Bhoot bangla-भूत बंगला

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raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 14:05

भूत बंगला पार्ट--14

गतान्क से आगे....................
लड़की की कहानी जारी है...................................
बाहर रात का अंधेरे फेल चुका था. वो घर में चिराग की रोशनी में पढ़ रही थी. चाचा घर पर नही था और चाची कमरे के एक कोने में ही अपनी साडी का परदा बनाए उसके पिछे बैठी नहा रही थी. उसके चाचा चाची का बेटा सो चुका था.

"सुन" पर्दे के पिछे से आवाज़ आई तो उसने गर्दन उठाकर देखा.
"जी?" वो बोली
"इधर आ" चाची ने उसको बुलाया
इस बात को सुनकर वो थोडा परेशान हो गयी. चाची पर्दे के पिछे नहा रही थी ये बात वो जानती थी, फिर उसको वहाँ क्यूँ बुला रही थी?

"इधर आ ना" चाची की आवाज़ दोबारा आई और इस बार आवाज़ में गुस्सा था. वो फ़ौरन उठकर पर्दे के पास जा खड़ी हुई.
"जी?" उसने ज़मीन की तरफ देखते हुए पुचछा
"ज़रा कमर पर साबुन लगा दे" चाची ने कहा और इसके साथ ही बीचे में सारी का बना परदा हट गया. उसे उम्मीद थी के चाची नंगी बैठी होगी पर ऐसा हुआ नही. वो अपना पेटिकोट पहने बैठी थी और छाती पर टवल डाल रखा था. हाँ कमर ज़रूर पूरी नंगी थी.

काँपते हुए हाथों से उसने साबुन उठाया और चाची की कमर पर लगाने लगी. ये बात सच थी के अपनी चाची को नंगा देखने में उसको बहुत मज़ा आता था पर इस तरह नही. वो तो जब चोरी छुपे अपनी चाची की चूचिया देखती या कभी उनकी सारी उपेर होने पर उनकी टांगे देखती तो उसको मज़ा आता था. पर इस तरह नही के जब चाची खुद ही उसको अपनी कमर पर साबुन लगाने को कह रही थी.
चुपचाप उसने पूरा साबुन चाची की नंगी कमर पर लगाया. वो उस वक़्त एक अजीब से हालत से गुज़र रही थी. एक तरफ तो दिल में डर, सामने चाची की नज़र और सबसे ज़्यादा ये के जिस नंगे जिस्म को वो दूर से देख कर ही उसके शरीर में कुच्छ होता था आज वो नंगा जिस्म उसके सामने बैठा था और उसको उस जिस्म को च्छुने का मौका मिल रहा था.

जब पूरी कमर पर साबुन लग गया तो वो रुक गयी..
"दोनो हाथों से रगड़ दे ज़रा" चाची ने कहा
उनकी बात सुनते ही उसका दिल जैसे खुशी से झूम उठा. उनकी नंगी कमर पर हाथ फेरने में उसको बहुत मज़ा आ रहा था और उसका दिल कर रहा था के थोड़ी देर और साबुन लगाए और जब चाची ने खुद ही उसको कमर रगड़ने को कहा तो उसको जैसे मुँह माँगी मुराद मिल गयी.

वो दिल ही दिल में खुश होती चाची की कमर पर हाथ फेरने लगी. अपने हिसाब से वो कमर रगड़ नही रही थी बल्कि उस नंगी कमर को महसूस कर रही थी. उसके हाथ गले के पास से होते हुए कमर के निचले हिस्से तक जाते. उसकी कमर नीचे ज़मीन पर बैठी चाची की भारी गांद पर थी और दिल ही दिल में वो सोच रही थी के काश चाची इस वक़्त पूरी नंगी बैठी होती.

ऐसे ही हाथ फिराते हुए एक बार उसका हाथ नीचे आने के बजाय फिसलकर साइड में चला गया और अपने हाथ पर जो महसूस हुआ उससे उसका खुद का जिस्म जैसे काँप उठा. उसे एहसास हुआ के अभी एक पल के लिए उसने अपनी चाची की नंगी चूची को साइड से हाथ लगाया था, जिन्हें वो च्छूप च्छूप कर देखा करती थी. वही छातिया जो उसकी चाची के झुकने पर नीचे को लटक जाती थी और ब्लाउस के अंदर झाँकते हुए बस उसके दिल में यही ख्याल आता था के उसकी अपनी ऐसी क्यूँ नही है?

फिर ना जाने उसके दिल में कहाँ से हिम्मत आई और कमर रगड़ते हुए हाथ नीचे को लाने की जगह वो साइड में ले जाने लगी. ऐसा करने से बार बार उसका हाथ जाकर चाची की छाती पर लगता और उसको अजीब सा मज़ा आता. चाची का डर उस वक़्त उसके दिल से जाने कहाँ गायब हो गया था. वो तो बस ये चाहती थी के उन 2 फूली हुई चूचिया को अपने हाथ में पकड़ ले. अब उसका हाथ ग़लती से चूचियो पर नही टकरा रहा था. अब तो वो जानकार हर बार जब भी साइड में ले जाती, चाची की छाती को ज़रूर साइड से च्छू लेती.

थोड़ी देर यूँ ही वक़्त गुज़र गया. ना वो कुच्छ बोली और उसे हैरत हुई के ना ही चाची ने उसको मना किया. वो बस एक ही जगह पर हाथ फेरे जा रही थी पर चाची भी चुप बैठी हुई थी. एक बार जब उसका हाथ साइड में गया था सच में ही फिसल गया और पूरा आगे को हो गया. चाची ने सामने के और एक टवल हल्का सा पकड़ रखा था जिससे उनकी छातिया ढाकी हुई थी. जब उसका हाथ फिसला, तो वो सीधा साइड से होता हुआ टवल के अंदर घुस गया और चाची की आधी छाती उसके हाथ में आ गयी.

उस वक़्त उसको जाने क्या हुआ के उसने अपना हाथ पिछे नही किया और ना ही वहाँ से हटाया. उसका हाथ वहीं रुक गया और वो दिल ही दिल में इस बात का यकीन करने लगी के सच में चाची की छाती उसके हाथ में है. पर ये सपना कुच्छ पल ही चला. अगले ही पल चाची सीधी हुई और उसके मुँह पर एक थप्पड़ लगा दिया.
"क्या हो रहा है ये?" चाची ने कहा तो वो जैसे अपने ख्वाब से बाहर आई और फिर खामोशी से अपनी किताब खोल कर बैठ गयी.

उसकी हिम्मत नही हुई के फिर चाची की तरफ नज़र उठाकर देखे. पर इस बात का उसको एहसास था के चाची अब भी वहीं बैठी थी. वो खुद भी ये बात जानती थी के अब किसी भी पल चाची उठेंगी और उसको मार पड़ेगी. और फिर जब चाचा आएँगे तो फिर से मार पड़ेगी और चाची की शिकायत पर तो आज बहुत ज़्यादा मार पड़ने वाली है. ये सोच सोचकर ही उसकी जान सूख रही थी.

कमरे में हलचल होने पर उसने टेढ़ी नज़र से देखा तो महसूस किया के चाची अपनी जगह से उठ रही थी. वो फिर किताब की तरफ देखने लगी और इंतेज़ार करने लगी उस पल का जब चाची उठकर उसको मारने वाली थी पर ऐसा कुच्छ नही हुआ. चाची उसकी तरफ आई ज़रूर पर उसको मारने के बजाय आकर उसके पास बैठ गयी.

"क्या हो रहा था वो" चाची ने पुचछा तो डर के मारे उसने अपनी आँखें बंद कर ली.
जब वो कुच्छ नही बोली तो चाची ने सवाल फिर से दोहराया.
"क्या हो रहा था वो सब? मैने तो सिर्फ़ कमर पर साबुन लगाने को कहा था ना?"

इस बार भी वो कुच्छ नही बोली. आँखें और ज़ोर से बंद कर ली बस. तभी अपने हाथ पर उसको चाची का हाथ महसूस हुआ. चाची ने उसका हाथ पकड़ कर उपेर उठाया और अपने उपेर रख लिया. वो आँखें बंद किए बैठी थी इसलिए समझ नही आया के हाथ चाची ने कहाँ रखा पर इतना वो जानती थी के हाथ चाची के नंगे जिस्म पर है. कुच्छ पल ऐसे ही गुज़रे तो जैसे उसके दिमाग़ की बत्तियाँ जल गयी और उसकी धड़कन वहीं थम गयी. चाची ने उसका हाथ उठाकर अपनी नंगी छाती पर रखा हुआ था.

"यहाँ हाथ लगाना था?" चाची ने पुचछा
इस बार भी वो कुच्छ नही बोली
चाची ने उसका दूसरा हाथ भी उठाकर अपनी छाती पर रख लिया. वो अब भी आँखें बंद किए बैठी थी. जिन चूचियो को पकड़ना उसके लिए एक सपना था आज वो उसके हाथ में थी पर वो चाह कर भी उसका मज़ा नही ले पा रही थी. उसके दिल में उल्टा एक डर सा बैठ रहा था.

"दबा इनको" चाची ने उसको कहा
उसने कोई हरकत नही की.
"पहले तो हाथ सीधा यहीं पहुँच रहे थे. अब क्या हुआ? दबा ना" चाची ने गुस्से में कहा तो उसके हाथ फ़ौरन हरकत में आ गयी. वो धीरे धीरे दोनो चूचिया दबाने लगी.

"ज़ोर से दबा" चाची ने कहा तो उसके हाथ का दबाव बढ़ गया. वो ज़ोर ज़ोर से चूचिया दबाने लगी. उसके छ्होटे हाथों में वो बड़ी बड़ी चूचिया पूरी नही आ रही थी पर जो भी हिस्सा आ रहा था वो बहुत मुलायम था.
"गरम कर दिया तूने मुझे" चाची ने कहा

फिर उसको कुच्छ हरकत महसूस हुई पर उसकी हिम्मत नही पड़ी के आँखें खोलकर देखे. चाची की छातिया उसके हाथ से निकल गयी और उसने महसूस किया के चाची उससे थोड़ा दूर हो गयी. अभी वो सोच ही रही थी के फिर से चाची का हाथ उसको अपने हाथ पर महसूस हुआ और एक बहुत से नर्म सा कुच्छ उसके मुँह पर दबा दिया गया.

"चूस इसे" चाची ने कहा तो उसको एहसास हुआ के उसके चेहरे पर दबा हुआ वो हिस्सा उसकी चाची की एक चूची थी जो इतनी बड़ी थी के उसका पूरा मुँह उसमें दब गया था. फिर एक सख़्त सा हिस्सा उसको अपने होंठों पर महसूस हुआ.
"मुँह खोल ना" चाची ने कहा तो उसने अपना मुँह खोला और वो सख़्त सा हिस्सा उसके मुँह में आ गया.

"चूस इसको" चाची ने कहा
तब उसे पता चला के उसके मुँह में वो सख़्त सा हिस्सा जिसे वो चूस रही थी वो उसकी चाची की चूची पर वो काला हिस्सा था जो उपेर को उठा हुआ था.

"ज़ोर से चूस" चाची ने कहा तो वो और ज़ोर से उस हिस्से को चूसने लगी. फिर थोड़ी देर बाद चूची उसके मुँह से हटी और फिर अगले ही पल फिर से उसके मुँह में वो दे दिया गया. वो समझ गयी के ये चाची की दूसरी चूची है क्यूंकी पहली वाली उसके चूसने से गीली हो गयी थी और ये वाली सूखी थी जिसको वो अब अपने मुँह से गीला कर रही थी.

"हे भगवान. मुझे पता होता के इतना मज़ा आएगा तो मैं पहले ही करवा लेती" चाची कह रही थी और वो उनकी चूची को चूसे जा रही थी. फिर चाची ने उसका एक हाथ अपने हाथ में ले लिया और अपने पेट पर रख दिया. जब उसने खुद कोई हरकत नही की तो चाची ने फिर उसका हाथ पकड़ा और नीचे सरकाते हुए अपनी टाँगो के बीच ले गयी.

इस पूरे वक़्त उसकी आँखें बंद थी और उसका दिल डर के मारे ज़ोर से धड़क रहा था. वो अपनी चाची को नंगी देखना चाहती थी पर इस वक़्त उसकी हिम्मत नही हो रही थी के आँखें खोले. जिस नंगे जिस्म को वो हमेशा च्छुना चाहती थी आज वो उसके हाथों में था पर उसको बिल्कुल मज़ा नही आ रहा था.

उसको अपने हाथ में कुच्छ बाल महसूस हुए और उन बालों के बीच एक बहुत नरम सा हिस्सा महसूस हुआ जो बहुत गीला था और गरम था.
"क्या यहीं पर चाची हाथ लगाती थी?" उसने दिल ही दिल में सोचा

चाची ने खुद उसका हाथ पकड़ कर अपनी टाँगो के बीचे हिलाना शुरू कर दिया था. वो उसके हाथ से अपनी टाँगो के बीच के उस हिस्से को घिस रही थी और आआहह आआहह की आवाज़ें निकल रही थी. जिस तरह चाची का जिस्म काँप रहा था उससे वो अंदाज़ा लगा सकती थी के हाथ रगड़ने के साथ खुद चाची अपनी कमर भी हिला रही थी.

"गरम कर दिया तूने मुझे. अब ठंडी भी कर" चाची ने कहा
तभी उसके मुँह से चूची हट गयी और उसका हाथ भी चाची के टाँगो के बीच से निकल गया. उसको चाची के हाथ अपने कंधो पर महसूस हुए और फिर एक झटके से उसको आगे को खींचा गया. कुच्छ ही पल में वो चाची के उपेर लेटी हुई थी. आँखें अब भी बंद थी. फिर चाची ने उसका सर पकड़ा और नीचे को धकेलने लगी. सर पर ज़ोर पड़ने से वो नीचे को सरकी और अगले ही पल अपने होंठ पर उसको कुच्छ बाल महसूस हुए. वो समझ गयी के जहाँ थोड़ी देर पहले चाची की टाँगो के बीच उसका हाथ था, अब उसी जगह पर उसके होंठ हैं.

"जीभ निकालकर चाट इसे" उसको चाची की आवाज़ सुनाई दी.
उसको समझ नही आ रहा था के चाची उसे क्या करने को कह रही हैं. वो अभी सोच ही रही थी के अचानक कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से खुलने की आवाज़ आई और उसके साथी ही चाची की ज़ोर से आवाज़ आई.
"क्या हो रहा है ये?"

कमरे में कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी. वो जानती थी के चाची उठकर बैठ चुकी हैं पर वो अब भी उनके सामने वैसे ही उल्टी अपने पेट के बल पड़ी हुई थी और वो बाल अब भी उसको अपने मुँह पर महसूस हो रहे थे.
"चिल्ला क्यूँ रहा है?" फिर चाची की आवाज़ आई "तेरे लिए भी इंतज़ाम है"
इसके साथ ही उसको चाची का हाथ अपनी गांद पर महसूस हुआ. चाची उसकी गांद को हाथ से सहला रही थी.

"तुझे भी तो ये चाहिए ना" चाची ने कहा "आअज़ा"
इससे पहले की वो कुच्छ समझ पाती, उसको चाचा के हाथ अपनी कमर पर महसूस हुए और उसकी वो घिसी हुई पुरानी पेंट खींच कर नीचे कर दी गयी. उसके गांद अब खुल चुकी थी. उसके बाद 2 चीज़ें उसको एक साथ महसूस हुई. चाची ने उसका सर पकड़ कर अपने टाँगो के बीच घुसा लिया और उसे फिर चाटने को कहा और चाचा का लंड उसको ठीक अपनी गांद पर महसूस हुआ.

वो समझ गयी के चाचा क्या करने वाले हैं. उस दिन का दर्द वो अब भी भूली नही थी और वो याद करने से ही उसका जिस्म सिहर उठा. इस पूरे वक़्त में उसने अब जाकर अपनी आँखें फ़ौरन खोली और छितक कर सीधी खड़ी हो गयी. और यहीं जैसे ग़ज़ब हो गया.

चाचा अपनी दोनो टांगे उसके दोनो तरफ करके उसकी गांद के ठीक उपेर बैठा था. और जैसे ही वो ज़ोर लगाकर उठी, वो लड़खड़ा गया और पिछे को गिरा. उस एक ही कमरे में खाना भी बनाया जाता था इसलिए खाना बनाने का समान भी वहीं कोने में रखा हुआ था. उसका चाचा ठीक बर्तनो के उपेर जाकर गिरा. और फिर कुच्छ पल की खामोशी के बाद चाची के चीखने पर जब उसने चाचा की तरफ देखा तो उसकी खुद की भी चीख निकल गयी. सब्ज़ी काटने वाला चाकू उसके चाचा की गर्दन के पिच्छले हिस्से में घुसकर आगे से बाहर निकल आया था. पास ही केरोसिन की कॅन रखी हुई थी जो शायद खुली थी. चाचा के गिरने से वो कॅन भी गिर गयी थी जिससे केरोसिन निकलकर पूरी झोपड़ी में फेल रहा था.

"ये क्या किया तूने?" चाची ने उसको देखते हुए कहा और फिर अपने चाचा की तरफ देखा जो बिल्कुल भी नही हिल रहा था.
"मैं तुझे ज़िंदा नही छ्चोड़ूँगी" कहते हुए चाची उसकी तरफ बढ़ी. वो अब भी नंगी थी पर पेटिकोट उसने पूरी तरह नही उतारा था. एक पावं अब भी पेटिकोट में ही था इसलिए जैसे ही वो आगे बढ़ी, पेटिकोट भी आगे को सरका और नीचे ज़मीन पर लगा लॅंप टेढ़ा होकर गिर पड़ा. ठीक उस जगह पर जहाँ केरोसिन बिखरा पड़ा था.

पीछे क्या हुआ उसने नही देखा. वो चाची से बचने के लिए झोपड़ी से बाहर भागी. उसको डर था के शायद चाची उसके पिछे आएगी इसलिए बाहर निकलते ही उसने झोपड़ी का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया और पागलों की तरह भागने लगी. थोड़ी दूर जाकर जब चीख की आवाज़ सुनाई दी तो वो पलटी और उसके पावं वहीं जम गये.

झोपड़ी आग की लपटो में थी. पूरी झोपड़ी ऐसे जल रही थी जैसे घास के ढेर में आग लगा दी गयी हो और उसके बीच आ रही थी उसकी चाची और उनके बेटे के चिल्लाने की आवाज़. वो जानती थी के अंदर चाची जल रही है पर क्या करे ये समझ नही आया. झोपड़ी गाओं से थोड़ा बाहर थी और आस पास और कोई नही रहता था जिसको वो मदद के लिए बुला सके.

"यहाँ क्या कर रही हो तुम?" उसको अपने पिछे से आवाज़ आई "चलो यहाँ से"
पीछे उसका दोस्त वो लड़का खड़ा था
"चलो भागो" लड़के ने कहा और खुद आगे आगे भागने लगा. वो नही जानती थी के उस वक़्त उससे मिलने क्यूँ आया था पर उस वक़्त उसका वहाँ होना उसे बहुत अच्छा लगा. वो खुद भी उसके पिछे पिछे भागने लगी. झोपड़ी अब भी जल रही थी और चाची और उनके बेटे के चीखने की आवाज़ उसको अब भी आ रही थी.

अब इशान की कहानी जारी है.....................................



"तूने मुझे ये पहले क्यूँ नही बताया?" मिश्रा ने पुचछा
मैं पोलीस स्टेशन में उसके सामने बैठा था. रेप केस में मुझे धमकी, रश्मि का मुझसे मिलना, फिर वो मुझपर हमला, सब बता दिया था मैने उसको सिवाय एक बात के. उस गाने की आवाज़ को मैं उससे च्छूपा गया था.

"क्या बताता यार" मैने कहा "इस तरह की ढमाकियाँ मुझे पहले भी एक 2 बार मिल चुकी हैं और मैने उनमें से किसी का चेहरा नही देखा था. बस टॅक्सी से निकलता एक हाथ देखा था मैने"
"मैं उसकी बात नही कर रहा हूँ" मिश्रा ने जवाब दिया "ये रश्मि सोनी के बारे में पहले क्यूँ नही कहा तूने"
"क्यूंकी उसी रात मुझपर हमला हुआ था" मैं बोला "और फिर मेरे दिमाग़ से उतर गयी ये बात"

थोड़ी देर तक हम चुप बैठे रहे
"तूने मारा है उन 2 गुणडो को?" मिश्रा ने टेडी आँख से मेरी तरफ देखा "देख मारा है तो बता दे. मुझे कोई फरक नही पड़ता उनके मरने से. बदमाश थे साले, अच्छुआ ही हुआ के मर गये पर मुझे बता दे ताकि मैं केस को रफ़ा दफ़ा कर दूं"
"तेरा दिमाग़ खराब है?" मैने कहा "अबे मैने आज तक मक्खी नही मारी होगी कभी, आदमी की तो बात ही दूर है. और दूसरा अगर मैं उनको मारना भी चाहता तो कहाँ ढूंढता फिरता शहेर में? सिर्फ़ एक हाथ देखा था मैने"
"गाड़ी की नंबर प्लेट भी तो देखी होगी" मिश्रा मुस्कुराया

"कोशिश की थी पर चाकू का वार खाकर जब तक मैं संभलता तब तक वो टॅक्सी दूर जा चुकी थी और उपेर से रात का अंधेरा" मैने जवाब दिया
"ह्म्‍म्म्म" मिश्रा ने लंबी सी हामी भरी और दोनो हाथ सर के उपेर करके कुर्सी पे आराम से पसर गया "क्या लगता है?"
"किस बारे में?" मैने पुचछा

"मेरे पड़ोसी की बेटी के बारे में. 19 साल की है, क्या लगता है, चुदी होगी अब तक" वो चिड़कर बोला "आबे साले जिस बारे में बात कर रहे हैं उस बारे में. तुझपर हुए हमले के बारे में. क्या लगता है किसने किया होगा या करवाया होगा?"
मैं हस पड़ा

"देख तेरे पड़ोसी की बेटी चुदी है के नही ये तो मैं उससे अकेले में मिलने के बाद ही बता सकता हूँ और बाकी रहा मुझपर हुए हमले का किस्सा, तो पता नही यार. और अगर उस रेप केस के सिलसिले में हुआ है तो भी हम कुच्छ साबित नही कर सकते"
"अगर तू चाहता है तो मैं इन्वेस्टिगेशन कर सकता हूँ और ये केस भी खुला रख सकता हूँ" मिश्रा ने कहा

"किस बिना पर इन्वेस्टिगेट करेगा यार?" मैं बोला "एक हाथ के बिना पर जो मैने देखा था और जिसका मालिक तू कह रहा है के मर चुका है?"
"बात तो सही है. तो ठीक है फिर मैं इस केस को रफ़ा दफ़ा करके बंद करता हूँ. दो बदमास क्यूँ मर गये इस बात का पता लगाने का टाइम नही है मेरे पास" मिश्रा ने कहा और अपने सामने रखे फिर की फाइल बंद कर दी

"तेरी किताब कहाँ तक पहुँची?" मिश्रा ने थोड़ी देर बाद पुचछा.
"शुरू भी नही की अब तक" अब करूँगा
"आज का क्या प्लान है?" उसने घड़ी देखते हुए कहा
"अभी तो घर ही जा रहा हूँ" मैने उठते हुए कहा "शाम को मेरी उस सेक्रेटरी के घर जाना है. डिन्नर के लिए बुलाया है"

पोलीस स्टेशन से निकल कर मैं घर जाने के बजाय अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक की तरफ चल पड़ा.
उस जगह का नाम सुनकर ऐसा लगता था के कोई बहुत बड़ा इन्स्टी-त्यूट होगा जहाँ म्यूज़िक से रिलेटेड बहुत कुच्छ होता होगा. मेरी उम्मीद के खिलाफ, वो एक छ्होटा सा स्कूल निकला जहाँ पर बच्चो को म्यूज़िक सिखाया जाता था. मुझे प्रिन्सिपल का ऑफीस ढूँढने में कोई तकलीफ़ नही हुई.

"क्या मदद कर सकती हूँ मैं आपकी?" वो कोई 50 साल की औरत थी. चेहरा देखने से ही लगता था के वो ज़िंदगी से थॅकी हुई एक आम औरत है जो यहाँ बस अपनी ज़िंदगी ही गुज़ार रही है.

"देखिए मैं एक राइटर हूँ" मैने झूठ बोला "आपने बंगलो 13 के बारे में तो सुना ही होगा? आजकल न्यूसपेपर्स में काफ़ी लिखा जा रहा है उस बारे में."
"वो जहाँ कुच्छ महीने पहले खून हुआ था?" उसने मुझे पुचछा तो मैने हाँ में सर हिला दिया
"हाँ बिल्कुल सुना है" वो चश्मा उतारते हुए बोली

"मैं उसी बंगलो पर एक किताब लिख रहा हूँ के कैसे वो एक घर इस शहेर में ख़ौफ्फ की वजह बना हुआ है" मैने फिर झूठ बोला
उसने मेरी बात समझने के अंदाज़ में सर हिलाया

"उस घर में ये दूसरा खून है. पहले भी एक खून हो चुका है वहाँ कई साल पहले" मैने कहा
मुझे उम्मीद थी के ये बात सुनकर वो शायद खुद ही समझ जाएगी के मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ. पर उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा तो मैं समझ गया के ना तो उसको उसे उस खून के बारे में पता है ना अदिति के बारे में.
"जी हां" मैने कहा "उस बंगलो में एक और खून हुआ था और जिसका खून हुआ था वो आपके स्कूल में ही एक टीचर थी"

इस बात को सुनकर वो ऐसे उच्छली जैसे मैने कुर्सी के नीचे कोई बॉम्ब फोड़ दिया हो.
"इस स्कूल की टीचर? कौन?" सवाल करने मैं आया था पर उल्टा हो रहा था. सवाल वो कर रही थी और जवाब मैं दे रहा था

"अदिति नाम था उसका. और मैं चाह रहा था के उसके बारे में कुच्छ और इन्फर्मेशन मुझे यहाँ स्कूल से मिल सके" मैने अपने आने की वजह बताई.
वो सोच में पद गयी और फिर काफ़ी देर तक सोचने के बाद आख़िर उसकी ज़ुबान खुली.

"देखिए मैं यहाँ नयी हूँ. कोई 2 साल पहले ही आई थी. इस स्कूल के पिच्छले स्टाफ के बारे में मैं कुच्छ नही जानती पर एक औरत है जो शायद जानती हो" उसने कहा.
"कौन?" मैने फ़ौरन सवाल किया
"इस स्कूल की पुरानी प्रिन्सिपल. उन्होने अपनी पूरी ज़िंदगी यहीं गुज़री है. पहले यहाँ म्यूज़िक सिखाती थी और फिर खुद ही यहाँ की प्रिंकल बनकर रिटाइर हो गयी. आप उनसे बात करके देख लीजिए"

"मैं उनका नाम और अड्रेस जान सकता हूँ?" मैने पेन और पेपर उठाया.
"आइ'एम नोट शुवर" वो मुझे नाम और अड्रेस देते हुए थोड़ा झिझक रही थी
"देखिए मैं यहाँ एक इनस्पेक्टर मिश्रा के कहने पर आया हूँ. तो आप बेफिकर रहिए. पोलिसेवालो तक को पता है के मैं क्या कर रहा हूँ. अगर आप चाहें तो मैं आपकी बात करा देता हूँ उनसे"
मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा उठी.
"उसकी ज़रूरत नही पड़ेगी. आप अड्रेस लिख लीजिए"

क्रमशः.....................................

raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 14:06

भूत बंगला पार्ट--15

गतान्क से आगे...............

इशान की कहानी जारी है ...............................

शाम के वक़्त मैं घर पहुँचा तो बुरी तरह से थक चुका था.
"कैसा रहा ऑफीस?" मुझे देखते ही रुक्मणी बोली. मैं उसको घर से ये बताके निकला था के ऑफीस जा रहा हूँ.
"ठीक ही था?" मैं सोफा पर बैठते हुए बोला
"कुच्छ खाओगे?" उसने मुझसे पुचछा तो मैने इनकार में सर हिला दिया
"आज किसी के यहाँ डिन्नर पर जाना है. रात को शायद आने में देर भी हो जाए"

उन दोनो को देख कर मुझे बड़ा अजीब लग रहा था. आज दोपहर उन दोनो को जिस हालत में देखा था वो देखकर मैं काफ़ी शॉक में था. इस वक़्त भी उन दोनो की तरफ नज़र डालते ही मुझे सिर्फ़ उनके नंगे जिस्म ही ध्यान आ रहे थे. ऐसा नही था के मैने पहली बार उनको नंगा देखा था. रुक्मणी को तो मैं चोद भी चुका था और देवयानी को भी पहले एक बार नंगी देख चुका था पर 2 बहनो को एक साथ बिस्तर पर जिस्म गरम करते हुए देखने के बाद उनकी तरफ देखने का मेरा नज़रिया ही बदल गया था.

"क्या सोच रहे हो?" रुक्मणी किचन की तरफ गयी तो सामने बैठते देवयानी ने मुझसे पुचछा
"कुच्छ नही. मैं नाहकर आता हूँ" कहते हुए मैं उठा
मैं नाहकर अपने कमरे की तरफ बढ़ा ही था के पिछे से देवयानी ने आवाज़ दी. मैं रुक कर उसकी तरफ पलटा. वो धीरे से मेरे करीब आई और वैसे ही धीरे से मुझे बोली
"जो आज दोपहर को देखा, वो पसंद आया?"

मेरे चेहरे के भाव फ़ौरन बदलते चले गये और मैने आँखें फाडे उसकी तरफ देखा. मुझे उस हालत में देखकर वो हस पड़ी और वैसे ही हस्ती हुई किचन की तरफ चली गयी.

अपने कमरे में शवर के नीचे खड़ा मैं नहा कम और सोच ज़्यादा रहा था. वो कम्बख़्त औरत जानती थी के मैं उनको देख रहा हूँ पर फिर भी बिस्तर पर रुक्मणी के साथ ऐसे लगी रही जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. और क्या रुक्मणी कोई भी पता था के मैं देख चुका हूँ? शायद नही क्यूंकी वो काफ़ी सीधी है और अगर वो जानती के मैं उसे उसकी बहेन के साथ देख चुका हूँ तो ऐसे नॉर्मली बिहेव ना कर पाती. और सबसे बड़ी बात के देवयानी क्या चाहती थी? सिर्फ़ मेरे साथ बिस्तर पर आने के लिए उसके ये सब करने की ज़रूरत नही थी? ये काम तो बड़ा आसान था. ज़ाहिर था के उसके दिमाग़ में कुच्छ और चल रहा था. क्या, ये शायद वो खुद ही जानती थी.
मैं प्रिया के यहाँ जाने के लिए तैय्यार हो गया.

अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक से आते हुए मुझे एक पल के लिए ख्याल आया था के पुरानी प्रिन्सिपल के यहाँ होता चलूं पर फिर ये इरादा बदल दिया था मैने क्यूंकी प्रिया के यहाँ डिन्नर के लिए लेट हो जाता. मिश्रा के कहने पर मैं पहले तो इस बात के लिए भी मान गया था के उन 2 गुणडो की लाश भी एक बार देख लूँ पर बाद में फोन करके मैने मना कर दिया था क्यूंकी उन लाशों को देखने जाने की वजह नही थी कोई मेरे पास? और सबसे बड़ा सवाल ये था के मुझपर हमला किया क्यूँ था उन्होने और क्या उनकी मौत की वजह भी उनका मुझपर हमला करना ही था?

मैं अपनी सोच में खोया हुआ था के मेरे सामने रखे फोन की घंटी बजी.

फोन रश्मि का था. उसने बताया के वो मुंबई पहुँच चुकी है और उनके मुंबई वाले घर से वो खंजर गायब है. यानी के बंगलो में मिला वो रिब्बन उसी खंजर का था और मर्डर वेपन भी सोनी का अपना खंजर ही था.

मैं प्रिया के घर पहुँचा तो उसके घर पे उसके सिवा कोई नही था जबकि उसने मुझे कहा था के उसके माँ बाप घर पर ही होंगे.
"तेरे मम्मी डॅडी कहाँ हैं?" मैने उससे पुचछा

"घर पर नही हैं" वो मुस्कुराते हुए बोली
"पर तूने तो कहा था के....." मैने घर में एक निगाह चारों और दौड़ाई
"झूठ कहा था मैने" वो मेरा हाथ पकड़कर डाइनिंग टेबल की और ले जाते हुए बोली "क्यूंकी अगर मैं कहती के घर पर कोई नही होगा तो आप आने से पहले 56 सवाल पुछ्ते मुझसे"

उसकी बात सुनकर मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया. उसने उस वक़्त एक ब्लू कलर की शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहेन रखी थी और हमेशा की तरह उसकी चूचिया और गांद जैसे कपड़े फाड़ कर बाहर को निकल रहे थे.

"तो खाने में क्या है?"मैं दोनो हाथ आपस में रगड़ता हुआ बोला
"काफ़ी कुच्छ है" प्रिया बोली "पर उससे पहले कुच्छ और"

"क्या?" मैने पुचछा तो वो मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गयी. थोड़ी देर बाद वो लौटी तो उसके हाथ में एक केक था जिसपर एक कॅंडल जली हुई थी.
"हॅपी बिर्थडे बॉस" कहते हुए वो मेरे करीब आई

मुझे याद नही था के आखरी बार मैने कब अपना बिर्थडे सेलेब्रेट किया था, या कभी सेलेब्रेट किया भी था या नही. सेलेब्रेट करना तो दूर, मुझे तो ये भी याद नही था के मेरे बिर्थडे पर किसी ने कभी मुझे विश भी किया हो. किसी और का तो क्या कहना, मुझे तो खुद भी अपना बिर्थडे याद नही रहता था. पर जब वो कॅंडल लेकर आई तो मुझे याद आया के आज मेरे बिर्थडे था.

"तुझे कैसे....." मैं कभी हैरत से उसको देखता तो कभी केक की तरफ.
"आपके यहाँ काम करती हूँ. आपके बारे में सब पता है मुझे" वो हस्ते हुए बोली और केक लाकर टेबल पर मेरे सामने रख दिया.

उसके हाथ में एक चाकू था जो मैने केक काटने के लिए उठा लिया.

"चलिए अब जल्दी से केक काटिए फिर हम लोग कहीं बाहर जा रहे हैं" वो बोली
"बाहर?" मैने पुचछा
"हाँ और नही तो क्या?" वो भी वैसे ही हस्ते हुए बोली "बिर्थडे की पार्टी नही देंगे क्या? आपको क्या लगा था के मैं आपको अपने घर का राशन खिलाऊंगी?"
उसकी बात पर हम दोनो ही ज़ोर से हस्ने लगे.

"ठीक है पार्टी भी दे दूँगा पर पहले ये तो बता के मेरा गिफ्ट कहाँ है?" मैने पुचछा
"गिफ्ट भी मिल जाएगा" कहते हुए वो थोड़ा सा शर्मा गयी. उसके सावले चेहरे पर एक शरम की लाली सी छा गयी और नज़र उसने केक की तरफ घुमा ली. मुझे समझ नही आया क्यूँ.

"चलिए अब केक काटिए"
उसने कहा तो मैने केक काटा और अपनी ज़िंदगी में पहली बार मैने अपना बिर्थडे सेलेब्रेट किया. मैने केक काटा तो वो उसके क्लॅप करते हुए हप्पी बिर्थडे का वही पुराना गाना सा गया और फिर हम दोनो ने थोड़ा थोड़ा केक एक दूसरे को खिलाया.

"चलिए अब निकलते हैं यहाँ से. मेरे मम्मी डॅडी आने वाले होंगे. वो आ गये तो रात को बाहर नही जाने देंगे" वो बोली
"ऐसे नही. पहले मेरा गिफ्ट" मैने कहा
गिफ्ट की बात पर वो फिर से शर्मा सी गयी.
"बाद में....." उसने कहा तो मैने फ़ौरन इनकार कर दिया
"अभी इसी वक़्त. मुझे भी तो पता चले के मुझे इतनी शॉपिंग करने के बदले में तू खुद मेरे लिए क्या लाई है"

उसके बाद कुच्छ देर तक वो खामोश खड़ी रही जैसे डिसाइड कर रही हो के गिफ्ट दे या ना दे. चेहरे पर शरम अब भी थी.
"क्या सोचने लगी. जल्दी कर फिर चलते हैं. ऐसे ही उठा ला मैं कार में बैठकर खोल लूँगा" मैने कहा तो उसने एक लंबी साँस ली
"चेहरा दूसरी तरफ कीजिए. मैं लाती हूँ. सर्प्राइज़ है" उसने कहा तो मैने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया

वो थोड़ा सा पिछे को हटी जिससे मुझे लगा के वो शायद दूसरे कमरे में गयी पर फिर अपने पिछे हुई आहट से मुझे एहसास हुआ के वो वहीं मेरे पिछे ही खड़ी थी.
"पलटू?" मैने पुचछा
"2 मिनट...." मेरे पिछे से आवाज़ आई.
थोड़ी देर तक मैं फिर ऐसे ही खड़ा रहा और अपने पिछे होती आहट को सुनता रहा.
"अब पलटीए" पीछे से आवाज़ आई तो मैं फिर उसकी तरफ पलटा और मेरी आँखें खुली रह गयी.

उसने अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए थे. शर्ट दोनो तरफ ढीली पड़ी हुई थी और उसका सामने का हिस्सा सॉफ नज़र आ रहा था. नीली शर्ट के अंदर उसका हल्का सावला जिस्म और उन दो बड़ी बड़ी चूचियो को ढके हुए ब्लॅक कलर की एक ब्रा जिसमें दोनो चूचिया मुश्किल से समा पा रही थी.
कुच्छ देर तक ना उसने कुच्छ कहा और ना मैने. वो वहीं अपनी जगह पर खड़ी रही और मैं भी वहीं अपनी जगह पर खड़ा रहा. मुझे पलट जाना चाहिए था पर ऐसा हुआ नही. मेरी नज़र उसकी चूचियो पर गढ़ी रह गयी. वो मेरी ओर देख रही थी और मैं उसकी ब्रा में बंद बड़ी बड़ी च्चातियों को ऐसे देख रहा था जैसे कई साल के प्यासे को शरबत का ग्लास दिख गया हो.

"प्रिया ये......." काफ़ी देर तक घूर्ने के बाद आख़िर मैं बोला पर नज़र अब भी उसकी चूचियो से नही हटाई.
"मैने काफ़ी सोचा" वो नज़र नीची किए शरमाती हुई बोली "फिर ख्याल आया के आपको जो चीज़ सबसे ज़्यादा मुझ में पसंद है वो ये है तो मैने सोचा के आपके बिर्थडे पर आपको यही गिफ्ट दूँ. जो चीज़ आप चोरी से देखते हैं, वो आज आपके सामने हैं"

कहकर वो चुप हो गयी. ना उसके बाद वो कुच्छ बोली और ना ही मैं. बस खामोश एक दूसरे से थोड़ी दूर खड़े रहे. मेरी पेंट में मेरे लंड पूरे ज़ोर पर आ चुका था.

raj..
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 14:06


कुच्छ देर बाद आख़िर मेरे जिस्म में हरकत हुई और मैने एक कदम उसकी तरफ बढ़ाया. मुझे अपनी तरफ आता देख वो भी एक कदम पिछे को हो गयी. उसकी इस हरकत पर मैं फिर अपनी जगह पर ही रुक गया और कुच्छ देर बाद फिर उसकी तरफ बढ़ा. इस बार वो हिली नही. वहीं खड़ी रही और मैं उसके करीब पहुँच गया.

मैं इससे पहले भी नंगी चूचिया देख चुका था पर उस वक़्त उसको ऐसे देख रहा था जैसे इससे पहले कभी किसी औरत को नंगी देखा ही ना हो. मेरा गला हल्का सूखने लगा था. उसके करीब पहुँचकर मुझे समझ नही आया के क्या करूँ. हमारे जिस्म एक दूसरे से तकरीबन लगे हुए खड़े थे. उसका चेहरा मेरे चेहरे के सामने था. वो जाने क्या देख रही थी पर मेरी नज़र उसके क्लीवेज पर ही थी. जब मैने कोई हरकत नही की और ऐसे ही खड़ा रहा तो उसने खुद ही मेरा हाथ पकड़ा और उठाकर अपने क्लीवेज पर रख दिया. तब पहली बार मैने नज़र उसके चेहरे पर डाली और हमारी नज़र एक दूसरे से मिली.

"आज मैं आपको नही रोकूंगी सर" उसने कहा और फिर नज़र नीचे झुका ली.

मेरा हाथ उसके क्लीवेज पर था और उसके नीचे मुझे उसकी नरम छातिया महसूस हो रही थी जो उसकी साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. उसकी धड़कन मुझे अपने हाथ पर महसूस हो रही थी जो काफ़ी तेज़ थी जिससे मुझे अंदाज़ा था के वो खुद भी काफ़ी नर्वस थी, शायद पहले बार किसी मर्द के सामने ऐसी आधी नंगी हालत में खड़ी थी इसलिए. मेरा हाथ उसकी चूचियो को सहलाता हुआ उसके नंगे पेट पर आया और उसकी नंगे जिस्म को सहलाने लगा.

"सर्ररर" मेरा पूरा हाथ अपने खुले हुए जिस्म पर महसूस होते ही वो सिहर उठी.

कुच्छ देर उसका पेट सहलाने के बाद मेरा वो हाथ फिर से उसकी चूचियो पर आ गया और ब्रा के उपेर से मैं उन्हें दबाने लगा. इस पूरे वक़्त हम दोनो एक दूसरे के बिल्कुल सामने खड़े थे और इससे ज़्यादा कुच्छ नही कर रहे थे. बस मेरा एक हाथ उसकी चूचिया दबा रहा था.

मैं एक कदम आगे को बढ़ा और पेंट के अंदर खड़ा हुआ मेरा लंड उसकी टाँग पर जा लगा और वो एक पल था जब मेरे सबर का बाँध टूट गया और अंदर का जानवर जैसे जाग उठा. मैं उससे एकदम लिपट गया. अचानक हुए इस हरकत से उसके कदम अपनी जगह से हीले और खुद को संभालने के लिए वो अपने पिछे दीवार से जा लगी. ये जैसे मेरे लिए और भी अच्छा हो गया. मैं उससे पूरी तरह लिपट गया और पागलों की तरह उसका गला चूमने लगा. अब मेरे दोनो हाथ उसकी चूचियो पर आ चुके थे और बेदर्दी से मसल रहे थे. मैने कभी उसके गले को चूमता तो कभी नीचे उसकी चूचियो को ब्रा के उपेर से चूमता. उसके खुदके हाथ भी मेरा सर और पीठ सहला रहे थे और उसकी गरम हो चुकी सांसो से मुझे इस बात का अंदाज़ा था के वो खुद भी उस वक़्त पूरी गर्मी में थी.

मैं उस वक़्त जैसे दीवाना हो चुका था. हाथ उसकी चूचियो से हटने का नाम ही नही ले रहे थे.

उसका गला चूमते हुए एक बार जब मैं नीचे आया तो एक हाथ उपेर से उसकी ब्रा के अंदर घुसकर उसकी एक चूची ब्रा से बाहर खींच ली. उसका निपल जैसे ही मेरे सामने आया तो मैने फ़ौरन उसको अपने होंठों के बीच दबा लिया.

"आआहह सर" वो बस इतना ही कह सकी और मैं उसके निपल को चूसने लगा. कभी उसका निपल मेरे होंठो के बीच होता, कभी मेरे दाँत के बीच तो कभी मैं उसकी चूची को जितनी हो सके अपने मुँह में लेने की कोशिश करता. एक चूची को जी भरके चूसने के बाद मैं दूसरी भी उसी तरह ब्रा से बाहर निकाली और पहली को हाथ से दबाते हुए दूसरी को चूसना शुरू कर दिया.

मैं उस वक़्त इतना जोश में था के उसको पूरी तरह हासिल करना चाहता था. मेरे दिमाग़ में उस वक़्त बस एक ही ख्याल था के उसकी चूत में अपना लंड घुसाकर उसको पूरी तरह हासिल कर लूँ और इसी कोशिश में मेरा हाथ उसकी चूचियो से हटकर उसकी जीन्स तक आया.

"नही सर" जैसे ही मैने उसकी जीन्स का बटन खोलना चाहा उसने फ़ौरन मेरे हाथ पकड़कर हटा दिए.

मैने उसके दोनो हाथ उसके सर के उपेर उठाकर दीवार के सहर छ्चोड़ दिए और फिर उसकी चूचियो को दबाने और चूसने लगा. जब उसने कोई हरकत नही की तो मेरे हाथ फिर उसकी जीन्स के बटन पर आ पहुचे.

"नही सर प्लीज़" उसने फिर मुझे रोकने की कोशिश की पर इस बार मैं माना नही. उसके हाथ मेरे हाथों को पकड़कर हटाने की कोशिश करते रहे पर मैने जीन्स का बटन खोल ही दिया.

"सर प्लीज़.... मेरे मम्मी डॅडी कभी भी आ सकते हैं" जैसे ही मैने उसकी जीन्स की ज़िप नीचे खींची, उसने पूरी ताक़त से मुझे अपने से दूर धकेल दिया.

मैने गिरता गिरता बचा और उससे कुच्छ कदम दूर हटकर उसकी तरफ देखने लगा.

हम दोनो की साँसे काफ़ी तेज़ चल रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनो ही मरथोन में भाग कर आए हैं. मैने एक नज़र उसपर डाली. खुली हुई शर्ट, उसके अंदर ब्रा के उपेर से बाहर निकली हुई उसकी भारी छातिया जो उसकी सांसो के साथ उपेर नीचे हो रही थी, उसकी खुली हुई जीन्स जिसने अंदर से उसकी ब्लू कलर की पॅंटी नज़र आ रही थी, ये नज़ारा काफ़ी थी किसी कोई भी उसका रेप कर देने पर मजबूर कर देने के लिए. पर जिस तरह से उसने मुझे अपने आप से दूर धकेला था, उससे पता नही मुझे क्या हुआ के मैने एक नज़र उसपर डाली और अपने बालों में हाथ फिराता घर से बाहर निकल गया.


घर वापिस जाते हुए मेरा जिस्म ऐसे तप रहा था जैसे मुझे बुखार हो गया हो. पेंट में लंड अब भी तना हुआ था. मेरे सर में जैसे हथोदे बज रहे थे. मैने अपने आपको कभी इस हालत में नही देखा था. मैं कभी इस हद तक गरम नही होता था पर प्रिया के नंगे जिस्म में जाने क्या था के मैं हवस में पागल हो रहा था. दिल ही दिल में मैं फ़ैसला कर चुका था के घर पहुँचते ही देवयानी या रुक्मणी जो भी सामने आई, वही चुदेगि और अगर दोनो सामने एक साथ आ गयी तो थ्रीसम होगा, फिर चाहे जिसको जैसा लगे.

अपनी ही धुन में कार चलाता मैं अपनी कॉलोनी में दाखिल हुआ और घर की तरफ जाने लगा. रास्ते में मुझे बंगलो नो 13 नज़र आया और जैसे जैसे मेरी गाड़ी बंगलो के नज़दीक पहुँची, वो गाने की आवाज़ मुझे फिर से सुनाई देने लगी.

वही मधुर गाने की आवाज़.
हल्की सी जैसे कोई बहुत दूर गा रहा हो.
जैसे कोई माँ अपने बच्चे को लोरी सुना रही हो.
शब्द मुझे अब भी समझ नही आ रहे थे.

उस गाने की आवाज़ सुनते ही मेरा सारा एग्ज़ाइट्मेंट ख़तम होता चला गया. मेरा वो जिस्म जो वासना में काँप रहा था ठंडा पड़ गया. दिमाग़ जो घूम रहा था जैसे एक जगह ठहेर गया. एक अजीब सा सुकून मेरी रूह के अंदर तक उतरता चला गया और एक अजीब सा नशा मुझपर छाने लगा.
मेरी गाड़ी की स्पीड गाने की आवाज़ सुनते ही काफ़ी कम हो गयी थी. धीरे धीरे गाड़ी चलाता मैं बंगलो के सामने से जैसे ही निकला, मेरा पावं ब्रेक्स पर पूरे ज़ोर से आ गया और गाड़ी वहीं बंगलो के मैं गेट के सामने रुक गयी.

लोहे के उस बड़े गेट के पिछे वो खड़ी थी. हाथों में गेट की रोड्स को पकड़ा हुआ था जैसे कोई मुजरिम जैल के अंदर जेल की सलाखों को पकड़कर खड़ा होता है.

जिस्म पर कुच्छ पुराने से कपड़े थे. एक घिसी हुई शर्ट और एक फटी हुई पेंट .
मैं अपनी गाड़ी में बैठा उसकी तरफ देखता रहा और वो भी सीधा मेरी ही ओर देख रही थी.
और आज पहली बार मुझे वो गाना कहाँ से आ रहा था पता चला. वो वहीं मेरी नज़रों के सामने खड़ी गा रही थी.
"जनमदिन मुबारक हो इशान" उसने एक पल के लिए गाना बंद किया और मुस्कुराते हुए बोली.


क्रमशः...........................

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