गाँव का राजा

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007
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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 09 Nov 2014 14:32

गाँव का राजा पार्ट--14

कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम

गतान्क से आगे...............

आधे घंटे बाद जब शीला देवी को होश आया तो खुद को नंगी लेटी देख हर्बरा कर उठ गई. चुदाई का नशा उतरने के बाद होश आया तो अपने पर बड़ी शरम आई. बगल में बेटा भी नंगा लेटा हुआ था. उसका लटका हुआ लॉरा और उसका लाल सुपाड़ा उसके मन में फिर से गुद-गुड़ी पैदा कर गया. आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउस को फिर से पहन लिया और मुन्ना की लूँगी उसके उपर डाल जैसे ही फिर से लेटने को हुई कि मुन्ना की आँखे खुल गई. अपने उपर रखे लूँगी का अहसास उसे हुआ तो मुस्कुराते हुए लूँगी को ठीक से पहन लिया. शीला देवी भी शरमाते सकुचाते उस से थोरी दूर पर लेट गई. दोनो मा-बेटे एक दूसरे से आँख मिलाने की हिम्मत जुटा रहे थे. चुदाई का नशा उतरने के बाद जब दिल और दिमाग़ दोनो सही तरह से काम करने लगा तो अपने किए का अहसास हो रहा था. थोरी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर फिर मुन्ना धीरे से सरक कर शीला देवी की ओर घूम गया और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा. फिर धीरे से बोला “मा….क्या हुआ…” शीला देवी कुच्छ नही बोली तब फिर बोला “इधर देख ना….” शीला देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घूम गई. मुन्ना उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नारे के साथ खेलने लगा. नारा जहा पर बाँधा जाता वाहा पर पेटिकोट आम तौर पर थोरा सा फटा हुआ होता है या यू समझिए कि गॅप सा बना होता है. नारे से खेलते-खेलते मुन्ना ने अपनी उंगलियाँ धीरे से उसमे सरका कर चलाई तो गुद-गुडी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली “क्या करता है…हाथ हटा…” मुन्ना ने हाथ वाहा से हटा कमर पर रख दिया और थोरा और आगे सरक शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए बोला “…मज़ा आया…” शरम से शीला देवी का चेहरा लाल हो गया उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली “...चुप…गधा कही का…” मुन्ना समझ गया कि अभी पहली बार है थोरा तो सरमाएगी ही उसकी नाभि में उंगली चलाता हुआ बोला “मुझे तो बहुत मज़ा...आया…बता ना तुझे कैसा लगा…”

“हाई, नही छोरे…तू पहले हाथ हटा…”

“क्यों…अभी तो…बता ना…मा..”

“..धात…छोड़…वैसे आज कोई आम चुराने वाली नही आई..” शीला देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा.

“तूने इतनी मोटी-मोटी गलियाँ दी…कि वो सब…”

“चल…मेरी गालियो का…असर…उनपे कहा से….होने वाला…”

“क्यों इतनी मोटी गलियाँ सुन कर कोई भी भाग जाएगा…मैने तो तुझे पहले कभी ऐसी गलियाँ देते नही सुना”

“वो तो…वो तो ऐसे ही…बस…पता नही…शायद गुस्सा…बहुत ज़यादा…”

“अच्छा गुस्से में कोई ऐसी गलियाँ देता है….वैसे बरी…मजेदार गलियाँ दे रही थी…मुझे तो पता ही नही था…”

“….चल हट बेशरम…”

“….. उन बेचारियों को तो तूने….”

“अच्छा…वो सब बेचारियाँ हो गई…सच -सच बता….लाजवंती थी ना…” आँखे नचती शीला देवी ने पुचछा. हस्ते हुए मुन्ना बोला “तुझे कैसे पता…तूने तो उसका बॅंड बजा…” कहते हुए उसके होंठो को हल्के से चूम लिया. शीला देवी उसको पिछे धकेलते हुए बोली “हट….बदमाश…तूने अब तक गाओं में कितनो के साथ…” मुन्ना एक पल खामोश रहा फिर बोला “क्या..मा…किसी के साथ नही..”

“चल झूठे….मुझे सब पता…है सच सच बता” कहते हुए फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया. मुन्ना ने फिर से हाथ को पेट पर रख उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा “साची साची बताउ…”

“हा साची…कितनो के साथ…” कहती हुई उसकी छाती पर हाथ फेरा. मुन्ना उसको और अपनी तरफ खींचता हुआ अपनी कमर को उसके कमर से सटा धीरे से फुसफुसता हुआ बोला “याद नही पर..बारह तेरह होंगी…”.

“हाई…दैयया…इतनी सारी…कैसे करता था मुए…मुझे तो केवल लाजवंती और बसंती का पता था…”कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी.

“वो तो तुझे इसलिए पता है ना क्योंकि तेरी जासूस आया ने बताया होगा…बाकियों को तो मैने इधर उधर कही खेत में कभी पास वाले जंगल में कभी नदी किनारे निपटा दिया था….”

“कमीना कही का…तुझे शरम नही आती…बेशरम…” उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली.

“अब तो मा को…. ही निपटा…..” कहते हुए उसने शीला देवी को कमर से पकड़ कस कर भींचा. उसका खरा हो चुका लंड सीधा शीला देवी की जाँघो के बीच दस्तक देने लगा. शीला देवी उसकी बाँहो से छूटने का असफल प्रयास करती मुँह फुलाते हुए बोली “छ्चोड़…बेशरम…मुझे फसा कर…बदमास…” पर ये सब बोलते हुए उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान भी तेर रही थी. मुन्ना ने अपनी एक टांग उठा उसके जाँघो पर रखते हुए उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए लंड को पेटिकोट के उपर से चूत पर सताते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा उसका मुँह बंद कर दिया. रसीले होंठो को अपने होंठो के बीच दबोच चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह में थेल उसके मुँह में चारो तरफ घूमते हुए चुम्मा लेने लगा. कुच्छ पल तो शीला देवी के मुँह से गो गो करके गोगियाने की आवाज़ आती रही मगर फिर वो भी अपनी जीभ को थेल थेल कर पूरा सहयोग करने लगी. दोनो आपस में लिपटे हुए अपने पैरों से एक दूसरे को रगर्ते हुए चुम्मा-चाती कर रहे थे. मुन्ना ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चुचियों पर रख दिया था और ब्लाउस के उपर से उन्हे दबाने लगा. शीला देवी ने जल्दी से अपने होंठो को उसके चुंबन से छुड़ाया, दोनो हाँफ रहे थे और दोनो का चेहरा लाल हो गया था. मुन्ना के हाथों को अपनी चुचियों पर से हटाती हुई बोली “इश्स…क्या करता है…”. मुन्ना ने शीला देवी के हाथ को पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा अपना लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. शीला देवी ने अपना हाथ पिछे खींचने की कोशिश की मगर उसने ज़बरदस्ती उसकी मुत्हियाँ खोल अपना गरम तप्ता हुआ खरा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. लौरे की गर्मी पा कर उसका हाथ अपने आप लंड पर कसता चला गया.

“….तेरा मन नही भरा क्या…” लंड को पूरी ताक़त से मरोर्ति दाँत पीसती बोली.

“हाई…..नही भरा…एक बार और करने दे…ना…” कहते हुए मुन्ना ने उसके घुटनो तक उठे हुए पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ घुसा दिया. शीला देवी ने चिहुन्क कर लंड को छ्चोड़ पेटिकोट के भीतर घुसते उसके हाथो को रोकने की कोशिश करते हुए बोली “इससस्स…..क्या करता है…कहा हाथ घुसा रहा…” मुन्ना ज़बरदस्ती हाथ को उसकी जाँघो के बीच ठेलता हुआ बोला “हाई….एक बार और…देख ना कैसे खड़ा है…”

“उफफफ्फ़…हाथ हटा….बहुत बिगड़ गया है तू…” तब तक मुन्ना का हाथ उसके जाँघो के बीच चूत तक पहुच चुका था. चूत की झांतो के बीच से रास्ता खोजते हुए चूत की छेद में बीच वाली उंगली को धकेला. शीला देवी की चूत पनिया गई थी. थोरा सा ठेलने पर ही उंगली कच से बूर में घुस गई. दो तीन बार कच कच उंगली चलाता हुआ मुन्ना बोला “हाई…पनिया गई है…तेरी चू…” शीला देवी उसकी कलाई पकड़ रोकने की कोशिश करती बोली “अफ…छ्चोड़..ना..क्या करता है…वो पानी तो पहले का है…”. एक हाथ से लूँगी को लंड पर हटाता हुआ बोला “पहले का कहा से आएगा…देख इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…”. नंगा खड़ा लंड देखते ही शीला देवी शरमाई आँखे चुराती कनिखियों से देखती हुई बोली “तेरी लूँगी से पुच्छ गया होगा…मेरा अंदर गिरा था कैसे सूखेगा…” कहते हुए मुन्ना के हाथ को पेटिकोट के अंदर से खींच दिया. पेटिकोट जाँघो तक उठा चुका था. लंड को अपने हाथ से पकड़ दिखाता हुआ मुन्ना बोला “….दुबारा…गिराने का दिल कर रहा है…आराम से जाएगा…इस..बार चिकनी हो गई है…तेरी चू…”

“चुप…बेशरम…बहुत देर हो चुकी है…”

“हाई…मया…एक बार में मन नही भरा…एक बार और…”

“रात भर तू यही करता रहता था क्या…”

“…तीन…चार…बार तो करता ही...”

“….मुआ…तभी दिन भर सोता था…रंडियों के चक्कर में”

“….अब उनका चक्कर छ्चोड़ दिया…अब केवल तेरे साथ…ही…एक बार और…” कहते हुए फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की.

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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 09 Nov 2014 14:33

“हट…नही करवाना….पायल कहा दिया…बिना पायल दिए ले चुका है…एक बार…पहले पायल…दे” कहते हुए उसके हाथ को झटके से हटाती हस दी. मुन्ना भी हस पड़ा और उसकी चुचि को पकड़ कस कर दबा दाँत पीसते बोला “कल ला दूँगा फिर…कम से कम पाँच बार लूँगा…”

“अफ…सीईई….कमिने छ्चोड़….घड़ी देख….क्या टाइम हुआ…” मुन्ना ने घड़ी देखी. सुबह के 4:30 बज रहे थे टाइम का पता ही नही चला था. पहले तो दोनो मा-बेटा पर पर चढ़ने उतरने का नाटक करते रहे फिर कौन पहल करे, इसी लूका-छिपि और एक बार की चुदाई में सुबह के साढ़े चार बज गये. शीला देवी हर्बरा कर उठ गई क्यों कि वो जानती थी कि गाओं में लोग जल्दी सोते है तो जल्दी उठ भी जाते थोरी देर में सड़को पर लोग चलने लगेंगे और थोरा बहुत उजाला भी हो जाएगा ऐसे में पकड़े जाने की संभावना ज़यादा है. मुन्ना को बोली “चल जल्दी बाकी जो करना होगा कल करेंगे….अंधेरा रहते घर….” मुन्ना का मन तो नही था मगर मजबूरी थी चुप-चाप उठ कर अपनी लूँगी ठीक कर खड़ा हो गया. शीला देवी सारी पहन रही थी उसके पास जा कर उसकी कमर पकर पेट सहलाता हुआ बोला “…है बड़ा दिल कर रहा था दुबारा लेने…का….बरी खूबसूरत….”

“छ्चोड़…पकड़े गये तो…फिर कभी मौका भी नही मिलने वाला…चल जल्दी…” और उसका हाथ हटा जल्दी से बाहर की ओर चल दी. मुन्ना भी पिछे पिछे चल पड़ा. तेज कदमो से चलते हुए दोनो घर पहुच चुप-चाप बिना आवाज़ किए अपने-अपने कमरे में चले गये. थोरी देर तक तो दोनो को नींद नही आई, रात की मीठी यादों ने सोने नही दिया मगर फिर दोनो सो गये. सुबह मुन्ना को तो कोई उठाने नही आया मगर शीला देवी को मजबूरन उठना पड़ा. करीब दस बजे दिन में मुन्ना उठा जल्दी से नहा धो कर खाना खाया और फिर बाहर निकल गया. शीला देवी वापस अपने कमरे में घुस गई और जा कर सो गई. शाम में खाना खाने के समय मुन्ना और शीला देवी मिले. चुप चाप खाना खाया फिर अपने अपने कमरो में चले गये. कमरे में घुसने से पहले शीला देवी और मुन्ना की आँखे एक दूसरे से मिली तो मुन्ना ने इशारा करने की कोशिश की मगर शीला देवी ने होंठ बिचका कर के दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया. शाम का आठ बज चुके इसलिए लूँगी पहन बैठ गया. बगीचे पर पहुचने के लिए बेताब था मगर शीला देवी तो कमरे में घुसी पड़ी थी. मुन्ना अपने कमरे से निकल कर शीला देवी के कमरे के पास पहुच गया. दरवाज़ा धीरे से खोलते हुए अंदर झाँक कर देखा तो पाया की शीला देवी बिस्तर पर आँखो पर हाथ रख लेटी हुई थी. उसके पास जा कर हिला कर उठाया. शीला देवी ने ओह आह..करते हुए आँखे खोली और पुचछा क्या बात है. मुन्ना मुँह बनाते हुए बोला “क्या…मा…मैं वाहा इंतेज़ार कर रहा था और तुम यहा…”. थोड़ा मुस्कुराती थोड़ा मुँह बनाती बोली “क्यों…इंतेज़ार कर रहा है…”

क्रमशः........................ .........

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Re: गाँव का राजा

Unread post by 007 » 09 Nov 2014 14:33

गतान्क से आगे..........................

“क..क्या मतलब बगीचे पर नही जाना क्या…”

“तू जा…मैं वाहा जा कर क्या करूँगी…” आँखे नचाती बोली.

“ आमो की रखवाली कौन करेगा….” मुन्ना समझ गया कि ये फिर नाटक कर रही है.

“क्यों तू तो कर ही लेता है…जा और अपनी सहेलियों को भी बुला ले…”

“अब…चल ना…देख कैसे तड़प रहा है मेरा…लौरा..एयेए” चिरोरी करते हुए मुन्ना लंड को लूँगी के उपर से सहलाते हुए बोला.

“तड़प रहा तो….खुद ही शांत कर…मैं नही आती….” मुन्ना एक पल उसे देखता रहा फिर चिढ़ कर बोला. “ठीक है मत चल…मैं जा रहा हू…कोई ना कोई तो मिल ही जाएगी…” और फिर तेज़ी के साथ बाहर निकल गया. उसे पहले पता होता तो बसंती को बुला लेता, मगर आज तो कोई जुगाड़ नही था. फिर भी गुस्से में बाहर निकल सीधा बगीचे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद कर बिस्तर पर लेट गया. नींद तो आ नही रही थी. चुप-चाप वही लेटा करवटें बदलने लगा.

मुन्ना के बाहर निकल जाने के थोरी देर तक शीला देवी कुच्छ सोचती रही, फिर धीरे से उठी और बाहर निकल गई. उसके कदम अपने आप बगीचे की तरफ बढ़ते चले गये. कुच्छ समय बाद वो खलिहान के दरवाजे पर थी. दरवाजे पर खाट-खाट की आवाज़ सुन मुन्ना बिस्तर से उच्छल कर नीचे उतरा. कौन हो सकता है सोचते हुए उसने दरवाजा खोल दिया. सामने शीला देवी खड़ी थी पसीने से लत-पथ, लगता है जैसे दौरती हुई आई थी. उसकी साँसे तेज चल रही थी और सांसो के साथ उसकी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. नज़रे नीचे की ओर झुकी हुई थी. मुन्ना ने एक पल को उपर से नीचे शीला देवी को निहारा फिर चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला “बाहर ही खरी रहोगी या अंदर आओगी”

एक पल रुक कर धीरे से वो अंदर आ गई और धीरे धीरे चलते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. फिर मासूम सा चेहरा बना मायूस आवाज़ में बोली “बेटा ये ठीक नही है… मैं नही चाहती की तू रंडियों के चक्कर में पड़े…ये सब बंद कर दे….” .

“मुझे कौन सा उनके साथ मज़ा आता है…पर तू तो…जब कि कल…”

“मैं तेरी मा हू…मुझे कल रात से खुद पर शरम आ रही है….इसलिए तुझे दुबारा करने से रोका…अंधी हो गई थी…ये ठीक नही है…..फिर तू उन रंडियों के साथ करता था मुझे बहुत बुरा लगता था…”

“तुझे मज़ा नही आया..था…सच बता…. तुझे मेरी कसम…”

“हा…आया था…बहुत मज़ा आया….पर…” शरम से लाल होती शीला देवी बोली. शीला देवी को थोरा सा खिसका कर उसके पास बिस्तर बैठ उसकी जाँघो पर हाथ रख कर मुन्ना उसे समझाने वाले अंदाज में बोला “तू गाओं में रह कर कुएँ की मेंढक बन गई है….दुनिया में सब कितना मज़ा करते है…फिर गाओं भर की जासूस वो बुढ़िया तो तेरे पास आती है, क्या वो तुझे नही बताती कि लोगो के घरो में क्या-क्या होता है.”

“आती है…और बताती भी है मगर…फिर भी हम औरो के जैसा क्यों…”

“तो फिर क्यों आई है भागती हुई”

“मैं तुझे रोकने आई हूँ....मैं नही चाहती तू औरो के जैसे बन जाए”

“बात उनके जैसा बन ने की नही. बात मज़े करने की है. कोई और हमारे बदले मज़ा नही कर सकता ना ही हम किसी को बताने जा रहे है कि हम कितने मज़े करते है. लोगो को अपना मज़ा करने दो हम अपना करते है. घर के अंदर कोई देखने आता है?…खुल कर मज़ा लेगी तभी सुखी रहेगी….शहर में तो….. ”

“तू मुझे ग़लत बाते सीखा रहा है…गंदी औरत बना रहा है…”

“…जिंदगी का असली मज़ा इसी में है…”

“पर तू मेरा…बेटा है…तेरे साथ…ये ग़लत है.

“मतलब मेरे साथ नही करवाएगी…बाहर के किसी से…”

“तू बात को पता नही कहाँ से कहाँ ले जाता है…देख बेटा ऐसा मत…कर…मुझे किसी से नही करवाना और उन रंडियों का चक्कर…ठीक नही…तू भी छ्चोड़ दे”

“तू अपनी सारी उठा कर रखेगी तो मैं बाहर क्यों मुँह मारूँगा…”

“बहुत बरी ….कीमत माँग रहा है….”

“तेरी छेद घिस जाएगी क्या…फिर तुझे भी तो मज़ा आएगा…बाहर करवाएगी तो बदनामी होगी…घर में…खुल कर मज़ा लूट…नही तो…जाम हो जाएगा…छेद…फिर उंगली भी डालेगी तो नही घुसेगी…” मुन्ना का ये भाषण सुन कर शीला देवी हस्ने लगी अब पर उसको ये बात भी समझ आ गई वो मुन्ना को नही रोक सकती. वो बाहर जाएगा ही. कुच्छ पल सोचती रही फिर समझ में आ गया कि अच्छा होगा वो अपनी छेद की सेवा उस से करवाती रहे. उसके दोनो हाथ में लड्डू रहेगा बेटा भी कब्ज़े में रहेगा और उसकी खुजली भी शांत रहेगी. इतना सोच मुस्कुराते हुए बोली “घिसेगी तो नही पर ढीली ज़रूर हो जाएगी…”

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