सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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The Romantic
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:27

तब उसने कहा- तुम दोनों को आपस में चूमना होगा, साथ ही एक-दूसरे की बुर को चूसना होगा !
यह बात सुनते ही मैं चौंक गई, मुझे ऐसा लगा कि यह क्या पागलपन है।
तभी सुधा खुशी से बोली- हाँ.. क्यों नहीं.. बहुत मजा आएगा !
पर मैं इसके लिए तैयार नहीं थी, पर सुधा और विजय जिद पर अड़ गए और विजय ने मुझे कस कर पकड़ लिया। फिर सुधा ने मेरे सिर को थामा और मेरे होंठों से होंठ लगा कर मेरे होंठों चूमने लगी।
मैं बार-बार मना कर रही थी, पर उन पर कोई असर नहीं हुआ। तब मैं गुस्से में आ गई तो उन दोनों ने मुझे छोड़ दिया।
मैं गुस्से से जाने लगी तब उन दोनों ने मुझसे माफ़ी माँगी और फिर हम वैसे ही अपनी काम-क्रीड़ा में लग गए।
सुधा के लिए शायद ये सब नया नहीं था क्योंकि वो ऐसी पार्टियों में जाया करती थी।
पर मेरे लिए ये सब नया था तो मैं सहज नहीं थी।
तब सुधा ने मुझसे कहा- सारिका, तुम्हें मजे लेने चाहिए क्योंकि ऐसा मौका हमेशा नहीं मिलता !
मैंने कह दिया- मुझे इस तरह का मजा नहीं चाहिए… मैं बस अपनी यौन-तृप्ति चाहती थी इसलिए तुम लोगों की हर बात ना चाहते हुए भी माना, पर अब हद हो गई है !
तब विजय ने मुझसे कहा- ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा ही करेंगे।
तब उन्होंने कहा- दो औरतें अगर एक-दूसरे का अंग छुए और खेलें तो खेल और भी रोचक हो जाता है।
पर मैंने मना कर दिया, तब उसने कहा- ठीक है मत करो ! तुम पर सुधा को करने दो उसे कोई दिक्कत नहीं।
मैंने कुछ देर सोचा फिर आधे मन से ‘हाँ’ कर दी।
अब विजय ने सुधा को पकड़ा और उसे पागलों की तरह चूमने, चूसने लगा। सुधा भी उसका जवाब दे रही थे।
दोनों काफी गर्म हो गए थे, तब विजय ने मुझसे कहा- तुम दोनों मेरा लंड चूसो !
वो किनारे पर आ गया, जहाँ पानी घुटनों तक था। सुधा और विजय आपस में चूमने लगे और मैं झुक कर घुटनों के बल खड़ी होकर उसके लिंग को प्यार करने लगी।
मैंने उसके लिंग को पहले हाथ से सहलाया, जब मैं उसके लिंग को आगे की तरफ खींचती तो ऊपर का चमड़ा उसके सुपाड़े को ढक देता पर जब पीछे करती तो उसका सुपाड़ा खुल कर बाहर आ जाता।
मैं दिन के उजाले में उसका सुपाड़ा पहली बार इतने करीब से देख रही थी, एकदम गहरा लाल.. किसी बड़े से चैरी की तरह था।
मैंने उसके सुपाड़े के ऊपर जीभ फिराई और फिर उसको अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। कुछ देर में विजय भी अपनी कमर को हिलाने लगा और अपने लिंग को मेरे मुँह में अन्दर बाहर करने लगा।
थोड़ी देर में सुधा भी घुटनों के बल आ गई और फिर वो भी लिंग को चूसने लगी। दोनों के लार और थूक से उसका लिंग तर हो गया था।
विजय ने अब कहा- चलो चट्टान के ऊपर चलते हैं।
फिर उसने सुधा को कहा- क्या तुम मेरे लिए सारिका की बुर चाटोगी !
उसने मुस्कुराते हुए सर हिलाया फिर मुझे चट्टान के ऊपर लेट जाने को कहा। मुझे अजीब लग रहा था क्योंकि पहली बार कोई औरत मेरी योनि के साथ ऐसा करने वाली थी।
उसने मेरी टाँगें फैला दीं और झुक कर मेरे टाँगों के बीच अपना सर रख दिया।
फिर उसने मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए कहा- अब तुम्हें बहुत मजा आएगा !
फिर उसने मेरी दोनों जाँघों को चूमा, फिर योनि के किनारे फिर अपनी जुबान को मेरी योनि में लगा कर नीचे से ऊपर ले आई।
उसने मेरी योनि को चाटना शुरू कर दिया।
काफी देर के बाद विजय सुधा के पीछे चला गया और झुक कर उसकी योनि को चाटने लगा। इधर सुधा मेरी योनि से तरह-तरह से खिलवाड़ करने लगी, कभी जुबान को योनि के ऊपर फिराती, तो कभी योनि में घुसाने की कोशिश करती, कभी दोनों हाथों से मेरी योनि को फैला देती और उसके अन्दर थूक कर दुबारा चाटने लगती या उंगली डाल देती।
कभी मेरी योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियों को दांत से पकड़ कर खींचती। मुझे इससे काफी उत्तेजना हो रही थी। मैं अब काफी गर्म हो कर तैयार थी, पर उन दोनों को तो खेलने में ज्यादा रूचि थी।
तभी विजय मेरे पास आकर लेट गया। मैंने उसको पकड लिया और चूमने लगी, साथ ही उसके लिंग को सहलाने लगी।
सुधा ने फिर मुझे छोड़ दिया और विजय के लिंग को पकड़ कर चूसा, फिर अपनी दोनों टाँगें फैला कर उसके कमर के दोनों तरफ कर उसके लिंग के ऊपर आ गई। मैंने उसके लिंग को उसकी योनि में रगड़ा और उसकी छेद पर टिका दिया। इस पर सुधा ने दबाव दिया, लिंग अन्दर चला गया।
अब सुधा ने धक्के लगाने शुरू कर दिए और विजय मुझे चूमने, चूसने में मग्न हो गया। वो मेरे स्तनों को पूरी ताकत से दाबता और चूसता तो कभी सुधा के आमों को चूसता।
करीब 10 मिनट के बाद सुधा सिसकी लेते हुए हांफने लगी और विजय के ऊपर गिर गई। मेरे लिए यह खुशी का पल था क्योंकि मैं खुद विजय का लिंग अपने अन्दर लेने को तड़प रही थी।
सुधा विजय के ऊपर से अलग हुई तो उसकी योनि में गाढ़े चिपचिपे पानी की तरह लार की तरह वीर्य लगा हुआ था।
विजय मेरे ऊपर आ गया तो मैंने अपनी टाँगें फैला दीं और ऊपर उठा दीं। उसने झुक मेरे दोनों स्तनों को चूमा, चूसा फिर मेरे होंठों को चूसने लगा।
मैंने हाथ से उसका लिंग पकड़ लिया और अपनी योनि के छेद पर टिका कर उसका सुपाड़ा अन्दर कर लिया। फिर मैंने अपनी कमर उठा दी। यह देख उसने जोश में जोर का धक्का मारा तो उसका लिंग मेरी बच्चेदानी से टकरा गई।
मैं चिहुंक उठी, मेरे मुँह से अकस्मात निकल गया- उई माँ… धीरे.. चोदो !

तब उसने 3-4 और जोर के धक्के लगाते हुए कहा- आज कुछ धीरे नहीं होगा !
उसका इतना जोश में आना, मुझे पागल कर रहा था… उसने जोर-जोर से मुझे चोदना शुरू कर दिया था।
मैं इतनी गर्म हो चुकी थी कि कुछ ही देर में मैं झड़ गई।
मैंने पूरी ताकत से विजय को पकड़ लिया।
तब विजय ने मुझसे कहा- आज इतनी जल्दी झड़ गई तुम !
मैंने उसको कहा- तुम्हें इससे कोई परेशानी नहीं होगी.. तुम जितना चाहो चोद सकते हो, मैं साथ दूँगी तुम्हारा !
यह सुन उसने धक्कों का सिलसिला जारी रखा कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं दुबारा झड़ जाऊँगी, सो मैंने उसको कस के बांहों में भर लिया। अपनी टाँगें उसके कमर के ऊपर रख उसको जकड़ लिया।
विजय की गति अब दुगुनी हो गई थी, उसकी साँसें और तेज़ हो गईं, मैं समझ गई कि अब वो भी झड़ने को है।
हमारे होंठ आपस में चिपके हुए थे और हम दोनों ने एक-दूसरे को यूँ पकड़ रखा था जैसे एक-दूसरे में समा जायेंगे। सिर्फ विजय का पेट हिल रहा था। वो मेरी योनि में लिंग अन्दर-बाहर तेज़ी से करके चोद रहा था।
अचानक मेरे शरीर की नसें खिंचने लगी और मैं झड़ गई।
ठीक उसी वक़्त विजय ने भी पूरी ताकत से धक्के मारते हुए मेरे अन्दर अपना रस छोड़ दिया।
हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे से काफी देर लिपटे रहे। थोड़ा सुस्ताने के बाद हम वापस पानी में चले गए और फिर पानी में ही दो बार उसने मुझे और सुधा को चोदा।
हम तीनों काफी थक चुके थे, फिर हमने खुद को पानी से साफ़ करके कपड़े पहने और वापस घर को आ गए।
कहानी जारी रहेगी।

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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:28

रास्ते में मैंने उनको बताया, “मेरे पति ने मुझे कल वापस बुलाया है।”
इस पर विजय को दु:ख हुआ क्योंकि वो मेरे साथ कुछ समय और बिताना चाहता था।
पर उसने कहा- मैं रात को मिलूँ, पर मेरी हालत इन 4 दिनों में ऐसी हो गई थी कि मेरा मन नहीं हो रहा था।
फिर भी मैंने कहा- मैं कोशिश करुँगी !
फिर हम अपने-अपने घर चले गए।
मैं घर जाकर थोड़ी देर सोई रही, फिर शाम को घरवालों को बताया- मुझे कल वापस जाना है।
इस पर मेरी भाभी मुझे शाम को बाज़ार ले गईं और एक नई साड़ी दिलवाई। फिर करीब 7 बजे हम घर लौटे।
रास्ते भर मुझे विजय फोन करता रहा पर मैंने भाभी की वजह से फोन नहीं उठाया।
रात को सबके सोने के बाद मैंने उसको फोन किया तो उसने जिद कर दी कि मैं उसको छत पर मिलूँ !
काफी कहने पर मैं चली गई पर मैंने कहा- मुझसे और नहीं हो पाएगा।
हम छत पर बातें करने लगे। काफी देर बातें करने के बाद मैंने कहा- मुझे जाना है.. सुबह बस पकड़नी है !
पर उसने शायद ठान ली थी और मुझे पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया। मैंने उससे विनती भी की कि मुझे छोड़ दे, मेरी हालत ठीक नहीं है.. मेरे पूरे बदन में दर्द हो रहा है पर उसका अभी भी मुझसे मन नहीं भरा था।
शायद इसलिए मुझसे मेरे कानों में मुझे चूमते हुए कहा- मैं तुम्हें कोई तकलीफ नहीं दूँगा, क्या तुम्हें अभी तक मुझसे कोई परेशानी हुई !
मैं उसकी बातों से पिघलने लगी और उसकी बांहों में समाती चली गई। उसने मुझे वहीं पड़ी खाट पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया।
मैंने एक लम्बी सी मैक्सी पहनी थी। उसे उसने उतारना चाहा, पर मैंने ने मना कर दिया।
तब उसने मेरे मैक्सी के आगे के हुक को खोल कर मेरे स्तनों को बाहर कर दिया और उनको प्यार करने लगा। उसने इस बार बहुत प्यार से मेरे स्तनों को चूसा, फिर कभी मेरे होंठों को चूमता या चूसता और कभी स्तनों को सहलाता।
तभी उसने मेरी मैक्सी को ऊपर पेट तक उठा दिया और मेरी जाँघों को सहलाने लगा। इतनी हरकतों के बाद तो मेरे अन्दर भी चिंगारी भड़कने लगी। सो मैंने भी नीचे हाथ डाल कर उसके लिंग को सहलाना शुरू कर दिया।
उसका एक हाथ नीचे मेरी जाँघों के बीच मेरी योनि को सहलाने लगा।
मैं गीली होने लगी तभी विजय मुझे चूमते हुए मेरी जाँघों के बीच चला गया और मेरी एक टांग को खाट के नीचे लटका दिया। अब उसने मेरी योनि को चूसना शुरू कर दिया पर इस बार अंदाज अलग था। वो बड़े प्यार से अपनी जीभ को मेरी योनि के ऊपर और बीच में घुमाता, फिर दोनों पंखुड़ियों को बारी-बारी चूसता और जीभ को छेद में घुसाने की कोशिश करता।
मुझे इतना आनन्द आ रहा था कि मुझे लगा अब मैं झड़ जाऊँगी। पर तभी उसने मेरे पेट को चूमते हुए नाभि से होता हुआ मेरे पास आ गया। मेरे होंठों को चूमा और अपना पजामा नीचे सरका दिया।
मैंने उसके लिंग को हाथ से पकड़ कर सहलाया, थोड़ा आगे-पीछे किया, फिर झुक कर चूसने लगी। उसका लिंग इतना सख्त हो गया था जैसे कि लोहा और काफी गर्म भी था। वो मेरे बालों को सहला रहा था और मैं उसके लिंग को प्यार कर रही थी।
तभी उसने मेरे चेहरे को ऊपर किया और कहा- अब आ जाओ मुझे चोदने दो !
मैंने सोचा था कि जैसा अब व्यवहार कर रहा है, वो इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करेगा, पर मैं भूल गई थी कि वासना के भूखे सब भूल जाते हैं।
मुझे अब यह बात ज्यादा पहले की तरह बैचैन नहीं कर रहे थे, क्योंकि इन 4 दिनों में मैं खुद बेशर्म हो चुकी थी।
उसने मुझे चित लिटा दिया। मेरी टाँगों को फैला कर अपनी जाँघों पर चढ़ा दिया। फिर झुक गया और मेरे ऊपर आ गया। उसका लिंग मेरी योनि से लग रहा था। सो मैंने हाथ से उसे पकड़ा और फिर अपनी योनि में उसका सुपाड़ा अन्दर कर दिया।
इसके बाद विजय मेरे ऊपर अपना पूरा वजन दे कर लेट गया फिर उसने मुझे चूमते हुए कहा- कुछ कहो !
मैं समझ गई कि वो क्या चाहता है, सो मैंने उसको कहा- अब देर मत करो.. चोदो मुझे !
उसने मुझे मुस्कुराते हुए देखा और मेरे होंठों को चूमते हुए धक्का दिया। उसका लिंग मेरी योनि में अंत तक चला गया। मेरी योनि में तो पहले से ही दर्द था, तो इस बार लिंग के अन्दर जाते ही मैं दर्द से कसमसा गई।
मेरी सिसकी सुनकर वो और जोश में आने लगा और बड़े प्यार से मुझे धीरे-धीरे धक्के लगाता, पर ऐसा लगता था जैसे वो पूरी गहराई में जाना चाहता हो। पता नहीं मैं दर्द को किनारे करती हुई उसका साथ देने लगी।
जब वो अपनी कमर को ऊपर उठाता, मैं अपनी कमर नीचे कर लेती और जब वो नीचे करता मैं ऊपर !
इसी तरह हौले-हौले हम लिंग और योनि को आपस में मिलाते और हर बार मुझे अपनी बच्चेदानी में उसका सुपाड़ा महसूस होता। वो धक्कों के साथ मेरे पूरे जिस्म से खेलता और मुझे बार-बार कहता- कुछ कहो!
काफी देर बाद उसने मुझे ऊपर उठाया और अपनी गोद में बिठा लिया और मुझसे कहा- सारिका, अब तुम चुदवाओ !
मैं समझ रही थी कि वो ऐसा इसलिए कह रहा था ताकि मैं भी उसी तरह के शब्द उसको बोलूँ।
मैंने भी उसकी खुशी के लिए उससे ऐसी बातें करनी शुरू कर दीं।
मैंने कहा- तुम भी चोदो मुझे.. नीचे से मैं भी धक्के लगाती हूँ !
यह सुन कर उसने अपनी कमर को उछालना शुरू कर दिया। मैंने भी धक्के तेज़ कर दिए। करीब 20 मिनट हो चुके थे, पर हम दोनों में से कोई अभी तक नहीं झड़ा था।
फिर उसने मुझे खाट के नीचे उतरने को कहा और मुझसे कहा कि मैं घुटनों के बल खड़ी होकर खाट पर पेट के सहारे लेट जाऊँ।
मैं नीचे गई और वैसे ही लेट गई।
विजय मेरे पीछे घुटनों के सहारे खड़ा हो गया फिर मेरी मैक्सी को मेरे चूतड़ के ऊपर उठा कर मेरे कूल्हों को प्यार किया, दबाया, चूमा फिर उन्हें फैला कर मेरी योनि को चूमते हुए कहा- तुम्हारी गांड और बुर कितनी प्यारी है !
फिर उसने अपना लिंग मेरी योनि से लगा कर धक्का दिया।
कुछ देर बाद शायद उसे मजा नहीं आ रहा था तो मुझसे कहा- तुम अपनी टाँगों को फैलाओ और चूतड़ ऊपर उठाओ !
मैंने वैसा ही किया इस तरह मेरी योनि थोड़ी ऊपर हो गई और अब उसका लिंग हर धक्के में पूरा अन्दर चला जाता, कभी-कभी तो मेरी नाभि में कुछ महसूस होता।
करीब दस मिनट और इसी तरह मुझे चोदने के बाद उसने मुझे फिर सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी एक टांग को अपने कंधे पर चढ़ा दिया और मुझे चोदने लगा। करीब 5 मिनट में मेरी बर्दाश्त से बाहर होने लगा, सो मैंने अपनी टांग उसके कंधे से हटा कर उसको दोनों टाँगों से उसकी कमर जकड़ ली।
मेरी योनि अब रस से भर गई और इतनी चिपचिपी हो गई थी कि उसके धक्कों से ‘फच-फच’ की आवाज आने लगी थी। मैं अब चरमसुख की तरफ बढ़ने लगी। धीरे-धीरे मेरा शरीर सख्त होने लगा और मैंने नीचे से पूरी ताकत लगा दी।
उधर विजय की साँसें भी तेज़ होती जा रही थीं और धक्कों में भी तेज़ी आ गई थी। उसने अपनी पूरी ताकत मुझ पर लगा दी थी।
मैंने उसके चेहरे को देखा उसके माथे से पसीना टपक रहा था और चेहरा मानो ऐसा था जैसे काफी दर्द में हो। पर मैं जानती थी कि ये दर्द नहीं बल्कि एक असीम सुख की निशानी है।
उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ लिया और मैंने उसको। वो धक्कों की बरसात सा करने लगा और मैंने भी नीचे से उसका साथ दिया। इसी बीच मैं कराहते हुए झड़ गई। मेरे कुछ देर बाद वो भी झड़ गया। उसके स्खलन के समय के धक्के मुझे कराहने पर मजबूर कर रहे थे।
हम काफी देर तक यूँ ही लेटे रहे। करीब रात के 1 बज चुके थे। मैंने खुद के कपड़े ठीक किए फिर मैंने विजय को उठाया, पर वो सो चुका था।
मैंने चैन की सांस ली कि वो सो गया क्योंकि अगर जागता होता तो मुझे जाने नहीं देता सो मैंने दुबारा उठाने की कोशिश नहीं की।
मैंने उसका पजामा ऊपर चढ़ा दिया और दबे पाँव नीचे अपने कमरे में चली आई। दिन भर की थकान ने मेरा पूरा बदन चूर कर दिया था।
अगली सुबह मैं जल्दी से उठी। नहा-धो कर तैयार हुई और बस स्टैंड जाने लगी। रास्ते भर मेरी जाँघों में दर्द के वजह से चला नहीं जा रहा था।
उसी रात पति को भी सम्भोग की इच्छा हुई। पर राहत की बात मेरे लिए ये थी कि वो ज्यादा देर सम्भोग नहीं कर पाते थे, सो 10 मिनट के अन्दर सब कुछ करके सो गए।
अगले महीने मेरी माहवारी नहीं हुई, मैं समझ गई कि मेरे पेट में बच्चा है। पर अब ये मुश्किल था तय करना कि किसका बच्चा है।
फिर भी मुझे कोई परेशानी नहीं थी और तीसरा बच्चा भी लड़का ही हुआ।

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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:31

कुछ लोगों ने मुझे मेल किया कि यह कथा काल्पनिक है, पर मैं सबको बता दूँ कि ये हकीकत की घटनाएँ हैं, जो मेरे साथ हुईं, बस मैंने थोड़ा रोमांचक बनाने के लिए इसे अपने तरह से लिखा।
हालांकि हर बात को शब्दों में लिख पाना मुश्किल होता है फिर भी मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है। कुछ लोग यह भी मुझसे पूछ रहे हैं कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूँ तो मैं आप सबको बता दूँ कि मैं ज्यादातर अकेली रही हूँ और काम कुछ ख़ास नहीं होता, तो खाली समय में मैं नेट पर समय बिताती हूँ। इसी दौरान मैं राज शर्मा स्टोरीज डॉट कॉम पढ़ने लगी, फिर मेरे दिल में भी ख़याल आया कि शायद लोगों को मेरी कहानियाँ भी पसंद आ सकती हैं, सो मैंने भी अपनी कहानियाँ लिखनी शुरू कीं।
मेरी कहानियों का मुख उदद्येश मनोरंजन है।
इस कहानी में मैं पहले खुद के बारे में संक्षेप में बता देती हूँ। फिलहाल मेरी उम्र अब 45 होने को है, मेरी लम्बाई ज्यादा नहीं केवल 5’1″ है, उम्र के हिसाब से अब मैं काफी मोटी हो गई हूँ, और रंग गेहुँआ है। पिछले कुछ महीनों से रतिक्रिया नहीं कर रही हूँ, क्योंकि पति को इसमें अब बिलकुल भी रूचि नहीं रही।
आज मैं आपको एक घटना के बारे में बताने जा रही हूँ जो अमर के साथ हुई थी।
उन दिनों घर में बैठे रहने की वजह से मेरा वजन काफी बढ़ गया था और मैं मोटी हो गई थी। अमर के साथ पहली बार सम्भोग करके मुझे अगले दिन कुछ ठीक नहीं लग रहा था, तो मैंने अमर से कुछ दिनों के लिए बातें करना बंद कर दिया था।
वो हमेशा मुझसे बातें करने का बहाना ढूंढता था। करीब एक महीना इसी तरह बीत गया। इस दौरान मैंने एक बार भी सम्भोग नहीं किया था। शायद यही वजह थी कि मैं उसके बार-बार कहने पर फिर से उससे घुलने-मिलने लगी थी।
सम्भोग में काफी अंतराल हो जाने की वजह से मैं शायद उसकी तरफ झुकती गई क्योंकि पति मेरे जरा भी सहयोग नहीं करते थे। मेरे पति दिन भर बाहर रहते और शाम काफी देर से आते थे। वैसे तो मैंने आज तक अपने पति को अपनी मुँह से सम्भोग के लिए कभी नहीं कहा, हाँ बस जब इच्छा होती तो उनसे लिपट जाया करती थी और वे मेरा इशारा समझ जाते थे। पर इन दिनों वो मेरे इशारों को नकार देते और थका हूँ कह कर सो जाते थे।
कुछ दिन इसी तरह बीत गए, पति जब काम पर चले जाते, तो अक्सर मुझे अमर फोन करते और हम घन्टों बातें करते।
कुछ दिनों के बाद अमर फिर से मुझे अकेले मिलने के लिए उकसाने लगे।
इसी बीच एक दिन दोपहर को अमर मेरे घर आए। मेरा पहला बेटा स्कूल से शाम को 4 बजे आता था तो मैं और मेरा दूसरा बेटा ही घर पर थे।
अमर ने मुझसे मेरे पति के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें बताया- वो आजकल काम की वजह से दिन भर बाहर रहते हैं, शायद उनके माइन्स में कोई बड़ी दुर्घटना हुई है।
तब उन्होंने कहा- अच्छा..!
फिर हम थोड़ी देर बातें करते रहे, उसके बाद उन्होंने मुझसे पूछा- क्या तुम्हें अब सम्भोग की इच्छा नहीं होती?
मैंने कुछ नहीं कहा बस अपना सर झुका लिया। तब वो मेरे पास आए और मेरे बगल में बैठ गए, फिर उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया और मुझसे बातें करने लगे।
उन्होंने मेरी बाँहों को सहलाते हुए मुझे मनाने की कोशिश करना शुरू कर दिया। मैंने तब कोई विरोध तो नहीं जताया, पर मैं खुल कर भी उनसे नहीं मिल पा रही थी।
मेरा विरोध न देख उन्होंने मुझे मेरे गले से लेकर मेरे चेहरे को चूमना शुरू कर दिया। मुझे भी उनकी इन हरकतों से कुछ होने लगा था सो मैं भी उनकी बाँहों में समाती चली गई।
हमारे घर पर प्लास्टिक की कुर्सियाँ थी और हम दोनों अलग-अलग कुर्सी पर बैठे थे। उन्होंने मुझे चूमते-चूमते मुझे अपनी गोद में बिठा लिया। मुझे उनका लिंग उनके पैंट के ऊपर से मेरे कूल्हों में महसूस हुआ, वो काफी उत्तेजित लग रहे थे और अपना लिंग मेरे कूल्हों की दरार में रगड़ने लगे।
फिर उन्होंने मेरे होंठों को अपने होंठों से चिपका लिया और मुझे चूमने लगे। थोड़ी देर में ही मैंने भी उनका साथ देना शुरू कर दिया।
तब उन्होंने मेरे स्तनों को मेरे कुर्ते के ऊपर से दबाना शुरू किया मैं हल्के दर्द से सिसकारियाँ भरने लगी।
अमर ने मेरी एक टांग को घुमा कर दूसरी तरफ कर दिया, इससे मेरी दोनों जाँघों के बीच अमर आ गया और मैं उसके गोद में थी।
हम दोनों एक-दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे, ऐसा लग रहा था कि जैसे बरसों के बाद दो प्रेमी मिले हों और एक-दूसरे में समा जाना चाहते हों।
मैंने अमर के चेहरे को पकड़ लिया और उसने मेरी कमर को कस लिया और फिर हम एक-दूसरे के जुबान और होंठों को चूसने लगे। अमर बार-बार अपनी कमर उचका कर अपने लिंग को मेरी योनि से स्पर्श कराने की कोशिश करता और मैं भी उसके लिंग पर दबाव बना देती। अब मेरी योनि में गीलापन आना शुरू हो गया था और मेरी पैंटी भी गीली होने लगी थी।
तभी अचानक मेरे बच्चे की रोने की आवाज आई तो मैं तुरंत अमर से अलग हो गई और अन्दर जाकर झूले से बच्चे को उठा गोद में चुप कराने लगी।
उसे भूख लग गई थी, सो मैंने अपनी कमीज ऊपर की और बिस्तर पर बैठ कर उसे दूध पिलाने लगी।
कुछ देर बाद अमर मेरे कमरे में आ गए और वासना से भरी निगाहों से मेरे स्तनों को देखने लगे।
फिर मेरे बगल में बैठ गए और मुझसे बोले- पहले से तुम्हारे स्तन काफी बड़े हो गए हैं!
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया, फिर उन्होंने कहा- तुम्हारा वजन भी पहले से ज्यादा हो गया है।
तब मैंने भी कह दिया- हाँ.. घर में बैठे-बैठे मोटी हो गई हूँ।
तब उन्होंने कहा- मुझे तुम मोटी नहीं लग रही हो, बल्कि सेक्सी लग रही हो..!
मैं शर्मा गई और बच्चे को झूले में दुबारा सुला कर उनके पास चली आई। पता नहीं अब मैं थोड़ा सहज महसूस करने लगी थी और उस रात की तरह ही उनसे बात करने लगी।
उन्होंने मुझसे पूछा- तुम्हारे स्तनों और नितम्बों का साइज़ अब कितना हो गया है?
मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- फिलहाल तो मुझे पता नहीं, क्योंकि मैं अभी पुराने वाली ब्रा और पैंटी पहन रही हूँ और वो 34d हैं और xl की पैंटी है, पर अब वो मुझे थोड़े टाइट होते हैं..!
यह कहते ही उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा और बिस्तर पर लेट गए, मुझे अपने ऊपर लिटा लिया।
उन्होंने अपने होंठों को फिर से मेरे होंठों से लगा कर मुझे चूमना शुरू कर दिया। उन्होंने मेरे चूतड़ों को पकड़ कर अपनी ओर जोर से खींचते हुए अपना लिंग मेरी योनि में कपड़ों के ऊपर से ही चुभाना शुरू कर दिया। मैंने भी उनकी इस क्रिया की प्रतिक्रिया में मदद के इरादे से अपनी दोनों टाँगें फैला कर उनके दोनों तरफ कर दीं और अपनी योनि को उनके लिंग पर दबाती हुई कमर को नचाने लगी।
मैंने खुद को वासना की आग में जलते महसूस किया। मैंने धीरे-धीरे उनके कपड़े उतारने शुरू कर दिए। थोड़ी ही देर में वो मेरे सामने नंगे हो चुके थे।
उन्होंने भी मेरी कुर्ती निकाल दी थी और फिर ब्रा को किनारे कर उन्होंने मेरी दाईं तरफ के स्तन को निकाल दिया और सहलाने लगे।
फिर चेहरे को चूचुक के सामने रख उन्होंने मेरे चूचुक को मसला तो पतली धागे जैसे दूध का धार निकली, जो सीधे उनके चेहरे पे गिरी। फिर क्या था, वो जोश में आकर मेरे चूचुक को मुँह में लगा कर चूसने लगे, जैसे कोई बच्चा दूध पीता हो। मैंने अपनी ब्रा का हुक पीछे से खोल दिया और अपनी स्तनों को आज़ाद कर दिया। ये देख कर उन्होंने मेरी बाईं चूची को हाथ से पकड़ा और दबाने लगे और बारी-बारी से दोनों को चूसने लगे।
मुझे बड़ा मजा आने लगा था और मैं उनके सर को हाथ से सहलाने लगी और एक हाथ नीचे उनकी जाँघों के बीच ले जाकर उनके लिंग को सहलाने लगी।
मैं कभी उनके लिंग को सहलाती, कभी अन्डकोषों को दबाती, या कभी उनके सुपाड़े पर ऊँगलियां फिराती, जिससे उनके लिंग से रिसता हुआ चिपचिपा पानी मेरी ऊँगलियों पर लग जाता।
अब उन्होंने मेरी एक टांग को उठा कर घुटनों से मोड़ दिया जिससे मेरी जाँघों के बीच का हिस्सा खुल गया और उन्होंने मेरे पजामे के ऊपर से मेरी योनि को सहलाना शुरू कर दिया। कुछ देर यूँ ही सहलाने के बाद मेरे पजामे का नाड़ा खींच दिया, तो नाड़ा टूट गया। पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और पजामे को ढीला करके मेरी पैंटी के अन्दर हाथ डाल कर मेरी योनि से खेलने लगे। फिर दो ऊँगलियाँ घुसा कर अन्दर-बाहर करने लगे। मुझे तो ऐसा लगने लगा जैसे मैं जन्नत में हूँ।
मैं बुरी तरह से गर्म हो चुकी थी तभी उन्होंने खुद को मुझे अलग कर दिया और अपना लिंग मेरे मुँह के पास कर दिया। मैं इशारा समझ गई, पर थोड़ा संकोच कर रही थी। तब अमर ने मेरा सर पकड़ कर अपने लिंग के तरफ खींचा और अपना लिंग मेरे होंठों से लगा दिया। मैंने उसके लिंग को पकड़ लिया और मुँह में जाने से रोका।

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