काँच की हवेली "kaanch ki haveli"

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Jemsbond
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Re: काँच की हवेली "kaanch ki haveli"

Unread post by Jemsbond » 29 Dec 2014 13:33

अपडेट 11


"मेरे जागने का कारण कुच्छ और है निक्की जी." रवि घंभीर स्वर में बोला - "मैं आपकी माताजी के बारे में सोच रहा था."

"ओह्ह...!" मा के बारे में सुनकर निक्की का चेहरा लटक गया - "तो फिर शायद मैं आपको डिस्टर्ब कर रही हूँ."

"नही ऐसा भी नही है." रवि झेन्प्ते हुए बोला. और निक्की की ओर देखने लगा. उसकी समझ में नही आ रहा था कि वो निक्की से क्या कहे. उसका इस वक़्त उसके कमरे में होने से उसे बहुत घबराहट हो रही थी. वो एक शभ्य इंसान था, उसे अपना मान सम्मान बहुत प्यारा था. वो नही चाहता था कि कोई निक्की को इस वक़्त उसके कमरे में देखे और खा-मखा उसकी इज़्ज़त की धज्जिया उड़े. पर वो सीधे मूह निक्की को जाने के लिए भी नही कह सकता था. ऐसा करना आचरण के खिलाफ था.

निक्की सर झुकाए अपनी सोचों में गुम थी. उसे भी समझ में नही आ रहा था कि वो रवि से असली बात कैसे कहे. वैसे तो वो बहुत खुले स्वाभाव की थी, किसी को कुच्छ कहने में ज़रा भी नही हिचकिचाती थी. पर यहाँ बात और थी. एक तो वो रवि की शालीनता से डर रही थी, दूसरी ये कि वो इस वक़्त अपने ही घर में थी. उसकी एक ग़लती उसे उसी के घर में अपमानित कर सकती थी.

"आपके घर में कौन कौन हैं?" निक्की को कुच्छ ना सूझा तो उसके परिवार के बारे में पुच्छ बैठी.

"मेरी मा और मैं." रवि हौले से मुस्कुराया.

"और आपकी बीवी?" निक्की अपनी नज़रें उसके चेहरे पर गढ़ाती हुई बोली.

"बीवी अभी तक आई नही. अर्थात मैने अभी तक शादी नही की"

"ह्म्म्म....तो महाशय अभी तक गर्लफ्रेंड से ही काम चला रहे हैं." निक्की छेड़खानी वाले अंदाज़ में बोली, लेकिन उसकी बातों में कामुकता का मिश्रण था.

रवि निक्की की स्पास्टवदिता से चौंक उठा. उसे अंदाज़ा नही था कि निक्की इतनी फ्रॅंक बात कर सकती है. वो झेप्ते हुए बोला - "मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है."

"क...क्या?" निक्की का मूह भाड़ सा खुला. हालाँकि ये जानकार उसके मन में हज़ारों लड्डू फूटे थे. पर चौंकने का नाटक करती हुई बोली - "मैं नही मानती. आप इतने खूबसूरत है, आपकी कोई ना कोई गेर्ल फ्रेंड तो ज़रूर होगी. हां....आप मुझे ना बताना चाहें तो बात और है."

"भला आपसे झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा?" रवि ने जवाब दिया.

"हो सकता है, आप इसी बहाने मुझसे बचना चाहते हों." निक्की असली विषय पर आती हुई बोली.

"म....मैं कुच्छ समझा नही." रवि हकलाया. - "मैं भला आप से क्योन्कर बचना चाहूँगा? और फिर...किस लिए?"

"तो आप मुझसे बचना नही चाहते?" निक्की उसकी आँखों में देखती हुई बोली -"तो फिर इतनी दूर क्यों खड़े हैं? यहाँ मेरे पास आकर बैठिए."

रवि का दिमाग़ चकरा गया. उसे कुच्छ भी जवाब देते नही बना. - "निक्की जी आप क्या बोल रही हैं मेरे समझ में कुच्छ भी नही आ रहा है. आप जो भी कहना चाहती हैं साफ साफ कहिए."

"इतने भोले मत बनिये रवि जी." निक्की खड़ी होती हुई बोली - "क्या आप इतना भी नही समझ सकते कि मैं इस वक़्त यहाँ क्यों आई हूँ? लेकिन अगर आप साफ साफ ही सुनना चाहते हैं तो सुनिए." निक्की ये बोलते हुए अपने तन पे लिपटी चादर एक झटके में उतार कर फेंकी दी - "मैं आपके साथ सेक्स करना चाहती हूँ."

रवि अवाक ! वो फटी फटी आँखों से निक्की को देखता रहा. उसने सपने में भी नही सोचा था कि ये लड़की इतनी बेशर्मी के साथ उसके साथ सेक्स करने की बात कर सकती है. उसकी नज़रें उसके चेहरे से फिसल कर नीचे उतरी. उसकी नज़रें निक्की के बूब्स पर पड़ी तो उसके बदन पर चींतियाँ सी रेंग उठी. निक्की के पारदर्शी लिबास में कुच्छ भी नही छीप रहा था. उपर का सारा हिस्सा स्पस्ट दिखाई दे रहा था. उसने अंदर ब्रा भी नही पहनी थी. उसके तने हुए बूब्स और उसके उपर भूरे रंग के चुचक सॉफ दिखाई दे रहे थे. नाइटी इतनी छोटी थी कि सिर्फ़ कमर को ढँक पा रही थी, पर वो ढँकना ना ढँकना एक जैसा ही था. उसकी पैंटी नाइटी के अंदर से भी सॉफ दिखाई दे रही थी. रवि की निगाहें उसकी फूली हुई चूत पर पड़ी तो मूह से "आहह" निकलते निकलते बची. उसकी भारी भारी जांघे रवि के अंदर छुपी उसकी युवा भावनाओ को हवा दे रही थी. उसने अपने अंदर कुच्छ पिघलता सा महसूस किया. उसके कानो की धमनियों से गरम धुआ सा निकलने लगा. उसे अपने पावं की शक्ति कम होती महसूस हुई. इससे पहले कि वो चक्कर खाकर गिर पड़े. उसने अपना चेहरा घुमा लिया. और धीरे से चलते हुए अपने बिस्तर तक पहुँचा और धम्म से बैठ गया.

"क्या हुआ रवि जी? निक्की उसके पास आकर बोली.

निक्की की आवाज़ से रवि ने गर्दन उठाई, उसकी नज़रें निक्की के नज़रों से मिली. उसकी आँखें नशे की खुमारी से भरी हुई थी. निक्की उसे देखती हुई अपने एक हाथ से अपनी जाँघो को सहलाने लगी तो दूसरी हाथ को अपने बूब्स पर फिराने लगी.

रवि के माथे से पसीना छूट पड़ा. उसका लंड पाजामे के अंदर से ही फुफ्करे मारने लगा. उसने अपनी निगाहें झुका ली.

"क्या हुआ रवि? क्यों मुझसे नज़रें चुरा रहे हो? क्या मैं अच्छी नही लगती आपको? आप ध्यान से देखो रवि, मेरे अंग अंग में हुश्न भरा हुआ है. मेरे बूब्स को देखो, ये कितने कड़क हैं. इन्हे छूकर हाथ लगाकर इसकी कठोरता को महसूस करो रवि." निक्की बोली और रवि का हाथ पकड़कर अपने बूब्स पर रखना चाही. पर रवि ने अपना हाथ झटक लिया.

"तुम यहाँ से जाओ निक्की. तुम इस वक़्त होश में नही हो. हम सुबह बात करेंगे." रवि उसकी ओर से मूह फेर्कर बोला.

निक्की को उसकी बेरूख़ी पर तेज गुस्सा आया पर वो अपने गुस्से को पी गयी. वो आगे बढ़ी और उसके पीठ से लिपट गयी. - "रवि मुझसे मूह ना मोडो, एक लड़की अपनी लोक लाज उतार कर जब किसी मर्द के पास आती है तब वो बहुत मजबूर होकर आती है. ऐसी दशा में उस मर्द के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि वो उसके भावनाओ की लाज रखे. क्या तुम मेरा प्रेम परस्ताव को ठुकराकर मेरा अपमान करना चाहते हो?"

"ये प्रेम नही वासना है." रवि एक झटके से अलग होता हुआ बोला -"तुम जिसे प्रेम कह रही हो वो प्रेम नही, प्रेम और वासना में बहुत अंतर है."

निक्की का पारा चढ़ा, वो बिफर कर बोली - "क्या अंतर है?"

"प्रेम और वासना में ये अंतर है कि प्रेम त्याग चाहता है और वासना पूर्ति." रवि ने जवाब दिया. "प्रेम दो शरीरों के मिलन के बिना भी पूरा होता है, लेकिन वासना दो शरीरों के मिलन के बाद पूरी होती है. पर शायद तुम इस फ़र्क को नही समझ सकोगी. लेकिन मैं इस फ़र्क को समझता हूँ. इसलिए मैं कोई भी ऐसा काम नही करूँगा. जिससे कि बाद में मुझे खुद से शर्मसार होना पड़े."

रवि की बातें निक्की को अपने दिल में शूल की तरह चुभती महसूस हुई. रवि के बातें उसके रोम रोम को सुलगाती चली गयी. उसका ऐसा अपमान आज तक किसी ने नही किया था. अपमान तो बहुत दूर की बात है, आज तक किसी में निक्की को इनकार करने की भी हिम्मत नही हुई थी.

निक्की कुच्छ ना बोली, रवि ने उसे कुच्छ भी बोलने लायक छोड़ा ही नही था. वो बस खड़ी खड़ी कुच्छ देर रवि को जलती आँखों से घुरती रही, फिर एकदम से पलटी और दरवाज़े से बाहर निकल गयी. उसने ज़मीन पर पड़ी अपनी चादर भी नही उठाई. उसे ऐसी हालत में बाहर निकलते देख रवि सकपकाया. पर वो कुच्छ कहता उससे पहले ही निक्की उसके कमरे से बाहर जा चुकी थी. वो उसी हालत में बेधड़क गलियारे से गुजरती हुई अपने रूम में पहुँची. रूम में घुसते ही वो बिस्तर पर गिरी और फुट फुट कर रोने लगी. उसका रोना भी लाजिमी था. उसने अपने जीवन में कभी भी हार नही देखी थी. लेकिन आज वह हारी थी. आज वो पहली बार अपनी मर्यादा से गिरकर किसी के आगे दामन फैलाई थी. पर उसे निराशा और अपमान के सिवा कुच्छ ना मिला था. वो अपमानित हुई थी. रवि ने उसके अंदर की औरत का अपमान किया था. वासना में जलती औरत का जब कोई निरादर करता है तो वो औरत घायल शेरनी से भी अधिक ख़तरनाक हो जाती है. वो उस साँप की तरह होती है जिसकी पूंच्छ पर किसी आदमी का पावं पड़ गया हो. वो जब तक अपनी पून्छ पर पावं धरने वाले को डस नही लेती उसे सुकून नही मिलता. ऐसी औरत बदले की भावना में जितना दूसरे का नुकसान करती है उससे कहीं ज़्यादा अपना नुकसान कर लेती है.

निक्की कुच्छ देर बिस्तर पर मूह छिपाये रोती रही. फिर अपना गम हल्का करने के बाद उठी और आईने के सामने जाकर खड़ी हो गयी. उसने आईने में खुद को देखा. सब कुच्छ वैसा ही था. वही सुंदर शरीर, पहाड़ की तरह सर उठाए उसके उन्नत शिखर, वही समतल चिकना पेट, वही हज़ारो दिलों को पर बिजलियाँ गिराने वाली कमर, वही पैंटी में फूली हुई चूत, वही गोरी गोरी सुडोल जांघे. पर इस वक़्त उसे उसकी सुंदरता, उसके एक एक अंग सब उसे मूह चिढ़ाती नज़र आई. उसकी आँखों से फिर से शोले बुलंद होने लगे. रवि की बातें फिर से उसकी कानो में ज़हर घोलने लगी. वह मुत्ठियाँ भिचती हुई अपने आप में बड़बड़ाई - "मिस्टर रवि, अगर मैने तुम्हे अपने कदमो में नही झुकाया तो मैं ठाकुर की बेटी नही. मैं तुम्हे इतना मजबूर कर दूँगी कि तुम खुद चलकर मेरी पनाह में आओगे. ये निक्की की ज़िद है. तुम्हे झुकना ही होगा." उसके इरादे फौलाद की तरह मजबूत थे. वह घूमी और बिस्तर पर पसर गयी. और चादर ओढकर सोने का प्रयास करने लगी.

Jemsbond
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Re: काँच की हवेली "kaanch ki haveli"

Unread post by Jemsbond » 29 Dec 2014 13:33

Update 11


"mere jaagne ka kaaran kuchh aur hai nikki ji." ravi ghambheer swar mein bola - "main aapki maataji ke baare mein soch raha tha."

"ohh...!" maa ke bare mein sunkar nikki ka chehra latak gaya - "to phir shayad main aapko disturb kar rahi hoon."

"nahi aisa bhi nahi hai." ravi jhenpte hue bola. Aur nikki ki aur dekhne laga. Uske samajh mein nahi aa raha tha ki wo nikki se kya kahe. Uska is waqt uske kamre mein hone se use bahut ghabrahat ho rahi thi. Wo ek shabhya insaan tha, use apna maan samman bahut pyara tha. Wo nahi chahta tha ki koi nikki ko is waqt uske kamre mein dekhe aur kha-makha uski izzat ki dhajjiya ude. Par wo seedhe muh nikki ko jaane ke liye bhi nahi keh sakta tha. Aisa karna aachran ke khilaaf tha.

Nikki sar jhukaye apni sochon mein gum thi. Use bhi samajh mein nahi aa raha tha ki wo ravi se asli baat kaise kahe. waise to wo bahut khule swabhav ki thi, kisi ko kuchh kehne mein jara bhi nahi hichkichati thi. Par yahan baat aur thi. Ek to wo ravi ki shalinta se dar rahi thi, dusri ye ki wo is waqt apne hi ghar mein thi. Uski ek galti use usi ke ghar mein apmanit kar sakti thi.

"aapke ghar mein kaun kaun hain?" nikki ko kuchh na sujha to uske parivar ke baare mein puchh baithi.

"meri maa aur main." ravi haule se muskuraya.

"aur aapki biwi?" nikki apni nazrein uske chehre par gadati hui boli.

"biwi abhi tak aayi nahi. Arthat maine abhi tak shadi nahi ki"

"hmmm....to mahashay abhi tak girlfriend se hi kaam chala rahe hain." nikki chhedkhani wale andaaz mein boli, lekin uski baaton mein kaamukta ka mishran tha.

ravi nikki ki spastvadita se chaunk utha. use andaaza nahi tha ki nikki itni frank baat kar sakti hai. Wo jhepte hue bola - "meri koi girlfriend nahi hai."

"k...kya?" nikki ka muh bhaad sa khula. Haalanki ye jaankar uske mann mein hazaron laduu fute the. Par chaunkne ka naatak karti hui boli - "main nahi maanti. Aap itne khubsurat hai, aapki koi na koi gf to jarur hogi. haan....aap mujhe na batana chahen to baat aur hai."

"bhala aapse jhoothh bolkar mujhe kya milega?" ravi ne jawab diya.

"ho sakta hai, aap isi bahane mujhse bachna chahte hon." nikki asli vishay par aati hui boli.

"M....Main kuchh samjha nahi." ravi haklaya. - "main bhala aap se kyonkar bachna chaunga? Aur phir...kis liye?"

"to aap mujhse bachana nahi chahte?" nikki uski aankhon mein dekhti hui boli -"to phir itne door kyon khade hain? Yahan mere paas aakar baithiye."

Ravi ka deemag chakra gaya. Use kuchh bhi jawab dete nahi bana. - "nikki ji aap kya bol rahi hain mere samajh mein kuchh bhi nahi aa raha hai. Aap jo bhi kehna chahti hain saaf saaf kahiye."

"itne bhole mat baniye ravi ji." nikki khadi hoti hui boli - "kya aap itna bhi nahi samajh sakte ki main is waqt yahan kyon aayi hoon? lekin agar aap saaf saaf hi sunna chahte hain to suniye." nikki ye bolte hue apne tan pe lipti chaadar ek jhatke mein utaar kar feinki di - "main aapke sath sex karna chahti hoon."

Ravi avaakkk ! wo fati fati aankhon se nikki ko dekhta raha. Usne sapne mein bhi nahi socha tha ki ye ladki itni besharmi ke sath uske sath sex karne ki baat kar sakti hai. Uski nazrein uske chehre se fisal kar niche utri. uski nazrein nikki ke boobs par padi to uske badan par chintiyan si reng uthi. Nikki ke pardarshi libaas mein kuchh bhi nahi chheep raha tha. upar ka sara hissa spast dikhayi de raha tha. Usne andar bra bhi nahi pehni thi. Uske tane hue boobs aur uske upar bhure rang ke chuchak saaf dikhai de rahe the. Nighy itni chhoti thi ki sirf kamar ko dhank paa rahi thi, par wo dhankna na dhankna ek jaisa hi tha. Uski panty nighty ke andar se bhi saaf dikhai de rahi thi. Ravi ki nigaahen uski fuli hui chut par padi to muh se "aahh" nikalte nikalte bachi. Uski bhari bhari jaanghe ravi ke andar chhupe uske yuva bhavnao ko hawa de rahi thi. Usne apne andar kuchh pighalta sa mehsus kiya. Uske kaano ki dhamniyon se garam dhua sa nikalne laga. Use apne paon ki shakti kam hoti mehsus hui. Isse pehle ki wo chakkar khakar gir pade. Usne apna chehra ghuma liya. Aur dheere se chalte hue apne bistar tak pahuncha aur dhamm se baith gaya.

"kya hua ravi ji? Nikki uske paas aakar boli.

nikki ki awaaz se ravi ne gardan uthayi, uski nazrein nikki ke nazron se mili. Uski aankhen nashe ki khumari se bhari hui thi. Nikki use dekhti hui apne ek hath se apne jaangho ko sehlane lagi to dusri hath ko apne boobs par firane lagi.

Ravi ke maathe se pasina chhut pada. Uska lund pajame ke andar se hi fufkare maarne laga. Usne apni nigahen jhuka lee.

"kya hua ravi? Kyon mujhse nazrein chura rahe ho? Kya main achhi nahi lagti aapko? aap dhyan se dekho ravi, mere ang ang mein hushn bhara hua hai. Mere boobs ko dekho, ye kitne kadak hain. Inhe chhookar hath lagakar iski kathorta ko mehsus karo ravi." nikki boli aur ravi ka hath pakadkar apne boobs par rakhni chahi. Par ravi ne apna hath jhatak liya.

"tum yahan se jao nikki. Tum is waqt hosh mein nahi ho. Hum subah baat karenge." ravi uski aur se muh ferkar bola.

Nikki ko uski berukhi par tej gussa aaya par wo apne gusse ko pee gayi. Wo aage badhi aur uske peeth se lipat gayi. - "ravi mujhse muh na modo, ek ladki apna lok laaj utaar kar jab kisi mard ke paas aati hai tab wo bahut majboor hokar aati hai. Aisi dasha mein us mard ke liye ye jaruri ho jata hai ki wo uske bhavnao ki laaj rakhe. Kya tum mera prem parastav ko thukrakar mera apmaan karna chahte ho?"

"ye prem nahi vaasna hai." ravi ek jhatke se alag hota hua bola -"tum jise prem keh rahi ho wo prem nahi, prem aur vaasna mein bahut antar hai."

nikki ka paara chadha, wo bifar kar boli - "kya antar hai?"

"prem aur vaasna mein ye antar hai ki prem tyaag chahta hai aur vaasna purti." ravi ne jawab diya. "prem do shariron ke milan ke bina bhi pura hota hai, lekin vaasna do shariron ke milan ke baad puri hoti hai. par shayad tum is fark ko nahi samajh sakogi. Lekin main is fark ko samajhta hoon. isliye main koi bhi aisa kaam nahi karunga. Jisse ki baad mein mujhe khud se sharmshar hona pade."

ravi ki baaten nikki ko apne dil mein shool ki tarah chubhti mehsus hui. ravi ke baaten uske rom rom ko sulgaati chali gayi. Uska aisa apmaan aaj tak kisi ne nahi kiya tha. Apmaan to bahut door ki baat hai, aaj tak kisi mein nikki ko inkaar karne ki bhi himmat nahi hui thi.

Nikki kuchh na boli, ravi ne use kuchh bhi bolne laayak chhoda hi nahi tha. Wo bas khadi khadi kuchh der ravi ko jalti aankhon se ghurti rahi, phir ekdam se palti aur darwaze se bahar nikal gayi. usne zameen par padi apni chadar bhi nahi uthai. Use aisi haalat mein bahar nikalte dekh ravi sakpakaya. Par wo kuchh kehta usse pehle hi nikki uske kamre se bahar ja chuki thi. Wo usi haalat mein bedhadak galiyare se gujarti hui apne room mein pahunchi. Room mein ghuste hi wo bistar par giri aur foot foot kar rone lagi. uska rona bhi laajimi tha. Usne apne jeevan mein kabhi bhi haar nahi dekhi thi. Lekin aaj wah haari thi. Aaj wo pehli baar apni maryada se girkar kisi ke aage daaman failayi thi. Par use nirasha aur apmaan ke siwa kuchh na mila tha. wo apmaanit hui thi. Ravi ne uske andar ki aurat ka apmaan kiya tha. vaasna mein jalti aurat ka jab koi niradar karta hai to wo aurat ghayal sherni se bhi adhik khatarnak ho jati hai. Wo us saanp ki tarah hoti hai jiski poonchh par kisi aadmi ka paon pad gaya ho. Wo jab tak apni poonchh par paon dharne wale ko das nahi leti use sukun nahi milta. aisi aurat badle ki bhavna mein jitna dusre ka nuksaan karti hai usse kahin zyada apna nuksaan kar leti hai.

nikki kuchh der bistar par muh chhipaye roti rahi. Phir apna gam halka karne ke baad uthi aur aaine ke saamne jaakar khadi ho gayi. Usne aaine mein khud ko dekha. Sab kuchh waisa hi tha. wahi sundar sharir, pahad ki tarah sar uthaye uske unnat shikhar, wahi samtal chikna pet, wahi hazaro dilon ko par bijliyan girane wali kamar, wahi panty mein fuli hui chut, wahi gori gori sudol jaanghe. Par is waqt use uski sundarta, uske ek ek ang sab use muh chidhati nazar aayi. Uski aankhon se phir se sholay buland hone lage. Ravi ki baaten phir se uski kaano mein zehar gholne lagi. Wah muthiya bhichti hui apne aap mein badbadayi - "mr ravi, agar maine tumhe apne kadmo mein nahi jhukaya to main thakur ki beti nahi. Main tumhe itna majboor kar dungi ki tum khud chalkar meri panaah mein aaoge. Ye nikki ki zid hai. Tumhe jhukna hi hoga." uske iraade faulaad ki tarah majboot the. Wah ghumi aur bistar par pasar gayi. Aur chadar odhkar sone ka prayas karne lagi.

Jemsbond
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Re: काँच की हवेली "kaanch ki haveli"

Unread post by Jemsbond » 29 Dec 2014 13:50

अपडेट 12

निक्की के जाने के बाद रवि ने दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर में घुस गया. फिर अपनी आँखें बंद करके सोने का प्रयास करने लगा. आँखें बंद होते ही आँखों के सामने निक्की का शोले बरसाता शरीर नाच उठा. उसके शरीर के अंगो से निकलती यौवन चिंगारियों की तपिश उसे फिर से झुलसाने लगी. उसके धमनियों में बहता लहू फिर से गरम होने लगा. रवि ने बेशक निक्की का परस्ताव ठुकरा दिया था पर वो उसकी सुंदरता के सम्मोहन से नही बच पाया था. वो मजबूत इरादो वाला व्यक्ति था. पर ये भी सच था कि आज उसने जो कुच्छ देखा था वो उसके लिए बिल्कुल नया था. रवि ने अपने पूरे जीवन में कामवासना में जलती ऐसी लड़की नही देखी थी. क्या वास्तव में आज की लड़कियाँ ऐसी ही होती है. जो माता पिता की परवाह किए बिना किसी के भी सामने अपने कपड़े उतारने में उतावली रहती हैं. वैसे तो रवि मनोचिकित्सक था पर लड़कियों के प्रति उसका ज्ञान कोरा था.
वजह थी उसका शर्मीला स्वाभाव....और मा की कड़ी नशिहत! उसकी मा की इच्छा थी कि वो डॉक्टर बने, वो एक साधारण परिवार का होने के बावज़ूद भी उसकी मा ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नही होने दी थी. उसके पिता....जब वो 5 साल का था तभी काम के सिलसिले में बेवतन हुए थे जो अभी तक लौटकर घर नही आए थे. ईश्वर जाने उसके पिता अब ज़िंदा भी हैं या नही. उसकी मा ने खुद लाख दुख उठाकर उसे किसी चीज़ की कमी नही होने दी थी. उसने भी बचपन से ही यह तय कर लिया था कि वो अपनी मा का सपना पूरा करेगा. यही वजह थी कि जब कभी उसके पास से कोई लड़की गुजरती तो वह अपनी आँखें फेर लेता था, कॉलेज की सेक्सी और दिलफेंक लड़कियों को देखकर अपनी निगाहें नीचे कर लेता था. किशोरवस्था तक पहुँचते पहुँचते वह इतना दब्बु स्वाभाव का हो गया था कि अगर कोई लड़की उसे पुकार लेती तो उसके पसीने छूट पड़ते थे. हाथ पावं ऐसे फूल जाते थे जैसे उसे किसी योद्धा ने युद्ध के लिए ललकारा हो. उसके इस स्वाभाव के कारण उसके दोस्त उसे बहुत चिढ़ाते थे, अपने प्रेम के रस भरे किस्से सुना सुना कर उसे छेड़ते थे. रवि जब अपने दोस्तों के मूह से उनके प्रेम के किस्से सुनता तो उसका मॅन भी किसी हसीन लड़की को अपना बना लेने का करता, तब उसका मॅन भी मचल कर उससे कहता कि तू भी कोई गर्लफ्रेंड बना ले. उस स्थिति में उसकी मा की बाते उसके पावं की बेड़िया बन जाती. वह अपने सीने में उठते अरमानो को अपनी मा के दुखों का ख्याल करके उनपर अंकुश लगा देता. वो किताबी कीड़ा था अपनी तन्हाई को किताबों से दूर करता वही उसकी महबूबा थी. उसने प्यार मोहब्बत के किस्से बहुत पढ़े थे, सेक्स और वासना के किस्से भी दोस्तों से सुन रखे थे. पर निक्की जैसी लड़की के बारे में ना तो उसने कहीं पढ़ा था और ना ही किसी दोस्त ने उसे बताया था. वो अलग थी.....सबसे अलग !

रवि अपने जीवन में कभी भी विचलित नही हुआ था, उसका दिमाग़ बहुत मजबूत था, पर आज निक्की ने उसे विचलित कर दिया था. अब उसके दिमाग़ में एक ही प्रश्न घूम रहा था. -"अब उसे क्या करना चाहिए? निक्की जैसी लड़की शांति से बैठने वाली लड़की नही है, वो फिर प्रयास करेगी, या फिर अपने अपमान का बदला उसे अपमानित करके लेगी. ऐसी स्थिति में उसके बचाव के दो ही विकल्प रह गये थे, या तो वो सारा सच ठाकुर को बता दे ये फिर वो चुप चाप यहाँ से काम छोड़ कर चला जाए. पहला विकल्प उसे घृणित जान पड़ा, निक्की की असलियत बताकर वो ठाकुर साहब को जीतेज़ी मारना नही चाहता था, वैसे भी राधा देवी के गम में वे आधे मर चुके थे, अब निक्की की करतूतों को जानकार तो उस भले इंसान का दम ही निकल जाएगा. अब दूसरा विकल्प था हवेली छोड़ कर जाने का. लेकिन यहाँ से जाने का अर्थ था अपनी डॉक्टरी पेशे का अपमान करना, उसने ठाकुर साहब को वचन दिया था कि वो उनकी पत्नी राधा को ठीक किए बिना यहाँ से नही जाएगा. ठाकुर साहब पिच्छले 20 वर्षो से इसी आस में जी रहे थे कि कोई डॉक्टर उनकी पत्नी को ठीक कर दे, कितने डॉक्टर्स आए और पैसे खाकर चले गये, वो अपनी गिनती उन डॉक्टर्स में नही करना चाहता था. ठाकुर साहब रवि पर बहुत आस लगाए बैठे थे. अब जो भी हो वो यहीं रहेगा, सिर्फ़ एक लड़की उसकी ज़िंदगी का फ़ैसला नही कर सकती, वो भी एक चरित्रहीन लड़की. हरगिज़ नही!वो हवेली छोड़ कर नही जाएगा, रही बात निक्की की तो चाहें वो अपने हुश्न की लाखो बिजलियाँ गिरा ले, चाहें वो निर्वस्त्र ही उसके सामने क्यों ना बिच्छ जाए, वो नही हिलेगा. उसने अपने इरादों को मजबूत किया और चादर तानकर सोने का असफल प्रयत्न करने लगा.

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अगली सुबह रवि अपने नियमित टाइम पर सोकर उठा, वो नहाने के बाद लगभग 10 बजे राधा देवी के कमरे में जूस और दवाइयाँ लेकर गया. ये उसका रोज़ का काम था, उसे दिन में दो बार राधा देवी को दवाइयाँ और जूस देना रहता था, एक 10 बजे सुबह और दूसरी दफ़ा रात को 9 बजे. इस वक़्त निक्की भी उसके साथ होती थी. आज भी रवि और निक्की राधा देवी के कमरे में गये, पर दोनो इस बार एक दूसरे से दूर दूर ही रहे, हां राधा देवी के सामने रवि निक्की को अपने पास आने से नही रोक सका. वहाँ वह जब तक रहा निक्की उसके साथ चिपकी रही. राधा देवी के कमरे में निक्की कभी अपना सर रवि के कंधे पर रख देती तो कभी अपने बूब्स रवि की बाहों से रगड़ने लगती, तो कभी हस्ते हुए उसकी आँखों में ऐसी भूखी नज़रों से देखती कि रवि की रोंगटे खड़े हो जाते. किसी तरह से वह काम निपटा और रवि अपने कमरे में आया. उसका दिमाग़ भन्ना गया था. दिन भर अपने रूम में पड़ा पड़ा निक्की के बारे में ही सोचता रहा. पर वो जितना निक्की के बारे में सोचता उसका दिमाग़ और खराब होने लगता. लगभग 3 बजे वो हवेली से बाहर निकला. उस वक़्त धूप बहुत तेज़ थी, लेकिन रवि हवेली से बाहर रहकर निक्की के ख्यालों से पिछा छुड़ाना चाहता था. उसने अपनी बाइक संभाली और पहाड़ियों की ओर निकल गया. घाटियों में पहुँचकर उसने अपनी बाइक रोकी और पैदल ही झरने की तरफ बढ़ गया. कुच्छ ही मिनिट में वो एक विशाल झरने के निकट खड़ा था. वो खड़े खड़े झील में गिरते झरने को देखने लगा. उसने सोचा यहाँ इतना अधिक शोर होकर भी कितनी शांति है. और हवेली में कोई शोर ना होकर भी मॅन को शांति नही. वो थोडा और आगे बढ़ा, उसका इरादा झील में गिरते पानी को देखने का था. क्योंकि वो जिस जगह खड़ा था वहाँ से झील की सतह नही दिख रही थी. उसने अपने कदम बढ़ाए. अभी वो दो कदम ही चला था कि उसके दाहिने और उसे किसी के होने का एहसाह हुआ. उसने अपनी गर्दन घुमाई तो उसे एक लड़की पत्थर पर बैठी दिखाई दी. लड़की का आधा शरीर पत्थरों की ओट में छिपा हुआ था. लड़की का सिर्फ़ बायां कंधा ही बाहर था. लेकिन तेज़ हवाओं के झोके से उसके लंबे बाल बार-बार उड़कर वहाँ पर किसी लड़की के होने का प्रमाण दे रहे थे. रवि उस लड़की को देखने की चाह लिए थोड़ा और आगे बढ़ा. अब वो उस लड़की से सिर्फ़ दस कदम पिछे खड़ा था. वहाँ से वो उसे सॉफ सॉफ देख सकता था. ना केवल देख सकता था बल्कि अब तो रवि ने उसे पहचान भी लिया था. ये कंचन थी. वो आज भी उसी लिबास में थी जिसे रवि ने उसे सबक सिखाने के लिए, उसके भाई की मदद से चुरा लिए थे. वो कुच्छ देर उसे देखता रहा, उसे अंदेशा था कि वो उसे पलटकर देखेगी, लेकिन नही, वो किसी गहरी सोच में लग रही थी उसकी आँखें गिरते झरने पर टिकी हुई थी. सहसा रवि का माथा ठनका. कहीं ऐसा तो नही ये लड़की आत्महत्या करने आई हो. जिस तरह शहरों में बस और ट्रेन के नीचे लेटकर जान देने का रिवाज़ है, उसी तरह गाओं में पहाड़ों से छलाँग मारकर और कुएँ में कूद कर जान देने का चलन भी है. अगले ही पल उसके दिमाग़ में सवाल उभरा -"लेकिन ये मरना क्यों चाहती है? इस उमर में ऐसा क्या हो गया कि ये जान देने को तैयार हो गयी. कहीं ऐसा तो नही कि मैने कल जो इसको बुरा भला कहा था उसी से दुखी होकर अपनी जान दे रही हो? होने को कुच्छ भी हो सकता है? ये गाओं के लोग बड़े ज़ज़्बाती होते हैं. इससे पहले कि वो लड़की गहरी झील में समा जाए उसने पुकारा -"आए लड़की, तू मरना क्यों चाहती है?"

रवि की आवाज़ जैसे ही उसके कानो से टकराई, वो चौंकते हुए पलटी. उसके चेहरे पर गहरे दुख की परत चढ़ि हुई थी, आँखे इस क़दर लाल थी मानो वो रात भर सोई ही ना हो. रवि आश्चर्य से उसके चेहरे को देखता रहा.

"आप.....!" कंचन आश्चर्य से रवि को देखती हुई बोली, फिर धीरे से मुस्कुराइ, उसकी मुस्कुराहट भी दम तोड़ते इंसान की तरह थी. जिनमे पीड़ा के अतिरिक्त और कुच्छ भी ना था. वो आगे बोली - "मैं क्यों मरूँगी? और आप क्यों चाहते हैं कि मैं मरूं? क्या आप मुझसे इतनी घृणा करते हैं कि मुझे जीवित देखना भी पसंद नही करते?"

कंचना की बातें व्यंग से भरी हुई थी. रवि तिलमिला गया. उसे तत्काल कोई उत्तर देते ना बना. वह हकलाते हुए बोला - "मेरा ये मतलब नही था, तुम झरने के इतनी निकट खड़ी थी कि मुझे ऐसा भ्रम हुआ कि तुम अपनी जान देना चाहती हो. आइ'म सॉरी." रवि झेन्प्ते हुए बोला.

"मैं इतनी कमजोर लड़की नही हूँ साहेब की किसी के तिरसकार से दुखी होकर अपनी जान दे दूं. मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार है." कंचन दुखी मन से बोली और वहाँ से जान लगी.

रवि को कंचन की बातों में एक दर्द का एहसास हुआ, उसे ऐसा लगा जैसे वो अंदर ही अंदर सिसक रही हो. वैसे तो रवि निर्दोष था, पर जाने क्यों उसे ऐसा लगा कि कंचन के दुखों का वही ज़िम्मेदार है. उसे कंचन की बाते अपने दिल में चुभती सी लगी. वो कुच्छ देर खामोशी से उसे जाते हुए देखता रहा फिर पीछे से आवाज़ दिया - "सुनो..."

कंचन उसकी आवाज़ से रुकी, फिर धीरे से पलटी. रवि धीरे से चलकर उसके करीब पहुँचा. -"क्या हुआ? तुम इतनी उदास क्यों हो?"

रवि ने इतनी आत्मीयता से पुछा की कंचन भावुकता से भर गयी, जब किसी दुखी मन को कोई प्यार से दुलारता है तो उसके अपनेपन से उसके स्नेह से वो मन और भी भावुक हो जाता है. कंचन को रवि का यूँ आत्मीयता से पुछ्ना उसे और भी भावुक कर गया. वो अपनी भावनाओ पर काबू ना पा सकी और उसकी आँखें भर आई. वो कुच्छ भी जवाब देने के बजाए बस गीली आँखों से रवि को देखती रही. वो कहती भी तो क्या? वो खुद भी तो नही जानती थी कि उसे क्या हुआ है. क्यों अचानक से उसकी दुनिया बदल गयी है, क्यों अब वो पहले की तरह हस्ती बोलती नही है, क्यों अब वो अकेले रहने में सुकून महसूस करने लगी है. क्यों उसका मन हरदम यही चाहता है कि वो कहीं अकेले में बैठकर सिर्फ़ अपने साहेब के बारे में सोचती रहे.

"अरे.....ये क्या?" रवि उसकी आँखों की कोरो पर चमक आए आँसू की बूँदो को देखकर बोला - "तुम रो रही हो? अगर कोई समस्या है तो मुझे बताओ. क्या किसी ने कुच्छ कहा है?"

"आप जाओ साहेब, आपको इससे क्या कि मैं रो रही हूँ कि हंस रही हूँ. मुझ ग़रीब के हँसने रोने से आपके सम्मान को कोई ठेस नही पहुँचने वाली." कंचन रुन्वासि होकर बोली.

"अगर तुम कल की बात को लेकर दुखी हो तो प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. लेकिन तुम खुद ही सोचो उस दिन हवेली में मेरे कपड़ों के साथ जो हुआ-क्या वो ठीक था?"
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