मुम्बई के सफ़र की यादगार रात

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The Romantic
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मुम्बई के सफ़र की यादगार रात

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:28

मुम्बई के सफ़र की यादगार रात-1

लेखक : सन्दीप शर्मा

दोस्तो,

मेरी पिछली कहानियों के बाद आप सभी के प्यार का बहुत-बहुत शुक्रिया !

आपके काफ़ी ईमेल मिले तथा तीन सौ से अधिक फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली, मेरा दिल खुश हो गया। मैंने लगभग हर मैसेज और मेल का जवाब देने की कोशिश की है पर अगली कहानी शुरू करने के पहले मैं कुछ बात आपसे करना चाहूँगा जो आप सभी के कुछ सवाल हैं और उनका जवाब है।

पहली बात यह है कि मेरी कहानी पूरी सच्ची कहानी है, उसमें कोई लाग लपेट या झूठ नहीं है कहीं भी, जो हुआ था मैंने वही लिखा था तो कृपया यह सवाल फिर से ना करें कि घटना सच्ची है या झूठी। मेरी 48 कहानियाँ हैं जो सभी पूरी सच्ची हैं और मैं उन्हें लिखूँगा।

मेरी दूसरी बात ! अगर आप मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजें तो आपके नाम से भेजे किसी दूसरे के या छद्म नाम से भेजे वो आपकी सोच है पर मेरी महिला मित्रों के नम्बर मांगने के लिए लिंग परिवर्तित कर के किसी लड़की के नाम से मेरे पास रिक्वेस्ट ना भेजिए, मैंने एक भी लड़के की फ्रेंड रिक्वेस्ट रिजेक्ट नहीं की है पर चार छद्म लड़कियों को जरूर ब्लाक किया है।

अब मैं कहानी पर आता हूँ।

आज से करीब छः साल पहले की बात है, मुझे इंदौर से दफ्तर के कुछ काम के सिलसिले में मुंबई जाना था। कार्यक्रम अचानक तय हुआ था, इसलिए ट्रेन का टिकट तो मिल नहीं सकता था तो बस से जाने का तय हुआ। उस वक्त एसी वाली बसें चलन में थी अत: मेरे लिए एसी स्लीपर बस का टिकट आया और मैंने अपना बैग पैक करके शाम को साढ़े छः पर हंस ट्रेवल से बस पकड़ ली।

मैं बस में आने के पहले यही सोच रहा था कि काश कोई अच्छी भाभी, आंटी या लड़की मिल जाये तो सफर आसान हो जायेगा। मुझे दरवाजे से दूसरे नम्बर की अकेली सीट मिली थी। मैंने देखा मेरी सीट के सामने वाली सीट पर तो कोई अभी तक आया ही नहीं था पर बगल वाली सीट पर एक माँ-बेटी जरूर बैठी हुई थी, बेटी काफी सुंदर थी पर माँ उतनी ही खडूस दिख रही थी तो मुझे लगा कि अपना काम नहीं होगा।

मेरे पास उस वक्त कंपनी का नया लैपटॉप था और साथ ही डाटा कार्ड भी जो उस वक्त बहुत धीमा इन्टरनेट देता था लेकिन कनेक्शन दे देता था। मैंने लैपटॉप चालू किया और मैंने याहू पर चैटिंग शुरू कर दी। थोड़ी देर पड़ोस वाली लड़की देखती रही फिर पूछने लगी- क्या आप नेट चला रहे हो?

मैंने सर हिला कर हाँ में जवाब दिया तो बोली- क्या आप मेरा मेडिकल एंट्रेंस का रिजल्ट देख कर बता दोगे? शाम को आना था पर हमें मुंबई जाना पड़ रहा है।

मैंने कहा- ठीक है, कोई दिक्कत नहीं !

मैंने उसका रिजल्ट देखा लेकिन रिजल्ट तब तक आया नहीं था। फिर हम दोनों की थोड़ी बातें शुरू हो गई, मैं भी मेडिकल की परीक्षा दे चुका था तो मैं उसी बारे में बात करने लगा।

इतने में हम लोग बस के अगले स्टॉप पर आ गये और यहाँ पर एक बूढ़े दादा-दादी जी आंटी के सामने वाली सीट पर बैठ गये और मेरे सामने वाली सीट पर एक लड़की बैठ गई।

देखने में वो लड़की कोई बहुत सुंदर नहीं थी पर आकर्षक बहुत थी, सामान्य सा चेहरा, थोड़ी सी मोटी, हलकी चपटी नेपाली नाक, गेंहुवा रंग, हलके घुंघराले बाल पर उसकी आँखें बहुत सुंदर थी और बहुत आकर्षक भी। उसने जींस और टी शर्ट पहन रखी थी जिसमें वो काफी आकर्षक लग रही थी। वो आकर मेरे सामने वाली सीट पर बैठ गई और मेरी बांछें खिल उठी, मैंने सोचा चलो रास्ते भर का काम हो गया।

वो आई तो मैंने लैपटॉप बंद कर दिया और उससे बातें करने लगा, बातों बातों में पता चला कि वो दिल्ली की रहने वाली है, उसका नाम साक्षी मालिक है और मुंबई में धारावाहिकों में एक्स्ट्रा के तौर पर काम करती है, यहाँ किसी काम से आई थी और अब वापस जा रही है।

हम लोग ऐसे ही बातें करते जा रहे थे और कब सनावद आ गया पता ही नहीं चला। वहाँ बस यात्रियों के खाना खाने के लिए रुकी थी तो मैंने साक्षी से भी कहा- चल कर खाना खा लो !

और उन दोनों माँ बेटी से भी कहा तो आंटी ने तो मना कर दिया और मन मार कर उनकी बेटी को भी मना करना पड़ा लेकिन साक्षी मेरे जोर देने पर मेरे साथ खाना खाने के लिए आ गई। वो खाना खाने आई तो हम दोनों अकेले ही हो गये थे हमने थोड़ा खाना आर्डर किया और बिल मैंने ही भरा। खाना खाते हुए मैं उससे मजाक करने लगा था जिसमें थोड़ा बहुत सेक्स का पुट भी था और उसे उस मजाक से कोई तकलीफ नहीं हुई तो मेरे हौंसले बढ़ गये और मैं उससे और सेक्सी मजाक करने लगा।

फिर खाना खा कर हम बस में आ गये और हम थोड़ी देर बात करते रहे, चूंकि अब तक रात हो चुकी थी तो पड़ोस में जो चारों लोग थे वो नीचे और ऊपर वाली बर्थ पर सो चुके थे।

साक्षी मुझसे बोली- संदीप तुम्हारे लैपटॉप में फिल्में हैं क्या? अगर हैं तो चालू करो, देखते हैं।

मेरे पास फिल्में तो थी ही, लेकिन मैंने कहा- मेरे पास अंग्रेजी फिल्में हैं, हिंदी नहीं हैं !

वो बोली- कोई बात नहीं वही चालू करो ! मुझे भी इंग्लिश फिल्में देखना पसंद है।

मैंने कहा- ठीक है !

और मैंने हेडफोन लगा कर "द ड्रीमर्स" फिल्म शुरू कर दी..

मैंने इस फिल्म को पहले भी देखा था और मैं जानता था कि इसमें बहुत ही उत्तेजक दृश्य हैं। दो सीट का बेड बना कर, पर्दा लगा कर मैंने साक्षी को मेरा बगल में पैर फैला कर बैठने के लिए कहा, ऊपर से कम्बल रख लिया और हेडफोन का एक स्पीकर साक्षी को दे दिया और दूसरा मेरे कान में लगा कर फिल्म देखने लगे।

करीब 45 मिनट तक हम फिल्म देखते रहे और एक दूसरे के हाथों में हाथ ले कर बैठे रहे, जगह कम थी तो यह समझिए कि एक दूसरे के ऊपर नहीं थे बस बाकी चिपके हुए ही थे..

मेरे बदन में तो आग लगना शुरू हो ही चुकी थी और साक्षी भी कोई शांति से बैठी नहीं थी और इस सब के बीच में एक दो बार कुछ ऐसे दृश्य आ चुके थे जिसमें लड़की-लड़का बिना कपड़ों के एक दूसरे के साथ सोये हुए हैं... उसके भी हाथ मेरे बदन पर चल ही रहे थे। इसी बीच फिल्म में एक सेक्सी सीन आने लगा जो कि निहायत ही सेक्सी था जिसमे फिल्म की नायिका पूरे कपड़े उतार कर डांस कर रही थी और उसके बाद कौमार्य भंग का दृश्य था जो कि पूरी तरह से दिख रहा था और गजब का सेक्सी था।

उस सीन के आने पर साक्षी पागल हो गई और मेरे लण्ड को पैंट के ऊपर से ही मसलने लगी। मैंने भी लैपटॉप उठा कर पैरों के तरफ कोने में कर दिया और कपड़ों के ऊपर से ही उसकी चूत पर हाथ चलाने लगा, उसे चूमने लगा और उसके बड़े बड़े चूचों को दबाने लगा।

हम दोनों थोड़ी देर तक ऐसे ही एक दूसरे के साथ मस्ती करते रहे फिर लैपटॉप पर पैर पड़ रहा था और वो तकलीफ भी दे रहा था तो मैंने लैपटॉप को बंद करके बैग में रखा और पूरी सीट को खाली कर लिया।

अब हमने एक दूसरे को फिर से चूमना शुरू किया और मैंने साक्षी को नीचे लेटा दिया। बस में कपड़े उतरना बहुत ही खतरे का काम था तो मैं उसके ऊपर कपड़े पहने पहने ही चढ़ गया और उसके होंठों को चूमने लगा जिसमें वो मेरा पूरा साथ दे रही थी अपने हाथों से मेरे सर को सँभालते हुए।

मैं दोनों हाथों से उसके बड़े बड़े दूधों को मसल रहा था और कपड़ों के ऊपर से ही मेरे लण्ड को उसकी चूत पर मसल रहा था। बीच बीच में मैं उसकी गर्दन पर भी चूम लेता था, इस हालात में भी उसने अपनी आवाजें बिल्कुल संयत कर रखी थी, वो तड़प तो रही थी पर उसके मुँह से एक भी आवाज नहीं निकलने पा रही थी।

हम दोनों ने यह काम 15-20 मिनट किया होगा कि वो झड़ने लगी और अचानक ही उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और पूरी तरह से झड़ गई।

मैं अभी भी उसको ऊपर चढ़ कर कपड़ों के ऊपर से ही रगड़ रहा था तो वो धीरे से बोली- बस, अब सहन नहीं होता।

मैंने कहा- ठीक है, कोई बात नहीं ! मैं उतरता हूँ !

तो बोली- तुम नीचे आ जाओ, मैं चूस कर निकाल दूँगी और तुम्हारी अंडरवियर भी गन्दी नहीं होगी।

मुझे इससे ज्यादा क्या चाहिए था, मैं नीचे लेट गया उसने मेरी पैंट खोल कर नीचे खसकाई, अंडरवियर नीचे किया और मेरा लण्ड मुँह में ले कर चूसने लगी, गजब का चूस रही थी यार !

उसके चूसने से मैं तड़पने लगा, बस आवाज ही दबा कर रखी हुई थी मैंने ! अगर आवाज निकालता तो बस में सबके जागने का डर था। उसने दो मिनट चूसा होगा कि मैं झड़ने लगा, मैंने उसको इशारों में कहा तो वो और तेज चूसने लगी और बस उसके तुरंत बाद ही मैं भी बुरी तरह से झड़ने लगा और वो मेरे वीर्य की एक एक बूँद पी गई, उसने तब तक मुँह नहीं हटाया जब तक मेरा पूरा लण्ड साफ़ नहीं हो गया।

उस समय झड़ते वक्त मैं मेरी चीख कैसे रोक पाया था, मैं ही जानता हूँ लेकिन यह तय है कि अगर मैंने आवाज ना रोकी होती तो पूरी बस जाग गई होती।

चूसने के बाद उसने उसके हैण्ड बैग से टिशु पेपर निकाला और मेरा लण्ड पोंछा फिर मेरे मुरझाये हुए लण्ड को मेरे कपड़ो में डाल के मेरी पैंट ऊपर खसका दी।

उसके बाद...

इसके बाद की कहानी अगली कड़ी में !

इन्तजार कीजिए और मुझे मेल भेज कर बताइए कि कैसी लगी मेरी कहानी आपको?


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Re: मुम्बई के सफ़र की यादगार रात

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:28

मुम्बई के सफ़र की यादगार रात-2

लेखक : सन्दीप शर्मा

उसके बाद उसने अपने हैण्ड बैग से टिशु पेपर निकाला और मेरा लण्ड पौंछा, फिर मेरे मुरझाये हुए लण्ड को मेरे कपड़ों में डाल के मेरी पैंट ऊपर खसका दी, मेरे होंठों को चूमते हुए बोली- मुझे आज तक कपड़ों के साथ इतना मजा कभी नहीं आया।

मैं समझ गया कि मेरा मुम्बई का चार दिन का स्टे बढ़िया रहने वाला है।

चूंकि हम दोनों का ही एक बार हो चुका था और बस में नीचे की सिंगल सीट में कपड़े उतारना मुमकिन नहीं था तो आगे का हम दोनों ने कुछ करने का भी नहीं सोचा।

सुबह मुझे काम पर जाना था तो थोड़ी नींद लेना मेरे लिए भी जरूरी था, इसलिए मैंने उसे कहा- रात हो गई है, तुम ऊपर जा कर अपनी सीट पर सो जाओ।

वो ऊपर जा कर उसकी सीट पर सो गई, मैं नीचे अपनी सीट पर सो गया। नींद कब लगी पता ही नहीं चला, बीच में एक बार नींद खुली, उसे देखा तो वो ठंड से कांप रही थी तो अपना कम्बल मैंने साक्षी पर डाल दिया और उसका एसी बंद कर दिया। मैं चादर ओढ़ कर सो गया।

सुबह करीब सात बजे उसने ही मुझे जगाया। जागने का मन तो नहीं था पर सो भी नहीं सकता था अत: उठ गया, उठ कर उससे बाते करने लगा पर रात वाली कोई बात न उसने करी न मैंने की।

फिर उसने मेरा नम्बर माँगा मैंने कार्ड निकाल कर उसे दे दिया, कार्ड में सिर्फ दफ्तर का नम्बर और मेरा मेल आई डी लिखा था। मैंने पेन से उस पर मोबाइल नम्बर भी लिख दिया। वो मेरा पहला मोबाइल फोन था जो मैंने खरीदा था 1300 रूपये में सेमसंग का रिलायंस वाला फोन।

उसने कहा कि वो फोन करेगी।

मैंने कहा- मैं शाम को तो फ्री रहूँगा तो तुम फोन करना, हम लोग साथ में कॉफी के लिए मिलेंगे।

उसने कहा- ठीक है।

मैंने उसका नम्बर माँगा तो वो बोली- मेरे पास मोबाईल नहीं है !

जो आज से छः साल पहले सामान्य बात थी।

फिर हम दोनों की ज्यादा बात नहीं हुई और हम आठ बजते बजते मुंबई पहुँच गये। मेरे रहने का इन्तजाम बोरीवली स्टेशन के पास के किसी होटल में किया गया था और आईसीआईसीआई बैंक की मुख्य शाखा के पास मुझे काम करने जाना था।

मैं दस बजे दफ्तर पहुँचा और काम करना शुरू तो किया लेकिन मेरा मन काम में कम और साक्षी में ज्यादा था।

जैसे तैसे मैं काम निपटा रहा था और शाम को करीब तीन-चालीस पर साक्षी का फोन आया, वो बोली- मेरे पास जो रहने की जगह थी वो अब नहीं है और अभी रहने का कोई ठिकाना नहीं है। क्या एक दिन के लिए तुम्हारे साथ मेरे होटल में रुक सकती हूँ, कल मेरी सहेली आ जायेगी तो उसके घर चली जाऊँगी।

मुझे क्या चाहिए था, मैंने कहा- हाँ बिल्कुल रुक जा ना यार ! तेरे लिए मना तो है नहीं।

मैंने कहा- तू मुझे आईसीआईसीआई बैंक की मुख्य शाखा पर मिल !

तो वो बोली- मैं बोरीवली स्टेशन आ जाऊँगी।

मैंने कहा- ठीक है, वहीं आ जा !

और मैं पाँच बजे तक काम निपटा कर वहाँ से निकल गया। मेरा प्रेजेंटेशन अगले दिन था तो उस दिन जल्दी निकल भी सकता था मैं।

मैं ऑटो पकड़ कर सीधे बोरीवली स्टेशन गया, तब तक उसका भी फोन आया, मैंने बताया कि मैं कहाँ पर हूँ, मैंने उसे जगह बताई और हम लोग स्टेशन से सीधे मेरे होटल आ गये। रास्ते में मैंने ध्यान दिया कि उसके पास सिर्फ एक छोटा सा बैग था जिसमें मुश्किल से तीन जोड़ी कपड़े आ सकते थे, पर मैंने कुछ कहा नहीं।

दफ्तर से स्टेशन जाते हुए मैंने एक मेडिकल स्टोर पर ऑटो रुकवा कर पहले ही मूड्स सुप्रीम कंडोम का एक बड़ा पैकेट खरीद लिया था।

होटल पहुँच कर मैंने उसे तो सीधे कमरे की तरफ भेज दिया था और मैं खुद चाभी लेने काउंटर पर चला गया।

काउंटर से चाभी ली और मैं कमरे की तरफ गया, उसे साथ लिया और कमरे में पहुँच गया।

कमरे के अंदर पहुँचना था कि वो तो मुझ पर मानो चढ़ ही गई, उसने बैग एक तरफ फैंका, मेरा लैपटॉप बैग कंधे से जबरन ही उतारा और मुझे चूमना शुरू कर दिया।

मैं भी रुकना तो चाहता नहीं था तो मैंने भी उसके चुम्बनों का जवाब देना शुरू कर दिया, चुम्बनों के साथ ही मैं उसके दोनों बड़े बड़े स्तनों को भी दबाते जा रहा था और वो एक हाथ से मेरे लण्ड को मसल रही थी।

मैंने इसी बीच उसके कपड़े उतारने शुरू कर दिए और उसने मेरे।

मैंने पहले उसकी जैकेट उतारी फिर टीशर्ट भी उतार दी अब वो काली ब्रा और जींस में बड़े बड़े चूचक में गजब की दिख रही थी। हालांकि कमर पर थोड़ी सी चर्बी जरूर थी पर फिर भी उस वक्त तो मुझे वो जन्नत की हूर ही दिख रही थी।

उसकी टीशर्ट उतार कर मैंने उसके चूचों को मसलना और चूमना शुरू कर दिया, जीभ से चाटना भी शुरू कर दिया तो वो भी जल्दी जल्दी मेरे कपड़े उतारने में लग गई और मुझे पता भी नहीं चला कि कब उसने मेरी शर्ट और पैंट उतार दी। अब मैं सिर्फ अंडरवियर और बनियान में था और वो ब्रा और जींस में !

मैंने भी उसकी जींस उतारने के लिए उसको बिस्तर पर ले जाकर धक्का दे दिया क्यूँकि उसको उठाना मेरे बस के बाहर की बात थी। उसे बिस्तर पर गिरा कर मैं उसकी जींस उतारने लगा। जब मैंने जींस उतारी तो देखा कि जांघों से लेकर पैरों तक एकदम चिकनी थी वो, कहीं कोई बाल नहीं, कहीं कोई रुखी त्वचा नहीं।

उसके बाद मेरा ध्यान उसकी बांहों पर गया जो पूरी तरह से चिकनी थी और उसकी बगलों में भी कोई बाल नहीं था, और बाकी के शरीर पर भी मुझे कोई बाल नहीं दिखा, जो मेरे लिए एक नया अनुभव था पर मैं तो उसको काली जालीदार ब्रा और पैंटी में देख कर पागल सा हो रहा था और वो शायद और ज्यादा पागल हो रही थी।

मैंने साक्षी के ऊपर आकर उसे चूमना शुरू किया और उसने अपने हाथों से मेरी अंडरवियर और बनियान भी उतार दी। अब मैं पूरा नंगा था और वो सिर्फ ब्रा और पैंटी में, पर मैंने उसकी ब्रा और पैंटी उतारने की कोई जल्दी नहीं की बल्कि उसकी ब्रा के ऊपर से ही मैंने उसके कड़क हो चुके चुचूकों को चूसना शुरू कर दिया। वो तड़पने लगी और अपने नाखूनों से मेरी पीठ को खरोंचने लगी। उसने इतनी जोर से नाखून चुभाये कि मेरी पीठ पर थोड़ा खून उभर आया पर उस वक्त की मस्ती में होश किसे था, वो नाखूनों का चुभना भी तब तो सुख ही लगा था।

अब मैंने उसके चूचों को छोड़ उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया, होंठों को चूसने में वो भी मेरे होंठों को चूसते हुए पूरा साथ दे रही थी। फिर उसने मेरी जीभ को अपने मुँह में लेकर मेरी जीभ को चूसना शुरू कर दिया और मैं उसके दोनों तन चुके चुचूकों को ब्रा के अंदर हाथ डाल कर मसल रहा था।

हम दोनों इसी तरह एक दूसरे को चूम रहे थे और मैं उसे मसल रहा था, वो मेरी पीठ को खसोट रही थी, हाथों से मेरे बालों को सहला रही थी।

यह कार्यक्रम कुछ मिनटों तक चलता रहा, फिर वो बोली- मुझे तुम्हारा चूसना है।मैंने कहा- चूसो ! मैंने कहाँ मना किया है?

पर मैंने उसके मुंह में लण्ड देने के बजाय खुद को उसके नीचे की तरफ खिसकना शुरू कर दिया और होंठों से नीचे होता हुआ उसकी ठोड़ी पर कुछ सेकंड तक चूमा, फिर और नीचे खिसक कर उसके गले को चूमा, फिर और थोड़ा नीचे खिसक कर उसके दोनों चुचूकों के बीच में चूमा और वहाँ थोड़ी देर तक चूसता रहा।

मैं यह सब कर रहा था और वो कह रही थी- संदीप बस करो ना.. और नहीं.. प्लीज रुक जाओ.. मुझसे सहन नहीं हो रहा।

लेकिन इसके बाद भी एक भी बार उसने मुझ हटाने की कोशिश नहीं की और मैं उसे चूसता हुआ थोड़ा और नीचे खिसका और उसकी चूचियों को थोड़ा ऊपर उठा कर मैंने साक्षी की चूचियों के नीचे वाली जगह को चूमना शुरू कर दिया और इसके बाद वो पागल सी होने लगी तड़पने लगी।

मैं थोड़ा और नीचे खिसक कर उसकी नाभि के पास आया और मैंने उसकी नाभि के चारों तरफ अपनी जीभ चलाना शुरू कर दी। मेरी जीभ जैसे ही उसकी नाभि पर गई वो तो उछल गई, उसने हाथों से मेरे बालों को नोचना शुरू कर दिया और अपने पैरों को मेरी पीठ पर लपेट लिया। मैंने अपनी जीभ को उसकी नाभि के अंदर तक घुसा दिया और जोर जोर से चलाने लगा, मेरा सीना उसकी चौड़ी टांगों के बीच में था जिससे वो खुद को रगड़ रही थी। मैंने उसकी नाभि के छेद को जीभ से चूसना लगातार चालू रखा और वो मुझे अपने में समाने की कोशिश करते हुए अचानक अकड़ने लगी और मैं कुछ समझता उससे पहले ही वो बुरी तरह से झड़ने लगी और झटके मारने लगी।

हर झटके के बाद उसकी पकड़ ढीली होती और हर झटके के वक्त मुझे कस लेती, जब वो दस-बारह झटके मार कर पूरी तरह से झड़ गई तो बड़े प्यार से उसने मेरे सिर को पकड़ कर मुझे ऊपर की तरफ खींचा और मैं भी उसकी तरफ खिचंता चला गया।

उसने अपने तपते हुए होंठ को मेरे होंठों पर रख दिए...

इसके बाद क्या हुआ?

जानने के लिए अगली कड़ी का इन्तजार कीजिए !

मुझे बताइए कि कैसी लगी मेरी कहानी आपको?

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Re: मुम्बई के सफ़र की यादगार रात

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 15:29

मुम्बई के सफ़र की यादगार रात-3

लेखक : सन्दीप शर्मा

मैं थोड़ा और नीचे खिसक कर उसकी नाभि के पास आया और मैंने उसकी नाभि के चारों तरफ अपनी जीभ चलाना शुरू कर दी। मेरी जीभ जैसे ही उसकी नाभि पर गई वो तो उछल गई, उसने हाथों से मेरे बालों को नोचना शुरू कर दिया और अपने पैरों को मेरी पीठ पर लपेट लिया। मैंने अपनी जीभ को उसकी नाभि के अंदर तक घुसा दिया और जोर जोर से चलाने लगा, मेरा सीना उसकी चौड़ी टांगों के बीच में था जिससे वो खुद को रगड़ रही थी। मैंने उसकी नाभि के छेद को जीभ से चूसना लगातार चालू रखा और वो मुझे अपने में समाने की कोशिश करते हुए अचानक अकड़ने लगी और मैं कुछ समझता उससे पहले ही वो बुरी तरह से झड़ने लगी और झटके मारने लगी।

हर झटके के बाद उसकी पकड़ ढीली होती और हर झटके के वक्त मुझे कस लेती, जब वो दस-बारह झटके मार कर पूरी तरह से झड़ गई तो बड़े प्यार से उसने मेरे सिर को पकड़ कर मुझे ऊपर की तरफ खींचा और मैं भी उसकी तरफ खिचंता चला गया।

उसने अपने तपते हुए होंठ को मेरे होंठों पर रख दिए... और हम दोनों फिर एक दूसरे को के होंठों का रसपान करने लगे, जिस तरह से साक्षी झड़ी थी मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि वो दूसरी बार के लिए भी इतनी जल्दी तैयार होगी, अब उसने मुझे पलट कर नीचे कर दिया और खुद मेरे ऊपर आ गई और उसके ऊपर आने के बाद उसके नर्म नर्म स्तन मेरे सीने पर दब रहे थे, उसके होंठ मेरे होंठों को चूस रहे थे, उसके हाथ मेरे बालों पर चल रहे थे और मेरे हाथ उसकी ब्रा को खोलने में मग्न थे।

वो मुझे चूमती जा रही थी और मैंने उसकी ब्रा खोलने के बाद मेरे हाथों से उसकी पैंटी को भी थोड़ा सा नीचे खसका दिया और फिर मेरे पैरों का इस्तेमाल करते हुए उसकी पैंटी को पूरा निकाल दिया, जिसमें साक्षी ने भी मेरी पूरी मदद की।

अब साक्षी पलट कर के मेरे पैरों की तरफ आ गई और मेरे लण्ड को उसने मुँह मे लेकर चूसना शुरू कर दिया, कभी वो मेरे लण्ड को सीधे चूस रही थी कभी बगल से चाट रही थी और कभी मेरी अंटियों को मुँह में भर ले रही थी और दूसरी तरफ मैं भी उसकी चूत को चूमते जा रहा था, कभी मेरे होंठों से उसके निचले बड़े बड़े होंठों को मुँह मे भर कर निचोड़ लेता तो कभी वो मेरे लण्ड के सुपारे को अपने मुँह से निचोड़ रही थी...

हम दोनों का यही सब काम कुछ देर तक चला था कि मैं झड़ने वाली हालात में आ गया, मैंने कहा- साक्षी, मैं झड़ने वाला हूँ !

यह सुनते ही उसने मेरे लण्ड को चूसना बंद कर दिया, मेरे लण्ड के सुपारे की चमड़ी को पलट कर उसे चाटने लगी और जोर जोर से जीभ सुपारे के ढके रहने वाले संवेदनशील हिस्से पर चलाने लगी और जीभ से उसे चाटने लगी।

मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं जन्नत की सैर कर रहा हूँ ! और इसके साथ ही वो अपनी चूत को भी मेरे होंठों पर रगड़े जा रही थी। मेरी हालत ऐसी थी कि मैं कभी भी झड़ सकता था।

साक्षी ने इसी तरह से कुछ देर मेरे सुपारे को चाटा और फिर मेरा लण्ड अपने मुँह में लेकर उसे वापस चूसना शुरू कर दिया और मैं पूरे वक्त उसकी चिकनी चूत को चूस रहा था, रस का मजा ले रहा था, उसकी मोटी गाण्ड को मसल रहा था कि अचानक वो झड़ने लगी, वो झड़ते हुए मेरे लण्ड को भी जोर जोर से चूस रही थी और मैं भी झड़ने लगा, कभी मैं झटका मार रहा था कभी वो !

साक्षी की चूत से ढेर सारा नमकीन रस निकला जो मैं पूरा पी गया और मेरे सारे वीर्य को वो पी गई, उसने एक बूँद भी इधर उधर नहीं जाने दी, पूरा वीर्य अंदर गटक गई।

जब हम दोनों का झड़ना बंद हुआ तो मैं तो बुरी तरह से थक चुका था और साक्षी की भी हालत कोई ठीक नहीं थी तो वो मेरे बगल मे आ कर मेरे दायें कंधे पर सर रख कर लेट गई और मेरे बालों को सहलाने लगी और बड़े प्यार से बोली- तुम्हें कम से कम तुम्हारे प्यूबिक हेयर तो साफ़ करके रखना चाहिए ना ! कितनी तकलीफ देते हैं, मुँह में आते हैं।

मैंने कहा- सॉरी डार्लिंग ! आगे से कर लूँगा !

और लेटे लेटे ही फोन उठा कर पावभाजी का एक्स्ट्रा पाव के साथ आर्डर दे दिया, और चार बोतल पानी की भी लाने को कह दिया। मुझे सेक्स के बाद यूँ भी बहुत भूख प्यास लगती है और तब तो दिन भर का भूखा था ही।

मैंने खाने का आर्डर दे दिया तो वो बोली- थोड़ा आराम कर लो, फिर कुछ काम करना पड़ेगा..

मैंने कहा- काम तो आज रात भर करना है ! जानू, तुम क्यों चिंता करती हो?

हम दोनों थोड़ी देर लेटे थे कि दरवाजे की घंटी बजी... साक्षी ने कम्बल पूरी तरह से ओढ़ लिया मैने जल्दी से शर्ट पहनी, तौलिया लपेटा और जाकर ट्रॉली ले ली और वेटर को बाहर से ही चलता कर दिया।

अब हम दोनों ने पाव भाजी खाई और उसके बाद साक्षी मुझसे बोली- अब तुम्हें एक काम करना होगा मेरी मर्जी से...

मैंने कहा- हुकुम करो जान ! क्या करना है?

वो उठी, उसके बैग में से कुछ निकालने गई और मुझसे बोली- तुम बाथरूम में चलो, मैं भी आ रही हूँ।

मैं आज्ञाकारी बच्चे की तरह बिना किसी सवाल के बाथरूम में चला गया, पीछे पीछे वो भी आई, जब वो अंदर आई तो उसके हाथ में...

इसके बाद की कहानी अगली कड़ी में !

मुझे मेल भेज कर बताइये कि कैसी लगी मेरी कहानी आपको !


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