संघर्ष

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rajaarkey
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संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 21:21

संघर्ष --1

सावित्री एक 18 साल की गाओं की लड़की है जिसका बाप बहुत पहले ही मर चुका था और एक मा और एक छोटा भाई घर मे था. ग़रीबी के चलते मा दूसरों के घरों मे बर्तन झाड़ू करती और किसी तरह से अपना और बचों का पेट भर लेती. आख़िर ग़रीबी तो सबसे बड़ा पाप है,,, यही उसके मन मे आता और कभी -2 बड़बड़ाती .. गाओं का माहौल भी कोई बहुत अच्छा नही था और इसी के चलते सावित्री बेटी की पड़ाई केवल आठवीं दर्ज़े तक हो सकी. अवारों और गुन्दो की कमी नहीं थी. बस इज़्ज़त बची रहे एसी बात की चिंता सावित्री की मा सीता को सताती थी. क्योंकि सीता जो 38 साल की हो चुकी थी करीब दस साल पहले ही विधवा हो चुकी थी..... ज़िम्मेदारियाँ और परेशानियो के बीच किसी तरह जीवन की गाड़ी चलती रहे यही रात दिन सोचती और अपने तकदीर को कोस्ती. सावित्री के सयाने होने से ये मुश्किले और बढ़ती लग रही थी क्योंकि उसका छोटा एक ही बेटा केवल बारह साल का ही था क्या करता कैसे कमाता... केवल सीता को ही सब कुछ करना पड़ता. गाओं मे औरतों का जीवन काफ़ी डरावना होता जा रहा था क्योंकि आए दिन कोई ना कोई शरारत और छेड़ छाड़ हो जाता.. एसी लिए तो सावित्री को आठवीं के बाद आगे पढ़ाना मुनासिब नहीं समझा. सीता जो कुछ करती काफ़ी सोच समझ कर.. लोग बहुत गंदे हो गये हैं " यही उसके मन मे आता. कभी सोचती आख़िर क्यों लोग इतने गंदे और खराब होते जा रहें है.. एक शराब की दुकान भी गाओं के नुक्कड़ पर खुल कर तो आग मे घी का काम कर रही है. क्या लड़के क्या बूढ़े सब के सब दारू पी कर मस्त हो जाते हैं और गंदी गलियाँ और अश्लील हरकत लड़ाई झगड़ा सब कुछ शुरू हो जाता.. वैसे भी दारू की दुकान अवारों का बहुत बढ़ियाँ अड्डा हो गया था. रोज़ कोई ना कोई नयी बात हो ही जाती बस देर इसी बात की रहती कि दारू किसी तरह गले के नीचे उतर जाए...फिर क्या कहना गालिया और गंदी बातों का सिलसिला शुरू होता की ख़त्म होने का नाम ही नही लेता . चार साल पहले सावित्री ने आठवीं दर्ज़े के बाद स्कूल छोड़ दिया .. वो भी मा के कहने पर क्योंकि गाओं मे आवारा और गुन्दो की नज़र सावित्री के उपर पड़ने का डर था. ए भी बात बहुत हद तक सही थी. ऐसा कुछ नही था कि सीता अपने लड़की को पढ़ाना नहीं चाहती पर क्या करे डर इस बात का था कि कहीं कोई उनहोनी हो ना जाए. चार साल हो गये तबसे सावित्री केवल घर का काम करती और इधेर उधेर नही जाती. कुछ औरतों ने सीता को सलाह भी दिया कि सावित्री को भी कहीं किसी के घर झाड़ू बर्तन के काम पे लगा दे पर सीता दुनिया के सच्चाई से भली भाँति वाकिफ़ थी. वह खुद दूसरों के यहाँ काम करती तो मर्दो के रुख़ से परिचित थी.. ये बात उसके बेटी सावित्री के साथ हो यह उसे पसंद नहीं थी. मुहल्ले की कुछ औरतें कभी पीठ पीछे ताने भी मारती " राजकुमारी बना के रखी है लगता है कभी बाहर की दुनिया ही नही देखेगी...बस इसी की एक लड़की है और किसी की तो लड़की ही नहीं है.." धन्नो जो 44 वर्ष की पड़ोस मे रहने वाली तपाक से बोल देती.. धन्नो चाची कुछ मूहफट किस्म की औरत थी और सीता के करीब ही रहने के वजह से सबकुछ जानती भी थी. अट्ठारह साल होते होते सावित्री का शरीर काफ़ी बदल चुका था , वह अब एक जवान लड़की थी, माहवारी तो 15 वर्ष की थी तभी से आना शुरू हो गया था. वह भी शरीर और मर्द के बारे मे अपने सहेलिओं और पड़ोसिओं से काफ़ी कुछ जान चुकी थी. वैसे भी जिस गाँव का माहौल इतना गंदा हो और जिस मुहल्ले मे रोज झगड़े होते हों तो बच्चे और लड़कियाँ तो गालिओं से बहुत कुछ समझने लगते हैं. धन्नो चाची के बारे मे भी सावित्री की कुछ सहेलियाँ बताती हैं को वो कई लोगो से फासी है. वैसे धन्नो चाची की बातें सावित्री को भी बड़ा मज़ेदार लगता. वो मौका मिलते ही सुनना चाहती. धन्नो चाची किसी से भी नही डरती और आए दिन किसी ना किसी से लड़ाई कर लेती. एक दिन सावित्री को देख बोल ही पड़ी " क्या रे तेरे को तो तेरी मा ने क़ैद कर के रख दिया है. थोड़ा बाहर भी निकल के देख, घर मे पड़े पड़े तेरा दीमाग सुस्त हो जाएगा; मा से क्यो इतना डरती है " सावित्री ने अपने शर्मीले स्वभाव के चलते कुछ जबाब देने के बजाय चुप रह एक हल्की मुस्कुराहट और सर झुका लेना ही सही समझा. वह अपने मा को बहुत मानती और मा भी अपनी ज़िम्मेदारीओं को पूरी तरीके से निर्वहन करती. वाश्तव मे सावित्री का चरित्र मा सीता के ही वजह से एस गंदे माहौल मे भी सुरच्छित था. सावित्री एक सामानया कद काठी की शरीर से भरी पूरी मांसल नितंबो और भारी भारी छातियो और काले घने बाल रंग गेहुआन और चहेरे पर कुछ मुहाँसे थे. दिखने मे गदराई जवान लड़की लगती. सोलह साल मे शरीर के उन अंगो पर जहाँ रोएँ उगे थे अब वहाँ काफ़ी काले बात उग आए थे. सावित्री का शरीर सामान्य कद 5'2 '' का लेकिन चौड़ा और मांसल होने के वजह से चूतड़ काफ़ी बड़ा बड़ा लगता था. एक दम अपनी मा सीता की तरह. घर पर पहले तो फ्रॉक पहनती लेकिन जबसे जंघे मांसल और जवानी चढ़ने लगी मा ने सलवार समीज़ ला कर दे दिया. दुपट्टा के हटने पर सावित्री के दोनो चुचियाँ काफ़ी गोल गोल और कसे कसे दिखते जो पड़ोसिओं के मूह मे पानी लाने के लिए काफ़ी था ये बात सच थी की इन अनारों को अभी तक किसी ने हाथ नही लगाया था. लेकिन खिली जवानी कब तक छुपी रहेगी , शरीर के पूरे विकास के बाद अब सावित्री के मन का भी विकास होने लगा. जहाँ मा का आदेश की घर के बाहर ना जाना और इधेर उधर ना घूमना सही लगता वहीं धन्नो चाची की बात की घर मे पड़े पड़े दीमाग सुस्त हो जाएगा " कुछ ज़्यादा सही लगने लगा. फिर भी वो अपने मा की बातों पर ज़्यादा गौर करती सीता के मन मे सावित्री के शादी की बात आने लगी और अपने कुछ रिश्तेदारों से चर्चा भी करती, आख़िर एस ग़रीबी मैं कैसे लड़की की शादी हो पाएगी. जो भी कमाई मज़दूरी करने से होती वह खाने और पहनने मैं ही ख़त्म हो जाता. सीता को तो नीद ही नही आती चिंता के मारे इधेर छोटे लड़के कालू की भी पढ़ाई करानी थी रिश्तेदारों से कोई आशा की किरण ना मिलने से सीता और परेशान रहने लगी रात दिन यही सोचती कि आख़िर कौन है जो मदद कर सकता है सीता कुछ क़र्ज़ लेने के बारे मे सोचती तो उस अयाश मंगतराम का चेहरा याद आता जो गाओं का पैसे वाला सूदखोर बुद्धा था और अपने गंदी हरक़त के लिए प्रषिध्ह था तभी उसे याद आया कि जब उसके पति की मौत हुई थी तब पति का एक पुराना दोस्त आया था जिसका नाम सुरतलाल था, वह पैसे वाला था और उसके सोने चाँदी की दुकान थी और जात का सुनार था उसका घर सीता के गाओं से कुछ 50 मील दूर एक छोटे शहर मे था, बहुत पहले सीता अपने पति के साथ उसकी दुकान पर गयी थी जो एक बड़े मंदिर के पास थी सीता की आँखे चमक गयी की हो सकता है सुरतलाल से कुछ क़र्ज़ मिल जाए जो वह धीरे धीरे चुकता कर देगी क्रमशः......................
संघर्ष
savitri ek 18 saal ki gaon ki ladki hai jiska baap bahut pahle hi mar chuka tha aur ek maa aur ek chota bhai ghar me tha. garibi ke chalte maa dusron ke gharon me bartan jhadu karti aur kisi tarah se apna aur bachon ka pet bhar leti. akhir garibi to sabse bada paap hai,,, yahi uske man me aata aur kabhi -2 badbadati .. gaon ka mahaul bhi koi bahut accha nahi tha aur esi ke chalte savitri beti ki padai keval athvin darze tak ho saki. awaron aur gundo ki kami nahin thi. bas ijjat bachi rahe esi baat ki chinta savitri ki maa sita ko satati thi. kyonki sita jo 38 saal ki ho chuki thi karib das saal pahle hi vidhva ho chuki thi..... jimmedarian aur pareshanion ke beech kisi tarah jeevan ki gadi chalti rahe yahi raat din sochti aur apne takdeer ko kosti. savitri ke sayaane hone se ye mushkile aur badhti lag rahi thi kyonki uska chota ek hi beta keval baarah saal ka hi tha kya karta kaise kamata... keval sita ko hi sab kuch karna padta. gaon me aurton ka jeevan kafi daravna hota ja raha tha kyonki aaye din koi na koi shararat aur ched chad ho jaata.. esi liye to savitri ko athvin ke baad aage padhana munasib nahin samjha. sita jo kuch karti kafi soch samajh kar.. log bahut gande ho gaye hain " yahi uske man me aata. kabhi sochti akhir kyon log itne gande aur kharaab hote ja rahen hai.. ek sharaab ki dukaan bhi gaon ke nukkad par khul kar to aag me ghee ka kaam kar rahi hai. kya ladke kya budhe sab ke sab daaru pee kar mast ho jaate hain aur gandi galian aur ashlil harkat ladai jhagda sab kuch shuru ho jata.. vaise bhi daaro ki dukan awaron ka bahut badhian adda ho gaya tha. roz koi na koi nayi baat ho hi jaati bas der esi baat ki rahti ki daaru kisi tarah gale ke neeche utar jaye...fir kya kahna galia aur gandi baaton ka silsila shuru hota ki khatm hone ka naam hi nahi leta . char saal pahle savitri aathvin darze ke baad school chod diya .. wo bhi maa ke kahne par kyonki gaon me aware aur gundo ki nazar savitri ke upar padne ka dar tha. e bhi baat bahut had taq sahi thi. aisa kuch nahi tha ki sita apne ladki ko padhana nahin chahti par kya kare dar es baat ki thi ki kahin koi unhoni ho na jaye. char saal ho gaye tabse savitri keval ghar ka kaam karti aur idher udher nahi jaati. kuch aurton ne sita ko salah bhi diya ki savitri ko bhi kahin kisi ke ghar jhadu bartan ke kaam pe laga de par sita duniya ke sachhai se bhali bhanti vakif thi. vah khud dusron ke yehan kaam karti to mardo ke rukh se parichit thi.. ye baat uske beti savitri ke saath hi yah use pasand nahin thi. muhalle ki kuch aurten kabhi peeth peeche taane bhi maarti " rajkumari bana ke rakhi hai lagta hai kabhi bahar ki duniya hi nahi dekhegi...bas esi ki ek ladki hai aur kisi ki to ladki hi nahin hai.." dhanno jo 44 varsh ki pados me rahne wali tapaak se bol deti.. dhanno chachi kuch muhfat kism ki aurat thi aur sita ke kareeb hi rahne ke vajah se sabkuch janti bhi thi. attharah saal hote hote savitri ka shareer kafi badal chuka tha , wah ab ek jawan ladki thi, mahvari to 15 varsh ki thi tabhi se aana shuru ho gaya tha. vah bhi shareer aur mard ke baare me apne sahelion aur padosion se kafi kuch jaan chuki thi. vaise bhi jis goan ka mahaul itna ganda ho aur jis muhalle me roj jhagde hote hon to bachhe aur ladkian to gaalion se bahut kuch samajhne lagten hain. dhanno chachi ke baare me bhi savitri ki kuch sahelian batati hain ko vo kai logo se fasi hai. vaise dhanno chachi ki baaten savitri ko bhi bada mazedaar lagta. vo mauka milte hi sunana chahti. dhanno chachi kisi se bhi nahi darti aur aye din kisi na kisi se ladai kar leti. ek din savitri ko dekh bol hi padi " kya re tere ko to teri maa ne kaid kar ke rakh diya hai. thoda bahar bhi nikal ke dekh, ghar me pade pade tera deemag sust ho jayega; maa se kyo itna darti hai " savitri apne sharmile svbhav ke chalte kuch jabab dene ke bajay chup rah ek halki muskurahat aur sar jhuka len hi sahi samjha. vah apne maa ko bahut manti aur maa bhi apni jimmedarion ko puri tareeke se nirvahan karti. vashtav me savitri ka charitra maa sita ke hi vajah se es gande mahoul me bhi surachhit thi. savitri ek samanya kad kathi ki shareer se bhari puri mansal nitambo aur bhari bhari chation aur kaale ghane baal rang gehuan aur chehere par kuch muhanse the. dikhne me gadarai jawan ladki lagti. solah saal me shareer ke un ango par jahan royen uge the ab vahan kafi kaale baat ug aaye the. savitri ka shareer samanya kad 5'2 '' ka lekin chauda aur mansal hone ke vajah se chutad kafi bada bada lagta tha. ek dam apni maa sita ki tarah. ghar par pahle to frock pahanti lekin jabse janghe mansal aur jawani chadne lagi maa ne salwar sameez la kar de diya. dupatta ke hatne par savitri ke dono chuchian kafi gol gol aur kase kase dikhte jo padosion ke muh me paani laane ke liye kafi tha ye baat sach thi ki en anaaron ko abhi taq kisi ne hath nahi lagaya tha. lekin khili jawani kab taq chupi rahegi , shareer ke pure vikas ke baad ab savitri ke man ka bhi vikas hone laga. jahan maa ka aadesh ki ghar ke baahar na jana aur idher udhar na ghumana sahi lagta vahin dhanno chachi ki baat ki ghar me pade pade deemag sust ho jayega " kuch jyade sahi lagne laga. fir bhi vo apne ma ki baaton par jyada gaur karti sita ke man me savitri ke shadi ki baat aane lagi aur apne kuch rishtedaron se charcha bhi karti, akhir es garibi main kaise ladki ki shadi ho payegi. jo bhi kamai majdoori karne se hoti vah khane aur pahnane main hi khatm ho jata. sita ko to need hi nahi aati chinta ke maare idher chote ladke kaalu ki bhi padhai karaani thi rishtedaaron se koi asha ki kiran na milne se sita aur pareshan rahne lagi raat din yahi sochati ki akhir kaun hai jo madad kar sakta hai sita kuch karz lene ke baare me sochti to us aiyaash mangatram ka chehra yad aata jo gaon ka paise wala soodkhor buddha tha aur apne gandi harqat ke liye prashidhh tha tabhi use yaad aya ki jab uske pati ki maut hui thi tab pati ka ek purana dost aya tha jiska naam suratlal tha, vah paise vala tha aur uske sone chandi ki dukan thi aur jaat ka sunar tha uska ghar sita ke gaon se kuch 50 meel door ek chote shahar me tha, bahut pahle sita apne pati ke saath uske dukaan par gayi thi jo ek pade mandir ke paas tha sita ki aankhe chamak gayi ki ho sakta hai suratlal se kuch karz mil jaye jo vah dheere dheere chukta kar degi


rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 21:22

संघर्ष --2

गतांक से आगे..........

एक दिन समय निकाल कर सीता उस सुरतलाल के दुकान पर गयी तो निराशा ही हाथ लगी क्योंकि सुरतलाल को इस बात का यकीन नहीं था कि सीता उसका क़र्ज़ कैसे वापस करसकेगी..... सीता की परेशानियाँ और बढ़ती नज़र आ रही थी कभी इन उलज़हनो मे यह सोचती कि यदि सावित्री भी कुछ कम करे तो आमदनी बढ़ जाए और शादी के लिए पैसे भी बचा लिया जाए चौतरफ़ा समस्याओं से घिरता देख सीता ने लगभग हथियार डालना शुरू कर दिया.. अपनी ज़िद , सावित्री काम करने के बज़ाय घर मे ही सुरक्ष्हित रखेगी को वापस लेने लगी उसकी सोच मे सावित्री के शादी के लिए पैसे का इंतज़ाम ज़्यादा ज़रूरी लगने लगा. गाओं के मंगतराम से क़र्ज़ लेने का मतलब कि वह सूद भी ज़्यादा लेता और लोग यह भी सोचते की मंगतराम मज़ा भी लेता होगा, इज़्ज़त भी खराब होती सो अलग. सीता की एक सहेली लक्ष्मी ने एक सलाह दी कि "सावित्री को क्यो ना एक चूड़ी के दुकान पर काम करने के लिए लगा देती " यह सुनकर की सावित्री गाओं के पास छोटे से कस्बे मे कॉसमेटिक चूड़ी लिपीसटिक की दुकान पर रहना होगा, गहरी सांस ली और सोचने लगी. सहेली उसकी सोच को समझते बोली " अरी चिंता की कोई बात नही है वहाँ तो केवल औरतें ही तो आती हैं, बस चूड़ी, कंगन, और सौंदर्या का समान ही तो बेचना है मालिक के साथ, बहुत सारी लड़कियाँ तो ऐसे दुकान पर काम करती हैं " इस बात को सुन कर सीता को संतुष्टि तो हुई पर पूछा " मालिक कौन हैं दुकान का यानी सावित्री किसके साथ दुकान पर रहेगी" इस पर सहेली लक्ष्मी जो खुद एक सौंदर्या के दुकान पर काम कर चुकी थी और कुछ दुकानो के बारे मे जानती थी ने सीता की चिंता को महसूस करते कहा " अरे सीता तू चिंता मत कर , दुकान पर चाहे जो कोई हो समान तो औरतों को ही बेचना है , बस सीधे घर आ जाना है, वैसे मैं एक बहुत अच्छे आदमी के सौंदर्या के दुकान पर सावित्री को रखवा दूँगी और वो है भोला पंडित की दुकान, वह बहुत शरीफ आदमी हैं , बस उनके साथ दुकान मे औरतों को समान बेचना है, उनकी उम्र भी 50 साल है बाप के समान हैं मैं उनको बहुत दीनो से जानती हूँ, इस कस्बे मे उनकी दुकान बहुत पुरानी है, वे शरीफ ना होते तो उनकी दुकान इतने दीनो तक चलती क्या?" सीता को भोला पंडित की बुढ़ापे की उम्र और पुराना दुकानदार होने से काफ़ी राहत महसूस कर, सोच रही थी कि उसकी बेटी सावित्री को कोई परेशानी नही होगी. लक्ष्मी की राय सीता को पसंद आ गयी , आखिर कोई तो कोई रास्ता निकालना ही था क्योंकि सावित्री की शादी समय से करना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. दुसरे दिन लक्ष्मी के साथ सावित्री भोला पंडित के सौंदर्य प्रसाधन के दुकान के लिए चली. कस्बे के एक संकरी गली में उनकी दुकान थी. दुकान एक लम्बे कमरे में थी जिसमे आगे दुकान और पिछले हिस्से में पंडित भोला रहते थे. उनका परिवार दुसरे गाँव में रहता था. लक्ष्मी ने सीता को भोला पंडित से परिचय कराया , स्वभाव से शर्मीली सीता ने सिर नीचे कर हल्की सी मुस्कराई. प्रणाम करने में भी लजा रही थी कारण भी था की वह एक गाँव की काफी शरीफ औरत थी और भोला पंडित से पहली बार मुलाकात हो रही थी. " अरे कैसी हो लक्ष्मी , बहुत दिनों बाद दिखाई दी , मैंने बहुत ईन्तजार किया तुम्हारा , मेरी दुकान पर तुम्हारी बहुत जरूरत है भाई" भोला पंडित ने अपनी बड़ी बड़ी आँखों को नाचते हुए पूछा. " अरे क्या करूँ पंडित जी मेरे ऊपर भी बहुत जिम्मेदारिया है उसी में उलझी रहती हूँ फुर्सत ही नहीं मिलती" लक्ष्मी ने सीता की ओर देखते मुस्कुराते हुए जवाबदिया "जिम्मेदारियो में तो सबकी जिंदगी है लक्ष्मी कम से कम खबर क्र देती , मैं तो तुम्हारे इस आश्वाशन पर की जल्दी मेरे दुकान पर काम करोगी मैंने किसी और लड़की या औरत को ढूंढा भी नहीं" भोला पंडित ने सीता की ओर देखते हुए लक्ष्मी से कुछ शिकायती लहजे में कहा, " मुझे तो फुर्सत अभी नहीं है लेकिन आपके ही काम के लिए आई हूँ और मेरी जगह इनकी लड़की को रख लीजिये . " सीता की ओर लक्ष्मी ने इशारा करते हुए कहा. भोला पंडित कुछ पल शांत रहे फिर पूछे "कौन लड़की है कहाँ , किस दुकान पर काम की है" शायद वह अनुभव जानना चाहते थे "अभी तो कही काम नहीं की है कहीं पर आपके दुकान की जिम्मेदारी बखूबी निभा लेगी " लक्ष्मी ने जबाव दिया लेकिन भोला पंडित के चेहरे पर असंतुष्टि का भाव साफ झलक रहा था शायद वह चाहते थे की लक्ष्मी या कोई पहले से सौन्दर्य प्रसाधन की दुकान पर काम कर चुकी औरत या लड़की को ही रखें . भोला पंडित के रुख़ को देखकर सीता मे माथे पर सिलवटें पड़ गयीं. क्योंकि सीता काफ़ी उम्मीद के साथ आई थी कि उसकी लड़की दुकान पर काम करेगी तब आमदनी अच्छी होगी जो उसके शादी के लिए ज़रूरी था. सीता और लक्ष्मी दोनो की नज़रें भोला पंडित के चेहरे पर एक टक लगी रही कि अंतिम तौर पर क्या कहतें हैं. लक्ष्मी ने कुछ ज़ोर लगाया "पंडित जी लड़की काफ़ी होशियार और समझदार है आपके ग्राहको को समान बखूबी बेच लेगी , एक बार मौका तो दे कर देख लेने मैं क्या हर्ज़ है" पंडित जी माथे पर हाथ फेरते हुए सोचने लगे. एक लंबी सांस छोड़ने के बाद बोले "अरे लक्ष्मी मेरे ग्राहक को एक अनुभवी की ज़रूरत है जो चूड़ी, कंगन, बिंदिया के तमाम वरीटीएस को जानती हो और ग्राहको के नस को टटोलते हुए आराम से बेच सके, तुम्हारी लड़की तो एक दम अनाड़ी है ना, और तुम तो जानती हो कि आजकल समान बेचना कितना मुश्किल होता जा रहा है." सीता चुपचाप एक तक दोनो के बीच के बातों को सुन रही थी. तभी भोला पंडित ने काफ़ी गंभीरता से बोले " लक्ष्मी मुश्किल है मेरे लिए" सीता के मन मे एक निराशा की लहर दौर गयी. थोड़ी देर बाद कुछ और बातें हुई और भोला पंडित के ना तैयार होने की दशा मे दोनो वापस गाओं की ओर चल दी. रास्ते मे लक्ष्मी ने सीता से बोला "तुमने तो लड़की को ना तो पढ़ाया और ना ही कुछ सिखाया और बस घर मैं बैठाए ही रखा तो परेशानी तो होगी ही ना; कहीं पर भी जाओ तो लोग अनुभव या काम करने की हुनर के बारे मे तो पूछेनएगे ही " सीता भी कुछ सोचती रही और रास्ते चलती रही, फिर बोली "अरे तुम तो जानती हो ना की गाओं का कितना गंदा माहौल है कि लड़की का बाहर निकलना ही मुश्किल है, हर जगह हरामी कमीने घूमते रहते हैं, और मेरे तो आगे और पीछे कोई भी नही है कि कल कुछ हो जाए ऐसा वैसा तो" लक्ष्मी फिर जबाव दी पर कुछ खीझ कर " तुम तो बेवजह डरती रहती हो, अरे हर जगह का माहौल तो एसी तरह का है तो इसका यह मतलब तो नही कि लोग अपने काम धंधा छोड़ कर घर मे तेरी बेटी की तरह बैठ जाए. लोग चाहे जैसा हो बाहर निकले बगैर तो कम चलने वाला कहा है. सब लोग जैसे रहेंगे वैसा ही तो हमे भी रहना होगा; " सीता कुछ चुपचाप ही थी और रास्ते पर पैदल चलती जा रही थी. लक्ष्मी कुछ और बोलना सुरू किया "देखो मेरे को मैं भी तो दुकान मैं नौकरी कर लेती इसका ये मतलब तो नही की मेरा कोई चरित्र ही नही या मैं ग़लत हूँ ; ऐसा कुछ नही है बस तुमहरे मन मे भ्रम है कि बाहर निकलते ही चरित्र ख़तम हो जाएगा" सीता ने अपना पच्छ को मजबूत करने की कोशिस मे तर्क दे डाला "तुम तो देखती हो ना की रास्ते मैं यदि ये दारूबाज़ लोफर, लफंगे मिलते हैं तो किस तरह से गंदी बोलियाँ बोलते है, आख़िर मेरी बेटी तो अभी बहुत कच्ची है क्या असर पड़ेगा उसपर" लक्ष्मी के पास भी एसका जबाव तैयार था "मर्दों का तो काम ही यही होता है कि औरत लड़की देखे तो सीटी मार देंगे या कोई छेड़छाड़ शरारत भरी अश्लील बात या बोली बोल देंगे; लेकिन वी बस एससे ज़्यादा और कुछ नही करते, ; और इन सबको को सुनना ही पड़ता है इस दुनिया मे सीता" आगे और बोली "इन बातों को सुन कर नज़रअंदाज कर के अपने काम मे लग जाना ही समझदारी है सीता, तुम तो बाहर कभी निकली नही एसीलिए तुम इतना डरती हो" सीता को ये बाते पसंद नही थी लेकिन एन बातों को मानना जैसे उसकी मज़बूरी दिखी और यही सोच कर सीता ने पलट कर जबाव देना उचित नहीं समझा सीता एक निराश, उदास, और परेशान मन से घर मे घुसी और सावित्री की ओर देखा तभी सावित्री ने जानना चाहा तब सीता ने बताया कि भोला पंडित काम जानने वाली लड़की को रखना चाहता है. वैसे सावित्री के मन मे सीखने की ललक बहुत पहले से ही थी पर मा के बंदिशो से वह सारी ललक और उमंग मर ही गयी थी. सारी रात सीता को नीद नही आ रही थी वो यही सोचती कि आख़िर सावित्री को कहाँ और कैसे काम पर लगाया जाए. भोला पंडित की वो बात जिसमे उन्होने अनुभव और लक्ष्मी की बात जिसमे 'सुनना ही पड़ता है और बिना बाहर निकले कुछ सीखना मुस्किल है' मानो कान मे गूँज रहे थे और कह रहे थे कि सीता अब हिम्मत से काम लो . बेबस सीता के दुखी मन मे अचानक एक रास्ता दिखा पर कुछ मुस्किल ज़रूर था, वो ये की भोला पंडित लक्ष्मी को अपने यहाँ काम पर रखना चाहता था पर लक्ष्मी अभी तैयार नहीं थी और दूसरी बात की सावित्री को काम सीखना जो लक्ष्मी सिखा सकती थी. सीता अपने मन मे ये भी सोचती कि यदि पंडित पैसा कुछ काम भी दे तो चलेगा . बस कुछ दीनो मे सावित्री काम सिख लेगी तो कहीं पर काम करके पैसा कमा सकेगी. इसमे मुस्किल इस बात की थी कि लक्ष्मी को तैयार करना और भोला पंडित का राज़ी होना. यही सब सोचते अचानक नीद लगी तो सुबह हो गयी. सुबह सुबह ही वो लक्ष्मी के घर पर पहुँच अपनी बात को काफ़ी विनम्रता और मजबूरी को उजागर करते हुए कहा. शायद भगवान की कृपा ही थी कि लक्ष्मी तैयार हो गयी फिर क्या था दिन मे दोनो फिर भोला पंडित के दुकान पर पहुँचे. भोला पंडित जो लक्ष्मी को तो दुकान मे रखना चाहता था पर सावित्री को बहुत काम पैसे मे ही रखने के लिए राज़ी हुआ. सीता खुस इस बात से ज़्यादा थी कि सावित्री कुछ सीख लेगी , क्योंकि की पैसा तो भोला पंडित बहुत काम दे रहा था सावित्री को . "आख़िर भगवान ने सुन ही लिया" सीता लगभग खुश ही थी और रास्ते मे लक्ष्मी से कहा और लक्ष्मी का अपने उपर एहसान जताया

gtaank se aage.......... ek din samay nikaal kar sita us suratlal ke dukaan par gayi to nirasha hi hath lagi kyonki suratlal ko is baat ka yakin nahin tha ki sita uska karz kaise vapas karsakegi..... sita ki pareshanian aur badhti nazar aa rahi thi kabhi in ulzhno me yah sochti ki yadi savitri bhi kuch kam kare to amdani badh jaye aur shadi ke liye paise bhi bacha liya jaye chautarfa samasyaon se ghirta dekh sita ne lagbhag hathiyar dalna shuru kar diya.. apni zid ki, savitri ko kam karne ke bazay ghar me hi surakshhit rakhegi ko vapas lene lagi uski soch me savitri ke shadi ke liye paise ka intzaam jyade jaruri lagne laga. gaon ke mangatram se karz lene ka matlab ki vah sood bhi jyada leta aur log yah bhi sochte ki mangatram maza bhi leta hoga, ijjat bhi kharaab hoti so alag. sita ki ek saheli laxmi ne ek salah di ki "savitri ko kyo na ek chudi ke dukaan par kaam karne ke liye laga deti ho" yah sunkar ki savitri gaon ke paas chote se kasbe me cosmetic chudi lipistic ki dukaan par rahna hoga, gahri sans lee aur sochne lagi. saheli ne uski soch ko samajhte boli " aree chinta ki koi baat nahi hai vahan to keval aurten hi to aati hain, bas chudi, kangan, aur saundarya ka saman hi to bechna hai malik ke saath, bahut sari ladkiyan to aise dukaan par kam karti hain " is baat ko sun kar sita ko santushti to hui par pucha " malik kaun hain dukaan ka yaani savitri kiske sath dukan par rahegi" is par saheli laxmi jo khud ek saundarya ke dukaan par kam kar chuki thi aur kuch dukaano ke baare me janti thi ne sita ki chinta ko mahsoos karte kaha " are sita tu chinta mat kar , dukaan par chahe jo koi ho saman to aurton ko hi bechna hai , bas sidhe ghar aa jana hai, vaise main ek bahut acche admi ke saundarya ke dukan par savitri ko rakhva dungi aur vo hai bhola pandit ki dukan, vah bahut sharif admi hain , bas unke saath dukan me aurton ko saman bechna hai, unki umra bhi 50 saal hai baap ke samaan hain main unko bahut dino se janti hun, is kasbe me unki dukaan bahut puraani hai, ve sharif na hote to unki dukaan itne dino taq chalti kya?" sita ko bhola pandit ki budhape ki umra aur purana dukaandar hone se kafi rahat mahsoos kar, soch rahi thi ki uski beti savitri ko koi pareshani nahi hogi. bhola pandit ke rukh ko dekhkar sita me mathe par silwaten pad gayin. kyonki sita kafi ummeed ke sath aayi thi ki uski ladki dukaan par kaam karegi tab amdani achhi hogi jo uske shadi ke liye jaroori tha. sita aur laxmi dono ki nazren bhola pandit ke chehre par ek tak lagi rahi ki antim taur par kya kahten hain. laxmi ne kuch jor lagaya "pandit ji ladki kafi hoshiyar aur samajhdaar hai apke grahko ko saman bakhubi bech legi , ek bar mauka to de kar dekh lene main kya harz hai" pandit ji maathe par hath ferte huye sochne lage. ek lambi sans chodne ke baad bole "are laxmi mere grahak ko ek anubhavi ki jaroorat hai jo chudion, kangan, bindia ke tamam varities ko janti ho aur grahko ke nas ko tatolte huye aram se bech sake, tumahari ladki to ek dam anadi hai naa, aur tum to janti ho ki ajkal saman bechna kitna mushkil hota jaa raha hai." sita chupchap ek tak dono ke beech ke baton ko sun rahi thi. tabhi bhola pandit ne kafi gambhirta se bole " laxmi mushkil hai mere liye" sita ke man me ek nirasha ki lahar daur gayi. thodi der baad kuch aur baaten huyi aur bhola pandit ke na taiyar hone ki dasha me dono vapas gaon ki or chal di. rashte me laxmi ne sita se bola "tumne to ladki ko na to padhaya aur na hi kuch sikhya aur bas ghar main baithaye hi rakha to pareshani to hogi hi na; kahin par bhi jao to log anubhav ya kam karne ki hunar ke baare me to puchenege hi " sita bhi kuch sochti rahi aur raste chalti rahi, fir boli "are tum to janti ho na ki gaon ka kitna ganda mahoul hai ki ladkion ka bahar niklna hi mushkil hai, har jagah harami kameene ghumte rahte hain, aur mere to aage aur peeche koi bhi nahi hai ki kal kuch ho jaye aisa vaisa to" laxmi fir jabav di par kuch kheejh kr " tum to bevajah darti rahti ho, are har jagah ka mahaul to esi tarah ka hai to eska yah matlab to nahi ki log apne kam dhandha chor kar ghar me teri beti ki tarah baith jae. log chahe jaisa ho bahar nikle bagair to kam chalne wala kaha hai. sab log jaise rahenge vaisa hi to hume bhi rahna hoga; " sita kuch chupchap hi thi aur rashte par paidal chalti jaa rahi thi. laxmi kuch aur bolna suru kiya "dekho mere ko main bhi to dukan main naukri kar leti iska ye matlab to nahi ki mera koi charitra hi nahi ya main galat hun ; aisa kuch nahi hai bas tumahare man me bhram hai ki bahar niklte hi charitra khatam ho jaega" sita ne apna pachh ko majboot karne ki koshis me tark de dala "tum to dekhti ho na ki rashte main yadi ye daroobaaz lofar, lafange milte hain to kis tarah se gandi bolian bolten hai, akhir meri beti to abhi bahut kachhi hai kya asar padega uspar" laxmi ke pas bhi eska jabav taiyar tha "mardon ka to kam hi yahi hota hai ki aurat ladki dekhe to siti mar denge ya koi chedchad shararat bhari ashleel bat ya boli bol denge; lekin we bas esase jyada aur kuch nahi karte, ; aur en sabko ko sunana hi padta hai is duniya me sita" aage aur boli "en baton ko sun kar nazarandaaj kar ke apne kam me lag jana hi samajdari hai sita, tum to bahar kabhi nikali nahi esiliye tum itna darti ho" sita ko ye baate pasand nahi thi lekin en baaton ko manana jaise uski mazburi dikhi aur yahi soch kar sita ne palat kar jabav dena uchit nahin samja sita ek nirash, udas, aur pareshan man se ghar me ghusi aur savitri ki or dekha tabhi savitri ne janana chaha tab sita ne bataya ki bhola pandit kam janane vali ladki ko rakhna chahta hai. vaise savitri ke man me sikhne ki lalak bahut pahle se hi thi par maa ke bandisho se vah sari lalak aur umang mar hi gayi thi. sari raat sita ko need nahi aa rahi thi voh yahi sochti ki akhir savitri ko kahan aur kaise kaam par lagaya jae. bhola pandit ki wo baat jisme unhone anubhav aur laxmi ki baat jisme 'sunana hi padta hai aur bina bahar nikle kuch sikhna muskil hai' maano kaan me goonj rahe the aur kah rahe the ki sita ab himmat se kam lo . bebas sita ke dukhi man me achanak ek rashta dikha par kuch muskil jaroor tha, wo ye ki bhola pandit laxmi ko apne yahan kaam par rakhna chahta tha par laxmi abhi taiyar nahin thi aur dusri baat ki savitri ko kam sikhna jo laxmi sikha sakti thi. sita apne man me ye bhi sochti ki yadi pandit paisa kuch kam bhi de to chalega . bas kuch dino me savitri kam sikh legi to kahin par kaam karke paisa kama sakegi. isme muskil es baat ki thi ki laxmi ko taiyar karna aur bhola pandit ka razi hona. yahi sab sochte achanak need lagi to subah ho gayi. subah subah hi wo laxmi ke ghar par pahunch apni baat ko kafi vinamrta aur majboori ko ujagar karte huye kaha. shayad bhagvan ki kripa hi thi ki laxmi taiyar ho gayi fir kya tha din me dono fir bhola pandit ke dukaan par pahunche. bhola pandit jo laxmi ko to dukan me rakhna chahta tha par savitri ko bahut kam paise me hi rakhne ke liye razi hua. sita khus is baat se jyada thi ki savitri kuch sikh legi , kyonki ki paisa to bhola pandit bahut kam de raha tha savitri ko . "akhir bhagvan ne sun hi liya" sita lagbhag khush hi thi aur raste me laxmi se kaha aur laxmi ka apne upar ehsaan jataya


rajaarkey
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Re: संघर्ष

Unread post by rajaarkey » 12 Dec 2014 21:22

संघर्ष --3

gtaank se aage.......... घर पहुँचने के बाद सीता ने सावित्री को इस बात की जानकारी दी की कल से लक्ष्मी के साथ भोला पंडित के दुकान पर जा कर कम करना है . सावित्री मन ही मन खुस थी , उसे ऐसे लगा की वह अब अपने माँ पर बहुत भर नहीं है उम्र १८ की पूरी हो चुकी थी शरीर से काफी विकसित, मांसल जांघ, गोल और चौड़े चुतड, गोल और अनार की तरह कसी चुचिया काफी आकर्षक लगती थी. सलवार समीज और चुचिया बड़ी आकार के होने के वजह से ब्रा भी पहनती और नीचे सूती की सस्ती वाली चड्डी पहनती जिसकी सीवन अक्सर उभाड जाता. सावित्री के पास कुल दो ब्रा और तीन चड्ढी थी एक लाल एक बैगनी और एक काली रंग की, सावित्री ने इन सबको एक मेले में से जा कर खरीदी धी. सावित्री के पास कपड़ो की संख्या कोई ज्यादा नहीं थी कारण गरीबी. जांघों काफी सुडौल और मोती होने के वजह से चड्डी , जो की एक ही साइज़ की थी, काफी कसी होती थी. रानो की मोटाई चड्ढी में कस उठती मानो थोडा और जोर लगे तो फट जाये. रानो का रंग कुछ गेहुआं था और जन्घो की पट्टी कुछ काले रंग लिए था लेकिन झांट के बाल काफी काले और मोटे थे. बुर की उभार एकदम गोल पावरोटी के तरह थी. कद भले ही कुछ छोटा था लेकिन शरीर काफी कसी होने के कारण दोनों रानो के बीच बुर एकदम खरबूज के फांक की तरह थी. कभी न चुदी होने के नाते बुर की दोनों फलके एकदम सटी थी रंग तो एकदम काला था . झांटो की सफाई न होने और काफी घने होने के कारण बुर के ऊपर किसी जंगल की तरह फ़ैल कर ढक रखे थे. जब भी पेशाब करने बैठती तो पेशाब की धार झांटो को चीरता हुआ आता इस वजह से जब भी पेशाब कर के उठती झांटो में मूत के कुछ बूंद तो जरूर लग जाते जो चड्डी पहने पर चड्डी में लगजाते. गोल गोल चूतडों पर चड्ढी एकदम चिपक ही जाती और जब सावित्री को पेशाब करने के लिए सलवार के बाद चड्ढी सरकाना होता तो कमर के पास से उंगलिओं को चड्ढी के किनारे में फंसा कर चड्ढी को जब सरकाती तो लगता की कोई पतली परत चुतद पर से निकल रही है. चड्ढी सरकते ही चुतड को एक अजीब सी ठंढी हवा की अनुभूति होती. चड्ढी सरकने के बाद गोल गोल कसे हुए जांघो में जा कर लगभग फंस ही जाती, पेशाब करने के लिए सावधानी से बैठती जिससे चड्ढी पर ज्यादे खिंचाव न हो और जन्घो के बीच कुछ इतना जगह बन जाय की पेशाब की धार बुर से सीधे जमीन पर गिरे . कभी कभी थोडा भी बैठने में गड़बड़ी होती तो पेशाब की गर्म धार सीधे जमीन के बजाय नीचे पैर में फंसे सलवार पर गिरने लगती लिहाज़ा सावित्री को पेशाब तुरंत रोक कर चौड़े चुतड को हवा में उठा कर फिर से चड्ढी सलवार और जांघो को कुछ इतना फैलाना पड़ता की पेशाब पैर या सलवार पर न पडके सीधे जमीन पर गिरे. फिर भी सावित्री को मूतते समय मूत की धार को भी देखना पड़ता की दोनों पंजों के बीच खाली जगह पर गिरे. इसके साथ साथ सिर घुमा कर इर्द गिर्द भी नज़र रखनी पड़ती कि कहीं कोई देख न ले. खुले में पेशाब करने में गाँव कि औरतों को इस समस्या से जूझनापड़ता. सावित्री जब भी पेशाब करती तो अपने घर के दीवाल के पीछे एक खाली पतली गली जो कुछ आड़ कर देती और उधर किसी के आने जाने का भी डर न होता . माँ सीता के भी मुतने का वही स्थान था. और मूतने के वजह से वहां मूत का गंध हमेशा रहता. मूतने के बाद सावित्री सीधा कड़ी होती और पहले दोनों जांघों कि गोल मोटे रानो में फंसे चड्ढी को उंगलिओं के सहारे ऊपरचढ़ाती चड्ढी के पहले अगले भाग को ऊपर चड़ा कर झांटों के जंगल से ढके बुर को ढक लेती फिर एक एक करके दोनों मांसल गोल चूतडो पर चड्ढी को चढ़ाती. फिर भी सावित्री को यह महसूस होता की चड्ढी या तो छोटी है या उसका शरीर कुछ ज्यादा गदरा गया है. पहनने के बाद बड़ी मुश्किल से चुतड और झांटों से ढकी बुर चड्ढी में किसी तरीके से आ पाती , फिर भी ऐसा लगता की कभी भी चड्ढी फट जाएगी. बुर के ऊपर घनी और मोटे बालो वाली झांटे देखने से मालूम देती जैसे किसी साधू की घनी दाढ़ी है और चड्डी के अगले भाग जो झांटों के साथ साथ बुर की सटी फांको को , जो झांटो के नीचे भले ही छुपी थी पर फांको का बनावट और उभार इतना सुडौल और कसा था की झांटों के नीचे एक ढंग का उभार तैयार करती और कसी हुई सस्ती चड्डी को बड़ी मुस्किल से छुपाना पड़ता फिर भी दोनों फांको पर पूरी तरह चड्डी का फैलाव कम पड़ जाता , लिहाज़ा फांके तो किसी तरह ढँक जाती पर बुर के फांको पर उगे काले मोटे घने झांट के बाल चड्डी के अगल बगल से काफी बाहर निकल आते और उनके ढकने के जिम्मेदारी सलवार की हो जाती. इसका दूसरा कारण यह भी था की सावित्री एक गाँव की काफी सीधी साधी लड़की थी जो झांट के रख रखाव पर कोई ध्यान नहीं देती और शारीरिक रूप से गदराई और कसी होने के साथ साथ झांट के बाल कुछ ज्यादा ही लम्बे और घना होना भी था. सावित्री की दोनों चुचिया अपना पूरा आकार ले चुकी थी और ब्रेसरी में उनका रहना लगभग मुस्किल ही था, फिर भी दो ब्रेस्रियो में किसी तरह उन्हें सम्हाल कर रख लेती. जब भी ब्रेसरी को बंद करना पड़ता तो सावित्री को काफी दिक्कत होती. सावित्री ब्रा या ब्रेसरी को देहाती भाषा में "चुचिकस" कहती क्योंकि गाँव की कुछ औरते उसे इसी नाम से पुकारती वैसे इसका काम तो चुचिओ को कस के रखना ही था. बाह के कांख में बाल काफी उग आये थे झांट की तरह उनका भी ख्याल सावित्री नहीं रखती नतीजा यह की वे भी काफी संख्या में जमने से कांख में कुछ कुछ भरा भरा सा लगता. सावित्री जब भी चलती तो आगे चुचिया और पीछे चौड़ा चुतड खूब हिलोर मारते. सावित्री के गाँव में आवारों और उचक्कों की बाढ़ सी आई थी. सावित्री के उम्र की लगभग सारी लडकिया किसी ना किसी से चुदती थी कोई साकपाक नहीं थी जिसे कुवारी कहा जा सके . ऐसा होगा भी क्यों नहीं क्योंकि गाँव में जैसे लगता को शरीफ कम और ऐयास, गुंडे, आवारे, लोफर, शराबी, नशेडी ज्यादे रहते तो लड़किओं का इनसे कहाँ तक बचाया जा सकता था. लड़किओं के घर वाले भी पूरी कोसिस करते की इन गंदे लोगो से उनकी लडकिया बची रहे पर चौबीसों घंटे उनपर पहरा देना भी तो संभव नहीं था, और जवानी चढ़ने की देरी भर थी कि आवारे उसके पीछे हाथ धो कर पद जाते. क्योंकि उनके पास कोई और काम तो था नहीं. इसके लिए लड़ाई झगडा गाली गलौज चाहे जो भी हो सब के लिए तैयार होते . नतीजा यही होते कि शरीफ से शरीफ लड़की भी गाँव में भागते बचते ज्यादा दिन तक नहीं रह पाती और किसी दिन किसी गली, खंडहर या बगीचे में, अँधेरे, दोपहर में किसी आवारे के नीचे दबी हुई स्थिति में आ ही जातीं बस क्या था बुर की सील टूटने कि देर भर रहती और एक दबी चीख में टूट भी जाती. और आवारे अपने लन्ड को खून से नहाई बुर में ऐसे दबाते जैसे कोई चाकू मांस में घुस रहा हो. लड़की पहले भले ही ना नुकुर करे पर इन चोदुओं की रगड़दार गहरी चोदाई के बाद ढेर सारा वीर्यपात जो लन्ड को जड़ तक चांप कर बुर की तह उड़ेल कर अपने को अनुभवी आवारा और चोदु साबित कर देते और लड़की भी आवारे लन्ड के स्वाद की शौक़ीन हो जातीं. फिर उन्हें भी ये गंदे लोगो के पास असीम मज़ा होने काअनुभव हो जाता . फिर ऐसी लड़की जयादा दिन तक शरीफ नहीं रह पाती और कुतिया की तरह घूम घूम कर चुदती रहती . घर वाले भी किसी हद तक डरा धमका कर सुधारने की कोशिस करते लेकिन जब लड़की को एक बार लन्ड का पानी चढ़ जाता तो उसका वापस सुधारना बहुत मुश्किल होता. और इन आवारों गुंडों से लड़ाई लेना घर वालों को मुनासिब नहीं था क्योंकि वे खतरनाक भी होते. लिहाज़ा लड़की की जल्दी से शादी कर ससुराल भेजना ही एक मात्र रास्ता दीखता और इस जल्दबाजी में लग भी जाते . शादी जल्दी से तय करना इतना आसान भी ना होता और तब तक लडकिया अपनी इच्छा से इन आवारो से चुदती पिटती रहती. आवारो के संपर्क में आने के वजह से इनका मनोबल काफी ऊँचा हो जाता और वे अपने शादी करने या ना करने और किससे करने के बारे में खुद सोचने और बात करने लगती. और घरवालो के लिए मुश्किल बढ़ जाती . एक बार लड़की आवारो के संपर्क में आई कि उनका हिम्मत यहाँ तक हो जाता कि माँ बाप और घरवालो से खुलकर झगडा करने में भी न हिचकिचाती. यदि मारपीट करने कि कोसिस कोई करे तो लड़की से भागजाने कि धमकी मिलती और चोदु आवारो द्वारा बदले का भी डर रहता. और कई मामलो में घरवाले यदि ज्यादे हिम्मत दिखाए तो घरवालो को ये गुंडे पीट भी देते क्योंकि वे लड़की के तरफ से रहते और कभी कभी लड़की को भगा ले जाते. सबकुछ देखते हुए घरवाले लडकियो और आवारो से ज्यादे पंगा ना लेना ही सही समझते और जल्द से जल्द शादी करके ससुराल भेजने के फिराक में रहते. ऐसे माहौल में घरवाले यह देखते कि लड़की समय बे समय किसी ना किसी बहाने घुमने निकल पड़ती जैसे दोपहर में शौच के लिए तो शाम को बाज़ार और अँधेरा होने के बाद करीब नौ दस बजे तक वापस आना और यही नहीं बल्कि अधि रात को भी उठकर कभी गली या किसी नजदीक बगीचे में जा कर चुद लेना. इनकी भनक घरवालो को खूब रहती पर शोरशराबा और इज्जत के डर से चुप रहते कि ज्याने दो हंगामा ना हो बस . यही कारन था कि लडकिया जो एक बार भी चुद जाती फिर सुधरने का नाम नहीं लेती. आवारो से चुदी पिटी लडकियो में निडरता और आत्मविश्वास ज्यादा ही रहता और इस स्वभाव कि लडकियो कि आपस में दोस्ती भी खूब होती और चुदाई में एक दुसरे कि मदद भी करती. गाँव में जो लडकिया ज्यादे दिनों से चुद रही है या जो छिनार स्वभाव कि औरते नयी चुदैल लडकियो के लिए प्रेरणा और मुसीबत में मार्गदर्शक के साथ साथ मुसीबत से उबरने का भी काम करती थी. जैसे कभी कभी कोई नई छोकरी चुद तो जाती किसी लेकिन गर्भनिरोधक का उपाय किये बगैर नतीजा गर्भ ठहर जाता. इस हालत में लड़की के घर वालो से पहले यही इन चुदैलो को पता चल जाता तो वे बगल के कसबे में चोरी से गर्भ गिरवा भी देती.


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