सेक्सी हवेली का सच compleet

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raj..
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Re: सेक्सी हवेली का सच

Unread post by raj.. » 17 Dec 2014 17:40

सेक्सी हवेली का सच--2



“क्या हुआ?” रूपाली ने बिस्तर से उठते हुए पुचछा

“बड़े मलिक आपको याद कर रहे हैं” भूषण की आवाज़ आई

“अभी आती हूँ” कहते हुए रूपाली अपने बिस्तर से उठी

उसका ध्यान अपने सपने की और चला गया. पुरुषोत्तम से ये उसकी आखरी मुलाकात थी. इसके बाद पुरुषोत्तम जो गया तो फिर ज़िंदा लौटके नही आया. रूपाली की मोटी मोटी आँखों से आँसू बह निकले.जीतने समय वो पुरुषोत्तम की बीवी रही हमेशा यही होता था जो उसने सपने में देखा था.वो हमेशा उसके करीब आने की कोशिश करता और वो यूँ ही टाल मटोल करती. कभी बिस्तर पे उसका साथ ना देती. उसके लिए चुदाई का मतलब सिर्फ़ टांगे खोलके लेट जाना था. बस इससे ज़्यादा कुच्छ नही पर पुरुषोत्तम ने उसके साथ कभी बदसुलूकी नही की. वो हमेशा की तरह उससे आखरी वक़्त तक वैसे ही प्यार करता रहा और ना ही उसने बिस्तर पर कभी ज़्यादा की ज़िद की. पूछ ता ज़रूर था पर रूपाली के मना कर देने पे हमेशा रुक जाता था. कभी ज़बरदस्ती नही करता था. वो भारी कदमों से अपनी पति की तस्वीर की तरफ गयी और उसपे हाथ फिराती तस्वीर से बातें करने लगी.

“आप फिकर ना करें. जो भी आपकी मौत का ज़िम्मेदार है वो अब ज़्यादा दिन साँसें नही लेगा” उसने भारी आवाज़ में अपने पति की तस्वीर से कहा.

“अपने पति को हमेशा प्यासा रखा और अपने ससुर पे डोरे डाल रही हूँ. वाह रे भगवान” सोचते हुए रूपाली नीचे आई.

भूषण काम ख़तम करके जा चुक्का था. अब हवेली में सिर्फ़ रूपाली और शौर्या सिंग रह गये थे. रूपाली नीचे आई तो शौर्या सिंग बड़े कमरे में बैठे उसका इंतेज़ार कर रहे थे.

“आओ बहू. बैठो” शौर्या सिंग ने पास पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा. ”एक बात बताओ. तुमने आखरी बार नये कपड़े कब लिए थे.

ससुर ने पुचछा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने पिच्छले 10 साल में एक नया कपड़ा नही खरीदा. आखरी बार नये कपड़े उसे पुरुषोत्तम ने ही लाके दिए थे.

“जी याद नही. कभी ज़रूरत ही नही पड़ी. हमारे पास पहले से ही इतने कपड़े हैं के हमने सारे पहने ही नही. और वैसे भी जिसे सफेद सारी पहन नी हो उसे नये कपड़े लाके क्या करना” रूपाली ने कहा.

“अब ऐसा नही होगा. आपको सफेद सारी पहेन्ने की कोई ज़रूरत नही.पुरुषोत्तम के चले जाने से आपकी ज़िंदगी ख़तम हो जाए ऐसा हम नही चाहते. हम आपके लिए कुच्छ कपड़े लाए हैं. ये ले जाइए और कल से ये पहना कीजिए.” शौर्या ने पास रखे कपड़ो की तरफ इशारा करते हुए कहा.

“पर लोग क्या कहेंगे?” रूपाली थोड़ा झिझक रही थी.

“उसकी आप चिंता ना करें. वैसे भी अब यहाँ आता कौन है. यहाँ सिर्फ़ आप और हम हैं. आप ये कपड़े ले जाएँ” ठाकुर ने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे कोई फ़ैसला सुनाया हो. मतलब सॉफ था. रूपाली आगे कुच्छ नही कह सकती थी. उसे अपने ससुर की बात मान लेनी थी.

रूपाली ने आगे बढ़के कपड़े उठाए.

“और एक बात और” शौर्या सिंग ने कहा”घर में आपको घूँघट करने की ज़रूरत नही. आपका चेहरा हमसे छुपा नही है.”

“जी जैसा आप कहें” रूपाली कपड़े उठाके कमरे से बाहर जाने लगी “आप कपड़े बदलके बाहर आ जाएँ. हम खाना लगा देते हैं”

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रूपाली कपड़े लेके उपेर अपने कमरे में पहुँची और कपड़े एक एक करके देखने लगी. सब कपड़े रंगीन थे. ब्लाउस सारे लो नेक थे और ज़्यादातर ट्रॅन्स्परेंट थे. केयी ब्लाउस तो बॅकलेस थे. उसने कपड़ो की तरफ देखा और मुस्कुरा उठीं. शौर्या सिंग को फसाना इतना आसान होगा ये उसने सोचा नही था पर अगले ही पल उसने अपने सवाल का जवाब खुद ही मिल गया. 10 साल से वो इंसान सिर्फ़ शराब के नशे में डूबा रहा. किसी औरत के पास नही गया और आज जब एक जवान औरत खुद इतना नज़दीक आ गयी तो बहू बेटी का लिहाज़ कहाँ रह जाता है. फिर तो सामने सिर्फ़ एक जवान जिस्म नज़र आता है. और वो खुद कहाँ उससे अलग थी. क्या वो खुद गरम नही हो गयी थी अपने ससुर को नहलाते हुए. उसे भी तो 10 साल से मर्द की जिस्म की ज़रूरत थी.

रूपाली ने कपड़े समेटकर अलमारी में रखे और फिर नीचे आई. शौर्या सिंग खाने की टेबल पे उसका इंतेज़ार कर रहा था.

वो किचन में गयी और खाना लाके टेबल पे लगाने लगी. ऐसा करते हुए उसे कई बार शौर्या सिंग के नज़दीक आने पड़ा. उसने सॉफ महसूस किया के उसके ससुर की नज़र कभी सारी से नज़र आ रहा उसके नंगे पेट पे थी तो कभी ब्लाउस में बंद उसकी बड़ी बढ़ी छातियों की निहार रही थी. उसने खामोशी से खाना लगाया और खुद भी सामने बैठ कर खाने लगी.

“खाना अच्छा बना लेती हैं आप” शौर्या सिंग ने कहा

“जी शुक्रिया” रूपाली ने अपने ससुर के कहे अनुसार घूँघट हटा दिया. उसकी नज़र शौर्या सिंग की नज़र से टकराई तो उसमें वासना की ल़हेर सॉफ नज़र आई.

“हम जो कपड़े लाए थे वो नही पहने आपने?”

“जी सुबह पहेन लूँगी. फिलहाल खाना लगाना था तो ऐसे ही आ गयी”

रूपाली दोबारा उठकर शौर्या सिंग को खाना परोसने लगी. वो ठाकुर के दाई तरफ खड़ी प्लेट में खाना डालने के लिए झुकी तो सारी का पल्लू सरक कर सामने रखी दाल में जा गिरा.

“ओह….माफ़ कीजिएगा” रूपाली फ़ौरन सीधी खड़ी होकर सारी झटकने लगी.

शौर्या सिंग की नज़र मानो उसकी छाती से चिपक कर रह गयी. वो सारी का पल्लू हटाकर उसे सॉफ कर रही थी. ब्लाउस में बंद उसकी छातियों को देख कर शौर्या सिंग सिर्फ़ ये सोचते रह गये के ये छातियाँ नंगी कैसी दिखती होंगी, कितनी बड़ी होंगी, कितनी गोरी होंगी अंदर से.

“मैं कुच्छ और ला देती हूँ” रूपाली ने सारी का पल्लू ठीक किया. उसे पता था के शौर्या सिंग इतनी देर से क्या घूर रहा था.

“नही ठीक है. हम खा चुके” कहते हुए शौर्या सिंग उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गये.

रूपाली बर्तन उठा कर किचन की तरफ बढ़ चली. एक वक़्त था जब नौकरों की लाइन होती थी घर में और आज उसे खुद बर्तन सॉफ करने पड़ रहे थे. ये सोचते हुए वो किचन की सफाई करने लगी. एक बात जो सोचकर वो खुश हो रही थी वो ये थी के हमेशा नशे में डूबा रहने वाला उसका ससुर आज शराब के करीब तक नही गया था. पूरा दिन अपने पुर होश में रहा.

आहट सुनकर वो पाली तो देखा के शौर्या सिंग किचन के दरवाज़े पे खड़ा था.

“बहू ज़रा भूषण को बाहर उसके कमरे से बुला लाओ. हमारे पैरों में दर्द हो रहा है. थोड़ा मालिश कर देगा आकर.” ठाकुर ने कहा

“पर वो तो अब तक सो चुके होंगे” रूपाली पलटकर बोली

“तो क्या हुआ. जगा दो” शौर्या सिंग ने ठाकुराना अंदाज़ में कहा.

“इस उमर में क्यूँ उनकी नींद खराब करें. हम ही कर देते हैं” रूपाली ज़रा शरमाते हुए बोली

“आप? आप कर सकेंगी?” शौर्या सिंग ज़रा चौंकते हुए बोला

“हां क्यूँ नही. आप कमरे में चलिए. हम तेल ज़रा गरम करके ले आते हैं” रूपाली ने कहा

शौर्या सिंग पलटकर अपने कमरे में चले गये. रूपाली ने एक कटोरी में थोड़ा तेल लिया और उसे हल्का सा गरम करके ससुर के पिछे पिछे कमरे में दाखिल हो गयी.

शौर्या सिंग सिर्फ़ अपनी धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो उतार चुके थे.

“हमने सोचा के जब आप कर ही रही तो ज़रा कमर पे भी तेल लगा देना” ठाकुर ने कहा

“जी ज़रूर” कहते हुए रूपाली ने अपने सारी का पल्लू अपनी कमर में घुसा लिया.

शौर्या सिंग कमरे के बीच में खड़ा हुआ था. रूपाली ने बिस्तर की तरफ देखा और जैसे इशारे में ठाकुर को लेट जाने के लिए कहा. बदले में शौर्या सिंग ने कहा के खड़े हुए ही ठीक है.

रूपाली ठाकुर के सामने जाकर अपने घुटनो पे बैठ गयी.

ठाकुर ने अपनी धोती खींचकर अपने घुटनो के उपेर कर ली.रूपाली ने अपने हाथों में थोड़ा तेल लिया और अपने ससुर की पिंदलियों पे लगाके मसल्ने लगी. उसके च्छुने भर से ही ठाकुर के मुँह से एक लंबी आह छूट गयी. जाने कितने अरसे बाद एक औरत आज दूसरी बार उनके इतना करीब आई थी. उसके हाथ जिस्म पे लगे ही थे के ठाकुर के लंड में हलचल होनी शुरू हो गयी थी. समझ नही आ रहा था के अपने आपको कोसें के अपने मरे हुए बेटे की बीवी का सोचकर लंड खड़ा हो रहा है या फिर सिर्फ़ सामने बैठे हुए एक जवान खूबसूरत जिस्म पे ध्यान दें. रूपाली अब उनके घुटनो के उपेर तक तेल लगाके हाथों से रगड़ रही थी. ठाकुर ने नीचे की तरफ देखा तो लंड ने जैसे आंदोलन कर दिया हो. रूपाली सामने बैठी हुई थी. उसने सारी का पल्लू साइड में पेटिकोट के अंदर घुसा रखा था जिससे वो एक तरफ को सरक गया था. उसका क्लीवेज पूरी तरह से नज़र आ रहा था और उपेर से देखने के कारण ठाकुर की नज़र उसकी छातियों के बीच गहराई तक उतर गयी और वो ये अंदाज़ा लगाने लगे के इन चुचियों का साइज़ क्या होगा. लंड अब पुर जोश पे था.

रूपाली सामने बैठी अपने ससुर की टाँगो की सख़्त हाथों से मालिश कर रही थी. उसे पूरी तरह खबर थी के खड़े उसे उसके ससुर की नज़र उसके ब्लाउस के अंदर तक जा रही थी और वो उसकी छातियों का नज़ारा कर रहा था. उसने जान भूझ कर अपनी सारी को इस तरह से लपेटा था के उसका क्लीवेज खुल जाए और जो वो करना चाहती थी वो हो गया. उसका ससुर खड़ा हुआ उसकी चुचियाँ निहार रहा था और गरम हो रहा था. इस बात का सबूत उसका खड़ा होता लंड था जो धोती में एक टेंट जैसा आकर बना रहा था. रूपाली की साँसें उखाड़ने लगी थी. एक तो मरद की इतना नज़दीक, उपेर से ऐसी हालत में जिसमें उसकी छातियों की नुमाइश हो रही थी, तीसरे वो एक मर्द के जिस्म को काफ़ी वक़्त बाद हाथ लगा रही थी और सबसे ज़्यादा उसके ससुर का खड़ा होता लंड जिसे रूपाली बड़ी मुश्किल से नज़र अंदाज़ कर रही थी. दिल तो कर रहा था के बस नज़र जमाएँ उसे देखती ही रहे.

बैठे बैठे उसके घुटने में दर्द हुआ तो रूपाली ने ज़रा अपनी पोज़िशन बदली और अगले पल जो हुआ उसने उसके दिल की धड़कन को दुगना कर दिया. जैसे ही वो उपेर की उठी उसके ससुर का खड़ा लंड सीधा उसके माथे पे लगा. 10 साल बाद कोई लंड उसके जिस्म से लगा था. हल्के से टच ने ही रूपाली के अंदर वासना की लहरें उठा दी और उसे अपनी टाँगों के बीच होती नमी का एहसास होने लगा. जब बात बर्दाश्त के बाहर होने लगी तो वो उठकर शौर्या सिंग के पिछे आ गयी और पिछे बैठ कर टाँगो पे तेल मलने लगी.

रूपाली का माथा उनके लंड से टकराया तो शौर्या सिंग का जिस्म काँप उठा. लगा के लंड को अभी धोती से आज़ाद करके बहू के हाथ में थमा दें पर दिल पे काबू रखा. लंड खड़ा है इस बात का अंदाज़ा तो बहू को हो गया होगा. जाने क्या सोच रही होगी ये सोचकर शौर्या सिंग थोड़ा झिझके पर अगले ही पल जब रूपाली उठकर पिछे जा बैठी तो ठाकुर का दिल डूबने लगा. बहू को लंड का अंदाज़ा हो गया था इसलिए वो पिछे की तरफ चली गयी. ज़रूर इस वक़्त मुझे दिल में गालियाँ दे रही होगी. नफ़रत कर रही होगी मुझसे. सोच रही होगी के कितना गिरा हुआ इंसान हूँ मैं जो खुद अपनी बहुर के लिए ऐसा सोच रहा हूँ.

रूपाली अब अपने ससुर की टाँगो पे तेल लगा चुकी थी. उसने फिर तेल की कटोरी उठाई खड़ी हो गयी. उसने अपनी हथेली में तेल लिया और ठाकुर की कमर पे तेल लगाने लगी.हाथ ससुर की कमर पे फिसलने लगे. पीछे से भी धोती में खड़ा हुआ ठाकुर का लंड उसे सॉफ दिख रहा था और उसके अपने घुटने जवाब दे रहे थे. टाँगो के बीच की नमी बढ़ती जा रही थी. उसने कमर पे तेल और लगाकर सख़्त हाथो से मालिश शुरू कर दी और ऐसी ही एक कोशिश में उसका हाथ कमर से फिसल गया और वो लड़खड़ा कर पिछे से शौर्या सिंग के साथ जा चिपकी. उसने दोनो हाथों से अपने ससुर के जिस्म को थाम लिया ताकि गिरे नही और शौर्या सिंग के साथ लिपट सी गयी. दोनो चूचियों ठाकुर की कमर पे जाकर दब गयी और रूपाली के मुँह से आह निकल गयी. वो एक पल के लिए वैसे ही ठाकुर को थामे खड़ी रही और फिर शर्माके अलग हो गयी.

पर इन कुच्छ पलों ने ही ठाकुर को काफ़ी कुच्छ समझा दिया. अचानक से बहू का हाथ फिसला और फिर जैसे कमाल हो गया. बहू की दोनो चुचियों उनकी कमर पे आके दब गयी और बहू उनसे लिपट गयी. वो जानते थे के ऐसा उसने गिरने से बचने के लिए किया है पर जब वो अगले कुच्छ पल अलग नही हुई तो शौर्या सिंग को अजीब लगा. कमर पे छातियाँ अभी भी दबी हुई थी और ठाकुर का खुद पे काबू करना मुश्किल हो रहा था. बहुत दिन बाद चुचियों का स्पर्श उनके जिस्म को मिला था. उनकी साँसें उखाड़ने लगी और पूरा ध्यान कमर पे दबी चुचियों पे चला गया. और फिर जो हुआ वो सुनके ठाकुर के दिमाग़ में केयी बातें सॉफ हो गयी. उन्हें थामे थामे बहू के मुँह से निकली आह की आवाज़ वो बखूबी जानते थे. ऐसी आह औरत के मुँह से तब ही निकलती है जब वो गरम होती है. तो आग दोनो तरफ बराबर थी. अगर उनका लंड खड़ा हो रहा था तो रूपाली की चूत में भी आग लग रही थी.

raj..
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Re: सेक्सी हवेली का सच

Unread post by raj.. » 17 Dec 2014 17:40

रूपाली अपने ससुर से अलग हुए और फिर कमर पे तेल लगाने लगी. फिर उसने अपने हाथों से ठाकुर को इशारा किया के वो अपनी दोनो बाँहे उपेर उठाए. ठाकुर ने आर्म्स उपेर उठाई और रूपाली जिस्म के दोनो तरफ तेल लगाने लगी. इस कोशिश में वो ठाकुर के काफ़ी करीब आ चुकी थी और उसकी चुचियाँ फिर ठाकुर की कमर पे दबने को तैय्यार थी. रूपाली से और रहा नही गया. उसकी अपनी वासना उसे पागल कर रही थी. उसने हाथ जिस्म ठाकुर के साइड से सरका कर उसकी छाती पे तेल लगाने लगी. ऐसा करने से उसे अपने ससुर के और करीब आना पड़ा और उसकी छातियाँ फिर ठाकुर की कमर से जा लगी.उसके जिस्म में जैसे गर्मी और ठंडक एक साथ उठ गयी. ठंडक मर्दाना जिस्म के इतना करीब होके और गर्मी उसकी टाँगो के बीच उसकी चूत में. वो ठाकुर के सीने पे तेल मलने लगी और पिछे हाथ हिलने से उसकी दोनो छातियाँ ठाकुर की कमर पे घिसने लगी.

शौर्या सिंग का अब खुद पे काबू रखना मुश्किल हो गया था. रूपाली अब उनकी कमर पे तेल लगा रही थी और पिछे से उसकी दोनो छातियाँ उनकी कमर पे दब रही थी. ये बात सॉफ थी के बहू अपनी चुचियों को उनकी कमर पे और ज़्यादा घिस रही थी, और उनके करीब होके चुचियाँ कमर पे दबा रही थी. उसके मुँह से निकलती आह सीधा उनके कानो में पड़ रही थी. ठाकुर ने अपना हाथ बहू के हाथ पे रखा और उसे सहलाने लगे. दूसरे हाथ से उन्होने अपनी धोती थोड़ी ढीली की और लंड को बाहर निकाला. रूपाली उनसे लगी खड़ी थी. हाथ छाती पे तेल लगा रहे थे, चुचियाँ कमर पे दब रही थी और उसका सिर उनके कंधे पे टेढ़ा रखा हुआ था. उन्हें रूपाली का हाथ धीरे से पकड़के नीचे किया और अपने लंड पे ले जाके टीका दिया.

रूपाली की वासना से हालत खराब थी. वो और ज़ोर से अपने ससुर के साथ चिपक गयी थी और छातियाँ ज़ोर ज़ोर से उनकी कमर पे रगड़ रही थी. वो जानती थी के अब तक शौर्या सिंग जान गये होंगे के वो भी गरम हो चुकी है पर इस बात की अब उसे कोई परवाह नही थी. वो उनकी छाती को अब मालिश के लिए नही सहला रही थी. अब इस सहलाने में सिर्फ़ और सिर्फ़ वासना थी. उसके मुँह से निकलती आह इस बात का सॉफ सबूत थी के वो चुदना चाहती थी. लंड लेना चाहती थी अपने अंदर. टाँगो खोल देना चाहती थी आज 10 साल बाद. उसने अपना सर ठाकुर के कंधे पे रख दिया और अपने ससुर के जिस्म से चिपक गयी. फिर धीरे से उसे एहसास हुआ के ठाकुर ने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया है. मतलब आग दोनो तरफ लग चुकी थी और दोनो को ही इस बात का अंदाज़ा था के आग पुर जोश पे है. ठाकुर के हाथ ने रूपाली के हाथ को नीचे सरकाना शुरू किया और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसके हाथ में एक लंबा सख़्त डंडा सा कुच्छ आ गया.

ठाकुर ने जैसे ही अपनी लंड पे रूपाली का हाथ खींचा तो रूपाली ने हाथ फ़ौरन वापिस खींचना चाहा. पर ठाकुर की गिरफ़्त मज़बूत थी. उसने हाथ हटने ना दिया और अपने लंड पे रूपाली के हाथ से मुट्ठी सी बना दी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर हटा नही पाई. एक औरत का हाथ अपने लंड पे ठाकुर को अलग ही मज़ा दे रहा था. इस लंड का आखरी बार इस्तेमाल कब हुआ था ये ठाकुर को याद तक नही था. उसने धीरे धीरे रूपाली के हाथ को आगे पिछे करना शुरू कर दिया और लंड को उसके हाथ से सहलाने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ हटा लिया पर रूपाली का हाथ अपने आप लंड पे आगे पिछे होता रहा. ठाकुर के मुँह से आह आह की आवाज़ ज़ोर से निकलने लगी. तेल लगा होने के कारण बड़ी आसानी से लंड रूपाली के हाथ में फिसल रहा था. गर्मी बढ़ती जा रही थी. इतने वक़्त से ठाकुर ने चुदाई नही की थी इसलिए अब खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. वो जानते थे के ज़्यादा वक़्त नही टिक पाएँगे वो इस गरम जिस्म के सामने.

रूपाली इस हमले के लिए तैय्यार नही थी. उसने लंड बहुत कम अपने हाथ में पकड़ा था वो भी अपने पति के बार बार ज़िद करने पर. उसने हाथ हटाना चाहा पर हटा नही पाई. ठाकुर ने अभी भी उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उसकी उंगलियाँ अपने लंड पे लपेटकर मुट्ठी सी बना दी थी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. अब उसके ससुर ने हाथ आगे पिछे करना शुरू कर दिया था और पूरा लंड रूपाली के तेल लगे हाथ में आगे पिछे हो रहा था. ठाकुर ने थोड़ी देर बाद हाथ हटा लिया पर रूपाली ने अपना हाथ हिलाना जारी रखा. आज पहली बार वो अपनी मर्ज़ी से एक लंड को पकड़ रही थी और उसका मज़ा ले रही थी. ठाकुर के लंड की लंबाई का अंदाज़ा उसे सॉफ तौर पे हो रहा था. लग रहा था जैसे किसी लंबे मोटे डंडे पे उसका हाथ फिसल रहा हो. ठाकुर के मुँह से जैसे जैसे आह निकलती रूपाली के हाथ की रफ़्तार और तेज़ होती जाती . वो पिछे से अपने ससुर से चिपकी खड़ी थी और उसका लंड हिला रही थी. छातियाँ उसकी कमर पर रगर रही थी और नीचे से अपनी चूत ठाकुर की गांद पे दबा रही थी. धीरे धीरे ठाकुर की आह तेज़ होती चली गयी और रूपाली पागलों की तरह लंड हिलाने लगी अचानक उसके ससुर की जिस्म थर्रा उठा, एक लंबी आह निकली और एक गरम सा लिक्विड रूपाली के हाथ पे आ गिरा. ठाकुर के लंड ने माल छ्चोड़ दिया था. रूपाली ने लंड हिलाना चालू रखा और लंड से पिचकारी पे पिचकारी निकलती रही. कुच्छ रूपाली के हाथ पे गिरी, कुच्छ सामने बिस्तर पर और और ज़मीन पर. जब माल निकलना बंद हुआ तो ठाकुर की साँस भारी होनी लगी, उसका जिस्म रूपाली की गिरफ़्त में ढीला पड़ने लगा तो वो समझ गयी के काम ख़तम हो चुका है. वो ठाकुर के जिस्म से शरमाते हुए अलग हुए, तेल की कटोरी उठाई और कमरे से बाहर आ गयी.

बाहर आकर रूपाली सीधा अपने कमरे में पहुँची. आज बहुत सी चीज़ें पहली बार हुई थी. उसने पहली बार अपनी मर्ज़ी से लंड पकड़ा था, पहले बार किसी मर्दाने जिस्म से अपनी मर्ज़ी से सटी थी, पहली बार किसी मर्द के साथ गरम हुई थी और उसके और ससुर के बीच पुराना रिश्ता टूट चुका था. अब जो नया रिश्ता बना था वो वासना का था, जिस्म की भूख का था. वो ठाकुर के लंड को को तो हिलाके ठंडा कर आई थी पर खुद उसके जिस्म में जैसी आग लग गयी थी. चूत गीली हो गयी थी और लग रहा था जैसे उसमें से लावा बहके निकल रहा हो. उसके हाथ पे अभी भी ठाकुर के लंड से निकला पानी लगा हुआ था. वो अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. टांगे खुद ही मूड गयी, सारी उपेर खींच गयी, पॅंटी सरक कर घुटनो तक आ गयी, हाथ चूत तक पहुँचा और फिर जैसे उसकी टाँगो के बीच एक जुंग का आगाज़ हो गया.

दरवाज़े खटखटाने की आवाज़ से रूपाली की आँख खुली तो देखा के सुबह का सूरज आसमान में काफ़ी उपेर जा चुका था. रात कब उसकी आँख लग गयी उसे पता तक ना चला. सुबह देर तक सोती रही. भूषण फिर जगाने आया था. उसे अपने उठ जाने का बताकर रूपाली बाथरूम में पहुँची. हालत अभी भी कल रात वाली ही थी. पॅंटी अभी तक घुटनो में ही फासी हुई थी और ठाकुर का माल अभी भी हाथ पे ही लगा हुआ सूख चुका था. उसने बाथरूम में पहुँचकर अपने कपड़े उतारे और नंगी खड़ी होकर फिर शीशे में देखने लगी. आज जो उसे नज़र आया वो उसने पहले कभी नही देखा था. अबसे पहले शीशे में उसे सिर्फ़ एक परिवारिक औरत नज़र आती थी जिसकी भगवान में बहुत श्रद्धा थी. पर आज उसे एक नयी औरत नज़र आई. वो औरत जो चीज़ों को अपने हाथ में लेना जानती थी. जो अपने जिस्म का का इस्तेमाल करना जानती थी. जो हर चीज़ पे काबू पाना चाहती थी. जो अब और प्यासी ना रहकर अपने जिस्म की आग मिटाना चाहती थी. और सबसे ज़्यादा, जो ये पता लगाना चाहती थी के उसके पति के साथ क्या हुआ था. कौन था जिसने एक सीधे सादे आदमी की हत्या की थी.

रूपाली ने पास पड़ी क्रीम उठाई और नीचे बाथ टब के किनारे पे बैठ गयी. उसकी चूत पे अभी भी घने बॉल थे. अब इस जगह के इस्तेमाल का वक़्त आ गया था तो इन बालों की ज़रूरत नही थी. उसने क्रीम अपने हाथ में ली और धीरे धीरे चूत पर और चूत के आस पास लगानी शुरू की. हाथ चूत पे धीरे धीरे उपेर नीचे होता रहा और रूपाली को एहसास हुआ के उसकी चूत में उसी के हाथ लगाने से फिर गर्मी बढ़ती जा रही है. वो हाथ को ज़ोर से हिलाने लगी और टांगे फेलते चली गयी. दूसरा हाथ अपने आप चुचियों पे पहुँचकर उन्हें हिलाने लगा. उसने एक अंगुली पे ज़रा ज़्यादा क्रीम लगाई और उसे धीरे धीरे चूत की गहराई तक पहुँचा दिया. दूसरी अंगुली भी जल्दी ही पहली के साथ अंदर तक उतरती चली गयी. अभी उसने मज़ा लेना शुरू ही किया था के नीचे से एक शोर की आवाज़ आई. लगा जैसे दो आदमियों में बहस हो रही है. एक आवाज़ तो उसके ससुर की थी पर दूसरी आवाज़ अंजानी लगी. उसने जल्दी से रेज़र उठाया और अपनी चूत से बॉल सॉफ करना शुरू किए.

नहा कर रूपाली नीचे पहुँची तो बहस अभी भी चालू थी. उसके ससुर एक अंजान आदमी से किसी बात पे लड़ रहे थे. दोनो आदमियों ने रूपाली को नीचे आते देखा तो खामोश हो गये.

"सोच लीजिए. मैं अब और इंतेज़ार नही कर सकता" वो अंजान शक्श ये कहकर वापिस दरवाज़े से निकल गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

"इसकी हिम्मत दो देखो. कल तक हमारे जूते चाटने वाला आदमी आज हमारे दरवाज़े पे खड़ा होकर हमारे सामने आवाज़ उँची कर रहा है" ठाकुर ने रूपाली को देखते हुए कहा

रूपाली ने इस वक़्त घूँघट निकल रखा था क्यूंकी घर में भूष्ण भी था. इस वजह से वो कुच्छ ना बोली और ठाकुर पेर पटक कर अपने कमरे में दाखिल हो गये.

"कौन था ये आदमी" रूपाली ने किचन में आते ही भूषण से पुचछा पर भूषण ने कोई जवाब ना दिया और एक ग्लास और कुच्छ नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ गया.

शाम ढाल चुकी थी. ठाकुर अब तक अपने कमरे से बाहर नही आए थे. रूपाली अच्छी तरह से जानती थी के कमरे में घुसे रहने की दो वजह थी. एक तो ये के कल रात जो हुआ उसके बाद ठाकुर उससे नज़रें मिलने से कतरा रहे हैं और दूसरा गुस्से में डूबे वो फिर शराब की बॉटल खोले बैठे होंगे. ये बात तभी सॉफ हो गये थी जब भूषण ग्लास और नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ गया था.

"अब वक़्त आ गया है कुच्छ बातों पे से परदा उठ जाए" सोचते हुए रूपाली ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ी. भूषण अपना काम निपटाके जा चुका था. हवेली में अब सिर्फ़ रूपाली और ठाकुर बाकी रह गये थे.

रूपाली अपने ससुर के कमरे में पहुँची तो देखा के वो शराब के नशे में धुत बिस्तर पे पसरे पड़े थे. उसने अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लिया.

वो अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची और गौर से देखने लगी. ज़ाहिर था के शराब का नशा अब हद के पार जा चुका था और उन्हें कुच्छ भी खबर नही थी के आस पास क्या हो रहा है.वो दिल मसोस कर रह गयी. इस हालत में वो उसके सवालो के जवाब देना तो दूर की बात है अपना नाम तक बता दें तो बहुत बड़ी बात होगी.उसने शराब की बॉटल और ग्लास उठाकर एक तरफ रखा और ससुर को ढंग से बिस्तर पे लिटाया. कमरे में इधर उधर पड़ी चीज़ें उठाकर सलीके से जगह पर रखी और बाहर जाने के लिए मूडी पर तभी शौर्या सिंग के मुँह से एक आवाज़ सुनकर वापिस पलटी. कमरे में काफ़ी ठंडक और ठाकुर सर्दी से सिकुड़कर लेटे हुए थे. रूपाली पलटकर वापिस आई और चादर उठाकर अपने ससुर के उपर डालने लगी के तभी उसकी नाज़ुर उनकी धोती में बने हुए उभार पे पड़ी.

रूपाली का दिल एक बार फिर ज़ोर से धड़कने लगा. कल शौर्या सिंग का लंड हिलाते हुए वो उनके पिछे खड़ी थी इसलिए देख नही पाई थी. काफ़ी लंबा और मोटा था इस बात का अंदाज़ा तो उसे हो गया था पर नज़र नही पड़ी थी. उस वक़्त बैठा हुआ लंड भी किसी लंबे मोटे साँप की तरह लग रहा था. रूपाली के घुटने काँप उठे और उसे समझ नही आया के वो क्या करे. एक तरफ तो उसका दिल चूड़ने के लिए कर रहा था पर ठाकुर जिस हालत में सोए पड़े थे उसमें ऐसा कुच्छ भी हो पाना मुमकिन नही था. ठाकुर से चुदने की बात सोचकर ही रूपाली की टाँगो के बीच फिर नदी बहने लगी. वो सोचने लगी के अगर ठाकुर उसे चोद्ते तो कैसा होता पर अगर माणा कर देते तो क्या? आज सुबह जब वो उसके सामने आए थे तो उससे नज़र नही मिला पा रहे थे. ज़ाहिर था के वो कल रात मालिश करते हुए जो हुआ वो सोचकर झिझक रहे थे. कैसे भी हो आख़िर वो थे तो उसके ससुर ही और वो उनके मरे हुए बेटे की बीवी. उनकी बेटी के समान. रूपाली वहीं बिस्तर पे बैठ गयी और सोचने लगी के अगर ज़रूरत पड़ी तो ठाकुर को खुश करने के लिए उसे क्या करना चाहिए. वो बिस्तर पे बिल्कुल अनाड़ी थी. पति के साथ वो कभी उसका साथ नही देती थी. बस वो जो कहता था वो सुनती रहती थी, करती भी नही थी.

अचानक उसके दिमाग़ में अपने पति का ख्याल आ गया. वो बिस्तर पे काफ़ी कामुक था. रोज़ नयी नयी फरमाइश करता रहता था. ज़ाहिर था जो चीज़ें उसे पसंद थी वही बाकी मर्दों को भी पसंद होगी.उसने वो सब बातें एक एक करके याद करनी शुरू की. उसका पति चाहता था के वो लंड हाथ से हिलाए, उसे मुँह में लेके चूसे,चुद्ते वक़्त अलग अलग पोज़िशन में आए और भी ना जाने क्या क्या. रूपाली ने मॅन में सोच लिया के वो वही सब अपने ससुर के साथ करेगी जिसके लिए उसने अपने पति को हमेशा मना किया और उसमें से एक चीज़ थी लंड चूसना जो उसका पति उसे हमेशा बोलता था पर वो करती नही थी.

ठाकुर इस वक़्त गहरी नींद में थे. रूपाली ने एक नज़र उनके चेहरे पे डाली और फिर धोती में बंद उनके लंड पर. अगर उसने बाद में ये लंड चूसना ही है तो अभी थोड़ी प्रॅक्टीस क्यूँ ना कर ली जाए. ससुर जी अभी सो रहे हैं तो कुच्छ अगर ग़लत भी हुआ तो कुच्छ नही होगा. कम से कम उसे पता तो चल जाएगा के आख़िर करना क्या है. इन सबसे ज़्यादा जो ख्वाहिश उसके दिल में उठ रही थी वो थी लंड को देखने की.

रूपाली थोडा आयेज को झुकी और काँपते हाथो से अपने ससुर को हिलाया.

"पिताजी. सो गये क्या?" उसने इस बात की तसल्ली करनी चाही के ठाकुर सचमुच गहरी नींद में है.जब दो तीन बार हिलने पर भी ठाकुर की आँख नही खुली तो रूपाली समझ गयी के कोई ख़तरा नही. फिर भी एक आखरी तसल्ली करने के लिए उसके पास रखा एक स्टील को फ्लवरपॉट उठाया और ज़ोर से ज़मीन पे फेका.

रात की खामोश पड़ी हवेली फ्लवरपॉट गिरने की आवाज़ से गूँज उठी. खुद रूपाली के कान बजने लगे पर ठाकुर की नींद नही खुली.

अपनी तसल्ली होने पर रूपाली मुस्कुराइ और फिर ठाकुर के बिस्तर पे आके बैठ गयी. काँपते हुए हाथों के उसने फिर ठाकुर की धोती की तरफ बढ़ाया. उसका गला सूख रहा था और पूरा जिस्म सूखे पत्ते के जैसे हिल रहा था. एक तो जिस्मानी रिश्ता और वो भी अपने ही ससुर के साथ. पाप और वासना के इस मेल ने उसके रोमांच को और बढ़ा दिया था.

धीरे से रूपाली ने अपना हाथ ठाकुर के सोए हुए लंड पे रखा और सिहर उठी.लगा जैसे लोहे की कोई गरम रोड उसके हाथ में आ गयी हो. उसकी दोनो टांगे आपस में और सिकुड गयी और छ्होट की दीवारें आपस में घिसने लगी. उसने हाथ को धीरे धीरे लंड पे आगे पिछे किया और लंड की पूरी लंबाई का अंदाज़ा लिया.

"बैठा हुआ भी कितना लंबा है" रूपाली ने धीरे से सोचा

उसने धोती के उपेर से ही लंड को धीरे धीरे हिलाना और दबाना शुरू किया. आनंद की वजह से उसकी दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी थी. आँखें मदहोश सी हो रही थी. दूसरा हाथ अपने आप उसकी चूत पे पहुँच गया और धीरे धीरे सारी के उपेर से ही उपेर नीचे होने लगा.

थोड़ी देर ऐसे ही हिलाकर रूपाली ने ठाकुर की धोती को एक तरफ सरकाना शुरू किया ताकि लंड को बाहर निकाल सके. ठाकुर आराम से लेटे हुए थे इसलिए थोड़ी परेशानी हो रही थी. रूपाली ने अपना हाथ धीरे से धोती के अंदर घुसकर लंड की तरफ बढ़ाया और उसके मुँह से आह निकल पड़ी.

ठाकुर ने धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था. रूपाली के हाथ अंदर डालते ही उसके हाथ में ठाकुर का लंड आ गया. रूपाली के होश उड़ गये.पहली बार उसने बिना किसी के कहे अपनी मर्ज़ी से एक लंड को अपने हाथ में लिया था. मज़ा जो आ रहा था उसे शब्द बयान नही कर सकते. रूपाली ने पूरे लंड पे हाथ फिराया और उसे देखने के लिए पागल सी होने लगी. उसने अपने हाथ की गिरफ़्त लंड पे मज़बूत की और दूसरा हाथ चूत से हटाकर उससे धोती का एक सिरा पकड़ा. हाथ को एक ज़ोर का झटका दिया तो धोती खुलकर एक तरफ हो गया और रूपाली के आँखो के सामने ठाकुर का लंबा मोटा काला लंड आ गया.

रूपाली की आँखें और मुँह दोनो ही खुले रह गये. लंड कैसा होता है आज उसने ये पहली बार गौर से देखा था. कुच्छ देर तक वो लंड को ऐसे ही पकड़े देखती रही. कुच्छ ना किया.फिर धीरे से अपना हाथ पुर लंड की लंबाई पे फिराया. लंड अपने आप थोड़ा हिला और ठाकुर के जिस्म में थोड़ी हरकत हुई. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ रोक लिया और ठाकुर को देखने लगी पर लंड वैसे ही पकड़े रखा. फिर उसे एहसास हुआ के उसके लंड हिलने से ठाकुर को नींद में भी मज़ा आया था और जिस्म जोश की वजह से हिला था. ये सोचकर रूपाली ने लंड फिर धीरे से सहलाया और लंड में फिर करकट हुई. तभी उसे कल रात की बात याद आई जब ठाकुर ने अपना लंड उसके हाथ में देकर मुट्ठी बना दी थी. यही सोचते हुए रूपाली ने फिर लंड को वैसे ही हाथ में पकड़ लिया और उसी तरह से आगे पिछे करने लगी.

उसने हाथ ने फिर अपना जादू दिखाया. नशे में सोए पड़े ठाकुर का लंड नींद में भी खड़ा होने लगा. देखते देखते लंड अपनी पूरी औकात पे आ गया और रूपाली हैरत से देखने लगी. अगर वो दोनो हाथों से पकड़ ले तो भी पूरा लंड नही पकड़ पाएगी. मुट्ठी मुश्किल से लंड को पूरा घेर पा रही थी. रूपाली वैसे ही लंड को हिला रही थी के तभी उसके अपने पति के वो शब्द याद आए जो वो हर रात उसे कहता था

"जान. लंड मुँह में लेके चूसो ना एक बार" ये उसके पति के हमेशा ख्वाहिश होती थी जिसे रूपाली ने कभी पूरा नही किया था. लंड मुँह में लेने का सोचकर ही उसे उल्टी सी आती थी और वो हमेशा पुरुषोत्तम को मना कर देती थी. ठाकुर के लंड को हिलाते हिलाते रूपाली के दिमाग़ में ख्याल आया के क्यूँ ना आज ये भी करके देखा जाए. उसका पति हमेशा कहता था इसका मतलब मर्द को लंड चुसवाने में मज़ा आता है. आज अगर वो कर सकी तो अपने ससुर को भी इसी तरह अपने वश में रखेगी. ना कर सकी तो कुच्छ और सोचेगी. यही सोचते हुए रूपाली ने अपने होंठ पर जीभ फिराई और मुँह को खोला.

लंड के उपेर के हिस्से को उसने अपनी सारी से सॉफ किया और मुँह को ऐसे ही खोलके लंड मुँह में लेने के लिए झुकी ही थी के उसकी साँस उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी. सामने बड़े शीशे में कमरे का दरवाज़ा दिखाई दे रहा था और दिख रहा था दरवाज़े पे खड़ा भूषण जो ना जाने कबसे खड़ा हुआ सब देख रहा था.

रूपाली घबराकर फ़ौरन पलटी. लंड उसके हाथ से छूट गया और वो बिस्तर से उठकर खड़ी हो गयी. नज़रें दरवाज़े पे खड़े भूषण से मिली. उसके यूँ अचानक पलट जाने से बुद्धा भूषण भी घबरा गया और फ़ौरन पलटकर चला गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

रूपाली की समझ में नही आया के क्या करे. हवेली में क्या हो रहा था अगर ये बात बाहर निकल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. वो कहीं मुँह दिखाने लायक नही रहेगी. अगर उसके देवरो और ननद को ये बात पता चली तो वो क्या करेंगे? तेज तो शायद उसे काटकर फेक देगा. और उसका अपना खानदान? उसके बाप भाई? वो तो कहीं के नही रहेंगे. रूपाली की पूरी दुनिया उसकी आँखों के सामने घूमने लगी. समझ नही आया के क्या करे. उसने पलटकर अपने ससुर की तरफ देखा. वो अभी भी सोए पड़े थे और लंड अब भी वैसा ही खड़ा था पर जिस लंड को देखकर उसकी चूत में आग लग रही थी अब उसे देखकर कुच्छ महसूस नही हुआ. वो धीमे कदमो से ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और बाहर बड़े कमरे में आकर सोफे पे बैठ गयी.

भूषण ने सब देख लिया था. जाने क्या सोच रहा होगा. अगर उसने किसी को कहा तो? अगर उसने ठाकुर को ही बता दिया तो? वो रात को यहाँ क्या करने आया था? शायद उसके फ्लवरपॉट फेकने की आवाज़ सुनके आया होगा. अब क्या करूँ? रूपाली का दिमाग़ जैसे फटने लगा और उसे अपना पूरा प्लान एक पल में डूबता सा लगने लगा. भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता है और इज़्ज़त भी करता था. अब मैं उसकी नज़रों में एक रंडी से ज़्यादा कुच्छ नही बची.

तभी रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. "भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था."

यही बात रूपाली अपने दिमाग़ में काई बार दोहराती रही. उसे कुच्छ सवालों के जवाब चाहिए थे और भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था. रूपाली ने इससे आगे और कुच्छ ना सोचा. वो उठ खड़ी हुई और तेज़ कदमो से भूषण के कमरे की तरफ बढ़ी.

भूषण हवेली के बाहर बड़े दरवाज़े के पास बने एक छ्होटे से कमरे में रहता था. वो हवेली से बाहर निकली तो देखा के भूषण हवेली के लॉन में ही तेज़ कदमो से इधर उधर घूम रहा था. देखने में बेचेन से लग रहा था. वो एक छ्होटी सी कद काठी का आदमी था. मुश्किल से साढ़े पाँच फुट और बहुत ही दुबला पतला. 70 के आसपास था इसलिए कमज़ोर जिस्म में एक मुर्दे जैसा लगता था.वो परेशान सा यहाँ वहाँ घूम रहा था के सामने आती रूपाली को देखकर अपने कमरे में जाने के लिए मुड़ा.

"भूषण" रूपाली की मज़बूत आवाज़ सुनकर वो ठिठक गया.

"माफ़ करना बहूरानी. वो हवेली में ज़ोर से कुच्छ गिरने की आवाज़ आई तो मैं तो बस देखने गया था. पर मैं तो......" वो बोल ही रहा था के रूपाली ठीक उसके सामने आ खड़ी हुई.

"ये बात अगर मेरे और तुम्हारे अलावा किसी और को पता चली को गर्दन काट कर हवेली के दरवाज़े पे टंगा दूँगी" रूपाली की घायल शेरनी सी आवाज़ सुनकर भूषण सहम गया. रूपाली के लंबे छोड़े कद के आगे वो 70 साल का कमज़ोर छ्होटा सा बुद्धा ऐसा लग रहा था जैसे किसी शेरनी के सामने हिरण का बच्चा.

"ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा बहूरानी. आप भरोसा रखिए ...... " भूषण फिर दोबारा अपनी बात पूरी ना कर सका. वजह थी उसके पाजामे पे रखा रूपाली का हाथ.

रूपाली ने आगे बढ़कर भूषण के लंड को थाम लिया. भूषण घबराकर फ़ौरन पिछे हटा पर रूपाली साथ साथ आगे बढ़ी. वो पिछे एक पेड़ के साथ जा लगा और रूपाली आगे बढ़कर उससे सॅटकर खड़ी हो गयी.

उसकी नज़र ठीक भूषण की नज़रों से जा मिली. भूषण का लंड इतना छ्होटा था के रूपाली को अपने हाथ से पाजामे में लंड ढूँढना पड़ा. एक तो छ्होटा सा आदमी और बुढहा. ये तो होना ही था सोचते हुए रूपाली ने हाथ उपेर किया और उसके पाजामे का नाडा खोल दिया.

"ये आप क्या कर रही हैं बहूरानी?" भूषण बोल ही रहा था के रूपाली ने उसके मुँह पे अंगुली रखकर खामोश होने का इशारा किया और उसके सामने अपने घुटनो पे बैठ गयी.

भूषण की कुच्छ समझ नही आ रहा था. सब कुच्छ इतनी जल्दी हो रहा था के उसका दिमाग़ झल्ला रहा था. उसने सामने बैठी रूपाली पे एक नज़र में डाली और रूपाली ने एक झटके में उसका पाजामा नीचे खींच दिया.भूषण ने नीचे झुक कर पाजामा पकड़ने की कोशिश की पर नाकाम रहा. रूपाली ने दूसरा हाथ उसकी छाती पे रखा और उसे वापिस सीधा खड़ा कर दिया.

भूषण का जिस्म काँप रहा था. रूपाली ने उसका छ्होटा सा लंड अपने हाथ में लिया और धीरे धीरे हिलाने लगी और मुँह उठाकर नज़र भूषण से मिलाई.

"मैं तुमसे कुच्छ सवाल करूँगी भूषण. और मुझे सीधे सीधे जवाब चाहिए. कुच्छ भी छुपाया तो काट कर इसी लोन में गाड़ दूँगी" रूपाली की आवाज़ में जाने क्या था के उसे सुनकर ही भूषण की धड़कन रुकने लगी. पूजा पाठ में हमेशा डूबी रहने वाली ये औरत आज उसे कोई जल्लाद लग रही थी. वो सामने बैठी उसका लंड ऐसे हिला रही थी जैसे अपने सवालों के जवाब के लिए उसे रिश्वत दे रही हो.

"जी बहूरानी" भूषण ने धीमी आवाज़ में कहाँ. रूपाली अब भी उसका लंड हिला रही थी पर कुच्छ असर नही हो रहा था. लंड वैसे ही बैठा हुआ था बल्कि और भी सिकुड रहा था.

"आज जो आदमी आया था वो कौन था?" रूपाली ने पहला सवाल पुचछा. उसे महसूस हुआ के अपने ही नौकर का छ्होटा सा लंड हिलाते हुए भी उसकी चूत फिर गीली होने लगी थी. उसका दूसरा हाथ खुद ही फिर उसकी चूत पे पहुँच गया. रूपाली ने लंड गौर से देखा और अगले ही पल आगे बढ़ी और मुँह खोलकर लंड मुँह में ले लिया.


raj..
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Re: सेक्सी हवेली का सच

Unread post by raj.. » 17 Dec 2014 17:41

सेक्सी हवेली का सच--३

भूषण का छ्होटा सा लंड रूपाली के मुँह पे पूरा समा गया. उसने ज़िंदगी में पहली बार कोई लंड अपने मुँह में लिया था, वो भी घर के बूढ़े नौकर का. मुँह में एक अजीब सा स्वाद भर गया. नाक में पसीने की बदबू चढ़ गयी. एक पल को रूपाली का दिल किया के मूह से निकाल दे पर उसने ऐसा किया नही और अपना मुँह आगे पिछे करने लगी. उसने महसूस किया के भूषण का लंड अब तक बैठा हुआ था. ज़रा भी खड़ा नही हुआ था. पर भूषण के जिस्म से उठ रही हरकत को वो सॉफ तौर पर महसूस कर सकती थी. जैसे ही उसने उसका लंड अपने मुँह में लिया था वो काँप उठा था. पता नही मज़े की वजह से या किसी और कारण पर उसका जिस्म थर्रा गया था. और जब रूपाली ने लंड मुँह में आगे पिछे करना शुरू किया तो भूषण के दोनो हाथ पिछे की और हो गये और उसने अपने पिछे पेड़ को पकड़ लिया था. रूपाली के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था उसके लंड को अपने मुँह में रख पाना. एक तो बैठा हुआ लंड, वो भी छ्होटा सा और उपेर से रूपाली का पहली बार. पर वो फिर भी लगी रही. उसने लंड एक पल के लिए मुँह से निकाला और अपना सवाल दोहराया.

"वो आदमी कौन था भूषण काका"

भूषण ने एक नज़र उसके चेहरे पे डाली. उसके मुँह से बोल नही फूट रहे पर जैसे तैसे बोला.

"ठाकुर साहब का भतीजा. उनके एकलौते भाई का एकलौता बेटा. ठाकुर साहब के अपने परिवार के सिवा और उनके खानदान में बस एक यही है" भूषण ने जवाब दिया.

रूपाली ने लंड मुँह से निकाला " मुझे नही पता था के ससुर जी का कोई भाई भी है" बोलकर उसने लंड फिर मुँह में ले लिया

"है नही था. बरसो पहले वो और उनकी पत्नी एक कार दुर्घटना में मर गये थे. ठाकुर साहब ने ही उसे पाल पोस्के बड़ा किया था" भूषण बोला

"फिर?" रूपाली ने लंड मुँह में लिए लिए ही कहा.

"फिर वो ज़मीन की देखबाल और घर के बिज़्नेस में हाथ बटाने लगा. ज़्यादातर समय पुरुषोत्तम के साथ ही रहता था और फिर पुरुषोत्तम की मौत के बाद सारा काम वो खुद ही देखने लगा. ठाकुर साहब और आपके देवर तेज तो बस पुरुषोत्तम के हत्यारे को ढूँढने में ही रह गये. काम काज से उनका ध्यान ही हट गया"

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली लंड चूस्ते चूस्ते बोली

"इसका नाम जावर्धन सिंग है. जाई ही घर के सारे बिज़्नेस संभलता रहा और इसी में उसने कब धीरे धीरे सब कुच्छ अपने काबू में कर लिया इसका पता ही नही चला. धीरे धीरे ठाकुर साहब की सब ज़मीन जयदाद उसने अपने नाम पे कर ली और किसी को इस बात की भनक तक नही पड़ी. जब पता चला तब तक देर हो चुकी थी."

रूपाली के लिए अब लंड चूसना मुश्किल हो रहा था. उसे बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी लंड को मुँह में रखने के लिए क्यूंकी भूषण का लंड अब भी बैठा हुआ था जिस वजह से उसका रूपाली का मुँह दुखने लगा था. और फिर वो लंड चूस भी तो पहली बार रही थी. लंड खड़ा नही था पर रूपाली जानती थी के फिर भी भूषण को मज़ा ज़रूर आ रहा है. जाने कब आखरी बार किसी औरत के करीब गया होगा ये, सोचते हुए रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. अब वो भूषण के बिल्कुल सामने खड़ी थी. भूषण ने उसे सवालिया नज़रों से देखा जैसे कहना चाह रहा हो के लंड चूसना बंद क्यूँ कर दिया.

"फिर क्या हुआ?" रूपाली ने कहा और धीरे से भूषण के और नज़दीक आ गयी. उसने उसका हाथ अपने हाथ में लिए और ठीक सारी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. भूषण और रूपाली दोनो के जिस्म काँप उठे. रूपाली ने अपने हाथ को थोड़ा सा सख़्त किया और ज़ोर लगाकर भूषण का हाथ अपनी टाँगो के बीच तक दबा दिया. अब उसकी चूत भूषण की मुट्ठी में थी.

"बस अब एक ये हवेली ही है जो अभी भी ठाकुर साहब के पास है और कुच्छ ज़मीन जो कामिनी के पास है. वरना और कुच्छ भी नही" कहते हुए भूष्ण ने धीरे से उसकी चूत को टटोलना शुरू किया. रूपाली के मुँह से आह निकल गयी और वो भूषण से सटकार खड़ी हो गयी. उसकी दोनो छातियाँ भूषण के जिस्म से सिर्फ़ 1 इंच की दूरी पे थी.

"अब वो ये हवेली खरीदना चाहता है. कह रहा था के ठाकुर साहब ये हवेली छ्चोड़कर कहीं और चले जाएँ और वो मुँह माँगी रकम देने को तैय्यार है" भूषण ये कहते हुए सारी के उपेर से रूपाली की टाँगो में ऐसे हाथ चला रहा था जैसे याद करने की कोशिश कर रहा हो के चूत कैसी होती है.रूपाली के टांगे खुद ही खुलती जा रही थी ताकि भूषण आराम से जो चाहे कर सके.

"ठाकुर साहब बेचने को तैय्यार नही हैं. उसी बात पे झगड़ा हो रहा था" भूषण ने कहा और अपने हाथ को रूपाली की चूत पे उपेर से नीचे तक सहलाया तो रूपाली जैसे मस्ती में पागल होने लगी. जाने कितने अरसे बाद उसके अपने हाथ के सिवा किसी और का हाथ उसकी चूत की मालिश कर रहा था. वो भूषण से तकरीबन सटी खड़ी थी. जब वासना का ज़ोर जिस्म में और बढ़ गया तो वो अपने हाथ नीचे ले गयी और धीरे धीरे अपनी सारी को उपेर सरकाना शुरू किया.

"क्या तेज को इस बात का पता है?" रूपाली ने भूषण से पुछा. उसकी सारी खींचकर उसकी जाँघो के उपेर आ चुकी थी.

"तेज को अय्याशि से फ़ुर्सत ही कहाँ है के उसे ये पता होगा"भूषण ने रूपाली की और देखते हुए कहा. दोनो के जिस्म गरम हो चुके थे पर बात बराबर कर रहे थे.भूषण ने रूपाली की टाँगो को अपने हाथ से थोड़ा और खोलना चाहा तो उसका हाथ पे रूपाली की नंगी टाँग महसूस हुई. उसे पता ही ना चला था के कब रूपाली ने अपनी सारी उपेर खींच ली थी.

रूपाली भूषण के इतने करीब खड़ी थी के वो नीचे देख नही सकता था पर हां वो नीचे से सारी उपेर उठाके नंगी हो चुकी है इस बात का एहसास उसे हो गया था. धीरे धीरे भूषण का हाथ रूपाली की नंगी जाँघो पे सरकाने लगा. रूपाली को जैसे रात के अंधेरे में भी सूरज दिखने लगा था. उसने भूषण के हाथ को पकड़कर अपनी टाँगो के बीच खींचा और ठीक अपनी पॅंटी के उपेर से अपनी चूत पे रख दिया. वो जानती थी के भूषण भले एक 70 साल का बुद्धा नौकर ही सही पर मर्द तो है और वो भी गरम हो चुका है इस बात का अंदाज़ा उसे हो गया था. अगले ही पल रूपाली की सोच सही निकली. भूषण ने उसकी पॅंटी को एक तरफ सरकया और हाथ सीधा उसकी नंगी चूत पे रख दिया.

रूपाली की साँस रुक गयी. उसे लगा जैसे वो अभी मरने वाली है. इतना मज़ा उसे ज़िंदगी में कभी नही आया था. भूषण उसकी नंगी चूत पे हाथ ऐसे रगड़ रहा था जैसे चिंगारी उठाने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली अब भी उसे सटके खड़ी थी इसलिए वो देख अब भी कुच्छ नही सकता था जिसकी कमी वो अपने हाथ से पूरी कर रहा था. जैसे अपने हाथ से उसकी चूत देखना चाह रहा हो, अंदाज़ा लगाना चाह रहा हो. रूपाली ने अपनी बंद आँखें खोली और सीधे भूषण को देखा. वो उसकी साँस के साथ उठती और गिरती चुचियों को देख रहा था. रूपाली जानती थी के वो नौकर है और आगे बढ़ने की हिम्मत नही कर पा रहा है. उसने भूषण का दूसरा हाथ पकड़ा और अपनी एक छाती पे रखके दबा दिया. इस के साथ ही जैसे आसमान फॅट पड़ा. हाथ छाति पे रखते ही भूषण ने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में घुसा दी और छाति को ऐसे कासके पकड़ लिया जैसे दबाके कुच्छ निकालने की कोशिश कर रहा हो. रूपाली का पूरा बदन काँप उठा. उसकी साँस रुक गयी. दिमाग़ में बम फॅट पड़े और चूत से नदी सी बह निकली. उसने एक हाथ से कस्के भूषण का लंड पकड़ लिया और दूसरे हाथ से भूषण के चूत पे रखे हाथ को दबा दिया. और इसके साथ ही उसके घुटने कमज़ोर पड़ गये और वो समझ गयी के वो झाड़ चुकी है.

रूपाली ने अपनी सारी को नीचे गिराया और भूषण से दूर हटके खड़ी हो गयी. उसने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया और अपनी साँस पे काबू करने लगी. उसने देखा भी नही के भूषण क्या कर रहा है. जब पलटी तो वो अपने कमरे की तरफ जा रहा था.

"भूषण काका." उसकी आवाज़ सुनकर भूषण पलटा

"मेरे पति को किसने मारा? क्या जाई ने?" भूषण ने अपने दोनो कंधे झटकाए जैसे कहना चाह रहा हो के पता नही और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.

सुबह रूपाली देर तक सोती रही. आज भूषण ने भी उसे आकर नही जगाया. शायद कल रात की बात पे हिचकिचा रहा है.सोचते हुए रूपाली उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गयी.

नाहकार जब वो नीचे उतरी तो ठाकुर शौर्या सिंग फिर कहीं बाहर गये हुए थे. वो किचन में पहुँची तो भूषण दोपहर का खाना बनाने की तैय्यरी कर रहा था.

"आपने आज मुझे जगाया नही?" उसने भूषण से पुचछा पर भूषण ने जवाब ना दिया. जब रूपाली ने देखा के भूषण उसकी तरफ नज़र नही उठा रहा है तो वो बाहर आकर सोफे पे बैठ गयी.

थोड़ी देर बाद भूषण किचन से बाहर आया.

"बहूरानी आपसे एक बात कहनी थी."उसने रूपाली की और देखते हुए कहा.

"मैं जानती हूँ आप क्या कहना चाह रहे हैं काका. कल रात........" रूपाली बोलना ही चाह रही थी के भूषण ने उसकी बात को काट दिया

"मैं समझ सकता हूँ. आप जवान हैं और 10 साल से इस हवेली में क़ैद हैं. मुझसे आपसे कोई शिकायत नही बहूरानी. मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाह रहा था के अगर किसी को इस बात की भनक भी पड़ गयी तो...."भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.

"किसी को कुच्छ पता नही चलेगा काका. और वैसे भी इस हवेली में अब आता जाता कौन है" रूपाली ने जैसे मज़ाक सा बनाते हुए हासकर कहा.

भूषण की समझ में नही आया के वो क्या कहे. वो थोड़ी देर ऐसे ही खड़ा रहा और फिर वापिस किचन में जाने के लिए मुड़ा.

"भूषण काका" रूपाली ने कहा. भूसान फिर पलटा.

"आपने आखरी बार एक किसी औरत को नंगी कब देखा था" रूपाली ने सीधा उसकी आँखो में देखते हुए पुचछा.

भूषण हड़बड़ा गया. इस सीधे हमले के लिए वो तैय्यार नही था. इस तरह का सवाल और वो भी हवेली की मालकिन से. उसके मुँह से बोल ना फूटा.

"बताइए काका. आखरी बार किसी औरत के साथ कब थे आप. कल रात से पहले" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया.

"मेरी बीवी के गुज़रने से पहले." भूषण ने धीमी आवाज़ में कहा" कोई 25 साल पहले"

"25 साल?" रूपाली ने हैरत से कहा"आपका कभी दिल नही किया?"

भूषण कुच्छ ना बोला तो उसने सवाल फिर दोहराया.

"दिल करता भी तो क्या करता बहूरानी? कहाँ जाता?" भूषण ने अपनी नज़र नीचे झुका रखी थी. जैसे शरम से गढ़ा जा रहा हो.

"अब दिल करता है?" रूपाली ने फिर सीधा सवाल दागा.

भूषण कुच्छ ना बोला. रूपाली ने सवाल फिर पुचछा पर भूषण से जवाब देते ना बना.

रूपाली उठकर फिर भूषण के करीब आ गयी. उसने भूषना का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लाकर बिठाया.

"मुझे आपकी मदद चाहिए काका" भूषण अब उसकी तरफ ही देख रहा था.

"मुझे अपनी पति के हत्यारे का पता लगाना है. मैं आपकी मदद चाहती हूँ. बदले में आप जो कहें मैं करने को तैय्यार हूँ" रूपाली जैसे एक सौदा कर रही थी.

"पर कैसे?"भूषण की कुच्छ समझ नही आया.

"वो आप मुझपे छ्चोड़ दीजिए. बस आपको मेरे साथ रहना होगा. जो मैं कहूँ वो करना होगा."

भूषण की अब भी कुच्छ समझ में नही आ रहा था.

"ज़्यादा सोचिए मत काका. बस आप मेरे कहे अनुसार चलते रहिए. मेरी खातिर. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ"रूपाली की आँख में पानी भर आया"मैं अब और इस हवेली में एक मूर्ति बनकर नही रह सकती"

भूषण ने फ़ौरन उसके सामने हाथ जोड़ लिए

"आप जैसा कहें मैं वैसा ही करूँगा मालकिन. आप रोइए मत. आपको इस हालत में देखकर मुझे भी बुरा लगता है. आपको जो ठीक लगे मुझे बता दीजिएगा और मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा."

रूपाली धीरे से मुस्कुराइ. दोनो थोड़ी देर ऐसे ही खामोश बैठे रहे.

"मैं खाना बना लेता हूँ" कहते हुए भूषण उठा और किचन की तरफ बढ़ चला.

"पिताजी कहाँ हैं?"रूपाली ने पुचछा

"वो तो सुबह से ही बाहर गये हुए हैं."भूषण ने कहा और फिर कुच्छ सोचकर फिर रूपाली से पुचछा

"कल रात ठाकुर साहब के कमरे में आप और ठाकुर साहब दोनो....."भूषण हिचकिचा कर बोला

"नही वो नशे में सो रहे थे. उन्हें कुच्छ पता नही था."रूपाली ने कहा" सब बता दूँगी काका. आपको सब समझ आ जाएगा धीरे धीरे"

भूषण ने अपना सर हिलाकर उसकी हां में हां मिलाई और किचन की तरफ बढ़ गया. दरवाज़े पर पहुँच कर वो फिर पलटा और रूपाली से कहा

"एक बात कौन बहूरानी?"

रूपाली ने सवालिया नज़र से भूषण की तरफ देखा.

"आपके पति के खून का राज़ इसी हवेली में कहीं है. इन दीवारो में क़ैद है कहीं जो 10 साल से नज़र नही आया. इस वीरान पड़ी हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपकी पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है. अगर आप अपने पति की हत्या का राज़ मालूम करना चाहती हो तो इस हवेली से पुच्छना होगा. यहीं कहीं दफ़न है सारी कहानी" कहते हुए भूषण फिर किचन में चला गया

भूषण के जाने के बाद रूपाली थोड़ी देर वहीं बड़े कमरे में बैठी रही और फिर उठकर अपने कमरे में आ गयी.भूषण के कहे शब्द उसके कान में गूँज रहे थे. "इस हवेली में कहीं कुच्छ ऐसा है जो आपके पति की मौत के साथ जुड़ा हुआ है" उसे ये बात हमेशा से महसूस होती थी के काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो वो जानती नही और उसने कभी पता करने की कोशिश भी नही की. उसकी दुनिया तो सिर्फ़ उसके कमरे में बसे मंदिर तक थी. शादी से पहले भी, शादी के बाद भी और विधवा हो जाने के बाद भी. उसे अपने उपेर हैरत हो रही थी के कैसे उसने 10 साल गुज़र दिए, खामोशी से. शायद सामने रखी मूर्ति को पूजते पूजते वो खुद भी एक मूरत ही हो गयी थी. खामोश, चुप चाप रहने वाली एक गुड़िया जिसे किसी चीज़ से कोई मतलब नही था. जिसे जो कह दिया जाता वो कर देती. उसे हैरत थी के कैसे उसने 10 साल से अपने पति के बारे में जानने की कोई कोशिश नही की. कैसे सब चुप हो गये थे कुच्छ अरसे के बाद और वो भी उन चुप लोगों में से एक थी.खामोशी से सब पुरुषोत्तम को भूल गये थे. वो सिर्फ़ सामने लगी एक तस्वीर में सिमट गया था और इसमें सबसे ज़्यादा कसूर शायद उसकी अपनी बीवी का था जिसने ना उसके जीते जी कभी उसे कोई सुख दिया और ना ही उसके मरने के बाद उसकी बीवी होने का फ़र्ज़ अदा किया.

पर अब ऐसा नही होगा, सोचते हुए रूपाली उठी और फिर शीशे के सामने जा खड़ी हुई.

"मैं अब अपनी ज़िंदगी इस तरह से बेकार नही होने दूँगी"जैसे वो अपने आप से ही कह रही हो. वो अब भी सफेद सारी में ही थी.

"वक़्त आ गया है के इसे हमेशा के लिए अपने जिस्म से हटाया जाए" कहते हुए रूपाली ने अपनी सारी उतरनी शुरू की और सामने रखी उसकी ससुर की लाल रंग की सारी की तरफ देखा.

अचानक उसे वो शाम याद गयी जब वो आखरी बार अपने पति से मिली थी. उसे चोदने के लिए बेताब पुरुषोत्तम अपनी माँ की आवाज़ सुनकर ऐसे ही रह गया था. सामने चूत खोले हुए झुकी खड़ी बीवी को उसी हालत में छ्चोड़कर उसे बाहर जाना पड़ा था.

रूपाली की आँखों के सामने वो गुज़री शाम फिर से घूमने लगी. सावित्री देवी यानी उसकी मर चुकी सास को मंदिर जाना था जिसके लिए उन्होने पुरुषोत्तम को बुलाया. उस वक़्त शाम के लगभग 5 बज रहे थे. पुरुषोत्तम तैय्यार होकर नीचे पहुँचा और अपनी माँ को कार में बैठाकर मंदिर की तरफ निकल गया. उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़कर कहीं काम से जाना था और आते हुए फिर मंदिर से सावित्री देवी को लेते हुए आना था. उनके जाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी टीवी देख रही थी. पुरुषोत्तम के जाने के कोई 4 घंटे बाद नीचे उठा शोर सुनकर वो भागती हुई नीचे आई. उस वक़्त हवेली में रौनक हुआ करती थी. शौर्या सिंग का पूरा खानदान यहीं था. घर में नौकरों की लाइन हुआ करती थी इसलिए शोर भी काफ़ी तेज़ी से उठा था. रूपाली भागती हुई नीचे आई तो बड़े रूम का नज़ारा देखकर उसकी आँखें खुली रह गयी. पुरुषोत्तम सिंग खून से सना हुआ सोफे पे पड़ा था. रूपाली को उस वक़्त उस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नही था के वो मर चुका है. उसे लगा के शायद घायल है. और ना ही शायद कोई और ये बात मान लेने को तैय्यार था के पुरुषोत्तम के जिस्म में अब जान बाकी नही रही. ठाकुर शौर्या सिंग अपने बेटे की लाश के पास खड़े जाने नौकरों से क्या कुच्छ नही लाने को कह रहे थे. कभी पानी, तो कभी कोई दवाई. तेज डॉक्टर को लेने के लिए पहले से ही जा चुका था. कामिनी अपने भाई के चेहरे पे हल्के हल्के थप्पड़ मार रही थी, जैसे एक मुर्दे को जगाने की कोशिश कर रही हो. वो नज़ारा देखकर रूपाली तो जैसे वहीं खड़ी ही रह गयी थी और अगले ही पल चक्कर खाकर गिर पड़ी. फिर क्या हुआ उसे कुच्छ याद नही.

जब होश आया तो हवेली में मरघाट सन्नाटा था. हर तरफ खामोशी थी. उसे याद नही किसने पर किसी ने धीरे से उसके कान में कहा था के पुरुषोत्तम अब नही रहा. उसके बाद कुच्छ दिन तक क्या हुआ उसका रूपाली को कोई अंदाज़ा नही रहा. वो होश में होते भी होश में नही थी. कब पुरुषोत्तम का संस्कार किया गया, कब उसे सफेद सारी में लपेट दिया गया रूपाली कोई कुच्छ याद नही था. वो जैसे एक सपने में थी और उसी सपने में उसने अगले 10 साल गुज़र दिए. पति की मौत के बाद जैसे उसे किसी से कोई सरोकार ना रहा.वो और भगवान में विलीन हो गयी. घंटो मूर्ति के सामने बैठी पूजा करती रहती. उसके अपने मायके से उसके माँ बाप उसे मिलने आए, उसका एकलौता भाई आया, उसे साथ ले जाने के लिए पर वो कहीं नही गयी. जैसे ये हवेली एक ही जगह पे खड़ी थी वैसे भी रूपाली भी वहीं अपने कमरे में ही क़ैद रही. 10 साल तक.

रूपाली ने अपना सर झटका और ये सारे ख्याल दिमाग़ से हटाए.आज 10 साल बाद उसकी नींद खुली थी. पूरी तरह. और अब वो सब कुच्छ अपने हाथ में कर लेना चाहती थी. अपने पति के हत्यारे को अंजाम तक पहुँचना चाहती थी, इस हवेली की खुशी को लौटना चाहती थी. इस हवेली में फिर से वही रौनक देखना चाहती थी.

रूपाली ने शीशे में अपने आपको देखा. वो सफेद सारी उतारकर एक बार फिर नंगी खड़ी अपना जिस्म देख रही थी. पिच्छले दो दिन में कितना कुच्छ बदल गया था. उसने अपने आपको इतनी बार नंगी कभी नही देखा था जितना इन 2 दिन में देख लिया था. टांगे थोड़ी फेलाकर उसने अपनी चूत पे एक नज़र डाली जहाँ भूषण की उंगलियाँ कल रात घुसी हुई थी. रूपाली पलटी और लाल सारी उठाकर पहेन्ने लगी.

उसके पति की मौत से जुड़े कई सवाल थे जो उसे 2 दिन से परेशान कर रहे थे. हवेली जिस जगह पर थी वो गाओं से काफ़ी बाहर थी. मंदिर गाओं के दूसरी तरफ था. फिर भी कार से मंदिर जाने तक 20 मिनट से ज़्यादा समय नही लगता था. उसके सिवा पुरुषोत्तम को कहाँ जाना था ये बात कोई नही जानता था जबकि वो हमेशा घर में बताके जाता था के उसने कहाँ जाना है. पर उस शाम इस बात का उसने किसी से कोई ज़िक्र नही किया था. उसने कहीं जाना था ये उसने सावित्री देवी को मंदिर छ्चोड़ने के बाद उनसे कही थी पर तब भी उन्हें नही बताया था के वो कहाँ जा रहा है. उसकी लाश हवेली से मुश्किल से 10 कदम की दूरी पे मिली थी. वो सावित्री देवी को छ्चोड़कर वापिस हवेली की तरफ क्यूँ आया था. उसपर 2 गोलियाँ चलाई गयी और लाश रात के 9 बजे के आस पास मिली थी. लाश जिस हालत में मिली थी उसे देखकर यही लगता था के उसे गोली मुस्किल से 15 मिनट पहले मारी गयी थी मतलब के उस रात ढल चुकी थी तो रात के सन्नाटे में हवेली में किसी ने गोली की आवाज़ क्यूँ नही सुनी. वो हवेली से शाम के 5 बजे निकला था, मतलब के 5.30 तक उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़ दिया होगा. तो फिर अगले 3 घंटे तक वो कहाँ था? उसकी लाश उसकी बहेन कामिनी को मिली थी जो उस रात गाओं में अपनी किसी सहेली के घर से आ रही थी. रास्ते में पुरुषोत्तम की गाड़ी खड़ी देखकर उसने गाड़ी रोकी तो गाड़ी में कोई नही था. खून के निशान का पिच्छा किया तो भाई की लाश मिली. पर उससे 10 मिनट पहले ही शौर्या सिंग हवेली में आए थे. तो उस वक़्त गाड़ी वहाँ क्यूँ नही थी? हवेली से गाओं तक का पूरा रास्ते पर ठाकुर ने लॅंप पोस्ट्स लगवा रखे थे और तकरीबन उसी वक़्त घर के सारे नौकर वापिस गाओं जाते थे फिर उनमें से किसी ने कुच्छ होते क्यूँ नही देखा? पुरुषोत्तम के 2 आदमी हमेशा उसके साथ होते थे, हथ्यार के साथ पर उस शाम वो अकेला क्यूँ गया? कामिनी भी उस शाम अकेली गयी थी. हिफ़ाज़त के लिए रखे गये हत्यारबंद आदमी उस शाम कहाँ थे? सोच सोचकर रूपाली का सर फटने लगा तो उसे भूषण की कही बात फिर याद आने लगी " आपके पति की हत्या का राज़ इसी हवेली में बंद है. दफ़न है यहीं कहीं"

रूपाली लाल सारी पेहेन्के नीचे आई तो भूषण खाना बनाकर बड़े घर की सफाई में लगा हुआ था. रूपाली को देखा तो देखता ही रह गया. 10 साल से जिसे सफेद सारी में देखा था उसे लाल सारी में एक पल के लिए तो पहचान ही नही पाया.

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