जीजू रहने दो ना compleet

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The Romantic
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जीजू रहने दो ना compleet

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 15:41

जीजू रहने दो ना


पिछले तीन दिनों की व्यस्‍तता के बाद भी आज मेरे चेहरे पर थकान का कोई भाव नहीं था आखिर आज मेरे घर मेरी स्वप्न सुन्दरी यानि ड्रीम गर्ल जो आने वाली थी।
मैं आफिस से जल्दी घर आ गया और नहा धोकर अपनी पत्नी ‘शशि’ से तैयार होने को कहा।
शशि बोली, “कामना से मिलने के लिये मुझे कहने की जरूरत नहीं है वैसे भी आज 2 साल बाद कामना मुझसे मिलने वाली है। मैं तो बहुत पहले से तैयार बैठी हूँ, तुम ही लेट हो।”
कामना शशि की बचपन की सहेली थी। जिसने 5 साल पहले मेरी शादी में मुझे सबसे ज्यादा छेड़ा था और शायद मुझे जीजा साली के रिश्ते का पूर्ण रूपेण आनन्द का अनुभव कराया था।
मैंने घड़ी देखी उसकी ट्रेन के आने का समय 6 बजे का था और साढ़े पांच बज चुके थे, मैंने समय ना गंवाते हुए गाड़ी की चाबी उठाई और मोबाइल उठा कर 139 डायल किया ताकि गाड़ी की वर्तमान स्थिति का जायजा लिया जा सके।
इंक्वायरी से पता चला कि ट्रेन 2 घंटे लेट है। मैंने मरे मन से यह बात शशि को बताई।
शशि बोली- चलो अच्छा हुआ यहीं पता चल गया, नहीं तो स्टेशन पर 2 घंटे काटना कितना मुश्किल हो जाता।
मैं टाइम पास करने के लिये अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर उस पर गेम खेलने लगा पर समय था कि कट ही नहीं रहा था। 2 घंटे मानो बरसों लग रहे थे, बड़ी मुश्किल से 1 गेम पूरा किया ऐसा लगा जैसे 1 घंटा तो हो गया होगा, पर घड़ी में देखा तो पौने छह: ही बजे थे, समय काटे नहीं कट रहा था कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
कमोबेश यही स्थिति शशि की भी थी मैंने मोबाइल से कामना का नम्बर डायल किया तो उसका नम्बर ‘पहुँच से बाहर है’ का संदेश मिला। मेरे लिये एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था। आखिर समय बिताने के लिये मैंने शशि को चाय बनाने का आग्रह किया, और आंख बंद करके पास पड़े हुए सोफे पर लेट गया।
‘मुझे सेहरा बंधा हुआ था, बारात लड़की वालों के दरवाजे पर खड़ी थी, मिलनी हो रही थी, प्रवेश द्वार पर मेरी निगाह गई तो गहरे नीले रंग के स्लीवलेस सूट में शायद गोरा कहना उचित नहीं होगा, इसीलिये दूधिया रंग बोल रहा हूँ, तो बिल्कुल दूधिया रंग के चेहरे वाली सुन्दरी पर मेरी निगाह जाकर टिक गई उसके सूट की किनारी पर सुनहरा गोटा लगा था। पूरे सूट पर रंगबिरंगे फूलों का डिजाइन, कानों में मैचिंग बड़े-बड़े झुमके, बहुत खूबसूरत लहराते हुए बाल, और इन सबसे अलग उसके बिल्कुल गुलाबी होंठ, जैसे खुद गुलाब की पंखु‍‍डि़याँ ही वहाँ आकर बैठ गई हों, कहर ढा रही थीं।
वहाँ बहुत सारी लड़कियों का झुंड था, सभी दरवाजे पर मेरा वैलकम करने के लिये खड़ी थी परन्तु मेरी निगाह रह-रह कर उस एक अप्सरा के चेहरे पर ही जा रही थी वो पास खड़ी लड़कियों से बीच-बीच में बात करके मुस्कुरा रही थी। मैं तल्लीनता से सिर्फ उसी के खूबसूरत चेहरे को निहार रहा था और उसके चेहरे में बची उस खूबसूरती को ढूंढने की कोशिश कर रहा था जिसको देखने से मैं वंचित रह गया हूँ।’
तभी अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे किसी ने धक्का दिया हो। मेरी आँख खुल गई, मैं स्वप्न से जागा तो मेरी पत्नी के हाथ में चाय की प्याली लिये खड़ी थी और मुझे जोर जोर से हिलाकर जगा रही थी।
मेरी आंख खुलते ही वो मुझ पर बरस पड़ी और बोली- मेरी सहेली के आने का समय हो गया है और तुम हो कि नींद के सागर में गोते लगा रहे हो।
अब मैं उसको क्या बताता कि जो दिव्य-स्वप्न मैं देख रहा था वो मेरे कितने करीब आने वाला था !
मैंने चाय की प्याली हाथ में ली और सिप-सिप करके चाय पीना शुरू किया। अब मैं शशि के साथ इधर उधर की बातें करके खुद को सामान्य करने की कोशिश कर रहा था।
चाय खत्म करने के बाद मैंने घड़ी देखी सवा सात बज चुके थे, तभी मेरा मोबाइल बजा। मैंने देखा यह कामना का ही काल था। मैंने फोन उठाया, “हैल्लो !”
उधर से कामना की मीठी चाशनी जैसी आवाज आई, “हैल्लो जीजाजी, मेरी गाड़ी बस 15-20 मिनट में स्टेशन पहुँचने वाली है, बताओ कहाँ मिलोगे?”
“तुम जहाँ बोलो, वहाँ मिल लेंगे !” दिल तो सही कहना चाह रहा था पर मैंने खुद पर काबू करने की कोशिश की और कामना से कोच नम्बर और सीट नम्बर पूछ कर उसको बता दिया कि मैं उसके कोच पर ही उसको लेने आ रहा हूँ। इतनी बात करके मैंने फोन काट दिया और शशि को जल्दी से चलने को कहा।
शशि बोली- अब बहुत लेट हो गया है रात हो गई है, आप कार ले जाओ, कामना को ले आओ, तब तक मैं खाने की तैयारी करती हूँ। मेरी तो जैसे लाटरी ही लग गई। आज बरसों के बाद मैं कामना को देखने वाला था और 4 किलोमीटर का सफर मुझे उसके साथ अकेले तय करना था अपनी कार में।
यही सोचते सोचते मैं बाहर आ गया गैराज से कार निकाली और स्टेशन की ओर चल दिया।
जब तक मैं स्टेशन पर पहुँचा तो उसकी गाड़ी के पहुंचने की घोषणा हो चुकी थी। मेरे प्लेटफार्म पर पहुँचने से पहले कामना की गाड़ी वहाँ खड़ी थी। मैंने तेजी से कोच नम्बर बी-2 के दरवाजे की तरफ अपने कदम बढ़ाये और अन्दर जाकर उसकी सीट नम्बर 16 को प्यार से निहारा। कामना वहाँ नहीं थी, मुझे उस सीट से जलन हो रही थी जिस पर 7 घंटे का सफर तय करके कामना आ रही थी, सोचा कि काश इस सीट की जगह मेरी गोदी होती तो कितना अच्छा होता। सोचते सोचते मैं गाड़ी से बाहर आया और कामना को फोन मिलाया।
तभी किसी ने मेरी पीठ पर हाथ मारा, मैंने मुड़ कर देखा तो चुस्त पंजाबी सूट में मेरे पीछे कामना खड़ी मुस्कुरा रही थी। मैं उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों को देखकर वहीं जड़वत हो गया।
तभी कामना बोली, “जीजा जी, आपके साथ घर ही जाऊँगी स्टेशन पर ऐसे मत घूरो, घर जा कर घूर लेना।”
मैंने एक बार फिर से खुद को नियंत्रित करने की कोशिश की और बिना कुछ भी बोले उसके हाथ से अटैचीकेस लिया और वापस कार की तरफ चल दिया।
कामना भी मेरे पीछे-पीछे चलती हुई बोली, “लगता है जीजाजी नाराज हैं मुझसे कोई बात भी नहीं कर रहे।”
अब मैं उस को क्या बताता कि 5 साल बाद उसको दोबारा देखकर मैं अपने होशोहवास खो चुका हूँ, फिर भी मैंने बात को सम्भालने की कोशिश करते हुए बोला, “ऐसा नहीं है यार, दरअसल शशि घर में तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही है तो इसीलिये तुमको जल्दी से जल्दी से घर ले जाना चाहता हूँ।”कामना बोली, “जीजाजी, इसीलिये तो मैं आपकी फैन हूँ क्योंकि आप शशि का बहुत ध्यान रखते हैं मेरे हिसाब से आप नम्बर 1 पति हो इस दुनिया के।”
मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया और उसका अटैचीकेस कार की डिक्की में धकेल दिया।
मैंने कार का स्टेयरिंग सम्भाला और बराबर वाली सीट पर उसको बैठाया। अब मेरे सपनों की कामना मुझसे बस कुछ इन्च की दूरी पर बैठी थी और मैं उसकी खुशबू को अपने नथुनों में महसूस कर पा रहा था। मैंने धीरे धीरे कार को आगे बढ़ाना शुरू किया। कोशिश कर रहा था कि यह 4 किलोमीटर का सफर 4 घंटे में कटे और कामना से इधर उधर की बातें करके खुद को संयत कर लूँ।
तभी कामना सीट पर मेरी तरफ तिरछी हो गई और अपना दांया पांव सीट पर रखके बैठ गई अब मैं थोड़ी सी नजर घुमाकर उसको अच्छी तरह देख सकता था, जैसे ही मैंने उसकी तरफ नजर घुमाई मेरी निगाह उसके गले में पड़ी गोल्डन चेन पर गई। उसके गले के नीचे दूधिया बदन पर वो गोल्डन चेन चमक रही थी। मेरी निगाह उस चैन के साथ सरकती हुई उसके लॉकेट पर गई। लाकेट का ऊपरी हिस्सा जो चेन में फंसा हुआ था वो ही दिखाई दे रहा था बाकी का लॉकेट नीचे उसकी दोनों पहा‍डि़यों के बीच की दूधिया घाटी में कहीं खो गया था। मेरी निगाहें उस लाकेट के बहाने उस दूधिया घाटी का निरीक्षण करने लगी।
तभी शायद उसने मेरी निगाहों को पकड़ लिया और बोली, “जीजाजी, काबू में रहिये, सीधे घर ही चल रहे हो ! ऐसा ना हो कि घर जाते ही शशि आपकी क्लास लगा दे।”
इतना बोलकर वो हंसने लगी। मैं एकदम सकपका गया और निगाह सीधी करके गाड़ी चलाने लगा। उसने जो लाइन अभी एक सैकेण्ड पहले बोली, मैं मन ही मन उस को समझने की कोशिश करने लगा कि वो मुझे निमंत्रण दे रही थी या चेतावनी। जो भी था, पर मुझे उसका साथ अच्छा लग रहा था और मैं चाह रहा था कि काश समय कुछ वक्त के लिये यहीं रुक जाये।
यही सोचते सोचते पता ही नहीं चला कि कब हम घर पहुँच गये। शशि दरवाजे पर ही खड़ी हम लोगों का इंतजार कर रही थी। जैसे ही मैंने गाड़ी रोकी, कामना कूद कर बाहर निकली और शशि को गले से लगाकर मिली। मैं भी गाड़ी गैराज में लगाकर कामना का सामान लेकर घर के अंदर दाखिल हुआ।
तब तक कामना मेरे सोफे पर आसन ग्रहण कर चुकी थी। शशि उसके सामने वाले दूसरे सोफे पर बैठी थी। मैं तेजी से अंदर जाकर सोफे पर कामना के बराबर में जाकर बैठ गया मैं नहीं चाहता था कि किसी भी स्थिति में मेरे हाथ से वो जगह निकले।
दोनों सहेलियाँ एक दूसरे को गले लगाकर मिलीं। मैंने भी मन में सोचा कि एक बार यह अप्सरा मुझसे भी गले मिल ले पर शायद मेरी किस्मसत ऐसी नहीं थी पर कामना के बराबर में बैठने का सुख मैं अनुभव कर रहा था।
तभी शशि ने आदेश दिया कि खाना तैयार है, आप दोनों फ्रैश हो जाओ।
मैंने तुरन्त कामना को बाथरूम का रास्ता दिखाया और तौलिया उसके हाथ में थमाया। वो मुँह पर पानी मार कर मुँह धोने लगी और मैं उसके चेहरे पर पड़ने के बाद गिरने वाली पानी की बूंदों को देख रहा था एक एक बूंद मोती की तरह चमक रही थी मुँह और हाथ धोने के बाद तौलिये से पोंछकर वो बाहर आ गई और मैं अंदर जाकर हाथ मुँह धोने लगा। बाहर आकर मैंने भी उसी तौलिये से मुँह पौंछा। कामना की खुशबू उस तौलिये पर मैं महसूस कर रहा था।
मैंने देखा कि दोनों सहेलियाँ मिलकर खाना लगा रही हैं। डाइनिंग टेबल पर घरेलू बातचीत और हल्का-फुल्का मजाक चलता रहा। खाना खाकर हम लोग टीवी देखकर आइसक्रीम खाने लगे।
तभी शशि ने कहा कि कामना अभी तू सो जा कल सुबह उठकर तुझे औघड़नाथ मंदिर ले चलेंगे, घूम आना।
मैं समझ गया कि सोने का आदेश मिल चुका है और एक आदर्श पति की तरह मैं दूसरे कमरे में सोने चला गया क्योंकि मेरे कमरे में तो आज मेरी पत्नी के साथ मेरी स्वप्न सुन्दरी को सोना था।
मैं प्रात:काल अपने समय पर उठा और अपना ट्रैक सूट पहन कर जागिंग के लिये तैयार हुआ तभी देखा कि शशि और कामना बातों में तल्लीन थी।
मैंने पूछा, “सारी रात सोई नहीं क्या?”
कामना बोली, “जीजा जी, आज गलती से मैं आपके बिस्तर पर सो गई इसीलिये आपकी बीवी को नींद नहीं आई। लगता है आपने इसकी आदत खराब कर दी है, इसको आपकी बांहों में सोना अच्छा लगता है, तभी सुबह 5 बजे उठ गई और मुझे भी जगा दिया।”
मैंने मुस्कुरा कर कहा, “हम जिसको प्यार देते हैं इतना ही देते हैं कि फिर वो हमारे बिना रह नहीं पाता।”
“तभी तो आपसे टिप्स लेने आई हूँ कि कैसे आप जैसा पति ढूंढू अपने लिये? जो मुझे भी इतना ही प्यार करे।” इतना बोलकर वो मुस्कुराने लगी।
मेरे तो पूरे बदन में यह सुनकर घंटियाँ बजने लगी। मन हो रहा थी कि सुबह की उस अलसाई सी खूबसूरती को आगे बढ़कर बाहों में भर लूँ, पर खुद पर नियंत्रण करते हुए मैंने शशि को बोला- मैं टहलने जा रहा हूँ !

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Re: जीजू रहने दो ना

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 15:41


तभी कामना बोली, “रुकिए जीजा जी, मैं भी चलती हूँ, आपके साथ। थोड़ा सा फ्रैश हो जाऊँगी। फिर वापस आकर, मंदिर जाने के लिये तैयार भी होना है।”
शशि बोली, “आप लोग जल्दी आ जाना, तब तक मैं नहा धोकर तैयार हो जाती हूँ।”
पत्नी रानी का आदेश प्राप्त करने के बाद मेरे कदम बाहर दरवाजे की तरफ बढ़े, मेरे पीछे पीछे कामना भी बाहर आ गई, कुछ तो सुबह सुबह बाहर का मौसम वैसे ही खुशगवार होता है, पर आज मुझे ज्यादा ही खुशगवार लग रहा था, मैं कामना से ढेर सारी बातें करना चाहता था।
मुझे पता था कि समय बहुत कम है 4 दिन बाद कामना वापिस चली जायेगी। पर मेरे साथ समस्या यह थी कि मेरी इमेज पत्नी-भक्त की थी और मैं किसी के सामने अपनी को छवि खराब नहीं करना चाहता था, और वास्तव में मुझे शायद शशि से अधिक प्यार किसी से नहीं था।
पर यह भी सत्य है कि कामना को सामने पाकर मैं उसकी अद्वीतीय सुन्दरता पर आसक्त था। इसी अंर्तद्वन्द्व में मैं हल्के हल्के दौड़ रहा था। मेरे साथ साथ कामना भी दौड़ लगा रही थी। थोड़ी ही देर में हम पार्क तब पहुँच गये, पर तब तक कामना तो थक चुकी थी और बोली, “जीजा जी वा‍पिस चलो, मैं और नहीं दौड़ सकती।”
“बस इतना ही स्टेमिना है तुम्हारा? बातें तो बहुत बड़ी बड़ी करती हो।” मैंने कहा।
मेरे इतना बोलते है उसको स्त्रीयोचित जोश आ गया और फिर से मेरे पीछे दौड़ने लगी। पार्क का एक चक्कर लगाते ही वो बोली, “जीजा जी अब तो मैं गिरने वाली हूँ, खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा।”
मैंने उसको एक बैंच पर बैठने की सलाह दी और बस 2 चक्कर लगाने के बाद घर चलने को कहा।
पर जैसे ही मैं एक चक्कर लगाकर वहाँ वापस आया तो देखा कि वो पसीने से तरबतर बैंच पर लेटी थी और बुरी तरह हांफ रही थी, मैंने नजदीक जा कर पूछा, “क्या हुआ?”
“पानी !” उसने हल्की सी आवाज में कहा। मैं स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए सामने नल पर पानी लेने को भागा, पर मेरे पास पानी लेने के लिये कोई गिलास तो था ही नहीं। मैंने नल चलाया और दोनों हाथ की औंक बनाकर पानी भरा और उसके लिये लेकर आया, मैंने अपने हाथ लेटी अवस्था में ही उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे खूबसूरत होंठों पर लगा दिया और उसको पानी पिलाने लगा, वो सारा पानी पी गई।
मैंने पूछा “और लाऊँ?”
अब उनसे लेटे लेटे ही अपनी कातिल नजरों को मेरी तरफ घुमाया और मुस्कुरा कर बोली, “अगर इतने प्यार से पानी पिलाओगे तो सारा दिन यहीं लेटकर पानी पीती रहूँगी मैं।”
मैं तो उसका जवाब सुनकर धन्य हो गया। मन ही मन गद्गद् मैंने वापस चलने को पूछा, तो वो दो मिनट रुकने का इशारा करने लगी। मैं उसके बराबर में ही खड़ा था, कि अचानक मेरी निगाह उसके टॉप के अन्दर फंसी पर्वत की दोनों चोटियों पर गई, जो ऊपरी आवरण को चीर कर बाहर आने को बेताब लग रही थी। मेरी तो निगाह वहाँ जाकर एकदम ही रुक गई।उन दोनों को ऊपर नीचे होते देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वो मेरे जीवन में आने वाले किसी तूफान की मौन चेतावनी दे रहे हों। गौर से देखने पर मुझे अहसास हुआ कि कामना ने टॉप के नीचे कोई अधोवस्त्र नहीं पहना था, क्योंकि उन पहाडि़यों की ऊपरी चोटी पर स्थित अंगूर के दाने का अहसास हो रहा था, ऐसी अनुभूति हो रही थी जैसे वर्षों से प्यासे किसी राही को एक छोटे से जल स्रोत का पता चल गया हो, मेरी शारीरिक परिस्थितियों ने विषम रूप धारण करना प्रारम्भ कर दिया, जिसकी परिणीति मेरी पैंट के ऊपरी मध्य हिस्से में देखी जा सकती थी।
मुझे जैसे ही लिंग जागृत होने का अहसास हुआ। मैंने खुद को संभाला और कामना की तरफ देखा तो पाया कि वो मेरे लिंगोत्थान की प्रक्रिया का अध्ययन कर रही थी। इस बार पकड़े जाने की बारी उसकी थी। अचानक हम दोनों की निगाहें एक दूसरे से मिली और कामना ने शरमा कर नजरें नीची कर ली।
मैंने पूछा “घर चलें?”

तो बिना कोई आवाज किये कामना से सहमति में सिर हिला दिया और मेरे पीछे पीछे चल दी। हम लोगों ने बात करते हुए पैदल घर की ओर प्रस्थान किया। माहौल हल्का करने के लिये मैंने ही बात करनी शुरू की।
“हाँ तो आज मैडम का क्या क्या प्रोग्राम है?”
“हम तो आपके डिस्पोजल पर हैं जो प्रोग्राम आप बना देंगे, वही हमारा प्रोग्राम होगा।”
“पक्का?”
“हाँ जी !”
“देख लो बाद में कहीं मुकर मत जाना अपनी बात से?”
“अरे जीजाजी, मुझे पता है आप कभी मेरा बुरा नहीं करेंगे और आप तो मेरे ड्रीम ब्वा्य हो, मैं आपकी हर बात मानती हूँ।”
मैंने सोचा कि लगे हाथ मैं भी कुछ अरमान निकाल लूँ, मैंने कहा, “यार तुम भी मेरी ड्रीम गर्ल हो ! पर पहले क्यों नहीं मिली। नहीं तो आज शशि की जगह तुम ही मेरे साथ होती मेरी ड्रीम गर्ल !”
‘हा..हा..हा..हा..’ वो हंसने लगी और मुस्कुराते हुए बोली, “लगता है आज घर जाकर आपकी सारी हरकतें शशि को बतानी पड़ेंगी, वैसे भी आप इधर उधर बहुत ताकते हो।”
“हर इंसान अपनी जरूरत को ताकता है साली जी, मैं अपनी जरूरत को ताकता हूँ और आप अपनी।” यह बोलकर मैं मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखने लगा।
उसने एकदम मेरी ओर मुस्कुरा कर देखा पर मुझे अपनी ओर देखकर आँखें नीची कर ली।
‘हाय रे…’ उसकी यह कातिल अदा ही मेरी जान निकालने के लिये काफी थी। आज पहली बार मुझे लगा कि शायद मैं ही बुद्धू था और सोचा कि कोशिश करके देखते हैं क्या पता बात बन ही जाये। मैंने फैसला किया कि कुछ सधे हुए तरीके से प्रयास करूँगा ताकि यदि बात ना भी बने तो बिगड़े तो बिल्कुल भी नहीं।
मैंने वार्तालाप जारी रखते हुए दिमाग चलाना भी जारी रखा और बीच का रास्ता सोचते सोचते ही कट गया, घर आ गया।
घर पहुँचकर मैंने देखा कि शशि नहा-धोकर तैयार खड़ी थी उसके गीले बालों की महक मुझे बहुत पसन्द थी तो मैं जाकर उससे चिपक गया पीछे-पीछे कामना भी मेरे कमरे में आ गई, और हंसकर बोली, “जीजा जी सम्भल कर, घर में कोई और भी है !”
मैंने भी थोड़ी सी हिम्मत दिखाते हुए कहा, “कोई और नहीं है बस मेरी प्यारी साली है, और साली तो आधी घरवाली होती है।”
“यह बात तो सही है।” यह बोलकर शशि ने मेरी बात का समर्थन किया तो जैसे मुझे संजीवनी मिल गई।
मैंने कामना को नहाने के लिये कहा और खुद ब्रश करने चला गया।
थोड़ी ही देर में कामना नहाकर बाथरूम से बाहर निकली तो ऐसा लगा जैसे कोई अप्सरा सीधे स्वर्ग से उतरकर आ रही हो, उसके गीले बालों से टपकती हुई पानी की बूंदें किसी मोती की तरह लग रही थी। उसके गोरे गालों पर भी पानी की बूंदें मादक लग रही थी सफेद रंग के आसमानी किनारी वाले सूट में कामना किसी कामदेवी से कम नहीं लग रही थी, स्लीवलैस सूट गहरा गोल गला अन्दर तक की गोलाईयाँ दिखा रहा था।
वो मुझे देखकर मुस्कुराने लगी और मैं उसको देखकर !
तभी वो बोली, “नहाना नहीं है क्या?”
मैंने कहा, “आज तुम अपने हाथ से नहला दो, क्या पता मैं भी इतना सुन्दर हो जाऊँ !”
वो हंसते हुए बोली, “शशि है ना, हम दोनों को मार मार कर बाहर निकाल देगी।”
तभी अन्दर से शशि की आवाज आई- अगर कामना तैयार है नहलाने को, तो मुझे कोई परेशानी नहीं है।
इतना सुनकर कामना ने शर्म से सर नीचे झुका लिया और मुझे बाथरूम की तरफ धक्का देकर बोली- अब जाओ और नहा लो।
मैं भी समय न गंवाते हुए तुरन्त नहाने चला गया।
मैं तेजी से नहाकर बाहर निकला और तैयार होकर और बाहर जाकर गैराज से कार की जगह बाईक निकाल ली। अब देखना यह था कि बाईक पर मेरे पीछे शशि बैठती है या कामना, क्योंकि मैं इस मामले में प्रयास तो कर सकता था जबरदस्ती नहीं।
दोनों सहेलियाँ बातें करती हुई बाहर आ गई, तभी शशि ने कामना से बीच में बैठने को कहा तो कामना ने हिचकते हुए मनाकर दिया।
शशि ने कहा, “तू दुबली पतली है बीच में आराम से आ जायेगी, अगर मैं बीच में बैठूंगी तो तू पीछे से गिर सकती है।”
परिस्थिति को समझते हुए कामना बीच में बैठ गई और मुझे लगा जैसे बाबा औघड़नाथ ने घर से ही मेरी मुराद सुन ली।
मैंने बाईक स्टार्ट की और दोनों को बैठाकर धीरे धीरे मंदिर की तरफ बढ़ने लगा मैं इस सफर का पूरा पूरा आनन्द लेना चाहता था। बार बार कामना के दोनों खरबूजे मेरी कमर में घुसे जा रहे थे और मुझे पूरा आनन्द दे रहे थे।
कुछ दूर चलने के बाद शायद कामना को समझ में आ गया कि मैं इस आनन्द का मजा ले रहा हूँ, और उसने मेरी कमर में हल्के से चिकोटी काटी, मेरे मुँह से आवाज निकली, “आहहहहहह…!”
“क्या हुआ?” शशि ने पूछा।
“कुछ नहीं !” बोलकर मैंने बाईक आगे बढ़ा दी और फिर से मजा लेने लगा।
तभी मेरी निगाह बाईक पर लगे पीछे देखने वाले शीशे पर गई तो देखा कि कामना हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और बार बार अपने मोटे मोटे खजबूजे मेरी कमर में टकराकर पीछे कर रही थी।
मैं समझ गया कि वो भी मौके का मजा ले रही है। मैंने धीरे धीरे आगे बढ़ने का निर्णय किया। मंदिर से दर्शन करने के बाद वापिस लौटते समय कामना खुद ही मुझसे सटकर बीच में बैठ गई और इस बार मुझे एक बार भी प्रयास नहीं करना पड़ा। कामना खुद ही मुझे आगे से पकड़ कर बैठ गई और दोनों खरबूजों को मेरी कमर में गाड़ दिया। मेरे लिये यह शुभ संकेत था।
घर पहुँच कर जल्दी से नाश्ता करके मैं बाहर अपने काम के लिये निकल गया।
जब 2 घंटे बाद जब वापस आया तो दोनों को आपस में बातें करते हुए पाया। रविवार होने के कारण मेरे पास बहुत समय था। बस उसको प्रयोग कैसे करूँ, यह सोचने लगा।
1 बजे मैंने शशि से कहा, “तुम खाना बना लो, खाना खाकर हम लोग 3 बजे फिल्म देखने चलेंगे और शाम को 6 बजे के बाद किसी मॉल में चलेंगे और रात का खाना बाहर से खाकर ही वापस आयेंगे।”
मेरी बात सुनकर दोनों सहेलियाँ बहुत खुश हो गई। शशि तुरन्त खाना बनाने चली गई। मैं और कामना दोनों बैठकर टीवी देखने लगे। कामना मेरे बिल्कुल बराबर में बैठी टीवी देख रही थी, मैं टीवी के बजाय बार-बार कामना को ही देख रहा था।
कामना ने मेरी निगाह को पकड़ा और मुस्कुराने लगी, बोली, “जीजू, टीवी की हीरोइनें मुझसे कहीं ज्यादा सुन्दर हैं, उधर ध्यान दो।”
मैंने कहा, “बिल्कुल ध्यान उधर ही है।”
“पर आप तो मुझे देख रहे हो।” उसने नजरें झुकाते हुए कहा।
मैं बोला, “हां, बिल्कुल, दरअसल मैं टीवी में दिखने वाली हीरोइनों को अपने बराबर में बैठी हीरोइनों से तुलना कर रहा हूँ।”
“क्या तुलना की आपने?” उसने पूछा।
मैं बोला, “होठों को मिलाया, तो देखा कि तुम्हारे होंठ बिना लिप्स्टिक के जितने गुलाबी है, उतना गुलाबी करने के लिये उनको लिपस्टिक लगानी पड़ रही है। तुम्हारे गाल टमाटर की तरह लाल हैं। देखते ही खाने को दिल करता है। तुम्हारी दोनों स्लीवलेस गोरी गोरी बाजू, ऐसा लग रहा है, जैसे एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ जमना एक साथ नीचे उतर रही हों। तुम्हा‍रे लहराते हुए बाल, दिल पर छुरियाँ चलाते हैं।”
मैंने देखा कि उनसे शरमा कर नजरें नीचे कर ली। पर एक बार भी उनसे मेरी किसी बात का विरोध नहीं किया। मेरे लिये तो यह भी शुभ संकेत ही था। पर मैं जो कहना चाह रहा था, बहुत प्रयास के बाद भी हिम्‍मत नहीं कर पा रहा था।
पर कोशिश करके मैंने अपनी बात को जारी रखा और बोला, “भगवान ने तुमको यह तो सुन्दरता दी है, इसकी तो कोई सानी ही नहीं है।”
अचानक उसने निगाह ऊपर की और पूछा, “क्या?”
मैंने तुरन्त उसके वक्ष की तरफ इशारा किया, यह देखकर उसने अपने दुपट्टे से अपने वक्ष को ढकने की कोशिश की।
तभी मैंने उनका हाथ रोका, “कम से कम ऐसा अन्याय मत करो, दूर से ही सही कम से कम नैन सुख ले लेने दो।”
वो बोली, “जीजू, आप शायद कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ रहे हो।”
“अरे यार, साली आधी घरवाली होती है, कम से कम दूर से तो उसकी सुन्दरता निहारने का अधिकार है ना?” यह बोलकर मैंने उसकी दूधिया बाजू पर बहुत प्यार से हाथ फेरा, तो मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मखमली गद्दे पर हाथ फेरा हो।
“सीईईई…!” की आवाज निकली उसके मुँह से।
पर मुझे लगा कि उसको मेरा इस तरह हाथ फेरना अच्छा लगा, तो मैंने एक बार और प्रयास किया।
“आहहह…” उसके मुँह से निकली।
मैंने पूछा-क्या हुआ?
उसने रसोई की तरफ झांककर देखा और वहाँ से संतुष्ट होकर बोली, “जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना !”
उनका इतना बोलना था, कि मैंने तुरन्त अपना हाथ पीछे खींच लिया, और चुपचाप टीवी देखने लगा। उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखा और पूछा, “नाराज हो गये क्या?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
वो बोली, “अच्छा कर लो, पर धीरे धीरे करना, बहुत गुदगुदी होती है।”
मैंने तुरन्त आज्ञा का पालन किया और फिर से उसकी गोरी-गोरी बाहों पर अपनी उंगलियों को फेरना शुरू कर दिया। इस बार उनके होठों से कोई आवाज नहीं निकल रही थी, पर उसके शरीर में होने वाले कंपन को मैं महसूस कर पा रहा था।
अब हम दोनों का ध्यान टीवी को छोड़कर अपनी अंगक्रीड़ा पर केन्द्रित हो गया था और हम उसका पूरा पूरा आनन्द ले रहे थे। मैंने गौर से देखा उसका आंखें बंद थी और पूरे बदन में कंपन था।

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Re: जीजू रहने दो ना

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 15:42


उसने रसोई की तरफ झांककर देखा और वहाँ से संतुष्ट होकर बोली, “जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना !”
उनका इतना बोलना था, कि मैंने तुरन्त अपना हाथ पीछे खींच लिया, और चुपचाप टीवी देखने लगा। उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखा और पूछा, “नाराज हो गये क्या?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
वो बोली, “अच्छा कर लो, पर धीरे धीरे करना, बहुत गुदगुदी होती है।”
मैंने तुरन्त आज्ञा का पालन किया और फिर से उसकी गोरी-गोरी बाहों पर अपनी उंगलियों को फेरना शुरू कर दिया। इस बार उनके होठों से कोई आवाज नहीं निकल रही थी, पर उसके शरीर में होने वाले कंपन को मैं महसूस कर पा रहा था।
अब हम दोनों का ध्यान टीवी को छोड़कर अपनी अंगक्रीड़ा पर केन्द्रित हो गया था और हम उसका पूरा पूरा आनन्द ले रहे थे। मैंने गौर से देखा उसका आंखें बंद थी और पूरे बदन में कंपन था।
उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों पर भी हल्का हल्का कंपन था।
मैंने बहुत धीमी आवाज में कहा- कामना, तुम्हारे होंठ बहुत सुन्दर हैं। उनसे मेरी तरफ हल्की सी आँख खोल कर देखा और पूछा, “सिर्फ होंठ क्या?”
“नहीं, सुन्दर तो पूरा बदन है तुम्हारा, पर कहीं से तो शुरुआत करनी थी ना !” मैं बोला।
“ओह, तो यह शुरुआत है, जनाब की; तो अन्त कहाँ करने वाले हो?” पूछकर वो कनखियों से मुझे देखने लगी।
अब मैं तो कोई जवाब ही नहीं दे पाया उसको, मैंने कहा- मैंने तुमको आज तक साड़ी में नहीं देखा है, मेरा बात मान लो, आज मूवी देखने साड़ी पहन कर चलना। “बस इतनी सी बात जीजू, आपका हुक्म सर-आखों पर !”
तभी शशि की आवाज आई- खाना तैयार है। जल्दी से डायनिंग टेबल पर आइये।बहुत बुरा लग रहा था उस समय वहाँ से उठना। पर पत्नी रानी का आदेश था तो पालन तो करना ही था। हम लोग बाहर आ गये और जल्दी से खाना खाकर तैयार हो कर मूवी देखने निकल गये।
इस बार मैंने फिर से बाईक का प्रयोग करना ही उचित समझा। चूंकि शशि ने कोई विरोध नहीं किया इसीलिये मुझे कोई परेशानी भी नहीं हुई। कामना ने क्रीम रंद की हल्की कढ़ाई वाली साड़ी पहनी थी। पतली स्टैप वाला ब्लाउज, जिसमें से उसके दोनों गोरे कंधे साफ दिखाई दे रहे थे। ब्लाउज के अंदर से झांकता दूधिया यौवन जैसे मुझे पुकार रहा था। मैं खुद बहुत अधीर था। पर खुद पर काबू रखना बहुत जरूरी था। मैं शशि से बहुत प्यार करता था। उसकी निगाह में गुनाहगार नहीं बनना चाहता था। और मैं यह भी नहीं चाहता था कि कहीं से भी कामना को ये महसूस हो कि मैं सिर्फ उसके यौवन का दीवाना हूँ इस सबके बावजूद भी मैं दिल के हाथों मजबूर था। दिमाग तो कल रात से बस एक ही काम कर रहा था।
कामना मेरे पीछे बाईक पर बैठ चुकी थी। इस बार वो पूरा सहयोग कर रही थी। या शायद मेरे साथ सहज महसूस करने लगी थी। पर मुझे अच्छा लग रहा था। शशि के बैठने के बाद मैंने बाईक को धीरे धीरे आगे बढ़ाया। कामना से हाथ आगे करके मुझे कस के पकड़ लिया, और मुझसे चिपक कर बैठ गई।
थियेटर पहुँच कर हमने मूवी ’रब ने बना दी जोड़ी’ की तीन टिकट ली और अन्‍दर जा पहुँचे। हमेशा की तरह शशि कोने वाली सीट पर बैठ गई और मैं उसके बराबर में। कामना मेरे बराबर में आकर बैठ गई। इस प्रकार मैं अब दोनों के बीच में था, और दोनों ओर से महकती खुशबू का आनन्द ले रहा था।
हॉल में अंधेरा हो चुका था। जब से कामना आई थी मैंने एक बार भी शशि से छेड़छाड़ नहीं की थी इसीलिये मैंने पहले शशि को चुना और उसकी बाजू को पकड़ कर उस पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। शशि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। तो मैंने वो ही हरकत जारी रखी थोड़ी ही देर में शशि पर मेरी हरकत का असर दिखाई देने लगा। उसकी सांसें तेज चलने लगी। उसने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख लिया और वो भी धीरे धीरे मेरी जांघ सहलाकर आनन्दानुभूति करने लगी।
हम लोग अपनी अंगक्रीड़ा और मूवी का मजा एक साथ ले रहे थे। हम दोनों की इस प्रेमक्रीड़ा के फलस्वरूप मेरा लिंग भी अंगड़ाई लेने लगा, जैसे-जैसे शशि मेरी जांघ पर मस्ती से हाथ फेर रही थी, वैसे वैसे ही उसका परिणाम अपने लिंग पर मैं महसूस कर रहा था।
मैंने घूमकर शशि की तरफ देखा उसकी निगाह सामने फिल्मी के पर्दे पर थी और हाथ की उंगलियाँ मेरी जांघों पर। और शायद उसको भी अनुमान हो गया था कि उसकी इस धीमी मालिश का असर होने लगा है अचानक उसने मेरी जांघ से हाथ हटाया और सीधे मेरा लिंग पेंट के उपर से ही पकड़ लिया।
उस समय वो अपने पूर्ण रूप में था। शशि के हाथ में जाने के बाद तो वो नाचने लगा।
अचानक मेरे मुँह से ‘हम्म…’ की आवाज हुई। शायद मेरे बांई ओर बैठी कामना ने उस आवाज को सुना। उनसे मेरी तरफ देखा। सौभाग्य ऐसा कि उस समय मेरी निगाह भी उसी को निहार रही थी। हम दोनों की नजरें आपस में टकराई तो उसने बिना कोई आवाज किये नजरों के इशारे से आँखें ऊपर की ओर मटका कर पूछा- क्या हुआ?
मैंने भी बिना किसी आवाज के सिर्फ गरदन हिला कर ही जवाब दिया- कुछ नहीं। पर तब तक वो मेरे साथ और मेरे द्वारा होने वाली हर हरकत को देख चुकी थी। इस बार जब हमारी निगाहें मिली तो उसने मुस्कुरा कर निगाहें नीची कर ली और मैंने मौका ना गंवाते हुए अपने बांयें हाथ से उसकी दांयीं बाजू को पकड़ा और उस पर धीरे धीरे उंगलियों फिराने लगा।
उसने बाजू छुड़ाने की नाकाम कोशिश की पर मैंने मजबूती से पकड़ी थी इसीलिये वो बाजू नहीं छुड़ा पाई। एक प्रयास के बाद उसने समर्पण कर दिया। और अब मेरे दोनों हाथ हरकत कर रहे थे दांया शशि के साथ और बांया कामना के साथ हालांकि कामना से मुझे मेरी हरकत का प्रतिफल नहीं मिल रहा था। पर शशि से मिलने वाले प्रतिफल से मैं संतुष्ट था।
तभी मैंने महसूस किया कि कामना ने अपना बांये हाथ से मेरे बांये हाथ की उंगलियों पकड़ ली हैं और अब मेरी और उसकी उंगलियों आपस में खेल रही थी। शशि का हाथ मेरी पैंट के ऊपर लिंग पर हल्के हल्के चल रहा था। कामना का ध्यान मूवी से हट चुका था। अब वो लगातार मेरे हाथ की उंगलियों से खेल रही थी और उसकी निगाहें शशि के उस हाथ पर थी जो लगातार मेरे लिंग के ऊपर से खेल रहा था।
इंटरवल में कुछ खाने पीने के बाद मूवी फिर से शुरू हुई और हम लोगों की क्रीड़ा भी। मूवी का पूरा पूरा आनन्द लेने के बाद हम लोग मॉल में चले गये और इधर उधर घूमते रहे वातावरण का आनन्द लेते रहे।
शशि को अकेले में साथ पाकर मैंने आज अपनी सैक्स की इच्छा जाहिर कर दी।
शशि ने कहा, “कामना के जाने तक सब्र कर लो। उसके बाद जो चा‍हो कर लेना।”
मैं भी शशि को छेड़ने के मूड में था, मैंने कहा “देख लो, तुमको पता है मुझे रोज ही तुम्हारी जरूरत पड़ती है एक रात मैं बिना तुम्हारे गुजार चुका हूँ, ऐसा ना हो कहीं गलती से मेरा हाथ तुम्हारी जगह तुम्हारी सहेली पर चला जाये।”
इतना बोल कर मैं हंसने लगा।
“मार खाओगे तुम !” कहकर शशि ने भी मेरे साथ हंसना शुरू कर दिया।
तभी कामना आ गई और बोली- क्या बात बहुत खुश लग रहे हो दोनों, क्या हुआ? शशि ने कहा, “ये तेरे जीजा जी तुझे आधी से पूरी घरवाली बनाने के मूड़ में थे जो जरा इनको प्यार से समझा दिया कि कहीं पूरी के चक्कर में से आधी भी हाथ से ना निकल जाये।”
इसी तरह हंसते, बात करते हम लोग रात को डिनर करके घर वापस आ गये।
घर आते ही शशि थकान के कारण तुरन्त सोने की तैयारी करने लगी। पर मेरी आँखों से तो नींद कोसों दूर थी मुझे तो आज कुछ करना था मूवी के बीच में मेरा ऐसा मूड बन चुका था कि अब रुकना मुश्किल था।
तभी शशि की आवाज आई, “कामना, मैं तो बहुत थक गई हूँ, सोने जा रही हूँ। फ्रिज में दूध रखा है अपने जीजू को पिला देना।”
तब तक मैं टीवी ऑन करके न्यूज देखने लगा और कामना फ्रैश होने चली गई। मैं भी फ्रैश होकर निक्कर और बनियान पहन कर टीवी देखने लगा।
फ्रैश होने के बाद कामना भी ड्राइंग रूम में मेरे साथ बैठ कर टीवी देखने लगी। 5 मिनट बाद कामना बोली, “जीजू मैं चेंज करके आती हूँ।”
“शशि सो गई क्या?” मैंने पूछा।
वो बोली- हाँ जी, और बोलकर सोई थी कि आपको दूध पिला दूं।
कहकर वो मुस्कुराई और वहाँ से जाने लगी। मैंने एक बार झांककर अपने बैडरूम में देखा, शशि सच में सो चुकी थी। मैंने एकदम कामना का हाथ पकड़ा और रोक लिया।
वो बोली, “क्या है अब?”
“थोड़ी देर मेरे पास बैठो ना मैं तुमको साड़ी में देखना चाहता था।”
“तो देख तो लिया, दोपहर से आपके साथ साड़ी में ही तो हूँ।”
“पर तब सिर्फ तुम पर ध्यान नहीं था ना अगर बुरा ना मानो तो थोड़ी देर मेरे पास ऐसे ही रहो, साड़ी में।”
मेरे इतना बोलते ही वो मेरे एकदम सामने आकर खड़ी हो गई और बोली, “लो जी भर कर देख लो।”
उसके दोनों गुब्बारे एकदम तने हुए थे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे ही पुकार रहे थे कि आकर हमसे खेलो। मैं भी खड़ा हुआ और उसके बिल्कुल सामने पहुँच गया। मैंने पूछा, “कैसे खुद को इतना मेंटेंन रखती हो?”
वो हंसने लगी और बोली- ऐसा कुछ नहीं है सब आपकी आंखों का धोखा है।
तब तक मैं उसके एकदम सामने खड़ा था, एकदम नजदीक ! मैंने फिर से उसकी गोरी गोरी बाजुओं पर अपनी उंगलियाँ फेरी।
“उईईई…” वो एकदम सिहर उठी।
मैं बोला “क्या हुआ?”
कामना ने कहा, “मीठी मीठी गुदगुदी होती है।”
मैंने पूछा- अच्छी नहीं लगी क्या?
तो उसने नजरें लज्जा से नीची कर ली। मैं मौके का फायदा उठाते हुए एकदम उसके पीछे आ गया, और पीछे से उसकी कमर में हाथ डालकर उसके पेट पर उंगलियाँ फिराने लगा।

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