सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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The Romantic
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सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:00

सारिका कंवल की जवानी के किस्से

नमस्ते, मेरा नाम सारिका है। मेरी उमर 44 साल है और 3 बच्चों की माँ हूँ। मेरी कहानी मेरे जीवन की सच्ची कहानी है।
मेरी शादी के कुछ साल बाद बहुत बदलाव आने लगे और मेरे जीवन में रतिक्रिया जैसा शब्द कम होता चला गया। हालांकि मुझे तो इसकी जरूरत थी, पर पति कुछ बदल से गए, उनकी अब इसमें दिलचस्पी नहीं रही, पर मेरी अभी भी है।
हम वैसे तो बिहार के हैं, पर पति उड़ीसा में काम करते हैं इसलिए हम यहाँ किराये के मकान में रहते थे।
बात तब की है, जब मैं 35 की थी और मेरा दूसरा बच्चा 4 महीने का था। हमारे पड़ोस में 50-52 साल का एक आदमी रहने आया, उसका नाम अमर था। वो हमारे ही तरफ़ का था तो जान-पहचान होते देर न हुई। धीरे-धीरे हम एक-दूसरे से काफ़ी घुल-मिल गए।
मेरे पति जब नहीं होते, तो शाम को वो घर आते या हम छत पर बातें करते। धीरे-धीरे हम एक-दूसरे की शादीशुदा जिन्दगी के बारे में बातें करने लगे।
फिर एक दिन ऐसा आया, जब हम अपनी सम्भोग क्रिया के बारे में बातें करने लगे। हम एक-दूसरे से अपने पति-पत्नी की बातें करने लगे।
उसने बताया कि वो अपनी पत्नी से खुश नहीं है और फ़िर मैंने भी अपने पति के बारे में बता दिया।
उस वक्त मेरा दूसरा बच्चा सिर्फ़ 3 महीने का था।
इसी तरह बातें करते हुए एक महीना हो चला।
एक रात जब मेरे पति रात की शिफ्ट में थे तो अमर का फ़ोन आया। हम पहले तो इधर-उधर की बातें करते रहे। फिर अमर ने वो बात कह दी, जिसका मुझे भय था।
उसने मुझसे कहा- सारिका, हम दोनों को साथी की जरूरत है, क्यों न हम एक-दूसरे का साथ दें और अपनी अपनी इच्छाओं को पूरा कर लें?
मेरे दिलो-दिमाग में बिजली सी सनसनी आ गई। मैं उससे बातें तो करती थी, पर कभी सोचा नहीं था कि ऐसा हो सकता है क्योंकि वो मुझसे उमर में काफ़ी बड़े थे।
मैंने फ़ोन बिना कुछ कहे रख दिया।
कुछ देर बाद उनका दोबारा फ़ोन आया, पर मैंने नहीं उठाया।
करीब 4 बार के बाद मैंने फ़ोन सुना तो वो मुझसे माफ़ी मांगने लगे। फ़िर हम यूँ ही कुछ देर बातें करते रहे।
फ़िर बात फ़िर रति-क्रिया पर आ गई, फ़िर वो मुझे समझाने लगे कि इसमें कोई बुराई नहीं और उमर से इसका कोई लेना-देना नहीं।
काफ़ी देर उनके समझाने-बुझाने के बाद अखिरकार मैंने भी ‘हाँ’ कह दिया।
फ़िर क्या था…
अमर ने मुझसे कहा- मैं तुम्हारे घर आ रहा हूँ।
मुझे तो घबराहट हो रही थी, मैंने कह दिया- रात काफी हो गई है, किसी और दिन..!
पर अमर मानने को तैयार नहीं था तो उसने करीब 12 बजे मेरा दरवाजा खटखटाया।
मैंने घबराते हुए दरवाजा खोला, सामने अमर मुस्कुराते हुए मुझे देखने लगा।
मैं शर्म से पानी हो रही थी।
मैं अन्दर आ गई, मेरे पीछे वो भी दरवाजा बन्द कर के चला आया।
मेरे अन्दर आते ही उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया और मुझे चूमने लगा।
मैं बस सहमी सी उसके छुअन को अपने बदन पर महसूस किए जा रही थी। उसने मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। मुझे अजीब सा लगने लगा।
एक पल तो ये ख्याल भी आया कि यह क्या कर रही हूँ पर वासना मेरे ऊपर भी हावी होने लगी थी शायद इसलिए मैं कोई विरोध नहीं कर रही थी।
उसने मुझे जहाँ-तहाँ छूना और सहलाना शुरू कर दिया, उसकी छुअन से मेरे अन्दर की वासना और दहकने लगी।


मैं उस रात सलवार कमीज में थी और दुपट्टा अन्दर कमरे में ही भूल गई थी।
उसने मेरे स्तनों को अब सहलाना और दबाना शुरू कर दिया था, फ़िर उसका एक हाथ धीरे-धीरे नीचे आने लगा, पहले पेट, फ़िर नाभि, फ़िर अचानक मेरी योनि..!
मैं कांप गई और मैं सहम कर उसकी तरफ़ मुँह करके उससे चिपक गई।
मैंने उसे कस लिया, उसका शरीर मुझे गजब की गर्माहट दे रही थी। मैं अब गरम होने लगी थी, मेरी योनि में अब मैं हल्की नमी महसूस कर रही थी।
अमर ने मुझसे कहा- सारिका.. अब शर्माओ नहीं.. खुल कर इस पल का आनन्द लो..!
और फ़िर उसने मेरे चेहरे को ऊपर किया और अपना मुँह मेरे मुँह से लगा कर मुझे चूमने लगा। उसने मेरे होंठों को चूसना शुरु कर दिया। कुछ देर बाद वो अपनी जुबान मेरे मुँह के अन्दर करने की कोशिश करने लगा।
पहले तो मैं विरोध करने जैसा करती रही, फ़िर अपना मुँह खोल दिया। उसने अपनी जुबान मेरे जुबान से छूने की कोशिश करने लगा।
कुछ देर जब उसे कामयाबी नहीं मिली, तो उसने कहा- सारिका अपनी जुबान बाहर करो..!
मैं कुछ देर सोचती रही, पर उसके दोबारा कहने पर मैंने अपनी जुबान बाहर निकाल दी। उसने तुरन्त मेरी जुबान को चूसना शुरु कर दिया।
कुछ देर के बाद मैं भी उसका साथ देने लगी। कभी वो मेरी जुबान चूसता और मेरी लार पी जाता, तो कभी मैं..!
उसने अब अपना हाथ मेरे नितम्बों पर रख दिया। मुझे अपनी और कसके खींच लिया और अपनी कमर को घुमाने लगा। मैंने महसूस किया कि सलवार के ऊपर से ही उसका लिंग मेरी योनि से लग रहा है।
हम काफी देर इस अवस्था में एक-दूसरे से चिपके आलिंगन करते रहे।
तभी अमर ने कहा- अब अन्दर चलो, मुझसे रहा नहीं जा रहा है, मैं अपने लिंग को तुम्हारी योनि के अन्दर डालना चाहता हूँ..!
हम तुरन्त अन्दर चले आए।
मैं बिस्तर पर आ गई, अमर मेरे पास आया और मेरी सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार निकाल दी।
मैंने अन्दर कुछ नहीं पहना था, यह देख कर उसने कहा- तुम अन्दर पैन्टी नहीं पहनती क्या?
मैंने जवाब दिया- मैं रात को नहीं पहनती!
तब उसने पूछा- क्या ब्रा भी नहीं पहनती?
मैंने कहा- नहीं !
अब हम खुलने लगे थे और बातें भी होने लगी थीं, क्योंकि अब हम इतने गर्म हो चुके थे कि शर्म-हया सब भूल चुके थे।
अब अमर मेरे ऊपर आ गया और मुझे चूमने-चूसने लगा। मेरे तो जैसे तन-बदन में आग सी लगने लगी।
मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरा बदन आग में जल रहा है। वो मुझे कभी कमर से पकड़ कर जोर से अपने जिस्म को मेरे ऊपर दबाता और मुझे चूमता, तो कभी मेरे स्तनों को और दबाता और कभी उन्हें मसल रहा था। मेरे मुँह से ‘सिस्की’ निकल जाती, जिसे वो सुन कर और जोश में आ जाता।
उसने अब एक हाथ से मेरा एक पैर अलग किया, तो मैंने खुद अपने दोनों पैरो को फ़ैला कर उसको कमर से कस लिया। हम अब एक-दूसरे को उसी अवस्था में प्यार करते रहे।
मैंने महसूस किया कि अमर अपनी कमर से कुछ कर रहा है। उसके लिंग से मेरी योनि में स्पर्श हो रहा था, जिसका दबाव कभी ज्यादा तो कभी कम हो रहा था।
मैं समझ गई कि अमर अब पूरी तरह से यैयार हो चुका है मुझे यौनानन्द के सागर में गोते लगवाने के लिए, मैं भी अपनी कमर को उसके साथ हिला कर उसका साथ देने लगी।
अब अमर ने एक हाथ मेरी योनि में ले गया और सहलाने लगा। मुझे गुदगुदी सी होने लगी।
तभी अमर ने कहा- तुम्हारी योनि कितनी गीली हो चुकी है और यह कितनी मुलायम है..!
अपनी तारीफ़ किसे नहीं अच्छी नहीं लगती..!
मैं भी खुश हुई।
कुछ देर सहलाने के बाद उसने कहा- मैं तुम्हारी योनि के रस को चखना चाहता हूँ !
और वो मेरी योनि के पास झुकता चला गया। मेरी कुछ समझ में आता, उससे पहले ही उसने मेरी योनि को चूसना शुरू कर दिया।
मुझे गजब का मजा आने लगा था। ऐसा मैं कई सालों के बाद अहसास कर रही थी। मैं पूरी मस्ती में उस पल का मजा लेने लगी। मेरे पूरे जिस्म में सिहरन सी होने लगी। मैं समझ गई कि अब मैं स्खलित होने वाली हूँ। सो मैंने उसका सिर खींच लिया और कहा- अब बस करो..!
अब वो मेरे ऊपर आ गया और फ़िर से मुझे चूमने लगा।
कुछ देर बाद उसने कहा- तुम्हारे स्तनों से दूध निकलता है, मुझे वो पीना है।
और उसने मेरा कुरता निकाल दिया।
अब मैं बिल्कुल नंगी थी। मेरे मन में एक बार ख्याल भी आया कि मैं एक पराये मर्द के सामने नंगी हूँ, पर अब इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि हम अब बहुत आगे निकल चुके थे।
उसने पहले तो मेरी तारीफ़ की, कहा- तुम कितनी सुन्दर हो, तुम्हारा जिस्म एकदम मखमल की तरह है और तुम्हारे स्तन गोलाकार और बहुत सुन्दर हैं।
मैं अपनी तारीफ़ सुन रही थी और अब वो मेरे स्तनों से खेलना शुरु कर चुका था। मेरी चूचुक को मुँह में भर कि चूसने लगा और दूसरी चूची को हाथ से दबाने लगा।
वो मेरा दूध अब पीने लगा था और मैं उसके सिर को सहारा दिए हुए उसकी मदद कर रही थी।
जब वो इस खेल में मगन था तब मेरे दिल में उसके लिंग को छूने का ख्याल आया और मैंने एक हाथ से उसके पजामे के ऊपर से उसके लिंग को छुआ।
यह देख अमर ने अपने पजामा निकाल दिया। पर इस अवस्था में परेशानी हो रही थी, सो हम लेट गए। अब वो मेरे बगल में करवट लिए हुए लेटे-लेटे मेरे स्तनों से दूध पी रहा था।
अब मैंने उसका लिंग हाथ में ले लिया तो मुझे करन्ट सा लगा और मेरी आँखें खुल गईं।
तभी मेरी नजर बिस्तर पर सोये हुए मेरे बच्चे पर गई और मैं रुक गई।

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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:03

अब मैंने उसका लिंग हाथ में ले लिया तो मुझे करन्ट सा लगा और मेरी आँखें खुल गईं।
तभी मेरी नजर बिस्तर पर सोये हुए मेरे बच्चे पर गई और मैं रुक गई।
इस पर अमर ने पूछा- क्या हुआ, भयभीत क्यों हो रही हो, मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे तुम्हें तकलीफ़ हो।
तब मैंने उसे बताया कि क्या बात है। उसने बच्चे को पालने में सुला दिया और फ़िर मेरे पास आ गया।
अब अमर मेरे पास आए और मुस्कुराते हुए कहा- मुझे लगा तुम मेरे लिंग का आकार देख कर भयभीत हो गई..!
और वो जोर-जोर से हँसने लगा। मैंने उसको शान्त किया कि कोई सुन ना ले।
फ़िर मैंने उससे कहा- ऐसी बात नहीं है..!
पर उसके लिंग का आकार को देख कर मुझे जरा भय तो लगा क्योंकी उसका लिंग काफी लम्बा था।
अब हम फ़िर से एक-दूसरे की बांहों में खोकर प्यार करने लगे।
अब तो मैं पूरी तरह से गर्म और गीली हो चुकी थी और अमर के लिंग में भी काफ़ी तनाव आ गया था।
अमर ने मुझसे कहा- सारिका, अब और नहीं रहा जाता, मैं जल्द से जल्द सम्भोग करना चाहता हूँ।
मैंने भी सिर हिला कर उसको इशारे से ‘हाँ’ कह दिया। मेरे अन्दर चिंगारी जल रही थी और मैं भी जल्द शांत होना चाह रही थी।
अब उसने एक तकिया मेरी कमर के नीचे रख दिया और मेरी जाँघों के बीच आ गया और मेरे पैरों को फ़ैला कर मेरे ऊपर लेट गया।
उसका लिंग मेरी योनि से स्पर्श कर रहा था, उसने मुझे अपनी बांहों में कस लिया और मैंने भी उसे जकड़ लिया।
अमर ने मुझसे पूछा- क्या तुम तैयार हो?
मैंने भी हाँ में जवाब दिया। अब अमर अपने लिंग को मेरी योनि में घुसाने की कोशिश करने लगा, पर जब भी वो करता लिंग फ़िसल जाता।
तब उसने मुझे सहयोग करने को कहा। अब मैंने उसके लिंग को हाथ से योनि के ऊपर रखा और अमर से जोर लगाने को कहा।
उसका लिंग मेरी योनि में घुसता चला गया। और मुझे हल्की सा दर्द हुआ, मैं सिसक गई। यह देख कर अमर ने मुझे चूम लिया।


शायद वो भी जानता था कि यह सुख की सिसकी है और धीरे-धीरे वो जोर लगाता रहा। मैं हर जोर पर सिसक जाती, मुझे तकलीफ़ जरूर हो रही थी, पर वासना के आगे कुछ नहीं दिखता।
मैं बर्दाश्त करती रही, जब तक उसका पूरा लिंग मेरी योनि में समा न गया। मैंने एक दो बार उसको भी देखा, शायद उसे भी तकलीफ़ हो रही थी क्योंकि मेरी योनि उसके लिये तंग लग रही थी।
अब हमने एक-दूसरे को कस लिया और फ़िर उसने एक बार फ़िर जोर लगाया। इस बार उसका समूचा लिंग अन्दर समा गया और मेरी सिसकारी इस बार जरा जोर से निकली।
इस पर अमर बोले- क्या हुआ.. तुम्हें दर्द हो रहा है?
मैंने बस सिर हिला कर ‘ना’ में जवाब देते हुए कहा- अब देर न कीजिए… जल्द मुझे प्यार कीजिए..!
दर्द तो मुझे हो रहा था, पर जानती थी कि कुछ ही पलों में यह गायब हो जायेगा तो मैंने उसे जल्द धक्के लगाने को कहा। उसका लिंग की ठोकर मेरी बच्चेदानी में लग रही थी, जिससे मुझे हल्का दर्द तो हो रहा था, पर उसके गर्म लिंग के सुखद एहसास के आगे ये सब कुछ नहीं था। उसने सम्भोग की प्रकिया को शुरू कर दिया पहले धीरे-धीरे धक्के लगाए, फ़िर उनकी रफ़्तार तेज हो गई।
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। बहुत मजा आ रहा था। मेरी योनि में जितना अधिक धक्के लगते, उतनी ही गीली हो रही थी। मैं अमर को पूरी ताकत से अपनी बांहों और पैरों से कस चुकी थी और उसने भी मुझे जकड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों एक-दूसरे में आज समा जायेंगे।
अमर धक्कों के साथ मुझे चूमता चूसता, कभी मेरे स्तनों से दूध पीने लगता और मैं भी उसे उसी तरह चूसने और चूमने लगी। मेरे अन्दर हलचल सी मची थी, मुझे बहुत मजा आ रहा था।
तभी अमर ने कहा- सारिका कैसा लग रहा है, कोई तकलीफ़ तो नहीं हो रही तुम्हें?
मैंने उसकी तरफ़ देखा, उसके सिर से पसीना आ रहा था। मुझे उसके चेहरे पर एक सन्तोष और खुशी नजर आई, जो मेरी वजह से थी। वो हांफ रहा था।
उसने प्यार से मुझे पूछा तो मैंने भी कहा- नहीं कोई तकलीफ़ नहीं है और मुझे बहुत मजा आ रहा है, आप बस रुकना मत।
यह सुन उसने एक धक्का दिया और मुझसे चिपक कर मेरे मुँह से अपने मुँह को लगा दिया। अब अमर धक्के नहीं बल्कि अपने लिंग को मेरी योनि में पूरा घुसा कर अपनी कमर को घुमाने लगा।
हम एक-दूसरे के होंठों और जुबान चूसने लगे, साथ ही अपनी-अपनी कमर घुमाने लगे। मैं समझ गई थी कि अमर थक गया है इसलिए ऐसा कर रहा है पर मुझे यह बहुत अच्छा लग रहा था। उसके लिंग को मैं अपने बच्चेदानी में महसूस कर रही थी, जिससे मुझे एक अलग तरह का मजा आ रहा था। हल्का दर्द होता था, पर वो भी किसी मजे से कम नहीं था इसलिए मैं बस उसका आनन्द लेती रही।
उसकी सांसें जब कुछ सामान्य हुईं, तो फ़िर से धक्के लगाने लगा।
कुछ ही देर में मेरा बदन सख्त होने लगा, तब उसने धक्के लगाने बन्द कर दिए। वो समझ गया कि मैं स्खलित होने वाली हूँ पर शायद वो ऐसा नहीं चाहता था।
तब मैंने उनसे पूछा- क्या हुआ?
उन्होंने मुझसे कहा- इतनी जल्दी नहीं..!
मैं यह भूल गई थी कि उसकी उमर 50 से अधिक है और अनुभव भी।
अब उसने मेरी कमर के नीचे अपने हाथ लगाए और कहा- अब तुम मेरे ऊपर आ जाओ, अपना पैर मेरी कमर से भींचे रखो और लिंग को बाहर न आने देना।
मेरे लिए ये एक अलग तरह का अनुभव था। अब हमने अपनी अवस्था बदली, मैं उसके ऊपर थी, उसी वक्त मेरा ध्यान तकिये पर गया, मेरी योनि से निकले पानी से उसका खोल भीग गया था पर उसे दरकिनार कर अपने सम्भोग में ध्यान लगाने लगी।
मैं अमर के ऊपर लेट गई और उसके सीने पर हाथ रख दिया।
अमर ने मेरी कमर पर हाथ रख दिया और मैं अब धक्के लगाने लगी। हमारी मस्ती अब आसमान में थी। उसके लिंग का स्पर्श मुझे पागल किए जा रहा था। जब उसका लिंग अन्दर-बाहर होता तो मैं उसके लिंग के ऊपर की चर्म को अपनी योनि की दीवारों पर महसूस कर रही थी। कुछ देर के बाद मेरी भी सांसें फूलने लगीं, मैं भी थक गई थी।
अमर इस बात को समझ गए और बोले- सारिका तुम भी अब थक गई हो, अब तुम अपने शरीर को ऊपर करो।
मैंने वैसा ही किया।
अब अमर ने अपने हाथ मेरी कमर पर रखा और कहा- तुम अपनी कमर को ऐसे घुमाओ जैसे अंग्रेजी में 8 लिखते हैं। मानो की तुम अपनी कमर से 8 लिख रही हो।
मैं वैसा ही करने लगी।
सच में क्या गजब का मजा आ रहा था। मेरी बच्चेदानी से जैसे उनका लिंग चिपक गया हो, ऐसा लग रहा था।
करीब दस मिनट तक मैं वैसे ही मजे लेती रही। आखिरकार मेरा सब्र जवाब देने लगा, मेरा शरीर अकड़ने लगा, अब मैं स्खलित होने वाली थी। पर अमर नहीं चाहता था कि मैं अभी स्खलित होऊँ।
इसलिए उसने मुझसे कहा- अभी नहीं.. इतनी जल्दी… हम साथ में होगें, खुद पर काबू करो..!
पर अब मुझसे ये नहीं होने वाला था। उसने मुझे तुरन्त नीचे उतार दिया और अपना लिंग बाहर निकाल दिया।
अब मैं बेकाबू सी होने लगी और उससे विनती करने लगी- अमर प्लीज़, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता, मैं जल्द से जल्द चरम सुख पा लेना चाहती हूँ…!
अमर ने कहा- इतनी जल्दी नहीं…कुछ देर और करते हैं, जब तक ये न लगे कि हमारा शरीर पूरी तरह आग न बन जाए..!
मैंने दोबारा विनती की- प्लीज़.. अब मैं और इस आग में नहीं जल सकती, मेरी आग को शान्त करो। मैं स्खलित होना चाहती हूँ..!
उसने मेरी विनती सुन ली और अपने लिंग को हाथ से कुछ देर सहलाने के बाद मेरे ऊपर आ गया। अब उसने मेरे पैरों को फ़ैलाया और बीच में आ गया।
मैं तो पहले से ही व्याकुल थी, सो मैंने बिना देर किए, उनके गले में हाथ दे दिया और कस लिया। अपने लिंग को हाथ से मेरी योनि पर रख कर जोर दिया, लिंग अन्दर चला गया।
मैं सिसक गई। फ़िर उसने मुझे चूमा और धक्के लगाने लगा और कहा- सारिका, मैं चाह रहा था कि तुम इस पल को पूरी तरह मजा लो, पर तुम मेरा साथ नहीं दे रही..!
मैंने जवाब दिया- मुझे बहुत मजा आ रहा है, बस अब मैं चरम सुख चाहती हूँ..!
उसने कहा- अगर तुम मुझसे पहले स्खलित हो गई तो मेरा क्या होगा..!
मैंने जवाब दिया- मैं आपका साथ दूँगी, जब तक आप स्खलित नहीं होते..!
यह सुनते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और धक्कों की गति तेज़ होने लगी।
अब मैं ज्यादा दूर नहीं थी, मेरे मुँह से मादक सिसकारियाँ निकलने लगी थीं। हम दोनों के मुँह आपस में एक हो गए। एक-दूसरे की जुबान से हम खेलने लगे और नीचे हमारे लिंग और योनि का खेल चल रहा था।
मैंने महसूस किया कि अमर का शरीर भी अब सख्त हो रहा है, मैं समझ गई कि अब वो भी चरम सुख से दूर नहीं है।
उसके धक्के लगातार तेज़ और पहले से कहीं अधिक दमदार होते जा रहे थे, उसने अपने शरीर का पूरा जोर मुझ पर लगा दिया और मैंने भी उस पर अपना शरीर चिपका दिया।
हमारी साँसें तेज होने लगीं, हम हांफ़ने लगे थे।
तभी मुझे ख्याल आया कि अमर ने सुरक्षा के तौर पर कुछ नहीं लगाया है।
मैं इससे पहले कुछ कह पाती, मेरे शरीर ने आग उगलना शुरू कर दिया। मैं जोरों से अपनी कमर को ऊपर उछालने लगी, तभी अमर ने भी पूरा जोर मुझ पर लगा दिया।
मैं स्खलित हो गई और कुछ जोरदार धक्कों के बाद अमर भी स्खलित हो गया, उसके गर्म वीर्य को मैंने अपने अन्दर महसूस किया। हम दोनों थक कर ऐसे ही कुछ देर लम्बी सांसें लेते हुए पड़े रहे। कुछ देर बाद अमर मुझसे अलग हुआ, मैंने देखा उनका लिंग सफ़ेद झाग में लिप्त था जो कि रोशनी में चमक रहा था। उसके चेहरे पर सन्तोष और खुशी थी।
उसने अपना लिंग और मेरी योनि को तौलिए से साफ़ किया और मेरे बगल में लेट गया।
हम कुछ देर बातें करते रहे और अब हम खुल कर बातें कर रहे थे।
इसके बाद भी हमने 3 बार सम्भोग किया, पर हम दोनों की हालत ऐसी हो गई थी कि उनके जाने के बाद मैं कब सो गई, कुछ पता ही नहीं चला।
मुझे इतना मजा अया कि मैं उस रात को कभी भूल नहीं सकती।

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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:04

शादी के बाद मेरी जिन्दगी में नाम मात्र का सम्भोग और रतिक्रिया रह गई थी। दूसरे बच्चे के बाद तो स्थिति और भी खराब हो गई है इसलिए मुझे जब मौका मिला, तो मैंने दूसरों के साथ सम्भोग कर लिया।
यh इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि मैं उड़ीसा में थी और मेरे पति काम पर चले जाते थे। उसी दौरान मुझे मौका मिल जाया करता था। उड़ीसा में मैं 13 साल रही और इस दौरान मैंने अपने पति के अलावा 4 और लोगों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए जिनमें से अमर के साथ लम्बे समय तक सहवास किया।
बाकी में से एक के साथ 2 साल तक, एक के साथ 7 महीने और एक के साथ 3 दिन तक शारीरिक सम्बन्ध रखे, पर मेरे लिए मुसीबत तब हो गई, जब पति का तबादला झारखण्ड हो गया।
मेरे पति ने मुझे बच्चों के साथ गांव मे रहने को कहा क्योंकि रांची से एक या दो दिन में घर आ-जा सकते थे।
उनका आना मेरी रात्रि के अकेलेपन को दूर नहीं करता था।
मेरी उमर अब 39 वर्ष की होने को थी और पता नहीं क्यों, मेरी काम वासना और भी ज्यादा होने लगी थी।
उसी बीच पति ने बच्चों के लिए एक कंप्यूटर खरीदा। मेरा एक भतीजा आया हुआ था, तो उसने मुझे इंटरनेट पर बात करना सिखा दिया।
फ़िर मेरी एक सहेली जिसका नाम सुधा है, जो बैंगलोर में रहती है, उससे मैं बात करने लगी।
बच्चे जब स्कूल चले जाते, तो हम दोनों खूब लिख-लिख कर बातें करते।
हम बचपन की सहेलियाँ हैं इसलिए हम खुल कर बातें करते थे। इसलिए मैंने उसे ये सब बातें बता दीं।
उसने मुझे बताया कि शायद मैं रजोनिवृति की तरफ़ जा रही हूँ इसलिए मुझे काम की इच्छा अधिक हो रही है। रजोनिवृति 45 से 50 के बीच हो जाता है, पर मेरी उमर 39 साल ही थी।
मैं और मेरे पति के घरवाले एक और बच्चा चाहते थे क्योंकि दो लड़के थे और हम एक लड़की चाहते थे पर पति का सहयोग नहीं मिल रहा था।
मैंने पति से बात भी की कि अगर बच्चा चाहिए तो जल्दी करना होगा क्योंकि ये उमर बच्चे पैदा करने के हिसाब से स्त्री के लिए खतरनाक होता है।
पर पति ने कह दिया कि इसमें ज्यादा जोर नहीं देना है, अगर हुआ तो ठीक और नहीं हुआ तो कोई बात नहीं और जरुरी नहीं कि बच्ची ही पैदा हो।
तब मैंने यह बात अपनी सहेली को बताई।
हम यूँ ही कुछ दिन ऐसे ही बातें करते रहे। फ़िर एक दिन उसने मुझे बताया कि अगर ऐसी बात है, तो किसी का वीर्य ले लो।
मुझे यह बात समझ नहीं आई, तब उसने मुझे बताया कि जैसे ब्लड-बैंक होता है, वैसे ही वीर्य बैंक होता है जहाँ से किसी मर्द का वीर्य चिकित्सक सुनिश्चित कर के देता है कि बच्चा कैसा होगा, फ़िमेल होगा या मेल होगा, इस तरह अधिक गुंजायश के साथ आपकी योनि में कृत्रिम रूप से गर्भ धारण करवाते हैं।
मुझे यह तरकीब अच्छी लगी, पर पति को नहीं तो फ़िर मैंने उम्मीद करना ही बन्द कर दिया।
तभी एक दिन सहेली से बात करते हुए हम अपने सम्भोग के बारे में बात करने लगे।
उसने मुझे बताया कि बैंगलोर जैसे शहरों में सम्भोग बड़ी बात नहीं है, वहाँ आसानी से कोई भी किसी के साथ सेक्स कर सकता है क्योंकि वहाँ लोग आपस में काफी व्यस्त रहते हैं।
किसी को दूसरों के जिन्दगी में झाँकने का समय ही नहीं है। इसलिए लोग छुप कर कहीं भी किसी के साथ सम्भोग कर लेते हैं।
तभी उसने मुझे अपना राज बताया कि उसके पति काम के सिलसिले में पार्टियों में जाते हैं वहाँ तरह-तरह के लोगों से उसकी मुलाकात करवाते हैं इसलिए उसकी दोस्ती बहुत से मर्दों के साथ है और उनमें से कुछ लोगों के साथ अक्सर बाहर घूमने-फ़िरने जाती है तथा उनके साथ सम्भोग भी करती है।
इसके अलावा अगर उसे किसी दूसरे मर्द से सम्भोग करना हो तो उसका भी इन्तजाम हो जाता है।
क्योंकि ये लोग आपस में एक-दूसरे को जानते हैं इसलिए अगर इनमें से कोई साथी बदलना चाहे, तो बदल लेते हैं।
खैर.. यह तो रही उसकी बात, अब मैं अपने पर आती हूँ, इन सारी बातों को जानने के बाद मेरी सहेली ने मुझे एक तरकीब बताई।
उसने मुझसे कहा कि नेट पर देखो, बहुत से मर्द मिल सकते हैं जो सम्भोग करना चाहते हैं और सब कुछ राज रखते हैं।
पहले तो मैंने नखरे दिखाए, तब उसने कहा कि ऐसा पहली बार तो नहीं कि पराये मर्द से सम्भोग करोगी।
तब मैंने भी ‘हाँ’ कर दी, पर मुसीबत यह थी कि अब पहले की तरह मैं आजाद नहीं थी। यहाँ हर कोई मुझे जानता था, मैं किसी दूसरे मर्द से मिली, तो मेरी बदनामी होती, इसलिए मैंने मना कर दिया।
पर कुछ दिनों के बाद उसने मुझसे कहा- अगर मैं कुछ दिनों के लिए अपने पिता के घर चली जाऊँ तो काम बन सकता है।
मुझे भी पिताजी से मिले काफ़ी समय हो चुका था, सो मेरे लिए यह आसान था। तब मैंने अपनी सहेली से बात की, “कैसे होगा ये सब और किसके साथ..!”
तब उसने मुझे बताया कि उसका एक समाज सेवा केंद्र में एक दोस्त है, जो यह कर सकता है। वो दोनों हफ़्ते में एक दिन मिलते हैं। और सम्भोग भी करते हैं।
मैं उसको सुनती रही।
उसने आगे बताया- उसका भी किसी दूसरी औरत के साथ सम्भोग का मन है, इसलिए तुमसे यह बात कही। संयोग की बात यह है कि वो इस बार हमारे गांव आना चाह रहे हैं क्योंकि वो एक किताब लिख रहे हैं, जो भारत के गांवों पर है इसलिए कुछ दिन यहीं रहेंगे।
तब हमने भी समय तय कर लिया, दो हफ़्ते के बाद मेरी सहेली और उसका दोस्त आ गए मैं भी पति से कह कर पिता के घर चली गई।
बच्चों के स्कूल की वजह से उनको घर पर ही रहने दिया उनकी बड़ी माँ के साथ।
मेरे दिल में अब एक ही चीज थी कि वो कैसा होगा, क्या उसके साथ सब कुछ सहज होगा या नहीं, क्योंकि ये पहली बार था जब मैं बिना किसी को जाने सम्भोग के लिए राजी थी।
मैं पहले दिन पिताज़ी के साथ ही रही, क्योंकि बहुत दिनों के बाद मिली थी। घर पर भाई और भाभी थे, जो रात होते ही अपने कमरों में चले जाते थे।
क्योंकि गाँवों में लोग जल्दी सो जाते थे, पर पिताजी उस दिन मुझसे करीब 10 बजे तक बातें करते रहे, तो उस दिन देर से सोये।
अगले दिन मेरी सहेली अपने दोस्त के साथ मुझसे मिलने आई, उसने मुझसे मुलाकात करवाई, उसका नाम विजय था।
कद काफी लम्बा करीब 6 फिट से ज्यादा, काफी गोरा, चौड़ा सीना, मजबूत बाजू देख कर लगता नहीं था कि उम्र 54 की होगी।
बाकी मेरे घरवालों से भी मिलवाया। मैंने उनको नास्ता पानी दिया फ़िर इधर-उधर की बातें करने लगे।

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