हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

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rajaarkey
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Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

Unread post by rajaarkey » 09 Nov 2014 07:42

सुबह सुबह सात बजे के आस पास उठ कर सारी (लघु तथा दीर्घ) शंकाओं का समाधान करा और फिर से सो गया।

फिर मेरी नींद करीब 11 बजे खुली लेकिन जब मैंने उठने की कोशिश की तो उठ नहीं पाया।

वजह थी मेरे हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, पलंग के दोनो किनारों की तरफ और मेरे पैरों का भी वही हाल था।

मुझे लगा कि यह पलक की ही शरारत है, वो घर पर भी ऐसे ही परेशान करती रहती थी मुझे हर बार नई शरारतों से तो मैंने पलक को आवाज देना शुरू कर दिया।

मेरी आवाज सुन कर पलक तो नहीं आई पर आंटी आ गई।

मैंने उनसे कहा- "कहाँ है वो गधी, आज उसे नहीं छोडूंगा।

तो आंटी बोली- वो अभी तक आई नहीं है।

मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !

तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?

आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।

मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?

तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।

"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।

"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।
मुझे कुछ समझ नहीं आया पर मैंने आंटी से कहा- अच्छा ठीक है पर मुझे खोलिए तो !

तो आंटी बोली "अगर खोलना ही होता तो इतनी प्यार से बांधती क्यों तुमको?

आंटी की बात सुन कर मेरा माथा घूम गया कि चक्कर क्या है।

मैंने आंटी से कहा- क्या कह रही हो आंटी?

तो बोली- सच कह रही हूँ, मैंने ही बांधा है और खोलने के लिए नहीं बाँधा।

"पर क्यों?" मैंने सवाल किया।

"तेरा बलात्कार करने के लिए !" आंटी ने जवाब दिया।

मैंने कहा- ऐसे मजाक अच्छे नहीं होते आंटी, खोलो मुझे जल्दी से !

तो मेरी बात सुन कर आंटी वहाँ से उठ कर चली गई जब वो वापस आई तो उनके हाथों एक बड़ा सा पानी का जग था।

मैंने कहा- अब मुझे बिस्तर पर ही नहलाने वाली हो क्या?

तो बोली- नहीं ब्रश करवाने वाली हूँ !

और वो वापस चली गई।

फिर वो वापस आई तो उनके एक हाथ में टूथपेस्ट लगा हुआ ब्रश था और दूसरे हाथ में एक बड़ा सा प्लास्टिक का टब था।

आने के बाद उन्होंने मेरे पैरों के तरफ की रस्सी को थोड़ा ढीला करके मुझे बैठाया और कहा- मुँह खोलो !

और मेरा चेहरा एक हाथ से पकड़ कर मुझे अपने हाथ से ब्रश करवाने लगी, ब्रश करवाने के बाद टब में कुल्ला करवाया और सामान ले कर चली गई।

वापस आई तो हाथ में ट्रे में ब्रेड थी और साथ चाय भी !

अपने ही हाथों से मुझे उन्होंने मक्खन लगी ब्रेड खिलाई और चाय भी पिलाई पर मेरे लाख मिन्नत करने के बाद भी मेरा हाथ नहीं खोला।

मैंने कहा- मुझे बाथरूम जाना है !

तो बोली- थोड़ी देर रोक कर रख लो, कुछ नहीं होगा थोड़ी देर में खोल दूँगी।

मैंने कहा- अगर थोड़ी देर में छोड़ने वाली ही हो तो फिर बाँध कर क्यों रखा है तुमने?

आंटी ने कोई जवाब नहीं दिया और मुझे नाश्ता करा कर सामान लिया और वापस चली गई।

वो थोड़ी देर बाद जब वापस आईं तो उनका पूरा रंग ढंग बदला हुआ था।

इस बार उन्होंने एक बढ़िया सी नाइटी पहन रखी थी जो काफी मादक लग रही थी, परफ्यूम की महक दूर से ही मुझे महसूस हो रही थी, मैं समझ चुका था कि जो आंटी ने कहा है वो मजाक में नहीं कहा उन्होंने, वो सच में इस बात के लिए मूड बना कर बैठी हुई थी कि आज मेरे साथ कुछ न कुछ करना ही है।

मैं इस सब को अभी तक भी स्वीकार नहीं कर पा रहा था क्योंकि चाहे मैं कितना भी बड़ा कमीना रहा हूँ पर आंटी को मैंने कभी इस नजर से देखा नहीं था।

आंटी जब कमर मटकाती हुई मेरे पास आई तो मैंने कहा- प्लीज आंटी, खोल दो और मुझे जाने दो ! अंकल मुझ पर बहुत भरोसा करते हैं, मैं उनके भरोसे को नहीं तोड़ सकता।

तो आंटी बोली- पर भरोसा तुम नहीं, मैं तोड़ रही हूँ ना !

और मुझे खोलने के बजाय मेरे पैरों को उन्होंने वापस से खींच कर कस दिया।

मैं तब चुप हो गया और आंटी पलंग पर चढ़ गईं। उनके पलंग पर आने के बाद मेरे हाथ पैर भी कांपने लगे थे, ऐसा अनुभव मुझे उसके पहले के 6 सालों में कभी नहीं हुआ था, एक अजीब सा डर लग रहा था, मैं छूटने की पूरी कोशिश कर रहा था और हर बार असफल हो रहा था।

"आंटी प्लीज मान जाओ और छोड़ दो मुझे !" मैंने फिर से प्रार्थना की तो आंटी मेरे ऊपर आकर मेरी कमर के थोड़ा नीचे दोनों तरफ पैर रख कर बैठ गई, अपने ऊपर के शरीर का वजन उनके दोनों हाथों पर रखा और मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर मुझ से बोली- बोलो, क्या बोल रहे हो?

अगर उनकी जगह कोई और होती तो मैं तो कभी का खुशी खुशी राजी हो जाता पर बात यहाँ आंटी की थी और मुझे आंटी से ज्यादा अंकल के विश्वास की चिंता थी जो मेरे लिए अंकल कम और दोस्त ज्यादा हैं, और दोस्ती में धोखेबाजी की आदत मुझे कभी भी नहीं रही।

लेकिन उस वक्त तक मेरी हालत खराब हो चुकी थी, एक मन कर रहा था कि कर लूं, क्या फर्क पड़ता है, और दूसरा मन अंकल की वजह से इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था कि मैं आंटी के साथ शारीरिक संबंध बनाऊँ।

और मेरी इस सोच से परे आंटी अभी भी मुझ पर ही छाई हुई थी, आंटी की गर्म सांसों को मैं तब मेरे चेहरे पर महसूस कर सकता था और उनका रेशमी नाइटी में लिपटा हुआ बदन मेरे शरीर को जगह जगह से छू रहा था।

फिर आंटी ने अपना पूरा वजन मुझ पर छोड़ दिया और एक हाथ से मेरे सर को नीचे से पकड़ा दूसरा हाथ मेरे चेहरे पर रखा और मेरे होंठों पर उन्होंने अपने होंठ रख दिए, होंठ क्या थे अंगारे थे मानो ! और उन्होंने धीरे धीरे मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया, उनके होंठ चूमने का अंदाज बिल्कुल ही निराला था।

एक हाथ उन्होंने मेरे गाल पर रखा था और दूसरे हाथ से सर को सहारा दे रखा था और साथ ही इस तरह से पकड़ रखा था कि मैं चाह कर भी मेरे चेहरे को इधर उधर ना कर सकूं।

आंटी मेरे होंठों को पूरा अपने मुंह में लेती और फिर धीरे धीरे होंठ चूसते हुए बहार निकाल लेती, इसी तरह से वो काफी देर तक मुझे चूसती रही, और अपने शरीर का पूरा वजह मेरे शरीर पर डाल कर अपने स्तनों को मेरे सीने पर और चूत को मेरे सख्त हो चुके लण्ड पर रगड़ती रही।

मैं चाहे लाख ना कर रहा हूँ पर एक 35 साल की औरत जो गजब की सुंदर हो, शरीर सांचे में ढला हुआ, 34 इन्च के स्तन हों, कमर पर कोई चर्बी नहीं, चेहरे पर कोई दाग नहीं, काले खूबसूरत रेशमी बाल हों और कहीं कोई कमी नहीं और वो मेरे सीने पर अपने स्तन रगड़ रही हो, लण्ड पर चूत रगड़ रही हो और होंठों को होंठों से चूस रही हो तो भला मेरा

लण्ड खड़ा कैसे नहीं होता।



थोड़ी देर तक वो ऐसे ही होंठ चूसती रही, स्तन और चूत रगड़ती रही, फिर हट कर मेरे लण्ड पर हाथ लगाया और बोली- देखो, यह भी वही चाहता है जो मैं चाहती हूँ।

मैंने कहा- आंटी, आपके जैसी सुन्दर और सेक्सी औरत अगर इस तरह का काम करेगी तो किसी भी मर्द लण्ड तो खड़ा होगा ही ना ! पर मैं आपके साथ नहीं करना चाहता, मैं अभी भी आपसे कह रहा हूँ प्लीज मुझे खोल दो और जाने दो।

मेरी बात का उन पर उल्टा ही असर हो गया उन्होंने मेरे लोअर में हाथ डाल कर मेरे लण्ड को पकड़ लिया और बोली- हरीश से छोटा तो बिल्कुल नहीं है !

और फिर अपनी नर्म उंगलियों से मेरे लण्ड को रगड़ने लगी, मैं मचलने लगा और मेरा मन पूरी तरह से बहक चुका था पर मैंने सिर्फ कहा नहीं उन्हें।

उन्होंने कुछ सेकंड मसला होगा और फिर बोली- देख, तू भी यही चाहता है, पर अब मैं तुझ से पूछूंगी भी नहीं, अब सिर्फ मैं करूँगी और तू जब चाहे तब साथ देना शुरू कर देना।

मैंने आंटी को कोई जवाब नहीं दिया और आंटी ने मेरे होंठों को फिर से चूमना शुरू कर दिया और एक हाथ से मेरे लण्ड को सहलाती रही, इस बार उनके चूमने में मैं भी उनका साथ दे रहा था।

इसके बाद आंटी ने मेरे लोअर को अंडरवियर समेत नीचे कर दिया और फिर उन्होंने मेरे ही तकिये के नीचे से हाथ डाल कर कंडोम का एक पैकेट निकाला उसे फाड़ कर मेरे खड़े लण्ड पर लगाया और मैं कुछ समझता उसके पहले ही खुद की नाइटी ऊपर करके चूत को मेरे लण्ड पर टिकाया और एक झटके में मेरा पूरा लण्ड उनकी चूत के अंदर था।

उस झटके में हम दोनों के ही मुंह से एक आह निकल गई थी।

उसके बाद आंटी ने मुझसे कहा- अब भी तेरी ना ही है क्या?

मैंने कहा- नहीं !

मेरी नहीं का मतलब समर्पण ही था पर आंटी ने तब उसे मेरा इनकार समझा था।

उसके बाद आंटी अपने कूल्हों को जोर जोर से उछाल कर लण्ड अंदर-बाहर करके चुदवाने लगी और उन्होंने अपने होंठों को मेरे होंठों पर जमा दिया था। वो कभी मेरे होंठों को चूम रही थी, कभी मेरे गालों को और कभी मेरी गर्दन को चूम रही थी साथ ही उनके स्तन मेरे सीने से टकरा रहे थे।

मैं आंटी के स्तन दबाना चाहता था, उनके बालों को पकड़ कर उनके होंठों को चूमना चाहता था, उनकी कमर को मेरी बाहों में लपेटना चाहता था पर मैं कुछ भी नहीं कर सकता था क्योंकि मेरे हाथ बंधे हुए थे।

आंटी अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रख कर खुद को चुदवा रही थी और मुझे चूमे जा रही थी कि अचानक आंटी ने मुझे चूमना बंद कर दिया और मेरे सीने पर दोनों हाथ रख कर मेरे लण्ड पर बैठ गई, उनके शरीर में ऐंठन होने लगी, उनकी आँखे बंद होने लगी और आंटी झड़ने लगी।

आंटी पूरी ताकत से झड़ी और झड़ कर मेरे ऊपर ही लेट गई, मैं तो अभी भी पूरा भरा हुआ था तो आंटी का हल्का फुल्का शरीर मुझे फूल जैसा ही लग रहा था पर मैं अब नीचे से झटके मार रहा था।

थोड़ी देर बाद जब आंटी सामान्य हुई तो मुझसे बोली- क्या हुआ विश्वामित्र जी? आपका तप तो टूट गया? यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने कहा- आंटी, तप तो कभी का टूट गया है अब तो बस इच्छा बची है अब तो खोल दो।

तो बोली- जब तप टूट गया था तो फिर नहीं क्यों कहा था।

मैंने कहा- वो नहीं तो समर्पण वाला नहीं था, उस नहीं का मतलब था कि अब मेरी कोई ना नहीं है, पर आप ही नहीं समझी थी। मुझे अब तो खोलो !

तो आंटी बोली- खोल दूँगी पर अभी तो मैंने शुरूआत की है, और वैसे भी तूने तो हाँ कर ही दी है तो अब मुझे मेरे सारे अरमान पूरे तो करने दे।

मैंने कहा- ऐसे क्या अरमान हैं जो मुझे बाँध कर ही पूरे कर सकती हो? और आप का तो हो गया, मुझे भी तो मेरा करने दो अब।

तो बोली- अभी थोड़ा इन्तजार तो कर, हो जायेगा तेरा भी, और जो अरमान हैं वो भी पता ही चल जायेंगे।

वो उठी, मेरे लण्ड से कंडोम निकाला और मुझे वैसे ही छोड़ कर चली गई वो करीब दस मिनट बाद वापस आई। इस बार जब वो वापस आई तो एक नए ही गाऊन में थी।

आंटी कमर मटकाते हुए फिर से मेरे पास आई और मेरी टी शर्ट और उतारने की कोशिश करने लगी लेकिन सफल नहीं हो सकी क्योंकि मेरे हाथ जिस तरह से बंधे हुए थे उस हालात में टीशर्ट ऊपर तो हो सकती थी पर उतर नहीं सकती थी।

मैंने कहा- अब क्या करोगी? अब तो खोलना ही पड़ेगा ना !

तो आंटी ने कहा- खोलूंगी तो नहीं तुझे ! और इसका इन्तजाम मेरे पास है।

वो उठ कर पास में रखी अलमारी से कैंची उठा लाई और बिना कुछ कहे मेरी टी शर्ट के चीथड़े कर दिए।

चीथड़े करने के बाद बड़े ही गुरुर से बोली- अब बता? अभी भी खोलना पड़ेगा क्या कपड़े उतारने के लिए?

इतना कहते हुए उन्होंने मेरी उतरी हुई लोअर और अंडरवियर को भी टुकड़े टुकड़े कर के नीचे फैंक दिया।

अब मैं आंटी के सामने पूरी तरह से प्राक्रतिक अवस्था में पड़ा हुआ था, मजबूर बेबस और बंधा हुआ।

आंटी ने मुझे देखा, फिर मुस्कुराने लगी और मुझे उन पर गुस्सा आ रहा था।

मैंने गुस्से में कहा- क्या कर दिया है यह आपने?

और मेरी बात का जवाब देने के बजाय उन्होंने अपना गाऊन उतार दिया। उन्होंने अंदर गुलाबी रंग की ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी जो बहुत ही खूबसूरत और मादक लग रही थी। उनकी इस हरकत से मैं सारा गुस्सा भूल गया और मेरा लण्ड फिर से सलामी देने लगा जो दस मिनट के आराम से थोड़ा सा ढीला हो गया था।

गाऊन उतारने के बाद मेरी तरफ देख कर वो बोली- तुम कुछ कह रहे थे?

मैंने कहा- हाँ !!! नही !!

और मेरे सारे शब्द मेरे हलक में ही अटक कर रह गए।

फिर वो मेरे पास आ कर बगल में लेट गई, मेरे बाल सहलाने लगी और मेरे होंठ चूमने लगी, इस तरफ वो बाल सहला रही थी और दूसरी तरफ मेरा कड़क होते चला जा रहा था।

फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा।

मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा।



rajaarkey
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Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

Unread post by rajaarkey » 09 Nov 2014 07:43



आंटी प्लीज मान जाओ -2
फिर उसके बाद आंटी बोली- अब जो तेरे साथ होने वाला है वो तू जिंदगी भर याद रखेगा।
मैंने कहा- देखते हैं, आप क्या करती हो? क्योंकि ऐसा बहुत कुछ है जो मैंने देखा है तो जरूरी नहीं कि इसे जिंदगी भर याद रख ही लूँगा।
मेरी बात सुन कर आंटी ने मुझे कान पर काट हल्के से काटा और दांतों को बड़े प्यार से कान पर चलाने लगी मानो दांत पीस रही हो, एक अद्भुत ही अनुभूति थी वो, और फिर वो धीरे से मेरे ऊपर आ गई और फिर मेरे दूसरे कान को भी इसी तरह से चूम कर काटने लगी।
मुझे लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ,
उसके बाद उन्होंने मेरे बायें कान को छोड़ा और उसके थोड़ा नीचे एक बार काट कर दांतों से निशान बना दिया, मुझे मजा भी बहुत आया और दर्द भी हुआ पर मैं आह करने के अलावा कुछ और कर नहीं सकता था तब, उसके बाद आंटी ने मेरी ठोड़ी और कान के बीच एक बार हल्के से काट लिया और मैं बोल ही पड़ा- क्या कर रही हो यार तुम ?
तो जवाब मिला- तुझे जिंदगी भर ना भूल सकने वाली याद दे रही हूँ !
उसके बाद आंटी थोड़ा नीचे खिसकी और मुझे फिर कंधों पर काट कर निशान बना दिया फिर एक निशान, दूसरा निशान, तीसरा निशान इस तरह से उन्होंने एक एक कर के मेरे शरीर पर जाने कितने लव बाइट्स देना शुरू करे और रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं उन लव् बाइट्स से तड़प भी रहा था और मजा भी ले रहा था।
जब आंटी मुझे ये निशान दे रही थी तो खुद को, अपनी चूत को भी मेरे शरीर के जिस हिस्से पर हो सकता था वहाँ टिका कर रगड़ते भी जा रही थी। उन्होंने कुछ और निशान बनाए होंगे कि वो झड़ने लगी, झड़ने के बाद वो कुछ देर रुकी और फिर से उन्होंने मुझे काटना शुरू कर दिया।
पहले कंधा फिर दूसरा कंधा बाजू दूसरा बाजू सीना, पेट कांख कमर जांघे, पैरों की पिंडलियाँ तो अलग उन्होंने तलवों तक को नहीं छोड़ा। मेरे शरीर का कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ उन्होंने काट कर निशान न बनाए हों।
बाद में उन निशानों की गिनती में कुल संख्या 197 निकली थी।
उस वक्त मेरी हालत ऐसी थी कि मजा तो बहुत मिल रहा था पर दर्द भी उतना ही होता जा रहा था।
और इस सब में आंटी को जाने कितना मजा आ रहा था कि वो दो बार झड़ भी गई।
जब वो मेरे पूरे शरीर पर निशान बना चुकी तो मुझे बोली- अब बता? तू भूल पायेगा इस दिन को?
और मेरा जवाब था- नहीं भूल पाऊँगा।
मैंने फिर आंटी से कहा- अब तो खोल दो !
तो आंटी बोली- अभी तो और बाकी है न ! वो भी हो जाने दे, फिर खोल दूँगी !
यह कह कर वो मेरे सामने आकर बैठ गई और उन्होंने मेरा लण्ड मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया। उनके लण्ड चूसने का अंदाज भी निराला ही था पहले लण्ड को मुंह में लेती और फिर कुल्फी की तरह धीरे धीरे बाहर की तरफ चूस कर होंठ बाहर ले आती, और फिर हाथों से लण्ड को पकड़ कर सुपारे की चमड़ी फिर से पीछे खींच देती थी। उन्होंने थोड़ी देर ही ऐसे किया होगा, मुझे लगा मैं झड़ने वाला हूँ और जैसे ही उन्हें लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ आंटी ने चूसना बंद कर दिया।
मैंने कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गई?
तो बोली- अभी तुझे झड़ने थोड़े ही देना है।
और फिर आंटी ने लण्ड को छोड़ कर मेरे बालों को सहलाना शुरू कर दिया, उस वक्त मैं चाहता तो यह था कि आंटी को अभी पटक कर चोद दूँ और सारा वीर्य उनकी चूत में ही भर दूं। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, हाथ पैर दोनों बंधे हुए थे।
जब आंटी को लगा कि मैं फिर से सहन करने की हालत में आ गया हूँ तो उन्होंने अपनी पैंटी उतारी और अपनी चूत मेरे मुंह पर रख दी और मुझे फिर से चूसने लगी।
अब वो मुझे चूस रही थी और मैं उनको और जब भी उन्हें लगता कि मैं झड़ने की कगार पर हूँ, वो मुझे चूसना बंद कर देती और अपनी चूत को मेरे मुँह पर और जोर से रगड़ना शुरु कर देती थी।
हम दोनों ने इसी तरह एक दूसरे को थोड़ी देर चूसा था कि आंटी अपनी चूत का नमकीन सा रस मेरे मुंह पर छोड़ते एक बार और झड़ गई। जब आंटी झड़ चुकी तो उठ कर मेरे बगल में तकिये पर लेट गई और चादर उठा कर खुद भी ओढ़ ली और मुझे भी ढक लिया।
मुझे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि खुद तो जाने कितनी बार झड़ चुकी हैं और मुझे अभी भी बाँध कर पटक रखा है, मैंने कहा- आंटी उठो !
पर वो तो थक कर सो चुकी थी और मुझे नींद कहाँ आनी थी। पर मैं कुछ कर सकने की हालत में नहीं था तो मैंने आंटी को जगाने की कोशिश नहीं की और थोड़ी देर में मुझे भी नींद लग गई।
जब मेरी नींद खुली तो आंटी जग चुकी थी और मेरे बगल में ही लेटी हुई मेरे सीने पर हाथ फेर रही थी।
जब उन्होंने देखा कि मैं भी जाग गया हूँ तो उन्होंने मेरे होंठों को चूम लिया और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब चुम्बन से ही दिया।
उनके चुम्बन और सीने पर उनकी नाजुक उँगलियों ने फिर से मेरे सोये हुए लण्ड को खड़ा कर दिया और बचा हुआ काम आंटी ने अपने हाथ को नीचे ले जाकर कर दिया।
अब मेरा लण्ड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था तो आंटी ने तकिये के नीचे से कंडोम निकाल कर उसे मेरे लण्ड पर चढ़ाया और फिर मेरे होंठों को चूमने लगी और चूमते चूमते ही मेरे ऊपर आ गईं।
मैं कुछ कहने की हालत में नहीं था पर मैं अभी भी यही मान कर चल रहा था कि यह खुद चरम सुख पायेगी और फिर से मुझे छोड़ कर चली जायेगी तो मैंने कुछ ज्यादा उम्मीद भी नहीं रखी, हालात से भी मैं समझौता कर चुका था। पर इस सबके बाद भी आंटी जैसे ही मुझे चूमती थी मेरा लण्ड सलामी देने लगता था।
आंटी ने मुझे चूमते हुए ही एक हाथ से मेरा लण्ड उनकी चूत पर रखा और एक झटके में अंदर डाल दिया और हम दोनों के ही होंठों से एक मीठी सी सिसकारी निकल पड़ी।
उसके बाद आंटी ने फिर से चुदाई शुरू कर दी वो मेरे ऊपर रह कर उनकी कभी उनकी चूत को रगड़ती और कभी अंदर-बाहर करती रही, बीच बीच में मुझे कभी होंठों पर तो कभी सीने पर चूम ले रही थी।
उन्होंने थोड़ी देर इस तरह से चुदाई की होगी और वो झड़ने लगी। और झड़ कर फिर से पहले की ही तरह चूत में लण्ड को रखे रखे मेरे ऊपर लेट गई।
मुझे लगा अभी यह फिर से चली जाएगी। लेकिन दो मिनट के बाद आंटी ने मेरे दाएँ हाथ की रस्सी खोल दी, और फिर से मेरे ऊपर ही लेट गई।
मैंने जल्दी से मेरे दायें हाथ से बाएं हाथ की रस्सी खोली और आंटी को लिए लिए मैं उठ कर बैठ गया और फिर मैंने अपने पैरों की रस्सी भी खोल दी।
अब मैं पूरी तरह से आजाद था, और आंटी की चूत में मेरा लण्ड घुसा हुआ ही था।
उसके बाद मैंने आंटी की ब्रा खोल कर उनके दोनों कबूतरों को आजाद करने की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया और आंटी को पीछे लेटाया और मैं उनके ऊपर आ गया।
आंटी ने मुझे उनकी बाहों में जकड़ रखा था तो मैं उनकी ब्रा नहीं उतार सकता था लेकिन इस हालत में मेरा मन आंटी की ब्रा उतारने के बजाय उनको चोदने का था तो मैंने आंटी को चोदने शुरु कर दिया और आंटी ने मुझे थोड़ी देर में ढीला छोड़ दिया और फिर मैंने उनकी ब्रा को उनके बदन से अलग करने में जरा भी देर नहीं की।
यह पहला मौका था जब मैं आंटी के स्तनों को बिना ब्रा के देख रहा था तो मैंने आंटी के स्तनों को चूमना शुरू कर दिया और नीचे से धक्के लगा ही रहा था।
मैं काफी देर से रुका हुआ था अपने अंदर एक सैलाब लेकर, मुझे लगा कि मैं अब झड़ जाऊँगा तो मैंने आंटी के एक स्तन को मुंह में लिया दूसरे को हाथ में पकड़ा और रफ़्तार तेज कर दी, तेज तेज धक्के मारने लगा।
आंटी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, कभी मेरे बाल सहलाती और कभी मेरी पीठ।
मैंने ऐसे ही कुछ 30-40 धक्के मारे होंगे कि मैं झड़ने लगा ! और जब मैं झड़ा तो मेरे मुंह से एक चीख ही निकल गई और एक बड़े झटके के बाद मैं 10-12 छोटे छोटे झटके मारता रहा और उसके बाद थक कर आंटी के ऊपर ही लेट गया।

rajaarkey
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Re: हिन्दी सेक्सी कहानियाँ

Unread post by rajaarkey » 09 Nov 2014 07:45


आंटी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, कभी मेरे बाल सहलाती और कभी मेरी पीठ।
मैंने ऐसे ही कुछ 30-40 धक्के मारे होंगे कि मैं झड़ने लगा ! और जब मैं झड़ा तो मेरे मुंह से एक चीख ही निकल गई और एक बड़े झटके के बाद मैं 10-12 छोटे छोटे झटके मारता रहा और उसके बाद थक कर आंटी के ऊपर ही लेट गया।
जब मैं झड़ा तो उसके बाद ही आंटी भी अपने आप ही झड़ गई और फिर ना मेरी हिम्मत हुई तुरंत कुछ करने की ना ही आंटी की।
थोड़ी देर के बाद मैं आंटी के ऊपर से अलग हट कर बगल में लेट गया बिल्कुल निढाल सा होकर, और आंटी की भी हालत वही थी।
थोड़ी देर बाद आंटी को थोड़ी हिम्मत आई तो वो मेरे पास खिसक कर बोली- आय ऍम सॉरी संदीप ! मैंने ये सब तुम्हारे साथ किया, पर क्या करती, मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी।"
मैंने कहा- जो हो चुका है, वो तो हो चुका है उस पर पछतावा करने से कोई फायदा नहीं है, बस मैं अंकल के सामने शर्मिन्दा हो जाऊँगा अगर उन्हें पता चला तो ! क्यूँकि वो मुझ पर इतना भरोसा करते हैं और मैंने उनका भरोसा तोड़ दिया।"
आंटी ने कहा- पहली बात, भरोसा तुमने नहीं मैंने तोड़ा है, तुम तो क्या उस स्थिति में कोई भी होता वही करता जो तुमने किया है, बल्कि तुमने तो बहुत ज्यादा रोका खुद को और दूसरा यह कि हरीश को इस बात से कोई तकलीफ नहीं होगी। वो खुद भी करते हैं जब बाहर जाते हैं, मैंने आज तक शिकायत नहीं की उनसे, अगर मैंने एक बार कर ही लिया वो भी तुम्हारे साथ तो क्या हुआ?"
मैंने कहा- जो भी हो, प्लीज आप उनको मत पता चलने दीजियेगा।
आंटी ने कहा- ठीक है।
इस सारे उपक्रम में मुझे भूख लग आई थी तो मैंने कहा- कुछ खाने के लिये है भी या नहीं? या भूखे ही रखने का विचार है?
आंटी ने शरारत से कहा- सिर्फ खाने के लिए चाहिए, पीने के लिए नहीं?
मैंने कहा- नहीं, आपने कल रात में पिलाया था, अभी मेरी हालत कैसी है, दिख रहा है और पीने के लिए तो आप आओगी तो सब मिल ही जायेगा। तो आप बस खाने का इन्तजाम करो, भूख लग रही है।
आंटी ने कहा- खाना तैयार है, तुम नहा लो, फिर साथ में खाते हैं।
अब तक मेरा मन फिर से आंटी के साथ प्यार करने का होने लगा था तो मैंने कहा- अगर साथ में ही खाना और खाने के लिए सिर्फ नहाना ही है तो चलो, साथ में नहाते हैं।
और जब तक आंटी कुछ बोलती, मैं उन्हें उठा कर बाथरूम में लेकर चला गया और उन्हें एक हाथ से पकड़ कर शावर चालू कर दिया।
नहाते हुए मैं कभी उनके होठों को चूम रहा था तो कभी उनके गालों को और कभी उनकी गर्दन को काट रहा था। उसके बाद मैंने आंटी के बदन पर साबुन लगाया और आंटी ने मेरे बदन पर ! और फिर हम दोनों ही एक दूसरे के बदन का साबुन धोने लगे और साबुन धोते हुए मैं आंटी की चूत और स्तनों को मसल रहा था और आंटी मेरे लण्ड को मसल रही थी।
अद्भुत था वो मजा भी ! और ऐसे में ही आंटी मुझे लेकर वही बड़े से बाथरूम के फर्श पर लेट गई, वो नीचे और मैं उनके ऊपर था, ऊपर से फव्वारे की बौछारें आ रही थी और नीचे आंटी ने मेरा पूरा सख्त हो चुका लण्ड अपने हाथों में लेकर उनकी चूत पर रख लिया और मैंने एक झटके में मेरा पूरा लण्ड आंटी की चूत में अंदर तक घुसा दिया।
आंटी के मुह से एक हल्की सी सिसकारी निकली और मेरे अंतर में एक अलग आनंद ! और फिर मैंने धक्के लगाने शुरू किए पर उन धक्कों का मजा ना ही आंटी को आ रहा था ना मुझे क्योंकि नीचे सख्त फर्श था और मेरे हाथ पैर के घुटने काफी दर्द करने लगे थे।
थोड़ी ही देर में तो मैंने बाथरूम का दरवाजा खोला और बाथरूम के बाहर ही बिछे हुए नर्म कालीन पर आ गया और वहीं पर ही आंटी की चूत के साथ कुश्ती शुरू कर दी।
नीचे चूत लण्ड से टकरा रही थी और ऊपर होंठ होठों से, मेरे हाथ आंटी के गीले बालों और सख्त हो चुके स्तनों के बीच घूम रहे थे।
हम दोनों ही वासना के ज्वार में ऊपर-नीचे हो रहे थे और मेरे हर धक्के का जवाब आंटी अपने धक्कों से ही देती थी।
यह धक्कम पेल चुदाई काफी देर तक चलती रही और फिर आंटी ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, मेरे होठों पर उनके होठों की पकड़ ढीली हो गई और अपने पैरों से नीचे से धक्का लगा कर उनकी चूत को बस उठा ही रहने दिया और एक झटके में ही वो झड़ गई।
अब आंटी पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी और मेरी भी हालत ज्यादा देर टिकने की नहीं थी तो मैंने भी धक्के लगाने शुरू कर दिये।
आंटी इतना पस्त होने के बाद भी मेरा पूरा साथ दे रही थी जो मुझे बहुत अच्छा लगा और फिर मुझे लगा कि मैं भी झड़ जाऊँगा तो मैंने आंटी से कहा- आंटी मैं भी झड़ने वाला हूँ।
मेरी बात सुन कर उन्होंने मेरी कमर पर अपनी टाँगें लपेट ली और मेरे हाथ अपने दोनों स्तनों पर रखते हुए बोली- अंदर ही झड़ जाना, एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने देना।
और आंटी की इतनी बात सुननी थी कि मैंने आंटी के दोनों स्तनों को दबाते हुए धक्के लगाना शुरू किए और कुछ ही धक्कों में मेरा सारा वीर्य आंटी की चूत के अंदर था।
झड़ने के बाद मैं एक बार फिर आंटी पर ही पसर गया, मेरे पसरने पर आंटी ने मुझे अपनी बाँहों में लपेट लिया और मेरी कमर को बंधे बंधे ही मेरे बालों को सहलाने लगी, साथ ही साथ मेरे कानों और कंधों को चूमने लगी जो बहुत अच्छा लग रहा था।
कुछ मिनट बाद मैं आंटी के ऊपर से उतर कर नीचे बगल में ही लेट गया तो आंटी बाथरूम में गई, उन्होंने अपनी चूत साफ़ की, हाथ धोए और तौलिए से हाथों और चूत को पौंछते हुए बोली- तुम नहा कर आ जाओ, मैं भी नहा कर खाना गर्म करती हूँ।
अलमारी से दूसरा तौलिया निकाल कर मुझे दिया और दरवाजे पर जा कर बोली- अलमारी में तुम्हारे एक जोड़ी कपड़े रखे हुए हैं तो कपड़ों की चिंता मत करना, वही पहन लेना।
आंटी की बात सुन कर मैं फिर से नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया।
मैंने नहा कर जब बदन पौंछना शुरू किया तो मैंने ध्यान दिया किक मेरे शरीर पर हर जगह आंटी के लव बाइट्स के निशान थे, मैं सोच रहा था कि आखिर मैं इन निशानों को सब से छुपाऊँगा कैसे। फिर मैंने तौलिया लपेटा अलमारी में से कपड़े निकालने गया तो देखा कि ये भी मेरे ही कपड़े थे जिसमें अंडरवियर और बनियान नई थी और लोअर और टीशर्ट मेरे ही थे।


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