अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:00

अधूरा प्यार--20 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ..................................

"कुच्छ कहा तो नही ना.. अंकल आंटी ने?" ऋतु ने नीरू के उपर आते ही पूचछा...

नीरू घर आने के बाद करीब 15 मिनिट बाद उपर आई थी.. जब मम्मी ने उसको बताया कि ऋतु उपर बैठी है.....

"नही कुच्छ खास नही.. पापा ने तो ज़्यादा बात ही नही की.. लगता है मुझसे नाराज़ हैं... तू बता.. तू भी नाराज़ है क्या?" नीरू ने ऋतु के पास आकर बैठते हुए उसका हाथ पकड़ लिया....

"तू तो सच में ही पागल है यार.. मुझे विस्वाश नही था कि तू सच में चली जाएगी... आख़िर तूने सोच क्या रखा है? पूरी उम्र ऐसे ही बैठी रहेगी क्या?" ऋतु ने भावुक सी होते हुए कहा....

"मेरी बाद में... पहले ये बता, तू खुश तो है ना.. मानव के साथ शादी तय होने पर... अगर ऐसा नही हुआ तो मैं पूरी उमर खुद को माफ़ नही कर पाउँगी... तूने मेरे घर वालों को बचा लिया.. पर ये सब तेरी खुशियों की बलि देकर में कभी नही चाहूँगी.. तू सब सच बता दे.... तुझे मेरी कसम...." नीरू ने उसके सवाल को टालते हुए पूचछा.....

"हां.. मैं तो बहुत खुश हूँ... असल में तो उनसे अच्च्छा लड़का मुझे मिल ही नही सकता.. तुम्हे ना पा सकने की कसक उसकी आँखों में सॉफ दिख रही थी.. पर उसने अपने घर वालों को कतयि जाहिर नही होने दिया कि वो खुश नही है.. शायद उनकी खुशी के लिए ही उन्होने मुझे स्वीकार किया है... मुझे जाने क्यूँ डर सा लग रहा है कि कहीं वो मुझे उतना प्यार दे ही ना पायें जितने की मैं उनसे अपेक्षा करती हूँ...." ऋतु शुन्य में झाँकते हुए बोल रही थी... कहते हुए मानव का खूबसूरत चेहरा उसकी आँखों के सामने था....

कुच्छ देर वहाँ चुप्पी च्छाई रही.. फिर अचानक ऋतु ने ही मौन तोड़ा,"तू चली कहाँ गयी थी...?"

"उनके पास!" नीरू ने जवाब दिया....

"उनके किनके? रोहन के पास क्या?" ऋतु ने अंदाज़ा लगाकर चौंकते हुए पूचछा....

"हाँ!" नीरू ने नज़रें झुका ली....

"क्या?" अपने अंदाज़े की पुष्टि होने पर ऋतु फिर चौंकी," उस दिन तो तू मेरे साथ जाते हुए भी डर रही थी... फिर ऐसे कैसे चली गयी.. अकेली?"

"पता नही यार... पर मेरे पास कोई और रास्ता बचा ही नही था...!" नीरू ने जवाब दिया.....

"उन्होने कुच्छ पूचछा नही? तूने क्या बताया...?" ऋतु अब तक हैरत में थी....

"मैने उनको यही दिखाया था कि मुझे उनकी सपने वाली बात पर यकीन सा हो रहा है.. इसीलिए मैं उनके साथ टीले पर चलने को तैयार हूँ...!" नीरू ने कहा....

"फिर? क्या बोले वो.." ऋतु खुश होकर बोली....

"उन्होने तो चलने की तैयारी कर भी ली थी... फिर मुझे लगा मैं ग़लत कर रही हूँ.. इसीलिए मैने तेरे पास फोन किया और वापस आ गयी..." नीरू ने सपस्ट किया....

"हे भगवान! तूने ये नही सोचा की इस मज़ाक से उनके दिल पर क्या बीतेगी.. सच में बहुत निस्थुर है तू... वो सच ही कहते हैं.. तेरे अंदर दिल नही है... और ना ही ज़ज्बात...!" ऋतु ने भड़कते हुए कहा....

"मैं क्या करती यार... सच कहूँ तो मुझे भी बहुत शर्म आई थी उनको इनकार करते हुए... पर मैं कैसे जा सकती थी.. तू ही बता.. मैने तो दो चार दिन घर से बाहर रहने के लिए उनको ऐसा बोल दिया था....." नीरू ने कहा....

"उन्होने कुच्छ बोला नही... बहुत गुस्सा आया होगा उनको तुम पर...!" ऋतु ने कहा....

"पता नही... मैं तो बोलते ही ये कहकर निकल आई थी कि बाद में बात करूँगी...!"

"और तू अब उनसे बात करेगी नही... है ना? ये वादा तोड़ना भी तेरे लिए मुश्किल नही है.. बोल?" ऋतु को रोहन की दया आ रही थी....

"पता नही... पर सच बताऊं.... मुझे यकीन नही आ रहा.. उनके सपने और मेरे नाम बदलने की कहानी एक दूसरी से जुड़ी हुई सी लगती हैं... पता नही क्यूँ.. मुझे अजीब सा महसूस होता है उसके सामने जाकर... ऐसा लगने लगा है कि मैं उसको बहुत पहले से जानती हूँ.. बहुत सालों से... पर पता नही क्यूँ मेरा दिल इस बात को मान'ने को तैयार नही है...." नीरू ने विस्तार से अपने मंन की बात कही....

"दिल होगा तेरे अंदर तभी तो मानेगा ना...! वरना तू कभी उनको झूठा विस्वास दिलाकर उसकी भावनाओ से ना खेलती... सच में यार.. दिल कर रहा है तुझे ज़बरदस्ती उठाकर उस टीले पर ले जाकर पटक दूँ.. जो होगा देखा जाएगा...." ऋतु ने प्यारे गुस्से से कहा...

नीरू कुच्छ नही बोली.. बस हँसने लगी... शायद अपने आप पर!

"मुझे तो पहले ही शक हो रहा था कि उसके दिमाग़ में कुच्छ और चल रहा है... बात तक ना करने वाली भाभी जी इतनी जल्दी चलने को तैयार कैसे हो सकती थी.." रवि और रोहन बैठे बात कर रहे थे....

"पर यार उसने बोला तो है ना.. कि बाद में बात करेगी... हम इंतजार करने के अलावा और कर ही क्या सकते हैं..." रोहन मायूस था.. पर हिम्मत नही हारी थी उसने....

"एक मिनिट... अपना फोन देना..." रवि ने कहा...

"क्या करेगा?" रोहन ने उसकी और फोन बढ़ा दिया...

रवि ने बिना कोई जवाब दिए कॉल डीटेल निकाली और लास्ट डाइयल्ड नंबर. मिला दिया... रोहन से उसने चुप रहने का इशारा किया...

"हेलो!" ऋतु की मम्मी की आवाज़ आई....

"रवि ने हेलो कहा और फोन को मूट पर डाल दिया..... वह फोने काटने ही वाला था कि उधर से मम्मी की आवाज़ आनी शुरू हो गयी," मानव बोल रहे हो ना बेटा... इतना शरमाने की क्या बात है....ऋतु शीनू के घर पर है.. वहाँ कॉल कर लो..." कहकर वो हँसने लगी....

रवि ने हड़बड़कर मूट मोड़ हटाया," हां आंटी जी.. एक बार नंबर. देना प्लीज़.. शीनू के घर का....

"अब मम्मी कहने की आदत डाल लो बेटा..." मम्मी हंसते हुए बोली," तुम्हारे पास नही है क्या नंबर..?"

"हां.. नही.. वो मुझसे मिस हो गया है..." रवि ने तुरंत बात बनाई,"मम्मी जी..."

ऋतु की मम्मी ने नंबर. बताया और फोन रख दिया....

रवि ने झट से नीरू के घर वाला नंबर. डाइयल किया... वहाँ भी फोन आंटी जी ने ही उठाया," हेलो!"

"मानव बोल रहा हूँ आंटी जी.. ऋतु होगी यहाँ पर...." रवि ने कहा...

मम्मी कुच्छ देर सोचती रही फिर बिना कुच्छ ज़्यादा कहे ही बोली," अभी देती हूँ बेटा.. कहकर वो फोन बाहर उठा लाई," आ ऋतु... फोन लेजा.. मानव का है..."

ऋतु की खुशी का ठिकाना ना रहा... वह सीढ़ियों से लगभग भागती हुई नीचे आई और फोन उपर ले गयी.....

"हेलो!" फोन पर ऋतु की नज़ाकत देखते ही बन रही थी...

"नीरू है क्या?" रवि ने सीधे सीधे पूचछा....

"कौन?" ऋतु ने चौंक कर पूचछा....

"मैं हूँ.. रवि.. फोन मत काटना!" रवि ने सच बोल दिया....

"श.. हां.. क्या बात है? तुम्हे ये नंबर. कैसे मिला?" ऋतु ने हैरत से पूचछा...

"तुम्हे ये सब नही करना चाहिए था... बेचारा रोहन दोपहर से रो रहा है.. बच्चों की तरह..." रवि ने रोहन की और आँख मारी....

"अब मैं क्या करूँ..? मैं भी इसको यही समझा रही हूँ... पर जो हुआ इसकी मजबूरी थी....!" ऋतु ने दोनो ही तरह की बातें कह दी....

"वो बात कर सकती है क्या? रोहन से..." रवि ने काम की बात पर आते हुए कहा....

"हां... शीनू.. ये ले.. अब बात कर रोहन से..." ऋतु ने फोन नीरू की और बढ़ा दिया...

"नही.. मैं नही करूँगी.. " नीरू हड़बड़कर खड़ी हो गयी...

"कर ना बात.. तू कहकर आई थी ना उसको... बेचारों ने जाने कहाँ से नंबर. निकलवाया होगा.. अब बकवास मत कर...." ऋतु गुस्से से बोली....

"नही... मुझसे नही होगी बात.. मैं बाद में देखूँगी...." नीरू ने सपस्ट मना कर दिया...

ऋतु ने फोन वापस कान से लगा लिया," रोहन को फोन देना एक बार...."

"रोहन ही बोल रहा हूँ..!"

"श.. म्मै उसकी तरफ से माफी मांगती हूँ... दरअसल उसने जानबूझ कर मज़ाक नही किया... मैं मिलकर बताउन्गि..." ऋतु ने क्षमा याचना की....

"पर मैने मुश्किल से तो पापा को मनाया था.. अब उसके बिना घर कैसे जाउ.. मैने पापा को बोल भी दिया है कि मैं नीरू को लेकर आ रहा हूँ...." रोहन ने बेबसी से कहा....

"क्या? तुमने पापा को ये बोल दिया... तुम तो बहुत हिम्मत वाले हो यार... शकल से तो नही लगते.. हे हे" ऋतु ने मज़े लिए...

"पर अब बताओ तो मैं क्या करूँ...?" रोहन ने पूचछा....

"हूंम्म... तो मैं इसको ले आउ?" ऋतु ने कहा....

"कहाँ?"

"टीले पर.. और कहाँ?" ऋतु ने मुस्कुराते हुए कहा....

"क्या? पर तुम अकेले जाओगे वहाँ?" रोहन ने आस्चर्य से पूचछा...

"ओफ़कौर्स यार... तुम्हारे साथ चलेंगे... पर टाइम कितना लगेगा....?" ऋतु ने पूचछा....

"पर उसको मनाओगी कैसे?"

"वो तुम मुझ पर छ्चोड़ दो.. टाइम कितना लगेगा....?"

"4-5 दिन तो लगेंगे ही... हफ़्ता भी लग सकता है...." रोहन ने जवाब दिया," पर... क्या तुम भी साथ चलॉगी?"

"नही नही... दुल्हन की तरह तुम्हे इसके साथ भेज दूँगी.. मैं क्या करूँगी दो प्रेमी जोड़ो के बीच!" ऋतु ने व्यंग्य सा किया और फिर संजीदा हो गयी," हां.. मुझे भी चलना पड़ेगा... घर वाले इसको अकेला नही भेजेंगे.... किसी भी हालत में... समझ गये...?"

"हूंम्म.. पर उस'से तो पूच्छ लो....!" रोहन ने आशंकित सा होकर कहा....

"पूच्छ लिया समझो.. मैं कुच्छ देर बाद फोन करती हूँ... तुम कल सुबह चलने की तैयारी करो..." ऋतु ने कहा और फोन रख दिया....

"ये क्या कह रही है तू..? अब तू क्यूँ मज़ाक कर रही है उनसे!" नीरू ने हताश होकर कहा....

"मज़ाक नही कर रही.. हम सच में चल रहे हैं... कल सुबह... बहुत मज़ा आएगा....!" ऋतु ने खुश होकर कहा....

"नही.. मैं नही जा रही... मैं नही जाउन्गि..." नीरू ने टका सा जवाब दिया....

"एक बात बता तू? तुझे क्या लगता है? रोहन बदतमीज़ है?" ऋतु ने पूचछा...

"नही तो! मैने ऐसा कब कहा..."

" उसकी शकल से नफ़रत है....?"

"नही तो....."

"तुझे क्या लगता है.. वो हमारा नाजायज़ फ़ायडा उठा सकता है क्या?"

"पर तू पूच्छ क्यूँ रही है?" नीरू ने पलट कर सवाल किया...

"तू बता ना!"

"न्नाही..."

"अब तक जितनी भी बार मिले हैं.. तुझे लगता है कि उसके मान में कोई चोर है.. या वो सब झूठ बोल रहा है...?"

"नही!"

"तो प्राब्लम क्या है यार... अगर तू मुझसे पूछेगि तो मैं यही कहूँगी कि तुझे उसके साथ जाकर देखना चाहिए.. खुद तुझे भी लगता है कि तुम्हारा अतीत कहीं ना कहीं जुड़ा हुआ लगता है... और मैं दावे के साथ कह सकती हूँ की वो ऐसा लड़का नही है जो यूँही लड़कियों के पीछे घूमता फिरे... और फिर तेरे साथ मैं भी चल रही हूँ..

मैं भी देखना चाहती हूँ कि आख़िर तुम्हारे बीच प्यार की वो कौनसी कड़ी है जिसकी ताक़त ने तुम्हे मानव से शादी को टालने के लिए घर से भागने पर मजबूर कर दिया.... आज तक खुद तुमने ऐसा नही सोचा होगा की तुम भी कभी ऐसा कर सकती हो.. पर तुमने फिर भी किया... ये तुम्हारे बीच 'कोई' अंजान बंधन नही तो और क्या है जिसने रोहन को यहाँ तक आने पर मजबूर कर दिया... अगर उसको नाटक ही करना होता तो क्या वो अपने शहर में नही कर सकता था... लड़कियों की इतनी भी कमी नही है यार....." ऋतु ने कहकर एक ज़ोर की साँस ली....

"पर तू कहना क्या चाह रही है.. हम जाएँगे कैसे....?" नीरू की समझ से बाहर था कि ऋतु किस बसे पर बाहर जाने की बात कर रही है.. वो भी हफ़्ता भर के लिए....

"मैने सब प्लान कर लिया है... मैं आज मम्मी को बोलूँगी कि अमृतसर से मेरी सहेलियों का टूर जा रहा है... मुझे पता है कि वो कभी मना नही करेंगे... अब तो उनको वैसे भी ये लग रहा है कि उनकी बेटी बेवक़्त ही शादी की बेड़ियों में जकड़ने जा रही है.. हे हे... पहले मैं मम्मी से पूच्छ लूँ... मेरी हां होने के बाद अंकल जी भी मान ही जाएँगे....!" ऋतु ने खुलासा किया....

"पर मैं नही जाना चाहती यार!" नीरू ने अनमने मॅन से कहा....

"देखती हूँ कैसे नही चलेगी... अब मैं जा रही हूँ.. मम्मी से पूछ्ते ही तेरे पास आउन्गि और उनको बता देंगे...!" ऋतु ने फ़ैसला सा सुनाया और फोन लेकर नीचे चली गयी.....

"तुझे विस्वास है कि वो आ जाएँगी...?" शेखर गाड़ी की चाबियाँ उठता हुआ बोला...

"अब आयें ना आयें, मुझे तो जाना ही पड़ेगा एक बार... मम्मी पापा को बोल दिया है..." रोहन बार बार बाहर निकल कर गेट की और देख रहा था....

"तू वापस आएगा ना शेखर...!" अमन उदास सा हुआ बैठा था.. काफ़ी दिनो तक कायम रही घर की रौनाक़ आज फिर सूनेपन को बुलावा दे रही थी....

"हां हां.. आउन्गा क्यूँ नही.. पर इस बार बारात लेकर ही आउन्गा, तेरे शहर में..." मुस्कुराता हुआ शेखर बोला....

"अमन भाई.. तू भी हमारे साथ चल'ना.. तुझे बंगर की छ्होरी दिखाउन्गा.." रवि ने मज़ाक करते हुए कहा....

"बस यार.. अब तो लड़कियों से भी मंन सा भर गया है... पता नही अब किसके सहारे जिया जाएगा...." अमन ने गहरी साँस लेते हुए कहा....

"तो तू शादी करले ना यार... बहुत हो चुकी मौज मस्ती... अब तू भी कोई नखरे दिखाने वाली ढूँढ ले!" रवि ने आकर अमन के कंधे पर हाथ रखा तो अमन आँखें बंद करके मुस्कुराने लगा," मेरे वाली की तो शादी भी हो गयी होगी यार...."

"क्या बोल रहा है भाई...? तेरा भी चक्कर चला था कभी.." रवि ने आस्चर्य से पूचछा...

"क्यूँ बे.. चक्कर क्या तुम लोग ही चला सकते हो.. मेरा चक्कर तो उस उमर में चल गया था जब तुम लोग तीन पहियों वाली साइकल चलाते होगे.. हा हा हा" अमन के मज़ाक में भी उसके दिल का डर ही उभर कर आया....

"फिर क्या हुआ भाई? " रवि उसको लेकर सोफे पर बैठ गया...

"सब किस्मत वाले नही होते यार... सबको नही मिलता प्यार!!!" अमन ने अपनी बात पूरी की ही थी कि दरवाजे पर ऋतु प्रकट हो गयी,"हाई!"

सबका दिल खुश हो गया, पर रोहन अब तक बेचैन ही था," ववो नही आई क्या?"

"उसके बगैर मैं क्या करती... ये खड़ी बाहर.. जल्दी चलो..." ऋतु ने कहा....

"हेलो!" बाहर आते ही रोहन नीरू के मुरझाए चेहरे को देखकर संशय में पड़ गया," चल रहे हो ना; तुम भी..."

"हाँ हाँ.. चल रहे हैं.. बार बार पूच्छ कर माना करवाना चाहते हो क्या?" ऋतु ने जवाब दिया......

"फिर ये ऐसे क्यूँ खड़ी है.. चुपचाप!" रोहन नीरू के चेहरे परमायूसी देखकर झिझक रहा था....

"अब आप इसके चेहरे पर ध्यान मत दो.. ये ऐसी ही है.. अपने आप ठीक हो जाएगी.. चलो यहाँ से....."ऋतु ने कहा....

"आपका ही इंतजार हो रहा था... हम तो तैयार हैं.." शेखर ने कहा और ड्राइविंग सीट पर जा बैठा... रवि ने भी आगे की सीट पकड़ ली.....

ऋतु ने नीरू को गाड़ी के अंदर धकेला और खुद भी बैठ गयी....

"थोड़ा उस तरफ हो जाओ.. मुझे भी तो बैठना है..." रोहन की खुशी उसकी मुस्कुराहट से सॉफ झलक रही थी...

"उस तरफ से आओ ना!" ऋतु ने मुस्कुरकर रोहन से कहा... मुस्कुराहट में उसका इशारा नीरू के साथ बैठने के लिए था.....

"आ..आप उधर ही बैठ जाओ!" रोहन को अपनी तरफ वाली खिड़की खोलते देख नीरू सकपका कर बोली....

"चुपचाप इधर खिसक ले.. तुझे खा नही जाएगा ये..." ऋतु ने कहा और नीरू को अपनी तरफ खींच लिया.... रोहन बैठा और अमन को 'बाइ' करके सभी निकल गये.....

क्रमशः .........................


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:01

अधूरा प्यार--21 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ..................................

शहर से बाहर निकलने के बाद ऋतु एकद्ूम रिलॅक्स महसूस कर रही थी पर नीरू के चेहरे पर अब भी एक अंजाना सा तनाव पसरा हुआ था.. कारण कयि थे... घर वालों का मूड अब तक उखड़ा होना; रोहन, जो खुद को उसका अतीत होने का दावा कर रहा था, के साथ होना; और अंजान मंज़िल की और जाते हुए मन में तरह तरह के सवाल होना.....

ऐसा नही था कि रोहन और दूसरे लड़कों के साथ होने से उसके अंदर किसी तरह का कोई भय था.. वो तो तब भी शायद नही होता अगर ऋतु उसके साथ नही होती.. 2-4 मुलाक़ातों में वह रोहन के चरित्र को समझ गयी थी.. रोहन को अब वह निहायत ही भोले और सॉफ मंन के लड़के के रूप में जान'ती थी...

फिर भी.. वो परेशान सी थी.. आज तक हमेशा उसके दिल से यही आवाज़ निकली थी कि वो 'शादी' और प्यार करने के लिए नही बनी... कारण चाहे कुच्छ भी रहा हो, पर वा लड़कों के नाम से ही बिदक्ति थी.. उसने कभी सोचा भी नही कि ऐसा क्यूँ है... वो क्यूँ दूसरी लड़कियों की तरह नही सोचती... और आज से पहले उसने अपने मंन को भी टटोल'ने की ज़रूरत नही समझी थी...

पर आज उसके मंन में एक द्वन्द्व सा चल रहा था.. अपने अतीत को लेकर, अपने नेचर को लेकर.. और अपना नाम बदल'ने और रोहन के सपने में समन्जस्य को लेकर....

"ऐसे क्यूँ मुँह फुलाए बैठी है...? बाहर देख मौसम कितना अच्च्छा है...!" ऋतु ने उसका ध्यान बाँटने की कोशिश की....

नीरू जो अब तक एकटक सामने वाली सीट को घूर रही थी, ने अपनी नज़रें बाहर की ओर घुमा दी... पर चेहरे के भाव अब भी नही बदले....

"आपने क्या सोचकर मेरा सिर फोड़ा.. भाभी जी!" रवि से चुप ना रहा गया....

"मुझे नाम से बुलाओ!" नीरू ने अचकचा कर कहा...

"श सॉरी.. नीरू जी!" रवि ने क्षमा याचना करते हुए भूल सुधार किया....

"मेरा नाम शीनू है.. नीरू नही!" नीरू ने उसको फिर टोका....

"वो तो टीले पर जाकर पता लगेगा.. हा हा हा... वैसे भाब... सॉरी.. आपको भूतों से डर तो नही लगता....?" रवि नीरू को मज़ाक में छेड़ने लगा....

"भूत होते ही नही.. मैं क्यूँ डरूँ...?" नीरू खिसिया कर बोली....

"अच्च्छा! इनस्पेक्टर से पूच्छ कर देखना.. वो क्या कहते हैं.. हा हा हा!" रवि ने जवाब दिया और हँसने लगा....

"वैसे आपको शायद पता नही... उनसे मेरी शादी होने वाली है..." ऋतु ने खुश होकर बताया....

रोहन ने ऋतु की और आस्चर्य से देखा..," पर उस दिन जब वो आए थे.. तब तो ऐसा कुच्छ नही लगा..."

"हां.. सब कुच्छ बाद में हुआ.. तुम्हे पता है.. उनकी शादी शीनू से तय होने वाली थी...!" ऋतु ने माहौल में उत्सुकता भर दी..

"फिर?" रवि ने पलट कर पूचछा...

"फिर क्या? ये भाग आई घर से.. हे हे हे.. और मुझे ये सुनहरा मौका मिल गया.." ऋतु के चेहरे की खुशी सॉफ झलक रही थी....

"सच!" रोहन का चेहरा खिल उठा....

"ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है... मैं तुम्हारे लिए नही; खुद के लिए भाग कर आई थी....!" नीरू ने पहली बार डिस्कशन में भाग लिया.....

रोहन के अचानक खिले चेहरे पर वापस मुरझाई सी आ गयी," वो क्यूँ?"

"और नही तो क्या? कल जब ये तुम्हारे पास आई थी तो सिर्फ़ शादी से बचने के लिए...!" ऋतु ने अट्टहास किया.....

"पर हमें तो इसने कुच्छ नही बताया कल..." रवि ने एक बार फिर पलट कर पूचछा...

"ये पागल थोड़े ही है.. बस शकल ही पागलों जैसी है इसकी... हे हे" ऋतु हँसी," ये तुमको बता देती तो तुम क्या पता इसको वापस छ्चोड़ आते....!"

"इतना पागल तो मैं भी नही हूँ... अगर मुझे पता चल जाता तो मैं इसको वापस जाने ही नही देता... चाहे मुझे इसको ज़बरदस्ती गाड़ी में डाल कर लाना पड़ता..." रोहन ने कहा....

"अच्च्छा! अब उतरू नीचे... ले जाकर दिखाना ज़बरदस्ती..." नीरू ने गुस्से से कहा....

"भाई.. पहले देख लेना.. इनके हाथ में कोई चाकू च्छुरी तो नही है.. इनको दया नही आती... सीधे उतार देगी... हा हा हा..." रवि ने बीच में टपकते हुए मज़े लिए.....

नीरू रवि का इशारा समझ गयी," तुम अगर रात को इस तरह किसी के कमरे में घुसोगे तो वो क्या तुम्हारी आरती उतारेगी.... ? तुम्हारी दया नही आती तो में तुम्हे आराम से वापस नही जाने देती मेरे घर से... और ना ही इनस्पेक्टर को झूठ बोलती कि तुम दोनो मेरे घर नही आए..." नीरू ने मुँह चढ़ा कर कहा...

"कुच्छ भी कहो भा.. सॉरी.. पर आपकी दया के पिछे भी ज़रूर कोई राज ही होगा... वरना आपसे डर बहुत लगता है हम दोनो को... क्यूँ रोहन? हा हा हा!" रवि तो आख़िर रवि था....

"मुझे तो नही लगता... तुझे ही लगता होगा...!" रोहन अच्छे बच्चे की तरह बोला....

"किसी दिन तुम पर निशाना सढ़ेगा तब पता चलेगा.. उस दिन तो बच गये.... वैसे भी लड़कियों से थोड़ा बचकर रहने में ही भलाई है...." रवि ने शेखर के कंधे पर हाथ रखा....

"हां! ये बात तो है!" शेखर ने पहली बार कुच्छ बोला.....

"क्या खाक सही है यार.. तू कुच्छ बोलता ही नही...!" रवि का ध्यान शेखर की बात सुनकर ही उसस्पर गया था....

"मैं क्या बोलूं यार? मुझे अपनी फिकर हो रही है... एक हफ्ते में सब कुच्छ अरेंज करना है.. अपनी शादी के लिए... बारात में तो आओगे ना...?" शेखर ने पूचछा......

रवि उसकी बात का जवाब देना छ्चोड़ कर अपनी ही राम कहानी में डूब गया," यार! तुम सब तो शादी कर रहे हो... मेरा क्या होगा? मैं तो कुँवारा का कुँवारा ही रह गया..."

"तुम हो ही इस लायक...!" ऋतु ने कहा और गला फाड़ कर हँसने लगी... उसका साथ सभी ने दिया...

शाम करीब 5 बजे शेखर ने सबको रोहन के पापा के ऑफीस पर उतार दिया...

"तुम भी चलो ना यार! कल निकल जाना!" रोहन ने हाथ मिलने के लिए बढ़े हुए शेखर के हाथ को पकड़ लिया....

"नही यार.. अब तो शादी के बाद तुम्हारी भाभी को लेकर ही आउन्गा.. अभी काम बहुत करने हैं और टाइम कम है... अब तो निकलता हूँ.."शेखर ने रवि से हाथ मिलाया.. लड़कियों की तरफ मुस्कुरकर 'बाइ' कहा और निकल गया....

"एक बात का ध्यान रखना.. अभी पापा को ये मत बताना कि हमें टीले पर जाना है.. प्लीज़.. बेवजह परेशान हो जाएँगे.. समझ गये ना!" रोहन ने अपना फोन निकालते हुए सब'से कहा.....

"चिंता मत करो.. मैं इसको सब समझा दूँगी.. पर अभी हमें कहाँ चलना है....?" ऋतु ने रोहन को बेफिकर रहने को कहा.....

" एक मिनट.. मैं पापा को फोन कर लूं.. देखता हूँ कहाँ हैं...? वही कुच्छ इंतज़ाम करेंगे...." रोहन ने कहा और फोन मिलाया ही था कि ब्लॅक कलर की मर्सीडीस उनके पास आकर रुकी...

"पापा आ गये!" रोहन ने कहा और गाड़ी की ओर बढ़ा....

ऋतु ने नीरू को कोहनी मारकर छेड़ा," तेरी ससुराल वाले तो बहुत अमीर हैं यार.. तुझे पता था क्या?"

नीरू ने अपना मुँह घुमा लिया..

"उधर कहाँ देख रही है.. पैर छ्छू ले जाकर.. इतनी भी अकल नही है क्या?" ऋतु ने उसको वापस घुमा दिया....

"ओये पुत्तर... कितना वेट करवा कर आया है...." पापा ने गाड़ी से नीचे उतरते ही रोहन को बाहों में भर लिया.. रोहन भी उतनी ही आत्मीयता से उनके पैर छ्छूने के बाद उनसे गले मिला...

"क्या हाल हैं बेटा?" रवि के प्रणाम करने पर पापा ने उसके कंधे पर हाथ मारा और फिर थोड़ी सी दूर खड़ी नीरू और ऋतु को देखकर बोले," अरे.. तुम तो दोनो ही हाथ मार लाए... वैसे चाय्स दोनो की फॅंटॅस्टिक है... गुड कित्ता.. " पापा ने मुस्कुराते हुए कहा......

"नही अंकल जी.. मेरा इनमें कुच्छ नही है... हे हे हे.. वो जीन्स वाली भाभी जी की सहेली है.. ऋतु!" रवि ने मुस्कुराते हुए कहा....

"ओह्हो.. तो मिलवाओ ना भाई.. इतनी दूर क्यूँ चिपका दिया उनको!" कहकर पापा उनकी और बढ़े.. रोहन और रवि पिछे पिछे थे....

"नमस्ते अंकल जी!" पहल ऋतु ने की...

"नमस्ते बेटा जी... " पापा ने प्यार से ऋतु के सिर पर हाथ फेरा और नीरू के सामने आकर खड़े हो गये..

नीरू गहरी असमन्झस में थी... रोहन की भावनाओ का वो अपमान नही करना चाहती थी.. पर लाख चाहकर भी नीरू के बताए अनुसार उसके मुँह से 'पापा' शब्द ना निकल पाया... इसी उधेड़बुन में वह नमस्ते तक करना भूल गयी; और सिर झुकाए खड़ी रही....

पापा मंद मंद मुस्कुराते हुए नीरू को कुच्छ देर गौर से देखते रहे.. नीरू का चेहरा था ही इतना चित्ताकर्षक कि कोई भी एक पल के लिए तो सब कुच्छ भूल ही जाता था...

अचानक जैसे पापा ख़यालों की दुनिया से वापस आए," तू इतनी गुम्सुम क्यूँ है बेटी... सब ठीक हो जाएगा.. मैं हूँ ना.. तेरे पापा की जगह... और फिर प्यार में इतनी दिक्कतें तो आती ही हैं... तू फिकर ना कर.. जल्द ही मैं तेरे पापा से बात करूँगा.. मुझे यकीन है कि उसकी जवानी के दिन याद करवाकर मैं उसको मना ही लूँगा.. हा हा हा!"

"ज्जई.. पापा जी!" नीरू के लब थिरक उठे.. रोहन के पापा के प्यार भरे बोल सुनकर वो उनको 'पापा' कहने का साहस जुटा ही गयी....

"जिंदा रह मेरी बच्ची!" पापा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा...," मुझे अपने इस 'नालयक' बेटे की किस्मत पर पूरा भरोसा था... थोड़ा भोला है.. अपने में ही खोया रहता था आजकल.. मैं इसके दिल की बात समझ नही पाया.. वरना मैं खुद आता इसके साथ, तुम्हे लाने के लिए... मुझे पता था; एक दिन ये कोई ना कोई हीरा ढूँढ ही लेगा अपने लिए... और तुम तो... हीरे से भी बढ़कर हो बेटी...!" पापा ने रोहन की और देखा और उनकी आँखें नम हो गयी.....

रोहन एक बार फिर अपने पापा से लिपट गया," आइ लव यू पापा... आइ लव यू!"

इतना प्यार भरा माहौल देख कर नीरू की आँखों में भी नमी सी आ गयी... खड़ी खड़ी वह यही सोच रही थी..," क्या होगा अगर मुझे इनको छ्चोड़ कर जाना पड़ा...."

"ओये अंदर चलो यार... बाहर ही खड़े रहोगे क्या?" पापा ने कहा और ऑफीस की तरफ बढ़ गये.. सबको साथ लेकर....

अंदर जाते ही उन्होने रिसेप्षनिस्ट की छुत्ति कर दी और नौकर को बाहर 'ऑफीस क्लोस्ड' का बोर्ड टाँगने को बोल दिया.....

ऑफीस की चकाचौंध और आलीशान शानो शौकत को देख ऋतु हैरान थी... उसने सपने में भी नही सोचा था कि रोहन इतना अमीर होगा... नीरू के भविष्य को लेकर वह पूरी तरह निसचिंत हो गयी थी.. और उसने मन बना लिया था कि नीरू को किसी भी तरह शादी के लिए राज़ी करना है....

"चलो भाई.. थक गये होगे... तुम थोडा आराम कर लो.. जब तक खाना आए.. मैं रोहन के थोड़े कान खींच लेता हूँ.. इतने दिन घर से गायब रहने के लिए..." हंसते हुए पापा ने कहा और नीरू और ऋतु को बेडरूम दिखा दिया.... दोनो लड़कियाँ बेडरूम में चली गयी....

"हां जनाब! अब बोलो...!" पापा ने रोहन से कहा....

"हम रात को कहाँ रहेंगे पापा!" रोहन ने पूचछा.....

"भाई.. आज होम मिनिस्टर के पास फाइल भेजूँगा... कल से तेरी मम्मी से बात करने का मौका ही नही मिला यार.. मैं बाहर था... देखते हैं उनका रेस्पॉन्स क्या आता है... पर आज तो तुमको यहीं रुकना पड़ेगा..... यहीं सो जाना..." पापा ने जवाब दिया....

"पर मैं?... बेडरूम तो एक ही है...!" रोहन ने अजीब सी नज़रों से पापा को कहा.....

"ओह्हो.. ऋतु बाहर सोफे पर सो जाए..... श.. समझा... मतलब तुम बाहर सोफे पर सो जाना यार.. एक ही दिन की तो बात है.. कल करते हैं कुच्छ... और रवि भी यहीं रहता होगा ना...?" पापा ने अपने बेटे की शराफ़त को समझने में थोड़ी चूक हो गयी थी एक बार....

"ठीक है" रोहन ने कंधे उचका दिए....

"चलो अब मैं चलता हूँ.. मुझे कुच्छ काम निपटा कर जल्दी घर पहुँचना है.. तुम्हारी मम्मी को भी समझाना है ना.... खाना वाना ढंग से खा लेना......मैं सुबह आ जाउन्गा..." पापा खड़े हो गये.....

"ठीक है पापा.." रोहन ने कहा और रवि के साथ उनको बाहर तक छ्चोड़ने आया....

"कैसा लगा तुझे?..." बाथरूम से बाहर आते ही ऋतु ने नीरू को देख कर आँखें मटकाई...

"क्या कैसा लगा?" नीरू ने सिर उठाकर पूचछा... वो कुच्छ परेशान सी लग रही थी....

"यही सब..!" ऋतु ने बेडरूम में नज़रें घूमाकर कहा," रोहन के पापा.. और क्या?"

"देख ऋतु! तेरे कहने पर मैं आने को तैयार हो गयी.. टीले तक भी चल पड़ूँगी... पर फ़ैसला मेरा ही होगा.. समझ गयी ना.. अब तू बार बार ये बातें मत उठा....कल को रोहन या उसके घर वालों को कोई ठेस पहुँचती है तो इसका जिम्मा तेरा है.. मेरा नही..." नीरू ने मुँह पिचकाते हुए कहा और सिर झुका कर वापस अपने नाख़ून कुरेदने लगी.....

"छ्चोड़ ना यार टीले वीले का चक्कर... मुझे तेरे लिए रोहन पसंद है.. तू आराम से इसको हां बोल दे.. बाद में तो इसके पापा अपने आप सुलट लेंगे... कितने अच्छे हैं ना.... यहाँ ऐश करेगी तू.. ऐश! छ्चोड़ दे शादी ना करने की ज़िद.." ऋतु उसके पास आकर बैठ गयी....

"मैने कहा ना छ्चोड़ इन्न बातों को!" नीरू बिगड़ गयी....

" तुझे क्या लगता है? इस'से ज़्यादा प्यार करने वाला तुझे मिल जाएगा.. ? जिंदगी भर ढूँढती रहना फिर..." ऋतु भी चिड गयी...

"मुझे नही चाहिए, प्यार करने वाला... अब मेरा दिमाग़ खराब मत कर यार..." नीरू ने कहा और लेट कर करवट बदल ली.. तभी दरवाजे पर नॉक हुई... नीरू वापस उठकर बैठ गयी.. ऋतु ने जाकर दरवाजा खोल दिया....

दरवाजे पर रोहन खड़ा था...," आओ.. खाना खा लो..."

"चल शीनू! मुझे भी बहुत भूख लगी है..!" ऋतु झट से तैयार हो गयी...

"मुझे भूख नही है.. तुम ही खा लो!" नीरू का मूड अब तक बिगड़ा हुआ था...

"चल ना यार... अच्च्छा सॉरी.. अब कुच्छ नही बोलूँगी ऐसा वैसा.. आजा.. खड़ी होकर खाना खा ले....!" ऋतु ने कहकर नीरू का हाथ खींच लिया... थोड़ी आनाकानी के बाद वो तैयार हो गयी और तीनो बाहर निकल गये....

"ये सब तुम्हारा ही है ना रोहन!" खाना खाते हुए ऋतु ने पूचछा और कनखियों से नीरू की और देखा....

"नही!" रोहन ने जवाब दिया...

"तो?" ऋतु ने चौंकते हुए पूचछा...

"अभी तो सब कुच्छ पापा का है... मैं अभी कमाता नही.. पढ़ रहा हूँ..." रोहन ने विनम्रता से उत्तर दिया....

"श.. मैं समझी...!" अपनी बात अधूरी छ्चोड़कर ही ऋतु ने ग्लास का पानी अपने हलक से नीचे उतारा....

कुच्छ इसी तरह की बातें और हल्क फुल्के मज़ाक करते हुए सब ने खाना लिया और फिर नीरू और ऋतु वापस बेडरूम में जा घुसी....

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"ऋतु!" नीरू ने कहा...

"हां बोल.. तू परेशान क्यूँ है? जो बोलना है बोल दे.. अगर तुझे हर हाल में ना ही करनी है तो कल सुबह ही वापस चल... जितने दिन हम यहाँ रहेंगे.. बात उतनी ही बढ़ेगी...." ऋतु ने उसका हाथ थाम कर कहा....

"तू एक मिनिट बाहर जा.. और.. 'उसको' अंदर भेज दे.. मुझे कुच्छ बात करनी है..." नीरू ने कहा...

"ऐसी क्या खास बात है.. मैं भी यहीं रुकती हूँ ना!" ऋतु ने कहा....

"कहा ना यार.. कुच्छ ऐसी ही बात है.. तभी तो तुझे बाहर जाने को बोल रही हूँ..." नीरू झल्ला कर बोली.. उसके चेहरे से सॉफ ही उसके किसी उधेड़बुन में होने का पता चल रहा था....

"देख ले.. कुच्छ उल्टा पुल्टा कह दिया तो मुझसे बुरा कोई नही होगा..." ऋतु गुर्रति हुई खड़ी हुई और बाहर निकल गयी.....

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"हां.. नी..." रोहन खुशी से उच्छलता हुआ अंदर आया था.. पर नीरू का रुनवासा चेहरा देख कर उसकी सारी कल्पनाए हवा हो गयी," क्क्या हुआ?"

"बैठो!" नीरू एक तरफ को होते हुए बोली....

"कुच्छ ग़लत हो गया क्या?" रोहन ने बेड पर बैठते हुए कहा.. उसका दिल नीरू की रॉनी सूरत को देख बैठा जा रहा था....

"ये.... प्यार क्या होता है रोहन!" नीरू ने सहजता से अपनी सुरीली आवाज़ में सवाल किया...

"प्यार! मुझे क्या पता क्या होता है प्यार!.. पर मुझे इतना पता है कि मुझे तुम अब मेरा ही एक हिस्सा लगने लगी हो... तुम्हे देखते ही दिल का हर अरमान खिल उठता है.. बात अब सिर्फ़ यहाँ तक नही रह गयी है कि किसी तरह मुझे पता लग गया कि शादियों पहले हम एक दूसरे के लिए जीते और मरते थे... ना! अब तो कोई अगर आकर ये कह दे कि वो सब झूठ था.. महज सपना था.. तो भी मैं कभी तुमसे अलग नही होना चाहूँगा... मैं रह ही नही पाउन्गा तुम्हारे बिना....

सोता हूँ तो तुम्हे सोचता हू.. जागता हूँ तो तुम्हे सबसे पहले याद करता हूँ.. खाते पीते, उठते बैठते.. सिर्फ़ यही सपना देखता रहता हूँ कि कब मेरा सपना सच होगा.. कब तुम मुझे अपना मानोगी.. कब मैं तुम्हे 'अपनी' कह सकूँगा...

मेरा दिल टुम्हारे ही रूप को ग्रहण कर चुका है... कोई और अब इस दिल को गंवारा नही होगा... चाहो तो आजमा सकती हो... अगर तुम नही रही तो जान भले ही ना दूं.. पर जीने लायक रहूँगा भी नही...."

रोहन भावनाओ में बहकर बोलता ही जा रहा था... और बोलता ही रहता अगर नीरू उसको ना टोक देती तो....

"मुझे पता है रोहन! मुझे ये भी पता है कि कोई किस्मत वाली ही होगी जो तुम्हे पति के रूप में प्राप्त करेगी... मैं तुम्हे अच्छि तरह जान चुकी हूँ.. पर क्या करूँ..? प्यार नाम से ही दिल में कुलमुलाहट सी होने लगती है.. मेरी बेचैनी बढ़ जाती है... मुझे खुद समझ नही आ रहा कि ये क्या है.. पर मेरा दिल और दिमाग़.. दोनो ही 'प्यार' के उलट बोलते हैं... मैने तुम्हारे बारे में सोचने का प्रयत्न भी किया... पर मेरा दम सा घुटने लगता है ऐसा कुच्छ भी सोचते हुए... लगता है जैसे में कुच्छ देर और सोचती रही तो मेरा दम ही निकल जाएगा......

समझने की कोशिश करो... मुझे नही लगता कि मैं किसी से भी शादी करने की सोच भी सकती हूँ... मैं नही चाहती कि तुम या घर वाले.. अपने दिल में कोई उम्मीद पाले और मैं तुम्हारा साथ ना दे सकूँ... आज मैं पापा से मिली... कितना प्यार है उनके दिल मैं... कल को अगर उनको ठेस पहुँची तो मैं तो जीते जी ही मर जाउन्गि.... प्लीज़ रोहन! मुझे कल ही वापस भेज दो.. मैं नही रह सकती यहाँ... मैं नही दे सकती तुम्हारा साथ!" बोलते बोलते नीरू की आवाज़ भारी हो गयी और आँखों से आँसू बहने लगे....

रोहन से कुच्छ भी बोला ही ना गया.. कुच्छ पल 'अपनी' नीरू को टकटकी लगाकर देखता रहा और फिर उठकर बाहर निकल गया...

क्रमशः .................................


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:02

अधूरा प्यार--22 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ..................................

महल में हर तरफ अफ़रा तफ़री और आपा धापी का माहौल था... शहर के नज़दीक ही सूना पड़ा रहने वाला विशाल मैदान रणभूमि में तब्दील हो चुका था.. रह रह कर महल तक आ रही हाथियों की चिंघाड़, घोड़ों की हिनहिनाहट और अपनी जान जोखिम में डाल कर लड़ाई में अपनी जान झोंक रहे सैनिकों की रह रह कर आ रही करूँ चीख और इन्न सबसे मिलकर पैदा हुए अजीब से कोलाहल से महल में मौजूद हर शक्श की रूह तक काँप रही थी....

"मा... क्या हम दुश्मनो से जीत पाएँगे?" शैया पर लेटी भयभीत राजकुमारी ने राजमाता से पूचछा... बे-पनाह खूबसूरती की मिशाल उस राजकुमारी का मुरझाया हुआ चेहरा संकट की उस घड़ी में भी पुर्नमासी के चाँद की तरह दमक रहा था....

"भगवान पर भरोसा रखो प्रिया.. सब ठीक हो जाएगा..." राजमाता के चेहरे पर पसरा अजीब सा सन्नाटा उसके शब्दों से मेल नही खा रहा था.. फिर भी वह बेटी को दिलासा देने में कोई कसर नही छ्चोड़ रही थी......

"पर हम 10,000 हैं और वो 200,000... कैसे जीतेंगे मा?" प्रिया उठकर बैठ गयी.....

"तू लेट जा बेटी... थोड़ी देर सो ले... कल रात से तूने पलक तक नही झपकाई हैं.. सो जा! भगवान पर भरोसा रख.....! सब ठीक हो जाएगा..." राजमाता ने फिर से उसको झूठी दिलासा देने की कोशिश की......

"कैसे सो जाउ मा? ववो.... मेरा देव कल रात से ही युद्ध भूमि में है... उसने वादा किया था वापस आने का.. वो तो आया ही नही है अभी..... मैं उसको देख कर ही सौंगी....!" राजकुमारी के सीने से टीस सी निकली....

"तू फिर उसका नाम ले रही है... कितनी बार समझाया है बेटी; तू एक राजकुमारी है... तेरा विवाह किसी राजकुमार से ही होगा... अब तू उसका इंतजार छ्चोड़ दे और सो जा!.. मान ले मेरी बात!"

राजमाता ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर प्रिया के गालों को छ्छूने की कोशिश की.. पर वह सरक कर दूर हो गयी," नही! मैं किसी और के बारे में सोचूँगी भी नही... मुझे यकीन है.. वो आकर मुझे ले जाएगा यहाँ से... महल में किसी में इतना दम नही जो उसका रास्ता रोक सके... और ना ही आपके किसी राजकुमार में उसका सामना करने की हिम्मत है... आप देख लेना..." प्रिया बिलखाती हुई बोली और उठकर राजमहल के मुख्य द्वार की और भागी.....

"आ पाकड़ो इसे!" राजमाता ने कहा और सेविकाओं ने अक्षरष: उनकी आग्या का पालन किया......

"मान जा बेटी.. वरना हमें तुम्हे फिर से बेड़ियों में जकड़ना पड़ेगा...!" राजमाता ने प्यार से उसका सिर पुच्कार्ते हुए कहा......

"बाँध दो मुझे... बना लो बंदी... पर तुम देखना... जब मेरा देव आएगा तो तुम्हारे सारे पहरे बिखर जाएँगे.. सारी बेड़ियाँ कट जाएँगी तुम्हारी.... कर लो तुम्हे जो करना है..." प्रिया चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी...

क्रमशः ............................................


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