Love sex and..... - मेरे सच्चे प्यार की तलाश

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sexy
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Love sex and..... - मेरे सच्चे प्यार की तलाश

Unread post by sexy » 20 Jul 2016 11:02

जिस्म सिर्फ जिस्म की भूख जानता है प्यार
करना जिस्म की आदत नहीं ! एक से जी भर जाए
तो दूसरी अँधेरी राहों में जिस्म की तलाश
करता ही रहता है। यह कहानी है जज्बातों की,
यह कहानी है उम्मीदों की, और यह कहानी है सच्चे
प्यार की तलाश की…
बात उस वक़्त की है जब मैं अपनी ग्रेजुएशन
पूरी करके सरकारी नौकरी के लिए पहली बार
इम्तिहान देने पटना आया था। मेरे घर से नज़दीक
होने की वजह से मैंने इस शहर का चुनाव किया था।
कहते हैं अक्सर लोग कि प्यार और बुखार बोल कर
नहीं चढ़ते हैं। प्यार किस वक़्त और कहाँ किससे
हो जाए इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। यह
तो पैदा होने के साथ ही इंसान की नियति में
ही लिखा होता है।
अपने घर से तीन घंटे के सफ़र के बाद मैं
पटना पहुँचा। पता नहीं क्यों मेरा दिल जोर जोर
से धड़क रहा था जैसे किसी अनजान मुसीबत के आने
की आहट हो, हवाओं में हल्की सी नमी थी, जुलाई
का महीना था, हल्की फ़ुहार सी पड़ रही थी।
यह बारिश मुझे भिगो तो नहीं पाई पर मेरे सोये
अरमानों को जगा ज़रूर रही थी। ट्रेन की भीड़ के
साथ मैं भी बाहर निकला। इस शहर में मेरे एक अंकल
मुझे लेने आने वाले थे, और मैं इस शहर
को ज्यादा जानता भी नहीं था।
अंकल ने मुझे एक मंदिर के बाहर इंतज़ार करने
को कहा था। स्टेशन के बाहर साथ ही मंदिर था,
बहुत भीड़ नहीं थी वहाँ, शायद बारिश का असर
था।
जूते बाहर स्टैंड में जमा करके मैं अन्दर गया।
मंदिर की घंटियों की आवाज़ और इस वक़्त
का मौसम… पर अचानक मेरा दिल बहुत जोर जोर
से धड़कने लगा।
जैसे ही मैं पीछे पल्टा मेरा सीढ़ियों पर से संतुलन
बिगड़ गया, लड़खड़ाते हुए नीचे जमीन पर गिर
गया। जब होश आया तो मेरे हाथों में एक
गुलाबी दुपट्टा था। शायद गिरते वक़्त गलती से
मेरे हाथ में आ गया होगा। तभी एक
मीठी सी आवाज़ ने मुझे ध्यान से बाहर निकाला,
पलट कर जैसे ही देखा तो बस देखता ही रह गया।
साढ़े पाँच फीट के आस पास होगी, जिस्म जैसे
तराशा हुआ कोहिनूर सामने हो ! आँखें ऐसी कि सब
आँखों से ही बोल दे, होंठों की जरूरत ही ना हो,
होंठ ऐसे कि महाकवि भी अपने साहित्य के सारे
रस अपने काव्य में डाल दे तो भी उन होंठों के रस
की व्याख्या अधूरी रह जाए।
मैं सब कुछ भूल बैठा, शायद मुझे प्यार हो गया…
तभी एक आवाज़ ने मुझे मानो नींद से जगाया।
“यह क्या किया तुमने, मेरा पूरा प्रसाद
गिरा दिया !”
तभी मुझे ध्यान आया मैं असल में उसके प्रसाद पर
ही गिरा हुआ था, मेरी सफ़ेद शर्ट प्रसाद के घी से
पारदर्शी हो गई थी। मैं उठने की कोशिश करने
लगा पर मेरे पैर में बहुत जोर की चोट लगी थी।
जब खुद से उठ ना पाया तो उसने अपना हाथ आगे
बढ़ाया।
यह स्पर्श तो मुर्दों में भी जान डाल दे, फिर इस
दर्द की क्या बिसात थी !
मेरे उठने के बाद उसने मेरी टीशर्ट को गौर से
देखा, अभी तक उस पर प्रसाद वाले लड्डू के दाने
लगे थे. मेरी टीशर्ट पे लम्बोदर का चित्र था,
तभी उसे पता नहीं क्यों हंसी आ गई, उसने
कहा “लाई थी रामभक्त जी को चढ़ाने, पर
लगता है विनायक जी से रहा न गया !”
तभी मेरे मुँह से अचानक निकल गया- शायद लड्डू से
ज्यादा लाने वाले हाथ पसंद आ गए हों?
फिर से हंस कर उसने कहा- दर्द ठीक
हो गया हो तो लोगों को बुला देती हूँ !
हाथों की तारीफ़ भूल जाओगे।
मैंने कहा- ठीक है, नया हूँ इस शहर में तो अब क़त्ल
करो या सीने से लगाओ, यह आपके ऊपर है।
“क्या? क्या कहा तुमने?”
“मतलब मेरी मदद करो या मुझे मेरी हालत पे छोड़
दो, यह तुम्हारे ऊपर है।”
“क्या नाम है तुम्हारा?”
मैंने कहा- निशांत, और तुम्हारा?
“निशा…! कहीं तुम्हें मेरा नाम पहले से
तो नहीं पता था?”
“हाँ हाँ, मैंने तो जासूस छोड़ रखे है तुम्हारे पीछे !
अब तक चालीस लड़कियाँ घुमा चुका हूँ ! यह सब
गलती से हो गया ! मैंने कोई जानबूझ कर
तुम्हारा प्रसाद नहीं गिराया है, फिर
भी ज्यादा तकलीफ है तो चलो, दूसरा खरीद
देता हूँ !”
“सच्ची? चालीस लड़कियाँ !! तुम सब मिल कर
अलीबाबा चालीस चोर खेलते थे क्या? तुम
मेरा प्रसाद मुझे दिला दो, मैं तुम्हें टीशर्ट !
हिसाब बराबर !”
“हेलो ! यह टीशर्ट 1200 का है, और वैसे भी मैं इस
शहर में नया हूँ, ऐसी टीशर्ट कहाँ मिलेगी, मैं
नहीं जानता।”
“तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम्हें शॉपिंग कराने जाऊँ
फिर डेट पे ले जाऊँ फिर…?”
“फिर क्या, वो भी बोल दे… अगर हिसाब बराबर
करना है तो साथ चल कर दूकान बता दे, मैं खुद
खरीद लूँगा !”
“ठीक है, पर पहले पूजा !”
मैंने कहा- ठीक है।
फिर प्रसाद खरीद के ले आया और दोनों साथ साथ
पूजा कर के प्रसाद चढ़ाया और फिर दोनों बाहर
आ गए। फिर दोनों साथ साथ चल दिए, आगे
ही महाराजा मॉल था, निशा मुझे रैंगलर के शोरूम
में ले गई और एक ब्लैक टीशर्ट पसंद करके मेरी तरफ
देख रही थी।
मैंने कहा- क्या हुआ? यह शौपिंग करने मैं तुम्हारे
साथ ही आया हूँ तो जो तुम्हारी पसंद
वो फाइनल !
यह कह कर भुगतान किया और वो टीशर्ट पहन के
बाहर आ गया।
फिर उसने पूछा- अब कहाँ जाना है?
उससे दूर होने की कल्पना भी मुझे जैसे खाए
जा रही थी, दिल फिर से धड़कने लगा, मैंने कहा-
कल मेरा इम्तिहान है।
“ओ तो अब किसी होटल में रुकोगे न?”
“हाँ…!” मैं नहीं जानता क्यों मेरे मुँह से
जबरदस्ती से शब्द कहाँ से निकल गया।
तभी एक और आघात हुआ.. मेरे अंकल का फ़ोन
उसी वक़्त आ गया।
अंकल- कहाँ हो? मैं मंदिर के सामने हूँ।
तभी मैंने निशा को कहा- घर से फ़ोन है !
और थोड़ी दूर जाकर बात करने लगा। मैंने अंकल से
कहा- मैं अपने दोस्त के साथ उसके फ्लैट पर आ
गया हूँ, कल उसका भी एग्जाम है
तो तैयारी अच्छी हो जाएगी।
अंकल- ठीक है, तो पहले बता देते ! मैं कल
तुम्हारा घर पर इंतज़ार करूँगा।
अब मैंने राहत की सांस ली। निशा के पास गया और
पूछा- यहाँ एवरेज होटल कहाँ पे मिलेगा?
निशा मुस्कुराते हुए मेरे तरफ देख के बोली- एक
मासूम बच्ची से होटल का पता पूछ रहे हो?
वो तो तुम्हें पता होगा… चालीस लड़कियों के
इकलौते बॉयफ्रेंड !!
“हाँ जी, वैसे मेरी गर्लफ्रेंड्स को मुझे शहर से बाहर
ले जाने की जरूरत नहीं पड़ी है आज तक ! आप इस
शहर की हो तो बस पूछ लिया !”
“यहीं बगल में होटल वाली गली है, वहीं जाकर पूछ
लो, जो सही लगे उसमें रह लेना !”
मैंने कहा- ठीक है, पर कम से कम वहाँ दरवाज़े तक
तो चल सकती हो !
अब मुझे सच में उसके दूर जाने का डर सता रहा था।
तभी उसने कहा- ठीक है। पर रूम मिलते ही तुम
अपने रास्ते, मैं अपने !
मैंने कहा- ठीक है।
फिर हम दोनों चल दिए, वो होटल
वाली गली पास ही थी, काफी भीड़ और अनजान
निगाहें हमें घूरे जा रही थी। शाम का वक़्त
हो गया था और अँधेरा छाने को बेताब
हो रहा था।
तभी एक होटल के बाहर मैं रुक गया, रिसेप्शन देख
कर ठीक-ठाक लग रहा था, नाम था उस होटल
का होटल सुप्रभा !
निशा ने कहा- ठीक लग रहा है।
मैं रिसेप्शन पर गया और पूछा रूम के के बारे में !
उसने कहा- सिर्फ डबल बेड का आप्शन है, चार्ज
छः सौ रुपए, 24 घंटे के लिए।
तभी निशा अन्दर आई पूछने लगी- रूम देख
लिया क्या? कहीं खटमल तो नहीं है रूम में !
मैनेजर ने मुझसे पूछा- यह साथ है क्या?
मैंने उसे रोकते हुए कहा- नहीं यार, बस मेरी टूर
गाइड है, यही यहाँ तक लाई है, इसका कमीशन
इसको दे देना।
निशा ने तभी एक जोरदार मुक्का मारा मेरे पीठ
पर !
पलट कर तुरंत मैंने सॉरी कहा और उससे मजाक में
कहा- चलो न जानू, रूम देखते हैं !
वो भी पूरे स्टाइल में मेरा हाथ पकड़ कर बोली-
हाँ जान !
तभी एक वेटर आया और कमरे की चाभी लेकर कहा-
चलिए सर, रूम देख लीजिये।
मैंने निशा को उसके साथ भेज दिया और नीचे
डिटेल्स भरने लगा।
तभी मैनेजर ने पूछा- पर्सनल है क्या सर?
मैंने कहा- नहीं यार, सिर्फ आज के लिए
मेरी पर्सनल है ! नहीं तो यह सिर्फ मिनिस्टर
लोग के साथ ही मिलती है, हमारी कहाँ औकात !
हजारों कहानियाँ हैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर !
मैनेजर- कितने में बुक किया है सर?
मैंने पूछा- तुझे क्या लगता है?
उसने जवाब दिया- बीस हजार से कम में
तो पॉसिबल ही नहीं है।
मैंने कहा- अरे यार वही तो ! सारे पैसे उसी में लग
गए, बस यह 500 का नोट बचा है।
मैनेजर- आप पैसों की क्यों चिंता करते हो, 500
ही दो और मैं अपनी तरफ से बीयर, कोल्ड ड्रिंक्स
और तंदूरी भिजवा दूंगा। बस हमारे लिए भी कोई
5000 के आस पास वाली बढ़िया माल
दिलवा दीजियेगा।
मैंने कहा- यह कोई बोलने की बात है, कल रात में
आपका जो भी खर्चा होगा वो और 5000
वाली बेस्ट आइटम मेरे तरफ से ! समझ
लेना कि मेरी दोस्ती का तोहफा है।
मैनेजर कुछ बोलने
ही जा रहा था कि निशा वापिस आ गई..
निशा- रूम ठीक है !
तभी फिर से मजाक में मैं उसका हाथ पकड़ते हुए
कहा- तो रूम में चले जान !
वो भी इसे मजाक समझ मेरा हाथ पकड़ चलने लगी।
लिफ्ट के पास पहुँच कर बोली- तो अब मैं चलती हूँ।
क्यों वो बार बार ये शब्द
दोहरा रही थी पता नहीं ! मैंने कहा- मुसाफिर
को मंजिल तक छोड़ते हैं, बीच रास्ते में नहीं !
वो मेरे साथ लिफ्ट में आ गई, रूम नंबर 405
था मेरा, काफी बड़ा रूम था,
बालकनी भी थी उसमें।
वो मेरे साथ अन्दर आई, वेटर पानी रख कर चल
गया। तभी जोर से बिजली कड़की, वो तुरंत
बालकनी में गई, जोर की बारिश शुरू हो गई थी।
अब मेरी जान में जान आई।
तभी निशा को छेड़ते हुए मैंने कहा- जान, यह
तो फ़िल्मी सीन चल रहा है, तुम मेरे पास
अकेली इस होटल में, बारिश का मौसम और
मेरी जवानी कहीं बहक न जाए।
निशा ने कहा – बचा के रखो अपनी जवानी चालीस
गर्लफ्रेंड के लिए ! मेरा आलरेडी बॉयफ्रेंड है।
तभी मैंने कहा- बॉयफ्रेंड तो बहुत होंगे पर
सच्चा प्यार तो तुम्हारे आँखों के सामने है। कुदरत
के इशारों को भी तुम समझ नहीं पा रही हो,
क्यों वो बार बार तुम्हें मेरे करीब ला रहा है, तुम
चाह कर भी क्यों मुझसे दूर नहीं जा पा रही हो।
मैंने फिर अपने घुटनों पर बैठ कर उसका हाथ अपने
हाथों में ले लिया, कहने लगा या कहो कि बहुत
बुरी आवाज़ में गाने लगा…-
चाँद भी देखा, फ़ूल भी देखा, धरती अम्बर सागर
शबनम कोई नहीं है ऐसा तेरा प्यार है जैसा..
मेरी आँखों ने चुना है तुझको दुनिया देख कर !
मैं बस मजाक ही समझ रहा था, तभी एक
बिजली सी लहर दौड़ गई मेरे पूरे शरीर में…
वो मुझसे लिपटी हुई थी और रो रही थी।
मुझे आज तक समझ नहीं आया है, जब जब मैं मजाक
करता हूँ तो लड़कियाँ सीरियस हो जाती है और
जब भी मैं सीरियस होता हूँ तो उसे मजाक समझ
लेती हैं।
उसका रोता हुआ चेहरा मैं आज तक नहीं भूल
पाया हूँ, मेरे होंठ उसके होंठों से मिल गए, शायद
नदियों को भी सागर से मिल कर
इतनी तृप्ति नहीं मिलती होगी जैसी मुझे
मिली थी।
मैं तो बस भूल जाना चाहता था सब कुछ,
खो जाना चाहता था उसके आगोश में ! अपने
होंठों के एक एक हिस्से में समेट
लेना चाहता था उसकी यादें !
दस मिनट तक बस हमारे होंठ मिले रहे, उसके आँसू
अब रूक चुके थे, मैंने हल्के से उसे अपने गोद में
उठाया और बेड पर लिटा दिया।
लाइट ऑफ करके दरवाज़ा लॉक कर दिया।
बालकनी का दरवाज़ा अब भी खुला था, उससे आने
वाली ठंडी हवाएँ जिस्म की आग को और
भड़का रही थी।
मैं निशा के ऊपर लेट गया वो चुप ही रही।
फिर से हमारे होंठ मिल गए पर इस बार चुम्बन में
वासना हावी थी। मेरे होंठ फिर उसके होंठ से हट
के उसके गालों की गोलाइयों से खेल रहे थे। धीरे
धीरे होंठों ने कानों और गर्दन
को निशाना बनाया।
प्रथम बार मैंने उसकी आवाज़ सुनी,
उसकी सिसकारियाँ जैसे कानों में मधुर संगीत
सी लग रही थी, धीरे धीरे मेरे हाथ उसके कमीज के
अन्दर दाखिल हो रहे थे। मैं पलट कर पीछे से
उसकी गर्दन पर चूमने लगा।
अब मेरे हाथ उसकी नाभि पर थे। इतनी आग मैंने
पहली बार महसूस की थी, मेरा हाथ
मानो जला जा रहा था। अब धीरे धीरे मेरा हाथ
ऊपर जाने लगा, मेरे हाथों में वो दो रत्न थे जिसे
देख कामदेव को भी इर्ष्या हो रही होगी।
मैं आवेश में उसके स्तनों को इतनी जोर जोर से
दबा रहा था कि निशा ने पहली बार मुझे रोक के
कहा- जान, धीरे से !
अपने हाथों को वही रख अब मैं नीचे आ गया और
अपने होंठों से उसकी कमीज उठाने लगा।
धीरे धीरे पूरी पीठ को चूमते हुए मैं ब्रा के हुक तक
पहुँचा। अब अपने हाथों को पीछे ला आराम से उसके
उरोजों को सारे बन्धनों से आज़ाद कर दिया। अब
वो मेरे सामने बिना किसी ऊपरी वस्त्र के थी।
तभी ठंडी हवा का एक झोंका आया और वो मुझसे
लिपट गई। उसके हाथ अब मेरे टीशर्ट को मेरे
शरीर से दूर कर रहे थे।
जैसे जैसे टीशर्ट ऊपर होता जाता, वैसे वैसे
दोनों जिस्मों के बीच की दीवार हटती जाती।
अब वो खेल रही थी मेरे जिस्म से, पहले होंठों से और
फिर अपने घने लम्बे गेसुओं से ! जैसे जैसे
वो अपना दायरा बढ़ाती जाती, वैसे वैसे मेरे बदन
की आग बढ़ती जाती। उसके हाथ मेरे छाती के
बालों में फंसे थेम उसके होंठ मेरे निप्पल से खेल रहे
थे।
मुझसे रहा न गयाम उसे खींच कर अपने नीचे ले
आया और उसके अमृत कलश का पान करने लगा, उन
उरोजों को इस तरह दबा रहा थाम काट रहा था,
मानो मैं सच में अमर हो जाऊंगा इन अमृत कलश
को पीकर !
अब मैं नीचे स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गया लेकिन
उसकी नाभि ने रास्ता रोक लिया। अब तो जैसे
नीचे जाने का मन ही नहीं कर रहा था।
तभी निशा ने कमर को ढीला कर मुझे स्वर्ग
का रास्ता दिखाया.. पर मैं इतनी जल्दी स्वर्ग
को बेताब नहीं था। उसे पलट कर धीरे धीरे वस्त्र
उतारने लगा. सामने जो नज़ारा था उसे देख कर मैं
उसमें समाने के बाद के आनन्द के बारे में सोचने लगा।
अपनी मुठ्ठियों में दोनों गोले को भर के जैसे ही मैंने
थोड़ा ऊपर किया, मुझे स्वर्ग के द्वार दिख गए।
अब खुद को रोक पाना मुश्किल था उन
गोलाइयों पे दांत गड़ाते हुए उसे पलट के उसके
फूलों को सामने कर दिया मैंने ! अब तो बस रसपान
को ही देर थी।
मेरे होंठ स्वतः आगे बढ़ गए रसपान के लिए। अब
वो लड़की जो थोड़ी देर पहले प्यार
की मूर्ति थी अब काम देवी के रूप में मेरे सामने
थी। एक हाथ उसके मेरे सर के बालों में था और एक
हाथ से अपने स्तनों को नियंत्रित कर रही थी।
फिर थोड़ी देर बाद मैं ऊपर आ के फिर से उसके
होंठों को चूमने लगा स्तनों को दबाने लगा।
वो लगभग मुझे झटकते हुए उठी और मेरे शरीर से नीचे
मुझे नंगा कर दिया। अब मुझे पलट के मेरे पृष्ठ भाग
पर चुम्बनों की बरसात सी कर दी,
चूमती सहलाती हुई वो मेरे कूल्हों पर पहुंची, अब
उसकी जीभ अपना जादू वहाँ चलाने लगी। फिर मुझे
पलट कर मेरे लिंग को अपनी उंगलियों के आगोश में
भर लिया उसने ! उसकी जिव्हा ऐसे चल
रही थी मानो कोई सैनिक युद्ध में सामने वाले
को मारने के लिए अपनी तलवार चला रहा हो।
आखिर मैं कब तक सह सकता ऐसा वार, मैं
भी धराशायी हो गया। फिर उसने मेरे सारे रस
को निचोड़ लिया और सब पी गई।
थोड़ी देर हम ऐसे ही लेटे रहे फिर अचानक दरवाजे
की घंटी बजी।
जब कुछ न सूझा तो उसने मेरा टीशर्ट पहन
लिया और अपना लोअर !
मैंने बस तौलिया लपेट कर दरवाजा खोला। सामने
मैनेजर था हाथ में पैकेट लिए, मुस्कुराते हुए उसने
वो पैकेट मुझे दिया और वापिस चला गया।
निशा ने पूछा- यह क्या है?
मैंने पैकेट खोल कर सामने रख दिया। बीयर
की दो बोतल और तंदूरी चिकन था उसमें।
वो मुझे चिकोटी काटती हुई बोली- एग्जाम देने
आये हो न? यहाँ तो शराब, शवाब और कवाब
तीनों चल रहे हैं।
मैंने उसकी बात काटते हुए उससे पूछा- तुम
क्या करती हो?
“यह ना ही पूछो मुझसे !:
फिर मजाक में बात टालते हुए मुझसे कहा-
अभी अभी तो मिले हो और अभी ही सारी बात
बता दूँ तुम्हें…?” और फिर वो चुप हो गई। यह
चुप्पी पता नहीं क्यों मुझे खाए जा रही थी। फिर
मैंने भी बात टालते हुए एक बीयर की बोतल
उसकी तरफ बढ़ा दी। फिर हम बीयर पीने और
चिकन खाने लगे। मैंने भी अपने सेल फ़ोन में जगजीत
सिंह की ग़ज़ल लगा दी..
गज़ल भी क्या खूब थी-
कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे, तूने आँखों से
कोई बात कही हो जैसे..
सब खा पी कर जब मैं पैकेट साइड करने
उठा तो मेरा तौलिया खुल गया और निशा हंसने
लगी।
फिर क्या था, उसके पास गया और फिर से उसे
नंगा कर दिया. अब तो हवस पूरी तरह से प्यार
पर हावी हो चुकी थी। मैं चाह कर भी खुद
को रोक नहीं पा रहा था, पर रुकना भी किसे था,
उसे अपने आगोश में भर लिया मैंने, वो भी मेरे लिंग के
साथ खेल कर उसे भड़का रही थी।
अब तो मैं कुछ ज्यादा ही वाइल्ड हो गया था, उसे
नोच रहा था, चूस रहा था, उसे बस खुद में शामिल
कर लेना चाहता था। फिर मैं उसकी टांगों के बीच
में आ गया, अपने लिंग के सिर को उसके फूलों से स्पर्श
कराया। जैसे जैसे वो गहराई में
उतरता जा रहा था वैसे वैसे एक कंपकंपी के साथ
निशा खुद को खोती जा रही थी।
प्यार का यह पल हर मर्द
किसी को अपना बना कर बिताता है… पर यहाँ मैं
उसके एक एक इंच में अपना प्यार भर उसे
अपना बनाने की कोशिश कर रहा था, डूब
चुका था मैं, खो चुका था मैं उसके प्यार में ! बस अब
किसी भी तरह उसे अपना बनाने की चाहत
थी मुझमें !
फिर मैंने आसन बदला और धक्कों की बरसात कर
दी। घोड़ी वाले आसन में वाकई बहुत मज़ा आ
रहा था लेकिन मैं अभी नहीं छूटना चाहता था, मैं
तो उसकी आँखों में देखता हुए, उसके होंठों को पीते
हुए अपने प्यार से उसे निहाल कर
देना चाहता था तो मैंने फिर से आसन बदल उसके
होंठों को छूता हुए उसकी आँखों में देखते हुए अपने
प्यार को उससे मिला दिया..
थोड़ी देर हम यूँ ही लेटे रहे।
फिर वो फ्रेश होकर आई और अपने कपड़े पहन कर
तैयार हो गई। मैं तो उसे कभी जाने
देना चाहता ही नहीं था, उसका हाथ पकड़ मैंने उसे
अपने बाहों में भर लिया, उसकी आँखों में देखते हुए
उसे कहा- मैं अपनी बाकी जिंदगी तुम्हारे साथ
बिताना चाहता हूँ !
उसकी आँखों में आंसू थे, उसने कहा- मैं तुम्हारे लायक
नहीं हूँ.. और मुझे झटक कर दरवाज़ा खोलने लगी। मैं
उसे पकड़ने लगा तो उसने मुझे एक थप्पड़
लगा दिया और कहने लगी- मैं तुम्हारी जिंदगी के
साथ नहीं खेल सकती !
यह कहते हुए वो बाहर निकली और बाहर से
दरवाज़ा लॉक कर दिया। मैं अभी तक सदमे में
ही था कि अचानक एक वेटर ने आकर
दरवाज़ा खोला और उसके हाथ में एक चिट्ठी थी।
उसमें लिखा था- तुम्हारे हर एहसास को खुद में समेटे
जा रही हूँ और इस मिलन की याद के लिए
तुम्हारा वो सफ़ेद टीशर्ट भी लिए जा रही हूँ… मैं
वही हूँ जिसकी बात तुम मैनेजर से कर रहे थे।
उस रात को मैं सो नहीं पाया था।
आज तीन साल हो गए हैं, बहुत लड़कियों के साथ
जाकर मैंने सोचा कि मैं उसे भूल जाऊँगा पर
ऐसा नहीं हो पाया।
मेरे प्यार की तलाश अभी भी ज़ारी है…
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