अनोखे परिवार--1
ये बात उन दिनों की है जब मैं पटना जैसे छोटे शहर से
नौकरी की तलाश में देल्ही पहुँचा था. रुकने का
बंदोबस्त अपने दोस्तों के साथ पहले से ही कर लिया था.
मुझे पता था कि मुझे क्या करना हैऔर कौन सी नौकरी करनी
है. कुछ दिनों की तलाश के बाद आख़िरकार मुझे नौकरी मिल
गयी.
देल्ही के साउत एक्स एरिया में मेरा दफ़्तर था और मैं चाहता
था की ऑफीस के आस पास ही घर मिल जाए घर क्या किसी कमरे या
बरसाती की ही तलाश थी जहाँ ज़्यादा पैसा ना इनवेस्ट करना
पड़े.
कुछ दिनों की मेहनत के बाद ग्रीन पार्क में मुझे एक
बरसाती मिल गया.
टू फ्लोर का मकान था और उपर छत था छत पर ही एक कोने
में एक कमरा बना हुआ था साथ ही एक छोटा सा स्पेस शायद
किचन के लिए और कमरे के सटे हुए बाथरूम बने हुए
थे यानी एक कंप्लीट सेट मुझे मिल गया .
घर का कन्स्ट्रक्षन कुछ इस तरह का था छत के ठीक नीचे
वाले फ्लोर पर मकान मालिक की फॅमिली रहती थी और उसके नीचे
एक दूसरा परिवार जिसमे मेरे मकान मालिक नें अपने किसी
दोस्त के परिवार को किराया पर दिया हुआ था मेरे छत से और
मेरे कमरे की खिड़की से उपर वाला पूरा फ्लोर सॉफ दिखता था
और नीचे वाले फ्लोर के एक दो कमरे दिखाई देते थे .
मैं आपको इन दोनो परिवार से इंट्रोडक्षन करवाता हूँ.
मकान मालिक का परिवार -
1) सूरज शर्मा (हज़्बेंड) - एज 55
2) कोमल शर्मा ( वाइफ) - एज 40 -45
3) संजय शर्मा ( बेटा) - एज 25
4) ललिता शर्मा ( बहू) - एज 22
5) सरोज शर्मा ( बेटी) - एज -22
यानी भरा पूरा परिवार था उनका
नीचे वाले फ्लोर पर रहने वाला परिवार
1) श्याम सिंग (हज़्बेंड) - एज 52
2) राधिका सिंग ( वाइफ) -एज 40
3) रंजन सिंग ( बेटा) - एज 25-26
4) श्वेता सिंग ( बहू) - एज 23
उनके बीच रिश्ते अच्छे थे. उनका आपस में रोज़ का आना
जाना था, खाना पीना भी लगभग साथ ही होता था. एक ही
परिवार की तरह रहते थे. मैं रोज सुबह करीब 9 बजे ऑफीस
के लिए निकलता और शाम के 7 बजे वापिस आता था. सॅटर्डे
सनडे छुट्टी होती थी. मैं धीरे धीरे इन दोनों परिवार से
भी घूल मिल गया था मगर इनके घर जाना मैं एवाउड
करता था खुद में मगन रहता था.
शुक्रवार की शाम को जब मैं घर लौटा तो मुझे शर्मा जी
मुझे सीढ़ियों पर ही मिल गये उन्होने मुझे कहा कि बेटा
कभी घर आ जाया कर और माजी का हाथ बटा दिया कर.
मैने संकोच करते हुए कह दिया कि ठीक है अंकल कोई बात
नही जब भी कोई काम हो मुझे बुला लिया कीजिए और कुछ इधर
उधर की बात के बात मैं अपने कमरे में चला गया फ्रेश
होने के बाद मैं अपने बेड पर लेट कर किताब पढ़ रहा था कि
अचानक दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई मैं हड़बड़ा कर
उठा और दरवाज़ा खोला तो देखा की शर्मा जी बाहर खड़े हैं.
रात के यही कोई 9 बज रहे होंगे मैने उनसे पूछा क्या
बात है अंकल. उन्होने कहा "बेटे आज हम दोनो परिवार
नें एक छोटी पार्टी रखी है सिर्फ़ हम ही लोग रहेंगे तो तुम भी
आ जाते तो ठीक रहता आपस में जान पहचान भी हो जाती "
, मैने कहा ठीक है अंकल मैं आता हूँ. मुझे इन्वाइट
करके वो चले गये मैने भी ना चाहते हुए अपनी जीन्स
और टी-शर्ट डाली और नीचे वाले फ्लोर पर पहुच गया.
दरवाज़े का बील बजाया , थोड़ी देर में ललिता भाभी नें
दरवाज़ा खोला. मैं उन्हें देखता ही रह गया, वैसे तो वो
बहुत खूबसूरत थी मगर उस दिन कहर ढा रही थीं . गोरा
रंग, गहरी लिपस्टिक, हाथों में मेहन्दी, कलाई चूड़ियों से सजी
हुई, नीले सलवार कुर्ते में सजी चूचियाँ ओह! मत पूछो
कितनी भारी भारी चूचियाँ थीं उनकी. उनको देख कर मेरी
जवानी हिचकोले मारने लगी लंड में भी सुगबुगाहट शुरू हो
गयी.
मैं उन्हें देखता ही रह गया अचानक मेरी तंद्रा टूटी जब
उन्होनें कहा कि "अरे अंदर तो आओ बाहर ही खड़े रहोगे
क्या चलो अंदर शरमाओ नही तुम भी परिवार ही जैसे हो"
मैने कहा हां भाभी क्यों नही " मैं अंदर आ गया
था" , वो मेरे आगे आगे चल रही मैं पीछे
पीछे. क्या गांद थी उनकी ऊऊफफफ्फ़ , गजब गोलाई थी जब चलती
थीं तो गजब हिलती और मटकती थी मैने किसी तरह से अपने को
और अपने लंड को संभाला था.
वो मुझे कमरे के भीतर लेकर गयी जहाँ पहले से ही
दोनो परिवार के सभी लोग मौजूद थे, सामने कुछ नाश्ता
और ड्रिंक्स पड़े थे. संजय शर्मा और सूरज शर्मा नें
मेरा स्वागत किया और वही पड़े सोफे पर बिठाया.
शर्मा जी अचानक बीच में हो गये और उन्होने कहा कि
'पंकज (मैं) को यहाँ आए करीब एक महीना हो गया है लेकिन
ये अभी भी हम से दूर दूर रहता है जबकि यहाँ इस घर का
नियम सब एक साथ एक ही परिवार की तरह सुख दुख में
भागीदार होते हैं आज से इस बच्चे को अपने परिवार में
हम शामिल करते हैं" मैं हैरान था मैं फिर चुप चाप
मुस्कुरा दिया , इसमे कोई हर्ज़ तो था नही उल्टे मेरा ही फ़ायदा
था कि चलो कोई ज़रूरत होगी इनसे मदद मिल जाएगी. श्याम
अंकल अपनी जगह से उठ कर आगे आए और उन्होनें मुझसेहाथ
मिलाया. उन्होनें मुझे अपनी पत्नी राधिका से भी
मिलवाया.
अनोखे परिवार
Re: अनोखे परिवार
जब वो मुझे राधिका आंटी से मिलवाने के लिए मुझे ले
जा रहे थे तो मैने गौर किया कि कोमल आंटी संजय भैया
को कुछ अजीब नज़रों से देख रही थी, खैर मैं उनसे ,मिला
इस उम्र में भी वो जवान ही लग रही थी. चुचिया काफ़ी बड़ी
बड़ी लग रही थी थोड़ी सावली थीं मगर कातिल थीं एक दम
पर्फेक्ट बॉडी. इधर उनसे कुछ ही दूरी पर कोमल आंटी और
सरोज भी बैठी थी.
थोड़ी दूरी पर श्वेता अपने पति राजन् के साथ सॅट कर
बैठी बला की परी थी . वहाँ ये तय कर पाना मुश्किल कि इन
महिलाओ में सबसे खूबसूरत कौन है. खैर काफ़ी देर तक
बातों का सिलसिला चलता रहा. बीच में ललिता भाभी मुझसे
मज़ाक भी कर लेती और उनका साथ देती सरोज और श्वेता मैं
शरमा जाता मगर इन्सब में मेरे लंड महाराज बहुत नाराज़
लग रहे थे जब से आए थे चुचि और गंदों को देख कर
खड़े ही थे बैठे का नाम भी नही ले रहे थे.
मेरा हाल भी बुरा था. पार्टी ख़तम खाना ख़ाके मैं
अपने कमरे में आ गया. यही कोई 12 बज रहे होंगे.
मैने लाइट बुझाई और सोने की कोशिश करने लगा मगर
लंड महाराज मानने को तय्यार नही थे. मैने शॉर्ट्स पहन
रखे थे और शॉर्ट्स में टेंट सा बन गया था. मैं अपने
लंड को सहलाए जा रहा था ऐसे ही करीब दो घंटे निकल
गये थे कि अचानक किसी नें धीमे से दरवाज़े पर दस्तक
दी मैं चौक गया थोड़ा डर भी गया था.
खैर मैने दरवाज़ा खोला देखा तो और भी हैरान हो गया
सामने कोमल आंटी खड़ी थी. नाइटी पहन रखी, चुचियों
का उभार भी सॉफ झलक रहा था. मैने उत्सुकतावास पूछा "
आंटी सब ठीक है क्या हुआ आप इस वक़्त यहाँ", वो मेरे
कमरे में आते हुए बोलीं " हां बेटा सब ठीक ही है क्या
बताऊ नींद नही आ रही थी सोचा कि देखती हूँ अगर तुम
जाग रहे होगे तो मैं तुमसे बात करके थोड़ी टाइम पास कर
लूँगी"
मैने कहा अंकल कहाँ हैं तो उन्होनें कहा पीकर सो
गये हैं. आंटी नें पूछा " मेरे आने से बेटा तुम्हें तो
कोई डिस्टर्बेन्स नही हुई ना" मैने कहा " कैसी बाते करती
हो आंटी" मैने उन्हे अंदर बुलाया और बेड पर बैठा दिया.
उनकी आँखों में मुझे कुछ अजीब सी मदहोश लग रही
थी. उन्होनें इधर उधर की बाते शुरू कर दी उन्होनें
अचानक मुझ से पूछा की बेटा तू पटना जैसे छोटे शहर से
आया है देल्ही के माहौल कैसा लगता है.
मैने भी कह दिया कि आंटी यहाँ का माहौल थोड़ा पटना से
अलग है . उन्होने मुझसे पूछा कि कही तेरा मतलब लड़कियों
से तो नही और कह के हांस पड़ी मैं भी शर्मा गया.
मैने कहा हां आप कह सकती हैं कि यहाँ लड़कियाँ अपने
आपको ठीक ढंग से रखती हैं. उन्होने कहा कि बेटा एक
चीज़ बता तू यहाँ अकेला रहता है तेरा दिल कभी घबराता नही
है क्या.
मैने कहा आंटी सच बताऊ तो कल तक मैं बहुत अकेला
महसूस कर रहा था मगर आज आप लोगों से मिलकर ऐसा लग
रहा है अब कोई अकेलापन नही. अचानक वो नीचे झुकी उनके
नीचे झुकते ही उनकी चूचियाँ सॉफ दिखने लगी क्या बड़ी
बड़ी मस्त चुचियाँ थीं. ये देख कर मेरा लंड फिर से
खड़ा हो गया था. वो कुछ उसी अवस्था में बैठी रही .
उनकी नज़र अचानक मेरे शॉर्ट्स बन रहे टेंट पर पड़ी और
वो मुस्कुरा दीं.
मैं उनकी मुस्कराहट को देख कर समझ गया की उन्होने
मेरे खड़े लंड को देख कर भाँप लिया है की मेरी हालत
खराब हो रही है. उन्होनें अचानक कहा कि बेटा ये क्या है
तेरे पॅंट में कोई रोड छुपा रखा है क्या, मैं शर्मा गया
था. मैं हड़बड़ा गया था, मैने कहा "वो आंटी ये तो
मैं आगे कुछ बोले नही पाया और थूक निगलते हुए मैने
हकलाने लगा.
उन्होनें मेरे गालों को सहलाया और कहा कि मैं समझती
हूँ तेरी उम्र ही ऐसी है. मैने भी इसी लिए संजय की शादी
टाइम से करवा दी नही तो इधर उधर चूत के चक्कर में
घूमता फिरता रहता. उनके मूह से चूत शब्द सुन कर मैं
चोंक गया. उन्होने कहा कि बेटा तेरा लॉडा तो काफ़ी दमदार
और बड़ा लगता है.
जा रहे थे तो मैने गौर किया कि कोमल आंटी संजय भैया
को कुछ अजीब नज़रों से देख रही थी, खैर मैं उनसे ,मिला
इस उम्र में भी वो जवान ही लग रही थी. चुचिया काफ़ी बड़ी
बड़ी लग रही थी थोड़ी सावली थीं मगर कातिल थीं एक दम
पर्फेक्ट बॉडी. इधर उनसे कुछ ही दूरी पर कोमल आंटी और
सरोज भी बैठी थी.
थोड़ी दूरी पर श्वेता अपने पति राजन् के साथ सॅट कर
बैठी बला की परी थी . वहाँ ये तय कर पाना मुश्किल कि इन
महिलाओ में सबसे खूबसूरत कौन है. खैर काफ़ी देर तक
बातों का सिलसिला चलता रहा. बीच में ललिता भाभी मुझसे
मज़ाक भी कर लेती और उनका साथ देती सरोज और श्वेता मैं
शरमा जाता मगर इन्सब में मेरे लंड महाराज बहुत नाराज़
लग रहे थे जब से आए थे चुचि और गंदों को देख कर
खड़े ही थे बैठे का नाम भी नही ले रहे थे.
मेरा हाल भी बुरा था. पार्टी ख़तम खाना ख़ाके मैं
अपने कमरे में आ गया. यही कोई 12 बज रहे होंगे.
मैने लाइट बुझाई और सोने की कोशिश करने लगा मगर
लंड महाराज मानने को तय्यार नही थे. मैने शॉर्ट्स पहन
रखे थे और शॉर्ट्स में टेंट सा बन गया था. मैं अपने
लंड को सहलाए जा रहा था ऐसे ही करीब दो घंटे निकल
गये थे कि अचानक किसी नें धीमे से दरवाज़े पर दस्तक
दी मैं चौक गया थोड़ा डर भी गया था.
खैर मैने दरवाज़ा खोला देखा तो और भी हैरान हो गया
सामने कोमल आंटी खड़ी थी. नाइटी पहन रखी, चुचियों
का उभार भी सॉफ झलक रहा था. मैने उत्सुकतावास पूछा "
आंटी सब ठीक है क्या हुआ आप इस वक़्त यहाँ", वो मेरे
कमरे में आते हुए बोलीं " हां बेटा सब ठीक ही है क्या
बताऊ नींद नही आ रही थी सोचा कि देखती हूँ अगर तुम
जाग रहे होगे तो मैं तुमसे बात करके थोड़ी टाइम पास कर
लूँगी"
मैने कहा अंकल कहाँ हैं तो उन्होनें कहा पीकर सो
गये हैं. आंटी नें पूछा " मेरे आने से बेटा तुम्हें तो
कोई डिस्टर्बेन्स नही हुई ना" मैने कहा " कैसी बाते करती
हो आंटी" मैने उन्हे अंदर बुलाया और बेड पर बैठा दिया.
उनकी आँखों में मुझे कुछ अजीब सी मदहोश लग रही
थी. उन्होनें इधर उधर की बाते शुरू कर दी उन्होनें
अचानक मुझ से पूछा की बेटा तू पटना जैसे छोटे शहर से
आया है देल्ही के माहौल कैसा लगता है.
मैने भी कह दिया कि आंटी यहाँ का माहौल थोड़ा पटना से
अलग है . उन्होने मुझसे पूछा कि कही तेरा मतलब लड़कियों
से तो नही और कह के हांस पड़ी मैं भी शर्मा गया.
मैने कहा हां आप कह सकती हैं कि यहाँ लड़कियाँ अपने
आपको ठीक ढंग से रखती हैं. उन्होने कहा कि बेटा एक
चीज़ बता तू यहाँ अकेला रहता है तेरा दिल कभी घबराता नही
है क्या.
मैने कहा आंटी सच बताऊ तो कल तक मैं बहुत अकेला
महसूस कर रहा था मगर आज आप लोगों से मिलकर ऐसा लग
रहा है अब कोई अकेलापन नही. अचानक वो नीचे झुकी उनके
नीचे झुकते ही उनकी चूचियाँ सॉफ दिखने लगी क्या बड़ी
बड़ी मस्त चुचियाँ थीं. ये देख कर मेरा लंड फिर से
खड़ा हो गया था. वो कुछ उसी अवस्था में बैठी रही .
उनकी नज़र अचानक मेरे शॉर्ट्स बन रहे टेंट पर पड़ी और
वो मुस्कुरा दीं.
मैं उनकी मुस्कराहट को देख कर समझ गया की उन्होने
मेरे खड़े लंड को देख कर भाँप लिया है की मेरी हालत
खराब हो रही है. उन्होनें अचानक कहा कि बेटा ये क्या है
तेरे पॅंट में कोई रोड छुपा रखा है क्या, मैं शर्मा गया
था. मैं हड़बड़ा गया था, मैने कहा "वो आंटी ये तो
मैं आगे कुछ बोले नही पाया और थूक निगलते हुए मैने
हकलाने लगा.
उन्होनें मेरे गालों को सहलाया और कहा कि मैं समझती
हूँ तेरी उम्र ही ऐसी है. मैने भी इसी लिए संजय की शादी
टाइम से करवा दी नही तो इधर उधर चूत के चक्कर में
घूमता फिरता रहता. उनके मूह से चूत शब्द सुन कर मैं
चोंक गया. उन्होने कहा कि बेटा तेरा लॉडा तो काफ़ी दमदार
और बड़ा लगता है.
Re: अनोखे परिवार
मैं शर्मा रहा था , उन्होने कहा बेटा शर्मा क्यों रहा
है संजय को देख अपनी बीवी के साथ कितना खुश है उसकी बीवी
भी हमीने खोजी थी उन्होने गर्व से कहा. ललिता सुंदर है
ना बेटा उन्होनें मुजसे पूछा मैने हां में सिर हिला
दिया.
उन्होने अपना एक हाथ मेरे जांघों पर रख दिया था. मेरी
हालात और खराब होती जा रही थी. मैने उनकी तरफ देखा
उनकी आँखों में अजीब से मदहोशी छाई थी इधर मैं
भी मदहोश हो रहा था. पर मैं कोई पहल करने में डर
रहा था.
उन्होनें कहा कि बेटा देख ना मेरे पीठ में कमर थोड़ी
अकड़न सी आ गयी है ज़रा लाइट जाऊ तो मैने कहा हां आंटी
कोई बात नही आप लेट जाओ. उन्होनें कहा कि अगर तेरे पास कोई
तेल है तो मालिश कर दे.
मैने अपनी अलमारी खोली और उसमे से ऑलिव आयिल निकाला और वहीं
खड़ा हो हो गया मेरा लंड अब भी खड़ा था वो समझ
गयी और उन्होनें कहा अर्रे पंकज बेटा शरमाता क्यों है
मेरी नाइटी मैं उपर कर लेती हूँ तू आराम उपर आ जा और
कमर में पीठ में तेल लगा दे.
मीयन अब बेड पर चढ़ गया और मैं हातेली पर खूब सारा
तेल लिया और पैर पर लगाना शुरू किया आंटी को मज़ा आ राहा
था धीरे धीरे मैं थोड़ा नाइटी उपर किया और तेल अब उनके
घोटने पर लगते हुए उपर चढ़ने लगा.
अब मैं उनके चूतड़ के पास पहुँच गया था मैने नाइटी
को थोड़ा और उपर किया मैं चौंक गया आंटी तो पूरी तरह से
नंगी थी उनकी मलाईदार चूतड़ मेरे आँखों के सामने थी
और साथ ही साथ पीछे उँगे चूत के छेद भी दिख रहे
थे क्या नाज़ारा था क्या बताऊ मेरा लॅंड किसी लोहे की रोड की
तरह हो गयी थी. आंटी नें कहा कि बेटा तेल क्यों नही लगा
रहे हो रुक क्यों गये हो.
मैने अब धीरे धीरे फिर से तेल लगाना शुरू किया मैं
आंटी के चूतड़ को और कमर मल रहा था कभी उनकी गंद की
दरारों में भी मेरी उंगलिया फिसल रही थी, मैने एक हाथ से
अपना लंड अड्जस्ट किया.
आंटी भाँप गयी मगर उन्होने कुछ कहा नही मैं तेल
लगाता रहा वा क्या नज़ारा था क्या उभार थे उनकी चूतड़ के
मन करता था की उनके चूतड़ को चूम लूँ. आंटी नें
टाँगे थोड़ी फैला दी और अब उनके चूत के फाँक मुझे सॉफ
दिखने लगे थे. उनकी चूत गीली हो रही थी यह मैं
देख सकता था मगर पहल मैं नही करना चाहता था.
मैने उनकी गंद पर तेल लगाते लगाते धीरे से उनकी चूत की
दरार का स्पर्श भी कर लिया फिर अपने हाथ वहाँ से हटा दिए.
मैं थोड़ा और उपर सरका उनकी कमर में और पीठ में तेल
लगाने के लिए और जैसे ही मैने ऐसा किया मेरा लंड उनकी
गंद से टकरा गया मैं सिहर उठा आंटी भी कसमासाई.
अचानक आंटी नें कहा की बेटा सुबह होने वाली है अब जाना
होगा क्योंकि अब नहा कर पूजा की तय्यारी भी मुझे ही करनी
है. और मैं बुझे मन से बिस्तर से उतर गया मेरी हालत
बहुत खराब थी क्योंकि ज़िंदगी में पहली बार मैने चूत के
और गंद के दर्शन किए.
आंटी उठे हुए मेरे मन की बात भाँप गयी और कहा कि
बेटा तू आराम कर और दिन का खाना हमारे साथ ही खाना ये
कहकर आंटी गंद मतकाते हुए वहाँ से चली गयी.
मैने जैसे तैसे मूठ मारकर अपने लंड की गर्मी शांत
करने की कोशिश की मगर ऐसा हुआ नही. सुबह के 5 बज चुके
थे और मैं अपने बिस्तर पर लेट गया उसी जगह पर जहाँ पर
थोड़ी पहले आंटी लेटी हुई थी.
कब आँख लगी पता ही नही चला करीब दिन के 12 बजे मेरी
नींद खुली, मेरा लंड खड़ा था किसी पत्थर की तरह. शनिवार
का दिन था ऑफीस की छुट्टी थी मैं फ्रेश होने के बाद चाय
पी छत पर टहलने लगा. रात के बारे में सोच ही रहा
था.सोच सोच कर मेरा लंड फिर खड़ा हो गया , तभी मुझे
कुछ मेरे पीछे कुछ आहट हुई मैने पलट के देखा तो आंटी
खड़ी थी. उन्होने गाउन डाल रखी थी.
वो मुझे देख कर मुस्कुराई और मेरी तरफ आ गयी.
उन्होने मुस्कुराते हुए पूछा बेटा यहाँ अकेले क्यों टहल
रहा है अगर मन नही लग रहा है नीचे आजा साथ बैठ
कर टीवी देखेंगे घर में ललिता और सरोज भी हैं ये शाम
तक दुकान से लौट आएँगे और संजय भी शाम तक ही
लौटेगा, दोपहर का खाना भी खा लेना. मैने थोड़ी अन्ना
कानी की मगर वो नही मानी और मुझे नीचे ले गयी.
ललिता भाभी द्रवाईंग रूम में ही थी उन्होने नाइटी डाल रखी
थी क्या सेक्सी लग रही थी . उन्होने अर्रे पंकज आओ बैठो
मैं वहीं बैठ गया मगर मेरा मन अब टीवी देखने में
नही लग रहा था मेरी नज़रे बार बार ललिता भाभी पर जा रही थी.
उनकी अदा काफ़ी मनमोहक थी. तभी कमरे में आंटी आ
गाइईं और मुझे कोल्ड ड्रिंक पीने को दिया और वहीं बगल
में बैठ गयी. इन दोनो सेक्सी औरतों को बीच में बैठ
कर लंड को संभालने की कोशिस कर रहा था.
लगता है आंटी समझ गयी थी. आंटी नें किसी काम से
ललिता भाभी को किचन में भेज दिया , आंटी मेरे और
करीब आ गयी, उन्होनें कहा " बेटा कल रात नींद तो अच्छी
आई थी मैने हां में सर हिला दिया, उन्होनें कहा " मैं
तुझसे एक बात पूछना चाह रही थी कल रात तुमने जवाब नही
दिया था " मैने पूछा "क्या आंटी" उन्होने कहा कि " वो जो
पंत में रोड की तरह था वो क्या था
वो ये कह कर हँसने लगी मैं झेंप गया था उन्होनें
कहा कि बेटा " तू मालिश बहुत अछा करता है कहाँ से सीखा
सारा दर्द और थकावट दूर हो गयी थी कल रात को", अब
जब भी मौका मिलेगा तुझीसे मालिश कर्वाउन्गि. इतने में
ललिता भाभी आ गयी और कहा कि खाना लग गया है. आंटी
खड़ी हो गयी मगर मैं खड़ा होने में संकोच कर
रहा था क्योंकि मेरा लंड अब भी खड़ा था आंटी भाँप गयी
थी ाओह मुस्कुरा दी. मैं जैसे तैसे खड़ा हुआ
और धीरे धीरे खड़े लंड लिए डाइनिंग हॉल में पहुँच
गया वहाँ सरोज भी आ गयी थी और टेबल पर बैठी थी. मैं
बैठ गया और सरोज से बातें करने लगा. इधर उधर की
बातें उसकी पढ़ाई की बातें होने लगी.
kramashah.................
है संजय को देख अपनी बीवी के साथ कितना खुश है उसकी बीवी
भी हमीने खोजी थी उन्होने गर्व से कहा. ललिता सुंदर है
ना बेटा उन्होनें मुजसे पूछा मैने हां में सिर हिला
दिया.
उन्होने अपना एक हाथ मेरे जांघों पर रख दिया था. मेरी
हालात और खराब होती जा रही थी. मैने उनकी तरफ देखा
उनकी आँखों में अजीब से मदहोशी छाई थी इधर मैं
भी मदहोश हो रहा था. पर मैं कोई पहल करने में डर
रहा था.
उन्होनें कहा कि बेटा देख ना मेरे पीठ में कमर थोड़ी
अकड़न सी आ गयी है ज़रा लाइट जाऊ तो मैने कहा हां आंटी
कोई बात नही आप लेट जाओ. उन्होनें कहा कि अगर तेरे पास कोई
तेल है तो मालिश कर दे.
मैने अपनी अलमारी खोली और उसमे से ऑलिव आयिल निकाला और वहीं
खड़ा हो हो गया मेरा लंड अब भी खड़ा था वो समझ
गयी और उन्होनें कहा अर्रे पंकज बेटा शरमाता क्यों है
मेरी नाइटी मैं उपर कर लेती हूँ तू आराम उपर आ जा और
कमर में पीठ में तेल लगा दे.
मीयन अब बेड पर चढ़ गया और मैं हातेली पर खूब सारा
तेल लिया और पैर पर लगाना शुरू किया आंटी को मज़ा आ राहा
था धीरे धीरे मैं थोड़ा नाइटी उपर किया और तेल अब उनके
घोटने पर लगते हुए उपर चढ़ने लगा.
अब मैं उनके चूतड़ के पास पहुँच गया था मैने नाइटी
को थोड़ा और उपर किया मैं चौंक गया आंटी तो पूरी तरह से
नंगी थी उनकी मलाईदार चूतड़ मेरे आँखों के सामने थी
और साथ ही साथ पीछे उँगे चूत के छेद भी दिख रहे
थे क्या नाज़ारा था क्या बताऊ मेरा लॅंड किसी लोहे की रोड की
तरह हो गयी थी. आंटी नें कहा कि बेटा तेल क्यों नही लगा
रहे हो रुक क्यों गये हो.
मैने अब धीरे धीरे फिर से तेल लगाना शुरू किया मैं
आंटी के चूतड़ को और कमर मल रहा था कभी उनकी गंद की
दरारों में भी मेरी उंगलिया फिसल रही थी, मैने एक हाथ से
अपना लंड अड्जस्ट किया.
आंटी भाँप गयी मगर उन्होने कुछ कहा नही मैं तेल
लगाता रहा वा क्या नज़ारा था क्या उभार थे उनकी चूतड़ के
मन करता था की उनके चूतड़ को चूम लूँ. आंटी नें
टाँगे थोड़ी फैला दी और अब उनके चूत के फाँक मुझे सॉफ
दिखने लगे थे. उनकी चूत गीली हो रही थी यह मैं
देख सकता था मगर पहल मैं नही करना चाहता था.
मैने उनकी गंद पर तेल लगाते लगाते धीरे से उनकी चूत की
दरार का स्पर्श भी कर लिया फिर अपने हाथ वहाँ से हटा दिए.
मैं थोड़ा और उपर सरका उनकी कमर में और पीठ में तेल
लगाने के लिए और जैसे ही मैने ऐसा किया मेरा लंड उनकी
गंद से टकरा गया मैं सिहर उठा आंटी भी कसमासाई.
अचानक आंटी नें कहा की बेटा सुबह होने वाली है अब जाना
होगा क्योंकि अब नहा कर पूजा की तय्यारी भी मुझे ही करनी
है. और मैं बुझे मन से बिस्तर से उतर गया मेरी हालत
बहुत खराब थी क्योंकि ज़िंदगी में पहली बार मैने चूत के
और गंद के दर्शन किए.
आंटी उठे हुए मेरे मन की बात भाँप गयी और कहा कि
बेटा तू आराम कर और दिन का खाना हमारे साथ ही खाना ये
कहकर आंटी गंद मतकाते हुए वहाँ से चली गयी.
मैने जैसे तैसे मूठ मारकर अपने लंड की गर्मी शांत
करने की कोशिश की मगर ऐसा हुआ नही. सुबह के 5 बज चुके
थे और मैं अपने बिस्तर पर लेट गया उसी जगह पर जहाँ पर
थोड़ी पहले आंटी लेटी हुई थी.
कब आँख लगी पता ही नही चला करीब दिन के 12 बजे मेरी
नींद खुली, मेरा लंड खड़ा था किसी पत्थर की तरह. शनिवार
का दिन था ऑफीस की छुट्टी थी मैं फ्रेश होने के बाद चाय
पी छत पर टहलने लगा. रात के बारे में सोच ही रहा
था.सोच सोच कर मेरा लंड फिर खड़ा हो गया , तभी मुझे
कुछ मेरे पीछे कुछ आहट हुई मैने पलट के देखा तो आंटी
खड़ी थी. उन्होने गाउन डाल रखी थी.
वो मुझे देख कर मुस्कुराई और मेरी तरफ आ गयी.
उन्होने मुस्कुराते हुए पूछा बेटा यहाँ अकेले क्यों टहल
रहा है अगर मन नही लग रहा है नीचे आजा साथ बैठ
कर टीवी देखेंगे घर में ललिता और सरोज भी हैं ये शाम
तक दुकान से लौट आएँगे और संजय भी शाम तक ही
लौटेगा, दोपहर का खाना भी खा लेना. मैने थोड़ी अन्ना
कानी की मगर वो नही मानी और मुझे नीचे ले गयी.
ललिता भाभी द्रवाईंग रूम में ही थी उन्होने नाइटी डाल रखी
थी क्या सेक्सी लग रही थी . उन्होने अर्रे पंकज आओ बैठो
मैं वहीं बैठ गया मगर मेरा मन अब टीवी देखने में
नही लग रहा था मेरी नज़रे बार बार ललिता भाभी पर जा रही थी.
उनकी अदा काफ़ी मनमोहक थी. तभी कमरे में आंटी आ
गाइईं और मुझे कोल्ड ड्रिंक पीने को दिया और वहीं बगल
में बैठ गयी. इन दोनो सेक्सी औरतों को बीच में बैठ
कर लंड को संभालने की कोशिस कर रहा था.
लगता है आंटी समझ गयी थी. आंटी नें किसी काम से
ललिता भाभी को किचन में भेज दिया , आंटी मेरे और
करीब आ गयी, उन्होनें कहा " बेटा कल रात नींद तो अच्छी
आई थी मैने हां में सर हिला दिया, उन्होनें कहा " मैं
तुझसे एक बात पूछना चाह रही थी कल रात तुमने जवाब नही
दिया था " मैने पूछा "क्या आंटी" उन्होने कहा कि " वो जो
पंत में रोड की तरह था वो क्या था
वो ये कह कर हँसने लगी मैं झेंप गया था उन्होनें
कहा कि बेटा " तू मालिश बहुत अछा करता है कहाँ से सीखा
सारा दर्द और थकावट दूर हो गयी थी कल रात को", अब
जब भी मौका मिलेगा तुझीसे मालिश कर्वाउन्गि. इतने में
ललिता भाभी आ गयी और कहा कि खाना लग गया है. आंटी
खड़ी हो गयी मगर मैं खड़ा होने में संकोच कर
रहा था क्योंकि मेरा लंड अब भी खड़ा था आंटी भाँप गयी
थी ाओह मुस्कुरा दी. मैं जैसे तैसे खड़ा हुआ
और धीरे धीरे खड़े लंड लिए डाइनिंग हॉल में पहुँच
गया वहाँ सरोज भी आ गयी थी और टेबल पर बैठी थी. मैं
बैठ गया और सरोज से बातें करने लगा. इधर उधर की
बातें उसकी पढ़ाई की बातें होने लगी.
kramashah.................