अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:08

अधूरा प्यार--26 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ..................................

"चल आजा.. वो दोनो चाइ पर हमारा इंतजार कर रहे हैं.." सुबह ऋतु नीरू को बेडरूम से बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी...

"नही... मुझे नही चलना बाहर.. यहीं मंगवा ले चाय..!" नीरू का चेहरा रोहन के सामने जाने के नाम से ही गुलाबी पड़ गया....

"चल नाआ! अब ऐसे नखरे मत दिखा... चल खड़ी हो...!" ऋतु ने उसको बाँह से पकड़ कर खींच लिया...

"नखरे दिखा रही हूँ मैं?.." नीरू ने गुस्से से कहा और फिर शर्मा सी गयी," मुझे शर्म आ रही है.. जाने क्या सोच रहा होगा वो.. मेरे बारे में.."

ऋतु नीरू को खींचते हुए बाहर ले ही आई.. नज़रें झुकाए नीरू रोहन के सामने जाकर बैठ गयी.. और चाइ का कप उठा लिया....

"शीनू.. बता ना.. ऐसा क्या सपना आया था रात को?" ऋतु ने चाइ की चुस्की लेते हुए पूचछा.. रोहन और रवि चुप चाप बैठे थे... रोहन रह रह कर तिर्छि निगाहों से नीरू को देख लेता था...

नीरू ने रात की बात का जिकर करने पर घूर कर ऋतु को देखा.. और फिर नज़रें झुका ली...

ऋतु ने अगली बार और भी ज़ोर देकर पूछा,"अरे.. बता ना यार.. हम सब जान'ने को बेकरार हैं.. कहीं तुझे रोहन की तरह ही तो कोई सपना नही आया था... तेरे सपने में देव आया था क्या?"

"पता नही.. अब तो मुझे कुच्छ याद भी नही है... पर हां.. कोई सपना ज़रूर आया था मुझे..." नीरू ने आख़िरकार रोहन के सामने ज़ुबान खोल ही दी...

"पर आपने हम सब के सामने रोहन को देव कहा था.. हम सबको अच्छि तरह याद है.." रवि ने संजीदगी से कहा....

"कब?" नीरू ने याद करते हुए पूचछा...

"तब, जब आप भाग कर इस'से लिपट गयी थी... मुझे तो 'देवदास' याद आ गयी थी उसी वक़्त.. मैं तो बस रोने ही वाला था..." रवि ने अपने चेहरे पर हाथ रख कर अपनी हँसी छिपाने की कोशिश की पर छिपा ना सका.. कुच्छ देर बाद ही उसके मुँह से ज़ोर का ठहाका गूँज उठा....,"हा हा हा हा हा"

अचानक नीरू के चेहरे पर शर्म की लाली झलकने लगी.. रवि की बात पर नाराज़ होने का दिखावा करते हुए उसने उठकर भागने की कोशिश की.. पर ऋतु ने उसका हाथ पकड़ कर वापस बैठा लिया.. रोहन ने प्यार से रवि के सर पर हल्का सा झापड़ मारा," सुबह सुबह उठते ही शुरू हो जाता है... वक़्त तो देख लिया कर..."

"ऐसे क्यूँ कर रही है शीनू..? कुच्छ तो बता.. कुच्छ तो याद होगा तुझे सपने के बारे में...!" ऋतु ने प्यार से पूचछा....

"मुझे तो बस इतना ही याद है कि सपने में कोई राजकुमारी पागल सी होकर रो रही थी.." नीरू को जो याद आया.. उसने बता दिया....

"और.. देव नही था प्रिया के साथ?" रोहन ने उत्सुक होकर पूचछा...

"नही.. हां.. याद आया.. राजकुमारी का नाम शायद प्रिया ही था.. वो एक दूसरी लड़की से बार बार देव के बारे में ही पूच्छ रही थी... और बुरी तरह रो रही थी..." नीरू ने आगे याद करते हुए बताया....

"क्या अब भी आपको रोहन की कहानी पर विश्वास नही है... ? क्या अब भी आप वापस जाने की ज़िद पर आडी रहेंगी...? आपको ऐसा सपना आना.. फिर रोहन को देखते ही नींद में उठकर इसकी ओर भागना... इसको देव कहना... मैं भी तो इसके साथ ही खड़ा था.. आपने मुझे देव क्यूँ नही कहा...? मुझे तो उस वक़्त को याद करके लगता है कि उस वक़्त खुद आप 'प्रिया' की तरह व्यवहार कर रही थी.. आप रो भी रही थी और रोहन को देव समझ कर इसकी ओर भागी भी थी... अब विश्वास ना करने को बचा ही क्या है?" रवि अब एक दम संजीदगी से अपनी बात कह रहा था....

"एक मिनिट फोन देना...!" नीरू ने रोहन से फोन लिया और अपने पापा के पास मिला लिया...

"पापा, मैं शीनू!" नीरू ने कहा...

पापा शायद ऑफीस के लिए निकल चुके थे.. ," हां.. बोल बेटी!"

"आप.. अब तक मुझसे नाराज़ हैं क्या?" नीरू ने रूखी आवाज़ सुनकर कहा....

"अरी बेटी.. छ्चोड़ अब उन्न बातों को.. वापस कब आ रही हो... 2 हफ्ते बाद ऋतु की शादी भी है.. तैयारियाँ भी तो करनी होंगी उसको...." पापा ने कहा....

"हां, पापा! हम आ जाएँगे.. आपसे एक बात पूच्छनी है..." नीरू ने कहा..

"हां.. पूच्छ!"

"वो.. आपने मेरा नाम बदलने के पिछे कारण बताया था ना...?" नीरू की बात को पापा ने बीच में ही काट दिया...

"अब ये क्या उठा लिया सुबह सुबह...?"

"नही पापा.. बस एक बात पूच्छनी है... वो आप कह रह थे मैं स्कूल में कोई नाम चिल्ला कर बेहोश हो गयी थी.. नाम याद है आपको?" नीरू ने डरते हुए पूचछा....

"अब... नाम कहाँ से याद होगा... 15 साल हो गये उन्न बातों को...!" पापा ने कहा...

"वो.. मैं यही पूच्छ रही थी.. कहीं मैने.... 'देव' तो नही कहा था..?" नीरू ने रुक रुक कर कहा...

"देव... अरे हां.. यही तो बताया था मुझे तुम्हारे प्रिन्सिपल ने... हां.. तुम 'देव' कहकर ही बेहोश हुई थी... पर तुम्हे कैसे याद है?" पापा ने चौंक कर गाड़ी को ब्रेक लगा दिए....

"याद नही है पापा.. आज फिर मुझे अजीब सा सपना आया था रात को.. और आज फिर मैं यही नाम चिल्ला रही थी...." नीरू आस्चर्य से रोहन की आँखों में देखने लगी....

"ओह माइ गॉड!" उस तांत्रिक ने सही कहा था.. पुराने नाम को हमेशा के लिए भूल जाने को.. तुमने फिर 'वो' नाम उखाड़ लिया बेटी.. क्यूँ किया तुमने ऐसा..? बार बार उस नाम के बारे में सोचने पर ही तुम्हे ऐसा सपना आया होगा.. मुझे चिंता हो रही है बेटी.. तुम घर आ जाओ जल्दी से!" पापा की आवाज़ से निराशा झलक रही थी...

"नही पापा.. ऐसी कोई बात नही.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ.. मैं शाम को फोन करती हूँ...." नीरू ने कहा और पापा ने 'ओ.के' कहने पर फोने काट दिया.....

"कोई परेशानी तो नही हुई ना बेटी?" रोहन के पिता जी सुबह आते ही सीधे नीरू और ऋतु से मुखातिब हुए...

"जी नही पा..पा जी!" नीरू ने सकुचाते हुए कहा....

"तू मुझे कुच्छ परेशान सी लग रही है.. क्यूँ चिंता करती है? मैं हूँ ना.. सब सेट कर दूँगा.." पापा ने प्यार से नीरू के सिर पर हाथ फेरा," ला.. मुझे अपने पापा का नंबर. दे.."

नीरू पापा की बात सुनते ही हड़बड़ा गयी," ज्जई.. पर.. क्यूँ?"

"अरे.. ऐसे क्यूँ घबरा रही है.. मैने कहा ना.. प्यार करने वाले कभी डरते नही.. तू रोहन से प्यार करती है ना?"

बेचारी नीरू उनके असीमित स्नेह के आगे अपने आपको बँधी हुई सी महसूस कर रही थी.. वो कुच्छ बोल ही नही पाई.. इस पर रोहन ने हस्तक्षेप कर दिया... ," पापा.. वो..."

"ओये.. तू कुच्छ मत बोल ओये.. ये बाप बेटी की आपस की बात है.. बता ना बेटी.. प्यार करती है ना मेरे रोहन से..." पापा ने रोहन को बीच में बोलने पर डाँट सा दिया...

नीरू से कोई जवाब देते नही बन रहा था.. उसने अपना सिर झुका लिया...

"मैं समझ गया.. ला अब जल्दी से पापा का नंबर. दे..." पापा जी ने प्यार से नीरू को कहा..

मरती क्या ना करती.. नीरू की कुच्छ समझ में ही नही आ रहा था कि करे तो क्या करे... उसने इसी उहापोह में नंबर. बता दिया...

"ये हुई ना बात.. नाम क्या है उनका?"

"जी.. श्री रंजीत सिंग..." अब नाम च्चिपाने से क्या होता.. नीरू ने वो भी बता दिया....

" गुड.. अब देखना मैं क्या जादू करता हूँ.. सब चुप रहना.." पापा ने खास तौर पर रोहन की ओर घूर कर चुप रहने का इशारा किया.. और नीरू के नंबर. बताते हुए उन्होने जो नंबर. अपने मोबाइल स्क्रीन पर नोट किया था.. उसको डाइयल कर दिया...

"हेलो.." उधर से नीरू के पापा की आवाज़ आई...

"हां.. रंजीते.. की हाल चाल हैं बादशाहो!" रोहन के पापा ने इस तरह से कहा.. मानो वो उन्हे बरसों से जानते हों..

"कौन बोल रहा है? सॉरी... मैने पहचाना नही यार...!" उधर से आई आवाज़ में हैरानी थी....

"अजी.. दुनिया इतनी छ्होटी भी नही है कि हर कोई एक दूसरे को पहचान जाए.. ये क्या कम बड़ी बात है कि मैं आपको जानता हूँ..!" रोहन के पिताजी ने हंसते हुए कहा...

"ठीक है भाई साहब.. बट सीरियस; मैने आपको पहचाना नही.. बताओ तो सही आप हैं कौन...?" उधर से उसी लहजे में पूचछा गया....

"भाई साहब, आइ'एम मिस्टर. सिंग फ्रॉम रोहन एस्टेट.. दरअसल मैने भी आपको अभी अभी जाना है..." रोहन के पिता जी संजीदा होते हुए बोले...

"भाई साहब.. इस वक़्त थोड़ा सा परेशान हूँ.. मैं आपसे बाद में बात करूँ?" नीरू के पिता जी की आवाज़ में हल्की सी झुंझलाहट थी...

"कोई गल नयी जी... अब तो बातें होती ही रहेंगी..." रोहन के पिता जी ने रोहन की और आँख दबाई और एक पल मुस्कुरकर फिर सीरीयस हो गये," मैने तो बस इसीलिए फोन किया था कि आप बिल्कुल भी चिंता ना करें... आपकी बेटी मेरे लिए रोहन से बढ़कर है...!"

"व्हाट? हू आर यू?.. मेरी बेटी कहाँ हैं?" नीरू के पापा चौंकते हुए कुर्सी से खड़े हो गये," कौन रोहन?"

"ओह्ह.. तो आप को कुच्छ नही पता क्या? मुझे लगा मेरा बेटा पहले वहीं मोहब्बत के बागी झंडे गाड़ कर आया होगा... खैर.. कोई बात नही.. मैं उनसे पूरी डीटेल लेकर फिर फोन करता हूँ...." कह कर रोहन के पिता जी ने तपाक से फोन काट दिया...." ये क्या है यार..? पूरी बात तो बता देते पहले.."

आप सुनेंगे तभी तो.. हमें बोलने ही कब दिया आपने.. यहाँ आने के बाद!" रोहन बुरा सा मुँह बनाकर बोला.. नीरू तो जैसे रोने ही वाली थी....

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उधर हैरान परेशान नीरू के पिता जी ने तुरंत मानव के पास फोन मिलाया...

"प्रणाम अंकल जी!"

"प्रणाम बेटा.." कहाँ..? .. थाने में ही हो क्या?" पापा ने हिचकते हुए पूचछा...

"नही अंकल जी.. मैं तो लंबी छुट्टी पर आ गया हूँ.. कोई काम है क्या?"

"नही.. कुच्छ खास नही.. थाने का नंबर. देना एक बार..." पिता जी ने कहा....

"कुच्छ परेशानी है क्या अंकल जी...?" मानव ने पूचछा...

"नही बेटा.. बस यूँही छ्होटा सा काम है... तुम मुझे थाने का नंबर. दे दो..." पापा को उसको फिर से नीरू के बारे में ऐसी बात करना अच्च्छा नही लगा...

"लिख लो अंकल जी.. थाने में नये इनस्पेक्टर आए हैं.. मिस्टर. गिल.. थोड़े से मूडी टाइप के हैं.. मैं उनको फोन कर दूँगा.. आप भी मेरा जिकर कर देना...." मानव ने नंबर. नोट करवाया और बाइ करके फोन काट दिया.....

"हूंम्म्म... तो ये बात है... तुम लोग इन बेचारियों को बहला फुसला कर ले आए हो!" पापा ने घूर कर रोहन और रवि की ओर देखा....

"नही पापा.. बहला फुसला कर कहाँ...आप तो ऐसे ही... आप पूच्छ लो इनसे..!" रोहन ने मरा सा मुँह बनाकर कहा...

"तू चुप कर अब.. मुझे मेरी बच्चियों से पूच्छ लेने दे.. हां बेटी.. तुम बोलो.. सच क्या है?" पापा ने नीरू की और देखते हुए प्यार से पूचछा....

रोहन की शकल देख कर नीरू की इस सिचुयेशन में भी हँसी छ्छूट गयी.. बेचारे पर कितना गंभीर आरोप लगा दिया पापा ने..," नही पापा वो... मैं ही इनको... मतलब हम दोनो अपनी मर्ज़ी से इनके साथ आए थे...!" कहकर नीरू ने नज़रें झुका ली....

"मतलब तुम चाहती हो.. इस लल्लू से शादी करना?" पापा ने प्यार से ही पूचछा..

नीरू ने सिर झुकाए हुए ही अपने हाथों की अंगुलियों को बाँध लिया.. वो कुच्छ बोल नही पाई...

"बोलो बेटा.. तुम चिंता मत करो.. अगर तुम नही चाहती तो मैं तुम्हारे पापा से अपने बेटे की करतूत के लिए माफी माँग कर अभी तुम्हे वापस छ्चोड़ने चल पाड़ूँगा...

"हां.. मतलब.. नही.. इसमें इनकी कोई ग़लती नही है.. पापा.. पर मैं कुच्छ फ़ैसला नही कर पा रही हूँ.. पर मुझे 'ये' पिच्छले जनम की बातें सच लग रही हैं.." नीरू समझ नही पा रही थी कि क्या कहे और क्या नही.. वह अपने आपको बड़ी ही असमन्झस में महसूस कर रही थी.....

"छ्चोड़ो ना बेटी, पिच्छले जनम की बातों को.. सबसे पहले तो वर्तमान के बारे में सोचो.. आख़िर तुम्हे तो ये जीवन गुजारना है ना.. सबसे पहले तो ये सोचो की इस जनम में ये तुम्हारे लायक है या नही..." पापा अचानक गंभीर हो गये....

"ज्जई.. वही मैं सोच रही हूँ.. पर फ़ैसला नही कर पा रही हूँ.. मैं खुद को थोड़ा वक़्त देना चाहती हूँ.. !" नीरू ने हड़बड़कर कहा...

"कोई और पसंद है तुम्हे?" पापा ने पूचछा...

नीरू ने तुरंत उनकी आँखों में आँखें डाल ली.. कम से कम इस बात का जवाब तो उसने पूरे आत्मविश्वास से दिया," नही पापा.. मैने तो आज तक कभी इस बारे में सोचा तक नही.. शायद ये मेरे पास ना आते तो मैं कभी शादी करती ही नही...!"

"हूंम्म.. मतलब ये तुम्हे थोड़ा बहुत तो पसंद है ही.." पापा ने मुस्कुराते हुए उसको देखा....

नीरू के मंन में उसी पल अपनी एक अलग सी छवि कौंध गयी.. उसने तुरंत रोहन की आँखों में झाँका.. जाने अंजाने में ही उसको रोहन की आँखों में प्रिया का देव दिखाई दिया... वो ज़्यादा देर तक रोहन से नज़रें ना मिला पाई.. पर इन्न दो पलों के लिए ही आँखें चार होने ने पापा को उनकी बात का जवाब मिल गया...

"देखो बेटी.. तुम दिल और दिमाग़ दोनो खोल कर फ़ैसला करो.. इसकी बातों में मत आना.. ये तो बचपन से ऐसा ही है.. खोया खोया सा.. हमेशा मुझे इसकी आँखों में देख कर महसूस होता था.. जैसे इसका कुच्छ खो गया है.. और उसको ही हर वक़्त, हर जगह.. ढूंढता रहता था... "

पर ये क्या ढूँढ रहा है.. इसने कभी किसी को बताया ही नही... शायद इसको खुद ही मालूम नही था... पर कल... पहली बार.. इसको देख कर मुझे लगा कि.. इसको अपनी मंज़िल मिल गयी है.. अगर सपनों की बात पर भरोसा करें तो अब तो यही लगता है कि तुम ही इसकी जिंदगी से कभी अचानक गायब हो गयी होगी.. तुम्हे ही ढूंड रहा होगा ये..."

बोलते हुए पापा की आँखों से आँसू छलक उठे..," पर तुम इसकी परवाह मत करना बेटी.. पहले अपने बारे में सोचना.. तभी शायद ये भी पूरी तरह से खुश रह पाएगा.. दूसरों को दुखी देखना भी इसके बस की बात नही है.. और तुम्हे तो ये कभी देख ही नही पाएगा.. ऐसा लगता है..."

पापा बोलते ही जा रहे थे कि अचानक उनके फोन पर आई कॉल से उनका ध्यान बँट गया... उन्होने नंबर. पहचान लिया.. कॉल नीरू के पापा की थी....

"हांजी रंजीत सिंग जी!"

"देखिए.. मुझे आप एक समझदार आदमी लग रहे हैं.. इसीलिए मैने पहले आपको फोन करने की सोची.. वरना मैं तो पोलीस रिपोर्ट करवाने जा रहा था.. आप बताइए ये क्या तमाशा हो रहा है...?" नीरू के पापा की गुस्से से भारी आवाज़ आई...

रोहन के पापा उठ कर अपने कॅबिन में आ गये," देखिए सिंग साहब! यहाँ कोई तमाशा नही हो रहा.. बच्चे अपनी जिंदगी का सबसे महत्तव्पूर्न फ़ैसला लेना चाह रहे हैं.. और उन्हे पूरा अधिकार भी है इस बात का... हम और आप बीच में पड़ने वाले कौन होते हैं भला?"

"वॉट रब्बिश? मैं शीनू का पापा हूँ.. और आप पूच्छ रहे हैं की मैं कौन होता हूँ बीच में पड़ने वाला....!" नीरू के पापा का लहज़ा और गरम हो गया..

रोहन के पापा ने हुलके से मज़ाक के साथ माहौल को ठंडा रखने की कोशिश की.. वो हंसते हुए बोले," देखिए साहब.. मैं भी रोहन का पापा हूँ.. और.. मेरे पास सर्टिफिकेट भी है इस बात का.. हा हा हा!"

पर इस मज़ाक से नीरू की पिताजी के कलेजे को कोई ठंडक नही पहूंची,"आप बातों को मज़ाक में ना उड़ायें..! मेरी बेटी को आप इस तरह कैसे अपने साथ रख सकते हैं?.. इट'स.. इट'स जस्ट लाइक किडनॅपिंग.. यू नो?"

"किडनॅपिंग? शांत हो जाइए सर.. आपको दरअसल पूरी बात का पता नही है.. मेरा रोहन और आपकी नीरू एक दूसरे से प्यार करते हैं.. एक दूसरे से शादी करने की सोच रहे हैं वो.. दोनों बालिग हैं.. इसमें किडनॅपिंग कहाँ से बीच में आ गयी?" रोहन के पापा ने संयमित भाव से कहा....

"मेरी बेटी और प्यार? आर यू जोकिंग और वॉट मिस्टर. सिंग? वो कभी इस तरह की बातें सोचती तक नही.. मुझे अपनी बेटी के बारे में पूरा पता है...!" नीरू के पिता जी बोले....

"सिंग साहब! यही वो लम्हे होते हैं जब हम अपने बच्चों के उपर अपनी सोच थोप कर उन्हें अपने आप से दूर कर लेते हैं... ये हम तय नही कर सकते कि उन्हे कब और किस तरह जीना चाहिए.. खास तौर से तब.. जब वो अपनी जिंदगी का सबसे अहम फ़ैसला ले रहे हों.. ये प्यार है सिंग साहब! कोई मज़ाक नही... अगर हमने यहाँ उनके दिल की बात नही सुनी तो ना सिर्फ़ हम ही उन्हे खो देंगे... बुल्की वो भी.. वो खुद भी सारी उमर कुच्छ ढ़हूँढते से रहेंगे.. जो कभी उन्हे दोबारा नही मिल सकता... आप समझ रहे हैं ना?" रोहन के पापा बात करते हुए जाने किस अतीत में खोते चले गये...

"मैं समझ रहा हूँ यार... पर!" जाने कौन सी बात नीरू के पापा के दिल में चुभि कि उनका लहज़ा एक दम नरम पड़ गया....

"पर क्या यार?.. ठंडे दिमाग़ से सोच कर देखो.. यहाँ नीरू भी मेरी बेटी की तरह ही है.. बुल्की उस'से भी बढ़ कर... आप बस मिलने का टाइम बताइए.. मैं आता हूँ आपके पास!" रोहन के पापा ने बात को निष्कर्ष तक ले जाने की कोशिश की....

"यार मैं अपनी बेटी को अच्छे से जानता हूँ.. उसके लिए प्यार मोहब्बत का कोई मतलब ही नही है.... वो तो.. निहायत ही शरीफ और भोली है...!" नीरू के पापा के तर्क आख़िरी साँस ले रहे थे....

" हां शरीफ है.. तभी तो मैं उसको अपने घर में लक्ष्मी के रूप में लाला चाहता हूँ.. पर शरीफ लोग क्या प्यार नही करते? एक बात बताउ सिंग साहब.. मेरी माता जी आख़िरी दम तक यही सोचती रही थी कि मैं एक दम भोला हूँ.. मुझे इन्न बातों के बारे में कुच्छ नही पता.. जबकि मेरे तीनों बच्चे पैदा हो चुके थे.. हा हा हा!" रोहन के पापा की इस बात पर नीरू के पापा भी खिलखिलाए बिना नही रह सके.. शायद उनकी माता जी भी यही सोचती होंगी

"इट'स ओ.के. सिंग साहब! मैं आपसे मिलने की सोचता हूँ... पर क्या आप.. शीनू से बात करा देंगे एक बार...?" नीरू के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा.....

"क्यूँ नही यार? एक मिनिट.. नीरू बेटी.. ये लो.. पापा से बात करो!" बाहर आकर पापा ने नीरू को फोन दे दिया...

नीरू ने काँपते हाथों से फोन कान से लगाया...," हां.. पा.. वो...!"

"तू खुश है ना बेटी..?" पापा ने प्यार से सिर्फ़ इतना ही पूचछा....

"हाँ.. वो.. सॉरी पापा.. मैं...!" नीरू अब भी घबराई हुई थी....

"सॉरी को मार गोली यार.. तू आराम से वहीं रह.. तेरे ससुर जी एकदम मस्त आदमी हैं.. चिंता मत कर.. मैं आ रहा हूँ.. एक दो दिन में.. और कुच्छ बात हो तो बोल..?"

"थॅंक यू पापा!" नीरू के इन्न तीन शब्दों ने ही उसके पापा की आँखों को आँसुओं से तर कर दिया....

"आइ लव यू बेटा! चिंता मत कर.. मैं तेरे साथ हूँ!"

क्रमशः ........................................


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:10

अधूरा प्यार--27 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ..................................

"तू सोच क्या रही है शीनू? कम से कम मुझे तो खुल कर बता दे..." परेशान सी ऋतु ने अकेले होते ही नीरू से पूचछा...

".....आए ऋतु! मुझे शीनू मत बोल!" नीरू ने थोड़ी देर रुक कर कहा....

"हे भगवान! और तुझे मैं क्या बोलूं? अब ये नाम भी चेंज करेगी क्या?" ऋतु ने अपने माथे पर हाथ मार कर कहा....

"हां.. वापस वही रखूँगी... नीरू!" नीरू ने सहजता से कहा....

"तू मेरा दिमाग़ खराब मत कर यार.. पहले सही सही बता तूने सोचा क्या है.. रोहन के बारे में..." ऋतु ने ज़ोर देकर पूचछा...

"पता नही..." कहकर नीरू बेडरूम की छत की तरफ देखने लगी...

"पता नही मतलब? तुझे नही पता तो और किसको पता होगा... ये नाम फिर से क्यूँ बदल रही है तू?" ऋतु की कुच्छ समझ नही आ रहा था कि नीरू आख़िर सोच क्या रही है.....

"यार..." नीरू ने बीच में एक लंबी साँस ली..," आज सुबह से ही पता नही कैसे कैसे अहसास हो रहे हैं.. रात को मैने जो सपना देखा था.. वो टुकड़ों में रह रह कर इस तरह याद आ रहा है जैसे.. जैसे मेरे साथ कुच्छ आज कल में ही हुआ हो.. बहुत बुरा.. कभी मेरे मंन में आता है कि जैसे मुझे पता नही क्या मिल गया... अचानक ही लगता है जैसे मेरा कुच्छ खो गया है.. बहुत प्यारा...."

"रह रह कर मन में जाने कैसी लहरें सी उठ रही हैं.. मैने सपने में.. राजकुमारी का रोना देखा था.. सुबह से लेकर अब तक मुझे कयि बार ऐसा सा लगा है जैसे... वो राजकुमारी अब भी मेरे भीतर रो रही है.. किसी को पुकार रही है..."

"कभी लगता है कि देव राजकुमारी को वादा करके गया है.. लौट कर आने का... ख़याल आता है जैसे उसने वादा राजकुमारी से नही.. मुझसे किया हो.. बड़ा अजीब सा फील हो रहा है यार..."

"ऐसा लगता है जैसे वो राजकुमारी मैं ही हूँ.. पता नही क्यूँ? पर मन ही मन जैसे मैं अब भी देव को पुकार रही हूँ... कुच्छ तो बात है ऋतु.. कुच्छ तो बात है..."

"वो तो मैं भी कह रही हूँ कि कुच्छ तो है.. पर तूने सोचा क्या है.. ये तो बता दे मेरी अम्मा!" ऋतु ने उसको बोलते हुए टोक दिया...

"मैने सोचा है कि जो होता है होने दूँ... ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा.. सोच सोच कर पागल ही हो जाउन्गि ना.. पर वो भी यूँ बीच भंवर में फँसे रहने से तो बेहतर ही होगा.. मैं जान'ना चाहती हूँ.. देव को किसने मार दिया? मैं जान'ना चाहती हूँ.. कि राजकुमारी के साथ फिर हुआ क्या? ... एक बात और.. जिस लॉकेट के बारे में रोहन ने जिकर किया था कि मेरा 'दिल' उसमें अटका हुआ है.. मुझे ये भी याद आ रहा है कि आख़िरी बार जाते हुए देव ने राजकुमारी को एक लॉकेट दिया था.. अगर पूरी बात का पता नही चला तो मैं तो सोच सोच कर ही पागल हो जाउन्गि... पता नही क्या हो रहा है मुझे....?" नीरू बोल कर रुक गयी...

ऋतु पूरी कहानी जान'ने को बेचैन सी हो गयी," सपने में तूने जो कुच्छ देखा है.. वो कितना याद आ गया है..?"

"हूंम्म... राजकुमारी ने देव को पहली बार कहाँ देखा.. ये याद आ रहा है.. देव की शकल याद आ रही है... राजकुमारी भेष बदल कर देव के घर गयी थी.. वहाँ खाना खाया था... फिर... एक मिनिट.. सोचने दे मुझे..." नीरू ने आँखें बंद कर ली....

"कैसा था देव.. दिखने में.." ऋतु से रहा ना गया...

"तू अपने मानव के बारे में सोच.. मेरे देव के बारे में क्यूँ पूच्छ रही है..." कहकर नीरू हँसने लगी....

"ओहू.. बड़ी आई राजकुमारी...!" ऋतु नीरू पर व्यंग्य करके खिलखिला कर हंस पड़ी... फिर अचानक सीरीयस होकर बोली..," तू ढंग से सारा सपना याद कर ले.. फिर डीटेल में सुनाना... मैं उनको बुला लाउ ना?"

"हूंम्म... ठीक है.. 10-15 मिनिट के बाद बुला लेना... तब तक चुप बैठ जा.. मुझे याद करने दे..." कहकर नीरू आँखें बंद करके लेट गयी....

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"बुला लाउ अब? 20 मिनिट हो गये....." ऋतु 20 मिनिट तक चुप चाप बैठी रही थी...

"ष्ह्ह्ह्ह्ह्ह....." नीरू ने अपने होंटो पर उंगली रख कर ऋतु को चुप रहने का इशारा किया... उसके हाव भाव से ऐसा लग रहा था जैसे.. उसको सपना याद आ रहा है... या फिर सपने से भी आगे का कुच्छ....

ऋतु स्तब्ध सी उसके पास बैठी उसको देखती रही... नीरू के चेहरे के भाव पल पल बदलने लगे.. ऋतु चुप चाप उठी और रोहन और रवि को बेडरूम में बुला लाई....

...............................................

"सुनो.. सुनो.. सुनो.. राज्य के सभी निवासियों को सूचित किया जाता है कि महाराज वेदवरत के मैत्री प्रस्ताव को ठुकराने वाले... दोनो राज्यों की जनता को युद्ध की आग में झौंकने वाले... और.. राजकुमार अभिषेक सहित हज़ारों सेनिकों के कतल के दोषी होने के कारण; मौत की सज़ा को निसचीत जान कर राजा वीर प्रताप आत्महत्या कर चुके हैं. महारानी ने भी आत्मदाह कर लिया है... राजकुमार यूधभूमि में मारे गये हैं..; आज से इस राज्य की बागडोर यससवी महाराज वेदवरत के आशीर्वाद से सेनापति कुँवरपाल के हाथों में है....कल महाराज वेदराट उनके राज्याभिषेक के लिए राज्य में पधार रहे हैं.. सुनो सुनो सूनो...."

बदहवास सी भागी भागी राजमहल में आई लता को द्वार पालों ने बाहर ही रोक लिया," रूको!!! अंदर जाने की आग्या किसी को नही है!"

"परंतु.. परंतु मेरा राजकुमारी से मिलना आती अनिवर्य है... अभी और इसी समय....!" लता के चेहरे पर भय सपस्ट द्रिस्तिगोचर हो रहा था...

"राजकुमारी प्रियदर्शिनी अब राजा कुँवरपाल के आदेशानुसार राजमहल में बंदिनी के तौर पर हैं.. और उनके आदेशानुसार उनसे मिलने की इजाज़त किसी को नही दी जा सकती...." द्वारपाल ने दोहराया....

अचानक अंदर टहल रहे पूर्व सेनापति और अब यहाँ के राजा, कुँवरपाल का ठहाका गूँज उठा...," हा हा हा हा हा! राजकुमारी की सखी! आने दो इसको अंदर.. शायद इसी की बात पर विश्वास करके राजकुमारी हक़ीक़त के धरातल पर वापस आ जायें.. वो अब भी देव का इंतजार कर रही है.. हा हा हा.. जाओ.. और जाकर उसको सच्चाई से अवगत करा दो.. बता दो उसको कि देव को हमने इस दुनिया से मिटा दिया है.. अब वो अपना पागलपन छ्चोड़ें और महाराज वेदवरत की पत्नी बन'ने के लिए अपने आपको मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर लें... महाराज उसको पलकों पर बिठा कर रखेंगे.. आख़िर वो भिक्षुक योगी उसको दे ही क्या सकता था, जो वो नही दे पाएँगे!"

द्वारपालों ने उसको अंदर जाने दिया... भागती हुई जाकर लता कुनरपाल से कुच्छ आगे जाकर रुक गयी," कहाँ हैं राजकुमारी जी?"

"वो अपने शयन कक्ष में ही हैं.. ध्यान रहे.. महल में चप्पे चप्पे पर हमारे गुप्चर निगाह रखे हुए हैं.. किंचित भी चालाकी करने की कोशिश की तो इनाम सज़ा-ए-मौत होगा!.. जाओ.. जाकर समझा दो उसको.. पागलपन एक हद तक ही सहन किया जा सकता है.. जो जा चुका है.. रह रह कर उसका ढोल पीटने से वो वापस नही आ जाएगा....!" कुँवरपाल उत्साह में मगन होकर बोल रहा था....

लता ने नज़रें झुकाई और फिर शयन कक्ष की और दौड़ पड़ी.. शयन कक्ष के बाहर खड़े पहरेदारों ने एक बार फिर उसका रास्ता रोक लिया....," अंदर जाने की इजाज़त किसी को नही है...!"

"म्म.. मुझे.. सीसी.. राजा कुँवरपाल ने राजकुमारी के पास जाने की आग्या दी है..." लता ने जवाब दिया... पहरेदारों ने एक दूसरे की नज़रों में देखा और उसको अंदर जाने दिया.....

"लताअ!" बेचैन सी बैठी राजकुमारी ने जैसे ही लता को देखा.. उसकी आँखों से अश्रु धारा उमड़ पड़ी," तू कहाँ थी अब तक..? हम कब से तेरा इंतजार कर रहे हैं.. देख ना! हमें हमारे देव से दूर रखने के लिए पिता श्री कैसी कैसी चाल चल रहे हैं.. .. मैं जानती हूँ कि देव के शौर्या से हम अब तक विजय श्री का दामन चूम चुके होंगे... पर हूमें जाने क्या क्या बताया जा रहा है.. पिता श्री और माता श्री हमारे सामने नही आ रहे.. वो कुंवर कहता है.. कि देव.. मेरा देव... तू बता ना.. पूरी बात.. हमें बाहर भी निकलने नही दिया जा रहा... बता ना सखी.. मेरा देव.. और कितना इंतजार करवाएगा...? और कितना तडपाएगा हमें.. अपने दर्शन देने से पहले...!"

लता की नज़रें झुक गयी.. एक लंबी सी आ टीस बनकर उसके सीने से निकली.. राजकुमारी की हालत देख कर वह रो भी नही पाई...," आप यहाँ से निकलो राजकुमारी.. अपने कपड़े मुझे दो!"

"नही.. हमे तेरे मुँह से पूरी बात सुने बगैर चैन नही आएगा.. और देव के आए बगैर हम यहाँ से जाने वाले नही हैं... उन्होने हमें इंतजार करने को कहा था... तू पूरी बात बता ना... जितनी खूबसूरती से तू उनकी बहादुरी की व्याख्या करती है.. और कोई नही कर सकता... तू जल्दी से हमें सब सच सच सुना दे.. अगर पितश्री को पता चल गया कि तू आई है.. तो वो तुझे यहाँ नही रहने देंगे..."

लता के चेहरे पर मौत से भी भयावह सन्नाटा पसरा हुआ था," राजकुमारी जी.. युद्ध में देव को परास्त करना शायद खुद देवो के वश में भी नही होता.. देव युद्धभू..."

लता को राजकुमारी ने बीच में ही टोक दिया.. उत्साहपूर्ण निगाहों से उसको देखती हुई उसके पास सरक कर वह बोली..," आ सखी.. 'मेरा देव' बोल के बता ना! हमें बड़ा प्यारा लगता है जब तू ऐसे बोलती है..."

लता की आँखों से आँसू थम ही नही रहे थे.. पर प्रेम पीपसी प्रिया इस आँसुओं का अर्थ नही समझ पा रही थी..," हां राजकुमारी जी.. आपका देव पूरी रणभूमि में..... ऐसे छाया हुआ था .....जैसे...... सारी दुश्मन सेना को वो 'वीर' अकेला ही स्वाहा कर देगा.. गगन में एक सुर्य के समान अकेला ही 'देव' दुश्मन सेना का कलेजा चीरता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था.. किसी में उसका सामना करने की हिम्मत नही थी...

मूर्ख अभिषेक अपनी सेना में मची भगदड़ को देख बिलबिलता हुआ देव के सामने आ गया," क्यूँ रे? एक 'खेल' में विजयी क्या हो गया.. तूने तो बड़े बड़े खवाब देखने आरंभ कर दिए... युद्ध में आकर 'अभिषेक' को ललकार्ने की जुर्रत तुझ जैसा कोई 'मूर्ख' ही कर सकता है... हमारी सेना को छिन्न भिन्न करके तू ये मत समझना कि तू 'योद्धा' हो गया है.. युद्ध में तो हमारे सामने तू नादान ही है.. 'मूर्ख' समझ कर मैं तुझे यह बता देना चाहता हूँ की मेरी लड़ाई तेरे राज्य के खिलाफ नही है... हमारा लक्ष्या सिर्फ़ राजकुमारी को हासिल करना है... और अगर तू हमारे रास्ते से हटकर अपनी जान बचाना चाहे तो हम तुम्हे अभयदान दे सकते हैं... जा 'चला' जा!"

"आपके देव के चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी मुस्कान तेर उठी..,"मेरी तरफ से दी गयी ये आख़िरी चेतावनी समझना राजकुमार... मैं भी आपका राज्य जीतने नही.. अपने राज्य की 'आन' जीतने के लिए यहाँ आया हूँ... मेरी तुमसे या युद्ध में हमारे खिलाफ लड़ रहे किसी सैनिक से कोई दुश्मनी नही है.... तुम्हारी सेना भाग रही है.. और तुम देख रहे हो कि हमारी सेना किसी की पीठ पर वार नही कर रही....तुम्हारे पास भी मौका है... तुम अभी भी वापस जा सकते हो.. !"

"अपनी हार सामने जान कर बौखलाया हुआ अभिषेक देव की ओर लपका.. और पलक झपकते ही देव की सनसनाती हुई तलवार हवा में द्रुत गति से लहराई .. अभिषेक दिग्भ्रमित सा हो गया.. पगलाया हुआ सा वह अपने आपको बेबस सा जान कर हवा में यूँही वार पर वार करने लगा.. जैसे ही वा देव के नज़दीक आया.. उनकी तलवार लहराई और अभिषेक का सिर उनके धड़ से दूर जा गिरा...."

"उसके बाद तो बचे हुए सैनिक भी मैदान छ्चोड़ कर भागने लगे.. और मैदान खाली होने से स्वत ही महाराज वेदवरत का सामना आपके देव से हो गया.. महाराज ने एक बार देव की 'खून' से सनी तलवार की ओर देखा और फिर देव के 'रौद्रा' रूप धारण किए हुए चेहरे को.. अचानक उनकी नज़र नज़दीक ही अभिषेक के 'सिर' कटे धड़ पर पड़ी और भय से वह काँपने सा लगा... अगले ही पल उसने 'सारथि' को उल्टी दिशा में भागने को बोल दिया... तभी किसी ने देव को सूचना दी कि महाराज वियर प्रताप' घायल हो गये हैं...

देव सब कुच्छ छ्चोड़ कर तुरंत महाराज के पास पहुँचे ही थे कि पूर्वा सेनापति 'कुँवरपाल' उनके सामने आकर क्षमा याचना करते हुए अपने प्राणो की भीख माँगने लगा....

"सेनापति देव! हमें अच्छि तरह मालूम है कि हमारा गुनाह-ए-गद्दारी किसी सूरत में 'सज़ा-ए-मौत' से कम के लायक नही है.. फिर भी.. मैं आपके चरनो में गिरकर प्राण-रक्षा की भिक्षा माँगता हूँ.. मुझे अभयदान दें.." उसने अपने घोड़े से उतर कर देव के चरण पकड़ लिए....

"माफी तुम्हे राज्य से माँगनी चाहिए कुँवरपाल.. मैं तो महाराज की ओजस्वी सेना का एक अड़ना सा सैनिक हूँ.. और अपने राज्य का एक देशभक्त नागरिक.. तुम देश द्रोही हो.. राज्य ही तुम्हारे बारे में फ़ैसला करेगा..." देव ने बेहोश पड़े महाराज को उठाने की कोशिश करते हुए कहा...

"तब भी.. मैं यहीं पासचताप करना चाहता हूँ सेनापति! मुझे आदेश दीजिए..." कुंवर देव के चरणों में नतमस्तक सा हो चला था...

"हुम्म.. आप खुद सेना के सेनापति रहे हैं कुँवरपाल जी.. आपको आग्या लेने की आवश्यकता क्या है? दुश्मन सेना भाग रही है.. मुश्किल से 'वो' अपनी सेना के आधे ही अब बचे हैं.. आप जाकर सेना को संभालिए... मैं महाराज को राजमहल छ्चोड़ कर आता हूँ..." कहकर देव जैसे ही महाराज को संभालने के लिए मुड़ा.. कायर और कपटी 'कुँवरपाल' ने देव की पीठ में खंजर भोंक दिया...

"अया...." राजकुमारी ने ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे खंजर देव की नही.. उनकी पीठ में भोंका गया हो..," हां.. हमने देखा था उनका घाव... फिर क्या हुआ लता?" राजकुमारी असहाया सी होकर तड़प उठी....

"वो मामूली घाव नही था राजकुमारी.. उनके शरीर के आर पार हो गया था.. शायद उनको उसी वक़्त अहसास हो गया था की...." लता आगे ना बोल सकी...

"क्क्या.. बकवास कर रही है तू.. क्या अहसास हो गया था उनको.. ? मुझे तुझसे ये उम्मीद नही थी.. तू भी पिता श्री के दिए लालच में आख़िर आ ही गयी.... मैने कभी ना सोचा था कि चंद स्वर्ण मुद्राओं के लालच में तू भी मुझे दिग्भ्रमित करेगी.. मेरे देव से मुझे दूर करने के लिए...." राजकुमारी विचलित और क्रोधित होते हुए बोली....

लता कुच्छ नही बोली.. बस उसकी आँखों से दो आँसू लुढ़क कर प्रिया की हथेली पर जा गिरे...

"हमें डराना चाहती है ना.. देव आने ही वाला है ना.. देख... देख.. तू जल्दी से बोल दे.. वरना हम... हम महाराज से तेरी शिकायत करेंगे... हम... देव को भी बता देंगे......"

"लाताआ! तू बोलती क्यूँ नही.. क्या हो गया है तुझे....?" प्रियदर्शिनी अचानक चिल्ला उठी....

"अब... अब बोलने को रह ही क्या गया है राजकुमारी... महाराज... नही रहे.. राजकुमार नही रहे... कुमार दीक्षित का पता नही चल रहा....महारानी ने ..... आत्मदाह कर लिया... " लता के आँसू थमने का नाम नही ले रहे थे.... वह बीच बीच में सिसकियाँ सी लेकर बोल रही थी,"देव...."

"नही.. नही... देव के बारे में हम तेरी कोई बकवास नही सुनेंगे... देव को कोई नही हरा सकता... देव को हमसे कोई नही छ्चीन सकता.. देव सिर्फ़ हमारा है... पिता श्री नही रहे तो क्या हुआ? अब देव ही इस राज्य के राजा हैं... आने दो देव को.. हम तेरी शिकायत उनसे करेंगे... " बोलते बोलते राजकुमारी थक गयी और कुच्छ रुक कर फिर बोलने लगी..,

" बता दे ना सखी.. तू हमें तडपा क्यूँ रही है.. अभी तो तू हमारे देव के अद्वितीया शौर्या के बारे में सुना रही थी.. तू बता रही थी ना.. देव युद्ध भूमि में इस तरह छाया हुआ था, मानो.. मानो सारी दुश्मन सेना को अकेले ही स्वाहा कर देगा.. तू ही बता रही थी ना कि कैसे दुश्मन देश का राजा उनके सामने आने से कतरा रहा था... और देव के सामने आते ही भाग खड़ा हुआ था.... तूने ही तो बताया था कि दुष्ट अभिषेक का सिर किस तरह हमारे देव के एक ही वार में कयि गज दूर जाकर गिरा था.... देव तो अपराजय है ना सखी... तू ही तो कल बता रही थी... उनका कोई कैसे सामना कर सकता है.. उनको कोई कैसे मार..... नहियीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"

"संभलो.. अपने आपको.. राजकुमारी! सबसे पहले यहाँ से निकलो आप.. वो दुष्ट वेदवरत अब आपको अपनी रानी बनाने की लालसा लिए हुए है... आप यहाँ से निकलो जल्दी.." लता भी उसके साथ ही रो रही थी....

"हमारा विवाह तो हो चुका है लता... जनम जनम के लिए.. हमारे देव के साथ! सुना है कि इस जीवन के उस पार भी जीवन होता है.. अगर ऐसा सच है तो देव वहाँ हमारा इंतज़ार कर रहा होगा... मेरा तो कब से सब कुच्छ उनका हो चुका है लता! अगर वो अब इस दुनिया में नही हैं, तो मेरे प्राण अभी तक मेरे शरीर में कैसे हैं.. नही नही... तू झूठ बोल रही है.. वो अभी यहीं हैं.. ये देख.. उन्होने खुद को 'हमारे' हवाले कर दिया था..." प्रिया अपने गले से 'देव' का दिया हुआ ताबीज़ निकलते हुए बोली...," ये देख.. ये रहा मेरा देव.. देव ने भगवान को अपना सब कुच्छ देकर हमें माँग लिया था... भगवान ऐसा निस्तूर कैसे हो सकता है लता... भगवान हमें अलग अलग कैसे रख सकता है... कह दे की सब कुच्छ झूठ है.. कह दे ना सखी..." प्रिया के आलाप से राजमहल की दीवारें भी मानो भरभरा सी गयी हों.. उसका क्रंदान दूर दूर तक सुनाई पड़ रहा था....

तभी शयन कक्ष में कुँवरपाल ने तालियाँ बजाते हुए प्रवेश किया," वाह! क्या प्रेम है..? मृत्यु जैसे शाश्वत सत्य को भी स्वीकारने से इनकार कर रहा है प्यार! वाह..! तो 'ये है तुम्हारा देव!"

कुँवरपाल ने पास आकर प्रिया के हाथों से ताबीज़ लगभग छ्चीन ही लिया.....

"इसको अपने पापी हाथों से छ्छू मत दरिंदे.. वरना इसके तेज की अग्नि से भश्म होते तुझे देर ना लगेगी... 'मेरा' देव मुझे वापस कर.. मेरा देव मुझे लौटा दे..." राजकुमारी उस'से ताबीज़ छ्चीन'ने के प्रयास में जैसे ही शैया से उठी.. ज़मीन पर गिर गयी.. जान जैसे बची ही ना थी.. उसके शरीर में.. सिर्फ़ चंद आहें बची थी.. जो रह रह कर अपने 'देव' को पुकार रही थी....

"अच्च्छा? ज़रा देखें 'तुम्हारे' देव के 'तेज' की अग्नि को... देखें कितनी उष्मा सहन कर पता है ये....?" अट्टहास सा करता हुआ कुँवरपाल रसोई गृह की तरफ चल दिया जहाँ कल के सार्वजनिक शाही भोज के लिए एक विशालकाय भत्ती तैयार की गयी थी... प्रिया गिरते पड़ते उसके पिछे पिछे जा रही थी....

"ये ले! उष्मा को उष्मा में स्वाहा कर दिया... अब तो ये मुझे भश्म नही करेगा ना.. हा हा हा....." कुँवरपाल ने ताबीज़ को भत्ति में फैंक दिया...

पर प्रिया को तो जैसे उसकी बातों से सरोकार ही नही था.. उसका लक्ष तो सिर्फ़ 'उसका देव था.. बाकी तो उसको कुच्छ दिखाई दे ही नही रहा था.. अब उसको भी देव तक जाने का रास्ता मिल गया था... अब उसके कदम ना लड़खड़ाए.. ना डगमगाए.. और वो सीधी भत्ति में प्रवेश कर गयी..... स्वाहा!!!

अचानक ही रसोई गृह धधक कर चीत्कार उठी अग्नि की लपटों से दाहक उठा...

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 11:10

नीरू के पल पल रंग बदल रहे चेहरे पर अब अचानक अजीब सी शांति छा गयी थी.. रसोई गृह में लपटें शांत होने पर उसको भत्ति के बाहर भश्म हो चुकी एक लाश दिखाई दी.. कुँवरपाल की...!!!

कुच्छ देर यूँही शांत लेटी रहने के बाद नीरू ने आँखें खोल दी.. सामने बैठा रोहन कब से उसके आँखें खोलने का इंतजार कर रहा था.. उसके आस्चर्य का ठिकाना ना रहा जब नीरू आँखें खोलने के बाद नम आँखों से उसकी और निरंतर देखती रही.. दर्दनाक सपने से लौट कर आई उसकी गीली आँखों में उतनी पीड़ा नही थी.. जितनी राजकुमारी प्रिया के रूप में कुच्छ देर पहले ही उसने महसूस की थी.. आख़िरकार प्रिया का देव लौट आया था.. भगवान को उनके अनोखे प्यार की खातिर झुकना ही पड़ा.. और अब इस जनम में उनके मिलन में कोई बाधा शेष नही थी.... शायद!!!

"ऐसे क्या देख रही हो नीरू? हम एक घंटे से तुम्हारे जागने का इंतजार कर रहे हैं.. कुच्छ याद आया कि नही?" ऋतु ने उसको पकड़ कर हिला दिया...

"मुझे टीले पर जाना है!" नीरू बैठ गयी.. पर अब भी उसकी नज़रें रोहन पर ही जमी हुई थी...

"हां.. हां.. चलो! हमने कब मना किया है?" रवि खुश होकर बोला...

"नही.. हम दोनो अकेले ही जाएँगे.. तुम यहीं रहना प्लीज़!" नीरू ने रवि की ओर देख कर कहा....

"मैं नही जाउन्गि.. तेरे साथ अकेले टीले पर.. मुझे तो रोहन के मुँह से वहाँ की कहानी सुनते हुए ही डर लग रहा था.. हम दोनो लड़कियाँ हैं यार..." ऋतु ने तुनक कर कहा....

"मैं तुझे नही बोल रही ऋतु... मैं और देव.स्स्सोररी... रोहन वहाँ जाएँगे.... सिर्फ़ हम दोनो!" रोहन को देव कहने की भूल करने के बाद नीरू झिझक सी गयी और बाकी की बात उसने नज़रें झुका कर पूरी की....

नीरू के 'देव' कहते ही वहाँ बैठे तीनों की नज़रें आपस में मिलकर चमक उठी.. खुश होकर ऋतु ने नीरू को अपनी बाहों में भर लिया.. नीरू नज़ाकत से मुस्कुराइ और शर्मकार दूसरी तरफ चेहरा कर लिया....

"मुबारक हो देव साहब! आख़िर आपको भाभी जी मिल ही गयी.." रवि ने रोहन कोछेड़ते हुए उसका गाल पकड़ कर खींच लिया..

"क्या है यार?" रोहन उपरी मंन से गुस्सा दिखता हुआ बोला और फिर हँसने लगा.. दिल को मिले इस बेपनाह सुकून को भला कब तक छिपाता...

"क्या है? आबे लल्लू तेरा ब्याह है.. अब तो.. और क्या रह गया अब..? " रवि खुश होकर बोला....

नीरू से ज़्यादा देर रोहन से नज़रें मिलाए बिना रहा ना गया.. वह फिर से सीधी होकर रह रह कर रोहन को देखने लगी...

"लेकिन भाभ.. सॉरी..." रवि अपनी बात अधूरी छ्चोड़ कर नीरू की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगा.. नीरू ने दो पल उसको घूर कर देखा और फिर खिलखिला कर हंस पड़ी... उसके हंसते ही मानो माहौल में मोती से बिखर गये हों.. सभी रवि की और देख कर हँसने लगे...

"मतलब.. अब लाइन क्लियर है.. भाभी जी बोल सकता हूँ ना आपको..?" रवि ने भी कह कर दाँत निकल दिए....

"हूंम्म.." नीरू ने इतना ही कहा और नज़रों को शरारती अंदाज में सिकोड कर रोहन की और देखने लगी," इनसे पूच्छ लो!"

"ये तो कब का इसी फिराक़ में धक्के खा रहा है भाभी जी.. इस'से क्या पूच्छना.. पर अब टीले पर जाकर करना क्या है..? और आप अकेले क्यूँ जाओगे.. मैं भी चलूँगा.. मैं नही मान'ने वाला इस बार!" रवि ने पहले नीरू को और फिर रोहन को देख कर कहा...

"नही.. जाना तो पड़ेगा ही.. रोहन के सपने में प्रिया ने क्या कहा है.. याद नही क्या?" नीरू ने सवाल किया....

"हां यार.. मेरी बेहन का दिल तो वहीं पर है.. यही बात है ना?" ऋतु ने नीरू से पूचछा....

"ओह्ह हां.. पर अकेले क्यूँ? मैं भी साथ चलूँगा...!" रवि ने कहा..

"पर पापा को इस बारे में पता नही चलना चाहिए कि हम टीले पर जा रहे हैं... वो हमें वहाँ नही जाने देंगे.. अकेले तो बिल्कुल भी नही.. मैं अपने आप उनको कुच्छ कह दूँगा.. तुम सब ध्यान रखना.. उनको खबर नही होनी चाहिए..." रोहन ने सबको चेतावनी दी....

"ठीक है यार.. देख लेंगे.. पर नीरू तुम पूरी कहानी सूनाओ ना.. मैं कब से सुन'ने को बेकरार हूँ....!" ऋतु मचल कर बोली...

"हां हां.. भाभी जी.. जो कुच्छ आपको याद आया है.. सब सूनाओ..!" रवि ने कहा...

"सब कुच्छ याआद आ गया है.. बीच में मत बोलना!" नीरू ने कहा और सब शांत हो गये....

नीरू ने उनको देव को पहली बार देखने से लेकर कहानी सुनानी शुरू कर दी....

सपने की कहानी पूरी होने के बाद काफ़ी देर तक चारों सन्न होकर बैठे रहे.. किसी की समझ में नही आ रहा था कि कैसी प्रतिक्रिया दें... रोहन को तो विश्वास ही नही हो रहा था कि वह कभी 'देव' रहा होगा...

"कब चलें टीले पर..?" रवि नीरू के चुप होने के बाद बोलने वालों में सबसे पहला था...

"तुम नही जा रहे हो! सिर्फ़ हम दोनो जाएँगे वहाँ.." नीरू ने ज़ोर देकर कहा...

"पर मैं क्यूँ नही भाभी जी? मुझे भी चलना है.. मैं भी देखूँगा कि आपको सब याद आ जाएगा तो आप क्या करोगे?" रवि ने मचलते हुए कहा तो रोहन ने उसकी और घूर कर देखा.. शायद ग़लत मतलब निकल लिया था उसकी बात का...

"पर किसी ना किसी को तो लेकर जाना ही पड़ेगा... वैसे भी वहाँ रात को जाना है.. हमारा अकेले चलना ठीक नही है..." रोहन ने रवि की बात का समर्थन किया...

"हां.. यही तो मैं कह रहा हूँ.." रवि ने अपनी टाँग फँसाई...

"ओके.. तो फिर चारों चलते हैं... पर तुम दोनो टीले के पास बाहर खड़े हो जाना.. अंदर तो हम अकेले ही जाएँगे...." नीरू ने उनकी बात मान ही ली....

"तो आज ही चलें क्या? " रवि ने खुश होकर कहा...

"और क्या? चलना है तो आज ही चलो.. फिर हमें वापस भी तो जाना है..." ऋतु ने भी रवि की बात का समर्थन करते हुए कहा...

"हुम्म.. ठीक है.. मैं पापा को फोन करके गाड़ी मंगवा लेता हूँ.. उनको मैं यही बोलूँगा कि हम दोस्त के पास जा रहे हैं.. !"

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"क्या हुआ तुम्हे.. दार लग रहा है क्या? अभी तो गाँव में ही है यार.. तू ऐसा करेगा तो हमारा क्या हाल होगा..." रवि ने रोहन की आँखों में आँसू देख कर पूचछा...

रोहन ने कोई जवाब नही दिया.. वो उस वक़्त श्रुति के घर के सामने से गुज़रे थे... घर का बंद दरवाजा देख रोहन की आँखें नम हो गयी थी... श्रुति का मासूम चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया था.. बेचारी!!!

"क्या हुआ?" पीछे बैठी नीरू ने रवि की बात सुनकर कहा...

"कुच्छ नही.. वो.." रोहन ने रुक कर एक लंबी साँस ली," पीछे वाला घर श्रुति का था..."

"कौनसा?" तीनो ने एकदम पलट कर पिछे देखने की कोशिश की..," ये.. जो अभी गया है.. अकेला सा घर..!" ऋतु ने पूचछा...

"हां!"

"हमें चलना चाहिए था वहाँ..." नीरू ने कहा...

"दिल तो मेरा भी कर रहा है.. पर हिम्मत नही हो रही..!" रोहन ने जवाब दिया...

"तुम तो पागल हो यार.. जो भी हुआ.. उसमें हमारी क्या ग़लती है...? फिर उसके बापू से मिलकर आना उसको अच्च्छा ही लगता..." रवि ने कहा...

"हां.. हां.. चलो.. एक बार हो आते हैं..!" ऋतु ने कहा....

"अभी तो ग्यारह बजने वाले हैं.. आगे गाड़ी नही जाएगी.. पैदल चलने में घंटा भर लग जाएगा.. 12 बजे तक वहाँ पहुँचना है हमें... आते हुए देख लेंगे...!" रोहन ने कहा और गाड़ी चलाता रहा...

"क्या? इस सुनसान रास्ते पर पैदल चलना पड़ेगा? वो भी इतनी रात में..?" ऋतु सिहर सी गयी," मुझे तो तुम वहीं उतार देते.. श्रुति के घर..!"

"हा हा हा हा.. अब क्या हो गया...?" रवि ने मज़ाक किया...

"तुम्हे कुच्छ कहा है मैने? अपना मुँह सीधा रखो..." ऋतु खिज कर बोली....

"कम से कम यहाँ तो मान जाओ! तुम्हारी तो कुत्ते बिल्ली जैसी दोस्ती है..." नीरू ने बीच बचाव करने की कोशिश की....

"हे हे हे... रवि को कुत्ता बोला..." ऋतु ठहाका लगा कर हँसने लगी....

"नही.. नही.. मैने ये नही बोला.. मेरा ये मतलब नही था..." नीरू हड़बड़ा कर सफाई देने लगी....

"कोई बात नही भाभी जी.. यहाँ सब चलता है.. पर इसको बिल्ली की जगह कोई बढ़िया सा नाम देना चाहिए था.... जैसे छिप्कलि.. हा हा हा!"

"लो.. गाड़ी यहीं खड़ी करनी पड़ेगी.. आगे पैदल ही चलना है... टॉर्च लाया है ना?" रोहन ने गाड़ी को साइड में खड़ा करते हुए रवि से पूचछा....

"हां.. लाया हूँ..." रवि ने कहा और सब गाड़ी से उतर गये....

रास्ता पिच्छली बार की तरह ही डरावना, बेढंगा और सुनसान था.. पर जाने क्यूँ रोहन को आज डर नही लग रहा था.. शायद वह खुद को आज देव के रूप में ही देखना और दिखाना चाह रहा था... या फिर नीरू के साथ होने से उसको मानसिक मजबूती सी मिल रही थी... नीरू भी उसके पीछे पीछे ध्यान से चल रही थी.. नीरू के पीछे ऋतु और सबसे लास्ट में टॉर्च को हाथ में लिए रवि था...

"इतनी तेज मत चल यार.. मैं पिछे रह जाती हूँ..." ऋतु ने नीरू का कमीज़ पकड़ कर खींच लिया....

"मैं क्या करूँ? यही भगा जा रहा है..." नीरू ने उसके साथ होकर कहा...

"आए भाई.. ज़रा आराम से चल ले... मैं पिछे रह गया तो वापस भाग जाउन्गा.. पहले बता रहा हूँ..." रवि ने नीरू की बात सुनकर कहा....

"बोलो मत यार.. चुपचाप चलते रहो... हमें 12 बजे से पहले ही पहुँच लेना चाहिए..." रोहन ने अपनी चल धीमी नही की....

"बोलो मत बोल रहा है.. यहाँ मेरी जान सूख रही है.. किसी ने पिछे खींच लिया तो.. तुम तो समझोगे मैं वापस भाग गया... मैं गुम हो जाउ तो मुझे ढूँढ लेना भाई... मुझे लग रहा है कि मेरे पिछे पिछे कोई चल रहा है...!" रवि ने चलते चलते कहा...

"आईईईईईईईईई..." ऋतु अचानक चीख कर नीरू से लिपट गयी....

सब अचानक चौंक कर खड़े हो गये," क्या हुआ ऋतु?" नीरू ने उसको संभालते हुए पूचछा....

"कुच्छ नही... ये खंख़्वाह डरा क्यूँ रहा है मुझे..." ऋतु रुनवासी सी होकर बोली....

"लो.. आगे पिछे मैं ही मिलता हूँ तुम्हे कोसने को.. मैने क्या किया है..." रवि ने पूचछा...

"ये... ऐसे क्यूँ बोल रहा है कि इसके पिछे कोई है.. मेरी तो जान ही निकल गयी थी.." ऋतु ने रवि के सवाल का जवाब नीरू को दिया... अब की बार उसने नीरू का हाथ नही छ्चोड़ा....

" क्यूँ नही बोलूं? किसी ने कहा था क्या साथ आने को...? मुझे तो लग रहा है... ऐसे भी लग रहा है जैसे कोई मेरा कॉलर पकड़ कर खींच रहा है... और झाड़ियों में से बड़ी बड़ी आँखें भी चमकती हुई दिखाई दे रही हैं... तू तो गयी आज!" रवि ने चटखारा लेकर कहा.... ऋतु ने एक बार फिर डर कर नीरू को कसकर पकड़ लिया...

"नही.. मुझे नही चलना आगे.. वापस चलो.. मुझे छ्चोड़ कर आ जाना.." ऋतु सहम सी गयी थी...

"क्यूँ बकवास कर रहा है यार... अब तो पहुँच ही गये... वो देखो लाइट जल रही है..." रोहन ने हाथ से इशारा किया.. तभी अचानक नीरू चक्कर खा कर गिरने को हो गयी...

"क्क्या हुआ.. शीनू...? ये.. शीनू को क्या हो गया?" उसको अपनी बाहों में संभाल कर ऋतु डर के मारे रोने लगी....

"कुच्छ नही.. यूँही चक्कर सा आ गया था..." नीरू अपने माथे पर हाथ लगाकर बोली.. और फिर से खड़ी होकर रोशनी की और देखने लगी...," तुम यहीं रुक जाओ.. आगे हम अकेले जाएँगे.."

"नही.. मैं यहाँ नही रहूंगी.. इसके साथ तो बिल्कुल भी नही.. ये तो मुझे डरा डरा कर ही मार देगा....!" ऋतु ने रवि की और अंधेरे में घूर कर कहा...

"पर ये क्यूँ नही चल सकते... मुझे तो... चलो ठीक है... रवि भाई.. क्या कर रहा है यार.. ये कोई मज़ाक का टाइम है?" रोहन ने रवि की ओर देख कर कहा....

"चलो ठीक है.. मैं कुच्छ नही कहूँगा.. पर अगर यहाँ पिछे से कोई आ गया तो....." रवि ने कहा....

"देख लो.. देख लो इसको.. मैं इसके पास नही रहूंगी.. इस'से अच्च्छा तो इसको भी ले जाओ अपने साथ.. मैं अकेली ही रह लूँगी....

"प्लीज़ रवि! मान जाओ ना..." नीरू ने प्यार से कहा तो रवि ने तुरंत अपनी दूम सीधी कर ली ( ) ठीक है भाभी जी... आप लोग जाओ.. मैं इसकी अपनी जान से भी ज़्यादा हिफ़ाज़त करूँगा...."

नीरू मुस्कुरा दी... और फिर रोहन की और देख कर बोली...," चलो!"

रवि और ऋतु को वहीं छ्चोड़ कर वो दोनो आगे बढ़ गये......

क्रमशः ................................


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