खानदानी चुदाई का सिलसिला

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rajaarkey
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खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 07:54

खानदानी चुदाई का सिलसिला--1

कहानी के मे कॅरेक्टर्स से आपका इंट्रोडक्षन:

बाबूजी - नाम राजपाल उमर 45 साल, हाइट 5 फ्ट 9 इंच, रंग गेहुआ, पतली मूछ रखते हैं और पैदाइश से उनके राइट हॅंड की फोरफिंगर और मिड्ल फिंगर जुड़ी हुई हैं. इसका इस कहानी में बड़ा योगदान है.

राजकुमार उर्फ राजू - घर का सबसे बड़ा लड़का, उमर 32 साल, हाइट 6 फ्ट 2 इंच, रंग गोरा. इनकी ख़ासियत ..बाद में बताएँगे.

मीना उर्फ मिन्नी - घर की सबसे बड़ी बहू और राजू की वाइफ, उमर 31 साल, रंग गोरा, हाइट 5 फ्ट 6 इंच. ये एक ग़रीब घर की पैदाइश हैं. बड़े परिवार की सबसे बड़ी लड़की. इनके घर में कोई भी सागा भाई बहेन नही था. इनके पिता ने 2 शादियाँ की. पहली से मिन्नी हुई और 2 साल की उमर में मा का देहांत हो गया. उसके बाद पिता ने दूसरी शादी की और उनसे 2 लड़के और 1 लड़की हुई. वो सब एक गाओं में रहते हैं.

सुजीत - घर का मझला बेटा, उमर 30 साल, रंग काला, हाइट 5 फ्ट 8 इंच. इनकी ख़ासियत है इनका हासमुख स्वाभाव और वो भी अपने को लेके. सबके बीच अपना ही मज़ाक बना लेते हैं.

राखी - सुजीत की वाइफ. उमर 28 साल, रंग गोरा, हाइट 5 फ्ट 9 इंच, इनकी ख़ासियत कि यह घर के हर सदस्य से प्यार करती हैं .. और उनका हर तरह से ख़याल रखती हैं..हन पर घर के काम में कुच्छ कमज़ोर हैं.

संजय - घर का सबसे छ्होटा बेटा, उमर 29 साल, रंग गेहुआ, हाइट 5 फ्ट 11 इंच, पढ़ाई में अव्वल, काम में तेज़, दिमाग़ से तेज़. चुप रहना पसंद है इन्हे ज़ियादातर, पर जब बोलते हैं तो बाकी लोग सुनते हैं. इनकी एक और ख़ासियत है और वो है मस्ती में आके इनका जंगलीपन. अगर कभी ये दारू पी के टन हो जाएँ तो जैसे की बाकी लोग लूड़क जाते हैं ये उसका उल्टा करते हैं. ये और भी आक्टिव हो जाते हैं. ये ख़ासियत इनके बहुत काम की है..!!

सखी - घर की सबसे छ्होटी बहू और संजय की वाइफ, उमर 23 साल, रंग सांवला, हाइट 5 फ्ट 1 इंच, सबसे चुलबुली, और सबसे घुल मिल के रहने वाली. इनकी ख़ासियत है इनकी फॅशन सेन्स. किसी भी ड्रेस में ये अच्छी दिखती हैं. दूसरे इनकी ख़ासियत है इनके खूबसूरत बाल. इनके बाल इनकी कमर से भी नीचे तक लहराते हैं और ये उनका बहुत ख़याल भी रखती हैं.

ये सब सदस्य एक ही घर में एक छ्होटे से शहेर में रहते हैं. जैसा की छ्होटे शहरों में होता है गली मोहल्ले के लोग इन्हे अच्छे से जानते हैं और आपसा की खुशिओ और गम में शामिल होते हैं. पर छ्होटे शहरों की एक ख़ासियत और भी है और वो है बंद कमरों के पिछे होने वाली कहानिया. जो चीज़ें बड़े शहरों में खुले आम बिना पर्दों के होती हैं वोही चीज़े छोटे शहरों में पर्दों के पिछे होती है. अगर पड़ोसी को पता चल जाए तो बात कहाँ की कहाँ पहुँच सकती है. पर इस घर का हिसाब थोड़ा अलग है.... ये घर शहेर में होते हुए भी थोड़ा अलग है. क्योंकि इस घर के चारों तरफ एक बड़ा आँगन है. और हो भी क्यों ना हो आफ्टर ऑल बाबूजी शहर के पुराने रईसों में से एक हैं. पूरा घर और आँगन मिला के 4 एकर के करीब जगह है. चारों तरफ 8 फ्ट की दीवार और बीचों बीच 6 बेडरूम का मकान. घर की एंट्री के बाद एक बहुत बड़ा ड्रॉयिंग रूम है. उससे लगता हुआ एक बड़ा सा डाइनिंग एरिया और उसके साथ किचन. इसके अलावा घर के दूसरे हिस्से में सबके कमरे हैं जिनको एक कामन कॉरिडर जोड़ता है.

सबसे पहले बाबूजी का कमरा है और उनके ठीक सामने राजू का. उनके साथ संजय का और सामने सुजीत का. उनके बाद 2 गेस्ट रूम हैं. हर कमरे के साथ एक अटॅच्ड बाथरूम है. इस प्रकार 3 - 3 कमरो के 2 सेट कॉरिडर के दोनो तरफ हैं. हर सेट के कमरो में आपस में भी एक एक डोर है जिससे की एक रूम से दूसरे रूम में जा सके.

घर की छत पे एक 2 रूम का सेट है जिसमे नौकरों के रहने का प्रबंध है. इस घर में आज से पहले हमेशा नौकर रहा है, पर जब से दीनू काका का देहांत हुआ तब से कोई भी अच्छा नौकर नही मिल पाया. आजकल ये परिवार घर में बिना नौकर के गुज़ारा कर रहा है. बस एक नौकरानी है कमला जो कि सुबह से लेके शाम तक घर के काम काज में मदद करवा देती है और चली जाती है.

''अर्रे बड़ी बहू इधर तो आना... क्या कर रही है..अगर खाली है तो आजा ज़रा '' बाबूजी ने ड्रवोयिंग रूम के सोफे पे लेटे लेटे आवाज़ दी.

''जी बाबूजी अभी आई....हंजी लीजिए आ गई..बताइए क्या काम है..'' मिन्नी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा. क्रीम कलर की सारी का पल्लू अपनी कमर में दबाए वो बाबूजी के सामने सोफे पे बैठ गई.

''क्या कर रही थी बहू ?? देख ना तेरा सीरियल आने वाला है..चल दोनो मिल के बैठ के देखते हैं..क्या कुछ काम कर रही थी क्या..???'' बाबूजी ने पुछा.

'' जी नही बस काम ख़तम कर के अपने कमरे में सुसताने जा रही थी. आज कल इस सीरियल में मन नही लगता. जब से उस हेरोयिन का पति मरा है तब से ये बेचारी सफेद साड़ी में घूम रही है..मुझे तो इस्पे तरस आता है और इसके पुराने बाय्फ्रेंड पे भी जो आज तक इसके आगे पिछे घूम रहा है. देखिए ना बाबूजी ये समाज की कैसी परेशानी है कि 2 प्यार करने वाले आपस में मिल भी नही सकते. तो क्या हुआ कि वो एक विधवा है ...तो क्या उसे प्यार का हक नही है....क्या उसके सीने में और उसके बदन में मेरी जैसी आग नही लगती होगी...?????'' मिन्नी ने थोड़ा उदास और थोड़ा गुस्से में कहा.


rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 07:54


'' अररी बहू तू क्यों गुस्सा होती है ये तो बस एक नाटक है...कोई हक़ीकत थोड़े ही है, और फिर तुझे क्या तेरे पास तो राजू है ना..या फिर बात कुछ और है..बता...मुझे अगर वो आजकल तेरा ख़याल नही रखता तो 2 चाँते दूँगा उसे..'' बाबूजी ने गुस्सा दिखाया.

'' बाबूजी आप गुस्सा ना करो और ना ही उन्हे चाँटा मारना पर सच तो ये है कि वो आजकल मेरी भूख नही मिटाते. मैं प्यासी रह जाती हूँ और वो अपने मज़े लेके सो जाते हैं. पता नही कभी कभी तो मुझे लगता है कि इनका कोई और लेफ्डा चल रहा है '' मिन्नी उदास हो गई.

'' अच्छा तो तूने पिच्छली बार मुझे क्यों नही बताया...कब से चल रहा है..3 दिन पहले ही तो हम साथ थे तब तो तूने कुच्छ नही कहा...''

'' अर्रे नही बाबूजी ये परसों से हो रहा है. परसों रात मैने इनका कितना ख़याल रखा मन लगा के इनको कितना चूसा और कितने मज़े से इनकी गोटिओं को सहलाया पर ये कुच्छ करने के मूड में भी नही आए.......और जब मैं इनके मूह पे चढ़ि तो इन्होने बड़े अनमने ढंग से मेरी मुनिया में अपनी जीभ दी. मुझे तो समझ नही आई.....सच कहती हूँ बाबूजी अगर ये आपके साथ करती तो उस रात कम से कम मेरा 4 बार काम होता. और इनको देखो बस एक बार किया और सो गए. और तो और तब से अब तक दिन में एक बार भी नही किया इन्होने मेरे साथ''' और ये कह के मिन्नी सूबकने लगी.

''' अर्रे अर्रे तू रोती क्यों है मेरे होते हुए.....मैं उसे सबक सिखाउन्गा आज रात. आज तुम रात को राजू को लेके मेरे कमरे में आना...मुझे पता है कि तेरा ख़याल कैसे रखना है..आख़िर तू घर की सबसे बड़ी है और मेरी प्यारी बहू है....चल अब चुप हो जा और देख तेरे पास आते ही मेरा क्या हाल हुआ है...देख मेरी धोती में तंबू बन गया. चल आजा मेरी प्यारी बहू आजा अपने ससुर जी का ख़याल कर और अपनी मुनिया लगा इस तंबू पे....ऐसे रोते नही है...आजा मैं तेरे होठों पे हँसी ला दूं...और देख मुझे पता है कि तुझे कैसे हसाना है..देख मैने धोती भी खोल दी.....अब तो लगा दे अपने होंठ इस बेचारे पे...''' बाबूजी ने अपनी धोती को खोलते हुए मिन्नी के चूचे सहलाए..

''' हॅयाययी बाबूजी कभी कभी तो मन करता है कि आप ही को अपना मर्द बना लूँ..आप कितने अच्छे से समझते हो मुझे.. सच में अगर ये और ऐसे चले तो मैं आपके कमरे में शिफ्ट हो जाउन्गि...कम से मेरा नंगा बदन देख के आप तो 2 - 3 बार करोगे मुझे...ना कि इनके जैसे जो एक बार भी नही कर रहे आजकल...अर्रे ये क्या बाबूजी ...आपका सूपड़ा तो लाल हुआ पड़ा है और ये खरोंच कैसी है नीचे के हिस्से में....हाइईइ दैया ये तो आपके टट्टों पे भी खरोंच है...ये सब क्या हो गया.....''' मिन्नी ने अपने ससुर जी का लोडा सहलाते हुए कहा. उसकी नज़र उनके लंड पे टिकी हुई थी और वो देखे जा रही थी और सहलाए जा रही थी.


'''उउंम्म बहू तू इसकी चिंता ना कर ...बस चल अब अपने होठों की मुस्कान इस्पे चिपका दे...देख कैसे तरस रहा है ...तुझे याद है ना कि 4 दिन हो गए तुझे इसे चूसे हुए.. 3 दिन पहले भी सिर्फ़ इसे अपने भोस्डे में लिया था...उस दिन तेरे मूह में दर्द था और तूने मना कर दिया था.....अब आज तो दर्द नही है ना...तो चल मेरी रानी आजा इस प्यार से अपने होठों से पूचकार दे.....'' बाबूजी अब सोफे के सामने खड़े खड़े अपने मोटा लंड मिन्नी के चेहरे के सामने लहरा रहे थे.

''' हां बाबूजी मुझे सब याद है....और मैं तो उस दिन भी चूसना चाहती थी ,, पर क्या करती...मजबूर थी...पर आज तो ज़रूर चूस लूँगी और आज आप देखना थूक भी कितना निकलेगा..आख़िर कार मैं भी तो चुदासी हूँ 2 दिन से..आइए ना बाबूजी आगे बढ़ के मुझे मुख चोदन कीजिए...और ये क्या आपने धोती नही उतारी अभी तक ....जबकि आपको पता है मुझे आपकी नंगी गांद से खेलना बहुत प्संद है लोडा मूह में रख के....ऊऊऊहह बाबूजीइीइ..आऊूओ नाआ...उम्म्म्ममम....स्लूउर्र्
र्र्प...स्लूउर्र्र्र्र्ररुउउप्प्प...उउउम्म्म्ममममम..उउउम्म्म्मम यएएसस्स्सस्स....ऊओह...ऊऊऊ बाबूजी मेरी मुनियाआअ......आअहह ये तो पनियाअ गैइइ....बाबूजी आपका सख़्त मूसल देख के........चलिए नाअ अब आपके कमरे में चलते है....उउउम्म्म्मसल्ल्लूउर्र्र्र्रर्प...स्लर्र्र्र्रृूपप.....वहाँ पूरे नंगे होके करेंगे.....येस्स्स येस्स्स्स बाबूजी ऐसे ही मेरी निप्प्प्ले खींचूऊओ....उउउम्म्म्म''''' मिन्नी आने वाले संभोग की खुशी में मस्त होते हुए बोली...


दोनो उठ कर राजपाल के कमरे में चले गए. राजपाल की धोती तो खुल चुकी थी सो चलते हुए उसने अपना कुर्ता भी उतार दिया और पूरा नंगा हो गया. कमरे में पहुँच के उसने अपना कुर्ता धोती अलमारी में टंगा. इतने में मिन्नी अपनी साड़ी उतार चुकी थी और अपना पेटिकोट खोल रही थी. नडा शायद ज़ियादा टाइट था इसलिए उसे दिक्कत हो रही थी. बाबूजी ने आगे बढ़ के उसका नाडा खोलने में मदद की. पेटिकोट उतरा तो नीचे वो नंगी थी.

'' क्या बात है बहू आजकल तू पॅंटी नही पहनती. या फिर आज ही नही पहनी. लगता है तुझे पता था कि आज तुझे मेरे पास होना है. '' बाबूजी मुस्कुराते हुए बोले. दोनो अभी खड़े थे और बाबूजी का लंड मिन्नी की चूत के सामने हिचकोले खा रहा था. मिन्नी थोडा सा मूडी और अपनी पीठ बाबूजी की तरफ की ताकि वो उसके ब्लाउस की ज़िप खोल सकें. बाबूजी ने ब्लाउस की ज़िप के साथ साथ ब्रा के हुक भी खोल दिए और बाजू उपर करते हुए मिन्नी ने दोनो को एक साथ उतार दिया.

''बाबूजी ऐसा कुच्छ नही सोचा था मैने पर हां 2 दिन में जब कुच्छ नही हुआ तो आज किचन में खड़े खड़े मैं अपनी मुनिया सहला रही थी तब से पॅंटी उतारी. बाबूजी आज आपका काफ़ी सख़्त हुआ पड़ा है ..पर ये खरोंच और लाली क्यों आई ये तो बताइए. मुझे आपकी चिंता रहती है. अब आप धीरे धीरे बुड्ढे हो रहे हैं सो मुझे आपका और ख्याल रखना है. '' मिन्नी अपने दोनो हथेलिओं में राजपाल का लंड और टट्टों को सहलाते हुए बोली.

'' अर्रे बेटी तू कितनी अच्छी है. दरअसल कल रात संजय और सखी अपने कमरे में लगे हुए थे. सखी की आदत है उसपे चढ़ने की सो वो उपर चढ़ के घुरसवारी कर रही थी. मुझे उसके कमरे से राज शर्मा की कहानियो वाला नॉवेल लेने जाना पड़ा. तो जब मैं ले रहा था तो सखी ने मुझे वहीं रोक लिया और लोडा चुसवाने की गुज़ारिश करने लगी. अब देख वो घर की सबसे छ्होटी और लाडली बहू है सो मैं मना नही कर पाया. उसने जोश जोश में लंड तो चूसा पर उसका मूह तेरे मूह से छ्होटा है ना...इसलिए सुपाडे पे दाँत लग गए. उस टाइम जब मैं दर्द में कराहा तो मेरे हाथ उसके सिर को पकड़े थे और उसने मेरे लंड को अड्जस्ट करने के चक्कर में अपने नाख़ून मेरे टट्टों पे लगा दिए. पर ठीक है, उसने बाद में मेरे टटटे भी चूसे और थूक लगा के खून रोक दिया था और मैने भी क्रीम लगा ली थी बाद में. '' बाबूजी अपने लंड पे अपने बहू के नरम हाथों को महसूस करते हुए उसकी गांद से खेल रहे थे.

'' बाबूजी मैने देखा आजकल आप सखी को लेके ज़ियादा पस्सेसिव हैं. माना कि वो नया माल है पर मैं और राखी भी अभी इतने पुरानी नही हुई कि आप हम दोनो को भूल जाओ. आपको खुश करने में जितना मज़ा हमें आता है उतना मज़ा सखी नही लेती. वो आपकी रेस्पेक्ट करती है इसलिए आपको अपनी चूत देती है पर हम दोनो तो आपको प्यार से देती हैं. '' मिन्नी ने ससुर से शिकायत की और उनके लंड को कस के भींचा.

'' आआआर्र्घ्ह बहू तेरा प्यार तो तेरी हरकतों से ही झलकता है. और मैं भी तुम्हे और राखी को अपनी बहू क़म बीवी ज़ियादा मानता हूँ. पर वो घर में नई है और उमर भी छ्होटी है. उसे थोड़ा नर्मी से सब सिखाना है. चुलबुली है सो कभी कभी मेरा मन भी बहक जाता है. पर अभी उसके बदन मे तुम्हारी जैसी बात नही आई है. तुम और राखी तो खूबसूरत फूल हो इस घर की बगिया के वो तो अभी कच्ची कली है. उसे तो अभी बहुत कुच्छ सीखना है. बाबूजी अब दोनो हाथों से मिन्नी के निपल रगड़ रहे थे.

rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 07:55



'' हाए बाबूजी आपकी उंगलिओ में तो जादू है. देखिए ना इधर आपने निपल कटोचे और इधर मेरी मुनिया पगला गई है. कैसे भिगो रही है मेरी चूत के होठों को..देखिए नाअ..ऊऊहह माआ ..हां बाबूजी जब आप ये अपनी जुड़ी हुई उंगलिओ से चूत को खरोन्च्ते हो तो बड़ा आनंद मिलता है....उउउहह माआअ..... बाबूजी चूसीए ना मेरे सख़्त निपल्स को..'' मिन्नी आनंद से सिसकियाँ लेते हुए बोली.

बाबूजी ने उसे प्यार से बिस्तर पे लिटा दिया और उसकी लेफ्ट साइड में लेट के अपनी राइट हॅंड की जुड़ी उंगलिओ को उसकी चूत में घिसने लगे. उसका लेफ्ट उरोज उन्होने अपने मूह में भर लिया. निपल को लेके खींच खींच के चूसने लगे. मिन्नी ने अपने दोनो हाथ सिर के पिछे कर लिए और आराम से लेट गई. उसको अपने ससुर से चुचियाँ चुसवाने में बहुत आनंद आता था. शादी के 2 महीने बाद से ही वो रोज़ उनसे निपल चुस्वाति थी. राजू उसकी चूत मारता और ससुर अपना सूपड़ा उससे चुस्वाते. उन दिनो वो भी सखी जैसी थी और ज़ियादा अच्छे से लंड नही चूस पाती थी. ढंग से लंड चूसना उसने सुजीत से सीखा था. सुजीत उन दीनो कुँवारा था पर उसका राखी से अफेर जोरों पे था. दोनो शादी से पहले खूब 69 किया करते थे. उसको खुश करने के लए राखी अपने घर में केले चूस चूस के प्रॅक्टीस करती थी. और वही चीज़ें सुजीत घर आके अपनी भाभी को सीखाता था.
क्रमशः..............................

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