सुन्दर का मात्र प्रेम

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The Romantic
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Re: सुन्दर का मात्र प्रेम

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 16:43

सुन्दर का मात्र प्रेम--4 end



गतांक से आगे.....................
रात को सब सो जाने के बाद अम्मा वही साड़ी पहने मेरे कमरे में आयी. आज वह दुल्हन जैसी शरमा रही थी. मुझे लिपट कर बोली. "सुन्दर, आज यह मेरे लिये बड़ी सुहानी रात है, ऐसा प्रेम कर बेटे कि मुझे हमेशा याद रहे. आखिर आज से मैं तेरी पत्नी भी हूं."

मैंने उसके रूप को आंखें भर कर देखते हुए कहा. "अम्मा, आज से मैं तुम्हें तुम्हारे नाम से बुलाना चाहता हूं, कमला. अकेले में मैं यही कहूंगा. सबके सामने मां कहूंगा." मां ने लज्जा से लाल हुए अपने मुखड़े को डुलाकर स्वीकृति दे दी.

फ़िर मैं मां की आंखों में झांकता हुआ बोला. "कमला रानी, आज मैं तुम्हें इतना भोगूंगा कि जैसा एक पति को सुहागरात में करना चाहिये. आज मैं तुम्हें अपने बच्चे की मां बना कर रहूंगा. तू फ़िकर मत कर, अगले माह तक हम दूसरी जगह चले जायेंगे."

अम्म ने अपना सिर मेरी छाती में छुपाते हुए कहा. "ओह सुन्दर, हर पत्नी की यही चाह होती है कि वह अपने पति से गर्भवती हो. आज मेरा ठीक बीच का दिन है. मेरी कोख तैयार है तेरे बीज के लिये मेरे राजा."

उस रात मैंने अम्मा को मन भर कर भोगा. उसके कपड़े धीरे धीरे निकाले और उसके पल पल होते नग्न शरीर को मन भर कर देखा और प्यार किया. पहले घंटे भर उसके चूत के रस का पान किया और फ़िर उस पर चढ़ बैठा.

उस रात मां को मैंने चार बार चोदा. एक क्षण भी अपना लंड उसकी चूत से बाहर नहीं निकाला. सोने में हमें सुबह के तीन बज गये. इतना वीर्य मैंने उसके गर्भ में छोड़ा कि उसका गर्भवती होना तय था.

उसके बाद मैं इसी ताक में रहता कि कब घर में कोई न हो और मैं अम्मा पर चढ़ जाऊं. मां भी हमेशा संभोग की उत्सुक रहती थी. पहल हमेशा वही करती थी. वह इतनी उत्तेजित रहती थी कि जब भी मैं उसका पेटीकोट उतारता, उसकी चूत को गीला पाता. जब उसने एक दिन चुदते हुए मुझे थोड़ी लजा कर यह बताया कि सिर्फ़ मेरी याद से ही उसकी योनि में से पानी टपकने लगता था, मुझे अपनी जवानी पर बड़ा गर्व महसूस हुआ.

कभी कभी हम ऐसे गरमा जाते कि सावधानी भी ताक पर रख देते. एक दिन जब सब नीचे बैठ कर गप्पें मार रहे थे, मैंने देखा कि अम्मा ऊपर वाले बाथरूम में गयी. मैं भी चुपचाप पीछे हो लिया और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. मां सिटकनी लगाना भूल गयी थी. मैं जब अंदर गया तो वह पॉट पर बैठकर मूत रही थी. मुझे देखकर उसकी काली आंखें आश्चर्य से फ़ैल गईं.

उसके कुछ कहने के पहले ही मैंने उसे उठाया, घुमा कर उसे झुकने को कहा और साड़ी व पेटीकोट ऊपर करके पीछे से उसकी चूत में लंड डाल दिया. "बेटे कोई आ जायेगा" वह कहती रह गयी पर मैंने उसकी एक न सुनी और वैसे ही पीछे से उसे चोदने लगा. पांच मिनट में मैं ही झड़ गया पर वे इतने मीठे पांच मिनट थे कि घंटे भर के संभोग के बराबर थे.

मेरे शक्तिशाली धक्कों से उसका झुका शरीर हिल जाता और उसका लटकता मंगलसूत्र पेंडुलम जैसा हिलने लगता. झड़ कर मैंने उसके पेटीकोट से ही वीर्य साफ़ किया और हम बाहर आ गये. मां पेटीकोट बदलना चाहता थी पर मैंने मना कर दिया. दिन भर मुझे इस विचार से बहुत उत्तेजना हुई कि मां के पेटीकोट पर मेरा वीर्य लगा है और उसकी चूत से भी मेरा वीर्य टपक रहा है.

हमारा संभोग इसी तरह चलता रहा. एक बार दो दिन तक हमें मैथुन का मौका नहीं मिला तो उस रात वासना से व्याकुल होकर आखिर मैं मां और बापू के कमरे में धीरे से गया. बापू नशे में धुत सो रहे थे और मां भी वहीं बाजू में सो रही थी.

सोते समय उसकी साड़ी उसके वक्षस्थल से हट गयी थी और उसके उन्नत उरोजों का पूरा उभार दिख रहा था. सांस के साथ वे ऊपर नीचे हो रहे थे. मैं तो मानों प्यार और चाहत से पागल हो गया. मां को नींद में से उठाया और जब वह घबरा कर उठी तो उसे चुप रहने का इशारा कर के अपने कमरे में आने को कह कर मैं वापस आ गया.

दो मिनत बाद ही वह मेरे कमरे में थी. मैं उसके कपड़े उतारने लगा और वह बेचारी तंग हो कर मुझे डांटने लगी. "सुन्दर, मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं और जब भी तुम बुलाओ, आना मेरा कर्तव्य है, पर ऐसी जोखिम मत उठा बेटे, किसी ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगा."

मैंने अपने मुंह से उसका मुंह बंद कर दिया और साड़ी उतारना छोड़ सिर्फ़ उसे ऊपर कर के उसके सामने बैठ कर उसकी चूत चूसने लगा. क्षण भर में उसका गुस्सा उतर गया और वह मेरे सिर को अपनी जांघों में जकड़ कर कराहते हुए अपनी योनि में घुसी मेरी जीभ का आनंद उठाने लगी. इसके बाद मैंने उसे बिस्तर पर लिटा कर उसे चोद डाला.

मन भर कर चुदने के बाद मां जब अपने कमरे में वापस जा रही थी तो बहुत खुश थी. मुझे बोली. "सुन्दर, जब भी तू चाहे, ऐसे ही बुला लिया कर. मैं आ जाऊंगी."

अगली रात को तो मां खुले आम अपना तकिया लेकर मेरे कमरे में आ गयी. मैंने पूछा तो हंसते हुए उसने बताया "सुन्दर, तेरे बापू को मैंने आज बता दिया कि उनकी शराब की दुर्गंध की वजह से मुझे नींद नहीं आती इसलिये आज से मैं तुम्हारे कमरे में सोया करूंगी. उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. इसलिये मेरे राजा, मेरे लाल, आज से मैं खुले आम तेरे पास सो सकती हूं."

मैंने उसे भींच कर उसपर चुंबनों की बरसात करते उए कहा. "सच अम्मा? आज से तो फ़िर हम बिलकुल पति पत्नी जैसे एक साथ सो सकेंगे." उस रात के मैथुन में कुछ और ही मधुरता थी क्योंकि मां को उठ कर वापस जाने की जरूरत नहीं थी और मन भर कर आपस में भोगने के बाद हम एक दूसरे की बांहों में ही सो गये. अब सुबह उठ कर मैं मां को चोद लेता था और फ़िर ही वह उठ कर नीचे जाती थी.

कुछ ही दिन बाद एक रात संभोग के बाद जब मां मेरी बांहों में लिपटी पड़ी थी तब उसने शरमाते हुए मुझे बताया कि वह गर्भवती है. मैं खुशी से उछल पड़ा. आज मां का रूप कुछ और ही था. लाज से गुलाबी हुए चेहरे पर एक निखार सा आ गया था.

मुझे खुशी के साथ कुछ चिंता ही हुई. दूर कहीं जाकर घर बसाना अब जरूरी था. साथ ही बापू और भाई बहन के पालन का भी इंतजाम करना था.

शायद कामदेव की ही मुझपर कृपा हो गयी. एक यह कि अचानक बापू एक केस जीत गये जो तीस साल से चल रहा था. इतनी बड़ी प्रापर्टी आखिर हमारे नाम हो गयी. आधी बेचकर मैंने बैंक में रख दी कि सिर्फ़ ब्याज से ही घर आराम से चलता. साथ ही घर की देख भाल को एक विधवा बुआ को बुला लिया. इस तरफ़ से अब मैं निश्चिंत था.

दूसरे यह कि मुझे अचानक आसाम में दूर पर एक नौकरी मिली. मैंने झट से अपना और मां का टिकट निकाला और जाने की तारीख तय कर ली. मां ने भी सभी को बता दिया कि वह नहीं सह सकती कि उसका बड़ा बेटा इतनी दूर जाकर अकेला रहे. यहां तो बुआ थी हीं सबकी देखभाल करने के लिये. इस सब बीच मां का रूप दिन-ब-दिन निखर रहा था. खास कर इस भावना से उसके पेट में उसी के बेटे का बीज पल रहा है, मां बहुत भाव विभोर थी.

हम आखिर आकर नई जगह बस गये. यहां मैंने सभी को यही बताया कि मैं अपनी पत्नी के साथ हूं. हमारा संभोग तो अब ऐसा बढ़ा कि रुकता ही नहीं था. सुबह उठ कर, फ़िर काम पर जाने से पहले, दोपहर में खाने पर घर आने के बाद, शाम को लौटकर और फ़िर रात को जब मौका मिले, मैं बस अम्मा से लिपटा रहता था, उस पर चढ़ा रहता था.

मां की वासना भी शांत ही नहीं होती थी. कुछ माह हमने बहुत मजे लिये. फ़िर आठवें माह से मैंने उसे चोदना बंद कर दिया. मैं उसकी चूत चूस कर उसे झड़ा देता था और वह भी मेरा लंड चूस देती थी. घरवालों को मैंने अपना पता नहीं दिया था, बस कभी कभी फ़ोन पर बात कर लेता था.

आखिर एक दिन मां को अस्पताल में भरती किया. दूसरे ही दिन चांद सी गुड़िया को उसने जन्म दिया. मां तो खुशी से रो रही थी, अपने ही बेटे की बेटी उसने अपनी कोख से जनी थी. वह बच्ची मेरी बेटी भी थी और बहन भी. मां ने उसका नाम मेरे नाम पर सुन्दरी रखा.

इस बात को बहुत दिन बीत गये हैं. अब तो हम मानों स्वर्ग में हैं. मां के प्रति मेरे प्यार और वासना में जरा भी कमी नहीं हुए है, बल्कि और बढ़ गई है. एक उदाहरण यह है कि हमारी बच्ची अब एक साल की हो गयी है और अब मां का दूध नहीं पीती. पर मैं पीता हूं. मां के गर्भवती होने का यह सबसे बड़ा लाभ मुझे हुआ है कि अब मैं अपनी मां का दूध पी सकता हूं.

इसकी शुरुवात मां ने सुन्दरी छह माह की होने के बाद ही की. एक दिन जब वह मुझे लिटा कर ऊपर चढ़ कर चोद रही थी तो झुककर उसने अपना निपल मेरे मुंह में देकर मुझे दूध पिलाना शुरू कर दिया था. उस मीठे अमृत को पाकर मैं बहुत खुश था पर फ़िर भी मां को पूछ बैठा कि बच्ची को तो कम नहीं पड़ेगा.

वह बोली. "नहीं मेरे लाल, वह अब धीरे धीरे यह छोड़ देगी. पर जब तूने पहली बार मेरे निपल चूसे थे तो मैं यही सोच रही थी कि काश, मेरे इस जवान मस्त बेटे को फ़िर से पिलाने को मेरे स्तनों में दूध होता. आज वह इच्छा पूरी हो गयी."

मां ने बताया कि अब दो तीन साल भी उसके स्तनों से दूध आता रहेगा बशर्ते मैं उसे लगातार पिऊं. अंधे को चाहिये क्या, दो आंखें, मैं तो दिन में तीन चार बार अम्मा का दूध पी लेता हूं. खास कर उसे चोदते हुए पीना तो मुझे बहुत अच्छा लगता है.

मैंने मां को यही कहा है कि जब मैं घर में होऊं, वह नग्न रहा करे. उसने खुशी से यह मान लिया है. घर का काम वह नग्नावस्था में ही करती रहती है. जब वह किचन में प्लेटफ़ार्म के सामने खड़ी होकर खाना बनाती है, तब मुझे उसके पीछे खड़ा होकर उसके स्तन दबाना बहुत अच्छा लगता है. उस समय मैं अपना लंड भी उसके नितंबों के बीच के गहरी लकीर में सटा देता हूं.

मां को भी यह बहुत अच्छा लगता है और कभी कभी तो वह मुझे ऐसे में अपने गुदा में शिश्न डालने की भी सहमति दे देती है.

हां, मां से अब मैं कई बार अप्राकृतिक मैथुन याने गुदा मैथुन करता हूं, उसकी गांड मारता हूं. उसे यह हमेशा करना अच्छा नहीं लगता पर कभी कभी जब वह मूड में हो तो ऐसा करने देती है. खास कर अपने माहवारी के दिनों में.

इसकी शुरुवात भी ऐसे ही हुई. मां जब रजस्वला होती थी तो हमारा मैथुन रुक जाता था. वह तो उन दिनों में अपने आप पर संयम रखती थी पर मेरा लंड चूस कर मेरी तृप्ति कर देती थी. मुझे उसे जोर जोर से चढ़ कर चोदने की आदत पड़ गई था इसलिये ऐसे में मेरा पूर्ण स्खलन नहीं हो पाता था.

एक दिन जब वह ऐसे ही मेरा लंड चूस रही था तब मैं उसके नितंब उसकी साड़ी में हाथ डाल कर सहला रहा था. उसने पैड बांधा था इसलिये पैंटी पहने थी. मेरे हाथों के उसके नितंब सहलाने से उसने पहचान लिया कि मैं क्या सोच रहा हूं. फ़िर जब मैंने उंगली पैंटी के ऊपर से ही उसके गुदा में डालने लगा तब लंड चूसना छोड़ कर वह उठी और अंदर से कोल्ड क्रीम की शीशी ले आयी. एक कैंची भी लाई.

फ़िर मुस्करा कर लाड़ से मेरा चुंबन लेते हुए पलंग पर ओंधी लेट गयी और बोली. "सुन्दर, मैं जानती हूं तू कितना भूखा है दो दिन से. ले , मेरे पीछे के छेद से तेरी भूख कुछ मिटती हो तो उसमें मैथुन कर ले."

मैंने मां के कहे अनुसार पैंटी के बीच धीरे से छेद काटा और फ़िर उसमें से मां के गुदा में क्रीम लगाकर अपना मचलता लंड धीरे धीरे अंदर उतार दिया. अम्मा को काफ़ी दुखा होगा पर मेरे आनंद के लिये वह एक दो बार सीत्कारने के सिवाय कुछ न बोली. मां के उस नरम सकरे गुदा के छेद को चोदते हुए मुझे उस दिन जो आनंद मिला वह मैं बता नहीं सकता. उसके बाद यह हमेशा की बात हो गयी. माहवारी के उन तीन चार दिनों में रोज एक बार मां मुझे अपनी गांड मारने देती थी.

महने के बाकी स्वस्थ दिनों में वह इससे नाखुश रहती थी क्योंकि उसे दुखता था. पर मैंने धीरे धीरे उसे मना लिया. एक दो बार जब उसने सादे दिनों में मुझे गुदा मैथुन करने दिया तो उसके बाद मैंने उसकी योनि को इतने प्यार से चूसा और जीभ से चोदा कि वह तृप्ति से रो पड़ी. ऐसा एक दो बार होने पर अब वह हफ़्ते में दो तीन बार खुशी खुशी मुझसे गांड मरवा लेती है क्योंकि उसके बाद मैं उसकी बुर घंटों चूस कर उसे इतना सुख देता हूं कि वह निहाल हो जाती है.

और इसीलिये खाना बनाते समय जब मैं पीछे खड़ा होकर उसके स्तन दबाता हूं तो कभी कभी मस्ती में आकर अपना शिश्न उसके गुदा में डाल देता हूं और जब तक वह रोटी बनाये, खड़े खड़े ही उसकी गांड मार लेता हूं.

मेरे कामजीवन की तीव्रता का मुझे पूरा अहसास है. और मैं इसीलिये यही मनाता हूं कि मेरे जैसे और मातृप्रेमी अगर हों, तो वे साहस करें, आगे बढें, क्या पता, उन्हें भी मेरी तरह स्वर्ग सुख मिले. कामदेव से मैं यही प्रार्थना करता हूं कि सब मातृभक्तों की अपनी मां के साथ मादक और मधुर रति करने की इच्छा पूरी करें.

---- समाप्त ----


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