दो भाई दो बहन compleet

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raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 25 Dec 2014 17:12

दोनो आपस मे बातें कर रहे थे जिसे राज सुन नही सका...पर जो

उसने देखा उसपर उसे विश्वास नही हुआ... रोमा ने अपना हाथ उस मर्द

की गर्दन मे डाला और अपने होंठ उस मर्द के होंठो पर रख दिए..

दोनो एक दूसरे को चूम रहे थे....मर्द के बाहें उसकी कमर मे कसी

हुई थी. राज समझ रहा था कि ये चुंबन या अप्नत्व कोई दोस्ताना

नही था.. ज़रूर रोमा का इस मर्द के साथ कोई चक्कर है.... उस

मर्द ने अपनी निगाहें रोमा के पीछे की ओर डाली और फिर उसका हाथ

पकड़ घर के अंदर ले गया.

राज पेड़ का सहारा लिए असहाय खड़ा था.. उसकी आँखों मे आँसू आ

गये थे.. दो चार बूंदे बह कर उसके गालों पर आ गयी थी... उसे

रोमा के इस व्यवहार से दुख पहुँचा था... दिल को चोट लगी थी.....

"तुम ऐसा क्यों कर रही हो रोमा? क्या तुम मुझे रिया के साथ देख

जलती हो? क्या मुझे जलाने के लिए तुम ये सब कर रही हो?" राज का

दिल रो पड़ा.

रोमा को चूमते हुए जीत ने महसूस किया कि पेड़ के पीछे से कोई उन्हे

देख रहा है.. वो रोमा को घर के अंदर ले आया और दरवाज़ा बंद

कर दिया.... उसने रोमा से कुछ नही कहा.. उसे पक्का विश्वास नही

था कि उसने किसी को देखा है.. ये उसका भ्रम भी हो सकता था...

बेवजह रोमा को बता कर वो उसे डराना नही चाहता था.

"तुम्हारा फोन आया तो में चौंक पड़ा था... " जीत ने कहा, "में

तो समझ रहा था कि आज की शाम तुम घर पर रहकर पढ़ाई

करोगी."

"हां पहले मेने भी यही सोचा था... पर शायद मेरा भाई अपनी

गिर्ल्फ्रेंड के साथ बाहर चला गया था.... में घर पर बोर हो

रही थी.. मेने थोड़ी देर टीवी देखा.. पर ज़्यादा बोरियत होने लगी तो

मेने तुम्हे फोन किया." रोमा ने जवाब दिया.

"तुम्हारा जब जी चाहे तुम मुझे फोन कर सकती हो या यहाँ आ

सकती हो.. ये बात तुम जानती हो." जीत ने उसके कंधो पर हाथ

रखते हुए कहा, "में देख रहा हूँ कि तुम अपनी कीताबें अपने साथ

लाई हो,, आज क्या पढ़ने का इरादा है?

"कीताबें तो लाई हूँ लेकिन पढ़ने का मन नही है." रोमा ने जवाब

दिया.

"ये तो बहोत अछा है.. शाया हम दोनो मिलकर टीवी पर कोई प्रोग्राम

देख सकें." जीत ने कहा.

"नही... टीवी देखना का भी मन नही है." रोमा ने कहा.

"तो चलो फिर ताश वाईगरह खेलते है." जीत ने सलाह दी.

"नही उसका भी मूड नही है." रोमा ने हिचकिचाते हुए कहा.

"फिर कुछ तो तुम्हारे दीमाग मे होगा... अब तुम खुद बताओगि या फिर

में यूँ ही सोचता रहूं कि तुम्हारे दिल मे क्या है?" जीत ने पूछा.

"तुम जानते हो कि मुझे क्या चाहिए.. या फिर तुम ये चाहते हो कि

में बेशरम बन तुम जैसे शरीफ इंसान से कहूँ कि मुझे क्या

चाहिए." रोमा ने धीमे से कहा.

"तो तुम मुझे शरीफ समझती हो?" जीत ने मुस्कुराते हुए कहा.

जीत की बात सुनकर वो खिलखिला पड़ी फिर वो उसकी बाहों मे घूम

गयी.. उसकी पीठ जीत की छाती से चिपकी हुई थी और उसके हाथ उसकी

कमर से लिपटे हुए थे.

"रात को जब तुम इस घर मे बिस्तर पर अकेले सोते हो तो क्या तुम्हे

मेरी याद आती है? क्या तुम मेरे बारे मे सोचते हो?" रोमा ने पूछा.

"यार में भी इंसान हूँ.. हाँ सोचता भी हूँ और याद भी बहोत

आती है..." जीत ने हक़ीकत बयान कर दी.

raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 25 Dec 2014 17:12

जीत समझ रहा था कि रोमा इन बातों के ज़रिए कहाँ बढ़ रही

थी.. लेकिन वो इस लड़की को बहोत पसंद करने लगा था... साथ ही वो

सुंदर और सेक्सी भी थी.. वो अंजान बन उसके खेल मे साथ देने लगा.

"जब तुम मेरे बारे मे सोचते हो तो क्या तुम्हारा लंड तन कर खड़ा हो

जाता है?"

"इतना ज़्यादा तन जाता है कि लंड मे दर्द होने लगता है.. सहा नही

जाता." जीत ने जवाब दिया.

रोमा एक बार फिर खिलखिला पड़ी.. वो ख़यालों मे उसके तने हुए लंड

की कल्पना करने लगी.. उसके चूत मे सरसराहट होने लगी... वो

कल्पना करने लगी की वो उसके तने हुए लंड को चूस रही है.. और

फिर उसके लंड से छूटे वीर्य को चटकारे लेकर पी रही है.. और

चाट रही है... या फिर उस लंड को अपनी चूत मे ले रही है...

"कहाँ खो गयी.. क्या सोचने लगी?" जीत ने पूछा.

"ऐसा क्या सोचते हो जिससे तुम्हारा लंड तन जाता है?" रोमा ने एक

बार फिर पूछा.

"में तुम्हे करके बताता हूँ>"

रोमा उसकी छाती से चिपक गयी और उसने अपनी आँखे बंद कर ली...

जीत के उंगलियाँ और हथेली उसकी नाज़ुक चिकिनी कमर को सहलाने

लगे...रोमा की साँसे तेज होने लगी.. निपल ब्लाउस के नीचे तनने

लगे.....जांघों के बीच गर्मी बढ़ने लगी.

जीत के हाथ जैसे ही उसकी कमर से उपर की ओर बढ़ने लगा रोमा

मुस्कुरा दी... आज जान बुझ कर उसने ब्रा नही पहनी थी... उसे

विश्वास था कि जब जीत ये देखेगा तो खुश हो जाएगा.

जीब की उंगलियों ने उसकी चुचियों को गोलैईयों को छुआ तो उसका बदन

कांप उठा... उसकी उंगलियाँ उसकी चुचियों के चारों ओर फिरने लगी..

और निपल को सहलाने लगी.

"तुम पहले से जानती थी कि ये सब ऐसा ही होगा इसलिए तुमने आज ब्रा

नही पहनी है ना? फिर ये बॅग और बुक लाने की क्या ज़रूरत थी..

में भी ज़बरदस्ती सोच मे पड़ गया या फिर तुम मुझे आजमाना

चाहती थी? जीत ने उसकी चुचियों को हल्के से भींचते हुए बोला.

रोमा ने अपने हाथों को उठाया और उसकी गर्दन को नीचे कर उसकी

आँखों मे देखते हुए अपने होठ उसके होठों पर रख दिए.

जीत के होठों ने उसके होठों को अपने घेरे मे ले लिया और दोनो की

जीब आपस मे मिल गयी.....जीत के हाथ उसकी चुचियों को मसल रहे

थे उसके निपल को भींच रही थी... रोमा चूत बढ़ती सरसराहट

से सिसक पड़ी.....

दोनो एक दूसरे की जीब को चूस रहे थे... जीत जितनी ज़ोर से उसकी

चुचि को मसलता रोमा उतनी ज़ोर से उसकी जीब को चूसने लगती.....

आख़िर रोमा ने अपना मुँह उसके मुँह पर हटा लिया और एक गहरी सांस

ले अपनी साँसे संभालने लगी... थूक उसके होठों के किनारे से बह

रहा था.

जीत का लंड उसकी पॅंट के अंदर पूरी तरह तन कर खड़ा हो चुका

था.. वो अपने खड़े लंड को पीछे से रोमा के चूतडो पर रगड़ने

लगा....जीत उसके ब्लाउस के बटन को खोलने लगा और फिर ब्लाउस को

खोल कर उसकी चुचियों को आज़ाद कर दिया.... फिर दोनो हाथो से

उसकी दोनो चुचियों को पकड़ने मसल्ने लगा.

"मुझे तुम्हारी ये चुचियाँ बहोत पसंद है.. कितनी मुलायम है और

साथ ही कठोर भी" जीत उसके कान मे फुसफुसाते हुए बोला.. "तुम

कितनी सुंदर हो रोमा."

रोमा ने अपना हाथ पीछे किया और जीत के लंड को पॅंट के उपर से

सहलाने लगी.. उसने महसूस किया कि उत्तेजना मे उसकी पॅंट थोड़ी वहाँ

से गीली हो गयी थी.. शायद लंड से रस चुउ रहा था. ... वो उसके

लंड के सूपदे को पॅंट के उपर से ही महसूस कर सहला रही थी....

लंड और अपने पूरे आकार मे आने लगा.

raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 25 Dec 2014 17:13

रोमा ने अपना हाथ उसके लंड पर से हटाया और घूम कर उसके चेहरे

को देखने लगी फिर उसके सामने अपने घुटनो के बल ज़मीन पर बैठ

गयी.... वो पॅंट पर से दिखाई देते उसके लंड के आकर को देखने

लगी.... उसकी उंगलियाँ लंड पर घूमने लगी.... अपने होठों पर

ज़ुबान फिराते हुए उसने उसकी पॅंट के बटन को खोल ज़िप को नीचे

खिसका दिया.... पॅंट का थोड़ा ढीला होना था कि उसका लंड फड़फदा

उठा लेकिन वो अब भी अंडरवेर मे क़ैद था.

रोमा ने पॅंट के साथ उसकी अंडरवेर को भी नीचे खिसका दिया....

उसकी नज़रे देखती रह गयी.. जीत का लंड किसी साँप की तरह उसके

चेहरे के सामने फन उठाए खड़ा था.... सूपड़ा रस चूहने के वजह

से चिकना था और चमक रहा था.... वो थोड़ा सा आगे झुकी और

अपना मुँह खोलते हुए उसे उस लंड को अपने मुँह मे ले लिया.....

"श रोमा मेरे लंड पर तुम्हारे मुँह का अहसास कितना अच्छा लग रहा

है. ओह." जीत चहक उठा.

जीत ने अपने दोनो हाथ उसके सिर के पीछे रख अपनी उंगलियाँ उसके

बालों मे फिरने लगा...

रोमा अपनी नाज़ुक हथेली मे उसके लंड की गोलैईयों को पकड़ सहला रही

थी.... फिर उसके लंड को अपनी मुठ्ठी मे भर मसल्ने लगी और साथ

ही अपने मुँह को उपर नीचे कर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. जीत इतना

उत्तेजित का था कि उससे सहन नही हुआ और उसके लंड ने ज़ोर की

पिचकारी मारते हुए वीर्य छोड़ दिया... रोमा ने उस वीर्य को मुँह मे

भरा और स्वाद लेकर पीने लगी.

जीत का दिल चाह रहा था कि रोमा इसी तरह उसके लंड को चूस्ति

रहे और वो पानी पर पानी छोड़ता रहे लेकिन वो जानता था कि बार

झड़ने बाद दूबारा करना थोड़ा मुश्किल था.. जब उसके लंड की

आखरी बूँद भी निचोड़ गयी तो उसने अपने लंड को बाहर निकाल लिया.

जीत ने रोमा को ज़मीन पर से खड़ा किया और उसका हाथ पकड़ उसे

किचन मे ले आया और डिन्निंग टेबल उसे बिठा दिया.

"ये तुम मुझे किचन मे क्यों ले आए," रोमा ने उत्सुक होकर पूछा.

"क्यों कि में अपनी भूक यहीं शांत करता हूँ." जीत ने जवाब

दिया.

रोमा उसकी बात सुनकर हँसने लगी.

जीत ने अपना हाथ उसकी छोटी स्कर्ट के अंदर डाला और उसकी पॅंटी को

पकड़ नीचे खींच दिया...पॅंटी का आगे का हिस्सा उत्तेजना मे गीला

हो गया था.....रोमा को पता था कि जीत क्या चाहता है... एक बार

पॅंटी उतर गयी तो वो पीछे की तरफ लेट से गयी और अपनी टाँगे

फैला दी...

"तुम्हारी चूत बहोत सुंदर है.. जी करता है कि इसे खा जाऊ."

जीत ने उसकी नंगी चूत को देखते हुए कहा.

रोमा ने कई दिनो से अपनी झांते सॉफ नही की थी इसलिए चूत के

चारों और हल्के हल्के बाल निकल आए थे... जीत ने अपनी उंगलियाँ

चूत के उपरी हिस्से पर फिराई...फिर झुक कर उसने अपना मुँह उसपर

रख दिया... जैसे ही उसकी जीब चूत के अंदर घुसी तो उसे लगा कि

जैसे उसकी जीब किसी रसदार गुलाबी फल को छू गयी है...


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