संघर्ष

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rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 29 Dec 2014 09:50

संघर्ष--44

गतान्क से आगे..........

सावित्री के मुँह से ऐसी बात सुनकर सुक्खु बोला "...अरी....ये दोनो बैठ चुकी हैं मेरी गोद मे....एक तो रोज ही बैठती है और ये धन्नो भौजी भी जब आती है तो बैठा ही लेता हूँ...." फिर एक पल बाद बोला "..बस तुम ही नई हो मेरी गोद के लिए..." फिर तीनो हंस पड़े लेकिन सावित्री एकदम चुपचाप लाज़ से सन्न हो कर खड़ी थी. फिर सुक्खु अपनी हथेली मे रगड़ रहे सुरती के गर्दे को दूसरी हाथ के ताली से ठोकते हुए फिर आगे बोला "..इन दोनो के बिल मे साँप ना जाने कितनी बार घुस चुका है....बस तुम्हारी बिल मेरे इस साँप के लिए नयी है...बस गोद मे बैठ भर जाओ...साँप खुद ही बिल मे सरक जाएगा...तुम्हे पता नही चलेगा..." इतनी बात ख़त्म होते ही फिर तीनो हँसने लगे. गुलाबी के घर के उस छ्होटे से आँगन मे इस हँसी मज़ाक को कोई भी कहीं से सुन नही सकता था. इसी कारण सभी खूब मज़े से मसालेदार बातें कर रहे थे. तभी गुलाबी बात मे मसाला और मिलाते हुए आगे बोली "....खूब कह रहे हो.....कि सरक जाएगा और पता नही चलेगा....." तब सुक्खु बोला "तो क्या झूठ कह रहा हूँ...." गुलाबी तपाक से बोली "...मर्द तो पैदाइशी झूठे होते हैं.....इस बेचारी की छ्होटी सी बिल ....और तुम्हारा साँप ...बाप रे बाप ..इतना मोटा कि चौड़ी बिल मे घुसता है तो माथे पर पसीना छ्छूट जाता है...." गुलाबी की रसेदार बात को और मज़ेदार बनाते हुए धन्नो भी बोल पड़ी "....हां और क्या...जब पुरानी बिल मे साँप का मुँह कितनी ज़ोर ज़बर्दाश्ती से घूस्ता है तो इसकी बिल तो नई है....घुसेगा ही नही और घुसेगा तो ....बिल को चौड़ा कर के बर्बाद कर देगा..." फिर तीनो हंस पड़े. फिर सुक्खु अपने हथेली मे तैयार हो चुकी सुरती को अपने मुँह मे लेते हुए बोला "...घुसने की चिंता क्यो कर रही हो....जब बिल तैयार हो जाएगी तो साँप खुद ही घुस जाएगा..." तब धन्नो बोली "तो कैसे सांकरी बिल को तैयार करोगे...कि मोटा साँप घुस जाए आसानी से..." अब सुक्खु को सुरती का हल्का नशा मस्त कर दिया तो एकदम फूहड़ तरीके से जबाव देते बोला " आरीए. ...इसकी चुचि मीस मीस के लाल करके बुर को बस दस मिनट चाट लूँ जीभ से तो क्या मज़ाल कि ये अपनी बुर ना उच्छाले....सच कहता हूँ जिस दिन दिला दो उस दिन आधे घंटे मे ऐसा लिटा कर लाल कर दूं कि ...खुद ही लंड लंड चिल्लाएगी...भौजी..." और इतनी बात ख़त्म होते ही धन्नो और गुलाबी खूब हँसने लगी. धन्नो अपने मुँह पर साड़ी के पल्लू को रख कर खूब हँसी और लाज़ से पत्तर हो चुकी सावित्री को धकेल दी और हँसी रोकते रोकते बोली "....ले ले सुन ले...ये क्या बोल रहे हैं....हे हे हा हा ..आधे घंटे मे ......." फिर गुलाबी भी अपनी हँसी रोकते बोली "..आधे घंटे मे क्या चिल्लाएगी ...थोड़ा फिर बोलना तो..." इतना कह कर गुलाबी अपनी नज़रें सावित्री की ओर कर दी. तब सुक्खु फिर बोला "अरी....चिल्ला चिल्ला कर लंड माँगेगी लंड...." एक बार फिर तीनो हंस पड़े लेकिन सावित्री मानो सपने मे नही सोची थी कि इस उमर के लोग इतनी गंदी तरीके से आपस मे बातें करतें हैं. वो बस लाज़ के मारे मानो मरी जा रही थी. सुक्खु एक हिश्ट पुष्ट मर्द था और सावित्री के बारे मे इतनी गंदी तरीके से मज़ाक कर रहा था, ऐसा सोच कर उसका मन अंदर ही अंदर सनसना जाता था. लेकिन बस चुप चाप सबकी बातें सुन रही थी. फिर धन्नो सावित्री के कंधे को हिलाते बोली "...तू तो कुच्छ बोल ही नही रही है...मानो मुँह मे छेद ही नही है..." लेकिन सावित्री एकदम चुप चाप जैसे तैसे अपनी नज़रें झुकाए खड़ी रही. तब धन्नो दुबारा उसके कंधे को हिलाते हुए बोली "...अरी बोल रीई....तुझे क्या हो गया....ऐसे चुप है मानो मुँह मे मोटा लंड घुसा हो..." इतना सुनकर सावित्री मानो सच मे धन्नो चाची पर गुस्सा करती हुई अपना मुँह बिचकाते बोली "...मुझे ये पसंद नही है..." इतना बोलकर गुस्से को अपने मुँह पर लाती हुई फिर वैसे ही खड़ी हो गई. तब धन्नो सावित्री को चिढ़ाते हुए अपने एक हाथ को कोहनी से मोड़ कर हवा मे लहराते बोली "....ये सब नही पसंद ....तो क्या पसंद है ....लंड ...लंड पसंद है ....बोलो ....ये लंड पसंद है.....मोटा लंड पसंद है....लंड लोगि लंड...." और अपने एक हाथ को कोहनी से मोड़ कर हवा मे लहराना बंद करके तुरंत अपनी एक हाथ की दो उंगलिओ को आपस मे सटा कर, फिर दोनो सटी उंगलिओ के बीच हल्की फैलाव ला कर मानो बुर बना ली और तुरंत दूसरे हाथ की एक लंबी उंगली को उस उंगलिओ से बनी बुर मे तेज़ी से अंदर बाहर करते बोली " ये लंड बुर का खेल ....सबको पसंद होता है....आदमी हो या जानवर...जवान हो या बुड्ढे....और जब तक तेरी शादी नही हो जाती तब तक अपनी बुर खूब कुँचवा ले....चोद्वा. ....फदवा .....चौड़ा करवा ले...." फिर धन्नो अगले पल बोली "तू ऐसे मुँह क्यो लटकाई है...तू बोलती क्यो नही रीए.......बोल ...क्या हुआ तेरे को...." फिर अगले ही पल धन्नो अचानक एक झटके मे सावित्री के दुपट्टे के नीचे और समीज़ के उपर से एक चुचि को गुलाबी और खाट पर बैठे सुक्खु के सामने ही कस के पकड़ते हुए आगे शरारती अंदाज़ मे मुस्कुराते बोली "...बोल....बोलेगी कि नही....हरजाई...बोल..नही तो सबके सामने ही नंगी कर दूँगी...." सावित्री अपनी गुदाज बड़ी और गोल चुचि को धन्नो के हाथ मे कस उठते ही एक दम से कसमसा गई और उसके पूरे बदन मे एक बिजली दौड़ गई. धन्नो चाची की ऐसी हरकत से सावित्री पूरी तरह से सकपका गई.

rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 29 Dec 2014 09:50

गुलाबी भी गौर से देखते हुए हँसने लगी. आँगन मे खाट पर बैठा सुक्खु भी मुस्कुराते हुए देखने लगा. धन्नो मानो सावित्री की चुचि को दोनो के आँखों के सामने ही कस कर ऐसे पकड़ी थी कि छ्चोड़ना ही नही चाह रही हो. उधेर चुचि पर धन्नो के हाथ कस जाने से सावित्री पूरी तरह से अवाक रह गई और धन्नो की हाथ को अपनी चुचि पर लगते ही दो कदम पीछे हट तो गई लेकिन आँगन की दीवाल मे उसकी पीठ चिपक गई. धन्नो मानो सावित्री के चुचि को धामे ही उसे दीवाम मे धकेलते हुए आगे बोली "बोल....तू बोलेगी कि नही ....बोल नही ऐसे तेरी चुचि को उखाड़ दूँगी ऐंठ कर...." और धन्नो ज़ोर से वैसे ही चुचि को कस के पकड़े ही हँसने लगी. इतना कुच्छ होते ही गुलाबी अपने घर के उसे छ्होटे से आँगन मे उस छ्होटे से दरवाजे को दौड़ कर बंद कर दे जो गाँव कि उस पतली गली मे खुलता था. ताकि कोई गली मे आने जाने वाला उसकी आँगन के अंदर देख ना सके. दरवाजा के बंद होते ही धन्नो एक नज़र बंद दरवाजे की ओर दौड़ाई और फिर लाज़ से पानी पानी हो चुकी सावित्री के रुन्वासे चेहरे की ओर दुबारा देखती हुई उस दीवाल मे और कस के दबाते हुए चुचि को मानो निचोड़ती हुई फिर हँसती हुई बोली "अब बोल.....हरजाई....तू चोखा और चटनी की तरह मुँह बनाएगी कि कुच्छ बोलेगी....जब तक बोलेगी नही ..तबतक मैं तुझे ऐसे ही दीवाल मे दबाए रहूंगी..." उधेर गुलाबी और सुक्खु, दोनो ही बड़े चाव से हँसते हुए ये सब नज़ारा देख रहे थे. सावित्री धन्नो के हाथ को अपनी चुचि पर से हटाने की कोशिस करती हुई रुन्वन्से मुँह से धीमे से बोली "...ऊवू ....चाची...दुखात है...चाची छ्चोड़ दो....उुउऊः .." और इतनी बात ख़त्म होते ही अपनी मुँह को दूसरी ओर मोड़ ली. लेकिन धन्नो चुचि को कस के पकड़ी हुई सावित्री के हाथ को अपने हाथ पर से झत्कार्ते हुए दूसरे ही पल उसके दुपट्टे को सावित्री के कंधे पर से दूसरे हाथ से सरका कर ज़मीन पर गिरा दी. और फिर आगे बोली "तू अभी भी बोल नही रही है...बोल तो छ्चोड़ूँगी..." तब सावित्री चुचि के दर्द से सिस्कार्ते हुए लाज़ से हंस कर धीमे से फिर रुन्वासि आवाज़ मे बोली "बोल तो रही हूँ चाची...कैसे बोलू..अब कैसे बोलू...." धन्नो तब दूसरे हाथ से सावित्री के चेहरे को सीधा करती हुई बोली "बोल कि अब लज़ाएगी नई....चल बोल ..." सावित्री फिर बोली "चाची....उहह इसे छ्चोड़ तो पहले....ऊवू " धन्नो मानो ज़िद करती हुई बोली "नही....मैं तो एकदम नही छ्चोड़ूँगी....पहले बोल...कि तू लाज़ की नाटक नही करेगी..." फिर धन्नो अपनी बात और आगे करती हुई बोली ".....हरजाई कहीं की...तू ऐसे मुँह बना रही है मानो तू दूध की धोइ है और हम सभी छिनार हैं....चल बोल..." और धन्नो हँसने लगी. सावित्री फिर रुनवँसे मुँह से मुस्कुराते हुए बोली "चाची मैं तो कुच्छ कही तो नही....ऊ छ्चोड़ दो.." तब धन्नो बोली "तो ...तू हँसी मज़ाक से इतना लज़ा क्यों रही है....लज़ाएगी तो झांट मज़ा पाएगी.." धन्नो की ऐसी बात पर सभी खूब तेज़ी से हंस पड़े. फिर धन्नो चुचि को अपने हाथ से छ्चोड़ दी और आगे बोली "...हरजाई.....अब लाज़ की नाटक की तो चुचि मीस कर छाती से उखाड़ दूँगी.." चुचि जैसे ही धन्नो की हाथ की मज़बूत पकड़ से आज़ाद हुई कि सावित्री तुरंत ज़मीन पर गिरे हुए दुपट्टे को जैसे ही उठाने की कोशिस की तो धन्नो सावित्री को दीवाल की ओर धकेलते हुए खुद झुकी और उसके दुपट्टे को अपने हाथ ले ली और दूसरी ही पल आँगन मे बैठे हुए सुक्खु की ओर फेंक दी. सुक्खु लपक कर दुपट्टे को अपने हाथ मे ले लिया. सावित्री की दोनो बड़ी बड़ी और गोल गोल चुचियाँ समीज़ के अंदर ब्रा मे कसी हुई थीं जो पूरी तरह से उभड़ कर मानो ऐसे दीख रही थीं मानो सावित्री की जवानी पूरी तरह से रस से भरी हुई है. सुक्खु आँगन मे खाट पर बैठे ही बैठे अपने हाथ मे सावित्री के दुपट्टे को लिए हुए अपनी नज़रें सावित्री के दोनो बड़ी बड़ी चुचिओ पर टीका दिया था. सावित्री अपनी दोनो गोल गोल और भारी भारी चुचिओ पर अपने दोनो हाथो को कोहनी से मोड़ कर धक ली थी लेकिन उतनी बड़ी बड़ी चुचियाँ हाथों से छुपने लायक नही थीं. और जैसे ही सावित्री की नज़र सुक्खु की नज़र पर पड़ी जो उसकी ही चुचिओ को मुस्कुराते हुए घूर रहा था, तो लाज़ से एक बार और सिहर गई और दूसरे ही पल सावित्री अपनी दोनो चुचिओ को हाथों से वैसे ही छिपाये हुए दीवाल की मूड गई और अब पीठ सुक्खु की ओर थी. इतना देख कर धन्नो गुस्से मे एक शरारती मुस्कुराहट लिए मानो धीमे से दाँत पीसती हुई बोली "अब तू ये क्या कर रही है रीए.....फिर वही नाटक सुरू कर दी....तुझे कितनी लाज़ लग रही है रे हरजाई...." फिर धन्नो आगे बोली "...अब तो गांद दीखा रही है...तो दीखा ठीक से ....चल गांद ही दीखा.." और इतनी बात ख़त्म होते ही धन्नो लपक कर सावित्री के चौड़े चूतड़ पर लटक रही समीज़ को उठा कर कमर के उपर कर दी तो कमर मे बँधी सलवार और उसके उपर थोड़ी से पीठ भी सुक्खु को दीखाई दे गया. लेकिन दूसरे ही पर सावित्री धन्नो के हाथ से अपने समीज़ को खींच कर नीचे कर ली. तब धन्नो बोली "अच्च्छा तो तू ज़ोर जबर्दाश्ती मुझसे करेगी.....तो ले तुझे नंगी कर रही हूँ ...कर ले ज़ोर जबर्दाश्ती ....आज मैं देख लू कि तेरी गांद मे कितना ज़ोर है..." इतना कहने के बाद धन्नो एक शरारती मुस्कुराहट के साथ ही अपनी साड़ी को अपनी दोनो चुचिओ को उपर से होते हुए एक कंधे से पीठ की ओर ले गई फिर उस साड़ी के पल्लू को खींच कर टाइट करते हुए अपनी कमर मे खोंस ली और पैरों के नीचे की साड़ी को भी हल्का सा उपर उठा कर उसे भी कमर मे खोन्स्ते हुए गुलाबी की ओर मुँह करके बोली "....आ जाओ....आज हम दोनो मिल कर इसकी गांद की ताक़त देख लें....आ जा जल्दी से...." गुलाबी भी हंसते हुए तुरंत ठीक धन्नो की तरह ही साड़ी के पल्लू को कमर और नीचे पैरों के पास की साड़ी को उपर उठा कर कमर मे खोंस ली. सुक्खु खाट पर बैठे ही दोनो के रुख़ को देखकर मस्त हो गया और अपनी लूँगी के उपर से ही लंड को मसल दिया. फिर गुलाबी धन्नो को एक आँख मारते हुए धीमे से घर के अंदर वाली कोठरी मे ले चलने के लिए इशारा की तब धन्नो बोली "...हां हाँ.....इसे वहीं अंदर ले चल .....आज देखूं कितनी लज़ाति है....हम तीनो के सामने..." फिर धन्नो सावित्री की एक बाँह पकड़ जैसे ही आँगन मे बने उस कोठरी ले जाने लगी सावित्री एक पल के लिए मानो नही जाना चाह रही थी. लेकिन धन्नो ज़ोर लगा कर धकेलने लगी तो दूसरी ओर गुलाबी भी बाँह पकड़ ली और दोनो मिल कर आँगन से कोठरी के दरवाजे की ओर धकेलने लगी. सावित्री गिद्गिडाती हुई बोली "...च चाची....य ये क्या ...छ्चोड़ो.....ऊ नही..." और सावित्री अपनी पूरी ताक़त से उस कोठरी के दरवाजे की ओर जाना नही चाह रही थी. सावित्री अपने दोनो घुटनो को मोड़ कर मानो वहीं बैठ जाना चाह रही थी.

rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 29 Dec 2014 09:51

घुटनो के मुड़ते ही धन्नो और गुलाबी को सावित्री के दोनो बाँहो को उपर की ओर उठाने मे काफ़ी ज़ोर लगाना पड़ रहा था. और दूसरे ही पल सावित्री वहीं ज़मीन पर बैठ गई. तब धन्नो उसकी बाँह को ज़ोर से उपर की ओर उठाते हुए बोली "चल ......चल ....नही तो घसीट के ले चलूंगी....और यदि नही चली उस कोठरी मे तो इसी आँगन मे ही नंगी कर दूँगी...बोल ...क्या मंजूर है तुझे..." धन्नो यह बोल कर खूब हँसने लगी और गुलाबी भी हंस पड़ी. खाट पर बैठा सुक्खु भी यह सब अपनी आँखों के सामने देख कर हंस रहा. तभी दोनो ने सावित्री को दोनो बाँहो को छ्चोड़ दिया. तब बैठी हुई सावित्री तुरंत दोनो बड़ी बड़ी मांसल चुचिओ को अपनी घुटनो के बीच दबा कर घुटनो को बाहों से घेर ली. हँसी के धीमी ठहाकों के बीच बेबस होकर ज़मीन पर बैठी हुई सावित्री अपनी दोनो बड़ी बड़ी गोल गोल मांसल चुचिओ को घुटनो के बीच दबाए हुए खुद की हँसी रोक नही पा रही थी, और वह भी दबी ज़ुबान हंस रही थी. जिसे देख कर तीनो उसे और चिडाना चाह रहे थे. फिर धन्नो अपनी हँसी रोकते बोली "आज देख कि तेरे साथ क्या क्या होता है....आज तू या तो लज़ाएगी या ....मज़े लेगी ....हरजाई...आज देखु कि तेरी लाज़ कैसे नही जाती है..." तब गुलाबी हंसते बोली "देखो...तुम्हारे और हम सभी के बीच का जो झगड़ा है वो यही कि तू बहुत लज़ाति है....क्यों.." गुलाबी के इस स्वाल से धन्नो तुरंत सहमत होते बोली "हां और क्या....ये ऐसे लज़ाति है कि मानो ये इज़्ज़त वाली है और हम सब इज़्ज़त वाले नही हैं...मानो कोई छिनार हरजाई हैं..." तब गुलाबी आगे बोली "देख जैसे तुझे अपनी इज़्ज़त की चिंता और फिकर है वैसे हर औरत को अपनी इज़्ज़त और अस्मत की चिंता होती है...और वैसे मुझे और इस धन्नो को भी तो चिंता होती है....क्यों सही कहा कि नही." तब धन्नो बोली "हां और क्या ...हम सभी को भी तो इस गाँव और समाज मे और परिवार रिश्तेदार के बीच रहना है...तो इज़्ज़त का ख्याल तो रखना ही पड़ेगा ..." फिर गुलाबी बोली "...हम सभी आपस मे जो हँसी मज़ाक और शरारत करते हैं ....वो कोई बेइज़्ज़त या ऐसा ग़लत थोड़ी है जो तू समझती है...हरजाई...आरीए इतना तो कम ज़्यादा सभी करते हैं..." फिर धन्नो बोली "वही तो इस हरजाई को समझा रही हूँ ....ना जाने कितने दिनो से...इस आपस मे ये सब चलता है...इसमे इतना लज़ाने शरमाने वाली बात नही है...लेकिन इस हरजाई के अंदर की लाज़ सारा मज़ा किरकिरा कर देती है..." तब गुलाबी बोली "हां तो आज फ़ैसला तो ही जाय कि ....ये आपस मे लज़ाएगी...या अपनी बुर बुर खोल के दिखाएगी..." गुलाबी के इस बात को धन्नो एक शर्त मे बदलते बोली "हां तू सही कह रही है...या तो ये खुद अपनी बुर को खोल के हम तीनो को दीखाएगी ...या लज़ाएगी और बुर नही दीखाएगी तो इसकी बुर की लंड से पिटाई की जायागी...बोलो क्या मंजूर है..."ज़मीन पर बैठी हुई सावित्री ऐसी बात सुनकर अपनी नज़रें धन्नो और गुलाबी की ओर बारी बारी की और फिर मुस्कुराते हुए अपनी नज़रें वापस ज़मीन मे गढ़ा ली. ऐसा देख कर धन्नो बोली "अब बोल ...चुप क्यों है...यदि नही मंजूर है तो हम दोनो तुझे इस कोठरी मे ले जा कर इनसे जबर्दाश्ती चुद्वा देंगे....नही तो खुद अपने हाथों से सलवार खोल के हम तीनो को अपनी बुर दिखा दो. तब गुलाबी बोली "हम दोनो तो औरतें हैं....सो औरत को औरत की बुर देखने से क्या होगा....हां तुम इन्हे दीखा दो..." सुक्खु इस बात से काफ़ी खुश हुआ और हंस कर बोला "हां ....ये तो ठीक है...चलो दीखा दो...आपस मे कैसा लाज़...हम सब आपस मे कोई लाज़ शरम नही करते....चलो दीखा दो.." इतनी बात ख़त्म होते ही सुक्खु अपने लंड को दुबारा लूँगी के उपर से मसल दिया. तब धन्नो बोली "देख हरजाई ...तू यदि मानेगी नही तो आज तुझे मोटे लंड से पिटवा दूँगी...नही तो आराम से अपनी बुर दीखा दे..." फिर धन्नो हँसने लगी. धन्नो की इस बात को सुनकर सावित्री भी लज़ा गई और उसी मुद्रा मे बैठी हुई अपनी नज़रें वैसे ही ज़मीन मे धँसाए हुए मुस्कुरा रही थी. फिर गुलाबी बोली "...अरी लंड से पीटने की कोई ज़रूरत नही है...ये खुद दिखा देगी.." तब धन्नो बोली "तुम नही जानती हो इस हरजाई को...ये बहुत हराम्जादि है...इतनी आसानी से ये मानने वाली नही है...इसे लंड से पीटना ही पड़ेगा.." तब गुलाबी हंसते हुए बोली "....क्यों सावित्री ....लंड से पिटेगी ....और नही पिटना है तो बस सलवार खोल और बुर दिखा दे...यहाँ कोई और थोड़ी है...हम तीनो के सिवाय और आँगन का दरवाजा भी बंद है, किसी के आने का भी डर नही है...चल दिखा दे.." लेकिन सावित्री वैसे ही बैठी रही और कुच्छ भी बोली नही बल्कि मंद मंद मुस्कुरा रही थी. उसका कलेज़ा धक धक कर रहा था. लाज़ से मानो उसकी बुर मे से मूत निकल जाए. तभी गुलाबी बोली "तू यदि आँगन मे नही दिखा पाएगी तो चल उस कोठरी मे दिखा दे...एक पल का तो काम है बुर दिखाना..." तब धन्नो हंस कर बोली "और क्या...एक पल का काम और इतने देर से मिन्नत करवा रही है..." तब गुलाबी बोली "अच्छा चलो ..आँगन मे नही तो उस कोठरी मे तो दिखा देगी ना....तो चलो उस कोठरी मे..." इतना कह कर गुलाबी सावित्री की एक बाँह कस के पकड़ी और उपर की ओर उठाई. लेकिन सावित्री मानो उठना नही चाह रही थी. वह वैसे ही बैठी रही. तब धन्नो ने दूसरी बाँह पकड़ कर ज़ोर लगा कर उठाई तो सावित्री खड़ी हो गयी और उसकी दोनो गोल गोल मांसल भारी भरकम चुचियाँ सुक्खु के सामने समीज़ के अंदर उभर कर खड़ी हो गईं. सुक्खु उसे देख कर एक बार फिर अपने लंड को लूँगी के उपर से मसल दिया. लंड मे हल्की सी मस्ती की लहर दौड़ गई. फिर धन्नो बोली "चल कोठरी मे ही ....भला वहीं तो दिखा....कैसे भी दिखा .....आज तू अपनी बुर खुद ही खोल कर दिखा....." और इसी के साथ दोनो की ओर सावित्री रुनवँसे आवाज़ मे हँसती बोली "च चाची ....हाथ जोड़ती हूँ...मुझे मत परेशान करो..." तब गुलाबी बोली "....इसमे कौन सी परेशानी है रीए...बस सलवार खोल कर बुर ही दिखाने की शर्त तो है...चल कोठरी मे और बुर दिखा दो....हम सब तुझे कुच्छ नही बोलेंगे..." और दोनो सावित्री को धकेलते हुए कोठरी मे ले कर चली आईं. कोठरी का दरवाजा आँगन मे खुला हुया था. इस वजह से उस छ्होटी कोठरी मे दरवाजे से पूरी रोशनी आ रही थी. कोठरी मे एक चारपाई बिछि थी और उसपर एक पुराना बिस्तर लगा था. उस चारपाई के बगल मे कोठरी के दीवाल मे एक छ्होटा सा ताखा बना था जिसमे एक छ्होटी सी कटोरी मे तेल रखा था. उस कटोरी के बगल मे एक शराब की खाली पाऔच रखी थी. कुच्छ बिंदी और एक दियासलाई भी उस तखे पर रखी थी. गुलाबी के घर मे इस कोठरी के अंदर भी एक और दरवाजा लगा था और ये दरवाजा अंदर वाली कोठरी का था जिसमे दिन के वक्त भी काफ़ी अंधेरा था. फिर उस चारपाई के पास सावित्री को खड़ा करके दोनो ने बाँहें छ्चोड़ दी और फिर धन्नो हंसते हुए बोली "चल अब बता कि बुर दिखाएगी ....या तुझे चुद्वा दूं...." गुलाबी बोली "अब तो तू कोठरी मे आ गई है..अब क्यों डर रही है....बुर दिखाने मे..." सावित्री कुच्छ भी नही बोली तब धन्नो बोली "ये ऐसे नही राज़ी होगी .....बुलाओ और इस कटोरी का तेल इसकी बुर मे उडेल कर चोद्वा दो....तब इसकी लाज़ निकल जाएगी..हरजाई...की..." तब गुलाबी बोली "...आरीए तू ग़लत सोचती है...ये प्यारी बिटिया ज़िद नही करेगी और ...अपनी बुर खोल के दिखा देगी...बोलो..." तब सावित्री हंस कर मुँह लटकाए बोली "चाची....ऊवू क्या बताउ..." तब गुलाबी बोली "अरी इसमे बताने वाली क्या बात है....अपनी सलवार खोलो और बुर दिखा दो.." तब सावित्री बोली " ल लेकिन.." तब धन्नो बोली "अरी...मैं तो कहती हूँ इसे चोद्वा दो...इस हरजाई को.." तब गुलाबी बोली "नही...ये बुर दिखाएगी....खुद दिखाएगी....क्यों...सावित्री ...." तब सावित्री चुप कुच्छ पल के लिए चुप रही. तब गुलाबी बोली "देख..तू समझने की कोशिस कर....आपस मे ये कोई ग़लत नही होता है री...ये आपस की रज़ामंदी वाली बात होती है..." गुलाबी सावित्री के बगल मे खड़ी हो कर उसके कंधे पर एक हाथ रख कर समझाते हुए आगे बोली "यदि रज़ामंदी हो तो कोई बात ग़लत नही होती...और पर्दे के आड़ मे दुनिया ना जाने क्या क्या करती है....तू अभी पूरी अनाड़ी है जो इतना लज़ाति और शरमाती है..." अपनी बात आगे बढ़ाते हुए सावित्री के कान के पास धीमी आवाज़ मे बोली "जैसी दुनिया तू देखती है वैसी दुनिया सच्चाई मे नही है...दुनिया की सच्चाई जानेगी तो तुझे यकीन नही होगा.." सावित्री अपने चेहरे को लटकाए चुपचाप सुन रही थी.

क्रमशः………………………………………..


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