यह सिलसिला 10 दिन तक यूँ ही चलता रहा. अब मधुलिका अकेले घोड़े पर सवार हो मैदान का चक्कर लगाने लगी थी. पर अभी तक वह घोड़े को दौड़ाती नही थी. नीशानेबाज़ी भी कुछ कुछ सीख गयी थी. राइफल के अलावा वह पिस्टल चलाना भी सीख रही थी. जब वह दोनो टाँगे चौड़ी कर और कुछ झुककर पिस्टल चलाती तो रणबीर का लंड उसकी गांद का उभार देख मचल उठता. पर वह बिना कुछ प्रगट किए उसे बड़ी तन्मयता से सब सीखाता रहता. उसे पता था की ये शहज़ादी एक दिन खुद उससे लिपट जाएगी.
अब घोड़े पर चढ़ते और उतरते समय प्राय्यः रणबीर उसके चूतडो को सहारा दे देता. राइफल चलाते वक़्त रणबीर भी उसकी बगल मे लेट जाता और राइफल के पोज़िशन ठीक करने के बहाने उसकी कोहनी उसकी चुचियों से रगड़ खा जाती. मधुलिका इन सब बातों की तरफ कोई ध्यान नही देती. अब वह ड्रेस भी ऐसी पहन के आती, की किसी की भी नियत डोल जाए. रणबीर भी मधुलिका से खुलने लग गया था.
फिर एक दिन बरसात का सा मौसम था पर मधुलिका अपने समय ठीक 4 बजे पोलो मैदान पहुँच गयी. रणबीर भी रोज की तरह तैयार था.
"मेने तो सोचा था की आज मेमसाहेब हवेली मे ही आराम करेंगी, लेकिन आप तो वक़्त पर हाजिर हैं."
"तुम भी तो यहाँ पर हो और सुनो में वक़्त की बहोत पाबंद हूँ. चाहे आँधी आए या तूफान में यहाँ ज़रूर पहुँचती हूँ. "
तभी हल्की बूँदा बंदी शुरू हो गयी और देखते देखते बारिस नेज़ोर पकड़ लिया. वहाँ और ओ कुछ था नही और दोनो राइफल संभाले जल्दी से डाक बंग्लॉ की तरफ भागे. डाक बंग्लॉ के पीछे आकर मधुलिका बुरी तरह से हाँफने लगी.
वह काफ़ी भीग चुकी ती और हाँफते हाँफते उसकी छाती उपर नीचे हो रही थी. रणबीर उसकी चुचियों पर आँख गड़ाए देख रहा था.
"रणबीर इस डाक बंग्लॉ मे क्या है? मेरी देखने की इक्चा है."
"भीतर से तो इसे मेने भी नही देखा है, पर सुना है कुछ पुराना समान भरा पड़ा है. चलिए देखते है."
और दोनों डाक बुंगलोव के लकड़ी की बनी सीढ़ियों से होते हुए डाक बंग्लॉ पर आ गये. बंग्लॉ के अंदर जाने के मैन गेट पर एक लोहे की बड़ी सी कुण्डी जड़ी थी जिसे रणबीर ने खोल दिया.'
दरवाज़ा चरमरा कर खुल गया और दोनो अंदर दाखिल हो गये. फर्श पर धूल की परत जमी हुई थी लगता था की बहूत दिनों से कोई भी अंदर नही आया था. डाक बंग्लॉ अंदर से काफ़ी बड़ा था. बीचों बीच बड़ा सा चौक था और उसके चारों तरफ काई कमरों के बंद दरवाजे दीख रहे थे. कई बरामदे भी थे जिनमे कुर्सियाँ, मेजें और टेंट का समान पड़ा था.
बाहर बरसात और तेज हो गयी थी जिसकी टीन की छत पर पड़ने की आवाज़ तेज हो गयी थी. एक कमरे का दरवाज़ा और कमरो से बड़ा था और उस पर सजावट भी थी. रणबीर और मधुलिका ने अंदाज़ लगा लिया की ये डाक बंग्लॉ का मेन हॉल है क्यों की इसके बाहर बड़ी बाल्कनी थी जिसपर कुर्सियाँ लगा के बैठ के पूरा पोलो मैदान का नज़ारा सॉफ तौर पर देखा जा सकता था.
कमरे मे कोई ताला नही था, और उसकी कोई ज़रूरत भी नही समझी गयी क्यों की ठाकुर का रुआब ही ऐसा था की उधर झाँकने की भी कोई हिम्मत नही कर सकता था.
रणबीर ने जैसे ही वो कमरा खोला एक सीलन भरा भभूका अंदर से बाहर आया. कमरे मे अंधेरा था और मधुलिका रणबीर से बिल्कुल सॅट गयी. तभी कोई एक चूहा मधुलिका के पैरों पर से होता हुआ तेज़ी से गुजरा और मधुलिका रणबीर से कस के चिपक गयी. उसका शरीर कांप रहा था. कमरे के खुले दरवाज़े से हल्की रोशनी आ रही थी और रणबीर ने कहा.
"मेमसाहब ये तो चूहा था." फिर दोनो हँसने लगे.
ठाकुर की हवेली compleet
Re: ठाकुर की हवेली
रणबीर ने मधुलिका की पीठ पर हाथ रख रखा था और रणबीर उसे उसी तरह चिपकाए हुए आगे बढ़ा और कमरे की बाल्कनी की तरफ खुलने वाला दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़ा खुलते ही कमरे मे रोशनी भी हो गयी और बाहर बारिश का बड़ा ही मनोरम दृश्या था.
दोनो घोड़े भी डाक बुंगलोव के नीचे आ गये थे. कमरे मे कार्पेट बीछा हुआ था. दीवारों पर बड़ी बड़ी तस्वीरें तंगी हुई थी, कई अलमारियाँ बनी हुई थी, दो बड़े बेड थे जिनके सर के तरफ गोल गोल करके रखे हुए बिस्तर थे. एक तरफ सोफा सेट और कुछ मेजें पड़ी हुई थी.
"वाह कितने ठाट बाट से भरा हुआ कमरा है ये. मेरा बस चले तो हवेली छोड़ इससे मे आ जाउ. जहाँ तुम हो, घुड़सवारी सीखना, निशाने बाज़ी सीखना और अकेले रहना." मधुलिका ने कहा.
"अभी तक जीप नही आई." रणबीर ने बाहर देखते हुए कहा.
"वह अपने टाइम पर आज्एगी और अभी तो डेढ़ घंटे से ज़्यादा पड़ा है. मेने ड्राइवर से कह दिया था की चाहे बरसात आए या कुछ और आए.. रणबीर में थक गयी हूँ , यह बिस्तर खोल कर बिछा दो."रणबीर ने झट बिस्तर खोल कर बिछा दिया और मधुलिका पट लेट कर पसर गयी.
"मधुलीकाजी आप इस समय बहोत ही सुन्दर लग रही है.,"
"वो तो है तभी तो तुम मुझे घूर घूर कर देख रहे हो." तभी मधुलिका ने एक झटके से रणबीर को खेंच लिया और उसके होठों पर अपने होंठ रख एक तगड़ा चुंबन ले लिया.
मधुलिका हाँप रही थी और उसने रणबीर को जाकड़ लिया. उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ रणबीर की छाती से रगड़ खा रही थी.
"रणबीर मुझे प्यार करो ना. तुम मुझे अच्छे लगते हो. में तुम्हे चाहने लगी हूँ."
"पर बेबी,...... मधुलीकाजी .... यहाँ यदि किसी को मालूम पड़ गया तो ठाकुर साब मेरी खाल उतरवा लेंगे."
"उस खुल दरवाजे से किसी के भी आने का हमे मालूम पड़ जाएगा पर इस अंधेरे मे हमें कोई नही देख पाएगा." ये कहकर मधुलिका ने रणबीर को और जाकड़ लिया और उसके गालों का, होठों का चुंबन लेने लगी.
इधर रणबीर का भी बुरा हाल था, कयि दिन का प्यासा लंड पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था. उसने मधुलिका के होंठ अपने होठों मे ले लिए और उन्हे चूसने लगा. उसके हाथ कठोर चुचियों पर कस गये. उसने उसके खुले गले के जॅकेट को खोलना शुरू किया और अब ब्रा मे क़ैद मधुलिका के मस्त माममे उसके सामने तने हुए थे.
उधर मधुलिका भी कहाँ पीछे रहने वाली थी. उसने रणबीर को पॅंट और शर्ट से आज़ाद कर दिया. रणबीर ने मधुलिका के ब्रा के हुक भी खोल दिए और उसकी एक मस्त चूची को मुँह मे ले चूसने लगा.
"ओह मेरे बाबा....मेरे प्यारे बच्चे ... चूसो... ओह्ह्ह्ह्ह हाआँ चूसूऊऊऊऊओ." मधुलिका सिसकियाँ भरने लगी और रणबीर के मुँह मे एक हाथ से अपनी चुचि पकड़ उसके मुँहमे ठेलते हुए चूसाने लगी.
रणबीर मधुलिका की पॅंट के बटन खोल चुका था और एक हाथ पॅंटी के उपर से अंदर डाल दिया. उसका हाथ मधुलिका के झाटों से भरी चूत से टकराया. वह गीली हो चुकी थी. रणबीर उसे मुट्ठी मे कस दबाने लगा. बीच बीच मे वह झाँटो पर हाथ भी घिस रहा था.
उधर मधुलिका ने भी रणबीर का लंड जंघीए से निकाल लिया था और उसे धीरे धीरे मुठियाने लगी.
"वाह मेरे बेबी का ये बेबा तो बड़ा लगता है. इतना बड़ा लटकाए फिरते हो और 10 दीनो से खाली घोड़ा चलाना सीखा रहे हो. अब में इसे भी चलौंगी." ये कह कर मधुलिका ने रणबीर का लंड मुँह मे लेना शुरू कर दिया.
पहले वह सूपाडे पर जीब फिराती रही फिर मुँह को गोल कर लंड को अंदर बाहर करते हुए उसे धीरे धीरे मुँह मे अंदर तक लेने लग गयी.
"क्या करता ठाकुर साहब का हुकुम ही ऐसा था. सोचा तो कयि बार पर हिम्मत नही हुई. अब इस बेबी से में भी जी भर के खेलूँगा." रणबीर ने मधुलिका की चूत मे एक अंगुल पेलते हुए कहा.
दोनो घोड़े भी डाक बुंगलोव के नीचे आ गये थे. कमरे मे कार्पेट बीछा हुआ था. दीवारों पर बड़ी बड़ी तस्वीरें तंगी हुई थी, कई अलमारियाँ बनी हुई थी, दो बड़े बेड थे जिनके सर के तरफ गोल गोल करके रखे हुए बिस्तर थे. एक तरफ सोफा सेट और कुछ मेजें पड़ी हुई थी.
"वाह कितने ठाट बाट से भरा हुआ कमरा है ये. मेरा बस चले तो हवेली छोड़ इससे मे आ जाउ. जहाँ तुम हो, घुड़सवारी सीखना, निशाने बाज़ी सीखना और अकेले रहना." मधुलिका ने कहा.
"अभी तक जीप नही आई." रणबीर ने बाहर देखते हुए कहा.
"वह अपने टाइम पर आज्एगी और अभी तो डेढ़ घंटे से ज़्यादा पड़ा है. मेने ड्राइवर से कह दिया था की चाहे बरसात आए या कुछ और आए.. रणबीर में थक गयी हूँ , यह बिस्तर खोल कर बिछा दो."रणबीर ने झट बिस्तर खोल कर बिछा दिया और मधुलिका पट लेट कर पसर गयी.
"मधुलीकाजी आप इस समय बहोत ही सुन्दर लग रही है.,"
"वो तो है तभी तो तुम मुझे घूर घूर कर देख रहे हो." तभी मधुलिका ने एक झटके से रणबीर को खेंच लिया और उसके होठों पर अपने होंठ रख एक तगड़ा चुंबन ले लिया.
मधुलिका हाँप रही थी और उसने रणबीर को जाकड़ लिया. उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ रणबीर की छाती से रगड़ खा रही थी.
"रणबीर मुझे प्यार करो ना. तुम मुझे अच्छे लगते हो. में तुम्हे चाहने लगी हूँ."
"पर बेबी,...... मधुलीकाजी .... यहाँ यदि किसी को मालूम पड़ गया तो ठाकुर साब मेरी खाल उतरवा लेंगे."
"उस खुल दरवाजे से किसी के भी आने का हमे मालूम पड़ जाएगा पर इस अंधेरे मे हमें कोई नही देख पाएगा." ये कहकर मधुलिका ने रणबीर को और जाकड़ लिया और उसके गालों का, होठों का चुंबन लेने लगी.
इधर रणबीर का भी बुरा हाल था, कयि दिन का प्यासा लंड पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था. उसने मधुलिका के होंठ अपने होठों मे ले लिए और उन्हे चूसने लगा. उसके हाथ कठोर चुचियों पर कस गये. उसने उसके खुले गले के जॅकेट को खोलना शुरू किया और अब ब्रा मे क़ैद मधुलिका के मस्त माममे उसके सामने तने हुए थे.
उधर मधुलिका भी कहाँ पीछे रहने वाली थी. उसने रणबीर को पॅंट और शर्ट से आज़ाद कर दिया. रणबीर ने मधुलिका के ब्रा के हुक भी खोल दिए और उसकी एक मस्त चूची को मुँह मे ले चूसने लगा.
"ओह मेरे बाबा....मेरे प्यारे बच्चे ... चूसो... ओह्ह्ह्ह्ह हाआँ चूसूऊऊऊऊओ." मधुलिका सिसकियाँ भरने लगी और रणबीर के मुँह मे एक हाथ से अपनी चुचि पकड़ उसके मुँहमे ठेलते हुए चूसाने लगी.
रणबीर मधुलिका की पॅंट के बटन खोल चुका था और एक हाथ पॅंटी के उपर से अंदर डाल दिया. उसका हाथ मधुलिका के झाटों से भरी चूत से टकराया. वह गीली हो चुकी थी. रणबीर उसे मुट्ठी मे कस दबाने लगा. बीच बीच मे वह झाँटो पर हाथ भी घिस रहा था.
उधर मधुलिका ने भी रणबीर का लंड जंघीए से निकाल लिया था और उसे धीरे धीरे मुठियाने लगी.
"वाह मेरे बेबी का ये बेबा तो बड़ा लगता है. इतना बड़ा लटकाए फिरते हो और 10 दीनो से खाली घोड़ा चलाना सीखा रहे हो. अब में इसे भी चलौंगी." ये कह कर मधुलिका ने रणबीर का लंड मुँह मे लेना शुरू कर दिया.
पहले वह सूपाडे पर जीब फिराती रही फिर मुँह को गोल कर लंड को अंदर बाहर करते हुए उसे धीरे धीरे मुँह मे अंदर तक लेने लग गयी.
"क्या करता ठाकुर साहब का हुकुम ही ऐसा था. सोचा तो कयि बार पर हिम्मत नही हुई. अब इस बेबी से में भी जी भर के खेलूँगा." रणबीर ने मधुलिका की चूत मे एक अंगुल पेलते हुए कहा.
Re: ठाकुर की हवेली
उधर मधुलिका अब उसके पूरे लंड को बड़ी मस्ती से चूस रही थी. वह उसकी बड़ी बड़ी गोटियों को हाथों से धीरे धीरे भीच रही थी.
"तो बेबी को बाहर कर लो ना, देखो रस से भीग गई है." मधुलिका ने अपने चूतड़ उचे उठा दिए जिससे रणबीर को पॅंट नीचे खिसकाने मे आसानी हो जाए.
रणबीर ने पॅंट और पॅंटी एक साथ ही उसकी टाँगो से निकाल दी.
वह उसकी टाँगे चौड़ी कर उसकी चूत पर झुक गया और जीभ के अग्र भाग से चूत को छेड़ने लगा. मधुलिका ने रणबीर के सर पकड़ के चूत पर दबा दिया.
"खा जाओ इसे... ऑश.. बहोट सताती है ये... ऑश चूवसू.... रणबीर इसे....."
रणबीर भूके शेर की तरह चूत पर पिल पड़ा. उसने पूरी चूत मुँह मे भर ली और माल पूवे की तरह उसे खाते हुए चूसने लगा. वा चूत के दाने पर हल्के दाँत भी लगा रहा था. मधुलिका पागल हो कहने लगी.
"तुम तो पक्के खिलाड़ी हो. ओह.. यह तरीका कहाँ से सीखा है तुमने.. कितनो को अपनी टाँग के नीचे से गुज़ारा है... ओह बेबी चूसो इसे और ज़ोर से.. पूरी मुँह मे ले लो... श" मधुलिका छट पटाने लगी.
अब वह रणबीर का लंड को हाथ मे पकड़ हिला रही थी. चुचियाँ उसकी छाती से रगड़ रही थी और जहाँ तहाँ चूमने लगी थी.
रणबीर चूत को पूरी तन्मयता से चूस रहा था, बीच बीच मे वह मधुलिका की गांद मे उंगल भी पेल देता था और वह चिहुनक पड़ती थी.
"रणबीर अब और कितना तड़पावगे.... इसको अंदर क्यों नही डालते..."
मधुलिका ने रणबीर का लंड पकड़ कर कहा.
"में तो इसी का इंतेज़ार कर रहा था की कब आपका हुकुम हो देखिए ना यह मेरा कितना बैचाईन हो रहा है." रणबीर मधुलिका की दोनो टाँगे फैला उनके बीच मे जगह बनाते हुए बोला.
"देखो धीरे धीरे डालना, आज से पहले मेने इसे कभी भी अपनी चूत मे लिया नही है. तुम्हारा वैसे भी जो मेने पढ़ा है उससे बड़ा है."
"आप बिल्कुल फ़िकरा ना करें मालकिन वाह ये तो मेरा नसीब है की मुझे एकदम कुँवारी चूत मिल रही है." रणबीर मधुलिका की रस से भरी चूत पर अपना लंड का सुपाड़ा टीका चुका था. वह कुछ देर चूत पर अपने एक दम खड़े हो गये लंड को रगड़ता रहा.
मधुलिका नीचे छट पटा रही थी और इंतेज़ार कर रही थी की कब लंड भीतर घुसेगा. वह मेडिकल की स्टूडेंट थी और सब बातों का पता था हालाँकि वह अब तक चुदी नही थी.
"हां मेरे बेबी ये अभी तक कोरी है.. यह तेरी गुरु दक्षिणा है.. देख आज तक में इसमे केवल मेरी उंगल ही घुसाती आई हूँ... तुम अपने मोटे भाले से कहीं इसे फाड़ ना देना... अब डालो इसे अंदर..."
रणबीर ने धीरे से लंड का सूपड़ा अंदर ठेला. मधुलिका की चूत कसी हुई थी. वह भली भाँति जानता था की यह मालती या सूमी जैसियों की चूत नही है जिसमे एक ही बार मे पेल दिया फिर चाहे सामने वाली कितना ही रोती चिल्लाति रहे इसलिए रणबीर पूरी सावधानी बरत रहा था.
वह काफ़ी देर लंड का सूपड़ा उसकी चूत के उपर या थोड़ा सा भीतर रगड़ते रहा. जब उसने देखा की मधुलिका की चूत रस छोड़ने लग गयी है और छट छट की आवाज़ आने लग गयी है तो उसने धीरे धीरे लंड अंदर ठेलना शुरू किया.
रणबीर कुछ लंड को भीतर घुसाता और फिर रुक जाता और लंड को भीतर ही हिलाके कुछ जगह बनाता और तब अंदर करता. मधुलिका रणबीर के होंठ चूस रही थी और आनंद के मस्ती मे सिसकारियाँ भर रही थी.
"ओह रणबीर तुम तो इसके भी गुरु हो. इतनी छोटी उमर मे ही तुमने तो सब कुछ सीख लिया. घुड़सवारी, बंदूक और अब चदाई. मुझे तुमसे इसकी कला भी सीखनी है. बोलो सिख़ाओगे ना."
"हां बेबी ये कला तो काम करके ही सीखाई जाती है. बोलो तुम तय्यार हो." ये कह कर रणबीर ने चूत के भीतर तीन चार हल्के धक्के मारे और लंड मधुलिका की चूत मे पूरा समा गया.
"ऑश रणबीर लगता है तुमने पूरा भीतर घुसा दिया है. तुमने तो अपना इतना बड़ा बड़े ही तरीके से अंदर डाला. मेरी कई सहेलियों ने मुझे बताया था की पहले बहोट दर्द होता है. में पीछले एक साप्ताह से तुमसे चुदवाने के लिए बेकरार थी और रातों को में दो दो उंगलियाँ इसके भीतर पेल पेल के इसको तुम्हारा लंड लेने के लिए बड़ा कर लिया है. हां रणबीर मुझे सीखाना और मेरी चूत मे कर कर के सीखाना मस्टेरज़ी तुम जब भी सिख़ाओगे में तुम्हारे आगे मेरी चूत खोल दूँगी. अब तो खुश हो ना."
"हां बेबी अब में तुम्हे इस तुम्हारे बड़े बाबा के डाक बंग्लॉ मे रोज़ सिखाउँगा." ये कह कर रणबीर मधुलिका को दना दान चोदने लगा.
मधुलिका जैसी कई कुँवारी चूत चोद के रणबीर पूरा मस्त था. उसने अपनी मुठियाँ मधुलिका के फूले चूतड़ पर कस ली थी और वह उन चूतडो को घूथ रहा था. मधुलिका गांद उछाल उछाल कर चुदवा रही थी.
"ओह मेरे बेबी तुम कितने अच्छे हो. में भी अब तुमसे रोज़ चुदवाउन्गि. ओह रणबीर अब मुझे कस कस के चोदो..ओह बहोत मज़ा आ रहा है. आज तो चाहे तुम इसको फाड़ ही दो.. तुमसे फदवाने भी मज़ा है.. ऑश बेबी मेरे मम्मे भी चूसो." मधुलिका ने रणबीर को बाहों मे भर लिया था और वह बड़बड़ाती जा रही थी और गंद उछाल रही थी. लंड पच पच करता हुआ उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था.
बाहर तेज बारसत हो रही थी और बिजली भी चमक रही थी, जिसकी चमक से कमरा रह रह के रोशनी से नहा उठता. इधर मधुलिका की चूत पर रणबीर का लंड की बिजली गिर रही थी.
"तो बेबी को बाहर कर लो ना, देखो रस से भीग गई है." मधुलिका ने अपने चूतड़ उचे उठा दिए जिससे रणबीर को पॅंट नीचे खिसकाने मे आसानी हो जाए.
रणबीर ने पॅंट और पॅंटी एक साथ ही उसकी टाँगो से निकाल दी.
वह उसकी टाँगे चौड़ी कर उसकी चूत पर झुक गया और जीभ के अग्र भाग से चूत को छेड़ने लगा. मधुलिका ने रणबीर के सर पकड़ के चूत पर दबा दिया.
"खा जाओ इसे... ऑश.. बहोट सताती है ये... ऑश चूवसू.... रणबीर इसे....."
रणबीर भूके शेर की तरह चूत पर पिल पड़ा. उसने पूरी चूत मुँह मे भर ली और माल पूवे की तरह उसे खाते हुए चूसने लगा. वा चूत के दाने पर हल्के दाँत भी लगा रहा था. मधुलिका पागल हो कहने लगी.
"तुम तो पक्के खिलाड़ी हो. ओह.. यह तरीका कहाँ से सीखा है तुमने.. कितनो को अपनी टाँग के नीचे से गुज़ारा है... ओह बेबी चूसो इसे और ज़ोर से.. पूरी मुँह मे ले लो... श" मधुलिका छट पटाने लगी.
अब वह रणबीर का लंड को हाथ मे पकड़ हिला रही थी. चुचियाँ उसकी छाती से रगड़ रही थी और जहाँ तहाँ चूमने लगी थी.
रणबीर चूत को पूरी तन्मयता से चूस रहा था, बीच बीच मे वह मधुलिका की गांद मे उंगल भी पेल देता था और वह चिहुनक पड़ती थी.
"रणबीर अब और कितना तड़पावगे.... इसको अंदर क्यों नही डालते..."
मधुलिका ने रणबीर का लंड पकड़ कर कहा.
"में तो इसी का इंतेज़ार कर रहा था की कब आपका हुकुम हो देखिए ना यह मेरा कितना बैचाईन हो रहा है." रणबीर मधुलिका की दोनो टाँगे फैला उनके बीच मे जगह बनाते हुए बोला.
"देखो धीरे धीरे डालना, आज से पहले मेने इसे कभी भी अपनी चूत मे लिया नही है. तुम्हारा वैसे भी जो मेने पढ़ा है उससे बड़ा है."
"आप बिल्कुल फ़िकरा ना करें मालकिन वाह ये तो मेरा नसीब है की मुझे एकदम कुँवारी चूत मिल रही है." रणबीर मधुलिका की रस से भरी चूत पर अपना लंड का सुपाड़ा टीका चुका था. वह कुछ देर चूत पर अपने एक दम खड़े हो गये लंड को रगड़ता रहा.
मधुलिका नीचे छट पटा रही थी और इंतेज़ार कर रही थी की कब लंड भीतर घुसेगा. वह मेडिकल की स्टूडेंट थी और सब बातों का पता था हालाँकि वह अब तक चुदी नही थी.
"हां मेरे बेबी ये अभी तक कोरी है.. यह तेरी गुरु दक्षिणा है.. देख आज तक में इसमे केवल मेरी उंगल ही घुसाती आई हूँ... तुम अपने मोटे भाले से कहीं इसे फाड़ ना देना... अब डालो इसे अंदर..."
रणबीर ने धीरे से लंड का सूपड़ा अंदर ठेला. मधुलिका की चूत कसी हुई थी. वह भली भाँति जानता था की यह मालती या सूमी जैसियों की चूत नही है जिसमे एक ही बार मे पेल दिया फिर चाहे सामने वाली कितना ही रोती चिल्लाति रहे इसलिए रणबीर पूरी सावधानी बरत रहा था.
वह काफ़ी देर लंड का सूपड़ा उसकी चूत के उपर या थोड़ा सा भीतर रगड़ते रहा. जब उसने देखा की मधुलिका की चूत रस छोड़ने लग गयी है और छट छट की आवाज़ आने लग गयी है तो उसने धीरे धीरे लंड अंदर ठेलना शुरू किया.
रणबीर कुछ लंड को भीतर घुसाता और फिर रुक जाता और लंड को भीतर ही हिलाके कुछ जगह बनाता और तब अंदर करता. मधुलिका रणबीर के होंठ चूस रही थी और आनंद के मस्ती मे सिसकारियाँ भर रही थी.
"ओह रणबीर तुम तो इसके भी गुरु हो. इतनी छोटी उमर मे ही तुमने तो सब कुछ सीख लिया. घुड़सवारी, बंदूक और अब चदाई. मुझे तुमसे इसकी कला भी सीखनी है. बोलो सिख़ाओगे ना."
"हां बेबी ये कला तो काम करके ही सीखाई जाती है. बोलो तुम तय्यार हो." ये कह कर रणबीर ने चूत के भीतर तीन चार हल्के धक्के मारे और लंड मधुलिका की चूत मे पूरा समा गया.
"ऑश रणबीर लगता है तुमने पूरा भीतर घुसा दिया है. तुमने तो अपना इतना बड़ा बड़े ही तरीके से अंदर डाला. मेरी कई सहेलियों ने मुझे बताया था की पहले बहोट दर्द होता है. में पीछले एक साप्ताह से तुमसे चुदवाने के लिए बेकरार थी और रातों को में दो दो उंगलियाँ इसके भीतर पेल पेल के इसको तुम्हारा लंड लेने के लिए बड़ा कर लिया है. हां रणबीर मुझे सीखाना और मेरी चूत मे कर कर के सीखाना मस्टेरज़ी तुम जब भी सिख़ाओगे में तुम्हारे आगे मेरी चूत खोल दूँगी. अब तो खुश हो ना."
"हां बेबी अब में तुम्हे इस तुम्हारे बड़े बाबा के डाक बंग्लॉ मे रोज़ सिखाउँगा." ये कह कर रणबीर मधुलिका को दना दान चोदने लगा.
मधुलिका जैसी कई कुँवारी चूत चोद के रणबीर पूरा मस्त था. उसने अपनी मुठियाँ मधुलिका के फूले चूतड़ पर कस ली थी और वह उन चूतडो को घूथ रहा था. मधुलिका गांद उछाल उछाल कर चुदवा रही थी.
"ओह मेरे बेबी तुम कितने अच्छे हो. में भी अब तुमसे रोज़ चुदवाउन्गि. ओह रणबीर अब मुझे कस कस के चोदो..ओह बहोत मज़ा आ रहा है. आज तो चाहे तुम इसको फाड़ ही दो.. तुमसे फदवाने भी मज़ा है.. ऑश बेबी मेरे मम्मे भी चूसो." मधुलिका ने रणबीर को बाहों मे भर लिया था और वह बड़बड़ाती जा रही थी और गंद उछाल रही थी. लंड पच पच करता हुआ उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था.
बाहर तेज बारसत हो रही थी और बिजली भी चमक रही थी, जिसकी चमक से कमरा रह रह के रोशनी से नहा उठता. इधर मधुलिका की चूत पर रणबीर का लंड की बिजली गिर रही थी.