दीदी हँस रही थी पर कुछ नाराज़ थी उसे पता था कि क्या होने वाला है "अरे छोडो मेरे को, ये क्या बचपना है"
शन्नो जी बोलीं "बेटी, अब तमाशा देखो और ज़रा और मस्त हो लो तुम दोनों को इसलिए बाँध दिया कि कोई दखलंदाजी ना करो अब समधनजी के बेटे और बेटी के सामने हम उनको नंगा करेंगे और फिर छोड़ेंगे अपने बच्चों के सामने चुदती माँ को देखने में जो मज़ा आएगा वो और किसी में नहीं"
फिर उन्होंने अपने अपने कपड़े निकाले माँ पलंग पर बैठ कर सहमी सहमी हमें देख रही थी जीजाजी और रजत के कसे नंगे बदन और उनके तन्नाए हुए लंड देखकर उसकी आँखें पथरा गयीं और जब उसने शन्नो जी का भरा पूरा मांसल बदन देखा तो अपने आप को ना रोक पाई उसका हाथ अपनी बुर पर चला ही गया कभी वह मेरे लंड को देखती, कभी दीदी की नंगी जवानी को और कभी उन माँ बेटों के नंगे शरीर को
शन्नो जी उसके पास जाकर बैठीं और उसके साड़ी खोलने लगीं जीजाजी ने उसका ब्लओज़ उतारा और रजत उसका पेटीकोट उतारने लगे माँ शरमा कर नहीं नहीं करने लगी
"अरे समधनजी, अपना यह रूप अपने बच्चों पर इतने दिन लुटाया है, अब ज़रा हमें भी चखने दो तुम्हारी बेटी जब से इस घर की बहू बनकर आई है, और अपनी माँ के जोबन के बारे में बताया है, तब से तुम्हारे इन गदराए फलों को खाने को हम मरे जा रहे हैं अब नखरा ना करो"
माँ चुपचाप अपने कपड़े उतरवा रही थी काफ़ी गरम हो गयी थी थोड़ी शरमाते हुए बोली "आप मुझसे बड़ी हैं, मुझे समधनजी क्यों कहती हैं? अपनी छोटी बहन समझिए मुझे मेरे नाम से बुलाए - बीना"
माँ और कुछ बोलना चाहती थी पर शन्नो जी ने उसके मुँह को अपने मुँह से बंद कर दिया रजत माँ का पेटीकोट उतार कर उसकी गोरी मांसल जांघों को चूम रहे थे "वाह क्या जांघें हैं हमारी सासूजी की, जांघें इतनी रसीली हैं तो उनके बीच का खजाना क्या रसीला होगा!"
अब तक जीजाजी ने माँका ब्लओज़ निकाल डाला था और ब्रा के उपर से ही मांकी चुचियाँ दबा रहे थे "मस्त मम्मे हैं अम्मा, स्पंज के गोले लगते हैं" वे बोले
रजत जी ने अब तक माँ के पैंटी भी उतार दी थी और उसकी झांतों पर हाथ फेर रहे थे "सिमर, अब समझ आया तेरी झांतें इतनी घनी और घूघराली कैसे हैं, बिलकुल अपनी माँ पर गयी है"
माँ को पूरा नंगा करके सबने पलंग पर लिटा दिया और चढ बैठे "बड़ी लज़ीज़ चीज़ है अम्मा हमारी सासूजी, चोद डालें?" जीजाजी माँ के मम्मे मसलते हुए बोले
मैं चिल्ला उठा माँ
माँ की आँखों की कामना मुझे सहन नहीं हो रही थी, मैं जानता था कि उसका क्या हाल होगा "अरे चोद डालिए जीजाजी, उसे ऐसे ना तडपाइये बेचारी कई दिनों की भूखी है, उसे आदत नहीं है भूखा रहने की"
दीदी भी बोल पडी "अजी सुनो, अब मुझे खोल दो, अम्मा की चूत का स्वाद लिए महीनो हो गये, पहले मुझे चूस लेने दो, फिर चोदना"
शन्नो जी मुस्कराई और बोलीं "हल्ला ना करो, सबको चखने मिलेगी ये मिठाई अभी चोदो नहीं, मुँह से स्वाद लो इनके जोबन का पेट भर के चूस लो, फिर चोद लेना अब तुम दोनों ज़रा हटो, पहला हक मेरा है"
शन्नो जी माँ के पैरों के बीच में बैठ गयीं और उसकी चूत को उंगली से खोल कर देखने लगी "एकदम गुलाबी और रसीली है" उंगली अंदर डाल कर उन्होंने अंदर बाहर की और फिर चाट कर बोलीं "शहद है शहद, बीना रानी, अब ज़रा हमारी भूख मिटाओ चूत में ढेर सा शहद है ना? हम सब को चखना है" फिर झुक कर माँ की बुर में मुँह डाल कर लेट गयीं वहाँ उनकी जीभ चली और यहाँ माँ तडप कर चूतड उछालने लगी "दीदी बहुत अच्छा लग रहा है हाय मेरी बेटी के भी क्या भाग हैं जो ऐसी सास मिली है"
क्रमशः………………
कामुक-कहानियाँ ससुराल सिमर का compleet
Re: कामुक-कहानियाँ ससुराल सिमर का
ससुराल सिमर का—11
गतान्क से आगे……………
जीजाजी अब माँ के चुंबन ले रहे थे, उसके रसीले मुँह को चूसते हुए माँ के मम्मे मसल रहे थे "मांजी, लौडा कहाँ लेंगी मेरा? मुँह में या चूत में? आपका यहा दामाद आज आपको खुश कर देगा"
"मुझे चोद डालो बेटे, अब ना तडपाओ तुम्हारी माँ जो जुलम कर रही है वो मैं सह ना पाऊन्गि" माँ हाथ में जीजाजी का लंड पकडकर बोली अब उसकी पूरी शरम खतम हो गयी थी
रजत माँ के पेट पर हाथ फेरते हुए दूसरे हाथ से उसके चूतड सहला रहे थे "मैंने तो अपनी जगह बुक कर ली मांजी आपके इन मतवाले गद्दों के बीच"
माँ थोड़ी घबराई रजत के लंड को टटोल कर बोली "बेटा, ऐसा मत करना, मैं सह नहीं पाऊन्गि, तेरा तो मेरे बेटे से भी बड़ा है लगता है"
रजत माँ के चूतडो को मसलते हुए बोले "अरे नहीं मांजी, आपके बेटे का लंड बहुत मस्त है, पर मैंने सुना है कि ये आप की बहुत मारता है, तो मेरे लंड से आप को कोई तकलीफ़ नहीं होगी"
माँ फिर बोली "मुझे दुखेगा मेरे बेटे, आओ मैं चूस देती हू"
मैंने रजत को आँख मारी कि परवाह मत करो दीदी अब गरम होकर अपने चूतड कुर्सी पर रगड रही थी
उधर जीजाजी ने माँ का सिर अपनी गोद में लिया और उसके मुँह में लंड डाल दिया माँ आँखें बंद करके चूसने लगी शन्नो जी अब माँ की जांघें पकडकर उसकी बुर चूस रही थी माँ को झडाकर उन्होंने उसके रस को चाटा और फिर उठ कर रजत को कहा कि अब वह चख ले तीनों ने मिलकर बारी बारी से माँ की चूत चुसी इस बीच लगातार माँ की चुचियाँ वे दबा रहे थे बीच बीच में कोई उन्हें मुँह में लेकर चूसने लगता
फिर दोनों भाई माँ को उठाकर हमारे पास लाए माँ अब तक दो तीन बार झडकर मस्त हो गयी थी उसकी बहती बुर से पता चल रहा था माँ को वैसे ही उठाए हुए पहले वी दीदी के पास गये और दीदी का मुँह माँ की चूत पर लगा दिया "ले सिमर, देवी माँ का प्रसाद ले ले, जल्दी चख, फिर तेरे भाई को चखाना है"
दीदी और मुझे माँ की बुर का स्वाद देकर वे माँ को फिर पलंग पर ले गये "चलो अब चोदो साली को" शन्नो जी ने कहा माँ उनकी ओर देखने लगी फिर उसे याद आया कि मैंने बताया था कैसे ये लोग गाली गलौज करते हैं
जीजाजी माँ पर चढ गये और उसकी बुर में लंड डाल दिया फिर वे नीचे हुए और रजत ने चढ कर माँ की गान्ड में लंड पेलना शुरू किया माँ कराह उठी "नहीं बेटे, दुखता है, सच में दुखता है, अमित को मैं हमेशा कहती हू पर ये नहीं मानता, तू रुक ना, दामाद जी के बाद मुझे चोद लेना, मेरी गान्ड मत मारो"
शन्नो जी ने अपनी टाँगें फैलाकर माँ के मुँह को बुर से लगा लिया और कस कर टाँगों में उसका सिर दबा लिया फिर माँ के मुँहे पर धक्के मारते हुए बोलीं "तू पेल रजत इसकी बात मत सुन आख़िर ससुराल में पूरी आवभगत करनी है, ऐसे थोड़े एक छेद छोड़ देंगे"
रजत ने माँ के चूतड पकडकर अपना लंड उसके गुदा के अंदर उतार दिया माँ छटपटाई पर उसका मुँह शन्नो जी की बुर में दबा होने से बस गों गों करके रह गयी लंड अंदर उतार कर रजत ने उसकी गान्ड मारना शुरू कर दी
गतान्क से आगे……………
जीजाजी अब माँ के चुंबन ले रहे थे, उसके रसीले मुँह को चूसते हुए माँ के मम्मे मसल रहे थे "मांजी, लौडा कहाँ लेंगी मेरा? मुँह में या चूत में? आपका यहा दामाद आज आपको खुश कर देगा"
"मुझे चोद डालो बेटे, अब ना तडपाओ तुम्हारी माँ जो जुलम कर रही है वो मैं सह ना पाऊन्गि" माँ हाथ में जीजाजी का लंड पकडकर बोली अब उसकी पूरी शरम खतम हो गयी थी
रजत माँ के पेट पर हाथ फेरते हुए दूसरे हाथ से उसके चूतड सहला रहे थे "मैंने तो अपनी जगह बुक कर ली मांजी आपके इन मतवाले गद्दों के बीच"
माँ थोड़ी घबराई रजत के लंड को टटोल कर बोली "बेटा, ऐसा मत करना, मैं सह नहीं पाऊन्गि, तेरा तो मेरे बेटे से भी बड़ा है लगता है"
रजत माँ के चूतडो को मसलते हुए बोले "अरे नहीं मांजी, आपके बेटे का लंड बहुत मस्त है, पर मैंने सुना है कि ये आप की बहुत मारता है, तो मेरे लंड से आप को कोई तकलीफ़ नहीं होगी"
माँ फिर बोली "मुझे दुखेगा मेरे बेटे, आओ मैं चूस देती हू"
मैंने रजत को आँख मारी कि परवाह मत करो दीदी अब गरम होकर अपने चूतड कुर्सी पर रगड रही थी
उधर जीजाजी ने माँ का सिर अपनी गोद में लिया और उसके मुँह में लंड डाल दिया माँ आँखें बंद करके चूसने लगी शन्नो जी अब माँ की जांघें पकडकर उसकी बुर चूस रही थी माँ को झडाकर उन्होंने उसके रस को चाटा और फिर उठ कर रजत को कहा कि अब वह चख ले तीनों ने मिलकर बारी बारी से माँ की चूत चुसी इस बीच लगातार माँ की चुचियाँ वे दबा रहे थे बीच बीच में कोई उन्हें मुँह में लेकर चूसने लगता
फिर दोनों भाई माँ को उठाकर हमारे पास लाए माँ अब तक दो तीन बार झडकर मस्त हो गयी थी उसकी बहती बुर से पता चल रहा था माँ को वैसे ही उठाए हुए पहले वी दीदी के पास गये और दीदी का मुँह माँ की चूत पर लगा दिया "ले सिमर, देवी माँ का प्रसाद ले ले, जल्दी चख, फिर तेरे भाई को चखाना है"
दीदी और मुझे माँ की बुर का स्वाद देकर वे माँ को फिर पलंग पर ले गये "चलो अब चोदो साली को" शन्नो जी ने कहा माँ उनकी ओर देखने लगी फिर उसे याद आया कि मैंने बताया था कैसे ये लोग गाली गलौज करते हैं
जीजाजी माँ पर चढ गये और उसकी बुर में लंड डाल दिया फिर वे नीचे हुए और रजत ने चढ कर माँ की गान्ड में लंड पेलना शुरू किया माँ कराह उठी "नहीं बेटे, दुखता है, सच में दुखता है, अमित को मैं हमेशा कहती हू पर ये नहीं मानता, तू रुक ना, दामाद जी के बाद मुझे चोद लेना, मेरी गान्ड मत मारो"
शन्नो जी ने अपनी टाँगें फैलाकर माँ के मुँह को बुर से लगा लिया और कस कर टाँगों में उसका सिर दबा लिया फिर माँ के मुँहे पर धक्के मारते हुए बोलीं "तू पेल रजत इसकी बात मत सुन आख़िर ससुराल में पूरी आवभगत करनी है, ऐसे थोड़े एक छेद छोड़ देंगे"
रजत ने माँ के चूतड पकडकर अपना लंड उसके गुदा के अंदर उतार दिया माँ छटपटाई पर उसका मुँह शन्नो जी की बुर में दबा होने से बस गों गों करके रह गयी लंड अंदर उतार कर रजत ने उसकी गान्ड मारना शुरू कर दी
Re: कामुक-कहानियाँ ससुराल सिमर का
अगले आधे घंटे हम दोनों बँधे भाई बहन के आगे उन तीनों ने माँ को पटक पटक कर तीनों तरफ से चोदा बीच में वे छेद बदल लेते माँ पर वे ऐसे चढे थे जैसे शैतान बच्चे गुडिया को तोड़ने मरोडने में लगे हों पीछे से माँ को चिपट कर गान्ड मारते हुए जेठजी माँ के स्तनों को कस के दबा और कुचल रहे थे जैसे भोम्पू हों शन्नो जी ने माँ का सिर इस तरह से जांघों में दबा लिया था जैसे दबा कर कुचल देना चाहती हों
मेरी लंड माँ की होती ठुकाई देखकर सनसना रहा था दीदी भी भयानक उत्तेजना में गालियाँ दे रही थी "अरे भोसडीवालो, माँ को छोडो, मेरी ओर ध्यान दो, साले जेठजी, आज तुझे अपनी बुर में ना घुसा लिया तो कहना और मेरी चुदैल सासूमा, आज तेरी बुर को चूस कर मैं आम जैसा पिलपिला कर दूँगी सब चुदाई भूल जाएगी"
उसकी बात अनसुनी करके तीनों माँ को चोदते रहे आख़िर जब वे झडे और अपने अपने लंड और चूत माँ के बदन से अलग करके उठे तो माँ थकी हुई पलंग पर पडी रही कुछ बोली नहीं पर जब उसने हमारी ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक गहरी तृप्ति थी माँ के चेहरे पर मैंने बहुत दिनों में यह सुख देखा था मैंने दीदी को कहा "देख दीदी, माँ को क्या खलास किया है तेरे ससुराल वालों ने मिलकर"
शन्नो जी मेरे पास आईं और बोलीं "अब तुम दोनों माँ के पास जाओ, उसकी सेवा करो उसके छेद से जो रस बह रहा है वह पाओ तब तक हम आराम करते हैं"
जीजाजी उठकर मेरे पास आए और अपना झडा लंड मेरे मुँह में देते हुए बोले "पहले ये चख लो अमित, तेरे पसंद का है, तेरी दीदी को चोदने वाले उसके पति का और तेरी माँ का" मैंने मन लगाकर उनका झडा लंड चूसा उधर जेठजी दीदी को लंड चुसवा रहे थे
हमारे हाथ पैर खुलते ही हम भाग कर माँ के पास गये दीदी माँ की चूत में घुस गयी और मैंने उसे पलट कर माँ के चूतडो के बीच अपना मुँह डाल दिया दोनों छेदों से रस बह रहा था माँ सीत्कारी भरते हुए मुझे और दीदी को अपने बदन से चिपटाकर बोली "मेरे बच्चों, आज मैं निहाल हो गयी, बहुत प्यार से चोदा मुझे समधन और उनके दो बेटों ने तेरी ससुराल याने स्वर्ग है बेटी, तू बड़ी भाग्यवान है जो ऐसा घर तुझे मिला"
माँ की गान्ड खाली करके मैं माँ को पलटाकर चढ गया और उसकी गान्ड में लंड डाल दिया फिर उसपर लेट कर उसकी गान्ड मारने लगा मेरा कस के खड़ा था और मैं बहुत उत्तेजित था लगता था कि माँ की इतनी मारूं की फाड़ डालूं दीदी भी माँ से सिक्सटी नाइन करने में जुट गयी थी बेचारी बहुत देर से गरम थी, माँ की जीभ चूत में जाते ही झड गयी
कुछ देर बाद शन्नो जी, रजत और जीजाजी उठाकर पलंग पर आ गये शन्नो जी बोलीं "आज की रात बहू की माँ के लिए है बेटो इन्हें खूब चोदो, इनका कोई छेद, इनके शरीर का कोई भाग अनछुआ ना रहे एक मिनिट के लिए भी रजत चल तू आजा और चूत में लंड डाल, दीपक बेटे, अपनी सास को लंड चुसवाओ बहू, चल अपन दोनों मिलकर इनके जोबन को गूंधते हैं" उन्होंने और दीदी ने माँ की एक एक चुची मुँह में ली और उसे चूसते हुए मसलने लगीं
हम सब माँ के शरीर को घेरकर उसे भोगने लगे ऐसा लग रहा था जैसे कई शिकारी मिलकर एक शिकार पर झपट पड़े हों पर माँ के लिए यह बहुत मीठा शिकार था जिस तरह से वह तडप रही थी और हाथ पैर फेक रही थी, उससे जाहिर था कि उससे यह सुख गवारा नहीं हो रहा था हमारे धक्कों से माँ का शरीर इधर उधर हो रहा था पलंग हिल रहा था जैसे तूफान आ गया हो
माँ को हमने एक पल नहीं छोड़ा ना उसके मुँह को खुलने दिया कि वह कुछ कह सके लंड झडते ही शन्नो जी या दीदी माँ का मुँह चूसने लगतीं या उसमें चूत लगा देतीं फिर जब किसीका लंड खड़ा हो जाता तो वह माँ के मुँह में घुसेड देता वैसे ही जब माँ की गान्ड या चूत लम्ड निकलने से खाली होती तो सब उन छेदों पर टूट पड़ते, चूस कर सॉफ करते और फिर कोई अपना लंड खाली छेद में डाल देता
आख़िर हम सब जब पूरी तरह से निढाल हो गये तब हमने माँ को छोड़ा कोई कहीं लुढक गया कोई कहीं माँ अब चुद चुद कर बेहोश हो गयी थी उसके मम्मे मसले कुचले जाने से लाल हो गये थे, पूरे गोरे बदन पर चुदाई और मसलने के निशान पड गये थे
क्रमशः……………..
मेरी लंड माँ की होती ठुकाई देखकर सनसना रहा था दीदी भी भयानक उत्तेजना में गालियाँ दे रही थी "अरे भोसडीवालो, माँ को छोडो, मेरी ओर ध्यान दो, साले जेठजी, आज तुझे अपनी बुर में ना घुसा लिया तो कहना और मेरी चुदैल सासूमा, आज तेरी बुर को चूस कर मैं आम जैसा पिलपिला कर दूँगी सब चुदाई भूल जाएगी"
उसकी बात अनसुनी करके तीनों माँ को चोदते रहे आख़िर जब वे झडे और अपने अपने लंड और चूत माँ के बदन से अलग करके उठे तो माँ थकी हुई पलंग पर पडी रही कुछ बोली नहीं पर जब उसने हमारी ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक गहरी तृप्ति थी माँ के चेहरे पर मैंने बहुत दिनों में यह सुख देखा था मैंने दीदी को कहा "देख दीदी, माँ को क्या खलास किया है तेरे ससुराल वालों ने मिलकर"
शन्नो जी मेरे पास आईं और बोलीं "अब तुम दोनों माँ के पास जाओ, उसकी सेवा करो उसके छेद से जो रस बह रहा है वह पाओ तब तक हम आराम करते हैं"
जीजाजी उठकर मेरे पास आए और अपना झडा लंड मेरे मुँह में देते हुए बोले "पहले ये चख लो अमित, तेरे पसंद का है, तेरी दीदी को चोदने वाले उसके पति का और तेरी माँ का" मैंने मन लगाकर उनका झडा लंड चूसा उधर जेठजी दीदी को लंड चुसवा रहे थे
हमारे हाथ पैर खुलते ही हम भाग कर माँ के पास गये दीदी माँ की चूत में घुस गयी और मैंने उसे पलट कर माँ के चूतडो के बीच अपना मुँह डाल दिया दोनों छेदों से रस बह रहा था माँ सीत्कारी भरते हुए मुझे और दीदी को अपने बदन से चिपटाकर बोली "मेरे बच्चों, आज मैं निहाल हो गयी, बहुत प्यार से चोदा मुझे समधन और उनके दो बेटों ने तेरी ससुराल याने स्वर्ग है बेटी, तू बड़ी भाग्यवान है जो ऐसा घर तुझे मिला"
माँ की गान्ड खाली करके मैं माँ को पलटाकर चढ गया और उसकी गान्ड में लंड डाल दिया फिर उसपर लेट कर उसकी गान्ड मारने लगा मेरा कस के खड़ा था और मैं बहुत उत्तेजित था लगता था कि माँ की इतनी मारूं की फाड़ डालूं दीदी भी माँ से सिक्सटी नाइन करने में जुट गयी थी बेचारी बहुत देर से गरम थी, माँ की जीभ चूत में जाते ही झड गयी
कुछ देर बाद शन्नो जी, रजत और जीजाजी उठाकर पलंग पर आ गये शन्नो जी बोलीं "आज की रात बहू की माँ के लिए है बेटो इन्हें खूब चोदो, इनका कोई छेद, इनके शरीर का कोई भाग अनछुआ ना रहे एक मिनिट के लिए भी रजत चल तू आजा और चूत में लंड डाल, दीपक बेटे, अपनी सास को लंड चुसवाओ बहू, चल अपन दोनों मिलकर इनके जोबन को गूंधते हैं" उन्होंने और दीदी ने माँ की एक एक चुची मुँह में ली और उसे चूसते हुए मसलने लगीं
हम सब माँ के शरीर को घेरकर उसे भोगने लगे ऐसा लग रहा था जैसे कई शिकारी मिलकर एक शिकार पर झपट पड़े हों पर माँ के लिए यह बहुत मीठा शिकार था जिस तरह से वह तडप रही थी और हाथ पैर फेक रही थी, उससे जाहिर था कि उससे यह सुख गवारा नहीं हो रहा था हमारे धक्कों से माँ का शरीर इधर उधर हो रहा था पलंग हिल रहा था जैसे तूफान आ गया हो
माँ को हमने एक पल नहीं छोड़ा ना उसके मुँह को खुलने दिया कि वह कुछ कह सके लंड झडते ही शन्नो जी या दीदी माँ का मुँह चूसने लगतीं या उसमें चूत लगा देतीं फिर जब किसीका लंड खड़ा हो जाता तो वह माँ के मुँह में घुसेड देता वैसे ही जब माँ की गान्ड या चूत लम्ड निकलने से खाली होती तो सब उन छेदों पर टूट पड़ते, चूस कर सॉफ करते और फिर कोई अपना लंड खाली छेद में डाल देता
आख़िर हम सब जब पूरी तरह से निढाल हो गये तब हमने माँ को छोड़ा कोई कहीं लुढक गया कोई कहीं माँ अब चुद चुद कर बेहोश हो गयी थी उसके मम्मे मसले कुचले जाने से लाल हो गये थे, पूरे गोरे बदन पर चुदाई और मसलने के निशान पड गये थे
क्रमशः……………..