अनाड़ी पति और ससुर रामलाल
Re: अनाड़ी पति और ससुर रामलाल
सुनीता ने दीदी से कहा, "दीदी, तुम्हें एक बात नहीं मालूम होगी।" "क्या?" अनीता ने पूछा। सुनीता ने बताया, "तुम्हारी शादी के बाद एक दिन मैं यों ही खिड़की की ओट से मझले भैया के कमरे में झाँकने लगी, मुझे भाभी के साथ किसी मर्द की आवाजें सुनाई दीं। कोई कह रहा था, 'अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे ऊपर आजा। अब मुझसे ज्यादा इन्तजार नहीं हो रहा।' मेरी उत्सुकता बढ़ी। मैंने सोचा की मझले भैया तो नाइट ड्यूटी जाते है फिर ये कौन आदमी भाभी से नंगी होने की बात कह रहा है। मैंने खिड़की थोड़ी सी और खोल कर अन्दर झाँका तो दीदी, बिलकुल ऐसा ही सीन अन्दर चल रहा था जैसा कि हम-लोगों ने अभी ब्लू-फिल्म में देखा था। बड़े भैया, मझली भाभी को नंगी करके अपने ऊपर लिटाये हुए थे और भाभी ऊपर से धक्के मार-मार कर बड़े भैया का लिंग अन्दर लिए जा रहीं थीं। मुझे यह खेल देखने का चस्का लग गया। एक बार मैंने उनका यह खेल छोटे भैया को भी दिखाया। देखते-देखते छोटे भैया उत्तेजित हो उठे और उन्होंने मेरी छातियों पर हाथ फेरना आरम्भ कर दिया। मैं किसी तरह भाग कर अपने कमरे में चली आई, छोटे भैया ने समझा कि बुरा मान कर अंदर भाग आई हूँ। वे मेरे पीछे-पीछे आये और मुझसे माफ़ी मांगने लगे। आगे कभी ऐसा न करने का वादा भी करने लगे। मैं कुछ नहीं बोली, और बह चुपचाप वहां से चले गए। उनके चले जाने के बाद मैं बहुत पछताई कि क्यों मैंने उनको नाराज़ कर दिया। अगर उनसे करवा ही लेती तो उस दिन मुझे कितना आनंद आता। अफ़सोस तो इस बात का रहा कि उन्होंने दुबारा मेरी छातियाँ क्यों नहीं दबाई। अगर आगे वह ऐसा करें तो मुझे क्या करना चाहिए दीदी? हथियार डाल दूं उनके आगे, और कर दूं अपने आपको उनके हवाले?"
"पागल हो गयी है क्या तू! सगे भाई से यह सब करवाने की बात तेरे दिमाग में आई ही कैसे! देख सुनीता, सगे भाई-बहिन का रिश्ता बहुत ही पवित्र होता है। आगे से ऐसा कभी सोचना भी मत।" " दीदी, तुम्हारी बातें सही हैं मगर जब लड़का और लड़की दोनों के ही सर पर वासना का भूत सबार हो जाये तो बेचारा दिल क्या करे? मेरी कितनी ही सहेलियां ऐसी हैं जिनके यौन-सम्बन्ध उनके अपने सगे भाइयों से हैं। और ये सम्बन्ध उनके वर्षों से चले आ रहे हैं। मेरी एक सहेली को तो अपनी शादी के बाद अपने सगे छोटे भाई के साथ सम्बन्ध बनाने पड़े। उसका पति नपुंशक है और कभी उसके लिंग में थोड़ी-बहुत उत्तेजना आती भी है तो वह पत्नी की योनि तक पहुँचते-पहुँचते ही झड़ जाता है।"
दोनों बहिनों को बातें करते-करते शाम हो आयी। ससुर ने आवाज लगाई, "बहू, जरा इधर तो आ। क्या आज खाना नहीं बनाना है?" अनीता पास आकर ससुर के कान में फुसफुसाई, "जानू आज समझो तुम्हारा काम बन गया। उसी को पटाने में इतनी देर लग गई। आप आज रात को मेरे पलंग पर आकर चुप-चाप लेट जाना, आगे सब मैं सम्हाल लूंगी।
रात हुई, दोनों बहिनें अलग-अलग बिस्तरों पर लेतीं। सुनीता आँखें बंद करके सोई हुई होने का नाटक करने लगी। रात के करीब दस बजे धीरे से दरबाजा खुलने की आवाज आई। सुनीता चौकन्नी हो गई, उसने कम्बल से एक आँख निकाल कर देखा कि दीदी के ससुर अन्दर आये। अन्दर आकर उन्होंने अन्दर से कुण्डी लगा ली और दबे पाँव दीदी के कम्बल में घुस गए। अनीता पहले से ही पेटीकोट और ब्रा में थी। रामलाल ने भी अपने सारे वस्त्र उतार फैंके और अनीता को नंगी करके उसके ऊपर चढ़ गया। अब दोनों की काम-क्रीड़ायें शुरू हो गईं। रामलाल धीरे से अनीता के कान में बोला, "थोड़ी सी पिएगी मेरी जान, आज मैं बिलायती व्हिस्की लेकर आया हूँ। आज बोतल की और इस नई लौंडिया की सील एक साथ तोडूंगा।" रामलाल ने अपने कुरते को टटोलना शुरू किया ही था कि अनीता उसे रोकते हुए बोली, "अभी नहीं, सुनीता पर काबू पाने के बाद शुरू करेंगे पीना। आज मैं तुम दोनों को अपने हाथों से पिलाऊंगी और खुद भी पीउंगी तुम्हारे साथ। पहले मेरी बहिन की अनछुई जवानी का ढक्कन तो खोल दो, बाद में बोतल का ढक्कन खुलेगा। रामलाल मुस्कुराया, बोला - "मेरी जान, तू मेरे लिए कितना कुछ करने को तैयार है। यहाँ तक कि अपनी छोटी बहिन की सील तुडवाने को भी राज़ी हो गई।" "आप भी तो हमारे ऊपर सब-कुछ लुटाने को तैयार रहते हो मेरे राजा, फिर तुम्हारी रानी तुम्हारे लिए इतना सा काम भी नहीं कर सकती।"
सुनीता कम्बल की ओट से सब-कुछ साफ़-साफ़ देख पा रही थी। नाईट बल्ब की रौशनी में दोनों के गुप्तांग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। सुनीता ने सोचा 'दीदी ने तो कहा था लाइट ऑन करके दोनों के ऊपर से कम्बल हटाने के लिए। यहाँ तो कुछ भी हटाने की जरूरत नहीं है, सब काम कम्बल हटाकर ही हो रहा है।' सुनीता ने उठकर लाइट ऑन कर दी। दोनों ने दिखावे के तौर पर अपने को कम्बल में ढकने का प्रयास किया। सुनीता बोली, "दीदी, मैं तो तुम्हारे पास सोऊँगी। मुझे तो डर लग रहा है अकेले में। अनीता ने दिखावटी तौर पर उसे समझाया, "हम-लोग यहाँ क्या कर रहे हैं, ये तो तूने देख ही लिया है, फिर भी तू मेरे पास सोने की ज़िद कर रही है।" रामलाल बोला, "हाँ,हाँ, सुला लो न बेचारी को अपने पास। उसे हमारे काम से क्या मतलब, एक कोने में पड़ी रहेगी बेचारी। आजा बेटी, तू मेरी तरफ आजा।" सुनीता झट-पट रामलाल की ओर जा लेटी और बोली, "आप लोगों को जो भी करना है करो, मुझे तो जोरों की नीद लगी है।" इधर अनीता और रामलाल का पहला राउंड चल रहा था, इस बीच सुनीता कभी अपनी चूचियों को दबाती तो कभी अपनी योनि खुजलाती। जब अनीता और रामलाल स्खलित होगये तो रामलाल ने कहा, "जानू लाओ तो हमारी व्हिस्की की बोतल, इससे जोश पूरा आएगा, और लिंग की ताकत पहले से भी दूनी हो जाएगी।" अनीता बोली, "मुझे तो बहुत थोड़ी सी देना, मैं तो पीकर सो जाउंगी। मेरे राजा, आज तो तुमने मेरी फाड़ कर रख दी। योनि भी बहुत दर्द कर रही है।" फिर वह अपने ससुर जी के कान में बोली, "आज इसको कतई छोड़ना मत, सोने का बहाना बनाये पड़ी है। आज मैंने ब्लू-फिल्म दिखाकर इसे तुम्हारा यह मूसल सा मोटा लिंग अन्दर डलवाने के लिए बिलकुल तैयार कर लिया है।"
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लाइट तो ऑन थी ही, पलंग पर दोनों ससुर-बहू बिलकुल नग्नावस्था में बैठे थे। सुनीता ने मौसा जी के मोटे लिंग को कनखियों से देखा तो सर से पैर तक काँप गयी 'बाप रे, किसी आदमी का लिंग है या किसी घोड़े का' पूरे दस इंच लम्बा और मोटा लिंग अभी भी तनतनाया हुआ था, सुनीता की लेने की आस में। अनीता ने बोतल की सील तोड़ी और दो गिलासों में शराब उड़ेली दी। दोनों ने जैसे ही सिप करना चाहा कि सुनीता ने कम्बल से मुंह बाहर निकाल कर कहा, "दीदी, आप दोनों ये क्या पी रहे हैं? थोड़ी मुझे नहीं दोगे?" अनीता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा, "ज़हर पी रहे हैं हम लोग, पीयेगी?" "हाँ, मुझे भी दो न," रामलाल ने सुनीता की हिमायत लेते हुए कहा, "हाँ, दे दो थोड़ी सी इस बेचारी को भी।" अनीता ने दो पैग शराब एक ही गिलास में डाल दी और गिलास थमाते हुए बोली, "ले मर, तू भी पी थोड़ी सी।" सुनीता ने दो घूँट गले से नीचे उतारे, और कड़वाहट से मुंह बनाती बोली, "दीदी, ये तो बहुत ही कड़वी है।" "अब गटक जा सारी चुपचाप, ज्यादा नखरे दिखाने की जरूरत नहीं है। ला थोड़ा सा पानी मिला दूं इसमें ...." अनीता ने बाकी का खाली गिलास पानी से भर दिया। सुनीता दो वार में ही सारी शराब गले के नीचे उतार गई और अपना कम्बल ओढ़ कर चुपचाप सोने का अभिनय करने लगी।
शराब पीने के बाद रामलाल का अध-खड़ा लिंग अब पूरा तन-कर खड़ा हो गया। उसने अनीता से पूछा, "क्या शुरू की जाए इसके साथ छेड़खानी?" अनीता ने धीरे से सर हिलाकर लाइन क्लियर होने का संकेत दे दिया। रामलाल अनीता से बोला, "तुम अपने लिए दूसरा कम्बल ले आओ। मैं तो अपनी प्यारी बिटिया के कम्बल में ही सो लूँगा।" ऐसा कह कर वह सुनीता के कम्बल में घुस गया। रामलाल के हाथ धीरे-धीरे सुनीता के वक्ष की ओर बढ़े। सुनीता ने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी, वह केवल नाइटी में थी। रामलाल ने ऊपर से ही सुनीता की चूचियां दबा कर स्थिति का जायजा लिया। सुनीता सोने का बहाना करते हुए सीधी होकर बिलकुल चित्त लेट गई जिससे कि रामलाल को उसका सारा बदन टटोलने में किसी प्रकार की बाधा न पड़े। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा, साँसें भी कुछ तेज चलने लगीं। रामलाल ने उसके होटों पर अपने होट टिका दिए और बेधड़क होकर चूसने लगा। सुनीता ने नकली विरोध जताया, "ओह दीदी, क्या मजाक करती हो। मुझे सोने भी दो अब .." रामलाल ने उसकी तनिक भी परवाह न करते हुए उसकी छातियाँ मसलनी शुरू कर दीं और फिर अपने हाथ उसके सारे बदन पर फेरने लगा। इधर सुनीता पर शराब और शवाब दोनों का ही नशा सबार था। उसके बदन में वासना की हजारों चींटियाँ सी रिंगने लगीं।
उसने अनजान बनते हुए रामलाल की जाँघों के बीच में हाथ रख कर उसके लिंग का स्पर्श भी कर लिया। तभी उसने लिंग को पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया, और बोली, "दीदी, तुम्हारी ये क्या चीज है?" इस बीच रामलाल ने उसकी नाइटी भी उतार फैंकी और उसे बिलकुल नंगी कर डाला। रामलाल ने ऊपर से कम्बल हटाकर उसका नग्न शरीर अनीता को दिखाते हुए कहा, "देखा रानी, तेरी बहिन बेहोशी में जाने क्या-क्या बड़बडाये जा रही है।" रामलाल ने उसकी दोनों जाँघों को थोडा सा फैलाकर उसकी योनि पर हाथ फिराते हुए कहा, "यार जानू तेरी बहिन तो बड़े ही गजब की चीज है। इसकी योनी तो देखो, कितनी गोरी और चिकनी है। कहो तो इसे चाट कर इसका पूरा स्वाद चख लूं? रानी, तू कहे तो इसकी योनि का पूरा रस पी जाऊं ...बड़ी रस दार मालूम पड़ रही है।" "अनीता बोली, "और क्या ...जब नशे में मस्त पड़ी है तो उठालो मौके का फायदा। होश में आ गई तो शायद न भी दे। अभी अच्छा मौका है, डाल दो अपना समूंचा लिंग इसकी योनि के अन्दर।" रामलाल ने उसकी जांघें सहलानी शुरू कर दीं। फिर धीरे से उसकी गोरी-चिकनी योनि में अपनी एक उंगली घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। उसने अनीता से पूछा, "क्यों जानू इसकी योनि के बाल तुमने साफ़ किये हैं?" "नहीं तो ..." अनीता बोली - "इसी ने साफ़ किये होंगे, पूरे एक घंटे में बाथरूम से निकली थी नहाकर।"
रामलाल सुनीता की योनि पर हाथ फेरता हुआ बोला, "क्या गजब की सुरंग है इसकी ! कसम से इसकी सुलगती भट्टी तो इतनी गर्म है कि डंडा डाल दो तो वह भी जल-भुन कर राख होकर निकलेगा अन्दर से।" सुनीता से अब नहीं रहा गया, बोली - "तो डाल क्यों नहीं देते अपना डंडा मेरी गर्म-गर्म भट्टी में।" रामलाल की बांछें खिल उठीं। उसने सुनीता की चूची को मुंह में भर कर चूंसना शुरू कर दिया। सुनीता की सिसकियाँ कमरे में गूँज कर वातावरण को और भी सेक्सी व रोमांटिक बनाने लगीं। रामलाल अब खुलकर उसके नग्न शरीर से खेल रहा था। सुनीता ने रामलाल का लिंग पकड़ कर अपने मुंह में डाल लिया और मस्ती में आकर उसे चूंसने लगी। अब उसे अपने बदन की गर्मी कतई सहन नहीं हो रही थी। उसने रामलाल का लिंग अपनी जाँघों के बीच में दबाते हुए कहा, "मौसा जी, प्लीज़ ..अब अपना यह मोटा डंडा मेरी जाँघों के भीतर सरकाइये, मुझे बड़ा आनंद आ रहा है।" तब रामलाल ने मोटे लिंग का ऊपरी लाल भाग सुनीता की योनि में धीरे-धीरे सरकाना आरम्भ किया। सुनीता की योनि में एक तेज सनसनाहट दौड़ गई। उसने कस कर अपने दांत भींच लिए और लिंग की मोटाई को झेल पाने का प्रयास करने लगी। रामलाल का लिंग जितना उसकी योनि के अन्दर घुस रहा था योनि में उतनी ही पीड़ा बढ़ती जा रही थी। अब रामलाल के लिंग में भी और अधिक उत्तेजना आ गई थी। उसने एक जोरदार धक्का पूरी ताकत के साथ मारा जिससे उसका समूंचा लिंग सुनीता की कोरी योनी को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया।
सुनीता के मुंह से एक जोरों की चीख निकल कर वातावरण में गूँज उठी और वह रामलाल के लिंग को योनि से बाहर निकालने की चेष्टा करने लगी। अनीता ने रामलाल से कहा, "जानू इसके कहने पर अपने इंजन को रोकना नहीं, देखना अभी कुछ ही देर में रेल पटरी पर आ जाएगी। योनि से खून बह निकला जो चादर पर फैल गया था। अनीता सुनीता को डाटते हुए बोली, " देख सुनीता, अब तू चुपचाप पड़ी रह कर इनके लिंग के धक्के झेलती रह, यों व्यर्थ की चिखापुकारी से कुछ नहीं होगा। इस वक्त जो दर्द तुझे महसूस हो रहा है वह कुछ ही देर में मज़े में बदल जायेगा। इन्हें रोके मत, इनके रेस के घोड़े को सरपट दौड़ने दे, अधाधुंध अन्दर-बाहर। इनका बेलगाम घोडा जितनी तेजी से अन्दर-बाहर के चक्कर काटेगा उतना ही तुझे मज़ा आएगा।" बड़ी बहिन की बात मानकर सुनीता थोड़ी देर अपना दम रोके यों ही छटपटाती रही और कुछ ही देर में उसे मज़ा आने लगा। रामलाल अबतक सेंकडों धक्के सुनीता की योनि में लगा चुका था। अब सुनीता के मुख से रामलाल के हर धक्के के साथ मादक सिसकारियाँ फूट रही थीं। उसे लगा कि वह स्वर्ग की सैर कर रही है। इधर रामलाल अपने तेज धक्कों से उसे और भी आनंदित किये जा रहा था। सुनीता अब अपने नितम्बों को उचका-उचका कर अपनी योनि में उसके लिंग को गपकने का प्रयास कर रही थी।
वह मस्ती में भर कर चीखने लगी, "मौसा जी, जरा जोरों के धक्के लगाओ ...तुम्हारे हर धक्के में मुझे स्वर्ग की सैर का आनंद मिल रहा है ....आह: ...आज तो फाड़ के रख दो मेरी योनि को ....और जोर से ...और जोरों से ...उई माँ ...मौसा जी ...प्लीज़ धीरे-धीरे नहीं ...थोड़े और जोर से फाड़ो ..." उसने रामलाल को कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया। अपनी दोनों टाँगों से उसने अपने मौसा जी के नितम्बों को जकड़ रखा था। अजब प्यास थी उसकी जो बुझाए नहीं बुझ रही थी। अंत: रामलाल ने उसकी प्यास बुझा ही डाली। सुनीता रामलाल से पहले ही क्षरित हो कर शांत पड़ गई, उसने अपने हाथ-पैर पटकने बंद कर थे पर वह अब भी चुपचाप पड़ी अपने मौसा जी के लिंग के झटके झेल रही थी। आखिरकार रामलाल के लिंग से भी वीर्य की एक प्रचंड धारा फूट पड़ी। उसने ढेर सारा वीर्य सुनीता की योनि में भर दिया और निढाल सा हो उसके ऊपर लेट गया।
कुछ देर बाद तीनों का नशा मंद पड़ा। रात के करीब दो बजे सुनीता का हाथ रामलाल के लिंग को टटोलने लगा। वह उसके लिंग को धीरे-धीरे पुन: सहलाने लगी। बल्ब की तेज रौशनी में उसने सोते हुए रामलाल के लिंग को गौर से देखा और फिर उसे अपनी उँगलियों में कस कर सहलाना शुरू कर दिया था। रामलाल और अनीता दोनों ही जाग रहे थे। उसकी इस हरकत पर दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े। अनीता ने कहा, "देख ले अपने मौसा जी के लिंग को, है न उतना ही मोटा, लम्बा जितना कि मैंने तुझे बताया था।" वह शरमा कर मुस्कुराई। रामलाल ने भी हँसते हुए पूछा, "क्यों मेरी जान, मज़ा आया कुछ?" सुनीता ने शरमाकर रामलाल के सीने में अपना मुंह छिपाते हुए कहा, "हाँ मौसा जी, मुझे मेरी आशा से कहीं अधिक मज़ा आया आपके साथ। मालूम है, मैंने आपके साथ यह पहला शारीरिक सम्बन्ध बनाया है।" रामलाल बोला, "सुनीता रानी, अब से मुझसे मौसा जी मत कहना। मुझसे शारीरिक सम्बन्ध बनाकर तूने मुझे अपना क्या बना लिया है, जानती है?" सुनीता चुप रही। रामलाल बोला, "अब तूने मुझे अपना खसम बना लिया है। मैं अब तुम दोनों बहिनों का खसम हूँ। आई कुछ बात समझ में?" सुनीता बोली, "ठीक है खसम जी, पर सबके आगे तो मैं आपको मौसा जी ही कहूँगी।" रामलाल ने सुनीता की योनि में उंगली घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करते हुए कहा, "चलो सबके आगे तुम्हारा मौसा ही बना रहूँगा।"
सुनीता ने रामलाल के एक हाथ से अपनी छातियाँ मसलवाते हुए कहा, "हमारा आपसे मिलन भी अनीता दीदी के सहयोग से ही हुआ है। अगर आज दीदी मुझे वह ब्लू-फिल्म नहीं दिखाती तो मैं आपके इस मोटे हथियार से अपनी योनि फड़वाने का इतना आनंद कभी नहीं ले पाती। मेरे खसम, अब तो अपना ये डंडा एक वार फिर से मेरी योनि में घुसेड़ कर उसे फाड़ डालने की कृपा कर दो। इस वार मेरी सुरंग फाड़ कर रख दोगे तो भी मैं अपने मुंह से उफ़ तक न करूंगी।" रामलाल बोला, "क्यों अपनी चूत का चित्तोड़-गढ़ बनबाना चाह रही है। मैं तो बना डालूँगा, कुछ धक्को में तेरी योनि की वो दशा कर दूंगा कि किसी को दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगी। चल हो जा तैयार .." ऐसा कहकर राम लाल ने अपने मजबूत लिंग पर हाथ फिराया। इसी बीच अनीता बोली, "क्यों जी, आज में एक बात पूछना चाहती हूँ मुझे ये समझाओ कि योनि को लोग और किस-किस नामों से पुकारते हैं?" अनीता की बात पर सुनीता और रामलाल दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े।
क्रमशः....
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अनाड़ी पति और ससुर रामलाल--4
गतान्क से आगे............. ....
रामलाल बोला, "मेरी रानी, किसी भी चढ़ती जवानी की लड़की की योनि को चूत कहते हैं। इसके दो नाम हैं - एक चूत, दूसरा नाम है इसका 'बुर' चूत सदैव बिना बालों वाली योनि को कहते हैं जबकि 'बुर' के ऊपर घने काले बाल होते हैं। अब नंबर आता है, भोसड़ी का। मेरी दोनों रानियों ध्यान से सुनना। जब औरत की योनि से एक बच्चा बाहर आ जाता है, तो उसे भोसड़ी कहते है। और जब उससे 4-5 बच्चे बाहर आ जाते हैं तो वह भोसड़ा बन जाता है।" सुनीता ने चहक कर पूछा, "और अगर किसी औरत की योनि से दस-बारह बच्चे निकल चुके हों तो वह क्या कहलाएगी?" रामलाल बोला, "ये प्रश्न तुमने अच्छा किया। ऐसी औरत की योनि को चूत या भोसड़ी का दर्ज़ा देना गलत होगा। ऐसी योनि बम-भोसड़ा कही जाने के योग्य होगी।" तीनों लोग जोरों से हंस पड़े। अनीता ने पूछा, "राजा जी, इसीप्रकार लिंगों के भी कई नाम होते होंगे?" "हाँ, होते हैं। आमतौर पर गवांरू भाषा में इसे 'लंड' कहते है। परन्तु लड़ते वक्त या गालियाँ देते वक्त लोग इसे 'लौड़ा' कहकर संबोधित करते हैं। ये सारे शब्द मुझे कतई पसंद नहीं हैं, क्योंकि मैंने बीसियों रातें तुम्हारे संग गुजारी हैं। तुम ही खुद बताओ अगर मैंने कभी इन गंदे शब्दों का प्रयोग किया हो। हाँ, मेरी जिन्दगी में कुछ ऐसी औरतें जरूर आई हैं, जो अधिक उत्तेजित अवस्था में चीखने लगती हैं ..'फाड़ डालो मेरी चूत' ...'मेरी चूत चोद-चोद कर इसका चबूतरा बना डालो' ...मेरी चूत को इतना चोदो कि इसका भोसड़ा बन जाए' बगैरा, बगैरा।
एक काम-क्रीडा होती है - गुदा-मैथुन। इसमें पुरुष, स्त्री की योनि न मार कर उसकी गुदा मारता है। मेरे अपने विचार से तो गुदा-मैथुन सबसे गन्दी, अप्राकृतिक एवं भयंकर काम-क्रीड़ा है। इससे एड्स जैसी ला-इलाज़ बीमारियाँ होने का खतरा रहता है।" अनीता ने पूछा, "राजा जी, ये चोदना कौन सी बला है। मैंने कितने ही लोगो को कहते सुना है 'तेरी माँ चोद दूंगा साले' रामलाल ने बताया कि स्त्री की योनि में लिंग डालकर धक्के मारने की क्रिया को 'चोदना' कहते हैं। मैंने तुम दोनों बहिनों के साथ सम्भोग किया है, चोदा नहीं है तुम्हें।" सुनीता बोली, "मेरे खसम महाराज, एक वार और जोरों से चोदो न मुझे," रामलाल बोला, "चलो, तुम्हारी यह इच्छा भी आज पूरी किये देता हूँ। अनीता रानी, पहले एक-एक पैग और बनाओ, हम तीनों के लिए। तीनो शराब गले से उतारने के बाद और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए। इस बार तीनों लोग एक साथ मिलकर काम-क्रीडा कर रहे थे। रामलाल के एक ओर सुनीता और दूसरी ओर अनीता लेटी और उन दोनों के बीच में रामलाल लेटे-लेटे दोनों के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था। रामलाल कभी सुनीता की योनि लेता तो कभी अनीता की चूचियों से खेलता। रात के दस बजे से लेकर सुबह के पांच बज गए। तब तक तीनों लोग शरीर की नुमाइश और काम-क्रीडा में व्यस्त रहे। इस प्रकार रामलाल ने दोनों बहिनों की रात भर बजाई।
उस रात दोनों बहिनें इतनी अधिक तृप्त हो गईं कि दूसरे दिन दस बजे तक सोती रहीं। पूरे सप्ताह रामलाल ने सुनीता को इतना छकाया था कि जिसकी याद वह जीवन भर नहीं भूल पाएगी। सुनीता तो अपने घर वापस जाना ही नहीं चाहती थी। जाते वक्त सुनीता रामलाल से एकांत में चिपट कर खूब रोई। उसका लिंग पायजामे के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली, "जानू अपने इस डंडे का ख़याल रखना। मुझे शादी के बाद भी इसकी जरूरत पड़ सकती है। क्या पता मेरा पति भी जीजू के जैसा ही निकला तो ...?" सुनीता भारी मन से, न चाहते हुए भी अपने घर चली तो गयी पर जाते-जाते रामलाल के लिए एक प्रश्न छोड़ गयी ...कि कहीं उसका पति भी जीजू जैसा ही निकला तो .....?
सुनीता दीदी के घर से आ तो गई किन्तु रातें काटे नहीं कट रहीं थीं। जब उसे रामलाल के साथ गुजारी रातों की याद सताती तो वह वासना के सागर में गोते लगाने लगती और उसके समूंचे बदन में आग की सी लपटें उठने लगतीं। आज तो उसे बिलकुल नीद नहीं आ रही थी। वह जाकर खिड़की पर खड़ी हो गयी और मझली भाभी के कमरे में झाँकने लगी। रात के करीब ग्यारह बजे का समय था। ठीक इसी समय उसके बड़े भैया विजय ने मामी के कमरे में प्रवेश किया। मझली भाभी के कमरे की हर चीज इस खिड़की से साफ़ दिखाई देती थी। उसने देखा - बड़े भैया के आते ही मझली भाभी पलंग से उठ खड़ी हुयी और वह भैया की बाहों में लिपट गयी। बड़े भैया ने उसके साथ चूमा-चाटी शुरू कर कर दी और उन्होंने भाभी को बिलकुल नंगा करके उसकी चूचियां मुंह में भर कर चूंसना शुरू कर दिया। अब वह खुद भी नंगे हो कर भाभी के नंगे बदन का जमकर मज़ा ले रहे थे। आज भैया ने भाभी के साथ कुछ अलग ही किस्म का मैथुन करना शुरू कर दिया. भाभी अपने दोनों नितम्बों को पीछे की ओर उभार कर झुकी हुई थीं और भैया अपना लिंग उनकी गुदा में डालने की कोशिश कर रहे थे। भैया का मोटा लिंग उनकी गुदा में नहीं घुस पा रहा था इसलिए भैया ने लिंग पर थोडा सा तेल लगाया और फिर अन्दर करने की कोशिश करने लगे। इस वार वह अपनी कोशिश में कामयाब हो गए क्योंकि उनका लिंग आधे से अधिक भाभी की गुदा के अन्दर घुस गया था। फिर भैया ने एक जोर का धक्का भाभी की गुदा पर लगाया। इस वार पूरा का पूरा लिंग भाभी की गुदा को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया। भाभी दर्द से चिल्लाने लगीं। भैया ने धीरज बंधाया, "कोई बात नहीं मेरी जान, पहली वार गुदा-मैथुन में ऐसे ही दर्द होता है। आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा। भाभी की गुदा का दर्द शायद कुछ कम हो गया था क्योंकि उन्होंने भी भैया की लिंग पर पीछे की ओर धक्के लगाने शुरू कर दिए थे।
यह सब देखना सुनीता की बर्दाश्त के बाहर था अत:उसने अपना एक हाथ सलवार में डालकर अपनी योनि को कुरेदना शुरू कर दिया। इसी बीच छोटे भैया आ धमके। उसे खिड़की पर आँखें टिकाये देखकर मुस्कुराते हुए बोले, "सुन्नो, दीदी के पास से आते ही तुमने फिर से भैया और मझली भाभी की ब्लू-फिल्म देखना शुरू कर दी। हट, अब मैं भी थोड़ा सा मज़ा ले लूं। सुनीता के वहां से हटते ही अजय भैया ने अपनी आँखें खिड़की पर टिका दीं। सुनीता अपने कमरे में आकर कुर्सी पर बैठ गई तभी उसकी निगाह टेबल पर रखी एक इंग्लिश मैगजीन पर पड़ी। उठाकर देखा तो ज्ञात हुआ कि वह एक सेक्सी-मगज़ीन थी। उसमे एक जगह पर सुनीता ने मास्टरबेशन, फिंगरिंग और फिस्टिंग जैसे शब्द पढ़े, जो उसकी समझ में नहीं आरहे थे। उसने मन में सोचा कि भैया से सेक्स के वारे में बात करने का इससे बढ़िया मौका उसे कभी नहीं मिलेगा। क्यों न भैया के कमरे में चल कर इन बातों का ही मज़ा लिया जाए। वह उठ कर भैया के कमरे की चल दी। अजय अपने कमरे में एक कुर्सी पर बैठा हुआ था। सुनीता दरबाजा ठेल कर अन्दर आ गई और अजय से बोली, "भैया, मुझे इन शब्दों के अर्थ नहीं समझ में आ रहे हैं, मुझे बता दो प्लीज़ ....." अजय ने देखा कि वही सेक्सी मैगज़ीन सुनीता के हाथ में थी जिसे वह स्वयं सुनीता की अनुपस्थिति में उसकी टेबल पर रख आया था जिससे कि सुनीता उसे पढ़े तो उसके अन्दर भी सेक्स की भावना प्रवल हो उठे। सेक्स की मैगज़ीन को सुनीता के हाथ में देखकर अजय मन ही मन खुश हो उठा पर ऊपर से गुस्सा दिखाते हुए उसे डाटकर बोला, "अरे ये तो सेक्सी मैगज़ीन है। कहाँ से लाई इसे? ऐसी सेक्सी किताबें पढ़ते हुए तुझे शर्म नहीं आती? मालूम है, ये सेक्सी-मैगज़ीन वालिग़ लोग पढ़ा करते हैं।" सुनीता बेझिझक होकर बोली, "भैया, मैं भी तो अब वालिग़ हो चुकी हूँ। पूरे 19 वर्ष की हो चुकी हूँ। फिर मेरी शादी भी तो होने वाली है अब।" अजय चुप हो गया और बोला, "बता, क्या पूछना चाहती है?" सुनीता ने पूछा, "भैया, ये मास्टरबेशन क्या होता है? एक ये फिंगरिंग और फिस्टिंग शब्दों का मतलब समझ में नहीं आ रहा।" अजय मुस्कुराया और बोला, "जा पहले कमरे की सिटकनी लगा कर आ ... तब मैं डिटेल में तुझे इसका मतलब समझाऊंगा।" सुनीता ने दरबाजा अन्दर से बंद कर दिया। उसके मन में लड्डू फूट रहे थे कि आज अजय उसकी जरूर लेगा। वह ख़ुशी-ख़ुशी लौटकर आई और कुर्सी खींच कर अजय के पास ही बैठ गई।
गतान्क से आगे............. ....
रामलाल बोला, "मेरी रानी, किसी भी चढ़ती जवानी की लड़की की योनि को चूत कहते हैं। इसके दो नाम हैं - एक चूत, दूसरा नाम है इसका 'बुर' चूत सदैव बिना बालों वाली योनि को कहते हैं जबकि 'बुर' के ऊपर घने काले बाल होते हैं। अब नंबर आता है, भोसड़ी का। मेरी दोनों रानियों ध्यान से सुनना। जब औरत की योनि से एक बच्चा बाहर आ जाता है, तो उसे भोसड़ी कहते है। और जब उससे 4-5 बच्चे बाहर आ जाते हैं तो वह भोसड़ा बन जाता है।" सुनीता ने चहक कर पूछा, "और अगर किसी औरत की योनि से दस-बारह बच्चे निकल चुके हों तो वह क्या कहलाएगी?" रामलाल बोला, "ये प्रश्न तुमने अच्छा किया। ऐसी औरत की योनि को चूत या भोसड़ी का दर्ज़ा देना गलत होगा। ऐसी योनि बम-भोसड़ा कही जाने के योग्य होगी।" तीनों लोग जोरों से हंस पड़े। अनीता ने पूछा, "राजा जी, इसीप्रकार लिंगों के भी कई नाम होते होंगे?" "हाँ, होते हैं। आमतौर पर गवांरू भाषा में इसे 'लंड' कहते है। परन्तु लड़ते वक्त या गालियाँ देते वक्त लोग इसे 'लौड़ा' कहकर संबोधित करते हैं। ये सारे शब्द मुझे कतई पसंद नहीं हैं, क्योंकि मैंने बीसियों रातें तुम्हारे संग गुजारी हैं। तुम ही खुद बताओ अगर मैंने कभी इन गंदे शब्दों का प्रयोग किया हो। हाँ, मेरी जिन्दगी में कुछ ऐसी औरतें जरूर आई हैं, जो अधिक उत्तेजित अवस्था में चीखने लगती हैं ..'फाड़ डालो मेरी चूत' ...'मेरी चूत चोद-चोद कर इसका चबूतरा बना डालो' ...मेरी चूत को इतना चोदो कि इसका भोसड़ा बन जाए' बगैरा, बगैरा।
एक काम-क्रीडा होती है - गुदा-मैथुन। इसमें पुरुष, स्त्री की योनि न मार कर उसकी गुदा मारता है। मेरे अपने विचार से तो गुदा-मैथुन सबसे गन्दी, अप्राकृतिक एवं भयंकर काम-क्रीड़ा है। इससे एड्स जैसी ला-इलाज़ बीमारियाँ होने का खतरा रहता है।" अनीता ने पूछा, "राजा जी, ये चोदना कौन सी बला है। मैंने कितने ही लोगो को कहते सुना है 'तेरी माँ चोद दूंगा साले' रामलाल ने बताया कि स्त्री की योनि में लिंग डालकर धक्के मारने की क्रिया को 'चोदना' कहते हैं। मैंने तुम दोनों बहिनों के साथ सम्भोग किया है, चोदा नहीं है तुम्हें।" सुनीता बोली, "मेरे खसम महाराज, एक वार और जोरों से चोदो न मुझे," रामलाल बोला, "चलो, तुम्हारी यह इच्छा भी आज पूरी किये देता हूँ। अनीता रानी, पहले एक-एक पैग और बनाओ, हम तीनों के लिए। तीनो शराब गले से उतारने के बाद और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए। इस बार तीनों लोग एक साथ मिलकर काम-क्रीडा कर रहे थे। रामलाल के एक ओर सुनीता और दूसरी ओर अनीता लेटी और उन दोनों के बीच में रामलाल लेटे-लेटे दोनों के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था। रामलाल कभी सुनीता की योनि लेता तो कभी अनीता की चूचियों से खेलता। रात के दस बजे से लेकर सुबह के पांच बज गए। तब तक तीनों लोग शरीर की नुमाइश और काम-क्रीडा में व्यस्त रहे। इस प्रकार रामलाल ने दोनों बहिनों की रात भर बजाई।
उस रात दोनों बहिनें इतनी अधिक तृप्त हो गईं कि दूसरे दिन दस बजे तक सोती रहीं। पूरे सप्ताह रामलाल ने सुनीता को इतना छकाया था कि जिसकी याद वह जीवन भर नहीं भूल पाएगी। सुनीता तो अपने घर वापस जाना ही नहीं चाहती थी। जाते वक्त सुनीता रामलाल से एकांत में चिपट कर खूब रोई। उसका लिंग पायजामे के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली, "जानू अपने इस डंडे का ख़याल रखना। मुझे शादी के बाद भी इसकी जरूरत पड़ सकती है। क्या पता मेरा पति भी जीजू के जैसा ही निकला तो ...?" सुनीता भारी मन से, न चाहते हुए भी अपने घर चली तो गयी पर जाते-जाते रामलाल के लिए एक प्रश्न छोड़ गयी ...कि कहीं उसका पति भी जीजू जैसा ही निकला तो .....?
सुनीता दीदी के घर से आ तो गई किन्तु रातें काटे नहीं कट रहीं थीं। जब उसे रामलाल के साथ गुजारी रातों की याद सताती तो वह वासना के सागर में गोते लगाने लगती और उसके समूंचे बदन में आग की सी लपटें उठने लगतीं। आज तो उसे बिलकुल नीद नहीं आ रही थी। वह जाकर खिड़की पर खड़ी हो गयी और मझली भाभी के कमरे में झाँकने लगी। रात के करीब ग्यारह बजे का समय था। ठीक इसी समय उसके बड़े भैया विजय ने मामी के कमरे में प्रवेश किया। मझली भाभी के कमरे की हर चीज इस खिड़की से साफ़ दिखाई देती थी। उसने देखा - बड़े भैया के आते ही मझली भाभी पलंग से उठ खड़ी हुयी और वह भैया की बाहों में लिपट गयी। बड़े भैया ने उसके साथ चूमा-चाटी शुरू कर कर दी और उन्होंने भाभी को बिलकुल नंगा करके उसकी चूचियां मुंह में भर कर चूंसना शुरू कर दिया। अब वह खुद भी नंगे हो कर भाभी के नंगे बदन का जमकर मज़ा ले रहे थे। आज भैया ने भाभी के साथ कुछ अलग ही किस्म का मैथुन करना शुरू कर दिया. भाभी अपने दोनों नितम्बों को पीछे की ओर उभार कर झुकी हुई थीं और भैया अपना लिंग उनकी गुदा में डालने की कोशिश कर रहे थे। भैया का मोटा लिंग उनकी गुदा में नहीं घुस पा रहा था इसलिए भैया ने लिंग पर थोडा सा तेल लगाया और फिर अन्दर करने की कोशिश करने लगे। इस वार वह अपनी कोशिश में कामयाब हो गए क्योंकि उनका लिंग आधे से अधिक भाभी की गुदा के अन्दर घुस गया था। फिर भैया ने एक जोर का धक्का भाभी की गुदा पर लगाया। इस वार पूरा का पूरा लिंग भाभी की गुदा को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया। भाभी दर्द से चिल्लाने लगीं। भैया ने धीरज बंधाया, "कोई बात नहीं मेरी जान, पहली वार गुदा-मैथुन में ऐसे ही दर्द होता है। आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा। भाभी की गुदा का दर्द शायद कुछ कम हो गया था क्योंकि उन्होंने भी भैया की लिंग पर पीछे की ओर धक्के लगाने शुरू कर दिए थे।
यह सब देखना सुनीता की बर्दाश्त के बाहर था अत:उसने अपना एक हाथ सलवार में डालकर अपनी योनि को कुरेदना शुरू कर दिया। इसी बीच छोटे भैया आ धमके। उसे खिड़की पर आँखें टिकाये देखकर मुस्कुराते हुए बोले, "सुन्नो, दीदी के पास से आते ही तुमने फिर से भैया और मझली भाभी की ब्लू-फिल्म देखना शुरू कर दी। हट, अब मैं भी थोड़ा सा मज़ा ले लूं। सुनीता के वहां से हटते ही अजय भैया ने अपनी आँखें खिड़की पर टिका दीं। सुनीता अपने कमरे में आकर कुर्सी पर बैठ गई तभी उसकी निगाह टेबल पर रखी एक इंग्लिश मैगजीन पर पड़ी। उठाकर देखा तो ज्ञात हुआ कि वह एक सेक्सी-मगज़ीन थी। उसमे एक जगह पर सुनीता ने मास्टरबेशन, फिंगरिंग और फिस्टिंग जैसे शब्द पढ़े, जो उसकी समझ में नहीं आरहे थे। उसने मन में सोचा कि भैया से सेक्स के वारे में बात करने का इससे बढ़िया मौका उसे कभी नहीं मिलेगा। क्यों न भैया के कमरे में चल कर इन बातों का ही मज़ा लिया जाए। वह उठ कर भैया के कमरे की चल दी। अजय अपने कमरे में एक कुर्सी पर बैठा हुआ था। सुनीता दरबाजा ठेल कर अन्दर आ गई और अजय से बोली, "भैया, मुझे इन शब्दों के अर्थ नहीं समझ में आ रहे हैं, मुझे बता दो प्लीज़ ....." अजय ने देखा कि वही सेक्सी मैगज़ीन सुनीता के हाथ में थी जिसे वह स्वयं सुनीता की अनुपस्थिति में उसकी टेबल पर रख आया था जिससे कि सुनीता उसे पढ़े तो उसके अन्दर भी सेक्स की भावना प्रवल हो उठे। सेक्स की मैगज़ीन को सुनीता के हाथ में देखकर अजय मन ही मन खुश हो उठा पर ऊपर से गुस्सा दिखाते हुए उसे डाटकर बोला, "अरे ये तो सेक्सी मैगज़ीन है। कहाँ से लाई इसे? ऐसी सेक्सी किताबें पढ़ते हुए तुझे शर्म नहीं आती? मालूम है, ये सेक्सी-मैगज़ीन वालिग़ लोग पढ़ा करते हैं।" सुनीता बेझिझक होकर बोली, "भैया, मैं भी तो अब वालिग़ हो चुकी हूँ। पूरे 19 वर्ष की हो चुकी हूँ। फिर मेरी शादी भी तो होने वाली है अब।" अजय चुप हो गया और बोला, "बता, क्या पूछना चाहती है?" सुनीता ने पूछा, "भैया, ये मास्टरबेशन क्या होता है? एक ये फिंगरिंग और फिस्टिंग शब्दों का मतलब समझ में नहीं आ रहा।" अजय मुस्कुराया और बोला, "जा पहले कमरे की सिटकनी लगा कर आ ... तब मैं डिटेल में तुझे इसका मतलब समझाऊंगा।" सुनीता ने दरबाजा अन्दर से बंद कर दिया। उसके मन में लड्डू फूट रहे थे कि आज अजय उसकी जरूर लेगा। वह ख़ुशी-ख़ुशी लौटकर आई और कुर्सी खींच कर अजय के पास ही बैठ गई।