दिल पर जोर नहीं compleet

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The Romantic
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दिल पर जोर नहीं compleet

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 15:34

दिल पर जोर नहीं

उस दिन मेरी शादी की 11वीं सालगिरह थी। संजय ने मुझे बड़ा सरप्राइज देने का वादा किया था। मैं बहुत उत्‍सुक थी। कई बार संजय से पूछ भी चुकी थी कि वो मुझे क्‍या सरप्राइज देने वाले हैं? पर वो भी तो पूरे जिद्दी थे। मेरी हर कोशिश बेकार हो रही थी।
संजय ने बोल दिया था कि इस बार सालगिरह घर में ही मनायेंगे किसी बाहर के मेहमान को नहीं बुलायेंगे बस हम दोनों और हमारे दो बच्‍चे।
मैं ब्‍यूटी पार्लर से फेशियल करवाकर बच्‍चों के आने से पहले घर पहुँच गई। हम मध्‍यम वर्गीय परिवारों की यही जिन्‍दगी होती है।
मैंने शाम होने से पहले ही संजय के आदेशानुसार उनका मनपसंद खाना बनाकर रख दिया। बच्‍चे कालोनी के पार्क में खेलने के लिये चले गये। मैं खाली वक्‍त में अपनी शादी के एलबम उठाकर बीते खुशनुमा पलों को याद करने लगी। तभी दरवाजे पर घण्टी बजी और मेरी तंद्रा भंग हुई।
मैं उठकर दरवाजा खोलने गई तो संजय दरवाजे पर थे। वो जैसे ही अन्‍दर दाखिल हुए, मैंने पूछा- आज छुट्टी जल्‍दी हो गई क्‍या?
और मुड़कर संजय की तरफ देखा। पर यह क्‍या? संजय तो दरवाजे पर ही रुके खड़े थे।
मैंने पूछा- अन्‍दर नहीं आओगे क्‍या?
वो बोले- आऊँगा ना, पर पहले तुम एक रुमाल लेकर मेरे पास आओ दरवाजे पर।
मेरे मना करने पर वो गुस्‍सा करने लगे। आखिर में हारना तो मुझे ही था, मैं रुमाल लेकर दरवाजे पर पहुँची।
पर यह क्‍या उन्‍होंने तो रुमाल मेरे हाथ से लेकर मेरी आँखों पर बांध दिया, मुझे घर के अन्‍दर धकेलते हुए बोले- अन्दर चलो।
अब मुझे गुस्‍सा आया- “मैं तो अन्‍दर ही थी, आप ही ने बाहर बुलाया और आँखें बंद करके घर में ले जा रहे हो… आज क्‍या इरादा है? मैंने कहा।”
“हा..हा..हा..हा..” हंसते हुए संजय बोले 11 साल हो गये शादी को पर अभी तक तुमको मुझे पर यकीन नहीं है। वो मुझे धकेल कर अन्‍दर ले गये और बैडरूम में ले जाकर बंद कर दिया। मैं बहुत विस्मित सी थी कि पता नहीं इनको क्‍या हो गया है? आज ऐसी हरकत क्‍यों कर रहे हैं? क्‍योंकि स्‍वभाव से संजय बहुत ही सीधे सादे व्‍यक्ति हैं।
अभी मैं यह विचार कर ही रही थी कि संजय दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुए और आते ही मेरी आँखों की पट्टी खोल दी।
मैंने पूछा, “यह क्‍या कर रहे हो आज?”
संजय ने जवाब दिया, “तुम्‍हारे लिये सरप्राइज गिफ्ट लाया था यार, वो ही दिखाने ले जा रहा हूँ तुमको !”
सुनकर मैं बहुत खुश हो गई, “कहाँ है….?” बोलती हुई मैं कमरे से बाहर निकली तो देखा ड्राइंग रूम में एक नई मेज और उस पर नया कम्‍प्‍यूटर रखा था। कम्‍प्‍यूटर देखकर मैं बहुत खुश हो गई क्‍योंकि एक तो आज के जमाने में यह बच्‍चों की जरूरत थी। दूसरा मैंने कभी अपने जीवन में कम्‍प्‍यूटर को इतने पास से नहीं देखा था। मेरा मायका तो गाँव में था, पढ़ाई भी वहीं के सरकारी स्‍कूल में हुई थी… और शादी के बाद शहर में आने के बाद भी घर से बाहर कभी ऐसा निकलना ही नहीं हुआ। हाँ, कभी कभार पड़ोस में रहने वाली मिन्‍नी को जरूर कम्‍प्‍यूटर पर काम करते या पिक्‍चर देखते हुए देखा था।
पर संजय के लिये इसमें कुछ भी नया नहीं था, वो पिछले 15 साल से अपने आफिस में कम्‍प्‍यूटर पर ही काम करते थे। मुझे कई बार बोल चुके थे कि तुम कम्‍प्‍यूटर चलाना सीख लो पर मैं ही शायद लापरवाह थी। परन्‍तु आज घर में कम्‍प्‍यूटर देखकर मैं बहुत खुश थी। मैंने संजय से कहा- इसको चलाकर दिखाओ।
उन्‍होंने कहा- रूको मेरी जान, अभी इसको सैट कर दूँ, फिर चला कर दिखाता हूँ।
तभी बच्‍चे भी खेलकर आ गये और भूख-भूख चिल्‍लाने लगे। मैं तुरन्‍त रसोई में गई। तभी दोनों बच्‍चों का निगाह कम्‍प्‍यूटर पर पड़ी। दोनों खुशी से कूद पड़े, और संजय से कम्‍प्‍यूटर चलाने के जिद करने लगे। संजय ने बच्चों को कम्प्यूटर चला कर समझया और समय ऐसे ही हंसी-खुशी बीत गया। कब रात हो गई पता ही नहीं चला।
मैं दोनों बच्‍चों को उनके कमरे में सुलाकर नहाने चली गई। संजय कम्‍प्‍यूटर पर ही थे।
मैं नहाकर संजय का लाया हुआ सैक्‍सी सा नाइट सूट पहन कर बाहर आई क्‍योंकि मुझे आज रात को संजय के साथ शादी की सालगिरह जो मनानी थी, पर संजय कम्‍प्‍यूटर पर व्‍यस्‍त थे। मुझे देखते ही खींचकर अपनी गोदी में बैठा लिया, मेरे बालों में से शैम्‍पू की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, संजय उसको सूंघने लगे।
उनका एक साथ कम्‍प्‍यूटर के माऊस पर और दूसरा मेरे गीले बदन पर घूम रहा था। मुझे उनका हर तरह हाथ फिराना बहुत अच्‍छा लगता था। पर आज मेरा ध्‍यान कम्‍प्‍यूटर की तरफ ज्‍यादा था क्‍योंकि वो मेरे लिये एक सपने जैसा था।
संजय ने कहा, “तुम चला कर देखो कम्‍प्‍यूटर !”
“पर मुझे तो कम्‍प्‍यूटर का ‘क’ भी नहीं आता मैं कैसे चलाऊँ?” मैंने पूछा।
संजय ने कहा, “चलो तुमको एक मस्‍त चीज दिखाता हूँ।” उनका बांया हाथ मेरी चिकनी जांघों पर चल रहा था। मुझे मीठी मीठी गुदगुदी हो रही थी। मैं उसका मजा ले रही थी कि मेरी निगाह कम्‍प्‍यूटर की स्‍क्रीन पर पड़ी। एक बहुत सुन्‍दर दुबली पतली लड़की बाथटब में नंगी नहा रही थी। लड़की की उम्र देखने में कोई 20 के आसपास लग रही थी। उसका गोरी चिट्टा बदन माहौल में गर्मी पैदा कर रहा था।
साथ ही संजय मेरी जांघ पर गुदगुदी कर रहे थे।
तभी उस स्‍क्रीन वाली लड़की के सामने एक लम्‍बा चौड़ा कोई 6 फुट का आदमी आकर खड़ा हुआ…
आदमी का लिंग पूरी तरह से उत्‍तेजित दिखाई दे रहा था। लड़की ने हाथ बढ़ा का वो मोटा उत्‍तेजित लिंग पकड़ लिया…
वो अपने मुलायम मुलायम हाथों से उसकी ऊपरी त्‍वचा को आगे पीछे करने लगी।
मैं अक्‍सर यह सोचकर हैरान हो जाती कि इन फिल्‍मों में काम करने वाले पुरुषों का लिंग इतना मोटा और बड़ा कैसे होता है और वो 15-20 मिनट तक लगातार मैथुन कैसे करते रह सकते हैं।
मैं उस दृश्‍य को लगातार निहार रही थी….
उस लड़की की उंगलियाँ पूरी तरह से तने हुए लिंग पर बहुत प्‍यार से चल रही थी….
आह….
तभी मुझे अहसास हुआ कि मैं तो अपने पति की गोदी में बैठी हूँ ! उन्‍होंने मेरा बांया स्‍तन को बहुत जोर से दबाया जिसका परिणाम मेरे मुख से निकलने वाली ‘आह….’ थी।
संजय मेरे नाइट सूट के आगे के बटन खोल चुके थे…. उनकी उंगलियाँ लगातार मेरे दोनों उभारों के उतार-चढ़ाव का अध्‍ययन करने में लगी हुई थी। मैंने पीछे मुड़कर संजय की तरफ देखा तो पाया कि उसके दोनों हाथ मेरे स्‍तनों से जरूर खेल रहे थे परन्‍तु उनकी निगाह भी सामने चल रहे कम्‍प्‍यूटर की स्‍क्रीन पर ही थी।
संजय की निगाह का पीछा करते हुए मेरी निगाह भी फिर से उसी स्‍क्रीन की तरफ चली गई। वो खूबसूरत लड़की बाथटब से बाहर निकलकर टब के किनारे पर बैठी थी। पर ये क्‍या…. अब वो मोटा लिंग उस लड़की के मुँह के अन्‍दर जा चुका था, वो बहुत प्‍यार से अपने होठों को आगे-पीछे सरकाकर उस आदमी के लिंग को लॉलीपाप की तरह बहुत प्‍यार से चूस रही थी।
मैंने महसूस किया कि नीचे मेरे नितम्‍बों में भी संजय का लिंग घुसने को तैयार था। वो पूरी तरह से उत्‍तेजित था।
मैं खड़ी होकर संजय की तरफ घूम गई, संजय ने उठकर लाइट बंद कर दी और मेरा नाइट सूट उतार दिया।
वैसे भी उस माहौल में बदन पर कपड़ों की जरूरत महसूस नहीं हो रही थी। मैंने कम्‍प्‍यूटर की स्‍क्रीन की रोशनी में देखा संजय भी अपने कपड़े उतार चुके थे। उनका लिंग पूरा तना हुआ था। उन्‍होंने मुझे पकड़ कर वहीं पड़े हुए सोफे पर लिटा दिया… वो बराबर में बैठकर मेरा स्‍तनपान कर रहे थे, मैं लगातार कम्‍प्‍यूटर पर चलने वाले चलचित्र को देख रही थी… और वही उत्‍तेजना अपने अन्‍दर महसूस भी कर रही थी।
बाथटब पर बैठी हुई लड़की की दोनों टांगें खुल चुकी थी और वो आदमी उस लड़की की दोनों टांगों के बीच में बैठकर उस लड़की की योनि चाटने लगा। मुझे यह दृश्‍य, या यूँ कहूँ कि यह क्रिया बहुत पसन्‍द थी, पर संजय को नहीं। हालांकि संजय ने कभी कहा नहीं पर संजय से कभी ऐसा किया भी नहीं। इसीलिये मुझे ऐसा लगा कि शायद संजय को यह सब पसन्‍द नहीं है।
वैसे तो संजय से मेरा रोज ही सोने से पहले एकाकार होता था। परन्‍तु वो पति-पत्नी वाला सम्भोग ही होता था, जो हमारे रोजमर्रा के कामकाज का ही एक हिस्‍सा था, उसमें कुछ भी नयापन नहीं था।
पर जब उत्‍तेजना होती थी… अब वो भी अच्‍छा लगता था।
अब तक संजय ने मेरी दोनों टांगें फैला ली थी परन्‍तु मेरी निगाह कम्‍प्‍यूटर की स्‍क्रीन से हट ही नहीं रही थी। इधर संजय का लिंग मेरी योनि में प्रवेश कर गया… तो मुझे… आह…. अहसास हुआ कि… मैं कितनी उत्‍तेजित हूँ….
संजय मेरे ऊपर आकर लगातार धक्‍के लगा रहे थे…
अब मेरा ध्‍यान कम्‍प्‍यूटर की स्‍क्रीन से हट चुका था…. और मैं अपनी कामक्रीड़ा में मग्‍न हो गई थी….
तभी संजय के मुँह से ‘आह….’ निेकली और वो मेरे ऊपर ही ढेर हो गये।
दो मिनट ऐसे ही पड़े रहने के बाद वो संजय ने मेरे ऊपर से उठकर अपना लिंग मेरी योनि से बाहर निकाला और बाथरूम में जाकर धोने लगे।
तब तक भी उस स्‍क्रीन पर वो लड़की उस आदमी से अपनी योनि चटवा रही थी ‘उफ़्फ़… हम्मंह…’ की आवाज लगातार उस लड़की के मुँह से निकल रही थी वो जोर जोर से कूद कूद कर अपनी योनि उस आदमी के मुँह में डालने का प्रयास कर रही थी। तभी संजय आये और उन्‍होंने कम्‍प्‍यूटर बंद कर दिया।

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Re: दिल पर जोर नहीं

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 15:34


मैंने बोला, “चलने दो थोड़ी देर?”
संजय ने कहा, “कल सुबह ऑफिस जाना है बाबू… सो जाते हैं, नहीं तो लेट हो जाऊँगा।”
अब यह कहने कि हिम्‍मत तो मुझमें भी नहीं थी कि ‘आफिस तो तुमको जाना है ना तो मुझे देखने दो।’ मैं एक अच्‍छी आदर्शवादी पत्नी की तरह आज्ञा का पालन करने के लिये उठी, बाथरूम में जाकर रगड़-रगड़ कर अपनी योनि को धोया, बाहर आकर अपना नाइट सूट पहना और बैडरूम में जाकर बिस्‍तर पर लेट गई।
मैंने थोड़ी देर बाद संजय की तरफ मुड़कर देखा वो बहुत गहरी नींद में सो रहे थे। उत्‍सुकतावश मेरी निगाह नीचे उसके लिंग की तरफ गई तो पाया कि शायद वो भी नाइट सूट के पजामे के अन्‍दर शान्‍ति से सो रहा था क्‍योंकि वहाँ कोई हलचल नहीं थी। मेरी आँखों के सामने अभी भी वही फिल्‍म घूम रही थी। शादी के बाद पिछले 11 सालों में केवल 3 बार संजय के साथ मैंने ऐसी फिल्‍म देखी, पता नहीं ऐसा मेरे साथ ही था, या सभी के साथ होता होगा पर उस फिल्‍म को देखकर मुझे अपने अन्‍दर अति उत्‍तेजना महसूस हो रही थी।
हालांकि थोड़ी देर पहले संजय के साथ किये गये सैक्‍स ने मुझे स्खलित कर दिया था। पर फिर भी शरीर में कहीं कुछ अधूरापन महसूस हो रहा था मुझे पता था यह हर बार की तरह इस बार भी दो-तीन दिन ही रहेगा पर फिर भी अधूरापन तो था ही ना….
वैसे तो जिस दिन से मेरी शादी हुई थी उस दिन से लेकर आज तक मासिक के दिनों के अलावा कुछ गिने-चुने दिनों को छोड़कर हम लोग शायद रोज ही सैक्‍स करते थे यह हमारे दैनिक जीवन का हिस्‍सा बन चुका था। पर चूंकि संजय ने कभी मेरी योनि को प्‍यार नहीं किया तो मैं भी एक शर्मीली नारी बनी रही, मैंने भी कभी संजय के लिंग को प्‍यार नहीं किया। मुझे लगता था कि अपनी तरफ से ऐसी पहल करने पर संजय मुझे चरित्रहीन ना समझ लें।
सच तो यह है कि पिछले 11 सालों में मैंने संजय का लिंग हजारों बार अपने अंदर लिया था पर आज तक मैं उसका सही रंग भी नहीं जानती थी… क्‍योंकि सैक्‍स करते समय संजय हमेशा लाइट बंद कर देते थे और मेरे ऊपर आ जाते थे। मैंने तो कभी रोशनी में आज तक संजय को नंगा भी नहीं देखा था। मुझे लगता है कि हम भारतीय नारियों में से अधिकतर ऐसी ही जिन्‍दगी जीती हैं… और अपने इसी जीवन से सन्‍तुष्‍ट भी हैं। परन्‍तु कभी कभी इक्‍का-दुक्‍का बार जब कभी ऐसा कोई दृश्‍य आ सामने जाता है जैसे आज मेरे सामने कम्‍प्‍यूटर स्‍क्रीन पर आ गया था तो जीवन में कुछ अधूरापन सा लगने लगता है जिसको सहज करने में 2-3 दिन लग ही जाते हैं।
हम औरतें फिर से अपने घरेलू जीवन में खो जाती हैं और धीरे-धीरे सब कुछ सामान्‍य हो जाता है। फिर भी हम अपने जीवन से सन्‍तुष्‍ट ही होती हैं। क्‍योंकि हमारा पहला धर्म पति की सेवा करना और पति की इच्‍छाओं को पूरा करना है। यदि हम पति को सन्‍तुष्‍ट नहीं कर पाती हैं तो शायद यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमी है।
परन्‍तु मैं संजय को उनकी इच्‍छाओं के हिसाब से पूरी तरह से सन्‍तुष्‍ट करने का प्रयास करती थी। यही सब सोचते सोचते मैंने आँखें बंद करके सोने का प्रयास किया। सुबह बच्‍चों को स्‍कूल भी तो भेजना था और संजय से कम्‍प्‍यूटर चलाना भी सीखना था। परन्‍तु जैसे ही मैंने आँखें बन्‍द की मेरी आँखों के सामने फिर से वही कम्‍प्‍यूटर स्‍क्रीन वाली लड़की और उसके मुँह में खेलता हुआ लिंग आ गया। मैं जितना उसको भूलने का प्रयास करती उतना ही वो मेरी नींद उड़ा देता।
मैं बहुत परेशान थी, आँखों में नींद का कोई नाम ही नहीं था। पूरे बदन में बहुत बेचैनी थी जब बहुत देर तक कोशिश करने पर भी मुझे नींद नहीं आई तो मैं उठकर बाथरूम में गई नाइट सूट उतारा और शावर चला दिया। पानी की बूंद बूंद मेरे बदन पर पड़ने का अहसास दिला रही थी। उस समय शावर आ पानी मुझे बहुत अच्‍छा लग रहा था। का‍फी देर तक मैं वहीं खड़ी भीगती रही और फिर शावर बन्‍द करके बिना बदन से पानी पोंछे ही गीले बदन पर ही नाइट सूट पहन कर जाकर बिस्‍तर में लेट गई।
इस बार बिस्‍तर में लेटते ही मुझे नींद आ गई।





सुबह 6 बजे रोज की तरह मेरे मोबाइल में अलार्म बजा। मैं उठी और बच्‍चों को जगाकर हमेशा की तरह समय पर तैयार करके स्‍कूल भेज दिया। अब बारी संजय को जगाने की थी। संजय से आज कम्‍प्‍यूटर चलाना भी तो सीखना था ना। मैं चाहती थी कि संजय मुझे वो फिल्‍म चलाना सिखा दें ताकि संजय के जाने के बाद मैं आराम से बैठकर उस फिल्‍म का लुत्‍फ उठा सकूँ। पर संजय से कैसे कहूँ से समझ नहीं आ रहा था।
खैर, मैंने संजय को जगाया और सुबह की चाय की प्याली उनके हाथ में रख दी। वो चाय पीकर टॉयलेट चले गये और मैं सोचने लगी कि संजय से कैसे कहूँ कि मुझे वो कम्प्यूटर में फिल्‍म चलाना सिखा दें।
तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया। मैं संजय के टॉयलेट से निकलने का इंतजार करने लगी। जैसे ही संजय टायलेट से बाहर आये मैंने अपनी योजना के अनुसार अपनी शादी वाली सी डी उनके हाथ में रख दी और कहा, “शादी के 11 साल बाद तो कम से कम अपने नये कम्‍प्‍यूटर में यह सी डी चला दो, मैं तुम्‍हारे पीछे अपने बीते लम्‍हे याद कर लूँगी।”
संजय एकदम मान गये और कम्‍प्‍यूटर की तरफ चल दिये।
मैंने कहा, “मुझे बताओ कि इसको कैसे ऑन और कैसे ऑफ करते हैं ताकि मैं सीख भी जाऊँ।”
संजय को इस पर कोई एतराज नहीं था। उन्‍होंने मुझे यू.पी.एस. ऑन करने से लेकर कम्‍प्‍यूटर के बूट होने के बाद आइकन पर क्लिक करने तक सब कुछ बताया, और बोले, “ये चार सी डी मैं इस कम्‍प्‍यूटर में ही कापी कर देता हूँ ताकि तुम इनको आराम से देख सको नहीं तो तुमको एक एक सी डी बदलनी पड़ेगी।”
मैंने कहा, “ठीक है।”
संजय ने सभी चारों सी डी कम्‍प्‍यूटर में एक फोल्‍डर बना कर कापी कर दी और फिर मुझे समझाने लगे कि कैसे मैं वो फोल्‍डर खोल कर सी डी चला सकती हूँ।
मैं अपने हाथ से सब कुछ चलाना सीख रही थी। जैसे-जैसे संजय बता रहे थे 2-3 बार कोशिश करने पर मैं समझ गई कि फोल्‍डर में जाकर कैसे उस फिल्‍म को चलाया जा सकता है। पर मुझे यह नहीं पता था कि वो रात वाली फिल्‍म कौन से फोल्‍डर में है और वहाँ तक कैसे जायेंगे।
मैंने फिर संजय से पूछा, “कहीं इसको चलाने से गलती से वो रात वाली फिल्‍म तो नहीं चल जायेगी।”
“अरे नहीं पगली ! वो तो अलग फोल्‍डर में पड़ी है।” संजय ने कहा।
“पक्‍का ना….?” मैंने फिर पूछा।
तब संजय ने कम्‍प्‍यूटर में वो फोल्‍डर खोला जहाँ वो फिल्‍म पड़ी थी और मुझसे कहा, “यह देखो ! यहाँ पड़ी है वो फिल्‍म बस तुम दिन में यह फोल्‍डर मत खोलना।”
मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई थी। पर मैंने शान्‍त स्‍वभाव से बस, “हम्म….” जवाब दिया। मेरी निगाह उस फोल्‍डर में गई तो देखा यहाँ तो बहुत सारी फाइल पड़ी थी। मैंने संजय से पूछा। तो उन्‍हानें ने बताया, “ये सभी ब्‍लू फिल्‍में हैं। आराम से रोज रात को देखा करेंगे।”
“ओ…के…अब यह कम्‍प्‍यूटर बंद कैसे होगा….” मैंने पूछा क्‍योंकि मेरे लायक काम तो हो ही चुका था।
संजय ने मुझे कम्‍प्‍यूटर शट डाउन करना भी सिखा दिया। मैं अब वहाँ से उठकर नहाने चली गई, और संजय भी आफिस के लिये तैयारी करने लगे। संजय को आफिस भेजने के बाद मैंने बहुत तेजी से अपने घर के सारे काम 1 घंटे में निपटा लिये। फ्री होकर बाहर का दरवाजा अन्‍दर से लॉक किया। कम्‍प्‍यूटर को संजय द्वारा बताई गई विधि के अनुसार ऑन किया। थोड़े से प्रयास के बाद ही मैंने अपनी शादी की फिल्‍म चला ली। कुछ देर तक वो देखने के बाद मैंने वो फिल्‍म बन्‍द की और अपने फ्लैट के सारे खिड़की दरवाजे चैक किये कि कोई खिड़की खुली हुई तो नहीं है। सबसे सन्‍तुष्‍ट होकर मैंने संजय का वो खास वाला फोल्‍डर खोला और उसमें गिनना शुरू किया कुल मिलाकर 80 फाइल उसके अन्‍दर पड़ी थी। मैंने बीच में से ही एक फाइल पर क्‍लिक कर दिया। क्लिक करते ही एक मैसेज आया। उसको ओ.के. किया तो फिल्‍म चालू हो गई। पहला दृश्‍य देखकर ही मैं चौंक गई। यह कल रात वाली मूवी नहीं थी। इसमें दो लड़कियाँ एक दूसरे को बिल्‍कुल नंगी लिपटी हुई थी।
यह देखकर तो एकदम जैसे मुझे सन्निपात हो गया !
ऐसा मैंने पतिदेव के मुँह से कई बार सुना तो था…. पर देखा तो कभी नहीं था। तभी मैंने देखा दोनों एक दूसरे से लिपटी हुई प्रणय क्रिया में लिप्‍त थी।
एक लड़की नीचे लेटी हुई थी…. और दूसरी उसके बिल्‍कुल ऊपर उल्‍टी दिशा में। दोनों एक दूसरे की योनि का रसपान कर रही थी…
मैं आँखें गड़ाये काफी देर तक उन दोनों को इस क्रिया को देखती रही। स्‍पीकर से लगातार आहहह… उहह… हम्मम… सीईईईई…. की आवाजें आ रही थी। मध्‍यम मध्‍यम संगीत की ध्‍वनि माहौल को और अधिक मादक बना रही थी। मुझे भी अपने अन्दर कुछ कुछ उत्‍तेजना महसूस होने लगी थी। परन्‍तु संस्‍कारों की शर्म कहूँ या खुद पर कन्‍ट्रोल… पर मैंने उस उत्‍तेजना को अभी तक अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। परन्‍तु मेरी निगाहें उन दोनों लड़कियों की भावभंगिमा को अपने लगातार अंदर संजो रही थी।
अचानक ऊपर वाली लड़की ने पहलू बदला नीचे वाली नीचे आकर बैठ गई। उसने नीचे वाली लड़की की टांगों में अपनी टांगें फंसा ली !
“हम्म्मम…!” की आवाज के साथ नीचे वाली लड़की भी उसका साथ दे रही थी….आह…. दोनों लड़कियाँ आपस में एक दूसरे से अपनी योनि रगड़ रही थी।
ऊफ़्फ़….!! मेरी उत्‍तेजना भी लगातार बढ़ने लगी। परन्‍तु मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्‍या करूँ? कैसे खुद को सन्‍तुष्‍ट करूँ? मुझे बहुत परेशानी होने लगी। वो दोनों लड़कियाँ लगातार योनि मर्दन कर रही थी। मुझे मेरी योनि में बहुत खुजली महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि के अन्‍दर बहुत सारी चींटियों ने हमला कर दिया हो….योनि के अन्‍दर का सारा खून चूस रही हों… मैंने महसूस किया कि मेरे चुचूक बहुत कड़े हो गये हैं। मुझे बहुत ज्‍यादा गर्मी लगने लगी। शरीर से पसीना निकलने लगा।
मेरा मन हुआ कि अभी अपने कपड़े निकाल दूं। परन्‍तु यह काम मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं किया था इसीलिये शायद हिम्‍मत नहीं कर पा रही थी मेरी निगाहें उस स्‍क्रीन हटने को तैयार नहीं थी। मेरे बदन की तपिश पर मेरा वश नहीं था। तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा था। जब मुझसे बर्दाश्‍त नहीं हुआ। तो मैंने अपनी साड़ी निकाल दी। योनि के अन्‍दर इतनी खुजली होने लगी। ऊईईईई….मन ऐसा हो रहा था कि चाकू लेकर पूरी योनि को अन्‍दर से खुरच दूं।


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Re: दिल पर जोर नहीं

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 15:35

दोनों लड़कियाँ आपस में एक दूसरे से अपनी योनि रगड़ रही थी।
ऊफ़्फ़….!! मेरी उत्‍तेजना भी लगातार बढ़ने लगी। परन्‍तु मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्‍या करूँ? कैसे खुद को सन्‍तुष्‍ट करूँ? मुझे बहुत परेशानी होने लगी। वो दोनों लड़कियाँ लगातार योनि मर्दन कर रही थी। मुझे मेरी योनि में बहुत खुजली महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि के अन्‍दर बहुत सारी चींटियों ने हमला कर दिया हो….योनि के अन्‍दर का सारा खून चूस रही हों… मैंने महसूस किया कि मेरे चुचूक बहुत कड़े हो गये हैं। मुझे बहुत ज्‍यादा गर्मी लगने लगी। शरीर से पसीना निकलने लगा।
मेरा मन हुआ कि अभी अपने कपड़े निकाल दूं। परन्‍तु यह काम मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं किया था इसीलिये शायद हिम्‍मत नहीं कर पा रही थी मेरी निगाहें उस स्‍क्रीन हटने को तैयार नहीं थी। मेरे बदन की तपिश पर मेरा वश नहीं था। तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा था। जब मुझसे बर्दाश्‍त नहीं हुआ। तो मैंने अपनी साड़ी निकाल दी। योनि के अन्‍दर इतनी खुजली होने लगी। ऊईईईई….मन ऐसा हो रहा था कि चाकू लेकर पूरी योनि को अन्‍दर से खुरच दूँ।
तभी स्‍क्रीन पर कुछ परिवर्तन हुआ, पहली वाली लड़की अलग हुई, उसने पास रखी मेज की दराज खोलकर पता नहीं प्‍लास्टिक या किसी और पदार्थ का बना लचीला कृत्रिम लिंग जैसा बड़ा सा सम्‍भोग यन्‍त्र निकाला और पास ही रखी क्रीम लगाकर उसको चिकना करने लगी।
“ओह…!” सम्भोग के लिए ऐसी चीज मैंने पहले कभी नहीं देखी थी… पर मुझे वो नकली लिंग बहुत ही अच्‍छा लग रहा था। जब तक वो लड़की उसको चिकना कर रही थी तब तक मैं भी अपना ब्‍लाउज और ब्रा उतार कर फेंक चुकी थी। मुझे पता था कि घर में इस समय मेरे अलावा कोई और नहीं है इसीलिये शायद मेरी शर्म भी कुछ कम होने लगी थी।
तभी मैंने देखा कि पहली लड़की से उस सम्‍भोग यन्‍त्र का अग्र भाग बहुत प्‍यार से दूसरी लड़की की योनि में सरकाना शुरू कर दिया। आधे से कुछ कम परन्‍तु वास्‍तविक लिंग के अनुपात में कहीं अधिक वह सम्‍भोग यन्‍त्र पहली वाली लड़की के सम्‍भोग द्वार में प्रवेश कर चुका था। मैंने इधर उधर झांककर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा… और खुद ही अपने बायें हाथ से अपनी योनि को दबा दिया। “आह….” मेरे मुँह से सीत्‍कार निकली।
मेरी निगाह कम्‍प्‍यूटर की स्‍क्रीन पर गई, ‘उफफफफ…’ मेरी तो हालत ही खराब होने लगी। पहली लड़की दूसरी लड़की के सम्‍भोग द्वार में वो सम्‍भोग यन्‍त्र बहुत प्‍यार से आगे पीछे सरका रही थी… दूसरी लड़की भी चूतड़ उछाल-उछाल कर अपने कामोन्‍माद का परिचय दे रही थी, वह उस यन्‍त्र को पूरा अपने अन्‍दर लेने को आतुर थी। परन्‍तु पहले वाले लड़की भी पूरी शरारती थी, अब वो भी दूसरी के ऊपर आ गई और उस यन्‍त्र का दूसरी सिरा अपनी योनि में सरका लिया। “ऊफफफफफ….” क्‍या नजारा था। दोनों एक दूसरे के साथ सम्‍भोगरत थी। अब दोनों अपने अपने चूतड़ उचका उचका कर अपना अपना योगदान दे रही थी।
सीईईई….शायद कोई भी लड़की दूसरी से कम नहीं रहना चा‍हती थी…
इधर मेरी योनि के अन्‍दर कीड़े चलते महसूस हो रहे थे। मैंने मजबूर होकर अपना पेटीकोट और पैंटी भी अपने बदन से अलग कर दी। अब मैं अपनी स्‍क्रीन के सामने आदमजात नंगी थी। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जीवन में पहली बार मैं ऐसे नंगी हुई हूँ। पर मेरी वासना, मेरी शर्म पर हावी होने लगी थी। मुझे इस समय अपनी योनि में लगी कामाग्नि को ठण्‍डा करने का कोई साधन चाहिए था बस….और कुछ नहीं….
काश… उन लड़कियों वाला सम्‍भोग यन्‍त्र मेरे पास भी होता तो मैं उसको अपनी योनि में सरकाकर जोर जोर से धक्‍के मारती जब तक कि मेरी कामज्‍वाला शान्‍त नहीं हो जाती पर ऐसा कुछ नहीं हो सकता था। मैंने अपने दायें हाथ की दो उंगलियों से अपने भगोष्‍ठ तेजी से रगड़ने शुरू कर दिए। मेरी मदनमणि अपनी उपस्थिति का अहसास कराती हुई कड़ी होने लगी। जीवन में पहली बार था कि मुझे ये सब करना पड़ रहा था। पर मैं परिस्थिति के हाथों मजबूर थी।
अब मेरे लिये कम्‍प्‍यूटर पर चलने वाली फिल्‍म का कोई मायने नहीं रह गया, मुझे तो बस अपनी आग को ठण्‍डा करना था। मुझे लग रहा था कि कहीं आज इस आग में मैं जल ही ना जाऊँ !
11 साल से संजय मेरे साथ सम्‍भोग कर रहे थे… पर ऐसी आग मुझे कभी नहीं लगी थी… या यूँ कहूँ कि आग लगने से पहले ही संजय उसको बुझा देते थे। इसलिये मुझे कभी इसका एहसास ही नहीं हुआ। मैंने कम्‍प्‍यूटर बन्‍द कर दिया और घर में पागलों की तरह ऐसा कुछ खोजने लगी जिसको अपनी योनि के अन्‍दर डालकर योनि की खुजली खत्‍म कर सकूँ। मन्दिर के किनारे पर एक पुरानी मोमबत्‍ती मुझे दिखाई और तो मेरे लिये वही मेरा हथियार या कहिये कि मेरी मर्ज का इलाज बन गई।
मैं मोमबत्‍ती को लेकर अपने बैडरूम में गई। मैंने देखा कि मेरे चुचूक बिल्‍कुल कड़े और लाल हो चुके थे।
आह… कितना अच्‍छा लग रहा था इस समय अपने ही निप्‍पल को प्‍यार सहलाना !
हम्म… मैंने अपने बिस्‍तर पर लेटकर मोमबत्‍ती का पीछे वाला हिस्‍सा अपने दायें हाथ में पकड़ा और अपने बायें हाथ से योनि के दोनों मोटे भगोष्‍ठों को अलग करके मोमबत्‍ती का अगला धागे वाला हिस्‍सा धीरे से अपनी योनि में सरकाना शुरू किया।
उई मांऽऽऽऽऽ… क्‍या आनन्‍द था।
मुझे यह असीम आनन्‍द जीवन में पहली बार अनुभव हो रहा था। मैं उन आनन्‍दमयी पलों का पूरा सुख भोगने लगी। मैंने मोमबत्‍ती का पीछे की सिरा पकड़ कर पूरी मोमबत्‍ती अपनी योनि में सरका दी थी…. आहह हह हह… अपने जीवन में इतना अधिक उत्‍तेजित मैंने खुद को कभी भी महसूस नहीं किया था।
मैं कौन हूँ…? क्‍या हूँ…? कहाँ हूँ…? कैसे हूँ…? ये सब बातें मैं भूल चुकी थी। बस याद था तो यह कि किसी तरह अपने बदन में लगी इस कामाग्नि को बुझाऊँ बस… हम्म अम्म… आहह… क्‍या नैसर्गिक आनन्‍द था।
बायें हाथ से एक एक मैं अपने दोनों निप्‍पल को सहला रही थी…. आईई ई… एकदम स्‍वर्गानुभव… और दायें हाथ में मोमबत्‍ती मेरे लिये लिंग का काम कर रही थी।
मुझे पुरूष देह की आवश्‍यकता महसूस होने लगी थी। काश: इस समय कोई पुरूष मेरे पास होता जो आकर मुझे निचोड़ देता…. मेरा रोम रोम आनन्दित कर देता…. मैं तो सच्‍ची धन्‍य ही हो जाती।
मेरा दायें हाथ अब खुद-ब-खुद तेजी से चलने लगा था। आहह हह… उफ़्फ़फ… उईई ई… की मिश्रित ध्‍वनि मेरे कंठ से निकल रही थी। मैं नितम्‍बों को ऊपर उठा-उठा कर दायें हाथ के साथ…ऽऽऽ… ताल…ऽऽऽ…. मिलाने….का….प्रयास…ऽऽऽऽ…. करने लगी।
थोड़े से संघर्ष के बाद ही मेरी धारा बह निकली, मुझे विजय का अहसास दिलाने लगी।
मैंने मोमबत्‍ती योनि से बाहर निकाली, देखा पूरी मोमबत्‍ती मेरे कामरस गीली हो चुकी थी। मोमबत्‍ती को किनारे रखकर मैं वहीं बिस्‍तर पर लेट गई। मुझे तो पता भी नहीं चला कब निद्रा रानी ने मुझे अपनी आगोश में ले लिया।


दरवाजे पर घंटी की आवाज से मेरी निद्रा भंग की। घंटी की आवाज के साथ मेरी आँख झटके से खुली। मैं नग्‍नावस्‍था में अपने बिस्‍तर पर पड़ी थी। खुद को इस अवस्‍था में देखकर मुझे बहुत लज्‍जा महसूस हो रही थी। धीरे धीरे सुबह की पूरी घटना मेरे सामने फिल्‍म की तरह चलने लगी। मैं खुद पर बहुत शर्मिन्‍दा थी। दरवाजे पर घंटी लगातार बज रही थी। मैं समझ गई कि बच्‍चे स्‍कूल से आ गये हैं।
मैं सब कुछ भूल कर बिस्‍तर से उठी, कपड़े पहनकर तेजी से दरवाजे की ओर भागी।
दरवाजा खोला तो बच्‍चे मुझ पर चिल्‍लाने लगे। मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। आज तो लंच भी नहीं बनाया अभी तक घर की सफाई भी नहीं की।
मैं बच्‍चों के कपड़े बदलकर तेजी से रसोई में जाकर कुछ खाने के लिये बनाने लगी। घर में काम इतना ज्‍यादा था कि सुबह वाली सारी बात मैं भूल चुकी थी।
शाम को संजय ने आते ही पूछा- आज शादी वाली सीडी देखी थी क्‍या?
तो मैंने जवाब दिया, “हाँ, पर पूरी नहीं देख पाई।”
समय कैसे बीत रहा था पता ही नहीं चला। रात को बच्‍चों को सुलाने के बाद मैं अपने बैडरूम में पहुँची तो संजय मेरा इंतजार कर रहे थे। वही रोज वाला खेल शुरू हुआ।
संजय ने मुझे दो-चार चुम्‍बन किये और अपना लिंग मेरी योनि में डालकर धक्‍के लगाने शुरू कर दिये। मैं भी आदर्श भारतीय पत्नी की तरह वो सब करवाकर दूसरी तरफ मुँह करके सोने का नाटक करने लगी। नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। आज मैं संजय से कुछ बातें करना चाह रही थी पर शायद मेरी हिम्‍मत नहीं थी, मेरी सभ्‍यता और लज्‍जा इसके आड़े आ रही थी।
थोड़ी देर बाद मैंने संजय की तरफ मुँह किया तो पाया कि संजय सो चुके थे। मैं भी अब सोने की कोशिश करने लगी। पता नहीं कब मुझे नींद आई।
अगले दिन सुबह फिर से वही रोज वाली दिनचर्या शुरू हो गई। परन्‍तु अब मेरी दिनचर्या में थोड़ा सा परिवर्तन आ चुका था। संजय के जाने के बाद मैं रोज कोई एक फिल्‍म जरूर देखती… अपने हाथों से ही अपने निप्‍पल और योनि को सहलाती निचोड़ती। धीरे धीरे मैं इसकी आदी हो गई थी। हाँ, अब मैं कम्‍प्‍यूटर भी अच्‍छे से चलाना सीख गई थी।
एक दिन संजय ने मुझसे कहा कि मैं इंटरनैट चलाना सीख लूँ तो वो मुझे आई डी बना देंगे जिससे मैं चैट कर सकूँ और अपने नये नये दोस्‍त बना सकूँगी। फिर भविष्‍य में बच्‍चों को भी कम्‍प्‍यूटर सीखने में आसानी होगी।

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