रेल यात्रा compleet
Re: रेल यात्रा
शीतल उसकी खरी खरी सुनकर अन्दर तक काँप गयी। आगे कुछ बोलने का साहस उसमें
नहीं था। उसने अपनी आँखों पर हाथ रख लिया और सुबकने लगी! !
लड़कियों की यही अदा तो मार देती है।
"सॉरी! " राजपूत ने कहा!
वो और जोर से रोने लगी।
ये सब नाटक देखकर आशीष इतना तो समझ गया था की लड़की अकेली है!
आशीष उस लड़की को देखने की खातिर राजपूत के पास जा पहुंचा- "हेल्लो
फ्रेंड, मेरा नाम आशीष है। आपका नाम तो सुन ही चूका हूँ।"
राजपूत ने पीछे हटकर जगह दी- "यार ये लड़कियों के नखरे अजीब होते हैं।
अभी खुद बीच में कूदी थी और मैं बोला तो रोने लगी। कोई समझाओ यार इसको।
"मैंने कहा सॉरी शीतल जी!" उसने कहकर शीतल के माथे पर रखा हुआ हाथ पकड़ लिया।
"ए डोंट टच मी!" शीतल ने अपना हाथ झटक दिया।
राजपूत का पारा फिर से गरम हो गया- "अब देख लो! पहले तो इसके कपड़े देखो।
कुछ भी छुप रहा है।? फिर कहती हैं। रेप हो गया!"
राजपूत की इस बात पर आशीष ने मुश्किल से अपनी हंसी रोकी। आशीष ने शीतल को
देखा। उसने घुटनों से भी ऊपर का स्कर्ट डाला हुआ था। जो उसके सीधे लेट कर
घुटने मोड़ने की वजह से और भी नीचे गिरा हुआ था। उसकी मांसल जांघे साफ़
दिखाई दे रही थी। राजपूत के ड्रेस पर कमेन्ट करने के बाद उसने अपनी
टांगों को सीधा कर लिया था। पर उसकी गहरे कटाव वाली चोली में उसकी
मोटी-मोटी चूचियां और उनके बीच की घाटी काफी अन्दर तक दिखाई दे रही थी।
अब भी। बस यूँ समझ लीजिये एक इंच की दूरी पर निप्पल भी ताने खड़े थे।
"छोडो यार!" आशीष ने बात को टालने की कोशिश करते हुए कहा।
"अरे भाई! मैंने इसका अभी तक पकड़ा ही क्या है। हाथ छोड़ कर। सोचा था लड़की
साथ वाली सीट पर होने से रात अच्छी गुजरेगी। पर इसकी माँ की चूत, सारा
मूड़ ही ख़राब हो गया!"
ऐसी गाली सुनकर भी वह कुछ न बोली। क्या पता अपनी गलती का अहसास हो गया हो!
"और सुनाओ दोस्त!" आशीष ने राजपूत से कहा!
"क्या सुनाऊं यार? अपने को तो ऑफिस से टाइम ही नहीं मिलता। मुम्बई जा रहा
हूँ किसी काम से। टाइम तो नहीं था पर दीपक के बुलाने पर आना ही पड़ा।"-
कुछ देर रूककर बोला- "दीपक मेरे दोस्त का नाम है।"
आशीष ने सोचा यूँ तो ये रात यूँ ही निकल जाएगी- "अच्छा भाई राजपूत! गुडनाइट!"
"काहे की गुड नाइट यार! इतना गरम माल साथ है। नींद क्या ख़ाक आएगी!"
राजपूत ने शीतल को सुना कर कहा।
आशीष वापस आ गया। कविता उसी का इंतजार कर रही थी। बैठी हुई!
आशीष ने देखा बूढ़ा लेटा हुआ था आँखे बंद किये! उसने कविता को अपने पास
आने का इशारा किया। वो तो जैसे इंतज़ार ही कर रही थी। उठकर पास आकर बैठ
गयी। रानी भी सोने लगी थी। तब तक!
आशीष ने अपने बैग से चादर निकली और दोनों के पैरों पर डाल ली। कविता ने
देर न करते हुए अपना हाथ पैंट की जिप पर पहुंचा दिया और जिप को नीचे खीच
लिया!
Re: रेल यात्रा
आशीष की पैंट में हाथ डालकर कच्छे के ऊपर से ही उसको सहलाने लगी। आशीष का
ध्यान उसी लड़की पर था। उसके लंड ने अंगडाई ली और तैयार हो गया।
आशीष का कच्छा उसके आनंद में बांधा लगने लगा। वह उठा और बाथरूम जाकर
कच्छा निकला और पैंट की जीप में रखकर वापस आ गया।
चैन पहले से ही खुली थी। कविता ने पैंट से हथियार निकल लिया। और उस खड़े
लंड को ऊपर नीचे करने लगी।
तभी शीतल ने करवट बदल ली और कविता को आशीष के साथ कम्बल में बैठे देख कर
चौंक सी गयी। कविता किसी भी हाल में आशीष की पत्नी तो लगती नहीं थी।
उसने आँखें बंद कर ली। पर आशीष और कविता को कोई परवाह नहीं थी। जब मियां
बीवी राज़ी तो क्या करेगा काजी। हाँ बार बार वो नीचे देखने का नाटक जरूर
कर रही थी। कहीं बापू जाग न जाये।
आशीष ने अपना हाथ उसकी जाँघों के बीच रखा और उसकी सलवार और पैंटी के ऊपर
से ही करीब एक इंच उंगली उसकी चूत में घुसा दी। कविता 'आह ' कर बैठी।
शीतल ने आँखें खोल कर देखा और फिर से बंद कर ली।
कविता ने अपनी सलवार का नाडा खोलकर उसको नीचे सरका दिया और आशीष का हाथ
पकड़ कर अपनी पैंटी की साइड में से अन्दर डाल दिया।
आशीष को शीतल का बार बार आँखें खोल कर देखना और बंद कर लेना। कुछ
सकरात्मक लग रहा था की बात बन सकती है।
उसने कविता की चूत में हाथ डाल कर जोर-जोर से अन्दर बाहर करनी शुरू कर
दी। कविता सिसकने लगी और उसकी सिसकियाँ बढती गयी।
शीतल की बेचैनी बढती गयी। उसके चेहरे पर रखे हाथ नीचे चले गए। शायद उसकी चूत पर!
आशीष ने उसको थोड़ा और तड़पाने की सोची। उसने कविता का सिर पकड़ा और चादर के
अन्दर अपने लंड पर झुका दिया।
अब चादर के ऊपर से बार-बार कविता का सर ऊपर नीचे हो रहा था। शीतल की हालत
नाजुक होती जा रही थी।
शीतल के बारे में सोच-सोच कर आशीष इतना गरम हो गया था की 5 मिनट में ही
उसने कविता का मुंह अपने लंड के रस से भर दिया। ऐसा करते हुए उसने कविता
का सर जोर से नीचे दबाया हुआ था और 'आहें ' भर रहा था।
शीतल आँखें खोल कर ये सीन देख रही थी। पर आशीष ने जैसे ही उसकी और देखा।
उसने मुंह फेर लिया।
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Re: रेल यात्रा
शीतल का खून गरम होता जा रहा था। आशीष ने उसके खून को उबालने की सोची। वो
नीचे उतरा और रानी को उठा दिया। रानी सच में सो चुकी थी।!
रानी- क्या है?
आशीष- ऊपर आ जाओ!
रानी- नहीं प्लीज। दर्द हो रहा है अभी भी।
आशीष- तुम ऊपर आओ तो सही, कुछ नहीं करूँगा।
और वो रानी को भी ऊपर उठा लाया और कविता के दूसरी और बिठा लिया। यहाँ से
शीतल को रानी कविता से भी अधिक दिखाई दे सकती थी।
आशीष ने रानी से चादर ओढ़ कर अपनी सलवार उतारने को कहा। रानी ने मना किया
पर बार-बार कहने पर उसने सलवार निकल दी। अब रानी नीचे से नंगी थी!
शीतल ने पलट कर जब रानी को चादर में बैठे देखा तो उसका रहा सहा शक भी दूर
हो गया। पहले वह यही सोच रही थी की क्या पता कविता उसकी बहू ही हो!
उसने फिर से उनकी तरफ करवट ले ली। आशीष ने उस पर ध्यान न देकर धीरे धीरे
चादर को रानी की टांगों पर से उठाना शुरू कर दिया। रानी की टाँगे शीतल के
सामने आती जा रही थी और वो अपनी सांस भूलती जा रही थी।
जब शीतल ने रानी की चूत तक को भी नंगा आशीष के हाथो के पास देखा तो उसमें
तो जैसे धुआं ही उठ गया। उसने देखा आशीष उसके सामने ही रानी की चूत को
सहला रहा है। तो उसको लगा जैसे वो रानी की नहीं उसकी चूत को सहला रहा है।
अपने हाथों से!
अब शीतल से न रहा गया। उसने आशीष को रिझाने की सोची। उसने मुंह दूसरी तरफ
कर लिया और अपने पैर आशीष के सामने कर दिए। अनजान बनने का नाटक करते हुए
उसने अपने घुटनों को मोड़ लिया। उसका स्किर्ट घुटनों पर आ गई। धीरे-धीरे
उसका स्कर्ट नीचे जाता गया और उसकी लाल मस्त जांघें नंगी होती गयी।
अब तड़पने की बारी आशीष की थी। उसके हाथ रानी की चूत पर तेज़ चलने लगे।
और उसकी आँखें जैसे शीतल के पास जाने लगी। उसकी जांघों में। स्कर्ट पूरा
नीचे हो गया था। फिर भी जांघ बीच में होने की वजह से वो उसकी चूत का
साइज़ नहीं माप पा रहा था। उसने ताव में आकर रानी को ही अपना शिकार बना
लिया। वैसे शिकार कहना गलत होगा क्यूंकि रानी भी गरम हो चुकी थी!
आशीष ने रानी को नीचे लिटाया और उसकी टाँगे उठा कर अपना लंड उसकी चूत में
घुसा दिया। रानी ने आशीष को जोर से पकड़ लिया। तभी अचानक ही गुसलखाने जाने
के लिए एक औरत वहां से गुजरने लगी तो रेल में ये सब होते देखकर वापस ही
भाग गयी, हे राम कहती हुई।
उधर कोई और भी था जो शीतल और आशीष के बीच एक दूसरे को जलाने की इस जंग का
फायदा उठा रहा था! राजपूत!