कुतिया जल्दी से..." बिना कुछ समझे वो अपना मुँह खोली और मैंने अपना लन्ड उसकी मुँह में घुसेड़ दिया औरुसके सर को जोर से अपने लन्ड पर दबा दिया। वो अपना मुँह से लन्ड निकालने के लिए छ्टपटाई... पर मेरे जकड़ से नहीं छूट सकी और इसी बीच मेरे लन्ड ने झटका दिया और माल स्वीटी की मुँह के अंदर, एक के बाद एक कुल पाँच झटके, और करीब दो बड़ा चम्मच माल उसके मुँह को भर दिया और कुछ अब बाहर भी बह चला। स्वीटी के न चाहते हुए भी कुछ माल तो उसके पेट में चला हीं गया था। मैं अब पूरी तरह से संतुष्ट था। स्वीटी अब फ़िर अजीब सा मुँह बना रही थी... फ़िर आखिर में समझ गई कि क्या हुआ है तो उसके बाद बड़े नाज के साथ बोली, "हरामी कहीं के....एक जरा सा दया नहीं आया, बहन को पूरा रंडी बना दिए.... बेशर्म कहीं के, हटो अब..." और एक तौलिया ले कर बाथरुम की तरफ़ चली गई। मुझे लगा कि वो नाराज हो गई है मेरे इस आखिरी बदमाशी से, पर ठीक बाथरूम के दरवाजे पर जा कर वो मुड़ी और मुझे एक फ़्लाईंग किस देते हुए दरवाजा बन्द कर ली।

करीब २० मिनट के बाद स्वीटी नहा कर बाहर आई, तौलिया उसके सर पर लिपटा हुआ था और वो पूरी नंगी हीं बाहर आई और फ़िर मुझे बोली, "अब जाइए और आप भी जल्दी तैयार हो जाइए, कितना देर हो गया है, गुड्डी अब आती होगी, आज तो अंकल-आँटी के लौटने का दिन है।" मैं उठा और बाथरूम की तरफ़ जाते हुए कहा, "हाँ ७ बजे शाम की ट्रेन है।" स्वीटी तब अपने बाल को तौलिए से सुखा रही थी। करीब ९ बजे हम दोनों तैयार हो कर कमरे से बाहर निकले, तब तक प्रीतम जी का परिवार भी तैयार हो गया था। गुड्डी उसी मंजिल पर एक और बंगाली परिवार टिका हुआ था उसी परिवार की एक लड़की से बात कर रही थी। उसको अगले साल बरहवीं की परीक्षा देनी थी और वो लड़की गुड्डी से इंजीनियरींग के नामाकंन प्रक्रिया के बारे में समझ रही थी। हम सब फ़िर साथ हीं नास्ता करके फ़िर घुमने का प्रोग्राम बना कर एक टैक्सी ले कर निकल गए। दिन भर में हम पहले एक प्रसिद्ध मंदिर गए और फ़िर एक मौल में चले गए। सब लोग कुछ=कुछ खरीदारी करने लगे। दोनों लड़कियों ने एक-एक जीन्स पैन्ट खरीदी और फ़िर एक ब्रैन्डेड अंडर्गार्मेन्ट्स की दुकान में चली गई। हम सब अब बाहर हीं रूक गए। फ़िर हम सब ने वहीं दिन का लंच लिया और फ़िर करीब ४ बजे होटल लौट आए। आज शाम ७ बजे प्रीतम जी और उनकी पत्नी लौट रहे थे, मेरा टिकट कल का था। थोड़ी देर में गुड्डी हमारे कमरे में आई और एक छोटा सा बैग रख गई जो उसका था और साथ में हम दोनों को बताई कि उसका इरादा आज होस्टल जाने का नहीं है। आज रात वो हमारे साथ रुकने वाली है और फ़िर कल दोनों सखियाँ साथ में हीं होस्टल जाएँगी। मेरी समझ में आ गया कि अब आज रात मेरा क्या होने वाला था। बस एक हीं हौसला था कि स्वीटी समझदार है और वो मुझे अब परेशान नहीं करेगी। वैसे भी उसका इरादा अब क्यादा सेक्स करने का नहीं था। ६ बजे के करीब हम सब स्टेशन आ आ गए और फ़िर प्रीतम जी को ट्रेन पर चढ़ा दिया। वो और उनकी बीवी अपनी बेटी को हजारों बात समझा रहे थे, पर मुझे पता था कि उसको कितना बात मानना था। खैर ठीक समय से ट्रेन खुल गई और हम सब वापस चल दिए।

रास्ते में हीं हमने रात का खाना भी खाया। वहीं खाना खाते समय हीं गुड्डी ने अपना इरादा जाहिर कर दिया, "आज रात सोने के पहले तीन बार सेक्स करना होगा मेरे साथ, मैं देख चुकी हूँ कि तुमको लगातार तीन बार करने के बाद भी कोई परेशानी नहीं होती है।" फ़िर उसने स्वीटी से कहा, "क्यो स्वीटी, तुम्हें परेशानी नहीं न है अगर मैं आज रात मैं तुम्हारे भैया के साथ सेक्स कर लूँ"। स्वीटी का जवाब मेरे अंदाजे के हिसाब से सही थी, "नहीं, हम तो जितना करना था कर लिए, अब भैया जाने तुम्हारे साथ के बारे में।" ९.३० बजे हम लोग अपने कमरे पर आ गए। और आने के बाद स्वीटी ड्रेस बदलने लगी पर गुड्डी आराम से अपने कपड़ी उतारने लगी और मुझे कहा कि मैं अभी रूकूँ। गुड्डी ने आज गुलाबी सलवार सूट पहना हुआ था। पूरी तरह से नंगी होने के बाद उसका गोरा बदन उस कमरे की जगमगाती रोशनी में दमक रहा था। काली घुँघराली झाँट उसकी बूर की खुबसूरती में चार चाँद लगा रही थी। वो आराम से नंगे हीं मेरे पास आई और फ़िर मेरे टी-शर्ट फ़िर गंजी और इसके बाद मेरा जीन्स उतार दिया। फ़िर जमीन पर घुटनों के सहारे बैठ गई और मेरा फ़्रेन्ची नीचे सरार कर मुझे भी नंगा कर दिया। स्वीटी भी अब बाथरूम से आ गयी थी और विस्तर पर बैठ कर हम दोनों को देख रही थी, "तुमको भी न गुड्डी, जरा भी सब्र नहीं हुआ..."। गुड्डी ने उसको जवाब दिया, "अरे अब सब्र का क्या करना है, तीन बार सेक्स करने में बारह बज जाएगा, अभी से शुरु करेंगे तब... फ़िर सोना भी तो है। दिन भर घुम घाम कर इतना थक गई हूँ।" स्वीटी बोली, "वही तो मेरा तो अभी जरा भी मूड नहीं है इस सब के लिए...."।

गुड्डी मेरा लन्ड चूसना शुरु कर दी थी। मैंने कहा, "तुम लोग थक गई और मेरे बारे में कुछ विचार नहीं है...", गुड्डी बोली, "ज्यादा बात मत बनाओ मुफ़्त में दो माल मिल गई है मारने के लिए तो स्टाईल मार रहे हो... नहीं तो हमारी जैसी को चोदने के लिए दस साल लाईन मारते तब भी मैं लाईन नहीं देती, क्यों स्वीटी...?" फ़िर हम सब हँसने लगे और मैंने गुड्डी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसको जमीन से उठाया और फ़िर उसके होठ को चुमते हुए उसको बिस्तर पर ले आया। स्वीटी एक तरफ़ खिसक गई तो मैंने गुड्डी को वही लिटा दिया और फ़िर उसकी चूचियों को सहलाते हुए उसकी बूर पर अपना मुँह भिरा दिया। झाँट को चाट-चाट कर गिला कर दिया और फ़िर उसके जाँघों को फ़ैला कर उसकी बूर के भीतर जीभ ठेल कर नमकीन चिपचिपे पानी का मजा लिया। उसकी सिसकी निकलनी शुरु हो गई तो मैं उठा और फ़िर उसके जाँघ के बीच बैठ कर अपने खड़े लन्ड को उसकी फ़ाँक पर लगा कर दबा दिया। इइइइइइइस्स्स्स की आवाज उसके मुँह से निकली और मेरा ८" का लन्ड उसकी बूर के भीतर फ़िट हो गया था। मैंने झुक कर उसके होठ से होठ भिरा दिए और फ़िर अपनी कमर चलानी शुरु कर दी। वो अब मस्त हो कर चूद रही थी और बगल में बैठी मेरी बहन सब देख रही थी। मेरी जब स्वीटी से नजर मिली तो उसने कहा, "इस ट्रिप पर आपकी तो लौटरी निकल आई है भैया, कहाँ तो सिर्फ़ मेरा हीं मिलने वाला था, वो भी अगर आप हिम्मत करते तब, और कहाँ यह गुड्डी मिल गई है जो लगता है सिर्फ़ सेक्स के लिए हीं बनी है।" मैं थोड़ा झेंपा, पर बात सच थी। मैंने उसकी परवाह छोड़ कर गुड्डी की चुदाई जारी रखी। आअह्ह्ह्ह आआह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह आह्ह्ह आह्ह्ह्ह...हुम्म्म हुम्म्म हुम्म्म... हम दोनों अब पूरे मन से सिर्फ़ और सिर्फ़ एक दूसरे के बदन का सुख भोगने में लगे हुए थे।

करीब १० मिनट की धक्कम-पेल के बाद मैं खलास होने के करीब आ गया, मैंने अपना लण्ड बाहर खींच लिया। गुड्डी भी शायद समझ गई थी फ़िर वो बोली, "अरे निकाले क्यों मेरे भीतर हीं गिरा लेते, अभी तो आज तक कोई डर नहीं है आज तो तीसरा दिन ही है... खैर मेरे मुँह में गिराओ... आओ" और उसने अपना मुँह खोल दिया तो मैं अपना लण्ड उसके मुँह में दे दिया। वो अब अपना मुँह को थोड़ा जोर से लन्ड पर दाब कर आगे-पीछे करने लगी तो लगा जैसे म्रेरे लन्ड का मूठ मारा जा रहा है। साली जब की चीज थी... बेहतरीन थी सेक्स करने में। ८-१० बार में हीं पिचकारी छूट गया और वो आराम से शान्त हो कर मुँह खोल कर सब माल मुँह में ले कर निगल गई। एक बूँद बेकार नहीं हुआ। स्वीटी यह सब देख कर बोली, "छी: कैसे तुम यह सब खा लेती हो, गन्दी कहीं की..."। गुड्डी हँसते हुए बोली, "जब एक बार चस्का लग जाएगा तब समझ में आएगा, पहली बार तो मैगी का स्वाद भी खराब हीं लगता है सब को। अब थोड़ा आराम कर लो..." कहते हुए वो उठी और पानी पीने चली गई। मुझे पेशाब महसूस हुआ तो मैं भी बिस्तर से उठा तो वो बोली, "किधर चले, अभी दो राऊन्ड बाकि है..."। मैं बोला, "आ रहा हूँ, पेशाब करके..." तब वो बोली मैं भी चल रही हूँ। हम दोनों साथ साथ हीम एक-दूसरे के सामने दिखा कर पेशाब किए। तभी मैंने गुड्डी से कहा कि एक बार स्वीटी को भी बोलो ना आ कर पेशाब करे, मैं भी तो देखूँ उसके बूर से धार कैसे निकलती है।" गुड्डी हँसते हुए बोली, "देखे नही क्या, बहन है तुम्हारी" और फ़िर वहीं से आवाज लगाई, "स्वीटी...ए स्वीटी, जरा इधर तो आओ।" स्वीटी भी यह सुन कर आ गई तो गुड्डी बोली, "जरा एक बार तुम भी पेशाब करके अपने भैया को दिखा दो, बेचारे का बहुत मन है कि देखे कि उसकी बहन कैसे मूतती है।" हमारी चुदाई का खेल देख कर स्वीटी गर्म न हुई हो ऐसा तो हो नहीं सकता था, आखिर जवान माल थी वो। हँसते हुए वो अपना नाईटी उठाने लगी तो मैं हीं बोला, "पूरा खोल हीं दो न... एक बार तुम्हारे साथ भी सेक्स करने का मन है मेरा और तुम तो सुबह बोली थी कि आज तुम हमको मना नहीं करोगी, जब और जितना बार हम कहेंगे, चुदाओगी।"




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Re: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:13

एक बार ऊपर आ जाईए न भैया--5

स्वीटी ने मुझसे नजरें मिलाई और बोली, "बदमाश..." और फ़िर एक झटके में नाईटी अपने बदन से निकाल दी। ब्रा पहनी नहीं थी सो पैन्टी भी पूरी तरह से निकाल दी और फ़िर टायलेट की सीट पर बैठी, तो मैं बोला, "अब दिखा रही हो तो नीचे जमीन पर बैठ के दिखाओ न, अच्छे से पता चलेगा, नहीं तो कमोड की सीट से क्या समझ में आएगा।" स्वीटी ने फ़िर मेरे आँखों में आँखें डाल कर कहा, "गुन्डा कहीं के..." और जैसा मैं चाह रहा था मेरे सामने नीचे जमीन पर बैठ गई और बोली, "अब पेशाब आएगा तब तो..." और मेरी नजर उसकी खुली हुई बूर की फ़ाँक पर जमी हुई थी। गुड्डी भी सामने खड़ी थी और मैं था कि स्वीटी के ठीक सामने उसी की तरह नीचे बैठा था अपने लन्ड को पेन्डुलम की तरह से लटकाए। करीब ५ सेकेन्ड ऐसे बैठने के बाद एक हल्की सी सर्सराहट की आवाज के साथ स्वीटी की बूर से पेशाब की धार निकले लगी। मेरा रोआँ रोआँ आज अपनी छोटी बहन के ऐसे मूतते देख कर खिल गया। करीब आधा ग्लास पेशाब की होगी मेरी बहन, और तब उसका पेशाब बन्द हुआ तो दो झटके लगा कर उसने अपने बूर से अंतिम बूँदों को भी बाहर किया और फ़िर उठते हुए बोली, "अब खुश..."। मैंने उसको गले से लगा लिया, "बहुत ज्यादा..." और वहीं पर उसको चूमने लगा। मेरा लन्ड उसकी पेट से चिपका हुआ था। वैसे भी मेरे से लम्बाई में १०" छोटी थी वो। मैंने उसको अपने गोद में उठा लिया और फ़िर उसको ले कर बिस्तर पर आ गया। फ़िर मैंने गुड्डी को देखा जो हमारे पीछे-पीछे आ गई थी तो उसने मुझे इशारा किया को वो इंतजार कर सकती है, मैं अब स्वीटी को चोद लूँ।

मैंने स्वीटी को सीधा लिटा दिया और सीधे उसकी बूर पर मुँह रखने के लिए झुका। वो अपने जाँघों को सिकोड़ी, "छी: वहाँ पेशाब लगा हुआ है।" गुड्डी ने अब स्वीटी को नसीहत दिया, "अरे कोई बात नहीं है दुनिया के सब जानवर में मर्दजात को अपनी मादा का बूर सूँघने-चाटने के बाद हीं चोदने में मजा आता है। लड़की की बूर चाटने के लिए तो ये लोग दंगा कर लेंगे, अगर तुम किसी चौराहे पर अपना बूर खोल के लेट जाओ।" मैंने ताकत लगा कर उसका जाँघ फ़ैला दिया और फ़िर उसकी बूर से निकल रही पेशाब और जवानी की मिली-जुली गंध का मजा लेते हुए उसकी बूर को चूसने लगा। वो तो पहले हीं मेरे और गुड्डी की चुदाई देख कर पनिया गई थी, सो मुझे उसके बूर के भीतर की लिसलिसे पदार्थ का मजा मिलने लगा था। वो भी अब आँख बन्द करके अपनी जवानी का मजा लूटने लगी थी। गुड्डी भी पास बैठ कर स्वीटी की चूची से खेलने लगी और बीच-बीच में उसके निप्पल को चूसने लगती। स्वीटी को यह मजा आज पहली बार मिला था। दो जवान बदन आज उसकी अल्हड़ जवानी को लूट रहे थे। अभी ताजा-ताजा तो बेचारी चूदना शुरु की थी और अभी तक कुल जमा ४ बार चूदी थी और इस पाँचवीं बार में दो बदन उसके जवानी को लूटने में लगे थे। जल्दी हीं मैंने उसके दोनों पैरों को उपर उठा कर अपने कन्धे पर रख लिया और फ़िर अपना फ़नफ़नाया हुआ लन्ड उसकी बूर से भिरा कर एक हीं धक्के में पूरा भीतर पेल दिया। उसके मुँह से चीख निकल गई। अभी तक बेचारी के भीतर प्यार से धीर-धीरे घुसाया था, आज पहली बार उसकी बूर को सही तरीके से पेला था, जैसे किसी रंडी के भीतर लन्ड पेला जाता है। मैंने उसको धीरे से कहा, "चिल्लाओ मत...आराम से चुदाओ..."। वो बोली, "ओह आप तो ऐसा जोर से भीतर घुसाए कि मत पूछिए...आराम से कीजिए न, भैया..."। मैंने बोला, "अब क्या आराम से.. इतना चोदा ली और अभी भी आराम से हीं चुदोगी, हम तुम्हारे भाई हैं तो प्यार से कर रहे थे, नहीं तो अब अकेले रहना है, पता नहीं अगला जो मिलेगा वो कैसे तुम्हारी मारेगा। थोड़ा सा मर्दाना झटका भी सहने का आदत डालो अब" और इसके बाद जो खुब तेज... जोरदार चुदाई मैंने शुरु कर दी।

करीब ५ मिनट वैसे चोदने के बाद मैंने उसके पैर को अपने कमर पे लपेट दिया और फ़िर से उसको चोदने लगा। करीब ५ मिनट की यह वाली चुदाई मैंने फ़िर प्यार से आराम से की, और वो भी खुब सहयोग कर के चुदवा रही थी। इसके बाद मैनें उसके दोनों जाँघों के भीतरी भाग को अपने दोनों हाथों से बिस्तर पर दबा दिया और फ़िर उसकी बूर में लन्ड के जोरदार धक्के लगाने शुरु कर दिए। जाँघों के ऐसे दबा देने से उसका बूर अपने अधिकतम पर फ़ैल गया था और मेरा लन्ड उसके भीतर ऐसे आ-जा रहा था जैसे वो कोई पिस्टन हो। इस तरह से जाँघ दबाने से उसको थोड़ी असुविधा हो रही थी और वो मजा और दर्द दोनों हीं महसूस कर रही थी। वो अब आआह्ह्ह्ह आआह्ह्ह्ह कर तो रही थी, पर आवाज मस्ती और कराह दोनों का मिला-जुला रूप था। मैंने उसके इस असुविधा का बिना कुछ ख्याल किए चोदना जारी रखा और करिब ५ मिनट में झड़ने की स्थिति में आ गया। मेरा दिल कर रहा था कि मैं उसकी बूर के भीतर हीं माल निकाल दू~म, पर फ़िर मुझे उसका सुबह वाला चिन्तित चेहरा याद आ गया तो दया आ गई और मैंने अपना लन्ड बाहर खींचा और उसकी नाभी से सटा कर अपना पानी निकाल दिया। पूरा एक बड़ा चम्मच निकला था इस बार। मैं थक कर हाँफ़ रहा था और वो भी दर्द से राहत महसूस करके शान्त पड़ गई थी। मैंने पूछा, "तुमको मजा मिला, हम तो इतना जोर-जोर से धक्का लगाने में मशगुल थे कि तुम्हारे बदन का कोई अंदाजा हीं नहीं मिला।" हाँफ़ते हुए उसने कहा, "कब का... और फ़िर बिस्तर पर पलट गई। बिस्तर की सफ़ेद चादर पर दो जगह निशान बन गया, एक तो उसकी बूर के ठीक नीचे, क्योंकि जब वो चुद रही थी तब भी उसकी पनियाई बूर अपना रस बहा रही थी और फ़िर जब वो अभी पलटी तो उसके पेट पर निकला मेरा माल भी एक अलग धब्बा बना दिया। मैंने हल्के-हल्के प्यार से उसके चुतड़ों को सहलाना शुरु कर दिया और फ़िर जब मैंने उसकी कमर दबाई तो वो बोली, "बहुत अच्छा लग रहा है, थोड़ा ऐसे हीं दबा दीजिए न..." मैंने उसके चुतड़ों पर चुम्मा लिया और फ़िर उसकी पीठ और कमर को हल्के हाथों से दबा दिया। वो अब फ़िर से ताजा दम हो गई तो उठ बैठी और फ़िर मेरे होठ चूम कर बोली, "थैन्क्स, भैया... बहुत मजा आया।" और बिस्तर से उठ कर कंघी ले कर अपने बाल बनाने लगी जो बिस्तर पर उसके सर के इधर-उधर पटकने के कारण अस्त-व्यस्त हो गए थे।

मैंने अब गुड्डी पर धयान दिया तो देखा कि वो एक तरफ़ जमीन पर बैठ कर हेयर ब्रश की मूठ अपने बूर में डाल कर हिला रही है। उसके बूर से लेर बह रहा था। उसने मुझे जब फ़्री देखा तो बोली, "चलो अब जल्दी से चोदो मुझे...सवा ११ हो गया है और अभी दो बार मुझे आज चुदाना है तुमसे."। मैं थक कर निढ़ाल पड़ा हुआ था, लन्ड भी ढ़ीला हो गया था पर गुड्डी तो साली जैसे चुदाई का मशीन थी। मेरे एक इशारे पर वो बिस्तर पर चढ़ गई और लन्ड को मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगी। वो अब स्वीती को बोली, "तुम्हारी बूर की गन्ध तो बहुत तेज है, अभी तक खट्टा-खट्टा लग रहा है नाक में"। स्वीटी मुस्कुराई, कुछ बोली नहीं बस पास आ कर गुड्डी मी बूर पर मुँह रख दी और उसके बूर से बह रहे लेर को चातने लगी। स्वीटी का यह नया रूप देख कर, जोरदार चुसाई से लन्ड में ताव आ गया और जैसे हीं वो कड़ा हुआ, गुड्डी तुरन्त मेरे कमर के दोनों तरफ़ पैर रख कर मेरे कमर पर बैठ गई। अपने दोनों हाथ से अपनी बूर की फ़ाँक खोली और मुझे बोली, "अब अपने हाथ से जरा लन्ड को सीधा करो कि वो मेरे बूर में घुसे।" मैं थका हुआ सा सीधा लेटा हुआ था और मेरे कुछ करने से पहले हीं मेरी बहन स्वीटी ने मेरे खड़े लन्ड को जड़ से पकड़ कर सीधा कर दिया जिससे गुड्डी उसको अपने बूर में निगल कर मेरे उपर बैठ गई।

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Re: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:15

स्वीटी अब सिर्फ़ देख रही थी और गुड्डी मेरे उपर चढ़ कर मुझे हुमच-हुमच कर चोद रही थी। कभी धीरे तो कभी जोर से उपर-नीचे हो होकर तो कभी मेरे लन्ड को निगल कर अपनी बूर को मेरे झाँटों पर रगड़ कर वो अपने बदन का सुख लेने लगी। मैं अब आराम से नीचे लेटा था और कभी गुड्डी तो कभी स्वीटी को निहार लेता था। करीब १२-१५ मिनट बाद वो थक कर झड़ गई और अब हाँफ़ते हुए मेरे से हटने लगी कि मैंने उसको कमर से पकड़ा और फ़िर उसको लिए हुए पलट गया। अब वो नीचे और मैं उसके उपर था। वो अब थक कर दूर भागना चाहती थी सो मुझे अब छोड़ने को बोली, पर मैं अभी झड़ा नहीं था और मेरा इरादा अब उसको रगड़ देने का था। मैंने फ़ुर्ती से उसको अपने गिरफ़्त में जकड़ा और फ़िर उपर से उसकी बूर को जबर्दस्त धक्के लगाए।

वैसे भी अब तक के आराम से मैं ताजा दम हो गया था। वो अब मेरी जकड़ से छूटने के लिए छटपटाने लगी, पर मैंने अपनी पकड़ ढ़ीली नहीं की। वो अब पूरा दम लगा रही थी और मैं उसको अपने तरीके से चोदे जा रहा था। गुड्डी की बेबसी देख कर स्वीटी ने उसका पक्ष लिया, "अब छोड़ दीजिए बेचारी को, गिड़गिड़ा रही हैं", गुड्डी लगातार प्लीज, प्लीज, प्लीज... किए जा रही थी। पर सब अनसुना करके मैं थपा थप उपर से जोर जोर से चोद रहा था। आवाज इतना जोर से हो रहा था कि अगर कोई दरवाजे के बाहर खड़ा होता तो भी उसको सुनाई देता। वैसे मुझे पता था कि अब आज की रात होटल की उस मंजिल पर सिर्फ़ एक वही बंगाली परिवार (मियाँ, बीवी और दो बेटियाँ) टिका हुआ था और उस परिवार से किसी के मेरे दरवाजे के पास होने की संभावना कम हीं थी। हालाँकि पिछले दिन से अब तक दो-चार बार स्वीटी और गुड्डी की थोड़ी-बहुत बात-चित उस परिवार से हुई थी। करीब ७-८ मिनट तक उपर से जोरदार चुदाई करने के बाद मैं गुड्डी के उपर पूरी तरह से लेट गया। उसका पूरा बदन अब मेरे बदन से दबा हुआ था और मेरा लन्ड उसकी बूर में ठुनकी मार कर झड़ रहा था। गुड्डी कुछ बोलने के लायक नहीं थी। अब मेरे शान्त पड़ने के बाद वो भी शान्त हो कर लम्बी-लम्बी साँस ले रही थी। करीब ३० सेकेन्ड ऐसे ही पड़े रहने के बाद मैं गुड्डी के बदन से हटा, और फ़क्क की आवाज के साथ मेरा काला नाग उसकी गोरी बूर से बाहर निकला और पानी के रंग का मेरा सब माल उसकी बूर से बह कर बिस्तर पर फ़ैल गया। आज तो उस होटल के बिस्तर की दुर्दशा बना दी थी हमने। हम सब अब शान्त हो कर अलग अलग लेते हुए थे। थोड़ी देर बाद गुड्डी हीं बोली, "स्वीटी जरा पानी पिलाओ डार्लिन्ग.... तुम्हारा भाई सिर्फ़ देखने में शरीफ़ है, साला हरामी की तरह आज चोदा है मुझे।" स्वीटी ने मुझे और गुड्डी को पानी का एक-एक ग्लास पकड़ाया और बोली, "सच में, हमको उम्मीद नहीं था कि भैया तुमको ऐसे कर देंगे। पूरा मर्दाना ताकत दिखा दिए आज आप उसको नीचे दबाने में। हम सोच रहे थे कि ऐसे हीं न बलात्कार होता होगा लड़कियों का"। मैंने हँसते हुए कहा, "बलात्कार तो गुड्डी की थी मेरा, मेरे उपर बैठ कर... जब कि मुझे थोड़ा भी दम नहीं लेने दी। अब समझ आ गया कि एक बार अगर लन्ड भीतर घुसा तो तुम लाख चाहो चोदने में जो एक्स्पर्ट होगा वो तुमको फ़िर निकलने नहीं देगा, जब तक वो तुम्हारी फ़ाड़ न दे।"

इधर-उधर की बातें करने के बाद करीब १२ बजे स्वीटी बोली अब चलिए सोया जाए, बहुत हो गया यह सब। मैंने हँसते हुए गुड्डी को देख कर कहा, "अभी एक बार का बाकी है भाई गुड्डी का...." गुड्डी कुछ बोली नहीं पर स्वीटी बोली, "कुछ नहीं अब सब सोएँगे..." अब जो बचा है कल दिन में कर लीजिएगा। इसके बाद हम सब वैसे हीं नंग-धड़ग सो गए। थकान की वजह से तुरन्त नींद भी आ गई। वैसे दोस्तों आप सब को भी पता होगा कि सुबह में कैसे हम सब का लन्ड कुछ ज्यादा हीं कड़ा हो जाता है। सो जब सुबह करीब साढ़े पाँच में मेरी नींद खूली तो देखा कि स्वीटी एक तकिया को अपने जाँघ में फ़ँसा कर थोड़ा सिमट कर सोई हुई है और गुड्डी एकदम चित सोई थी पूरी तरह से फ़ैल कर। मेरा लन्ड पूरी तरह से तना हुआ था, पेशाब भी करने जा सकता था फ़िर वो ढ़ीला हो जाता पर अभी ऐसा भी नहीं था कि पेशाब करना जरुरी हो। बस मैंने सोचा कि अब जरा गुड्डी को मजा चखा दिया जाए, अब कौन जाने फ़िर कब मौका मिले ऐसा। वो जैसे शरारती तरीके से ट्रेन में और यहाँ भी मुझे सताई थी तो मुझे भी अब एक मौका मिल रहा था। मैंने अपने लन्ड पर आराम से दो बार खुब सारा थुक लगाया और फ़िर हल्के हाथ से उसके खुले पैरों को थोड़ा सा और अलग कर दिया फ़िर उसके टाँगों की बीच बैठ कर अपने हाथ से लन्ड को उसकी बूर की फ़ाँक के सीध में करके एक जोर के झटके से भीतर ठेल दिया। मेरा लन्ड उसकी बूर से सटा और मैंने उसको अपने नीचे दबोच लिया। गुड्डी नींद में थी सो उसको पता नहीं था, वो जोर से डर गई और चीखी, "ओ माँ....." और तब उसको लगा कि उसकी चुदाई हो रही है। उसको समझ में नहीं आया कि वो क्या करे और उस समय उसक चेहरा देखने लायक था... आश्चर्य, डर, परेशानी, बिना पनिआई बूर में लन्ड के रगड़ से होने वाले दर्द से वो बिलबिला गई थी।

गुड्डी की ऐसी चीख से स्वीटी भी जाग गई और जब देखा कि हम दोनों चोदन-खेला में मगन हैं तो वो अपना करवट बदल ली। गुड्डी भी अब तक संयत हो गई थी और अपना पैसे मेरे कमर के गिर्द लपेट दी थी। मैंने उसके होठ से अपने होठ सटा दिए और प्यार से उसको चोदने लगा। वो भी अब मुझे चुमते हुए सहयोग करने लगी थी। सुबह-सुबह की वजह से मुझे उसके मुँह से हल्की बास मिली पहली बार चूमते समय पर फ़िर तो हम दोनों का थुक एक हो गया और बास का क्या हुआ पता भी नहीं चला। मैंने अपना फ़नफ़नाया हुआ लन्ड अब उसकी बूर से बाहर खींचा और बोला कि अब चलो तुम मेरा चूसो मैं तुम्हारा चाटता हूँ। फ़िर हम ६९ में शुरु हो गए, पर मुझे लगा कि यह ठीक नहीं है, तो मैंने अपना लन्ड उसकी मुँह से खींच लिया और फ़िर उसको कमर से पकड़ कर घुमाया तो वो मेरा इशारा समझ कर अपने हाथ-पैरों के सहारे चौपाया बन गई और मैं उसके पीछे आ कर उसको चोदने लगा। इसी क्रम में मैं उसकी गाँड़ की गुलाबी छेद देख ललचाया और बोला, "गाँड मरवाओगी गुड्डी... एक बार प्लीज."। वो बोली अभी नहीं, बाद में अभी प्रेशर बना हुआ है और अगर तुम बोले होते तब पहले से तैयारी कर लेती, एक दिन पूरा जूस पर रहने के बाद गाँड़ मरवाने में कोई परेशानी नहीं होती है, अभी तो वो थोड़ा गंदा होगा।" मैंने फ़िर कहा, "बड़ा मन है मेरा..." और मैं उसकी गाँड़ की छेद को सहलाने लगा। वो मुझसे चुदाते हुए बोली, "ठीक है, अभी ९ बजे जब मार्केट खुलेगा तो दवा दूकान से एक दवा मैं नाम लिख कर दुँगी ले आना। उसके बाद उसको अपने गाँड़ में डाल कर मैं पैखाना करके अपना पेट थोड़ा खाली कर लूँगी तो तुम दोपहर में मेरी गाँड़ मार लेना, जाने से पहले।" मैं आश्चर्य में था, साली क्या-क्या जुगाड़ जानती है... सेक्स के मजे लेने का और मजे देने का भी। मैं तो उसका मुरीद हो गया था।

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