मौसी का गुलाम compleet

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raj..
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Re: मौसी का गुलाम

Unread post by raj.. » 12 Nov 2014 09:24

कामुक-कहानियाँ

मौसी का गुलाम---26

गतान्क से आगे………………………….

उस रात को नहाते हुए हमेशा की तरह मैंने उनका लंड चूसा और झडाकर वीर्य पी डाला वे शोवर के नीचे खड़े थे और मैं उनकी टाँगों के बीच घुटनों पर बैठकर उनका लंड चूस रहा था मैं उनके झडे हुए सिकुडे लंड को चूसता ही रहा और उसे छोड़ने को तैयार नहीं था उन्होंने कहा "छोड़ दे बेटे, अब मूतना है मुझे" मैंने उनकी आँखों में आँखें डाल कर कुछ कहा और लंड मुँह में और कस कर दबा लिया असल में अब मुझे उनपर इतना प्यार आ रहा था कि मैं उनके साथ हर तरह का काम करना चाहता था

मौसाजी मेरा मतलब समझ गये उनकी आँखें प्यार और वासना से चमक उठीं मेरे सिर को पकडकर उन्होंने मेरा चेहरा अपनी झांतों में कस कर दबा लिया और फिर मेरे मुँह में ही मूतने लगे गरमा गरम खारे मूत की जोरदार धार मेरे गले से टकराई और मैं उसे बड़े चाव से पीने लगा

मौसाजी तो वासना से कसमसा उठे "आह राज, मेरा प्यारा बेटा, कितना प्यारा है तू, मेरा मूत पी रहा है, मेरी जान, आई लव यू, आराम से पी राजा, और पी पी जा मेरा पूरा शरबत" स्वाद मौसी और डॉली से अलग था पर फिर भी था बड़ा मादक मैंने मन ही मन सोचा- आख़िर स्वाद अलग होगा ही, एक कुएँ का पानी है और एक नल का

मेरे मुँह में पूरा मूतने के बाद अंकल मेरे सिर को वैसे ही पकड़े खड़े रहे मेरा पेट भर गया था, इतना उन्होंने मूता था उनका लंड अब जल्दी जल्दी खड़ा हो रहा था मेरे गले तक तो उनका सुपाडा पहुँच भी गया था इसके पहले मैंने कभी उनका पूरा लंड मुँह में नहीं लिया था जैसे मौसी आराम से लेती थी पर अब अपने आप यह हो गया था और उनका गले तक उतरा मस्त मोटा लंड मुझे बहुत अच्छा लग रहा था

उन्होंने मुझे छोड़ा नहीं, बल्कि मेरे सिर को अपनी झांतों पर और कस कर दबा कर वे आगे पीछे होते हुए मेरे मुँह को चोदने लगे "अब मैं नहीं छोड़ने वाला तुझे बेटे, मेरा मूत पी के तूने मेरा ऐसा खड़ा किया है कि तेरा मुँह चोदे बिना मुझे नहीं तसल्ली होगी!"

मैंने अपने गले को बिलकुल ढीला छोड़ दिया और उनके नितंबों को बाँहों में भरकर उनका लंड चूसने लगा वे अब इतने ज़ोर से मेरा मुँह चोद रहे थे कि मेरे गले में उनका सूजा सुपडा चुनमूनियाँ की तरह चल रहा था मेरा दम भी घुट रहा था पर उस कामसुख के आगे मैंने उसका ख़याल नहीं किया जब अंकल झडने के करीब आए तो मैंने दो उंगलियाँ उनकी गान्ड में डाल दीं वे ऐसे कसमसा कर झडे कि एक हल्की चीख उनके मुँह से निकल गयी मुझे सिर्फ़ इस बात का गम था कि उनका मलाईदार वीर्य उनके लंड ने सीधा मेरे गले और पेट में फेंका, लौडा मेरे गले में गहरा धँसा होने से मैं उसका स्वाद नहीं ले पाया

रात को अंकल ने मुझे वही सुख दिया जो मैंने उन्हें बाथरूम में दिया था पहले तो मैंने उन्हें पलंग पर लिटा कर उनके मुँह पर चढ कर खूब मज़ा ले लेकर उनके मुँह को चोदा झडने के बाद मैं जब उठने की कोशिश करने लगा तो उन्होंने मेरे चुतड बाहों में भर लिए और मेरा लंड चूसते रहे, मुझे नहीं उठने दिया मुझे अब ज़ोर से मुतास लगी थी और मैं उन्हें कहता रहा कि अंकल पेशाब लगी है, मुझे प्लीज़ जाने दीजिए उन्होंने मेरी एक ना सुनी और मेरा झडा शिश्न छोटे गाजर की तरह मुँह में लेकर चूसते रहे

कुछ देर हातापाई करने के बाद मैं समझ गया कि मौसाजी क्या चाहते हैं मैं चुपचाप उनके सिर को पकडकर लेट गया और उनके गले में मूतने लगा उन्होंने मेरा मूत ऐसे स्वाद से पिया कि जैसे कोई शरबत पी रहे हों मेरे लिए यह बड़ी सुखद भावना थी ऐसा लग रहा था कि मैं अंकल को अपने शरीर का कोई अमूल्य उपहार दे रहा हूँ अब मुझे समझ में आया कि मौसी को मेरे या मौसाजी के मुँह में मूतते समय इतना मज़ा क्यों आता था और डॉली जैसी लेस्बियन भी मेरे मुँह में मूत कर क्यों अचानक पिघल गई थी

अब हम यह काम हमेशा करने लगे मौसी का मूत पीते समय जो सावधानी बरतना पड़ती थी, कि कहीं छलक ना जाए, वह हम दोनों को ज़रूरी नहीं थी सीधा मुँह में लंड को एक बड़े स्ट्राम की तरह लेकर मूत्रपान किया जा सकता था

शुरू में हमने यह क्रीडा मौसी से छुपा कर रखी कि कहीं वह नाराज़ ना हो जाए पर एक दिन जब हम तीनों साथ साथ नहा रहे थे तो भांडा फुट गया कई दिन हो गये थे मौसाजी का मूत पिए और इसलिए जब नहाते समय मौसाजी ने मुझसे लंड चुसवाया तो झडने के बाद भी मैं उसे चूसता रहा

उन्होंने चुपचाप मेरे मुँह में मूतना शुरू कर दिया, उपर से तो कुछ भी नहीं पता चलता था पर मौसी ने जब देखा कि मेरे गला उपर नीचे होकर कुछ निगल रहा है तो वह गौर से मेरी ओर देखने लगी फिर भी शायद बात छुपी रहती पर मूतने से होने वाली 'खलल' 'खलल' आवाज़ से उसे सब पता चल गया पर नाराज़ होने के बजाय वह उल्टे काफ़ी उत्तेजित हो गयी उसे बहुत अच्छा लगा कि मैं उसके पति को भी वही सुख दे रहा हूँ जो हम दोनों उसे देते थे

गरमी की छुट्टियो भर हमारा यह संभोग चला आख़िर छुट्टियाँ खतम होने को आई और मैं घर जाने की तैयारी करने लगा शन्नो मौसी और रवि अंकल ने कहा कि अब हर छुट्टियों में मैं यहीं आऊ दीवाली की छुट्टियाँ बस चार माह में आने ही वाली थी

मौसी बोली कि बेटे, अब घर जाकर अपनी माँ की भी खूब सेवा करना वह शैतानी से मुस्करा रही थी मैं शरमा गया पर मेरा लंड खड़ा हो गया अब मैं यही सोचता रहता कि मेरी प्यारी माँ की सेवा मैं कैसे शुरू करूँ

अचानक माँ का फ़ोन आया कि मैं दो तीन हफ्ते और रुक जाऊ वे कहीं बाहर जाने वाली थी बोली कि मेरे स्कूल में बता देगी फिर वह मौसी से फ़ोन पर बातें करती रही मौसी बार बार मेरी ओर देखकर बड़ी कुटिलता से हँस रही थी वह उत्तेजित भी बहुत लग रही थी

थोड़ी देर बाद में वह बोली कि चलो अब चुदाई और मन भर कर सकते हैं पर बची छुट्टियों में मेरे साथ क्या हुआ यह बड़ी गंदी और परवर्टेड कहानी है

दोस्तो ये कहानी यही समाप्त होती है फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त

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kamdevbaba
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Re: मौसी का गुलाम compleet

Unread post by kamdevbaba » 12 Nov 2014 16:23

एक पंडित की टांग जल गई तो
डोक्टर ने बर्नोल और वियाग्रा लिखकर दी
तो पंडित बोला की बर्नोल तो समझ में आती है
वियाग्रा क्यों लिखी तो डोक्टर बोला की इससे
आपकी धोती उठी रहेगी

raj..
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Re: मौसी का गुलाम compleet

Unread post by raj.. » 25 Dec 2014 17:33

ha ha ha ha ha ha bahut achcha

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