ठाकुर की हवेली compleet

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raj..
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ठाकुर की हवेली compleet

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 22:34

ठाकुर की हवेली

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर आपके सामने हाजिर हूँ तो कहानी का मज़ा लीजिए

धाम धाम ढोल बाज रहे थे जिन्हे 7-8 लोग बजा रहे थे और उनके पीछे दो तगड़े ग्रामीण एक मरे हुए बाघ को एक मोटी लकड़ी से बँधे ढोते चले आ रहे थे. उनके पीछे एक बहोत ही रॉबिला व्यक्ति घोड़े पर सवार था. उसके कंधे से बंदूक झूल रही थी जैसे उसीने उस बाघ को मारा हो.

18 वर्ष का रणबीर उस रोबीले व्यक्ति के पीछे चल रहा था. ठाकुर जब भी शिकार के लिए निकलता था उसे कुछ आदमियों की ज़रूरत पड़ती थी जिनका बंदोबस्त ठाकुर के मुलाज़िम ही गाँव के बेकार बैठे नवयुवकों को पकड़ कर दिया करते थे. ऐसा ही एक युवक रणबीर था.

"देखो... मालिक ठाकुर सॉह्ब ने आज एक शेर को मार गिराया." एक साधारण सा दीखने वाले किसान ने दूसरे किसान से कहा."

ये कारवाँ ठीक गाँव के चौपाल मे आकर रुक गया और वृढ ठाकुर अपने घोड़े से नीचे उत्तर आया.

"गाओं वासियों आज हम बहोत खुश है की इस नौजवान की वजह से हुमने ये शेर मार गिराया." वृढ ठाकुर ने रणबीर की तरफ देखते हुए अपनी रॉबिली आवाज़ मे कहा.

"कौन है इस इस नौव्जवान के मा-बाप" ठाकुर की रोबिली आवाज़ एक बार फिर चौपाल मे गूँज उठी.

तभी एक ग़रीब आदमी भीढ़ से निकल कर ठाकुर के सामने आकर खड़ा हो गया.

"बाबा....." उस आदमी को देख रणबीर के मुँह से अपने आप निकल पड़ा.

"ये मेरे बाबा है मालिक." रणबीर ने ठाकुर की और मुड़ते हुए कहा.

"तुम्हारा लड़का तो बहोत बहादुर है... अकेले ही इस शेर से भीड़ गया और इसने हमारी जान बचा ली. रणबीर की ज़रूरत हवेली मे है. हमे रणबीर की ज़रूरत है और आज हम तुमसे तुम्हारा बेटा अपने साथ ले जाने आए है..... क्या तुम हमे अपना बेटा दोगे?" ठाकुर ने कहा.

"आप ही का बच्चा है हज़ूर, अगर हवेली मे रहेगा तो कुछ सीखेगा नही तो यहाँ आवारा लड़कों के साथ रहेगा तो बिगड़ जाएगा."

"तो ठीक है... आज से रणबीर हवेली मे काम करेगा हमारे साथ." कहकर ठाकुर ने रणबीर के कंधों पर हाथ रखा और साथ चलने का इशारा किया.

"बाबा... हम जाएँ?" रणबीर ने अपने बाप के लगभग पैरों मे गिरते हुए पूछा.

"जा बेटा... ठाकुर साहेब की खूब सेवा करना और खूब मन लगाकर काम करना और जब भी बाबा की याद आए तो मेरे पास आ जाना, पास ही तो है हमारा गाओं. " उस वृढ ने रणबीर को सीने से से लगा लिया और उसके माथे को चूम कर उसे विदा किया.

ठाकुर का कारवाँ गाँव के चौपाल से चल कर एक विशाल हवेली के सामने जाकर रुक गया. रणबीर उस हवेली को निहारे जा रहा था. ठाकुर घोरे से नीचे उतरा और रणबीर को हवेली के अंदर ले गया. हवेली भीतर से बहोत ही शानदार थी और ऐशो आराम के तमाम खूबसूरतियों से साजी हुई थी.

"आओ हमे तुमसे कुछ कहना है," ये कहते हुए ठाकुर ने अपनी दराज़ से एक बहोत ही सुन्दर खंजर निकाला.

"ये लो तुम्हारी बहादुरी का इनाम."

रणबीर कुछ हिचकिचाया तो ठाकुर ने बड़े स्नेह से कहा, "रख लो.... ये तुम्हारी बहादुरी की पहचान है. बहुत सुंदर है ना...?"

"हां ठाकुर सॉह्ब.... बहोत सुंदर है." रणबीर ऐसा तोहफा पाकर बहोत खुश था.

"तो ठीक है आज से तुम हमारे ख़ास आदमी हुए... हमारी रक्षा करना और जो हमसे गद्दारी करे या फिर हमारा सामना करने की जुर्रत करे ये खंजर उसके सीने मे उतार देना."

"जी ठाकुर सहाएब." रणबीर ने झुकते हुए कहा.

ठाकुर बहोत खुश था की उसे एक ईमानदार और बहादुर नौवकर मिल गया है जो जीवन भर उसकी चाकरी करेगा.

"भानु... इधर आओ." ठाकुर ने पास ही खड़े एक मुलाज़िम को आवाज़ डी.

"जी मालिक." भानु ठाकुर के सामने आया और लगभग ठाकुर के कदमों को देखता दोहरा हो गया.

"आज से ये तुम लोगों के साथ पीछे वाले मकान मे रहेगा.... इसका ख़याल रखना... समझे? यह थक गया होगा, इसके खाने पीने का और आराम का बंदोबस्त करदो." ठाकुर ने कहा.

"जी मालिक." ये कहते हुए भानु रणबीर को अपने साथ ले हवेली से निकल पड़ा.

भानु रणबीर को लेकर अपने घर पहुँचा. यहाँ भानु अपने विधुर पिता रामानंद, अपनी चाची मालती को करीब 35 साल के थी और अपनी 17 साल की जवान बीवी सूमी के साथ रह रहा था.

भानु और सूमी दोनो ही अभी किशोरे अवस्था मे थे पर गाओं मे शादियाँ जल्दी हो जाती थी. भानु ने रणबीर का परिचय अपने घर के सदस्यों से करवाया. बातों बातों मे रणबीर को पता चला की मालती ने अपने पति को छोड़ दिया है और उसके बाद वो अपने जेठ के घर मे ही रह रही है.

raj..
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Re: ठाकुर की हवेली

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 22:35

भानु की शादी भी एक साल पहले ही हुई थी और उसने बहोत जोश के साथ अपनी बीवी का परिचय करवाया, लेकिन भानु एक बात पर ध्यान नही दे पाया उसकी चाची भी इस मस्त लौडे मे पूरी दिलचस्पी ले रही है.

सूमी भी रणबीर से काफ़ी प्रभावित दीख रही थी, जबसे उसने सुना था की वह निहत्था ही शेर के सामने कूद पड़ा था और शेर को काबू मे कर उसेन ठाकुर के जान बचा ली थी. दूसरा उसका पति गान्डू क्सिम का मर्द था जो अक्सर उसकी गांद मारता रहता था.

भानु जो पक्का लौडे बाज था रह रह कर रणबीर के गथिले शरीर को देखे जा रहा था . वह सोच रहा था की कैसे इस नौजवान लौडे के लंड और गांद का मज़ा लूटा जाए.

तभी भानु रणबीर को ले नदी की तरफ चल पड़ा. मालती भी कांख मे एक घड़ा दबाए उनके पीछे चल डी. नदी पर पहुँच कर रणबीर ने अपना कुर्ता उतार दिया और केवल एक लोंगोट मे नदी मे स्नान के लिए उत्तर पड़ा. रणबीर का बालों भरा सीना और गथिला बदन देख मालती कसक पड़ी. उसकी कई दीनो से प्यासी चूत मे टीस उठने लगी पर क्या करती बेचारी अपने शादी शुदा भतीजे के सामने नंगी तो नही हो सकती थी. उधर भानु का भी लंड रणबीर के पुत्थे और लंगोट मे लंड का उभार देख मचल उठा था.

रणबीर काम के स्वाद से अंजान नही था. गाओं के आस पास के मिलन सार माहॉल मे वह कुछ रिश्ते की भाबियों को चोद चुका था. जब से उसने सूमी को देखा वो अपने भाग्या पर फूले नही समा रहा था. वो ये बात अछी तरह से जानता था की ये केवल समय की बात है, उसे जल्दी ही सूमी और मालती की चूत मिलने वाली है.

उसे अपने लंड पर बड़ा नाज़ था, वो अछी तरह जनता था की गाओं की जवान लड़कियाँ की बात तो छोड़िए गाओं की अधेड़ औरतें भी उसे देख कर आहें भरा करती है, जो एक बार उससे चुद जाती थी वो उसी की होकर रह जाती थी.

रणबीर ने रात का खाना रामानंद के साथ किया. खाना खिलाते समय मालती उसे बहोत ही आग्रह के साथ परोस रही थी. रणबीर का खाना ज़रूरत से ज़्यादा हो गया. घर मे और कमरे नही थे इसलिए उसका बिस्तर रसोई घर मे ही लगा दिया गया.

थोड़ी ही देर मे नींद ने उसे आ घेरा और सपने मे सूमी मचलने लगी ना जाने रात मे कब उसकी लंगोट खुल चुकी थी. और उसका मचलता लंड बाहर आ गया था. जब उसे होश आया पूरा बिस्तर चिप चिपा हो चुका था. उसे कुछ सुस्ती भी लग रही थी और उसका बिल्कुल भी मन नही कर रहा था की वो बिस्तर को सॉफ करे. वो फिर नींद की दुनिया मे खो गया और सुबह ही उसकी आँख खुली.

दूसरे कमरे मे मालती की उससे भी बुरी हालत थी. वो सारी साया ब्लाउस सब खोल नंगे हो गयी. उसने अपनी दोनो जांघों के बीच भरा पूरा जंगल उगा रखा था. कई देर तक उसकी उंगलियाँ उस जंगल बे भ्रमण करती रही फिर गहराई मापने लगी.

आज उसे अपने पति को छोड़े पाँच साल हो गये थे. इन बरसों मे वह प्यासी ही रही. पर आज रणबीर को देख उसका मन ही बस मे नही था. उसने कई बार जवान भतीजे भानु को भी मौका दिया पर वह था की कभी भी चाची को उस नज़र से नही देखा.

वो सोच रही थी की उसे चाहे कुछ भी करना पड़े वो रणबीर को पा के रहेगी. यह विचार आते ही उसकी उंगलियाँ की रफ़्तार चूत मे बढ़ गयी. उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी. है रन्न्न्न्न्वीएर करती वो तृप्त होकर नींद की दुनियाँ मे चली गयी.

उधर सूमी के साथ जो रोज होता था वही हो रहा था, भानु उसकी गन्द मारकर आराम से नींद मे खर्राटें ले रहा था. रणबीर को देख कर उसकी झांतों मे पहले ही आग लगी हुई थी और उपर से उसका पति उसे मझदार मे छोड़ कर अर्राम से सो रहा था. भानु के मस्त शरीर को देखकर शादी के दिन वो बहोत खुश हुई थी पर सुहग्रात की रात ही उसे मायूस होना पड़ा था.

raj..
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Re: ठाकुर की हवेली

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 22:35

उस रात भानु ने वो जोश नही दीखाया जो वो अपनी सहेलियों से सुनती आई थी. सुहग्रात के दिन भानु उसके नंगे शरीर से कई देर तक खेलता रहा पर जब उसनेउसकी चूत मे लंड डाला तो दो तीन धक्के लगा कर उसे मझधार मैं ही छोड़ शांत हो गया. पहली ही रात को वो तड़पति रह गयी.

दो दिन बाद ही जब उसने अपने पति को घर के पीचवाड़े पड़ोस के एक लड़के का लंड चूस्ते देखा तो वो अपना मन मसोस कर रह गयी. पर आज उसके शरीर की ज्वाला धधक रही थी जो शांत होने का नाम ही नही ले रही थी. उसने अपनी चूत अपने सोए पति के मुरझाए लंड से रगड़नी शुरू कर दी. और अपने पति की जीभ को अपने मुँह मे ले ली.

भानु सूमी की हरकतों से जाग पड़ा और उसे अपने दूर धकेलते हुए गुस्से से बोला, "मेने तुम्हे कितनी बार समझाया की मुझे ये सब अच्छा नही लगता?"

"तो क्या अच्छा लगता है, दूसरे लड़कों का लंड चूसना? सूमी भी गुस्से से बोल पड़ी.

"कह लिया अब चुप चाप सो जा और मुझे परेशन मत्कर." भानु भी आधी रात को सूमी से बहस नही करना चाहता था.

भानु करवट बदल कर सो गया और सूमी वैसे ही चूत की आग मे सुलगती रही. उसने घृणा भरी नज़रों से अपने पति की और देखा और उसकी तरफ पीठ कर के सो गयी.

दूसरे दिन रणबीर सुबह जल्दी ही उठ गया और रोज़ की तरह कमर पर लंगोट कस कसरत करने लगा. लंगोट मैं कसे आंडों का स्पष्ट उभार नज़र आ रहा था. मालती भी जल्दी उठ गयी थी क्योंकि घर का काम ख़तम कर उसे हवेली जाना था. जैसे ही वह नहाने के लिए स्नान घर की और मूडी उसने रसोई से कुछ आवाज़ें सुनी.

उसने रसोई मे झाँक कर देखा तो रणबीर लंगोट कस कर कसरत कर रहा था. उसकी लचौड़ी चौड़ी जंघे और लंड का उभार देख कर मालती एक आह भर के रह गयी.

घर मे अभी भी सब सो रहे थे और मालती जानती थी की एक घंटे के पहले कोई उठने वाला नही है. मालती ने तुरंत एक प्लान बनाया और दबे पाँव रणबीर के पीछे आ गयी. इस समय वो सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउस पहने हुए थी.

पहले तो उसने अपना ब्लाउस खोला और फिर पेटिकोट का नाडा खींच दिया और वो मदरजात नंगी हो गयी. रणबीर को कुछ भी पता नही था वो तो अपनी धुन मे कसरत किए जा रहा था.

तभी मालती बिल्कुल उसके सामने नंगी आ गयी. एक बार तो रणबीर हक्का बक्का रह गया फिर उसने मालती से पूछा, "आप चाचीजी इस हालत में?"

मालती आगे बढ़ कर उसके पास आ गयी और उसे अपनी बाहों मे जाकड़ लिया. वो अपनी बड़ी बड़ी चुचियाँ रणबीर के सीने पर रगड़ने लगी. मालती की इस हरकत पर रणबीर का लंड लंगोट फाड़ बाहर निकलने को मचल उठा.

"मुझे अपनी बना लो रणबीर.... में आज तुम्हे पाना चाहती हूँ."

"बहुत बड़ा है तुम्हारा... तुम्हारी सूरत देख कर लगता नही की इतना बड़ा लंड होगा तुम्हारा." मालती उसके लंड को अपने हाथों मे पकड़ते हुए बोली.

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