ससुराल की पहली होली-8
मीता ने लाख सर पटका , लेकिन मेरा भाई उसके मुंह में ही झड़ा , झड़ता रहा और जब निकाला , तो सुपाड़े में लगी मलायी , उसके गालों और चूंचियों पे पोत दी।
"अब हुयी असली होली ननंद रानी की " मैंने सोचा।
वीर्य का एक बड़ा सा थक्का उसके होंठो पे था। शीशे में उसने देखा तो जीभ निकाल के उसे भी चाट लिया।
मुझे लगा कि अब घुसने का समय हो गया है , और मैंने दरवाजा खटखटाटाया.
संजय , चुपके से निकल गया।
लेकिन मैंने मीता को पकड़ लिया और टॉप के ऊपर से उसके मम्मो को दबाती बोली , " क्या खाया पिया जा रहा था "
उसका चेहरा १००० वाट के बल्ब की तरह चमक उठा , वो जोर से मुस्करायी और मुझे सीधे मुंह खोल के दिखा दिया।
उसकी जीभ पे अभी भी मेरे भाई की गाढ़ी थक्केदार मलायी थी।
और मुझे दिखा के वो नदीदी उसे भी गटक गयी।
मैंने उससे पुछा , क्यों स्वाद कैसा था , मेरी ननद रानी।
हम दोनों एक दूसरे के कंधे पे सहेलियों की तरह जा रहे थे की मीता ने मुझे चिढ़ाते बोला ,
" बहुत स्वादिष्ट , भाभी , एकदम यम्मी। आपको खाना है बुलाऊँ साल्ले को ,अभी गया नहीं होगा। "
मैं कौन पीछे रहने वाली थी , मैंने भी छेड़ा " अच्छा पहले ये बोल , किसका ज्यादा स्वादिष्ट था , मेरे भैया का या तेरे भैया का। "
" मतलब " वो ठिठक के रुक गयी।
" अरे अब तो तूने स्वाद ले ही लिया , तो , ,…वो कुल्हड़ में जो रबड़ी थी गुलाब जामुन के साथ , वो तेरे भैया की ,… "
मेरे बात पूरा करने के पहले ही वो बात समझ कर बड़ी जोर से चीखी " भाभी :" और मुझे मारने दौड़ी।
मैं आगे आगे भागी , आखिर उसी कि तो भाभी थी, दौड़ने में तेज।
लेकिन कुछी देर में पकड़ी गयी , …मै नहीं वो मेरी ननद। मीता।
कालोनी की भाभियाँ आयी थी और सब एक से एक हुड़दंगी।
मीता उधर से निकली मेरा पीछा करती और धर ली गयी।
यही तो मैं चाहती थी , उसे देख के मैं आँखों ही आँखों में उसे चिढ़ा रही थी।
सारी भाभियाँ एक से एक खेली खायी , कन्या खोर , और मीता के देख के उन की आँखों में एक आदमखोर भूख चमक उठी।
मीता उधर से निकली मेरा पीछा करती और धर ली गयी।
यही तो मैं चाहती थी , उसे देख के मैं आँखों ही आँखों में उसे चिढ़ा रही थी।
सारी भाभियाँ एक से एक खेली खायी , कन्या खोर , और मीता के देख के उन की आँखों में एक आदमखोर भूख चमक उठी।
एक ने मीता का हाथ पकड़ के रोक लिया और बोली , "
ननद रानी , अरे सुबह की होली तो तुम अपने भाइयों , और यारों से खेल रही थी , कम से कम शाम की होली तो भाभियो के साथ खेल लो। "
बिचारी मीता।
खूब खुल के होली के मस्त गाने हो रहे थे , और ये हुआ की अगले गाने में मीता नाचेगी. मीश्राईन भाभी ने ढोलक सम्हाली और` बाकी ने गाना शुरू किया। मैंने भी मजीरे से ताल देने शुरू की , आखिर मेरी ननद जो नाच रही थी ,
जैसे ही उसने एक दो ठुमके लगाए होंगे , किसी ने कमेंट मारा ,
" अरे कोठे पे बैठा दो तो इतना मस्त मुजरा करेगी ,… "
" अरे जरा ये जोबन तो उचका ,… " ये नीरा भाभी और की आवाज थी मेरी जेठानी। वो और चमेली भाभी भी अब आ गयी थीं।
गाना शुरू हुआ ,
" अरे नकबेसर कागा ले भागा , मोरा सैयां अभागा न जागा।
अरे उड़ उड़ कागा मोरे होंठवा पे बैठा , उड़ उड़ कागा मोरे होंठवा पे बैठा
होंठवा के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा। "
इत्ती मस्त एक्टिंग मीता ने लुटने की कि , की मजा आ गया।
अगली लाइन गाने की मैंने शुरू की ,और डांस में साथ देने मेरे मोहल्ले के रिश्ते से , देवरानी रूपा उठी शादी पिछले साल ही हुयी थी।
अरे नकबेसर कागा ले भागा , मोरा सैयां अभागा न जागा।
अरे उड़ उड़ कागा मोरे चोलिया पे बैठा , उड़ उड़ कागा मोरे चोलिया पे बैठा
जुबना के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा।
और डांस के दौरान , उसने मीता को पकड़ लिया , पीछे से और बाकायदा , जोबन मर्दन कर के जोबन लुटने का हाल बताया
बिचारी मीता लाख कोशिश करती रही लेकिन रूपा ने सबके सामने न सिर्फ टॉप के ऊपर से बल्कि अंदर भी खूब चूंचियां रगड़ी और बोला ,
" अरे ननद रानी तेरे भैया तो दिन रात हमारा जोबन लूटते हैं , आज हमारा दिन है ननदों का जोबन लूटने का।
गाना आगे बढ़ा और नीरा भाभी ने गाना शुरू किया
अरे नकबेसर कागा ले भागा , मोरा सैयां अभागा न जागा।
अरे उड़ उड़ कागा मोरे साया पे बैठा , उड़ उड़ कागा मोरे साया पे बैठा
बुरिया के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा।
अरे बुरिया के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा।
और इस बार तो अति हो गयी। रूपा अभी भी डांस में साथ दे रही थी और जैसे ही नीरा भाभी ने बोला बुरिया के सब रस ले भागा , अरे मोरा सैयां अभागा न जागा। उसने मीता का स्कर्ट उठा दिया और पीछे से चमेली भाभी ने उसका साथ दिया।
सब लोगो ने दरसन कर लिया।
और उसके साथ ही रुपा ने मीता की चूत पे वो घिस्से लगाये ,
गनीमत थी की तब तक ये आगये , और सब लोग हट गए।
कालोनी की औरते अपने घर निकल गयीं। चमेली भाभी भी रूपा के साथ चली गयी।
नीरा भाभी , मेरी जेठानी और ये मीता को छोड़ने उसके घर गए और अब मैं अकेली बची।
जाने से पहले मैंने मीता को अंकवार में भरा और जोर से भींचते हुए बुलाया
" हे कल जरूर आना , और शाम को नहीं दिन में ही "
जितना जोर से मैं अपनी बड़ी बड़ी चूंचियो से उसके जोबन रगड़ रही थी , उअतने ही जोर से वो भी जवाब दे रही थी।
" एकदम भाभी , पक्का आउंगी " वो बोली और तीनो चले गए।
Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
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Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
होली की एक और कहानी --
लला ! फिर खेलन आइयो होरी
लला ! फिर खेलन आइयो होरी
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Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
लला ! फिर खेलन आइयो होरी
प्यारे नंदोई जी,
सदा सुहागिन रहो, दूधो नहाओ, पूतो फलो.
अगर तुम चाहते हो कि मैं इस होली में तुम्हारे साथ आके तुम्हारे मायके में होली खेलूं तो तुम मुझे मेरे मायके से आके ले जाओ. हाँ और साथ में अपनी मेरी बहनों, भाभियों के साथ...
हाँ ये बात जरूर है कि वो होली के मौके पे ऐसा डालेंगी, ऐसा डालेंगी जैसा आज तक तुमने कभी डलवाया नहीं होगा. माना कि तुम्हें बचपन से डलवाने का शौक है, तेरे ऐसे चिकने लौंडे के सारे लौंडेबाज दीवाने हैं और तुम 'वो वो' हलब्बी हथियार हँस के ले लेते हो जिसे लेने में चार-चार बच्चों की माँ को भी पसीना छूटता है...लेकिन मैं गारंटी के साथ कह सकती हूँ कि तुम्हारी भी ऐसी की तैसी हो जायेगी.
हे कहीं सोच के हीं तो नहीं फट गई...अरे डरो नहीं, गुलाबी गालों वाली सालियाँ, मस्त मदमाती, गदराई गुदाज मेरी भाभियाँ सब बेताब हैं और...उर्मी भी...”
भाभी की चिट्ठी में दावतनामा भी था और चैलेंज भी, मैं कौन होता था रुकने वाला,
चल दिया. उनके गाँव. अबकी होली की छुट्टियाँ भी लंबी थी.
पिछले साल मैंने कितना प्लान बनाया था, भाभी की पहली होली पे...पर मेरे सेमेस्टर के इम्तिहान और फिर उनके यहाँ की रसम भी कि भाभी की पहली होली, उनके मायके में हीं होगी. भैया गए थे पर मैं...अबकी मैं किसी हाल में उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.
भाभी मेरी न सिर्फ एकलौती भाभी थीं बल्कि सबसे क्लोज दोस्त भी थीं, कॉन्फिडेंट भी. भैया तो मुझसे काफी बड़े थे, लेकिन भाभी एक दो साल हीं बड़ी रही होंगी. और मेरे अलावा उनका कोई सगा रिश्तेदार था भी नहीं. बस में बैठे-बैठे मुझे फिर भाभी की चिट्ठी की याद आ गई.
उन्होंने ये भी लिखा था कि,
“कपड़ों की तुम चिंता मत करना, चड्डी बनियान की हमारी तुम्हारी नाप तो एक हीं है और उससे ज्यादा ससुराल में, वो भी होली में तुम्हें कोई पहनने नहीं देगा.”
बात उनकी एकदम सही थी, ब्रा और पैंटी से लेके केयर फ्री तक खरीदने हम साथ जाते थे या मैं हीं ले आता था और एक से एक सेक्सी. एकाध बार तो वो चिढ़ा के कहतीं,
“लाला ले आये हो तो पहना भी दो अपने हाथ से.” और मैं झेंप जाता.
सिर्फ वो हीं खुलीं हों ये बात नहीं, एक बार उन्होंने मेरे तकिये के नीचे से मस्तराम की किताबें पकड़ ली, और मैं डर गया लेकिन उन्होंने तो और कस के मुझे छेड़ा,
“लाला अब तुम लगता है जवान हो गए हो. लेकिन कब तक थ्योरी से काम चलाओगे, है कोई तुम्हारी नजर में. वैसे वो मेरी ननद भी एलवल वाली, मस्त माल है, (मेरी कजिन छोटी सिस्टर की ओर इशारा कर के) कहो तो दिलवा दूं, वैसे भी वो बेचारी कैंडल से काम चलाती है, बाजार में कैंडल और बैंगन के दाम बढ़ रहे हैं...बोलो.”
और उसके बाद तो हम लोग न सिर्फ साथ-साथ मस्तराम पढ़ते बल्कि उसकी फंडिंग भी वही करतीं.
ढेर सारी बातें याद आ रही थीं, अबकी होली के लिए मैंने उन्हें एक कार्ड भेजा था, जिसमें उनकी फोटो के ऊपर गुलाल तो लगा हीं था, एक मोटी पिचकारी शिश्न के शेप की. (यहाँ तक की उसके बेस पे मैंने बाल भी चिपका दिए) सीधे जाँघ के बीच में सेंटर, कार्ड तो मैंने चिट्ठी के साथ भेज दिया लेकिन मुझे बाद में लगा कि शायद अबकी मैं सीमा लांघ गया पर उनका जवाब आया तो वो उससे भी दो हाथ आगे. उन्होंने लिखा था कि,
“माना कि तुम्हारे जादू के डंडे में बहुत रंग है, लेकिन तुम्हें मालूम है कि बिना रंग के ससुराल में साली सलहज को कैसे रंगा जाता है. अगर तुमने जवाब दे दिया तो मैं मान लूंगी कि तुम मेरे सच्चे देवर हो वरना समझूंगी कि अंधेरे में सासू जी से कुछ गड़बड़ हो गई थी.”
अब मेरी बारी थी. मैंने भी लिख भेजा, “हाँ भाभी, गाल को चूम के, चूचि को मीज के और चूत को रगड़-रगड़ के चोद के.”