रेल यात्रा compleet

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raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:43



आशीष भले ही शीतल की जाँघों की वजह से उसकी मछली का आकर न देख पानरहा हो,
पर राजपूत तो उसके सामने लेटा था। बिलकुल उसकी टांगों की सीध में। वो तो
एक बार शीतल की जांघें और उनके बीच में पैंटी के नीचे छिपी बैठी चिकनी
मोटी चूत को देखकर हाथों से ही अपने लंड को दुलार-पुचकार और हिला-हिला कर
चुप करा चुका था। पर लंड तो जैसे अकड़ा बैठा था की चूत में घुसे बगैर
सोऊंगा ही नहीं, खड़ा ही रहूँगा। जब राजपूत ने शीतल को अपनी पैंटी में
अपना हाथ घुसाते देखा तो उसका ये कण्ट्रोल जवाब दे गया। वह आगे सरका और
शीतल की टांग पकड़ ली। उसका लंड उसके हाथ में ही था।
शीतल के पैर पर मर्द का गरम हाथ लगते ही वो उचक कर बैठ गयी। उसने देखा।
राजपूत उसकी जाँघों के बीच गीली हो चुकी पैंटी को देख रहा है। शीतल ने
घबराकर अपना हाथ बहार निकल लिया!
उसकी नजर आशीष पर पड़ी। वो उस वक़्त रानी की टाँगे उठा रहा था उसमें लंड
घुसाने के लिए।
चारों ओर लंड ही लंड। चारों ओर वासना ही वासना। शीतल का धैर्य जवाब दे
गया। उसने तिरछी नजर से एक बार राजपूत की ओर देखा और सीट से उतर कर
गुसलखाने की ओर चली गई।
राजपूत कच्चा खिलाडी नहीं था। वो उन तिरछी नजरों का मतलब जानता था। वह
उतरा और उसके पीछे-पीछे सरक लिया।

उधर रानी में डूबे आशीष को पता ही न चला की कब दो जवान पंछी उड़ गए। मिलन
के लिए। नहीं तो वह रानी को अधूरा ही छोड़ देता!

राजपूत ने जाकर देखा, शीतल गुसल के बहार खड़ी जैसे उसका ही इन्तजार कर
रही थी। राजपूत के उसको टोकने से पहले ही शीतल ने नखरे दिखाने शुरू कर
दिए- "क्या है?"

राजपूत- "क्या है क्या! मूतने आया हूँ।" उसने जानबूझ कर अशलील भाषा का
प्रयोग किया। वह बरमूडे (उसने पैंट नहीं पहन रखी थी ) के ऊपर से अपने तने
हुए लंड पर खुजाते हुए कहा।
शीतल- मेरे पीछे क्यूँ आये हो!

राजपूत- तेरी गांड मारने साली। मैं क्या तेरी पूँछ हूँ जो तेरे पीछे आया
हूँ। तू ही मेरे आगे आ गयी बस!

शीतल- तो कर लो जो करना है। जल्दी। मैं बाद में जाउंगी।
राजपूत- सच में कर लूं क्या?
शीतल- "अरे वो मू....पेशाब करो और चलते बनो।" उसकी आवाज मारे कामुकता के
बहक रही थी पर उसकी अकड़ कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

राजपूत में भी स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ था। उसने शीतल के आगे बाहर
ही अपना लंड निकाल लिया और हिलाता हुआ अन्दर घुस गया।
शीतल की आँखें कभी शर्म के मारे नीचे और कभी उत्तेजना के मारे उसके मोटे
लंड को देख रही थी।

राजपूत मूत कर बाहर आ गया और बाहर आकर ही उसने अपना लंड अन्दर किया।-
"जाओ जल्दी अन्दर...तुम्हारा निकलने वाला होगा।
शीतल- पहले तुम यहाँ से फूट लो। मैं अपने आप चली जाउंगी।
राजपूत- नहीं जाता। बोल क्या कर लेगी।
शीतल- तो मैं भी नहीं जाती। तुम क्या कर लोगे?

raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:44



स्वाभिमान दोनों में कूट-कूट कर भरा हुआ था। कोई भी अपनी जिद छोड़ना नहीं
चाहता था। पर दोनों एक ही चीज चाहते थे। प्यार! पर उनकी तो तब तक बहस ही
चल रही थी जब आशीष के लंड ने आखरी सांस ली। रानी की चूत में। कुछ देर वो
यूँ ही रानी पर पड़ा रहा!
उधर युद्ध की कगार पर खड़े शीतल और राजपूत की बहस जारी थी। राजपूत ने अपना
लंड निकाल कर बाहर कर लिया।- "लो मैं तो यहाँ ऐसे खड़ा रहूँगा।

शीतल- शर्म नहीं आती!
राजपूत- जब तेरे को ही नहीं आती तो मेरे को क्या आएगी। मुझे तो रोज ही
देखना पड़ता है।

शीतल जब तुझे नहीं आती तो मुझे भी नहीं आती। निकाल के रख अपना। मुझे क्या
है। शीतल के दिल में था की उसको पकड़ कर अपनी चूत में घुसा ले। पर क्या
करें अकड़ ही इतनी थी- "जा चला जा यहाँ से!
राजपूत- नहीं जाता, बोल क्या कर लेगी।

शीतल से रहा न गया- "तो मैं भी निकाल दूंगी। देख ले "

और अंधे को क्या चाहिए। दो आँखें! राजपूत को लगा कहीं नरम होने से काम
बिगड़ न जाये- "तेरी इतनी हिम्मत तू मेरे आगे अपने कपडे निकालेगी!

शीतल- मेरे कपडे, मेरा शरीर, मैं तो निकालूंगी! "

राजपूत- तू निकाल के तो देख एक बार!

शीतल ने तुरंत अपनी स्किर्ट नीचे खींच कर पैरों में डाल दी। क्या खूबसूरत
माल थी। शीतल! चूत के नीचे से उसकी जांघें एक दूसरी को छु रही थी। बला की
खूबसूरत उसकी जाँघों के बीच उसकी योनी का आकर पैंटी के ऊपर से ही दिखाई
पड़ रही था। पैंटी नीचे से गीली हो रखी थी और उसकी दोनों फांक अलग-अलग
दिखाई दे रही थी!

राजपूत की आवाज कांप गयी- "पप...पैंटी न...निकाल के दिखा तू!"

और शीतल ने मारे गुस्से के पैंटी भी निकाल दी। भगवान ऐसे झगड़ने वाली
लड़की से रेल में सबको मिलवाए।

राजपूत ने देखा। उसकी चूत एकदम चिकनी और रस से सनी हुयी थी। उसकी चूत के
दोनों पत्ते उसकी फांको में से थोडा-थोडा झांक रहे थे। राजपूत का हाथ
अपने आप ही उसकी चूत की तरफ जाने लगा। वो झगडा ख़त्म करना चाहता था। वो
हार मानने को भी तैयार था। पर शीतल ने उसकी चूत की तरफ बढ़ते हाथ को पकड़
लिया- "क्या है!"

राजपूत की आवाज मेमने जैसी हो गयी- "मैं तो बस छूकर देख रहा था। "

बहुत हो चुका था। शीतल ने अपने हाथ में पकडे उसके हाथ को एकदम जैसे अपनी
चूत में फंसा लिया। राजपूत घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चूत के होंठों
पर अपने होंठ लगा कर उसकी चूत के फैले पत्तो को बाहर खींचने लगा। शीतल की
चूत कितनी देर से अपने आपको रोके बैठी थी। अब उससे न रहा गया और वो बरस
पड़ी।- "आआआ। माआअ। रीईईई। मर गयीइईईई रे!"

raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:45



राजपूत ने उसके चेहरे की और देखा। वो तो खेल शुरू करने से पहले ही आउट हो
गयी। टाइम आउट। उसने अपना स्कर्ट उठाया पहनने के लिए। राजपूत ने स्कर्ट
उससे पहले ही उठा लिया।

शीतल- क्या है।?

राजपूत का पारा फिर गरम होने लगा- "क्या है क्या? गेम पूरा करना है "

पर जैसे शीतल के दिमाग की गर्मी उसकी चूत के ठंडे होते ही निकल गई-
"प्लीज मुझे जाने दो। मेरी स्कर्ट और पैंटी दे दो "

राजपूत- वाह भाई वाह। तू तो बहुत सयानी है। अपना काम निकाल कर जा रही है।
मैं तुझे ऐसे नहीं छोडूंगा "

शीतल समझौते के मूड में थी- "तो कैसे छोड़ोगे?"
राजपूत- छोडूंगा नहीं चोदुंगा!

शीतल- प्लीज एक बार स्कर्ट दे दो। ठोड़ी देर में कर लेना!

राजपूत- नहीं नहीं। चल ठीक है। तू अपना टॉप उतर कर अपनी चूचियां दिखा दे।
फिर जाने दूंगा।!

शीतल- प्रामिस!

राजपूत- अरे ये संजय राजपूत की जुबान है।! राजपूत कुछ भी कर सकता है,
अपनी जुबान से नहीं फिर सकता। समझी!

शीतल ने अपना टॉप और समीज ऊपर उठा दिए- "लो देख लो!"

राजपूत उसके चिकने पत्ते और उसकी कटोरी जैसी सफ़ेद चूचियीं को देखता रह
गया। शीतल ने अपना टॉप नीचे कर दिया।

राजपूत को ऐसा लगा जैसे ब्लू फिल्म देखते हुए जब निकलने वाला हो तो लाइट
चली जाये- "ये क्या है।! बात तो निकालने की हुई थी!"

शीतल- प्लीस जाने दो न, मुझे नींद आ रही है!

राजपूत- अच्छा साली! मेरी नींद उड़ा कर तू सोने जाएगी!

शीतल ने टॉप और समीज पूरा उतार दिया और मादरजात नंगी हो गयी। जैसे आई थी
इस दुनिया में!

राजपूत तो इस माल को देखते ही बावला सा हो गया। शीतल को उलट पलट कर देखा।
कोई कमी नहीं थी, गांड चुचियों से बढ़कर और चूचियां गांड से बढ़कर!

"अब दे दो मेरा स्कर्ट!" शीतल ने राजपूत से कहा।

राजपूत ने उल्टा उससे टॉप भी छीन लिया।

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