दो भाई दो बहन compleet

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raj..
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दो भाई दो बहन compleet

Unread post by raj.. » 11 Dec 2014 08:57

दो भाई दो बहन


Image
लेखक राज अग्रवाल

हिन्दी फ़ॉन्ट बाइ मी


राज अपने घर से कुछ दूरी पर बने तालाब के किनारे एक पेड़ की छाया

मे बैठा था. राज एक 21 वर्ष का गथीला नौजवान था. सिर पर

काले घूघराले बाल, चौड़ी बलिश्त छाती और मजबूत बाहें.

ये उसकी पसंदीदा जगह थी. उसे जब भी समय मिलता वो यहीं आकर

बैठता था. यहाँ का शांत वातावरण और एकांत उसे अछा लगता था.

राज ने आगे बढ़कर एक पत्थर को उठा लिया और हवा मे उछालने लगा

जैसे की उसका वजन नाप रहा हो. फिर उसकी निगाह आपने सामने रखे

कुछ पन्नो पर पड़ी, जिनपर सुंदर अक्षरों मे कुछ लिखा हुआ था.

काग़ज़ के पन्ने हवा मे फड़ फाडा रहे थे.

पत्थर के वजन से सन्तूस्त हो उसने वो पन्ने अपनी गोद मे रख लिए

और पत्थर को ठीक उनके बीचों बीच रख कर पन्नो को उस पत्थर से

लपेट दिया. फिर अपनी जेब से एक पतली सी रस्सी निकाल उसने उन पन्नो

को बाँध दिया.

वो अपनी जगह से उठा और तालाब के किनारे पर आकर उस पत्थर को

पानी के बीचों बीच फैंक दिया. पत्थर के फैंकते ही पानी जोरों से

चारों तरफ उछला और वो पत्थर तालाब की गहराइयों मे समाता चला

गया.

राज चुपचाप सोच रहा था कि ना जाने कितने ही ऐसे पन्ने इस तालाब

की गहराईओं मे दफ़न पड़े है. वैसे तो पानी का एक कतरा उन पर

लीखी लकीरो को मिटाने के लिए काफ़ी है पर अगर शब्द सिर्फ़

धुंधले पड़ गये तो वो पढ़ने के लिए काफ़ी होंगे. क्या उसे इन पन्नो

को जला देना चाहिए था जिसपर उसने अपनी कल्पना को एक कहानी की

शक्ल मे अंजाम दिया था.

तभी उसे तालाब के दूसरी तरफ़ से कुछ आवाज़ सुनाई दी. उसने अपनी

बेहन की आवाज़ को तुरंत पहचान लिया. वो तुरत उस पेड़ के पीछे

छिप गया जिससे आनेवाले की नज़र उस पर ना पड़ सके. जैसे ही उसने

अपनी बेहन को देखा जिसने एक सफेद रंग की शॉर्ट्स के उपर एक लाल

रंग का टॉप पहन रखा था उसकी आँखें बंद हो गयी. उसने पेड़ का

सहारा ले लिया और अपने ख़यालों मे खोया अपनी बेहन रोमा की प्यारी

हँसी सुनने लगा.

थोड़ी ही देर मे उसका लंड उसकी शॉर्ट मे तन कर खड़ा हो गया. दिल

मे ज़ज्बात का एक मीठा मीठा दर्द उमड़ने लगा. वो जानता था कि उसे

एक दिन अपनी बेहन को पाना है. रोमा रोज़ अपनी सहेलियों को घर लाकर

उसे चिढ़ाती थी. उसे उसकी इस हरकत पर प्यार आता था पर वो अपनी

बेहन से इससे कहीं ज़्यादा प्यार करता था. वो जानता था कि रोमा की

सब सहेलियाँ उसे लाइन मारती है पर उसकी सब सुंदर सहेलियाँ भी

उसे अपनी बेहन से अलग नही कर सकती थी.

राज का दायां हाथ उसके खड़े लंड पर आ गया. शॉर्ट्स के उपर से ही

वो अपने लंड के सूपदे को मसल्ने लगा. उसके मुँह से एक मादक कराह

निकली तो पेड़ पर बैठे कुछ पंछी उसकी बेहन की दिशा मे उड़ गये.

उसे तुरंत अपनी ग़लती का एहसास हुआ. उसने अपने आप को और पेड़ के

पीछे इस कदर छुपा लिया कि किसी की भी नज़र उस पर ना पड़ सके.

अपने एकांत से संतुष्ट हो उसने अपनी शॉर्ट्स की ज़िप खोली और अपने

खड़े लंड को खुली हवा मे आज़ाद कर दिया. अब वो अपनी आँखे बंद

अपने लंड को मसल्ने लगता है. खुली आँखों की जगह वो बंद

आखों से अपनी बेहन को और ज़्यादा अच्छे रूप मे देख रहा था.

उसने देखा कि उसकी बेहन नंगे पावं घास पर दौड़ रही है. राज अपनी

18 वर्षीया बेहन के पीछे दौड़ रहा है उसे पकड़ने के लिए और

आख़िर मे वो उसे पकड़ ही लेता है. दोनो घास पर गिर जाते है और

रोमा हंस पड़ती है.

थोड़ी देर बाद वो उसके मुलायम पंजो को मसल्ने लगता है. वो खुले

आसमान के नीचे घास पर लेटे उसकी उंगलियों को महसूस कर रही थी.

वो अपनी जादुई उंगलियों से उसकी पैरों की मालिश करने लगा तो वो

सिसक पड़ी और उसकी छोटे छोटे मम्मे टॉप के अंदर उछलने लगे.

उसने उसकी दाँयी टांग को उठा कर अपनी गोद मे रख लिया. इससे उसकी

जंघे थोड़ी फैल गयी और उसकी नज़र ठीक उसकी जांघों के बीच मे

पड़ी. पैर थोड़ा सा उठा हुआ होने की वजह से शॉर्ट्स के अंदर से सब

दीख रहा था. उसने देखा कि उसने काले रंग की पॅंटी पहन रखी

है और उसकी चूत की बारीक़ियाँ पॅंटी के बगल से दिख रही है.

राज अपनी कल्पना को किसी फिल्म की तरह अपने ख़यालों मे देख रहा

था, और उसका हाथ पूरी रफ़्तार से खुद के लंड पर चल रहा था.

अपनी कल्पना मे राज अपने हाथ उसके नाज़ुक पंजो को मसल्ते मसल्ते

उसके घूटनो तक ले आया और वहाँ की मालिश करने लगा. कितनी

सुंदर मुलायम त्वचा थी. घूटनो की मालिश करते करते भी उसकी

निगाह शॉर्ट्स मे दीखती काली पॅंटी पर टिकी हुई थी. घुटनो से आगे

बढ़ कर उसके हाथ अब जाँघो के अन्द्रुनि हिस्सों पर पहुँचे.

जैसे ही उसका हाथ जांघों से थोड़ा उपर पहुँचा उसका शरीर कांप

उठा. एक शांत रज़ामंदी पा उसके हाथ शॉर्ट्स के अंदर उसकी पॅंटी के

किनारे तक पहुँचे तो उसे लगा जैसे कि कोई गरम भाप पॅंटी के

अंदर से उठ रही है.

ये उसकी कल्पना थी. आखरी क्षण मे जब उसके लंड मे उबाल आने

लगा तो उसने यहाँ तक सोच डाला कि वो उसके पैरों के बीच बैठा

अपने लंड को उस छोटे से छेद मे घुसा रहा हो. उसका लंड उस छोटे

छेद की दीवारों को चीरता हुआ अंदर तक घुस रहा है.

तभी उसके लंड ने उबाल खाया और विर्य की एक लंबी पिचकारी सामने

के पत्रों पर गिरने लगी. वो जोरों से अपने लंड को मसल्ते हुए लंड

से आखरी बूँद तक पत्थरो पर फैंकने लगा. उसने अपनी आँखे

खोली और सामने गिरे वीर्य को देखने लगा.

************

"कहाँ है वो?" रोमा ने अपने आप से पूछा. वो और उसकी सहेली गीता

एक दूसरे का हाथ पकड़े तालाब के किनारे तक आ गये थे. उसने अभी

थोड़ी देर पहले उसे तालाब के किनारे बैठे एक पत्थर को तालाब मे

फैंकते देखा था, अब कहाँ चला गया.

"यार मे तो थक गयी हूँ" गीता ने शिकायत की. उसे पता था कि

उसकी कोई अदा कोई तरीका राज को अपनी तरफ आकर्षित करने मे कामयाब

नही हो पाएगी, "मेरी तो समझ मे नही आ रहा कि में क्या करूँ."

"आओ यहाँ तालाब के किनारे बैठते है." रोमा ने कहा.

तालाब के किनारे बैठते ही उसका ध्यान अपने 21 वर्षीया भाई राज पर

आ टिका. कितना अकेला अकेला रहता है वो. वो हमेशा अपनी सहेलियों

को घर लेकर आती जिससे उसका दिल बहल जाए. पर वो है कि अलग

अलग ही रहना पसंद करता है.

रोमा को पता था कि उसका भाई एक प्यारा और जज्बाती इंसान है. वो

अपने कॉलेज की आखरी साल मे थी और राज ग्रॅजुयेशन कर चुका था.

ग्रॅजुयेशन करने के बाद भी उसने अभी तक कोई गर्ल फ़्रेंड नही

बनाई थी. वो इसी उम्मीद से अपनी सहेलियों को घर लाती कि शायद

इनमे से कोई उसके भाई को भा जाए. पर ऐसा ना होने पर अब उसकी

सहेलियों ने भी आना छोड़ दिया था. गीता भी यही शिकायत कर

रही थी. रोमा को सब समझ मे आ रहा था और उसे अपने भाई पर

झुंझलाहट भी हो रही थी और उसकी इस अदा पर प्यार भी आता था.

"सिर्फ़ अपनी स्टुपिड किताब मे कुछ लिखता रहता है." रोमा ने शिकायत

करते हुए कहा.

"राज...और लिखता रहता है?" गीता ने आश्‍चर्या से पूछा.

"हाँ और क्या." रोमा ने कहा, "यही काम है जो वो दिन भर करता

रहता है. ग्रॅजुयेशन के बाद कितना बदल गया है वो. ऐसा लगता

है कि उसकी जिंदगी किसी जगह आकर ठहर गयी है. वो मुझे भी

हर समय नज़र अंदाज़ करता रहता है. समझ मे नही आता की उसे

परेशानी क्या है. "

"क्या लिखता रहता है वो अपनी किताब मे?" गीता ने पूछा.

रोमा ने अपने कंधे उचकते. हुए कहा, "मुझे पता नही. मेने कई

बार जानने की कोशिश कि लेकिन वो अपनी कीताब इस कदर छुपा कर

रखता है कि कुछ पता नही. जब वो लिखना ख़तम कर लेता है तो

उन पन्नो को किताब मे से फाड़ देता है. हज़ारों कहानियाँ लिखी होगी

उसने."

"हो सकता हो कि वो कहानियाँ ना हो, सिर्फ़ डायरी मेनटेन करता हो"

गीता ने कहा.

"हां हो सकता है," रोमा ने इतना कहा ही था कि उसने राज को पेड़ के

पीछे से बाहर आते देखा. पहली बार उसे एहसास हुआ कि वो पेड़ के

पीछे था, पर वो कर क्या रहा था? उसने सोचा.

"शैतान का नाम लो और शैतान हाज़िर है." गीता ने हंसते हुए

कहा, "तुम्हे पता है रोमा अगर ये तेरा भाई अगर मुझे रत्ती भर

भी लिफ्ट देता तो में पहले ही दिन उसे सेंचुरी बनाने का मौका दे

देती."

"चल छीनाल कहीं की." रोमा ने कहा, "अछा एक बात तो बता .

अब तक कितने बॅट्स्मन को बॅटिंग करने का मौका दिया है?"

"वैसे अभी तक तो छीनाल बनी नही हूँ." गीता ने कहा, "पर हां

तेरे भाई के लिए छीनाल बनने को भी तय्यार हूँ, मैं तो बस इतना

कहती हूँ कि मैं अपनी जान देती हूँ इसपर."

"हां ये तो है." रोमा ने अपने भाई की ओर देखते हुए कहा जो तालाब

के राउंड लगाते हुए उनकी तरफ ही आ रहा था.

क्रमशः.............

raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 11 Dec 2014 08:58

1

Raj apne ghar se kuch doori par bane talab ke kinare ek ped ki chaya

me baitha tha. Raj ek 21 varsh ka gatheela naujawan tha. Sir par

kaale ghooghralu baal, chaudi balisht chaati aur majboot bahen.

Ye uski pasindada jagah thi. Use jab bhi samay milta wo yahin aakar

baithta tha. Yahan ka shant vatavaran aur ekant use acha lagta tha.

Raj ne aage badhkar ek pathar ko utha liya aur hawa me uchalne laga

jaise ki uska wajan naap raha ho. Phir uski nigah aapne saamne rakhe

kuch panno par padi, jinpar sundar aksharon me kuch likha hua tha.

Kagaz ke panne hawa me phad phada rahe the.

Pathar ke wajan se santoosht ho usne wo panne apni god me rakh liye

aur pathar ko thik unke beechon beech rakh kar panno ko us pather se

lapet diya. Phir apni jeb se ek patli si rassi nikal usne un panno

ko bandh diya.

Wo apni jagah se utha aur talab ke kinare par aakar us pathar ko

pani ke beechon beech faink diya. Pathar ke fainkte hi pani joron se

charon taraf uchala aur wo pathar talab ki gehraiyon me samata chala

gaya.

Raj chupchap soch raha tha ki naa jane kitne hi aise panne is talab

ki gehraion me dafan pade hai. Waise to pani ka ek katra un par

leekhi lakeereon ko mitane ke liye kafi hai par agar shabd sirf

dhoondle pad gaye to wo padhne ke liye kafi honge. Kya use in panno

ko jala dena chahiye tha jispar usne apni kalpaana ko ek kahani ki

shakl me anjaam diya tha.

Tabhi use talab ke doosri tarf se kuch awaaz sunai dee. Usne apni

behan ki awaaz ko turant pehchan liya. Wo turat us ped ke peeche

chip gaya jisse aanewale ki nazar us par na pad sake. Jaise hi usne

apni behan ko dekha jisne ek safed rang ki shorts ke upar ek laal

rang ka top pehan rakha tha uski aankhen band ho gayi. Usne ped ka

sahara le liya aur apne khayalon me khoya apni behan Roma ki pyaari

hansi sunne laga.

Thodi he der me uska lund uski short me tan kar khada ho gaya. Dil

me jajbat ka ek meetha meetha dard umadne laga. Wo janta tha ki use

ek din apni behan ko pana hai. Roma roz apni saheliyon ko ghar lakar

use chidhati thi. Use uski is harkat par pyaar aata tha par wo apni

behan se isse kahin jyada pyaar karta tha. Wo janta tha ki Roma ki

sab saheliyan use line marti hai par uski sab sunder saheliyan bhi

use apni behan se alag nahi kar sakti thi.

Raj ka dayan hath uske khade lund par aa gaya. Shorts ke upar se hi

wo apne lund ke supade ko masalne laga. Uske munh se ek madak karah

nikali to ped par baithe kuch panchi uski behan ki disha me ud gaye.

Use turant apni galti ka ehsas hua. Usne apne aap ko aur ped ke

peeche is kadar chupa liya ki kisi ki bhi nazar us par na pad sake.

Apne ekant se santoosht ho usne apni shorts ki zip kholi aur apne

khade lund ko khuli hawa me azaad kar diya. Ab wo apni aankhe band

apne lund ko masalne lagta hai. Khuli aankhon ke jagah wo band

aakhon se apni behan ko aur jyada acche roop me dekh raha tha.

Usne dekha ki uski behan nange paon ghas par daud rahi hai. Raj apni

18 varshiya behan ke peeche daud raha hai use pakadne ke liye aur

aakhir me wo use pakad hi leta hai. Dono ghas par gir jaate hai aur

Roma hans padti hai.

Thodi der bad wo uske mulayam panjo ko masalne lagta hai. Wo khule

aasman ke neeche ghas par lete uski ungliyon ko mehsus kar rahi thi.

Wo apni jaadui ungliyon se uski pairon ki maalish karne laga to wo

sisak padi aur uski chote chote mame top ke andar uchalne lage.

Usne uski daanyi tang ko utha kar apni god me rakh liya. Isse uski

janghe thodi fail gayi aur uski nazar thik uski janghon ke beech me

padi. Pair thoda sa utha hua hone ki wajah se shorts ke andar se sab

deekh raha tha. Usne dekha ki usne kale rang ki panty pehan rakhi

hai aur uski choot ki baarikiyan panty ke bagal se dikh rahi hai.

Raj apni kalpana ko kisi film ki tarah apne khayalon me dekh raha

tha, aur uska hath puri raftar se khud ke lund par chal raha tha.

Apni kalpana me Raj apne hath uske naajuk panjo ko masalte masalte

uske ghootno tak le aya aur wahan ki maalish karne laga. Kitni

sunder mulayam twacha thi. Ghootno ki maalish karte karte bhi uski

nigah shorts me deekhti kali panty par tiki hui thi. Ghutno se aage

badh kar uske hath ab jangho ke andruni hisson par pahunche.

Jaise hi uska hath janghon se thoda upar pahuncha uska sharir kanp

utha. Ek shant razamandi paa uske hath shorts ke andar uski panty ke

kinare tak pahunche to use laga jaise ki koi garam bhap panty ke

andar se uth rahi hai.

Ye uski kalapana thi. Aakhri chano me jab uske lund me ubaal aane

laga to usne yaahn tak soch dala ki wo uske pairon ke beech baitha

apne lund ko us chote se ched me ghusa raha ho. Uska lund us chote

ched ki deewaron ko chirta hua andar tak ghus raha hai.

Tabhi uske lund ne ubal khaya aur virya ki ek lambi pichkari samne

ke pathron par girne lagi. Wo joron se apne lund ko masalte hue lund

se aakhri boond tak pathoron par fainkne laga. Usne apni aankhe

kholi aur samne gire virya ko dekhne laga.

************

"Kahan hai wo?" Roma ne apne aap se pucha. Wo aur suki saheli Geeta

ek doosre ka hath pakde talab ke kinare tak aa gaye the. Usne abhi

thodi der pehle use talab ke kinare baithe ek pathar ko talab me

fainkte dekha tha, ab kahan chala gaya.

"Yaar me to thak gayi hun" Geeta ne shikayat ki. Use pata tha ki

uski koi ada koi tareeka Raj ko apni taraf aakarshit karne me kamyab

nahi ho paigi, "Meri to samajh me nahi aa raha ki mein kya karun."

"Aao yahan talab ke kinare baithte hai." Roma ne kaha.

Talab ke kinare baithte hi uska dhyaan apne 21 varshiya bhai Raj par

aa tika. Kitna akela akela rehta hai wo. Wo hamesha apni saheliyon

ko ghar lekar aati jisse uska dil behal jaye. Par wo hai ki alag

alag hi rehna pasand karta hai.

Roma ko pata tha ki uska bhai ek pyaara aur jajbati insaan hai. Wo

apne college ki aakhri saal me thi aur Raj graduation kar chuka tha.

Graduation karne ke baad bhi usne abhi tak koi girl freind nahi

banayi thi. Wo isi umeed se apni saheliyon ko ghar laati ki shayad

inme se koi uske bhai ko bha jaye. Par aisa na hone par ab uski

saheliyon ne bhi aana chod diya tha. Geeta bhi yahi shikayat kar

rahi thi. Roma ko sab samajh me aaa raha tha aur use apne bhai par

jh*****at bhi ho rahi thi aur uski is ada par pyaar bhi aata tha.

"Sirf apni stupid kitab me kuch likhta rahta hai." Roma ne shikayat

karte hue kaha.

"Raj...aur likhta rehta hai?" Geeta ne ashcarya se pucha.

"Haan aur kya." Roma ne kaha, "yahi kaam hai jo wo din bhar karta

rehta hai. Graduation ke baad kitna badal gaya hai wo. Aisa lagata

hai ki uski jindagi kisi jagah aakar thehar gayi hai. Wo mujhe bhi

har samay nazar andaz karta rehta hai. Samajh me nahi aata ki use

pareshani kya hai. "

"Kya likhta rehta hai wo apni kitaab me?" Geeta ne pucha.

Roma ne apne kandhe uchkate hue kaha, "mujhe pata nahi. Meine kai

bar janne ki koshish ki lekin wo pani keetab is kadar chupa kar

rakhta hai ki kuch pata nahi. Jab wo likhna khatam kar leta hai to

un panno ko kitaab me se phad deta hai. Hazaron kahaniyan likhi hogi

usne."

"Ho sakta ho ki wo kahaniyan na ho, sirf dairy maintain karta ho"

Geeta ne kaha.

"Haan ho sakta hai," Roma ne itna kaha hi tha ki usne Raj ko ped ke

peeche se bahar aate dekha. Pehli baar use ehsas hua ki wo ped ke

peeche tha, par wo kar kya raha tha? usne socha.

"Shaitan ka naam lo aur shaitan hazir hai." Geeta ne hanste hue

kaha, "tumhe pata hai Roma agar ye tera bhai agar mujhe rati bhar

bhi lift deta to mein pehel hi din use century banane ka mauka de

deti."

"Chal chinal kahin ki." Roma ne kaha, "achaa ek baat to bata wiase

ab tak kitne batsman ko batting karne ka mauka diya hai?"

"Waise abhi tak to chinal bani nahi hun." Geeta ne kaha, "par haan

tere bhai ke liye chinal banne ko bhi tayyar hun, mein to bas itna

kehti hun ki mein apni jaan deti hun ispar."

"Haan ye to hai." Roma ne apne bhai ki aur dekhte hue kaha jo talab

ke round lagate hue unki taraf hi aa raha tha.

kramashah.............


raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 11 Dec 2014 09:00

2

गतान्क से आगे.............

रोमा के मन मे जलन सी जाग गयी ये सोच कर कि कितनी लड़कियाँ उसके

भाई पर जान छिड़कती है. उसकी आँखों मे हल्की सी नमी सी आ गयी.

दिल मे एक अजीब सा दर्द सा उठने लगा जो हमेशा किसी वक्त उसके

प्यार से भरा रहता था. अब वो उसपर ध्यान ही नही देता था.

रोमा ने देखा कि राज उनकी तरफ ही बढ़ रहा है. जलन के मारे उसने

गीता को देखा जो घास पर लेटी थी और अपने उठे हुए मम्मे दीखाने

की कोशिश कर रही थी. उसकी चुचियाँ किसी मधुमक्खी के छ्त्ते

की तरह उठी हुई थी जैसे की मक्खियो को न्योता दे रही हो. उसकी

समझ मे नही आ रहा था कि अगर राज ने उसकी तरफ ध्यान दिया और

कुछ कहा तो वो क्या करेगी.

किंतु राज ने ऐसा कुछ नही किया और उसकी बगल से गुज़ारते हुए उसके

सिर को ठप थपाते हुए सिर्फ़ इतना कहा, "अपनी जिंदगी को जीना

सीखो और मेरी जिंदगी मे दखल देना बंद करो."

राज की बात उसके दिल को चुब सी गयी किंतु दिल मे एक अजीब सी खुशी

भी जाग उठी. आज कितने महीनो बाद उसके भाई ने उससे बात की थी.

खुशी की एक हल्की लकीर उसके होठों पर आ गयी.

"में तो अपनी जिंदगी जी रही हूं लेकिन एक तुम हो जो अपनी जिंदगी

से भाग रहे हो..." रोमा ने अपनी खुशी को छुपाते हुए कहा.

राज ने एक राहत की सांस ली. वो हमेशा से डरता था कि अगर वो रोमा

के ज़्यादा करीब रहेगा तो एक दिन उसकी बेहन उसके मन की भावनाओ को

पहचान लेगी. जबसे उसकी कल्पनाओ मे वो आने लगी थी उसने उसके करीब

रहना छोड़ दिया था. एक यही तरीका था उसके पास से अपने ज़ज्बात और

अपनी भावनाओ को छिपाने का. वो अपनी बेहन को बहोत प्यार करता था

और उससे दूर रह कर ही वो एक बड़े भाई का फ़र्ज़ निभा सकता था.

"तुम सच कहती हो रोमा, वो अपनी जिंदगी से भाग ही रहा है." राज

के व्यवहार को देख गीता को एक बार फिर दुख पहुँचा था. उसने

कितना प्रयत्न किया था कि वो राज को आकर्षित कर सके किंतु वो

सफल नही हो पा रही थी.

"रोमा में अब चलती हू सोमवार को सुबह कॉलेज मे मिलेंगे." गीता

इतना कहकर वहाँ से चली गयी.

रोमा ने पलट कर अपने भाई की ओर देखा. राज उसकी नज़रों से ओझल

हो चुका था लेकिन वो अब भी उसके ख़यालों मे बसा हुआ था. उसे लगा

कि वो घूम कर उसके पास आ गया है और उसकी बगल मे घास पर

बैठ गया हो. वो उससे उसके दोस्त, उसकी कॉलेज लाइफ के बारे मे पूछ

रहा है.

उसकी कल्पना मे आया कि अचानक उसका बाँया हाथ उसके दाएँ हाथ से

टकरा गया और उसके बदन मे जैसे बिजली का करेंट दौड़ गया हो.

उसके मन मे आया कि वो उसे सब कुछ बता दे कि किस तरह उसकी कमी

उसके जीवन को खोखला कर रही है, उसे अपना वही पुराना भाई

चाहिए जो पहले था.

* * * * * * * * *

"रोमा ज़रा ये कचरा तो बाहर फैंक देना." उसकी मम्मी ने कहा.

"पर मम्मी ये तो राज का काम है ना." रोमा ने कहा.

"राज घर पर नही है, और तुम घर पर हो इसलिए मुझसे ज़्यादा

बहस मत करो और जाकर कचरा फैंक कर आओ." उसकी मम्मी ने थोड़ा

गुस्सा दिखाते हुए कहा.

बेमन से रोमा ने कचरे की थैली बस्टबिन से बाहर निकाली और बगल

मे रख दी. फिर एक फ्रेश नई थैली डस्ट बिन मे लगा दी तभी उसका

ध्यान कचरे की थैली से बाहर झाँकती एक कीताब पर पड़ी.

उत्स्सूकता वश उसने वो कीताब उठा ली और बगल की अलमारी मे छिपा

दी.

रोमा कचरे की थैली घर से बाहर फैंक कर वापस आई और वो

कीताब अलमारी से निकाल अपने कमरे मे आ गयी. कमरे का दरवाज़ा अंदर

से बंद कर वो कीताब खोल देखने लगी. उसने देखा कि कीताब के

पन्ने कोरे थे और उनपर कुछ भी नही लिखा था.

उसका दिल मायूशी मे डूब गया. उसे लगा था कि वो राज की कहानी का

राज आज जान जाएगी तभी उसने देखा कि पन्नो पर लिखाई के कुछ

अक्षर दिख रहे है.

वो दौड़ कर अपने कॉलेज बॅग से पेन्सिल निकाल कर ले आई और उन

पन्नो पर घिसने लगी. थोड़ी ही देर मे लीखाई के अक्षर उभर कर

सॉफ हो गये.

कीताब पर लीखे शब्दों को पढ़ वो चौंक गयी. क्या राज यही सब

अपनी कहानी मे लीखता रहता है.

...."मेने उससे कह दिया कि मैं उससे प्यार करता हूँ. वो मुस्कुरा

कर मेरी तरफ देखती है. मैं हल्के से उसकी चुचि को छूता हूँ

और वो सिसक पड़ती है. में और ज़ोर से दबाता हूँ. उसे आछा

लगता है.

......अब में उसकी दोनो चुचियों को दबाता हूँ. अब वो गरमाने

लगती है. में जानता हूँ वो मुझे पाना चाहती है........"

"कौन है ये लड़की...?" रोमा मन ही मन बदबूदा उठती है. कोई

कल्पनायक लड़की है या हक़ीकत मे कोई है...."

रोमा कीताब को अपनी छाती से लगाए पलंग पर लेट जाती है. वो

सोचने लगती है कि वो लड़की कौन हो सकती है. अचानक उसे लगता

है कि वो लड़की खुद ही है. अपनी ही कल्पना मे खोए वो अपने अक्स

को उन कोरे पन्नो मे ढूँदने की कोशिश करती है.

"ओह्ह्ह्ह राज में तुमसे कितना प्यार करती हूँ." वो कह उठती है, उसे

लगता है कि राज उसकी बगल मे ही लेटा हुआ है.

अपना प्यार खुद पर जाहिर कर उसे लगा कि उसके दिल से बोझ उत्तर

गया. जिन भावनाओ को वो छुपाते आई थी आज वो रंग दीखाने लगी

थी. उसके हाथ खुद बा खुद उसकी चुचियों पर जा पहुँचे और

वो उन्हे मसल्ने लगती है. उत्तेजना और प्यार की मादकता मे उसके

निपल तन कर खड़े जो जाते है. कामुकता की आग मे उसका बदन

ऐंठने लगता है.

दरवाज़े पर थपथपाहट सुन उसका ध्यान भंग होता है. फिर जैसे

वो दरवाज़े को खुलता देखती है झट से अपना हाथ अपनी चुचियों से

खींच लेती है.

राज ने अर्ध खुले दरवाज़े से अंदर झाँका. उसने देखा कि रोमा का लाल

रंग का टॉप थोड़ा उपर को खिसका हुआ था और उसकी चुचियों की

गोलियाँ साफ दिखाई दे रही थी साथ ही उसके खड़े निपल भी उसकी

नज़र से बच नही सके. इस नज़ारे को देख उसका लंड उसकी शॉर्ट मे

फिर एक बार तन कर खड़ा हो गया.

रोमा ने उसकी नज़रों का पीछा किया तो उसने देखा कि राज उसकी

चुचियों को ही घूर रहा था. उसने झट से अपने टॉप को नीचे किया

पर ऐसा करने से उसके निपल और तने हुए देखाई देने लगे. शर्म

और हया के मारे उसका चेहरा लाल हो गया.

"तुम मेरी जगह पर कचरा फैंक कर आई उसके लिए तुम्हे थॅंक्स

कहने आया था." राज ने कहा.

"कोई बात नही." वो चाहती थी कि राज जल्दी से जल्दी यहाँ से चला

जाए.

राज कुछ और कहना चाहता था लेकिन जब उसने देखा कि रोमा शर्मा

रही है तो उसके मन को पढ़ते हुए वो चुपचाप वहाँ से चला गया.

रोमा अपने चेहरे को अपने हाथों से धक अपने आपको कोसने

लगी, "बेवकूफ़ लड़की आज कितने महीनो बाद उसने तुमसे इस तरह

प्यार से बात की और तुम हो कि उसे भगा दिया. तुम्हे बिस्तर पर उठ

कर बैठ जाना था और उसे कमरे मे आने के लिए कहती. बेवकूफ़

बेवकूफ़."

जैसे ही वो बिस्तर पर से उठने लगी उसकी नज़र राज की किताब और

पेन्सिल पर पड़ी, "हे भागन काश उसने ये सब ना देखा हो."

रोमा सोच मे पड़ गयी कि हे भगवान उसने ये क्या किया. अगर राज ने

वो कीताब देख ली होगी तो एक बार फिर उसने राज को खो दिया है. वो

अपनी रुलाई को रोक ना पाई, उसकी आँखों से तार तार आँसू बहने लगे.

* * * * *

राज का ध्यान अपनी बेहन पर से हटाए नही हट रहा था. जब वो

बाहर से आया तो मम्मी ने उससे कहा था कि वो जाकर रोमा का

धन्यवाद करे क्यों कि उसका काम रोमा ने किया था.

मम्मी की अग्या मान वो उसके कमरे मे गया था और उसने उसे थॅंक्स

कहा था. जब उसने रोमा को बिस्तर पर लेटे देखा तो उसे वो किसी

अप्सरा से कम नही लगी थी. जिस तरह से वो लेटी थी और उसके टॉप मे

उपर को उठी हुई उसकी चुचियाँ और उसके खड़े निपल दीख रहे

थे वो ठीक किसी काम देवी की तरह लग रही थी.

उसके दिल मे तो आया कि उन कुछ लम्हो मे वो अपने दिल की बात रोमा को

बता दे लेकिन दिल की बात ज़ुबान तक आ नही पाई. उसकी समझ मे

नही आया कि वो अपने ज़ज्बात किस तरह अपनी सग़ी बेहन को बताए. वो

अपनी बातों को शब्दों मे ढाल नही पाया. उसे पता था कि थोड़े

दिनो मे रोमा कॉलेज चली जाएग्गी और शायद उसे फिर मौका ना मिले

उसे बताने का.

राज अपने कमरे मे आ गया, वो चाहता तो सीधे रोमा के कमरे मे

जाता और उसे सब कुछ बता देता पर उसमे शायद इतनी हिम्मत नही

थी कि वो उसे बता पाए.

उसे उमीद थी कि रात के खाने पर रोमा से उसकी मुलाकात होगी. पर

रोमा थी कि उसका कहीं पता नही था. राज ने खाना ख़त्म ही किया

था कि उसका सबसे प्यारा दोस्त जय अपनी बेहन रिया के साथ आ

पहुँचा. रिया बगल के सहर के कॉलेज मे पढ़ती थी. जय राज की

ही उमर का था और दोनो ने ग्रॅडुटाशॉन साथ साथ पूरा किया था.

क्रमशः.............


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