दो दिन बाद ही मधुलिका ने घुड़ सवारी सीखने के इक्षा जाहिर की. हवेली के सबसे पुराने और मशहूर घुड़सवार को बुलाया गया पर मधुलिका उस 50 वर्ष एक अधेड़ को और उसकी एक बित्ते की मूँछ देख कर ही बिदक गयी और उसने कह दिया की नही सीखनी उसे घुड़सवारी यहाँ से तो पटना ही अछा था. ठाकुर को ये बात चुभ गयी.
उसी रात ठाकुर ने ठकुराइन रजनी से भी उसकी चुचि मसालते हुए इस बात का ज़िकरा किया तो रजनी ने कहा की बेबी सहर मे रह कर पढ़ी लीखी है. उसे यहाँ खुलापन महसूस होना चाहिए. बातों ही बातों मे रजनी ने कहा की ठाकुर का वह ख़ास हवेली का पहरेदार इसके लिए ठीक रहेगा. ठाकुर को भी बात जाँच गयी.
दूसरे दिन ही ठाकुर ने रणबीर को बुलाया और समझाते हुए कहा की वह हमारे पोलो वाले मैदान मे मधुलिका को घुड़सवारी सिखाए. रणबीर खुशी खुशी तय्यार हो गया और ठाकुर को विश्वास दिलाया की बेबी का बॉल भी बांका नही होने देगा और उसे महीने भर मे और उसे महीने भर मे पक्की घुड़सवार बना देगा. ठाकुर भी निसचिंत हो गया.
घुड़सवारी सीखने के लिए शाम का वक्त तय किया गया. पोलो का मैदान हवेली के पीछे ही थोड़ी दूर पर दूर दूर तक फैला हुआ था. जगह जगह पर हरी घास भी मैदान मे थे और चारों तरफ से उँचे दरखतों से वह मैदान घिरा हुआ था.
जब बड़े ठाकुर यानी की ठाकुर का बाप जिंदा था तब देश को आज़ादी नही मिली थी और यहाँ अँग्रेज़ पोलो खेलने आए करते थे. खुद बड़ा ठाकुर भी पोलो का अक्चा खिलाड़ी था. तभी से ये मैदान पोलो मैदान के नाम से प्रसिद्ध हो गया था. हालाँकि इस ठाकुर को पोलो मे कोई दिलचस्पी नही थी.
मैदान मे एक तरफ डाक बुंगलोव भी बना हुआ था. जब अँग्रेज़ यहाँ आते थे तब डाक बुंगलोव किपुरी देख भाल होती थी और अँग्रेज़ों को इसी मे ठहराया जाता था. अब वह वीरान पड़ा था और कुछ कबाड़ के अलावा उसमे कुछ नही था. यहाँ तक की उसकी देखभाल की लिए किसी आदमी को भी रखने की ज़रूरत नही थी.
आज शाम से ही रणबीर को घुड़सवारी सिखानी थी. रणबीर सुबह से ही तय्यारियों मे जुट गया था. तभी 10.00 बजे के करीब ठाकुर ने रणबीर को बुला भेजा. रणबीर हवेली मे पहुँचा तो देखा की ठाकुर ठकुराइन और मधुलिका कुरईसियों पर बैठे थे.
सामने मेज पर झूँटे बरतन पड़े थे जो बता रहे थे की नाश्ता अभी अभी ख़तम हुआ है. रणबीर ने तीनो के सामने झुक कर आभिवादन किया.
ठाकुर की हवेली compleet
Re: ठाकुर की हवेली
ठाकुर ने कहा, "यह नौजवान है जो तुम्हे घुड़सवारी सिखाएगा. इतना हौसलेमंद है की चाकू लेकर शेर से भीड़ जाए. "
मधुलिका ने रणबीर को गौर से देखा और पूछा, "कब से हो यहाँ?"
"जी हवेली मे तो अभी सिर्फ़ एक महीने से ही हूँ पर ठाकुर साहेब की सेवा मे दो साल से हूँ." रणबीर ने नज़रें नीची किए जवाब दिया.
"हूँ तो तुम बाबा के साथ शिकार पर भी जाते हो?"
"जी हां "
"तब तो निशाने बाज़ भी हो." फिर मधुलिका ठाकुर की तरफ घूम के बोली, बाबा! मैं यहाँ बंदूक, पिस्टल चलाना भी सीखूँगी.
"ये भी तुम्हे यही सीखा देगा."
मधुलिका खुश हो गयी. तब ठाकुर ने रणबीर से कहा.
"अस्तबल से दो चुने हुए घोड़े ले जाना, सारे साजो समान की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है.. देखो बेबी भी इस मे नयी है, इसके अकेले घोड़े पर मत छोड़ना. राइफल कारतूस भी ले लेना और निशानेबाज़ी जंगल की तरफ रुख़ कर के सीखाना. तुम डाक बंग्लॉ के पास सब तय्यारी करके इंतेज़ार करना बेबी शाम को 4.00 बजे तक वहाँ पहुँच
जाएगी."
"जी ठाकुर साहेब, अब इजाज़त दें, सारी तय्यारी में खुद करूँगा."
ये कह कर रणबीर ने सिर झुकाया और वाहा से चला गया.
फिर रजनी और मधुलिका को वहीं छोड़ ठाकुर भी हवेली मे चला गया.
"तुम्हारे बाबा का ये ख़ास है, ये तुम्हेसब कुछ सिखा देगा." रजनी ने हंसते हुए मधुलिका से कहा.
"ठकुराइन मा आप कैसे जानती है की ये क्या क्या सीखा सकता है?"
"अरे ठाकुर साहेब इसकी तारीफों के पूल बाँधते थकते नही. बाप का तो मन ये मोह चुका अब देखिएं की बेटी का ये कितना मन मोहता है?" रजनी होटन्ठ काटते हुए मुस्कुराने लगी.
"तब तो मज़ा आ जाएगा मेरी ठकुराइन मा... " मधुलिका ने भी हंसते हुए कहा और मा शब्द पर अधिक ही ज़ोर दिया.
"मेने तुम्हे कितनी बार कहा है की मुझे मा मत कहा करो. अपना अपना भाग्या होता है"
"भाग्या ही तो होता है की आप आज इस हवेली की ठकुराइन है. और ठकुराइन है इसलिए मा भी है."
रजनी ने पास पड़ी एक मॅगज़ीन उठा ली और पढ़ने लगी. उसने जब से मधुलिका यहाँ आई थी तब से कोशिश करनी शुरू कर दी थी की मधुलिका उससे एक सहेली जैसा व्यवहार करे.. उसने काफ़ी खुलने की भी कोशिश की. वह मधुलिका को ठीक उसी साँचे मे ढालना चाहती थी जिस साँचे मे उसने अधेड़ मालती को ढाल रखा था.
पर मधुलिका शांत स्वाभाव की और कम बोलने वाली लड़की थी. उसे अभी तक रजनी ठीक से समझ ही नही पाई थी.
शाम 4 बजे जीन कसे दो घोड़ों के साथ रणबीर डाक बंग्लॉ के पास मुस्तैद था. दो राइफल और कारतूस भरी दो पट्टियाँ भी मौजूद थी. तभी एक जीप वहाँ आके रुकी और टाइट जीन्स और चमड़े की जकेट मे मधुलिका जीप से नीचे उतरी. उसने ड्रेइवेर को यह कहते हुए जीप के साथ भेज दिया की दो घंटे बाद वे यहाँ वापस आ जाए.
उस लिबास मे आज मधुलिका शिकार पर जाती एक राजकुमारी लग रही थी. सर पर हॅट नुमा कॅप थी. कमर मे जीन्स की बेल्ट मे एक पिस्टल खोंसि हुई थी. रणबीर के पास आ मधुलिका ने उसे मुस्कुराते हुए देखा और पूछा,
"तो तुम और तुम्हारे घोड़े तय्यार है? चलो अब कैसे शुरू करना है करो."
"जी मधु.. उ.. जी. आज आप घोड़े पर सवार हों और में घोड़े की रास पकड़ पैदल च्लते हुए इस पोलो मैदान के दो चक्कर लग वाउन्गा. इससे आपको घोड़े की चाल का एहसास होगा और उस चाल के अनुसार आपको अपने शरीर को कैसे काबू मे रखना है पता चलेगा." ये कह कर एक सज़ा हुआ घोड़ा रणबीर ने मधुलिका के आगे कर दिया.
मधुलिका ने रणबीर को गौर से देखा और पूछा, "कब से हो यहाँ?"
"जी हवेली मे तो अभी सिर्फ़ एक महीने से ही हूँ पर ठाकुर साहेब की सेवा मे दो साल से हूँ." रणबीर ने नज़रें नीची किए जवाब दिया.
"हूँ तो तुम बाबा के साथ शिकार पर भी जाते हो?"
"जी हां "
"तब तो निशाने बाज़ भी हो." फिर मधुलिका ठाकुर की तरफ घूम के बोली, बाबा! मैं यहाँ बंदूक, पिस्टल चलाना भी सीखूँगी.
"ये भी तुम्हे यही सीखा देगा."
मधुलिका खुश हो गयी. तब ठाकुर ने रणबीर से कहा.
"अस्तबल से दो चुने हुए घोड़े ले जाना, सारे साजो समान की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है.. देखो बेबी भी इस मे नयी है, इसके अकेले घोड़े पर मत छोड़ना. राइफल कारतूस भी ले लेना और निशानेबाज़ी जंगल की तरफ रुख़ कर के सीखाना. तुम डाक बंग्लॉ के पास सब तय्यारी करके इंतेज़ार करना बेबी शाम को 4.00 बजे तक वहाँ पहुँच
जाएगी."
"जी ठाकुर साहेब, अब इजाज़त दें, सारी तय्यारी में खुद करूँगा."
ये कह कर रणबीर ने सिर झुकाया और वाहा से चला गया.
फिर रजनी और मधुलिका को वहीं छोड़ ठाकुर भी हवेली मे चला गया.
"तुम्हारे बाबा का ये ख़ास है, ये तुम्हेसब कुछ सिखा देगा." रजनी ने हंसते हुए मधुलिका से कहा.
"ठकुराइन मा आप कैसे जानती है की ये क्या क्या सीखा सकता है?"
"अरे ठाकुर साहेब इसकी तारीफों के पूल बाँधते थकते नही. बाप का तो मन ये मोह चुका अब देखिएं की बेटी का ये कितना मन मोहता है?" रजनी होटन्ठ काटते हुए मुस्कुराने लगी.
"तब तो मज़ा आ जाएगा मेरी ठकुराइन मा... " मधुलिका ने भी हंसते हुए कहा और मा शब्द पर अधिक ही ज़ोर दिया.
"मेने तुम्हे कितनी बार कहा है की मुझे मा मत कहा करो. अपना अपना भाग्या होता है"
"भाग्या ही तो होता है की आप आज इस हवेली की ठकुराइन है. और ठकुराइन है इसलिए मा भी है."
रजनी ने पास पड़ी एक मॅगज़ीन उठा ली और पढ़ने लगी. उसने जब से मधुलिका यहाँ आई थी तब से कोशिश करनी शुरू कर दी थी की मधुलिका उससे एक सहेली जैसा व्यवहार करे.. उसने काफ़ी खुलने की भी कोशिश की. वह मधुलिका को ठीक उसी साँचे मे ढालना चाहती थी जिस साँचे मे उसने अधेड़ मालती को ढाल रखा था.
पर मधुलिका शांत स्वाभाव की और कम बोलने वाली लड़की थी. उसे अभी तक रजनी ठीक से समझ ही नही पाई थी.
शाम 4 बजे जीन कसे दो घोड़ों के साथ रणबीर डाक बंग्लॉ के पास मुस्तैद था. दो राइफल और कारतूस भरी दो पट्टियाँ भी मौजूद थी. तभी एक जीप वहाँ आके रुकी और टाइट जीन्स और चमड़े की जकेट मे मधुलिका जीप से नीचे उतरी. उसने ड्रेइवेर को यह कहते हुए जीप के साथ भेज दिया की दो घंटे बाद वे यहाँ वापस आ जाए.
उस लिबास मे आज मधुलिका शिकार पर जाती एक राजकुमारी लग रही थी. सर पर हॅट नुमा कॅप थी. कमर मे जीन्स की बेल्ट मे एक पिस्टल खोंसि हुई थी. रणबीर के पास आ मधुलिका ने उसे मुस्कुराते हुए देखा और पूछा,
"तो तुम और तुम्हारे घोड़े तय्यार है? चलो अब कैसे शुरू करना है करो."
"जी मधु.. उ.. जी. आज आप घोड़े पर सवार हों और में घोड़े की रास पकड़ पैदल च्लते हुए इस पोलो मैदान के दो चक्कर लग वाउन्गा. इससे आपको घोड़े की चाल का एहसास होगा और उस चाल के अनुसार आपको अपने शरीर को कैसे काबू मे रखना है पता चलेगा." ये कह कर एक सज़ा हुआ घोड़ा रणबीर ने मधुलिका के आगे कर दिया.
Re: ठाकुर की हवेली
मधुलिका ने रकाबी मे पैर डाला तो रणबीर ने नीचे झुक कर मधुलिका का पैर रकाबी मे ठीक से फँसा दिया. वह मधुलिका के फूले फूले चूतड़ को सहारा दे उसकी घोड़े पर चढ़ने मे मदद करना चाह ही रहा था की मधुलिका उछल कर घोड़े की पीठ पर सवार हो गयी.
रणबीर ने घोड़े की रास थाम ली और पैदल चलने लगा. मधुलिका कुछ देर तो घोड़े की चल के साथ ताल मेल बैठाती रही वह घोड़े की पीठ पर अकड़ कर बैठ गयी और रणबीर से कहा.
"अब रास मुझे थमा दो. नहीं तो लग ही नही रहा है की में घुड़सवारी कर रही हूँ. रणबीर ने मधुलिका को रास थमाते हुए कहा, "देखिएगा रास ज़ोर से मत खींचयएगा, नही तो घोड़ा दौड़ने लगेगा."
रणबीर भी घोड़े की पीठ पर हाथ रख साथ साथ चलने लगा.
"रणबीर पढ़ाई लीखाई भी की है या और कुछ?" मधुलिका ने पूछा.
"जी गाँव के स्कूल मे आठवीं तक पढ़ा हूँ."
"तो तुमने तो बहोत जल्दी घुड़सवारी और निशानेबाज़ी सिख ली और बाबा ने मुझे सिखाने के लिए तुमको चुना है?"
"जी इसमे ऐसी कोई बात नही है, देखिएगा आप भी बहोत जल्दी सब कुछ सीख जाएँगी."
घोड़ा मंद गति से चल रहा था. रणबीर घुड़ सवारी के बीच बीच मे गुण भी बताता जा रहा था जिसे मधुलिका ध्यान से सुन रही थी. घोड़ा दौड़ने लगे तो उसकी पीठ पर हल्के ठप देकर उसे रोकना है, कैसे चढ़ना है, कैसे उतरना है वैगैरह वैगैरह.
लगभग एक घंटे मे पोलो मैदान के दो चक्कर पूरे हो गये. इस बीच मधुलिका घोड़े को हल्के हल्के दौड़ाया भी और रणबीर के बताए तरीके से उसे थप़ थपा के रोका भी. मधुलिका बहोत खुश थी.
घोड़े से उत्तरते समय रणबीर ने उसके चूतड़ को हल्का सा सहारा देकर उसकी उत्तरने मैं मदद की. फिर मधुलिका ने कुछ निशाने बाज़ी की इक्षा प्रगट की.
शाम के 5.00 बज चुके थे. सूरज कुछ नीचे चला गया था, जिससे पेडो की छाया लंबी हो गयी थी. रणबीर ने एक बड़े पेड़ की छाँव मे एक चादर बीछा दी. टारगेट एक तख़्ती जिस पर काई गोल लाइन्स बनी हुई थी, जंगल की तरफ था जो की अभी धूप मे नहा रहा था.
"अब आप पेट के बल लेट जाएँ और राइफल का बट छाती से दबा के राइफल को मजबौती से पकड़ें. मधुलिका फ़ौरन लेट गयी.
और समय होता तो रणबीर उसके चूतडो का उभार देख कहीं खो जाता पर इस समय उसका पूरा ध्यान राइफ़ल चलाना सिखाने मे था. रणबीर ने हिदायत दे दी थी की ट्रिजर को भी बिल्कुल भी ना छुवें. फिर रणबीर राइफल को कैसे सीधा रखा जाए, निशाना कैसे लगाना है तथा और भी बहुत सी बातें समझाता रहा. मधुलिका ट्रिजर दबाने को उतावली थी पर रणबीर उसे धीरे से समझाता रहा.
"अब समझाते ही रहोगे या दो चार गोली मारने के लिए भी कहोगे?"
"देखिएगा बट छाती से कस के दबा ले. गोली छूटते ही एक झटका लगेगा. रणबीर भी उसकी बगल मे लेट गया और जब सब तरफ से संतुष्ट हो गया तो उसने फिरे कहा. ध्यान से गोली छूटी पर वह उस तख़्ती के भी आस पास नही थी.
मधुलिका उठ कर बैठ गयी. उसकी छाती ज़ोर ज़ोर से धड़क रही थी, जिससे उसकी बड़ी बड़ी चुचियों उपर नीचे हो रही थी. रणबीर ने थर्मस मैं से एक ग्लास पानी निकाल कर उसे दिया.
फिर रणबीर राइफल लेकर लेट गया. बट कैसे रखना है उसने अपनी छाती से लगाकर समझाया. फिर उसने टारगेट पर कयी फाइयर किए और सारी निशाने बीच मे बने गोल पर ही लगे. इससे मधुलिका बहोत प्रभावित हुई. उस दिन रणबीर ने मधुलिका को और राइफल नही दी बल्कि काई बातें समझाता रहा.
ड्राइवर जीप लेकर साढ़े पाँच बजे आ चुका था, उसे इंतेज़ार करते हुए लगभग 10 मिनिट हो चुके थे. तभी रणबीर ने सारा समान समेटना शुरू किया और सारा समान एक घोड़े की पीठ रख दोनों जीप की तरफ चल पड़े. एक घोड़े की रास रणबीर ने थाम रखी थी और दूरे घोड़े की रास मधुलिका ने. मधुलिका दूसरे दिन चार बजे आने को कह जीप मे सवार हो निकल गयी.
रणबीर ने घोड़े की रास थाम ली और पैदल चलने लगा. मधुलिका कुछ देर तो घोड़े की चल के साथ ताल मेल बैठाती रही वह घोड़े की पीठ पर अकड़ कर बैठ गयी और रणबीर से कहा.
"अब रास मुझे थमा दो. नहीं तो लग ही नही रहा है की में घुड़सवारी कर रही हूँ. रणबीर ने मधुलिका को रास थमाते हुए कहा, "देखिएगा रास ज़ोर से मत खींचयएगा, नही तो घोड़ा दौड़ने लगेगा."
रणबीर भी घोड़े की पीठ पर हाथ रख साथ साथ चलने लगा.
"रणबीर पढ़ाई लीखाई भी की है या और कुछ?" मधुलिका ने पूछा.
"जी गाँव के स्कूल मे आठवीं तक पढ़ा हूँ."
"तो तुमने तो बहोत जल्दी घुड़सवारी और निशानेबाज़ी सिख ली और बाबा ने मुझे सिखाने के लिए तुमको चुना है?"
"जी इसमे ऐसी कोई बात नही है, देखिएगा आप भी बहोत जल्दी सब कुछ सीख जाएँगी."
घोड़ा मंद गति से चल रहा था. रणबीर घुड़ सवारी के बीच बीच मे गुण भी बताता जा रहा था जिसे मधुलिका ध्यान से सुन रही थी. घोड़ा दौड़ने लगे तो उसकी पीठ पर हल्के ठप देकर उसे रोकना है, कैसे चढ़ना है, कैसे उतरना है वैगैरह वैगैरह.
लगभग एक घंटे मे पोलो मैदान के दो चक्कर पूरे हो गये. इस बीच मधुलिका घोड़े को हल्के हल्के दौड़ाया भी और रणबीर के बताए तरीके से उसे थप़ थपा के रोका भी. मधुलिका बहोत खुश थी.
घोड़े से उत्तरते समय रणबीर ने उसके चूतड़ को हल्का सा सहारा देकर उसकी उत्तरने मैं मदद की. फिर मधुलिका ने कुछ निशाने बाज़ी की इक्षा प्रगट की.
शाम के 5.00 बज चुके थे. सूरज कुछ नीचे चला गया था, जिससे पेडो की छाया लंबी हो गयी थी. रणबीर ने एक बड़े पेड़ की छाँव मे एक चादर बीछा दी. टारगेट एक तख़्ती जिस पर काई गोल लाइन्स बनी हुई थी, जंगल की तरफ था जो की अभी धूप मे नहा रहा था.
"अब आप पेट के बल लेट जाएँ और राइफल का बट छाती से दबा के राइफल को मजबौती से पकड़ें. मधुलिका फ़ौरन लेट गयी.
और समय होता तो रणबीर उसके चूतडो का उभार देख कहीं खो जाता पर इस समय उसका पूरा ध्यान राइफ़ल चलाना सिखाने मे था. रणबीर ने हिदायत दे दी थी की ट्रिजर को भी बिल्कुल भी ना छुवें. फिर रणबीर राइफल को कैसे सीधा रखा जाए, निशाना कैसे लगाना है तथा और भी बहुत सी बातें समझाता रहा. मधुलिका ट्रिजर दबाने को उतावली थी पर रणबीर उसे धीरे से समझाता रहा.
"अब समझाते ही रहोगे या दो चार गोली मारने के लिए भी कहोगे?"
"देखिएगा बट छाती से कस के दबा ले. गोली छूटते ही एक झटका लगेगा. रणबीर भी उसकी बगल मे लेट गया और जब सब तरफ से संतुष्ट हो गया तो उसने फिरे कहा. ध्यान से गोली छूटी पर वह उस तख़्ती के भी आस पास नही थी.
मधुलिका उठ कर बैठ गयी. उसकी छाती ज़ोर ज़ोर से धड़क रही थी, जिससे उसकी बड़ी बड़ी चुचियों उपर नीचे हो रही थी. रणबीर ने थर्मस मैं से एक ग्लास पानी निकाल कर उसे दिया.
फिर रणबीर राइफल लेकर लेट गया. बट कैसे रखना है उसने अपनी छाती से लगाकर समझाया. फिर उसने टारगेट पर कयी फाइयर किए और सारी निशाने बीच मे बने गोल पर ही लगे. इससे मधुलिका बहोत प्रभावित हुई. उस दिन रणबीर ने मधुलिका को और राइफल नही दी बल्कि काई बातें समझाता रहा.
ड्राइवर जीप लेकर साढ़े पाँच बजे आ चुका था, उसे इंतेज़ार करते हुए लगभग 10 मिनिट हो चुके थे. तभी रणबीर ने सारा समान समेटना शुरू किया और सारा समान एक घोड़े की पीठ रख दोनों जीप की तरफ चल पड़े. एक घोड़े की रास रणबीर ने थाम रखी थी और दूरे घोड़े की रास मधुलिका ने. मधुलिका दूसरे दिन चार बजे आने को कह जीप मे सवार हो निकल गयी.