मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

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The Romantic
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मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

Unread post by The Romantic » 28 Dec 2014 17:41

मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

this is not mine just copy pest for you

writer-Aakaash66


दोस्तों , यह कहानी मेरी अपनी कहानी ..मेरे खुद की जुबानी .. मेरे दिल के बिलकुल करीब ..और आप ये समझिये मेरे दिल की धड़कन है .. !

मैं एक इंजिनियर हूँ... अच्छी कंपनी में अच्छी नौकरी करता हूँ .. मेरा अच्छा खासा परिवार है , मुझ से प्यार करने वाली पढ़ी लिखी पत्नी है , दो सुंदर और मुझे जान से प्यारी बेटियां हैं ..अब तो दोनों की शादी हो चुकी है .उनका अपना परिवार है ...

ये कहानी उन दिनों की है जब मेरी बेटियां छोटी थीं ...और मेरी पोस्टिंग एक ऐसी जगह हो गयी जहाँ अछे स्कूल नहीं थे ..मैंने अपने परिवार को यानि अपनी पत्नी और अपने बच्चों को उनके नानी के यहाँ , जो एक काफी बड़े शहर में है ..छोड़ दिया और खुद वापस अपनी नौकरी में आ गया !

शुरू के कुछ दिन तो नयी जगह और नयी पोस्टिंग में अपने को adjust करने में निकल गए ! समय कैसे बीत गया कुछ पता ही नहीं चला .बीबी बच्चों की याद तो आती थी पर उसका कुछ खास असर नहीं होता था .. काम की मसरूफियत में सब कुछ भूल जाता था ! अकेलापन कभी कचोटता नहीं .. सुबह जल्दी निकल जाता था और घर वापस आते काफी रात हो जाती थी ... नौकर खाना बना कर टेबल पर लगा कर चला जाता था , पास में ही servant quarter था , वहीं रहता था , रामू , मेरा नौकर !

करीब एक महीने तक ऐसा ही चलता रहा ..और फिर जब धीरे धीरे मैंने वहां का काम संभाल लिया .. काम कम होता गया और मेरे पास समय की कमी या काम का बोझ नहीं रहा ! शाम को अब मैं घर जल्दी अ जाता था ..पर अकेलापन मानो पहाड़ जैसे लगता था .. बीबी और बच्चों की याद आती ... समय काटे नहीं कटता .. उन दिनों मोबाइल और std जैसी सुवुधाएं भी नहीं थीं I घर में telephone था , पर STD की सुविधा नहीं थी इसलिए trunk कॉल करना पड़ता था ..और आपको मालूम होगा trunk कॉल से बात करना भी अपने आप में भारी मुसीबत होती थी ... ऐसे में अकेलापन और भी कचोटता था ..!

मैं वहां का seniormost ऑफिसर था इसलिए बाकि junior ओफ्फिसर्स से ज्यादा घूल मिल भी नहीं सकता .. शहर भी छोटा था , समय बीताने के कुछ और साधन भी नहीं थे ..बस ऑफिस , और घर और कभी कभी पिक्चर देख लेता था वहां के एक लौते हाल में !

इसी अकेलेपन ने मुझे एक अजीब मोड़ पे ला कर खड़ा कर दिया ..मैं एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा जो अनजान होते हुए भी ऐसा लगा मेरे हमसफ़र नए नहीं .. मेरे जाने पहचाने ..मेरे करीबी , मेरे बिलकुल अपने .. जब की किसी से भी मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई ... इस नए मोड़ ने , इस नयी राह ने और इस सफ़र के हम सफ़र ने मेरी जिंदगी को झकझोर दिया ..!

मैं ऐसे दो राहे पर था जहाँ पीछे थी मेरी जिंदगी और सामने था मेरा दिल .. !

मैं यहाँ बता दूं मुझे सब सागर साहेब कह कर बुलाते हैं...मेरा नाम प्रीतम सागर है ! और हाँ मुझे पान खाने का बड़ा शौक है ..खाना खाने के बाद लंच हो या डिनर मुझे पान जरूर चाहिए ..मेरे पानवाले को मालूम है मुझे कैसा पान पसंद है .मेरे जाते ही मेरे पसंद का पान बड़े प्यार से लगा कर देता था .! उस से काफी अच्छी पहचान हो गयी थी और हम लोग काफी घूल मिल भी गए थे ..उसे मालूम था की मैं यहाँ अकेला ही रहता हूँ I

एक दिन की बात है ...मुझे अपनी बीबी बच्चों की बहोत याद आ रही थी ..मैं काफी उदास था ... डिनर के बाद उसी उदास मूड में ही पान खाने निकला ..सोचा बाहर घूम आऊं .थोडा दिल बहल जायेगा .. पानवाले ने मुझे देख कर कहा :" लगता है साहब का आज मूड कुछ ढीला है .."
मैंने कहा " हाँ यार ढीला तो है ..बस तुम आज ऐसा पान बनाओ मूड tight हो जाये ...! "
उसने जवाब दिया " साहब कब तक सिर्फ पान से मूड tight करोगे ..?? मूड तो आपका tight हो भी गया तो क्या ? आप के अन्दर वाला तो ढीला ही रहेगा ..! " और जोरों से हंस पड़ा !!
" क्या मतलब ..??' " मैं जरा serious होता हुआ बोला !
पानवाला कोई कच्चा खिलाडी नहीं था , जल्दी हार मानने वाला नहीं !
उसने कहा " क्यों बनते हो साहब ? आप कहो तो आपके अकेलेपन का इलाज कर दूं ??"
तब तक मेरा पान लग चूका था ..यह सब बातें उस ने पान लगाते लगाते ही कहा ..
मैंने उस के हाथ से पान ली .मुंह में डाला और कहा " देखो यार मैं समझता हूँ तुम क्या कहना चाह रहे हो .पर फिर भी .."
"सोच लो साहेब ..कोई जल्दी नहीं .. बस इतना समझ लो मेरे पास शर्तिया इलाज है ..!"
मैं उस की ओर पान चबाता हुआ देखा , मुस्कुराया और कहा " ठीक है ठीक है ...अभी मेरा मर्ज़ ला इलाज नहीं ..यार जब उस हालत पे होगी तो देखा जायेगा ."
पानवाले ने भांप लिया ... उस ने पहली बाज़ी जीत ली थी !

काश मैं उस दिन उस से ज्यादा बातें नहीं की होती ..... !!!!




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Re: मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

Unread post by The Romantic » 28 Dec 2014 17:42

पान का आनंद लेते हुए मैं घर वापस आ गया .थोड़ी देर टीवी देखा , फिर बिस्तर पर लेट गया ...पर नींद तो आज कोसों दूर थी ..मैं करवटें लेता रहा , पर सो नहीं पाया ..एक अजीब भारीपन .. मन में उदासी , बेचैनी , तड़प ..बड़ा ही अजीब माहौल था I किसी को बाँहों में ले कर , उसे अपने से चिपका कर एक जोरदार किस करने का मन करता .. कभी मन करता किसी की चूत फैला कर उसकी गुलाबी फांकों को अपने होठों से चूस लूं .. उन्हें ऊपर नीचे चाटता रहूँ , जब तक उसकी चूत से पानी की धार न बह जाये ...फिर अपने तने हुवे लंड को अन्दर पेल दूं ..लगातार ,बार बार उसकी चूतडों को ऊपर उछाल उछाल कर चोदता रहूँ ... यह सब सोचते सोचते मेरा लौड़ा एक दम टून्न हो गया ..७ इंच और मुठी भर का लौड़ा , जो मेरी बीबी के हाथों में भी समां नहीं पाता , वोह दोनों हतेलियों से उसे सहलाती थी .. और बड़े प्यार से उसे मुंह में ले कर चूसती थी .. पर अभी बेचारा बीना किसी सहारे के फूंफकार रहा था , उसकी मजबूरी कोई सुनने वाला नहीं था .. मैंने अपने लौड़े अपनी मुठी में लिया और सहलाने लगा .थोडा अच्छा लगा ... और भी टन्ना गया , जैसे अपने जड़ से उखड ही जायेगा ...मुझ से रहा नहीं गया .मैंने अपने सब से मुलायम तकिये से अपने लंड को , करवट ले कर , बिस्तर से दबा दिया , और अपने कमर हीला हीला कर लंड को तकिये और बिस्तर के बीच रगड़ने लगा ...आः ..कुछ राहत मिली , मैंने जोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए ..जैसे किसी की चूत फाड़ने जा रहा हूँ ...आः ..ऊऊह्ह , सही में बड़ा मजा आ रहा था ... धक्के की रफ़्तार बढती गयी ... मेरा लौड़ा जैसे छील ही जानेवाला हो . पर मैंने ध्यान नहीं दिया , लगातार धक्के लगता रहा ..लगाता रहा और फिर ....मेरे लंड से पिचकारी की तरेह वीर्य निकल पड़ा ... झटके के साथ मैं झाड़ता रहा .. चादर और तकिया पूरी तरेह गीली हो गयी .चिपचिपी हो गयी ..पर मन शांत हो गया ..थोडा शुकून मिला ,, चूत न सही पर लौड़े को कोई जगह तो मिली , रगड़ने को !

और थोड़ी देर हांफते हुए लेट गया ... नींद कब आ गयी मुझे पता ही नहीं चला .. !

सुबह उठते ही मेरी नज़र गीले तकिये और चादर पर गयी ..जो अब सूख गया था और पपड़ी जमी थी वहां ..

पर आखिर कब तक ..??

मैंने मन बना लिया अब कुछ करना है ... कुछ शर्तिया इलाज करानी है लौड़े की बीमारी का ....

और ऑफिस जाते जाते मैं ने पानवाले की तरफ अपनी कार मोड़ दी ......

कार मैंने पान दूकान के पास रोक दी , और उतर कर दूकान के पास गया ...कुछ खास भीड़ नहीं थी , पर फिर भी कुछ लोग वहां थे .. मोहन ने (पानवाला) मुझे देख सलाम ठोंका और कहा ." बस इन्हें जरा निबटा लूं ", सामने खड़े ग्राहकों की ओर इशारा किया !
"कोई बात नहीं , आराम से ..मुझे भी आज जल्दी नहीं .
और मैं खड़ा रहा अपनी बारी की इंतज़ार में I

छोटे शहर में रहने के बहोत फायदे हैं तो सब से बड़ा नुकसान भी है के कोई भी बात बहोत जल्दी फैल जाती है , सब एक दूसरे को जानते हैं .इसलिए मोहन के शर्तिया इलाज से मैं जरा घबडा रहा था , कहीं बदनामी न हो जाये . और पता नहीं कैसी जगह और किस रंडी के यहाँ मुझे भेज दे .. बीमारी का डर भी था , मैं काफी उधेड़ बून में था , उसे कहूं या न कहूं ..?? कहीं एक बीमारी के इलाज में दूसरी कई बीमारियों का शिकार न हो जाऊं..

और इधर हमारे मोहन भाई दनादन हाथ मारते हुए अपने सभी ग्राहकों को फटाफट निबटाया , फिर पानी से अपने हाथ धोये और मेरे लिए पान के चार सब से अछे पत्ते चूने , उन्हें कैंची से बड़ी सावधानी से कुतरते हुए मेरे से कहा " सागर साहेब , आप मेरे स्पेशल ग्राहक हो , आपको जनता छाप पान कैसे दूं ..?? आप के लिए जरा सफाई से ही काम करना पड़ता है न .. और सुनाइए ..कुछ इलाज़ के बारे सोचा आपने ?? " और ये कहते हुए उस ने आँख मारी और जोरों से हंस पड़ा !!

"यार इलाज़ तो चाहिए .. पर गुरु तुम कुछ ऐसी वैसी जगह तो नहीं भेज रहे मुझे ..?? " यह कहते हुए मैंने अपने अगल बगल देखा ..कोई नहीं था उस वक्त वहां ..

उस ने पान लगाते हुए कहा " क्या बात कर रहे हो साहेब ..जैसे पान आपका स्पेशल छांटता हूँ मैं .आपके लिए वैसी ही स्पेशल चीज़ भी चुन रखी है .. बस एक बार आजमा के तो देखो साहेब .. अपना हथियार आप उस के अन्दर से निकालना ही नहीं चाहोगे ... " और फिर जोरों से हंस पड़ा ... !!

"ऐसी बात है ..?? " मैंने पूछा.

"बिलकुल ..एक दम चुम्बक है सर , उस के साथ आप ऐसे चीपकोगे जैसे शहद से मक्खी .. पूरे का पूरा चूस लो .. '
उसकी बातों से मेरा मन भी डोल गया ...और मैं मीठे शहद की कल्पना में खो गया ..."ये शाला है बड़ा चालू , लगता है मेरी इलाज कर के रहेगा .." मैंने सोचा . शहद चूसने की बात से मेरे पैंट के अन्दर कुछ हलचल सी हुई ..

तब तक मोहन पान लगा चूका और एक पान मुझे थमाया और बाकि के तीन पैक कर दिया मेरे ऑफिस के लिए ! पान मैंने मुंह में दबाया और बोला... " देख यार बातें तो तू बड़ी बड़ी कर रहा है ..पर सही में सब कुछ वैसा ही है जैसा तू बता रहा है.. ??"

" आप से मैं झूटी बात क्यूं करूंगा सर ..?? मुझे क्या आप से अपना रिश्ता तोडना है ..?? मैं इतना घटिया इंसान नहीं हूँ सागर साहेब ..एक बार चीज़ को चख तो लो साहेब ..अगर पसंद नहीं आये तो चार जूतियाँ मारना मुझे ... "

उसकी इन बातों से मैं काफी इम्प्रेस हो गया .." चलो ", मैंने सोचा , " एक बार ट्राई मारने में क्या हर्ज़.. ये शाला झूठ बोल कर जायेगा कहाँ ..?? "

"ठीक है .. बोलो क्या करना है और कब ..??" मैं ने अपनी रजामंदी दे दी !!

मोहन की आँखों में चमक आ गयी ...उस ने कहा " शुभ काम में देर किस बात की ..मैं आज शाम के लिए सब सेट कर देता हूँ .. अगर पसंद आ गयी तो बस रात भर का इंतज़ाम हो जायेगा ... "

"ठीक है . ""

और मैं पान का पैकेट ले कर अपनी कार की ओर चल पड़ा .. कार स्टार्ट की और ऑफिस पहुँच गया ..!


दिन भर मैं शाम की रंगीनियों के बारे सोचता रहा ..कैसी रहेगी ..?? इस तरेह की चुदाई का ये मेरा पहला मौका था ... मेरा रोम रोम सीहर उठा .. एक रोमांच सा दिल में होने लगा ..जैसे तैसे काम निबटा क़र घर पहुंचा . हाथ मुंह धो कर फ्रेश हुआ .थोडा हल्का सा नाश्ता किया और चल पड़ा आज के adventure की तरफ .. मोहन के पान दूकान की ओर..

ये मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम था ...!

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Re: मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

Unread post by The Romantic » 28 Dec 2014 17:43

मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे और साथ में कुछ घबडाहट भी थी ..पता नहीं शाला कैसी माल दिखायगा.. कोई ऐसी वैसी रंडी होगी ..जो शाली अपनी चूत खोल और फैला के लेट जाएगी .. और चूत कम भोंसडा ज्यादा होगा .. फिर मज़ा क्या आयेगा ..उस से अच्छा तो अपना तकिया रगड़ना है .. खैर अब जब ओखल में सर दिया तो मूसल का क्या डर ..चल बेटा प्रीतम सागर .. लगा शाली चूत की सागर में गोते ... कुछ मोती तो मिल ही जायेंगे ..हा हा हा !! इन्ही सब सोच में मेरी कार दूकान के पास आ गयी ..मैंने दूकान से थोड़ी दूर पर कार रोकी और चल पड़ा मोहन की तरफ ..

उसकी दूकान पर कुछ लोग थे .. इसलिए मैं वहां पहुंचते ही चुपचाप एक कोने में खड़ा हो गया ..मोहन ने मुझे देख लिया और एक हलकी मुस्कान दी और कहा " बस सर ..थोडा वेट कीजिये न ..मैं इन्हें निबटाया और आपको पान खिलाया .." और उस ने धीरे से आँख भी मार दी ...
मैं भी उसके जवाब में मुस्कुरा दिया ..

थोड़ी देर बाद एक शख्श को छोड़ बाकि सभी चले गए .. इसलिए मैं आगे तो बढा पर उस शख्श की ओर शक की निगाह से देखा .. मोहन मेरे मन की बात भांप गया और तुरंत बोला " सर यह हमारे करीबी गोपाल सिंह हैं ...आज आप के काम की जिम्मेदारी इन्ही की है .. " और गोपाल की ओर मुखातिब हो कर उस से कहा " अरे भैय्या गोपाल , ये हमारे सागर साहेब हैं ..हमारे बहोत ही खास ,,आज इनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए ..बेटा अगर इनसे कोई शिकायत हुई तो फिर तू जानता है न तेरा क्या हश्र होगा .." और जोरों से हंसने लगा I
मोहन का पान लगाना और बातें करना दोनों हमेशा साथ ही होते हैं... हँसते हुए उस ने मेरी ओर पान बढाया और कहा " ई पान भी आज स्पेशल है साहेब , आप भी क्या याद रखेंगे .. पान खाइए और गोपाल के साथ जाइये ..लूटिये मज़े .. बेफिकर .. " और एक और जोरदार ठहाका .. !

मैंने मुंह में पान डाला और गोपाल से कहा " चलो बैठो मेरी कार में , कहाँ जाना है ..?? "
पर गोपाल ने मेरी कार की ओर ऐसे देखा जैसे कोई मालगाड़ी हो.. और उसमें बैठना उस की इज्जत के खिलाफ है I

मैं पूछा"क्या हुआ , कार देख कर घबडा क्यूं गए यार ..? छोटी है क्या ..??"

" अरे नहीं नहीं , साहेब बात दर असल ये है .. मैं जहाँ रहता हूँ वहां लोग कार में कम ही आते हैं ..और आज तो काम काफी देर तक चलेगा ..है न ..? और आपकी कार बाहर खड़ी रहेगी ..लोगों को बेकार में शक होगा .. "

" फिर क्या किया जाये ..?? " मैंने पूछा I

" मेरे पास बाइक है , आप को ऐतराज नहीं तो आप अपनी कार अपने घर छोड़ दें , आपका घर तो पास ही है और बाइक पर चलते हैं .. "

मतलब गोपाल ने मेरे बारे सब कुछ मालूम कर लिया था I

" तुम्हें मेरे घर के बारे कैसे मालूम .. यार तुम तो बड़ी चालू चीज़ हो .?? " मैंने कहा I

" अब सर इस धंधे में सालों से टीका हूँ ..चालू तो होना ही पड़ेगा .."

"ठीक है यार मैं समझता हूँ , मैं आगे कार से जाता हूँ , तू मेरे पीछे बाइक ले के आ .."

और मैं कार अपने गैराज में रखा और गोपाल की बाइक के पीछे हो गया सवार और चल पड़ा अपनी बरबादी या आबादी(?) की ओर I

जैसा की आम ख्याल होता है ऐसी जगहों का ..मेरे दिमाग में भी यही ख्याल था कि गोपाल मुझे तंग और भीड़ भरी गलियों से होता हुआ किसी छोटे से दो या तीन मंजिले मकान के किसी अँधेरे बंद कमरे में ले जायेगा , पर यह तो कोई और ही रास्ता था .. जहाँ हम पहुंचे वो एक साफ सुथरी कालोनी थी .. जैसा कि राज्य सरकार के हाऊसिंग बोर्ड होते हैं ..एक छोटे से बंगलेनूमा घर के बाहर गाड़ी रुकी , गोपाल ने मुझे उतरने को कहा और बोला " येही है मेरा गरीबखाना , सर . आज आप मेरे खास मेहमान हैं "

"पर यार ..." मैं आगे कुछ बोल पाता के सामने देख मेरी बोलती बंद हो गयी ,मैं एक टक देखता ही रह गया !

सामने एक खूसूरत सांवली लम्बी जवान औरत गेट खोल रही थी .. जवान इसलिए के उसकी उम्र कोई 25 - 26 की होगी और औरत इसलिए के उसके सही जगह बिलकुल सही उभार था ..जैसे किसी शादी शुदा औरत जो अपनी फिगर संभालना जानती हो , का होता है .. न मोटी न दुबली .. बस एक दम ऊपर से नीचे भरी भरी l सांवला रंग होते हुए भी एक अजीब चमक थी ..जो किसी को भी अपनी और खींच ले .. हल्का सा मेक अप और होठों पे हलकी लिप स्टिक ...चेहरा कटीला , जैसा किसी मॉडल का होता है... नाक तीखे ... मैं बस देखता ही रहा .....

"भारती .. ये हैं सागर साहेब , आज हमारे खास मेहमान ... " गोपाल की आवाज़ से मैं अपनी चकाचौंध से वापस आया और भारती की ओर मुखातिब हुआ ..
भारती ने मुझे मुस्कुराते हुए नमस्कार किया और हमें अन्दर आने का इशारा किया , और हम तीनों घर की ओर चले .. आगे आगे गोपाल उसके पीछे भारती अपनी कुल्हे मटकाती , कमर लचकाती चल रही थी ओर मैं उसे देखता हुआ मन ही मन यह दुआ करता हुआ के आज अगर ये मिल जाय तो बस अपने लौड़े क़ी तो चांदी ही चांदी .. आगे बढ़ रहा था l

उसने टाईट सलवार कमीज़ पहन रखी थी , जिस से उसके जवान बदन का निखार उभर उभर कर मेरे दिल दीमाग और लौड़े पर हथोड़े मार रहा था .. ! क्या गांड थी , और क्या कमर की लचक ..!

हम लोग अन्दर आये ,ये शायद ड्राइंग रूम था गोपाल का ..बड़े करीने से सजा था .. जैसे किसी मध्यम वर्गीय परिवार का होता है ...मैं और गोपाल वहीँ सोफे पर अगल बगल बैठ गए और भारती अन्दर चली गयी l
" अरे भाई गोपाल क्या येही जगह है ..?? चलो यार जल्दी से माल के दर्शन कराओ ..." मैं कहा l

"अरे सर , अभी तक जिसे आप आँख फाड़े देख रहे थे वोही तो है ... !!"

"एएँ .क्या बक रहे हो गोपाल , वो तो तुम्हारी बीबी है न ..?? ...."

" सर आप आज ज्यादा सवाल न करें धीरे धीरे आप सब समझ जाओगे ...आज बस आप मस्ती लूटें l अभी वो न किसी की बीबी है न किसी की मां न किसी की बहेन..वो जितनी देर आप यहाँ हो आपकी है , बस आपकी ..आप जैसे चाहे उस से मजे लो .. " उसने जोरदार ठहाका लगाया " आप मेरी बात समझ रहे हैं न ..? अब मैं जाता हूँ , काफी थक गया हूँ ..आराम करूंगा , भारती आती ही होगी ..आपका ख्याल रखने ..."" उसने मुझे आँख मारी और झट अन्दर चला गया .. !

गोपाल की बातों से मैं अवाक रह गया ... कहाँ तो मैं किसी ऐसे वैसे जगह और लड़की के बारे सोच रहा था , और कहाँ एक दम घरेलु , खूबसूरत , सुघड़ और सेक्सी औरत हाथ लग रही है ..मन में झूर्झूरी सी होने लगी .. भारती किसी भी एंगल से ऐसी औरत नहीं लगती थी जो धंधा करती हो ..आखिर क्या मजबूरी थी इस के साथ ... ?? फिर मैंने सोचा " छोड़ यार भारती की मजबूरी .. अभी अपने लौड़े की मजबूरी का ख्याल कर और अपने पैसे की कीमत वसूल , ऐसी माल रोज हाथ नहीं लगती ...भारती की मजबूरी आज नहीं तो कल मालूम कर ही लेंगे ... "

पर फिर भी ... मेरे मन में भारती का रहस्य जानने ने की इच्छा जाग उठी .. और रहस्य तभी जाना जा सकता है जब की उसका दिल जीतो ..और दिल जीतने का सब से सहज तरीका है उसकी चूत ... जो मुझे मिल रही है ... और फिर भारती को ताबड़तोड़ चोदने के ख्याल से मेरे मन में लड्डू फूटने लगे .पैंट के अन्दर हल चल होने लगी ... मैं बेसब्री से उसका इंतज़ार करने लगा ..!

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