मेरी मस्त दीदी

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The Romantic
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Re: मेरी मस्त दीदी

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 17:41

मैंने उनके कमरे में धीरे से झांका तो देखा कि मामू सायरा की अम्मी को अपने से चिपकाए उनकी कुर्ती में हाथ डाल कर मज़े से चूचियां मसल रहे थे।
" बड़ी देर लगा दी आने में , कब से तुम्हारी राह देख रहा था " मामू बोले
" क्या करती , उस कमरे में आपकी बहन जो लेटीं थीं। जब तक उनकी तरफ से निश्चिन्त नहीं हो गई तब तक आने की हिम्मत ही नहीं पडी " सायरा की अम्मी ने जबाब दिया।
फिर दोनों खामोश हो गए और चुपचाप एक दूसरे के कपडे उतारने लगे। थोड़ी ही देर में दोनों बिलकुल नंगे होकर एक दूसरे के अंगो को सहलाते हुए होठ चूसने लगे।

मैं बिना कोई आहट किये धीरे से ऊपर आया और उन तीनों से बोला ," जल्दी से मेरे साथ चलो। तुम लोगो को मैं लाइव बी० एफ० दिखाता हूँ। "
" क्या मतलब ?"
"मतलब नीचे चल के ही पता चलेगा "
हम चारो धीरे से बिना कोई आवाज़ किये नीचे आ गए। नीचे आकर मैंने मामू के कमरे की तरफ इशारा किया तो सब दरवाजे की दरार से आँख लगा कर अंदर देखने लगे।

तब तक अंदर का नज़ारा ही बदल चुका था मामी ने कंधे झुका कर अपना सर तकिये पर रख लिया और अपने दोनों हाथ पीछे करके अपनी चूत की फांकों को चौड़ा कर दिया और अपनी जांघें थोड़ी और चौड़ी कर ली। चूत का चीरा 5 इंच का तो जरुर होगा। उसकी फांकें तो काली थी पर अंदर का रंग लाल तरबूज की गिरी जैसा था जो पूरा काम-रस से भरा था। मामू ने पहले तो उसके नितंबों पर 2-3 बार थपकी लगाई और फिर अपने एक हाथ पर थूक लगा कर अपने सुपारे पर चुपड़ दिया। फिर उन्होंने अपना लंड मामी की चूत के छेद पर रख दिया। अब मामू ने उनकी कमर पकड़ ली और उस झोटे की तरह एक हुंकार भरी और एक जोर का झटका लगाया। पूरा का पूरा लंड एक ही झटके में घप्प से मामी की चूत के अंदर समां गया। मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गई। मैं तो सोच रहा था कि मामी जोर से चिल्लाएगी पर वो तो मस्त हुई बस बहुत धीरे धीरे आह...याह्ह...करती रही।

मेरी साँसें तेज हो गई थी और दिल की धड़कने बेकाबू सी होने लगी थी। मेरा लंड चड्डी के अन्दर ही उठक बैठक लगाने लगा था । मुझे तो पता ही नहीं चला कब मेरे हाथ अपनी चड्डी के अन्दर लंड पर पहुँच गए थे। मैंने उसे कस के ऐंठे जा रहा था लेकिन वो कंट्रोल में आने को बिलकुल भी तैयार नहीं था । दूसरी तरफ तो जैसे सुनामी ही आ गई थी। मामू जोर जोर से धक्के लगा रहे थे और मामी की कामुक सीत्कारें कमरे के बाहर तक मुझे साफ़ साफ़ सुनाई पड रहीं थीं । कमरे के बाहर हम चारों की अंदर का नज़ारा देख कर हालत बहुत ख़राब थी।


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