चंदर ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे पुच्छ रहा हो के हो गया क्या? रूपाली मुस्कुराइ, उसके लंड को अपनी गांद पर रखा और धीरे धीरे नीचे होने की कोशिश करने लगी.
वो नीचे को होती और लंड जैसे ही गांद में जाता उसके जिस्म में दर्द होना शुरू हो जाता और वो फिर उपेर हो जाती. कई जब कई बार कोशिश करने पर भी वो लंड ले नही सकी तो उसने गुस्से में एक लंबी साँस खींची, अपनी आँखें बंद की, लंड गांद पर रखा और नीचे बैठती चली गयी.
दर्द की एक ल़हेर उसके जिस्म में उपेर से नीचे तक दौड़ गयी पर वो रुकी नही. अगले ही पल उसकी गांद नीचे चंदर की जाँघ से मिल गयी और लंड पूरी तरह गांद में समा गया. रूपाली से दर्द बर्दाश्त नही हो रहा था और आँखो से आँसू बह रहे थे. वो अभी रुक कर साँस ही ले रही थी के नीचे से चंदर ने नीचे से कमर झटक कर गांद पर एक धक्का मारा. रूपाली की चीख निकल गयी.
अगले दिन रूपाली की आँख जल्दी खुल गयी. वो अब भी बिस्तर पर नंगी पड़ी थी और गांद में अब तक दर्द हो रहा था. कल रात उसने उस वक़्त तो गांद मारा ली थी क्यूंकी थोड़ी देर बाद मज़ा आने लगा था पर चंदर के जाने के बाद उसका सोना मुश्किल हो गया था. इतना दर्द तो उसे तब भी नही हुआ था जब वो शादी के बाद पहली बार चुदी थी.
वो बिस्तर से उठके नीचे आई और सबसे पहले देवधर को फोन करने की सोची जिसे उसने आज घर आने को कहा.
"मैं बस अभी निकल ही रहा था" देवधर ने कहा
"आप हवेली ना आएँ" रूपाली ने कहा
"जी?" देवधर की समझ ना आया
"आप सीधे जय के घर पहुँचे. मैं दोपहर 12 बजे आपसे वहीं मिलूंगी" रूपाली ने कहा और फोन रख दिया
तेज सुबह सुबह ही कहीं गायब हो गया था और इंदर अब तक सो रहा था. पायल और बिंदिया रूपाली को किचन में मिले.
बिंदया अब भी अपने पुराने कपड़े में ही खड़ी थी जबकि पायल ने रूपाली की दिए हुए कपड़े पहेन रखे थे.
बिंदिया को देखकर रूपाली के दिल में ख्याल आया के उसे भी कुच्छ कपड़े दे दे पर सवाल था के किसके. सोचा तो उसके दिमाग़ में अपनी सास का नाम आया. सरिता देवी के मरने के बाद से उनके कपड़े सब यूँ ही रखे थे.
रूपाली उस कमरे में पहुँची जिस में सरिता देवी ने अपने आखरी कुच्छ दिन गुज़ारे थे. बीमार होने के बाद उन्हें इस कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था और उनका सारा समान भी यहीं था. रूपाली कमरे में आई और कपड़े उठा उठाकर देखने लगी
कुच्छ कपड़े पसंद करने के बाद वो कमरे से निकल ही रही थी के उसे वो डिब्बा नज़र आया जिसमें सरिता देवी अपनी दवाई रखा करती थी. कुच्छ गोलियाँ डिब्बे में अब भी थी. अब उनका कुच्छ काम नही था ये सोचकर रूपाली ने डिब्बा उठाया और खोला.
उसमें नीचे एक पेपर मॉड्कर रखा हुआ था और उसपर कुच्छ गोलियाँ रखी हुई थी. रूपाली ने डिब्बा उलटकर दवाइयाँ बिस्तर पर गिराई. गोलियों के साथ ही अंदर रखा वो काग़ज़ भी निकालकर बिस्तर पर गिर पड़ा और तब रूपाली का ध्यान पड़ा के वो असल में एक काग़ज़ नही बल्कि एक तस्वीर थी.
तस्वीर ब्लॅक आंड वाइट थी. उसमें कामिनी एक लड़के के साथ खड़ी हुई थी. लड़का कौन था ये रूपाली पहचान नही सकी पर सबसे ज़्यादा हैरत उसे कामिनी के कपड़ो पर हुई. कामिनी कभी इस तरह के कपड़े नही पेहेन्ति थी और तब रूपाली ने ध्यान से देखा तो उसको एहसास हुआ को वो लड़की कामिनी नही बल्कि खुद सरिता देवी थी. ये उनकी जवानी के दीनो की तस्वीर थी. कामिनी शकल सूरत से बिल्कुल अपनी माँ पर गयी थी इसलिए कोई भी इस तस्वीर को देखकर ये धोखा खा सकता था के तस्वीर में कामिनी खड़ी है.
रूपाली का ध्यान सरिता देवी के साथ खड़े लड़के पर गया. जहाँ तक उसको पता था सरिता देवी का कोई भाई नही था और फोटो में खड़ा लड़का ठाकुर साहब तो बिल्कुल नही थे. लड़का शकल सूरत से खूबसूरत था पर सरिता देवी से हाइट में छ्होटा था. रूपाली ने तस्वीर उठाकर अपने पास रख ली और कमरे से बाहर निकल आई.
बाहर आकर उसने इनस्पेक्टर ख़ान को फोन किया और उसको भी हवेली आने के बजाय जय के घर पर मिलने की हिदायत दी.
इंदर अब तक सो रहा था. रूपाली ने उसे जगाना चाहा पर फिर अपनी सोच बदलकर तैय्यार हुई और खुद ही अकेली कार लेकर निकल पड़ी.
थोड़ी देर बाद वो हॉस्पिटल पहुँची.
ठाकुर अब भी बेहोश थे. भूषण वहीं बेड के पास बैठा हुआ था. रूपाली को देखकर वो खड़ा हुआ.
रूपाली वो तस्वीर अपने साथ लाई थी जो उसे सरिता देवी के कमरे में मिली थी. वो जानती थी के अगर कोई उसको तस्वीर में खड़े लड़के के बारे में बता सकता था तो वो एक भूषण ही था.
रूपाली ने तस्वीर निकालकर भूषण को दिखाई.
"कौन है ये आदमी काका?" उसने भूषण से पुचछा
तस्वीर देखते ही भूषण की आँखें फेल गयी.
"आपको ये कहाँ मिली?" भूषण ने पुचछा
"माँ के कमरे से" रूपाली अपनी सास को माँ कहकर ही बुलाती थी "कौन है ये?"
"था एक बदनसीब" भूषण ने कहा "जिसकी मौत इस हवेली में लिखी थी और उसको यहाँ खींच लाई थी"
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"ये ठकुराइन के बचपन का दोस्त था. ये लोग साथ में पले बढ़े थे. सरिता देवी इसको अपने भाई की तरह मनती थी पर इसके दिल में शायद कुच्छ और ही था. जब उनकी शादी ठाकुर साहब के साथ हुई तो इसने बड़ा बवाल किया था सुना है पर शादी रोक नही पाया क्यूंकी सरिता देवी खुद ऐसा नही चाहती थी."
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"फिर शादी हो गयी और सब इस बात को भूल गये. ठाकुर साहब को तो इस बात की खबर भी उस दिन लगी जब ये हवेली में आ पहुँचा"
"हवेली?"रूपाली बोली
"हां" भूषण ने कहा "शादी के कोई 1 महीने बाद की बात है. एक दिन ये हवेली के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ और इसकी बदक़िस्मती के सबसे पहले ठाकुर साहब से ही टकरा गया. उनसे गुहार करने लगा के वो ठकुराइन से प्यार करता है और उनके बिना जी नही सकता. और जैसे इसके दिल की मुराद पूरी हो गयी"
रूपाली खामोश खड़ी सुन रही थी
"ठाकुर साहब ने इसे इतना मारा के इसने वहीं दम तोड़ दिया. लोग प्यार में जान देते हैं मैने सुना था पर उस दिन देखा पहली बार था" भूषण ने कहा
रूपाली को अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था. उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे और क्या सोचे. उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली. दोपहर होने को थी. उसने फ़ैसला किया के तस्वीर के बारे में बाद में सोचेगी और वहाँ से निकालकर जय के घर की तरफ बढ़ी.
12 बजने में थोड़ी ही देर थी जब रूपाली ने जय के घर के बाहर कार रोकी. देवधर और इनस्पेक्टर ख़ान बाहर ही खड़े उसका इंतेज़ार कर रहे थे.
"यहाँ क्यूँ बुलाया?" ख़ान ने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"सोचा के जो मेरा है वो वापिस ले लिया जाए" रूपाली ने कहा तो देवधर और ख़ान दोनो उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे
"आप ही ने कहा था ना के मेरे पति की मौत होते ही सब मेरे नाम हो गया था.पवर ऑफ अटर्नी बेकार थी तो मतलब के जय ने जिस हक से ये घर खरीदा वो भी ख़तम था. तो मतलब के ये घर मेरा हुआ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान और देवधर दोनो मुस्कुरा दिए और उसके साथ जय के घर के गेट की तरफ बढ़े.
वॉचमन ने बताया के जय घर पर ही था और अंदर जाकर जय को उनके आने की खबर करके आया. कुच्छ देर बाद वो तीनो जय के सामने बैठे थे.
जाई तकरीबन पुरुषोत्तम की ही उमर का था. शकल पर वही ठाकुरों वाली अकड़. बैठा भी ऐसे जैसे कोई राजा अपने महेल में बैठा हो.
रूपाली को हैरत थी के वो कभी जाई से मिली नही थी. वो उसकी शादी से पहले ही अलग घर बनाकर रहने लगा था पर कभी किसी ने उसका ज़िक्र रूपाली के सामने नही किया था और ना ही रूपाली ने उसको अपनी शादी में देखा था जबकि वो उसके पति का सबसे करीबी था. पर इसका दोष उसने खुद को ही दिया. उन दीनो तो उसे अपनी पति तक की खबर नई होती थी, जाई की क्या होती.
"कहिए" उसने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"गेट आउट" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा
"क्या?" जाई ने ऐसे पुचछा जैसे अँग्रेज़ी समझ ही ना आती हो
"मेरे घर से अभी इसी वक़्त बाहर निकल जाओ" रूपाली ने कहा
"आपके घर से?" जाई ने हस्ते हुए पुचछा
रूपाली ने देवधर की तरफ देखा. देवधर आगे बढ़ा और वो सारी बातें जाई को बताने लगा जो उसने पहले रूपाली को बताया था. धीरे धीरे जाई की समझ आया के रूपाली किस हक से उसके घर को अपना कह रही थी और वो परेशान अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगा.
"और अगर मैं जाने से इनकार कर दूँ तो?" जाई ने पेपर्स एक तरफ करते हुए पुचछा
रूपाली ने खामोशी से इनस्पेक्टर ख़ान की तरफ देखा. वो जानती थी के जाई ऐसा बोल सकता है इसलिए ख़ान को साथ लाई थी
"मैं ये मामला अदालत में ले जाऊँगा. ऐसे कैसे घर आपका हो गया? मैं अपने वकील को बुलाता हूँ" जाई ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया
"बाहर एक एसटीडी बूथ है. वहाँ से करना. फिलहाल घर से बाहर निकल" ख़ान बीचे में बोल पड़ा
"तमीज़ से बात करो" जाई ख़ान पर चिल्लाते हुए बोला
"ये देखा है?" ख़ान ने अपना हाथ आगे किए "एक कान के नीचे पड़ा ना तो तमीज़ और कमीज़ में फरक समझ नही आएगा तुझे. चल निकल"
जाई चुप हो गया. वो उठकर घर के अंदर की तरफ जाने लगा.
"वहाँ कहाँ जा रहा है?" ख़ान फिर बोला "दरवाज़ा उस तरफ है"
"अपना कुच्छ समान लेने जा रहा हूँ" जाई रुकते हुए बोला
"वो समान भी मेरे पैसो से आया था तो वो भी मेरा हुआ. अब इससे पहले के मैं ये कपड़े जो तुमने पहेन रखे हैं ये भी उतरवा लूँ, निकल जाओ" रूपाली खड़ी होते हुए बोली
"फिलहाल तो जा रहा हूँ पर इतना आसान नही होगा आपके लिए मुझे हराना" जाई ने कहा तो रूपाली मुस्कुराने लगी
"आपको क्या लगता है के ये सब उस नीच ठाकुर का है जो अपने ही भाई को दौलत के लिए मार डाले? जो साले अपने घर की नौकरानी को भी नही छ्चोड़ते?" जाई ने रूपाली के करीब आते हुए कहा.
उसकी इस हरकत पर ख़ान उसकी तरफ बढ़ा पर रूपाली ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया
"क्या मतलब?" उसने जाई से पुचछा "क्या बकवास कर रहे हो?"
"सच कह रहा हूँ" जाई ने कहा "आपको शायद नही पता पर मैने देखा है. वो भूषण की बीवी, उसे ठाकुर के खानदान ने अपनी रखैल बना रखा था. ज़बरदस्ती सुबह शाम रगड़ते थे उसे. ठाकुर, तेज, कुलदीप और खुद आपके पति पुरुषोत्तम सिंग जी"
"भूषण की बीवी?" रूपाली हैरान हुई
"जी हां" तेज बोला "जब उस बेचारी ने जाकर सब कुच्छ भूषण या आपकी सास को बता देने की धमकी दी तो गायब हो गयी और बात ये फेला दी गयी के अपने किसी आशिक़ के साथ भाग गयी"
रूपाली के दिमाग़ की बत्तियाँ जैसे एक एक करके जलने लगी. हवेली में मिली लाश जो कामिनी की नही थी, कुलदीप के कमरे में मिला वो ब्रा. खुद ख़ान भी चुप खड़ा सुन रहा था.
"तुम्हें ये कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा
"हवेली में बचपन गुज़ारा है मैने. देखा है सब अपनी आँखो से. जैसे ही वो हवेली में काम करने आई तो सबसे पहले ठाकुर की नज़र उस पर पड़ी तो पहले उन्होने काम किया. फिर उनकी देखा देखी उनके सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम सिंग जिन्हें दुनिया भगवान राम का अवतार समझती थी उन्होने अपना सिक्का चला दिया बेचारी पर. जब बड़े भाई ने मुँह मार लिया तो बाकी के दोनो कहाँ पिछे रहने वाले थे. मौका मिलते ही तेज और कुलदीप ने फ़ायदा उठा लिया"
रूपाली की आँखों के आगे अंधेरा सा च्चाने लगा.
"बकवास कर रहे हो तुम" उसने जाई से कहा
"सच बोल रहा हूँ मैं. अपनी हवस संभाली नही जाती इन लोगों से, फिर चाहे वो औरत की हो या दौलत की और इसी के चलते पुरुषोत्तम भी मरा. आपसी लड़ाई थी वो इन लोगों की दौलत के पिछे. एक भाई ने दूसरे को मारा है" जाई ने कहा
पर रूपाली का दिमाग़ उस वक़्त दूसरी ही तरफ चल रहा था. उसे इंदर की कही बातें याद आ रही थी जो कामिनी ने उसको कही थी.
"बस जिस्म की आग बुझनी चाहिए. फिर नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........."
उसे अपने पति का वो रूप याद आया जो वो रोज़ रात को बिस्तर पर देखा करती थी. किस तरह से वो उसको नंगी करते ही इंसान से कुच्छ और ही बन जाता था. उसे याद आया के किस आसानी से बिंदिया तेज के बिस्तर पर पहुँच गयी थी और तेज ने मौका मिलते ही उसको चोद लिया था. उसको याद आया के किस आसानी से उस रात ठाकुर ने उसके सामने ही पायल को चोद लिया था. ज़रा भी नही सोचा था दोनो ने के वो एक मामूली नौकरानी है और वो वहाँ के ठाकुर. पर क्या कोई इतना गिर सकता था के अपनी ही बहेन के साथ? सोचकर रूपाली का दिमाग़ फटने लगा. तो ये वजह थी पायल के गायब होने की. अपने भाई को गोली मारकर छुपति फिर रही थी.
दोस्तो कैसा लगा ये पार्ट अपनी राय देना मत भूलना वैसे भी ये कहानी अब अपने अंत के पास आ चुकी है
दोस्तो दिमाग़ पर ज़ोर दीजिए ओर बताइए पुरूसोत्तम का कातिल कौन है
सेक्सी हवेली का सच compleet
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच --२४ लास्ट
हेलो दोस्तो ये कहानी का लास्ट पार्ट है मुझे खुशी इस बात की है आप लोगों ने इस कहानी को बहुत पसंद किया .
थोड़ी देर बाद ख़ान और रूपाली वापिस हवेली में दाखिल हुए. तेज के जाने के बाद रूपाली ने घर पर ताला लगा दिया था. देवधर वापिस शहेर चला गया था और ख़ान उसके साथ वापिस हवेली तक आया था.
रूपाली के दिमाग़ में लाखों बातें एक साथ चल रही थी. वो समझ नही पाई के कैसे उसको ये सब बातें पहले समझ नही आई. कामिनी का यूँ अपने ही घर में चुप चुप रहना. अगर उसके अपने भाई ही उसका फ़ायदा उठाएँ बेचारी अपने ही घर में भीगी बिल्ली की तरह तो रहेगी ही. वो हवेली में मिली लाश. रूपाली को उसी वक़्त समझ जाना चाहिए था के ये लाश किसकी है जब बिंदिया ने उसको भूषण की बीवी के बारे में बताया था. कुलदीप के कमरे में मिली ब्रा, बेसमेंट में रखे बॉक्स में वो कपड़े, सब उस बेचारी के ही थी जिसको मारकर यहाँ दफ़ना गया था. उसको हैरानी थी के उसको तभी शक क्यूँ नही हुआ जब ठाकुर ने ये कहा के उन्हें नही पता के वो लाश किसकी थी. ऐसा कैसे हो सकता है के घर के मलिक को ही ना पता हो के लाश कहाँ से आई. उस वक़्त हवेली के बाहर गार्ड्स होते थे, हवेली के कॉंपाउंड में रात को कुत्ते छ्चोड़ दिए जाते थे तो ये ना मुमकिन था के कोई बाहर का आकर ये काम कर जाता. वो खुद अपनी वासना में इतनी खोई हुई थी के उसको एहसास ही नही हुआ के कितनी आसानी से उसने पायल और बिंदिया को ठाकुर और तेज के बिस्तर पर पहुँचा दिया था.
हवेली के अंदर पहुँच कर उसने बिंदिया और पायल को आवाज़ लगाई पर दोनो कहीं दिखाई नही दे रही थी.
"ये दोनो कहाँ गयी" बैठते हुए रूपाली ने कहा. ख़ान उसके सामने रखी एक कुर्सी पर बैठ गया
"क्या लगता है कौन है आपके पति के खून के पिछे ? तेज?" ख़ान ने कहा तो रूपाली ने इनकार में सर हिलाया
"कामिनी." रूपाली ने कहा तो ख़ान ने हैरानी से उसको तरफ देखा
"कल आपके जाने के बाद इंदर से बात हुई थी मेरी. काफ़ी परेशन थी वो मेरे पति के मरने से पहले और गन उसने इंदर से ली थी" रूपाली ने कहा
"पर मुझे तो कहा गया था के ....." ख़ान ने कल की इंदर की बताई बात को याद करते हुए कहा
"झूठ बोल रहा था. गन उसने कामिनी को दी थी. बाद में बताया मुझे" रूपाली ने आँखें बंद करते हुए कहा
"सोचा नही था के ये सब ऐसे ख़तम होगा. मैं तो तेज पर शक कर रहा था और एक वक़्त पर तो मुझे आप पर भी शक हुआ था. पर कामिनी पर कभी नही" ख़ान ने कहा
"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने आँखें खोलते हुए कहा "आपका मेरे पति से क्या रिश्ता था? किस एहसान की बात कर रहे थे?"
"बचपन में इसी गाओं में रहा करता था मैं. मेरे अब्बू यहीं के थे" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला "ठाकुर साहब के खेतों में काम करते थे. एक बार ठाकुर साहब खेतों में शिकार कर रहे थे. वो जिस परिंदे पर निशाना लगा रहे थे मुझे उसपर तरस आ गया और मैने शोर मचाकर उसको उड़ा दिया. बस फिर क्या था. ठाकुर को गुस्सा आया और उन्होने बंदूक मेरी तरफ घुमा दी. उस वक़्त आपके पति वहाँ थे. उन्होने बचा लिया वरना उस दिन हो गया था मेरा काम"
रूपाली भी जवाब में मुस्कुराइ
"उसके बाद हम लोगों ने गाओं छ्चोड़ दिया. मैं शहेर में पाला बढ़ा, पोलीस जोइन की और उस बात को भूल गया. जब मेरा यहाँ ट्रान्स्फर हुआ तो मैने सोचा के आपके पति से मिलुगा पर यहाँ आके पता चला के उन्हें मरे तो 10 साल हो चुके हैं" ख़ान ने कहा
"नही शायद उन्हें मरे एक अरसा हो गया था. आज एक नया ही रूप देखा मैने ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग का जो मेरे पति का तो बिल्कुल नही था. जो आदमी इस हद तक गिर जाए उसको अपना पति तो नही कह सकती मैं" रूपाली ने कहा "सच कहूँ तो आज इस हवेली के हर आदमी का एक नया चेहरा देखा. मेरी सास का भी"
"आपकी सास का? वो तो मर चुकी हैं ना?" ख़ान ने पुचछा
रूपाली ने अपने पर्स से वो तस्वीर निकली और ख़ान को थमा दी
"सुना है उनका भी कोई चाहने वाला था. यही जो इस तस्वीर में है. ये भी ठाकुर साहब के गुस्से की बलि चढ़ गया था." रूपाली ने फिर आँखें बंद कर ली
"पर चलिए आपको आपके सवालों के जवाब तो मिले" ख़ान अब भी तस्वीर को देख रहा था
"जवाब तो मिल गये पर अब समझ ये नही आ रहा के इन जवाबों के साथ आगे की ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी" रूपाली ने फिर आँखें खोलकर ख़ान की तरफ देखा. वो अब भी तस्वीर को घूर रहा था.
"ऐसे क्या देख रहे हैं?" रूपाली ने पुचछा
"ये कामिनी नही है?" ख़ान ने कहा तो रूपाली हस्ने लगी
"मैने भी यही सोचा था पर ये मेरी सास की जवानी की तस्वीर है. कामिनी बिल्कुल उन्ही पर गयी थी" रूपाली बोली
"पता नही क्यूँ ऐसा लग रहा है के मैने इस आदमी कोई भी कहीं देखा है" ख़ान तस्वीर में खड़े आदमी की तरफ इशारा करता हुआ बोला
"इसको मरे तो एक अरसा हो चुका है" रूपाली बोली " और सच कहूँ तो कुच्छ सवाल अब भी ऐसे हैं जिनका जवाब मुझे समझ नही आ रहा"
"जैसे के?" ख़ान ने पुचछा
"जैसे के रात को हवेली में आने वाला आदमी कौन था, जैसे की कामिनी के साथ ट्यूबिवेल पर उस दिन दूसरा आदमी कौन था, जैसे की जो चाबियाँ मुझे हवेली में मिली उनकी असली किसके पास है और एक चाभी सरिता देवी के पास क्यूँ थी जबकि वो कभी खेतों की तरफ जाती ही नही थी" रूपाली ने कहा
ख़ान ने हैरत से उसकी तरफ देखा तो रूपाली को याद आया के वो इस बारे में कुच्छ नही जानता था.
"बताती हूँ" उसने कहना शुरू किया ही था के ख़ान ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया. उसने तस्वीर सामने टेबल पर रखी, जेब से पेन निकाला, तस्वीर में खड़े आदमी के चेहरे पर थोड़ी सी दाढ़ी बनाई, हल्के से नाक ने नीचे बॉल बनाए, सर के बॉल थोड़े लंबे किए और चेहरे पर झुर्रियाँ डाली और तस्वीर रूपाली की तरफ घुमाई.
"पहचानती हैं इसे?" ख़ान ने पुचछा
रूपाली ने तस्वीर की तरफ देखा तो उसके पैरों तले ज़मीन जैसे हिलने लगी. तस्वीर में सरिता देवी के साथ भूषण खड़ा था.
"अब जहाँ तक मेरा ख्याल है सिर्फ़ एक सवाल बाकी रह गया है. कामिनी कहाँ है?" ख़ान ने कहा
"मर चुकी है. हवेली के पिछे जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी वहीं पास ही उसकी भी लाश दफ़न है" पीछे से आवाज़ आई तो ख़ान और रूपाली दोनो पलते. सामने भूषण खड़ा था.
पर ये भूषण वो नही था जिसे रूपाली ने हमेशा देखा था. सामने एक बुद्धा आदमी तो खड़ा था पर अब उसकी कमर झुकी हुई नही थी, अब वो शकल से बीमार नही लग रहा था और ना ही कमज़ोर. सामने जो भूषण खड़ा था वो सीधा खड़ा था और उसके हाथ में एक गन थी.
"आप यहाँ? ठाकुर साहब के साथ कौन है?" रूपाली ने पुचछा
"कोई नही क्यूंकी अब उसकी ज़रूरत नही. ठाकुर साहब नही रहे. गुज़र गये" भूषण ने कहा
उसके ये कहते ही ख़ान फ़ौरन हरकत में आया. उसका हाथ उसकी गन की तरफ गया ही था के भूषण के हाथ में थमी गन के मुँह ख़ान की तरफ मुड़ा, एक गोली चली और अगले पल रूपाली के कदमों के पास ख़ान की लाश पड़ी थी.
रूपाली चीखने लगी और भूषण खड़ा हुआ उसको देखने लगा. रूपाली को उस वक़्त जो भी नाम याद आया उसने चिल्ला दिया. बिंदिया, पायल, चंदर, तेज, इंदर पर कोई नही आया.
उसने घबराकर चारों तरफ देखा और जब कोई नही दिखा तो उसने फिर भूषण पर नज़र डाली.
"बिंदिया और पायल" भूषण ने बोला "वहाँ किचन में पड़ी हैं. तेज की लाश बाहर कॉंपाउंड में पड़ी है, मेरे कमरे के पास. इंदर खून से सने अपने बिस्तर पर पड़ा है. वो तो बेचारा सोता ही रह गया. सोते सोते दिमाग़ में एक गोली घुसी और नींद हमेशा की नींद में बदल गयी"
Re: सेक्सी हवेली का सच
भूषण रूपाली की तरफ बढ़ा तो रूपाली पिछे होकर फिर चिल्ल्लाने लगी.
"चिल्लओ" भूषण ने आराम से कहा "ये हवेली इतनी मनहूस है के किसी ने सुन भी लिया तो इस तरफ आएगा नही"
थोड़ी देर चिल्लाने के बाद रूपाली चुप हो गयी
"क्यूँ?" उसने भूषण से पुचछा
"क्यूँ?" भूषण बोला "क्यूंकी तुम अपने आपको झाँसी की रानी समझने लग गयी थी अचानक. मैं ये सब ऐसे नही चाहता था. मैं तो ठाकुर के खानदान को एक एक करके, सड़ सड़के, रिस रिसके मरते हुए देखना चाहता था. बची हुई इज़्ज़त को ख़तम होने के बाद मारना चाहता था. पर तुमने सारा खेल बिगाड़ दिया. क्या ज़रूरत थी वो तस्वीर दुनिया को दिखाते हुए फिरने की?"
"पर क्यूँ?" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया
"क्यूंकी बर्बाद किया था मुझे ठाकुर ने. सारी ज़िंदगी मैने एक नौकर बनके गुज़ार दी. प्यार करता था मैं सरिता से और वो मुझसे पर क्यूंकी मैं ग़रीब उनके घर के नौकर का बेटा था इसलिए उसकी शादी मुझसे हो नही सकती थी. हम दोनो भाग जाने के चक्कर में थे के जाने कहाँ से ये शौर्या सिंग बीच में आ गया. ना सरिता कुच्छ कर सकी और ना मैं" भूषण गुस्से से चिल्लाते हुए बोला
"तो वो कहानी जो हॉस्पिटल में सुनाई थी?" रूपाली ने कहा
"झूठ थी. शादी के बाद मैने हार नही मानी. मैं सरिता के बिना ज़िंदा नही रह सकता था इसलिए यहाँ चला आया. पड़ा रहा एक नौकर बनके क्यूंकी यहाँ मुझे वो रोज़ नज़र आ जाती थी" भूषण ने कहा
"तो फिर ये सब क्यूँ?" रूपाली बोली
"2 वजह थी. पहली तो ये के इन्होने मेरी बीवी को मार दिया. सरिता के कहने पर मैने उस बेचारी से शादी की थी ताकि किसी को शक ना हो पर यहाँ लाकर तो मैने जैसे उसे मौत के मुँह में धकेल दिया. इन सबने उसे अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर मारके पिछे ही दफ़ना दिया. जानती हो उसकी गर्दन पर तलवार से वार किसने किया था? तुम्हारे सबसे छ्होटे देवर कुलदीप ने जो उस वक़्त मुश्किल से 18-19 साल का था. और दूसरी वजह थी कामिनी. उसे पता चल गया था के वो मेरी बेटी है और सबको बता देना चाहती थी"
"आपकी बेटी?" रूपाली ने कहा
"हां मेरी बेटी थी वो. पर एक दिन उसने मुझे और सरिता को खेतों में नंगी हालत में देख लिया था और सरिता को उसको मजबूर होते हुए सब बताना पड़ा." भूषण की ये बात सुनते ही रूपाली को जैसे अपने बाकी सवालों के जवाब भी मिल गये.
टुबेवेल्ल पर बिंदिया के पति ने कामिनी और किसी आदमी को नही बल्कि सरिता देवी और भूषण को देखा था. क्यूंकी कामिनी की शकल सरिता देवी से मिलती थी इसलिए दूर से उसको लगा के कामिनी है क्यूंकी इस हालत में होने की उम्मीद एक जवान औरत से ही की जा सकती है, ना के एक जवान बेटी की माँ से. और इसलिए ट्यूबिवेल के कमरे की चाभी उसको सरिता देवी के पास से मिली थी. और यही वजह थी के कामिनी की शकल उसके भाइयों से नही मिलती थी. क्यूंकी वो ठाकुर की औलाद थी ही नही. जहाँ उसके चारों भाई बेहद खूबसूरत थे वहीं वो एक मामूली सी सूरत वाली थी क्यूंकी वो ठाकुर पर नही बल्कि अपनी माँ और घर के नौकर पर गयी थी.
"वो जो आदमी हवेली में रात को आता था" रूपाली ने पुचछा
"झूठ था. मैने तो तुम्हें पहले दिन ही कहा था के तुम्हारे पति की मौत का राज़ इसी हवेली में है. मैं था इस हवेली में पर तुम देख नही सकी. शुरू से मैं तुम्हें वो दिखाता रहा जो तुम देखना चाहती थी."
भूषण बोला
"और कुलदीप?" रूपाली बोली
"उस साले को तो मैने कामिनी से पहले ही मार दिया था. उसकी लाश भी वहीं आस पास है जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी." भूषण बोला
"कामिनी को आपने मारा था?" रूपाली को यकीन नही हुआ "अपनी बेटी को"
"तो क्या करता. वो खुद अपनी माँ को मारना चाहती थी जिसके लिए वो गन तुम्हारे भाई से लाई थी. ये गन" भूषण गन रूपाली को दिखता हुआ बोला
रूपाली को धीरे धीरे बाकी बात भी समझ आने लगी. रूपाली अपनी माँ के बारे में बात कर रही थी ना की अपने बारे में जब उसने इंदर को ये कहा था के सबको बस जिस्म की भूख मिटानी है क्यूंकी उसने अपनी माँ को घर के नौकर के साथ नंगी हालत में देखा था. तब उसकी माँ ये भूल गयी थी के कौन अपने घर का उसका अपना पति है और कौन एक मामूली नौकर. इसलिए उसने इंदर को कहा था के वो उसके काबिल नही क्यूंकी इंदर एक ठाकुर था और वो एक नौकर की बेटी.
"ठाकुर साहब?" रूपाली ने पुचछा
"अभी अपने हाथों से गला दबाके मारकर आया हूँ. यहाँ इरादा तो तेज को ख़तम करने का था पर पहले कमरे में इंदर मिल गया. तो उसी को निपटा दिया. गोली की आवाज़ से बिंदिया और पायल आई तो उन दोनो को भी मारना पड़ा. अभी मैं तेज को ढूँढ ही रहा था के बाहर से उसकी कार आती हुई दिखाई दी. साले की मौत सही वक़्त पर ले आई थी उसको यहाँ. मैं वही घर का बुद्धा नौकर बनके उसके पास गया, कमर झुकाए हुए और जैसे ही वो करीब आया, एक गोली उसके जिस्म में. खेल ख़तम"
"कुलदीप और कामिनी के बारे में किसी को पता कैसे नही था?" रूपाली जैसे आखरी कुच्छ सवाल पुच्छ रही थी
"क्यूंकी उनको मैने रास्ते में मारा. क्या है के उन दोनो के साथ मैं उन्हें एरपोर्ट तक छ्चोड़ने गया था. गाड़ी का ड्राइवर बनके. मेरा काम था उनको छ्चोड़ना और गाड़ी वापिस लाना. दोनो को रास्ते में ख़तम किया और डिकी में लाश डालकर वापिस हवेली ले आया. रात को दफ़ना दिया" भूषण ने जवाब दिया. वो भी जैसे चाहता था के मारने से पहले रूपाली को सब बता दे.
"पर एक सवाल रहता है जिसने ये सारा बखेड़ा शुरू किया. मेरे पति को क्यूँ मारा?" रूपाली ने कहा
"उस दिन कामिनी सरिता को मारने के इरादे से निकली थी. वो सोच रही थी के जाकर सरिता को मंदिर में ही मारकर आ जाएगी तब जबकि पुरुषोत्तम उसको छ्चोड़के चला जाएगा. मुझे उसके इरादे नेक नही लग रहे थे इसलिए उसपर नज़र रखा हुआ था. वो हवेली से कुच्छ दूर ही गयी थी के मैने उसका पिच्छा करके उसको रास्ते में रोक लिया. उससे बात करते हुए मैने ये गन उसके हाथ से छीन ली और अभी हम बात कर ही रहे थे के पुरुषोत्तम जाने क्यूँ हवेली वापिस आ गया. कामिनी मुझपर चिल्ला रही थी और मेरे हाथ में रेवोल्वेर थी. जाने उसने क्या सोचा पर वो चिल्लाता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. मैने गोली मार दी. ये मेरी किस्मत ही थी के उस वक़्त कोई भी नौकर वहाँ से नही गुज़रा वरना घर के सारे नौकर उसी रास्ते से उसी वक़्त घर वापिस जाते थे. पुरुषोत्तम को मारने के बाद मैने कामिनी को डराकर चुप तो कर दिया पर मुझे पता था के वो मुँह खोल देगी इसलिए उसको भी मारना पड़ा."
"अपनी ही बेटी को?" रूपाली ने कहा "प्यार नही था उससे?"
"मुझे सिर्फ़ सरिता से प्यार था" भूषण बोला
"क्या हो रहा है यहाँ?" दरवाज़े की तरफ से आवाज़ आई तो भूषण और रूपाली दोनो पलटे. दरवाज़े पर जय खड़ा था. इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाता भूषण का हाथ फिर सीधा हुआ और ऱेवोल्वेर से गोली चली और जय के सीने पर लगी.
जय लड़खदाया और अगले ही पल भूषण की तरफ बढ़ा. भूषण ने फिर फाइयर करने की कोशिश की पर वो पूरी 6 गोलियाँ चला चुका था. गन से फाइयर नही हुआ और जय उस तक पहुँच गया. उसने भूषण को गले से पकड़ा और पिछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया. पीछे रखे सोफे पर भूषण का पेर फँसा और दोनो नीचे टेबल पर गिरे और फिर ज़मीन पर.
रूपाली खड़ी दोनो की तरफ देख रही थी. भूषण नीचे गिरा हुआ था और जय उसके उपेर पड़ा था. भूषण के सर से खून नदी की तरह बह रहा था जो टेबल पर गिरने की वजह से लगी चोट से था. इसके बाद ना भूषण हिला और ना जय. रूपाली ने झुक कर जय को हिलाने की कोशिश की पर भूषण की चलाई गोली ने देर से सही मगर अपना असर ज़रूर दिखाया था. वो मर चुका था.
रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. उसे आस पास 7 लाशें पड़ी थी और इनमें से एक लाश उस आदमी की भी थी जिसने उसके पति को मारा था. वो वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ गयी. समझ नही आ रहा था के क्या करे. रात का अंधेरा धीरे धीरे फेलने लगा था.
वोसेक्सी हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिच्छले 10 साल से थी दोस्तो ये सस्पेंस भरी कहानी आपको कैसी लगी
बताना मत भूलना मुझे आपके जबाब का इंतजार रहेगा दोस्तो फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ