रज़िया और ताँगे वाला compleet

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The Romantic
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रज़िया और ताँगे वाला compleet

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 19:11

रज़िया और ताँगे वाला

लेखिका: रज़िया सईद

मेरा नाम रज़िया सईद है। मेरी उम्र अठाईस साल है और मैं दिल्ली में एक स्कूल में टीचर हूँ। मेरे शौहर का एक्स्पोर्ट का कारोबार है और हमारी अभी कोई औलाद नहीं है। मेरा फिगर ३६/२७/३८ है और कद पाँच फुट चार इंच है। मेरा रंग गोरा है, हालाँकि दूध जैसा सफ़ेद तो नहीं लेकिन काफी गोरी हूँ मैं। मुझे अपने जिस्म की नुमाईश करने की बेहद शौक है। दूसरों को अपने जिस्म के जलवे दिखाने का मैं कोई मौका नहीं छोड़ती क्योंकि मुझे अपने फिगर पर बेहद फख्र है। जिस्म की नुमाईश करते वक्त मैं सामने वाले की उम्र का लिहाज़ नहीं करती क्योंकि मेरा ये मानना है कि मर्द तो मर्द ही होता है फिर उसकी उम्र कितनी भी हो। कोई भी मर्द किसी हसीन औरत के जिस्म की झलक पाने का मौका नहीं छोड़ता फिर चाहे वो उसकी रिश्तेदार ही क्यों ना हो। चौदह से साठ साल तक की उम्र वालों को मैंने अपने जिस्म को गंदी नज़रों से ताकते हुए देखा है।



मैंने देखा है कि सभी मर्द खासतौर से मेरी गाँड को सबसे ज्यादा घूरते हैं। मेरे शौहर और दूसरे कुछ लोगों ने भी मुझे कईं दफा बताया है कि मेरी गाँड मेरे जिस्म का सबसे हसीन हिस्सा है। मैं भी ये बात मानती हूँ क्योंकि मैं जब भी चूड़ीदार सलवार-कमीज़ या टाईट जींस के साथ हाई हील वाले सैंडल पहन कर मार्किट या भीड़ से भरी बस या ट्रेन में जाती हूँ तो लोगों की नज़रें मेरी गाँड पर ही चिपक जाती हैं। कईं लोग तो मेरे चूतड़ों पर चिकोटी काटने या कईं बार मेरी गाँड पे हाथ फेर कर सहलाने से भी बाज़ नहीं आते। लोग सिर्फ मेरी गाँड को ही तवज्जो नहीं देते बल्कि मेरे मम्मों को भी छूने की कोशिश करते हैं। कईं दफा, खासतौर से जब मैं भीड़ वाली बस में मौजूद होती हूँ तो मेरे आसपास खड़े मर्द अपनी कुहनियों या कंधों से मेरे मम्मों को दबाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा जिस स्कूल में मैं पढ़ाती हूँ वहाँ भी अपने जिस्म के जलवे दिखाने की अपनी इस आदत से बाज़ नहीं आती और जब स्कूल के लड़के भी गंदी नज़रों से कसमसते हुए मुझे देखते हैं तो मुझे बेहद मज़ा आता है।



मामूली छेड़छाड़ का मैं कभी कोई एतराज़ नहीं करती लेकिन अगर मेरी मरज़ी के बगैर कभी कोई जबरदस्ती हद पार करने की कोशिश करे तो उसकी अकल ठिकाने लगा देती हूँ। ये सब पब्लिक में होने की वजह से ये बिल्कुल मुश्किल नहीं होता। पहले तो मैं गुस्से से घूरती हूँ और अगर कोई शख्स फिर भी बाज़ ना आये तो शोर मचा देती हूँ और आसपास के लोग फिर उसकी खबर ले लेते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि मैं कभी भी हद पार नहीं करती क्योंकि कभी-कभार मेरा दिल हो तो बात चुदाई तक भी पहूँच जाती है। अब तक मैंने कईं अजनबियों के लण्ड अपनी चूत में लिये हैं। महीने में एक-दो बार तो ऐसा हो ही जाता है। अजनबियों से चुदवाने का ये सिलसिला दो साल पहले ही शुरू हुआ था। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।



अब मैं वो किस्सा बयान करने जा रही हूँ जब मैंने पहली बार बहक कर अपने जिस्म की नुमाईश करने और थोड़ी-बहुत छेड़छाड़ की खुद की बनायी हद पार की और अजनबियों के साथ चुदाई में शामिल हो गयी। मेरा यकीन मानिये, मुझे इस चुदाई में बेहद मज़ा आया जबकि ये वाकया एक गरीब टाँगेवाले के साथ हुआ था। उस वाकये के बाद ही मेरी हिम्मत खुल गयी और मैं कभी-कभार हद पार करते हुए अजनबियों से चुदवाने लगी।



हुआ ये कि एक बार मुझे दूर की रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिये हमारे गाँव जाना पड़ा। मैं वहाँ अपने अपनी सास और चचेरे देवर के साथ जा रही थी। मेरे शौहर काम के सिलसिले में टूर पे गये हुए थे और वहीं से सीधे शदी में पहुँचने वाले थे। मेरा चचेरा देवर जो हमारे साथ जा रहा था वो सोलह साल का बच्चा था। अब आप सोचेंगे कि सोलह साल का लड़का तो बच्चा नहीं होता लेकिन अकल से आठ-नौ साल के बच्चे जैसा ही था। गाँव में पला बड़ा हुआ था और जिस्मानी रिश्तों से बिल्कुल अंजान था। मैं ये बात यकीन से इसलिये कह सकती हूँ कि मैं कईं बार अपने हुस्न और जिस्म की नुमाईश से उसे फुसलाने की नाकाम कोशिश कर चुकी थी। आखिर में मैं इस नतीजे पर पहुँची कि इस बेवकूफ गधे को फुसलाने में वक्त ज़ाया करने का कोई फायदा नहीं। मेरी सास की उम्र साठ साल है और उनकी नज़र कमज़ोर है। उन्हें रात के वक्त दिखायी नहीं देता। हम ट्रेन से अपने गाँव जा रहे थे और ट्रेन स्टेशन पर रात को तीन घंटे देर से सवा नौ बजे पहुँची जबकि पहुँचने का सही वक्त शाम के साढ़े छः का था।

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Re: रज़िया और ताँगे वाला

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 19:12

जब हम स्टेशन पर उतरे तो ये जान कर हैरानी हुई कि स्टेशन पे हमें लेने कोई नहीं आया था। ये छोटा सा स्टेशन था और गाँव वहाँ से थोड़ा दूर था। मैंने फोन करने की कोशिश की लेकिन वहाँ पर नेटवर्क भी नहीं था। हमने पंद्रह मिनट इंतज़ार किया और सोचा कि रात बहुत हो चुकी है और हमें खुद ही गाँव चलना चाहिये। स्टेशन के बाहर आकर हम गाँव जाने का कोई ज़रिया देखने लगे। रात बहुत हो चुकी थी इसलिये कोई बस या आटो-रिक्शॉ वहाँ मौजूद नहीं था। बस कुछ टाँगे खड़े थे वहाँ पर। और कोई चारा ना देख कर मैंने टाँगे वालों से हमें गाँव ले चलने के लिये पूछना शुरू किया लेकिन कोई भी तैयार नहीं हुआ क्योंकि हमारा गाँव वहाँ से करीब बीस किलोमीटर दूर है।



फिर मुझे महसूस हुआ कि एक दर्मियानी उम्र का टाँगेवाला दूर कोने में खड़ा लगातार मुझे घूर रहा है। अचानक मुझे एक ख्याल आया और मैंने इस मौके का पूरा फायदा उठाने का सोचा। मैं उस टाँगे वाले के करीब गयी और उससे हमें गाँव ले चलने की गुज़ारिश लेकिन उसने ये कहते हुए मना कर दिया कि “मेमसाब! अभी रात बहुत हो गयी है… आपके गाँव जायेंगे तो हमारे तो रात भर का धंधा खराब हो जायेगा!” उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।



मैंने फिर उससे इल्तज़ा की, “प्लीज़ हमको हमारे गाँव छोड़ दो ना - देखो हम अकेली लेडीज़ लोग हैं, कैसे घर जायेंगे… तुम हमें घर छोड़ दो… हम तुम्हें थोड़े ज्यादा पैसे दे देंगे!”



“अरे! पर हमारा तो सारा धंधा ही खराब हो जायेगा ना मेमसाब! आपको छोड़ कर तो वापस क्या आयेंगे - तब तक सब ट्रेन छूट जायेगी!”



मैंने नोटिस किया कि मुझसे बात करते वक्त वो बेशर्मी से मेरे मम्मों को देख रहा था जिनका कटाव मेरे गहरे गले के ब्लाऊज़ में से साफ नज़र आ रहा था। उसे फुसलाने के लिये मैंने अपनी चुनरी सम्भालने का नाटक करते हुए चुनरी इस तरह एडजस्ट कर ली कि अब वो मेरे बड़े मम्मे का और भी साफ-साफ दीदार कर सके। फिर मैंने बेहद कातिलाना मुस्कुराहट के साथ अपनी नज़रें नीचे करके अपने मम्मों को देखते हुए उससे फिर एक बार गुज़ारिश की, “प्लीज़ हमें ले चलो - तुम्हें अच्छा इनाम मिल जायेगा!” और फिर मैंने बेहद लुच्ची हरकत की। उसकी टाँगों के बीच लंड की तरफ सीधे देखते हुए मैंने एक हाथ से अपना बाँया मम्मा दबा दिया और दूसरे हाथ से अपने लहंगे के ऊपर से ही अपनी चूत को मसल दिया। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।



हम जहाँ खड़े थे वहाँ थोड़ा अंधेरा था, इसलिये किसी से पकड़े जाने का डर नहीं था। मैंने उसे इतना खुलकर साफ इशारा दे दिया था जितना कि कोई औरत किसी अजनबी को दे सकती है। वो भी मेरा इशारा समझ गया और हमें ले जाने के लिये राज़ी होते हुए बोला, “अच्छा मेमसाहब! आप कहती हैं तो चलता हूँ पर इनाम पुरा लूँगा!” ये कहते हुए उसकी आँखें मेरे मम्मों पर और लहंगे में चूत वाले हिस्से पर ही जमी थीं जैसे कि कह रहा हो कि मेरी चूत भी लेगा।



इतना बेहतरीन मौका देने के लिये मैंने दिल ही दिल में अल्लाह का शुक्रिया अदा किया क्योंकि हमारा ट्रेन का सफ़र बहुत ही उबाऊ और बेरंग था। हम ए-सी फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे इसलिये किसी भी मस्ती-मज़े और छेड़-छाड़ का कोई ज़रिया नहीं था। खैर हम लोग टाँगे पर बैठे। मैं और मेरी सास पीछे वाली सीट पर बैठे और मेरा देवर आगे वाली सीट पर टाँगे वाले की बगल में बैठा। करीब पंद्रह मिनट के बाद हम पक्की सड़क से एक सुनसान कच्ची सड़क पर मुड़े। इस सड़क पे कोई रोशनी नहीं थी और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जंगल में से गुज़र रहे हों। कोई और गाड़ी उस सड़क पर नज़र नहीं आ रही थी। मेरी सास तो टाँगे पर बैठते ही सो गयी थी और अब खर्राटे मार रही थी। यही हाल मेरे देवर का भी था जो टाँगे का साईड का डंडा पकड़े सोया हुआ था।



ठीक ऐसे वक्त पर टाँगेवाले ने टाँगा रोक दिया और बोला, “मेमसाब! आप आगे आके बैठिये, क्योंकि पीछे की तरफ लोड ज्यादा हो गया है घोड़ा बेचारा इतना लोड कैसे खींचेगा, और इस बच्चे को भी पीछे आराम से बिठा दीजिये!”



मैं फौरन समझ गयी कि उसका असली इरादा क्या है लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए बोली, “नहीं रहने दो ना ऐसे ही ठीक है!”



“ऐसे नहीं चलेगा… घोड़ा तो आपके घाँव तक पहुँचने से पहले ही मर जायेगा… आइये - आप आगे बैठिये!”



मैंने देखा कि मेरी सास अभी भी खर्राटे मार रही थी और मेरे देवर का भी यही हाल था। मजबूरी का नाटक करते हुए मैं टाँगे से उतरी और आगे जा कर अपने देवर को जगाया। “असलम उठो! जाकर पीछे बैठो… मैं इधर आगे बैठुँगी!”



असलम बहुत ही सुस्त सा नींद में वहाँ से उठा और बिना कुछ बोले पीछे वाली सीट पर जा कर बैठ गया और मैं आगे की सीट पर टाँगेवाले की बगल में बैठ गयी। टाँगा फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। पंद्रह-बीस मिनट के बाद मैंने देखा कि असलम फिर सो गया है और इस बार उसने अपना सिर मेरी सास की गोद में रखा हुआ था। अब अगर वो अचानक जाग भी जाता तो हमें आगे देख नहीं सकता था। अब मैं बहुत खुश थी क्योंकि उस ठरकी टाँगेवाले को तड़पाने और लुभाने का और अब तक के बेरंग सफ़र में कुछ मज़ा लेने का ये बेहतरीन मौका था।



वैसे तो मैं हमेशा सलवार-कमीज़ या जींस-टॉप ही पहनती हूँ लेकिन हम शादी में जा रहे थे तो मैंने डिज़ायनर लहंगा-चोली पहना हुआ था और चोली के ऊपर झिनी सी चुनरी थी। नेट के कपड़े का झिना सा लहंगा था इसलिये उसके नीचे स्लिप (पेटीकोट) भी पहना हुआ था। एहतियात के तौर पे सफर के दौरान ज़ेवर नहीं पहने थे लेकिन पूरा मेक-अप किया हुआ था और पैरों में चार इंच ऊँची पेंसिल हील वाले फैंसी सैंडल पहने हुए थे। मैंने हमेशा महसूस किया है कि हाई हील के सैंडल पहनने से मेरा फिगर और ज्यादा दिलकश लगता है और मेरी कसी हुई गोल-गोल गाँड इमत्याज़ी तौर पे ऊपर निकल आती है। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।



मैंने फिर अपनी चुनरी को इस तरह एडजस्ट किया ताकि चोली में कसा मेरा एक मम्मा नज़र आये और फिर टाँगेवाले की तरफ देखते हुए मैंने पूछा, “अरे तुम्हारा घोड़ा तो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है! लगता है कि जैसे इसमें जान ही नहीं है!”



बेहयाई से मेरे मम्मों को देखते हुए टाँगेवाला बोला, “अरे मेमसाब जी! अभी आपने मेरा घोड़ा देखा ही किधर है! जब उसे देखोगी तो घबरा कर अपना दिल थाम लोगी!”



उसे और शह देने के मकसद से मैंने अपनी चोली का एक हुक खोल दिया। चोली में तीन ही हुक थे और बैकलेस चोली होने की वजह से मैंने नीचे ब्रा भी नहीं पहनी हुई थी। एक तो मेरी चोली पहले से ही बेहद लो-कट थी और अब हुक खोलने से मेरे मम्मों की घाटी का काफी हिस्सा टाँगेवाले की नज़रों के सामने नुमाया हो गया। टाँगे के ऊपर लटके लालटेन की हल्की रोशनी में ये नज़ारा देख कर टाँगेवाले को सही इशारा मिल गया। वो बोला, “मेमसाब! कभी मौका देकर तो देखिये हमारे घोड़े को… सवारी करके आपका दिल खुश हो जायेगा! पूरा मज़ा ना आये तो नाम बदल दूँगा!”



मैं कहने ही वाली थी कि “अपना या फिर…” लेकिन फिर जाने दिया। मैं उसकी दोहरे मतलब वाली बातें समझ रही थी कि हकीकत में वो ये कहना चाह रहा था कि मैं उसे अपनी चूत चोदने का एक मौका दे दूँ तो वो पूरी तरह मेरी दिलभर कर तसल्ली करवा देगा। उसे और तड़पाने के लिये मैं थोड़ा आगे को झुकते हुए बोली, “सवारी क्या खाक करायेगा! मुझे तो लगता है कि तुम्हारा घोड़ा तो एकदम बुड्ढा हो गया है देखो कैसी मरियल चाल है इसकी!”



टाँगेवाला बोला, “वो तो मेरा घोड़ा मेरे काबू में है… जब तक मैं इसे सिगनल नहीं दूँगा, ये उठेगा और भगेगा नहीं!” ये कहते हुए वो लुंगी के ऊपर से ही खुल्लेआम अपना लौड़ा सहलाने लगा।



उसकी दोहरी मतलब वाली बातों से मेरी चुदास भड़क रही थी और ज्यादा मज़ा लेने के लिये मैं उसकी तरफ थोड़ा और खिसक गयी। अब मेरा एक मम्मा टाँगे के हिचकोलों के साथ उसके कंधे को छू रहा था। टाँगेवाले ने जब देखा कि मैं उसे पूरी शह दे रही हूँ तो वो अपनी कोहनी से मेरे मम्मों को दबाने लगा। मुझे तो इसमें कोई एतराज़ था ही नही लेकिन मैंने एक बार पीछे की सीट पर ये तहकीक करने के लिये नज़र डाली मेरी सास और देवर गहरी नींद सो तो रहे हैं। फिर मुझे अपने जिस्म के उससे सटने के असर का भी एहसास हुआ - टाँगेवाले का लंड ने लुंगी में खड़े होकर उसे तंबू की शकल दे दी थी।



मैंने हंसते हुए मज़ाक में उसे छेड़ा, “अरे! तुम्हारा घोड़ा तो उठने लग गया!”



“अरे मेमसाब! इसे खाने का सामान दिखेगा तो बेचारा अपना मुँह तो खोलेगा ही ना… आखिर कब तक भूखा रहेगा!”

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Re: रज़िया और ताँगे वाला

Unread post by The Romantic » 14 Dec 2014 19:12





अब मुझे तड़पाने की बारी उसकी थी। इसलिये उसने अपनी लुंगी इस तरह धीरे से सरकायी कि उसकी जाँघें बिल्कुल नंगी हो गयी और एक झटके में ही वो किसी भी पल अपना लंड मेरे सामने नुमाया कर सकता था। मैं तो उसका लण्ड देखने के मरी जा रही थी। लुंगी के पतले से कपड़े में से उसके लंड की पूरी लंबाई नामोदार हो रही थी। करीब आठ-नौ इंच लंबे उस गोश्त को अपने हाथों में पकड़ने की मुझे बेहद आरज़ू हो रही थी। इसलिये टाँगेवाले को और उकसाने के लिये मैं मासूमियत का नाटक करते हुए अपने मम्मे उसके कंधे पर और ज्यादा दबाने लगी जिससे उसे ये ज़ाहिर हो कि टाँगे के हिचकोलों की वजह से ये हो रहा है। मेरे मम्मों की गर्मी उसे महसूस हो रही थी जिसके असर से लुंगी में उसका तंबू और बुलंद होने लगा और खासा बड़ा होकर खतरनाक नज़र आने लगा। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब भी वो टाँगेवाला खुद पे काबू कैसे कायम रखे हुए था। फिर लालटेन की मद्धम रोशनी में मैंने नोटिस किया कि उसके लंड का सुपाड़ा लुंगी के किनारे से नज़र आ रहा था।



“या मेरे खुदा!” मैं हैरानी से सिहर गयी। उसके लंड का सुपाड़ा वाकय में बेहद बड़ा था - किसी बड़े पहाड़ी आलू और लाल टमाटर की तरह। रात के अंधेरे में वो पूरी शान और अज़मत से चमक रहा था। मैं जानती थी कि इतना बड़ा सुपाड़ा देखने के बाद अब मैं ज्यादा देर तक खुद पे काबू नहीं रख पाऊँगी। उसे अपने हठों में लेकर उसे चूमने और उसे चाटने के लिये मैं तड़प उठी थी।



सूरत-ए-हाल अब बिल्कुल बदल चुके थे। उसे अपने हुस्न और अदाओं से दीवाना बनाने की जगह अब वो मुझे ही अपने बड़े लण्ड के जलवे दिखा कर ललचा रहा था। मैं अब और आगे बढ़ने से खुद को रोक नहीं सकी और अपनी चोली का एक और हुक खोल दिया। वैसे भी मेरी चोली में तीन ही हुक थे और उसमें से एक तो पहले ही खुला हुआ था और अब दूसरा हुक खुलते ही मेरे दोनों मम्मे चोली में से करीब-करीब बाहर ही कूद पड़े और अब खुली हवा में ऐसे थिरक रहे थे जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हों।



टाँगेवाले ने ये नज़ारा देखा तो शरारत से मेरे कान में धीरे से फुसफुसा कर बोला, “अरे मेमसाब! ये क्या… आपने तो अपने मम्मों को पूरा ही खुला छोड़ दिया, क्या हुआ आपको?”



मैंने कहा, “क्या करूँ! गर्मी बहुत है ना… इन बेचारों को भी तो रात की थोड़ी ठंडी हवा मिलनी चाहिये… बेचारे दिन भर तो कैद में रहते हैं!” सच कहूँ तो रात की ठंडक में अपने नंगे मम्मे को टाँगे के हिचकोलों के साथ झुलाते हुए उस ठरकी की बगल में बैठना बेहद अच्छा लग रहा था।



लहंगे में छुपी मेरी चूत की तरफ देखते हुए टाँगेवाला बोला, “तो फिर तो मेमसाब नीचे वाली को भी तो थोड़ी हवा लगने दो ना! उसे क्यों बंद कर रखा है!” ये कहते हुए उसने अपने हाथ मेरी जाँघों पर रख दिये और मेरी मुलायम और गोरी सुडौल टाँगों को नामूदार करते हुए लहंगा मेरी जाँघों के ऊपर खिसकने लगा - जैसे कि इशारा कर रहा हो कि मैं अपना लहंगा पूरा ऊपर खिसका कर अपनी चूत का नज़ारा उसे करा दूँ। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।



लेकिन मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि मैं उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी। मैं बोली, “अरे पहले ऊपर का काम तो मुकम्मल कर लें! नीचे की बात बाद में सोचेंगे ना!”



टाँगेवाला मेरे करीब-करीब नंगे मम्मों को देख रहा था जो चोली में से बाहर झाँक रहे थे। वैसे तो चोली का आखिरी हुक खोलना बाकी था लेकिन अमलन तौर पे तीसरे हुक का कोई फायदा नहीं था क्योंकि मेरे मम्मे तो झिनी चुनरी में से पूरे नंगे नुमाया हो ही रहे थे। टाँगेवाले से और सब्र नहीं हुआ और मेरे मम्मों को अपने हाथों में लेकर मसलने लगा। उसके मजबूत और खुरदरे हाथों के दबाव से मैं कंपकंपा गयी। मैं सोचने लगी कि जब इसके हाथों से मुझे इतनी लज़्ज़त मिल रही है तो अपने लंड से वो मुझे कितना मज़ा देगा।



फिर वो बोला, “मेमसाब आप अपने मम्मों का दीदार हमें छलनी में से छान कर क्यों करा रही हैं… ज़रा इस पर्दे को हटा दीजिये!” वो मेरी चुनरी की तरफ इशारा कर रहा था लेकिन इस दिल्चस्प शायराना अंदाज़ में उसे अपनी ख्वाहिश का इज़हार करते देख मैं मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी।



बरहाल उसकी गुज़ारिश मानते हुए मैं अपनी चोली का आखिरी हुक खोलते हुए बोली, “तुम्हारी तमन्ना भी पूरी कर देते हैं… लो अब तुम दिल भर के मेरे मम्मों से खेल लो… पर तुम सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचते रहोगे या हमारा भी कुछ ख्याल रखोगे?” मैं उसके बड़े लंड की तरफ देखते हुए बोली जो अब तक बेहद बड़ा हो चुका था और पहला मौका मिलते ही मेरी चूत फाड़ने के लिये तैयार था। मैं उस हैवान को हाथों में लेने के लिये इस कदर तड़प रही थी कि एक पल भी और इंतज़ार ना कर सकी और उसे अपनी लुंगी खोलने का भी मौका नहीं दिया और झपट कर उसका लौड़ा अपने हाथों में ले लिया।



ऊऊऊहहह मेरे खुदा! या अल्लाहऽऽ… वो इतना गरम था जैसे अभी तंदूर में से निकला हो! मुझे लगा जैसे मेरी हथेलियाँ उसपे चिपक गयी हों। मैं वो लौड़ा हाथों में दबान लगी जैसे कि मैं उसके कड़ेपन का मुआयना कर रही होऊँ। मेरी चूत भी उस लंड को लेने के लिये बिलबिला रही थी। उस पल मैंने फैसला किया कि जिस्म की सिर्फ नुमाईश और ये छेड़छाड़ और मसलना काफी हो गया… आज की रात तो मैं इस लौड़े से अपनी चूत की आग ठंडी करके रहुँगी। अब मैं उससे चुदवाये बगैर नहीं रह सकती थी। इस दौरान टाँगेवाला एक हाथ से मेरे मम्मों से खेलने में मसरूफ था। वो मेरे निप्पलों को मरोड़ रहा था और झुक कर उन्हें चूसने की कोशिश भी कर रहा था लेकिन टाँगे के हिचकोलों की वजह से ठीक से चूस नहीं पा रहा था। मैं उसके लण्ड को इतनी ज़ोर-ज़ोर से मसल रही थी जैसे कि ज़िंदगी में फिर दोबारा मुझे दूसरा लण्ड नसीब नहीं होगा। फिर कमीने लण्ड का ज़ुबानी एहतराम करने के लिये मैं उसे अपने मुँह में लेने के लिये झुक गयी।

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