daru aur chut - दारु और चूत कभी भी झूठी नहीं होती

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sexy
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daru aur chut - दारु और चूत कभी भी झूठी नहीं होती

Unread post by sexy » 29 Sep 2016 09:56

दोस्तों मै मस्ताराम का एक पाठक हु खाली टाइम में ऑफिस में बैठ कर कहानिया लिखता रहता हूँ वैसे आज एक मजेदार बात बता रहा हूँ | मेरा यह मानना है कि दारु और चूत कभी भी झूठी नहीं होती – जब भी मौका मिले, इनसे मजे लेने चाहिए। चूत खूब चोदिये मगर गांड मारना न भूलें। और जब गांड मारें तो अपना रायता उसी के अन्दर छोड़ दें ताकि उस लौंडियाँ की गांड में एक गर्म एहसास रह जाए।
मैं चादपुर का रहने वाला हूँ। मेरे घर के पास एक परिवार है बेटा जिसका नाम विशु है, मेरा बहुत अच्छा दोस्त है – और छोटी बेटी जिसका नाम कव्या है – उसके तो क्या कहने। मुझसे सिर्फ दो साल छोटी है।
मैं विशु के घर बहुत जाता था। विशु से मिलने और फिर कव्या को छूने। विशु और मैं एक ही क्लास में पढ़ते थे। हम दोनों पढ़ाई भी साथ करते थे और लौंडिया-बाज़ी भी साथ ही करते थे। उसको शायद लगता था कि मैं उसकी बहन के चक्कर में उसके घर आता-जाता हूँ। एक दो बार उसने मुझे कव्या को हसरत भरी नज़रों से देखते हुए पकड़ा भी था। एक दिन उसने मुझसे कहा भी था कि मैं अपनी औकात में रहूँ। हर भाई अपनी बहन को शायद इसी तरह सुरक्षित रखना चाहता है।
अब विशु के चाहने से भला क्या होगा। कव्या को मेरा उसे छूना शायद अच्छा लगता था तभी वो मेरे करीब आकर बैठती थी।
उस वक़्त मैं बीस साल का था और कव्या अट्ठारह साल की थी। कव्या एक पंजाबी परिवार से थी। काफी गोरी-चिट्टी और हर जगह से उसका बदन फूट फूट के उभार मार रहा था। बहुत ही चिकनी थी वो। उसकी बाहों पर या टांगों पर बिल्कुल भी बाल नहीं थे। हाँ – बहुत पास से उनमे रोम ज़रूर दीखते थे। मेरी बस एक ही तमन्ना थी कि गुलाब जामुन का शीरा उसके नंगे जिस्म पर डालूँ और ऊपर से नीचे तक उसे चाटूं। यह सोचकर ही मेरा खड़ा होने लगता था और मैं मुठ मारता था। मैं एक मौके की ताक में था कि कब हम अकेले मिलें।
पंजाबियों की दाद देनी पड़ेगी- क्या खाकर ये लोग इतनी सुन्दर और मस्त लौंडियाँ पैदा करते हैं। साला देखते ही लंड खड़ा होने लग जाता है। खैर, रब ने एक दिन मेरी सुन ली।
कव्या मेरे घर आई थी। उसने मेरी माँ से थोड़ी देर बातचीत की और जाने लगी। मैं उसको दरवाजे तक छोड़ने आया और उसको जोर से अपने गले लगा लिया। यह पहली बार था कि मैं उससे लिपट रहा था।

मेरा यह मानना है कि दारु और चूत कभी भी झूटी नहीं होती – जब भी मौका मिले, इनसे मजे लेने चाहिए। चूत खूब चोदिये मगर गांड मारना न भूलें। और जब गांड मारें तो अपना रायता उसी के अन्दर छोड़ दें ताकि उस लौंडियाँ की गांड में एक गर्म एहसास रह जाए।
मैं चादपुर का रहने वाला हूँ। मेरे घर के पास एक परिवार है बेटा जिसका नाम विशु है, मेरा बहुत अच्छा दोस्त है – और छोटी बेटी जिसका नाम कव्या है – उसके तो क्या कहने। मुझसे सिर्फ दो साल छोटी है।
मैं विशु के घर बहुत जाता था। विशु से मिलने और फिर कव्या को छूने। विशु और मैं एक ही क्लास में पढ़ते थे। हम दोनों पढ़ाई भी साथ करते थे और लौंडिया-बाज़ी भी साथ ही करते थे। उसको शायद लगता था कि मैं उसकी बहन के चक्कर में उसके घर आता-जाता हूँ। एक दो बार उसने मुझे कव्या को हसरत भरी नज़रों से देखते हुए पकड़ा भी था। एक दिन उसने मुझसे कहा भी था कि मैं अपनी औकात में रहूँ। हर भाई अपनी बहन को शायद इसी तरह सुरक्षित रखना चाहता है।
अब विशु के चाहने से भला क्या होगा। कव्या को मेरा उसे छूना शायद अच्छा लगता था तभी वो मेरे करीब आकर बैठती थी।
उस वक़्त मैं बीस साल का था और कव्या अट्ठारह साल की थी। कव्या एक पंजाबी परिवार से थी। काफी गोरी-चिट्टी और हर जगह से उसका बदन फूट फूट के उभार मार रहा था। बहुत ही चिकनी थी वो। उसकी बाहों पर या टांगों पर बिल्कुल भी बाल नहीं थे। हाँ – बहुत पास से उनमे रोम ज़रूर दीखते थे। मेरी बस एक ही तमन्ना थी कि गुलाब जामुन का शीरा उसके नंगे जिस्म पर डालूँ और ऊपर से नीचे तक उसे चाटूं। यह सोचकर ही मेरा खड़ा होने लगता था और मैं मुठ मारता था। मैं एक मौके की ताक में था कि कब हम अकेले मिलें।
पंजाबियों की दाद देनी पड़ेगी- क्या खाकर ये लोग इतनी सुन्दर और मस्त लौंडियाँ पैदा करते हैं। साला देखते ही लंड खड़ा होने लग जाता है। खैर, रब ने एक दिन मेरी सुन ली।
कव्या मेरे घर आई थी। उसने मेरी माँ से थोड़ी देर बातचीत की और जाने लगी। मैं उसको दरवाजे तक छोड़ने आया और उसको जोर से अपने गले लगा लिया। यह पहली बार था कि मैं उससे लिपट रहा था।

तो मैंने अपने दूसरे हाथ से उसकी जाँघों का मुआयना किया। क्या सुडौल जांघें थी। धीरे-धीरे मेरा हाथ उसकी चूत पर पहुँचा। शायद उसे भी यही चाहिए था। मैं उसकी चूत पर अपना हाथ फेरता रहा – कभी सहलाता और कभी उसे नोचता था। पायजामे के ऊपर से ही मैं उसकी चूत को रगड़ता रहा। उसके मुँह से सिर्फ ऊह-आह की ही आवाज आ रही थी।

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Re: daru aur chut - दारु और चूत कभी भी झूठी नहीं होती

Unread post by sexy » 29 Sep 2016 09:57

बगल में एक पलंग था। मैं उस पर बैठ गया और धीरे से कव्या को अपनी गोद में बिठा लिया। फिर मैंने उसकी कुर्ती उतार दी। उसकी बगलों से एक परफ्यूम की खुशबू ने तो जैसे मुझे मदहोश ही कर दिया।
मैंने उसकी बगलों को चूमा तो वो उचक गई, क्या करते हो अज्जू?
कहकर वो मुझसे लिपट गई।
मैंने उसके कन्धों को, गर्दन को और गले को खूब चूमा।
कव्या बोली- हे भगवान ! अज्जू क्या कर रहे हो। मैं निचुड़ जाऊंगी।
मैंने उसकी गोरी पीठ पर हाथ फेरा और उसके ब्रा के हुक्स खोल दिए। सामने से ब्रा खींची तो दो संतरे उछालकर बाहर आ गए। मैंने धीरे से उन्हें सहलाया। मैंने दोनों हाथ उन पर रख दिए और उनको मसलने लगा।
कव्या तो जैसे मानो छटपटा रही थी, वह बोलने लगी- ओह गोड ! क्या कर रहे हो अज्जू ! और करो ! बहुत मज़ा आ रहा है !
अब मैंने बारी बारी से उसके संतरों को खूब चूसा। क्या मम्मे थे। एक को दबाता तो दूसरे को चूसता। गोरी चिट्टी कव्या मेरे ऊपर अधनंगी बैठी थी। एक सपना जैसा था। मैं मन ही मन बोला- देख विशु ! तेरी जिज्जी कैसे मेरे ऊपर नंगी बैठी है।
अब मैंने उसे खड़ा किया और धेरे से उसका पायजामा उतारा। क्या जांघें थीं। क्या टांगें थीं। बस देखते ही बनती थीं। कव्या की टांगों पर मैंने हाथ फेरना शुरू किया। दोनों हाथ मानो किसी चिकनी मिटटी पर फिर रहे हों। अब उसके और मेरे बीच में उसकी यह काली चड्डी थी।

दोस्तो, एक बात कहूँगा- गोरी लड़कियों पर काली चड्डी और काली ब्रा बहुत ही सेक्सी लगती है।
उसकी चड्डी उतारी और मैंने उसकी वो चूत देखी जिसका मैं बरसों से इंतज़ार कर रहा था। उसकी टांगें चौड़ी की और उसकी झांटों में मैं अपनी ऊँगली फिराने लगा।
कव्या के पांव कंपकंपाने लगे ! वो सीधे बिस्तर पर लेट गई। मैंने उसकी टाँगें चाटना शुरू की। घुटने चाटते हुए मैं उसकी जाँघों पर पंहुचा। फिर मैंने अपना मुँह उसकी चूत पर गाड़ दिया।
मम्मीईऽऽऽऽ ईईई !!! कहती हुई वह कराह गई।
एक बात तो है- चुदाई से पहले किसी भी लौंडिया को मस्त करना बहुत ही ज़रूरी होता है। खैनी को जितना रगड़ोगे उतना ही मज़ा आएगा। लेकिन इन सब में थोड़ा धैर्य रखना बहुत ज़रूरी होता है।
मैंने अपनी जीभ उसकी अनचुदी बुर में डाल दी। क्या चूत थी उसकी। ऐसा लग रहा था कि बटरस्कॉच सॉस चाट रहा हूँ।
कव्या तो बस उछलती रही- बस करो ! बस करो ! की रट लगा रही थी।
लेकिन साब, मैं कहाँ रुकने वाला था। उसको निचोड़कर कर ही उठना था मैंने।
अब यह अंदाजा लगाइए कि दृश्य कैसा रहा होगा- नंगी कव्या की चूत पर मेरा मुँह और मेरे दोनों हाथ उसके मम्मे दबाते हुए।
अबे विशु ! देख तेरी बहन चुद रही है। कर ले जो भी तुझे करना है। बस एक बार यह सीन देख ले मेरे यार !
थोड़ी देर तक उसकी चूत को मैंने और चूसा फिर उसकी चूत से उसका पानी निकला- मर गई मैं ! अज्जू, क्या कर दिया तूने ? बजायेगा नहीं क्या?
मैं एक सांप की तरह उसके पेट को, मम्मों को चूमता उसके चेहरे के सामने आया- कव्या , कैसा लगा?
कव्या ने मुझे जोरकर भींचा और कहा- अज्जू, मुझे बहुत अच्छा लगा ! खूब मज़ा आया !
मैंने उसका हाथ अपने लंड पर रखा और कहा- कव्या यह तुम्हारा है ! इससे खूब खेलो।
कव्या ने मेरी पैंट उतारी। इस बीच मैंने अपनी टी-शर्ट खुद ही उतार दी। मेरी चड्डी तो जैसे तम्बू हो। उसने प्यार से मेरी चड्डी नीचे की और मेरा लंड देखकर काँप गई- यह तो इतना बड़ा है ! कैसे जाएगा मेरे अन्दर?
मुझे हंसी आ गई।
उसने मेरी चड्डी पूरी तरह से उतार दी। इतने में मैंने सामने एक आईने में हम दोनों को देखा। मेरा काला सा बदन उसके गोरे चिट्टे जिस्म के सामने क्या लग रहा था।
मैंने कहा- कव्या , इसे प्यार से पकड़ो और चूसो।
गोरी गोरी पतली पतली उँगलियों के बीच मेरा काला-मोटा लंड बहुत अच्छा लग रहा था।
कव्या मेरे सामने नीचे अपने घुटनों पर बैठ गई। कव्या के मेरा लंड पकड़ते ही मेरे शरीर में 25000 वोल्ट का कर्रेंट दौड़ गया। उसने मेरे लंड को खूब आगे पीछे किया और फिर उसकी टोप को चूमा। गुलाबी होटों का स्पर्श पाकर मेरा लंड और बड़ा हो गया।
मैंने आव न देखा ताव ! उसका सर पकड़कर एक ऐसा झटका दिया कि मेरा लंड उसके मुँह के अन्दर चला गया। इस झटके से वो थोड़ा घबराई। लंड सीधा उसके गले पर टकराया जिससे उसकी सांस अटक गई।
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा और बोला- चूस कव्या चूस ! मज़ा ले और मज़ा दे।
वो भी मेरे लंड का शायद मज़ा लेने लग गई। उसने मेरे दोनों चूतड़ पकड़े और सिर्फ अपना मुँह मेरे लंड पर अन्दर-बाहर करने लगी। अब उसने मुझे धीरे-धीरे मेरे बदन पर हाथ फेरना शुरू किया। मुझे गुदगुदी होने लगी। इतनी देर से मेरा लंड खड़ा रहने के कारण फटने पर आमादा हो गया। मैंने कहा- कव्या , मैं फटने वाला हूँ।
कव्या को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं था। मेरा लंड वो कुल्फी की तरह चूस रही थी।
मैं मन ही मन बोला – विशु देख अपने बहन को। क्या चूस रही है तेरे दोस्त के लंड को। उखाड़ ले मेरा जो उखाड़ सकता है।
काश कि विशु मेरे सामने होता।
हाँ, उसकी तस्वीर ज़रूर एक दीवार पर लगी हुई थी। मैंने उस तस्वीर को देखा और कहा- मुँह में डाल दूँ?

इतने में मैंने एक आह निकाली और मेरा पूरा माल मेरे लंड से निकलने लगा।
कव्या ने थोड़ा पिया और बाकी बाहर निकालकर लंड देखने लगी कि कैसे पिचकारी की तरह लंड से माल निकलता है। उसने मेरी मुट्ठ मारी और मेरा पूरा माल निकाल दिया। मेरा लंड अब धीरे धीरे सामान्य होने लगा। उसने मेरे टोप के ऊपर अपनी जीभ फिराई। मैं हिल गया। और फिराई और फिर उसने मेरा लंड फिर से अपने मुँह में ले लिया। मैंने उसे किसी तरह अलग किया और उसके साथ बिस्तर पर लेट गया।
मैं सोचता रहा- क्या यह सपना तो नहीं? कव्या मेरे बगल में क्या वाकई में नंगी लेटी है?
मैंने उसकी झांटों पर ऊँगली फिराई, वो थोड़ी कसमसाई और बोली- क्या करते हो? थोड़ा रुक जाओ !
दोस्तो, एक बात तो है, थोड़ा रुकने में अपना कुछ नहीं जाता है। लौंडिया को पहले खूब तड़पाओ और फिर उसे जी भर के चोदो। खूब उछल-उछल के चुदेगी।
मैं उसकी चूत पर हाथ फेरता रहा और मन ही मन बोला- विशु भाई ! देख तेरी बहन कैसे मेरे बगल में नंगी लेटी है, अभी उसने मेरा लंड चूसा, मैंने खूब उसकी चूत चाटी और अब थोड़ी ही देर में मेरा लंड उसकी बुर में होगा। क्या कहता है..। पेल दूँ इसकी चूत में अपना मूसल?
मैंने कव्या का हाथ अपने हाथों में लिया और धीरे से उसका हाथ अपने सोये हुए लंड पर रख दिया। मेरा लंड थोड़ा सा कांपा और फिर उसके हाथ का स्पर्श पाकर उठने की कोशिश में लग गया। कव्या धीरे धीरे मेरे लंड को सहलाने लगी। थोड़ी सी देर में ही मेरा लंड एक मीनार की तरह खड़ा हो गया- कभी कभी तो उसे देखते हुए ही डर लगता है- काला रंग और नौ इंच लम्बा और काफी चौड़ा ! उफ़ !
कव्या की थोड़ी फट रही थी, उसने पूछा- अज्जू, ये मेरी फाड़ देगा क्या? मैं तो मर ही जाऊंगी ! तुम बस थोड़ा सा ही डालना।
मुझे हंसी आ गई। में बोला- कव्या मेरी जान, एक बार घुस गया तो बस तुम उसे छोड़ोगी नहीं ! और घुसाओ कहती रहोगी।

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Re: daru aur chut - दारु और चूत कभी भी झूठी नहीं होती

Unread post by sexy » 29 Sep 2016 09:58

मैंने उसकी ओर करवट ली और उसकी चूत में अपनी मध्यमिका (बीच की ऊँगली) डाल दी। धीरे से अन्दर डाली और फिर में उसे अन्दर-बाहर करने लगा। उसकी शायद झिल्ली फट गई थी इसलिए थोड़ा खून आने लगा। मैं उसकी परवाह न करते हुए उसकी चूत को अपनी ऊँगली से चोदता रहा। कव्या बस चीखती रही- अज्जू- अज्जू- अज्जू- उई मम्मी मम्मी।
मैंने उसका एक मम्मा अपने मुँह में लिया और लगातार ऊँगली करता रहा। एक बात तो है। आप जब भी ऊँगली करें, लौंडिया को ज़रूर देखें- उसके चेहरे के भाव से आपको और मज़ा आएगा। मैं पूरी गति से उसकी चूत में ऊँगली करता रहा।
शायद वो झड़ने वाली थी, उसने कहा- अज्जू, मेरे अन्दर कुछ हो रहा है ! रुको, क्या हो रहा है?
मैंने कहा- कव्या डार्लिंग ! तुम निचुड़ रही हो।
एक लम्बी चीख मारी उसने और निढाल हो गई- अब बस करो, अब बस करो ! कहकर वो पेट के बल होकर लस्त पड़ गई।

पहली बार मैंने उसकी पीठ निहारी। सुन्दर, सुडौल दूध की तरह। उसके दोनों बाहें तकिये के इर्द-गिर्द थीं। और मुँह एक तरफ था। मैंने उसके बाल एक तरफ किये और उसके ऊपर जाकर उसके गर्म गर्म गालों को चूमने लगा।
वो बोली- अज्जू तुम बड़े वो हो।
मैंने उसकी बगलें चूमनी शुरू की। उसके पीठ के एक एक हिस्से को अपनी साँसों से नहलाता रहा। और फिर धीरे से कमर तक पहुँचा। उसके दोनों चूतड़ बिल्कुल गोल थे- गोरे गोरे चूतड़ों पर मैंने अपने होंठ रख दिए। फिर एक एक कर उसकी दोनों टांगों को अलग किया और अपने घुटनों के बल उसके टांगों के बीच में बैठ गया। फिर अपनी उँगलियों से धीरे से उसकी जाँघों को सहलाते हुए उसकी चूत को गुदगुदाने लगा।
वो चिंहुक पड़ी- अज्जू, प्लीज़, रुक जाओ न थोड़ा !
लेकिन साब, मेरा लंड रुके तब ना। मैंने सोचा कि थोड़ा रुक ही जाता हूँ। मैंने उसके चूतड़ दबाने शुरू किये। ऐसा लग रहा था मानो आटा गूंध रहा हूँ। कितने मुलायम थे उसके वो दोनों चाँद। मैंने उसको खूब दबाया। जब दोनों को एक साथ दबाया तो उसकी गुलाबी गांड दिख गई। मैंने तो पहले से ही सोच रखा था कि कव्या की गांड ज़रूर मारूंगा। उसको थोड़ा और दबाकर मैं उस पर लेट गया। उसका पूरा बदन अपने बदन से ढक दिया। दोनों हाथों के उँगलियों में अपने हाथ की उंगलियाँ फंसा दी और मेरे लंड उसकी चूत के मुँह पर था।
एक बात तो सही है- पानी और लंड अपना रास्ता खुद-ब-खुद बना लेते हैं।
पता नहीं कैसे- मेरा लंड उसकी चूत के अन्दर चला गया। कव्या बोली- यह तुम्हारा मूसल भी ना ! कितना मोटा है। मुझे ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?
शुरू करें?
और इस पर मैंने एक झटका दिया और मेरा पूरा सुपारा उसकी चूत में चला गया।
वो बोली- अज्जू ! आहिस्ता !
मैंने एक झटका और दिया, लंड को थोड़ी तकलीफ हुई। फिर मैंने कहा- कव्या , चलो तुम्हें कुतिया बनाकर चोदता हूँ।
वो घुटनों के बल बैठी। मैं उसके पीछे अपने घुटनों के बल बैठा, उसके चूतड़ों पर हाथ फेरा और फिर उसकी चूत के मुँह के पास अपना लंड ले गया और एक जोर का झटका दिया। पूरा नौ इंची उसमें समां गया। कव्या ऐसे चीखी कि बस क्या बताएं। मैंने उसकी कमर पकड़कर धका-पेल चोदना शुरू किया।



कव्या सिर्फ- आह आह अज्जू अज्जू हाय रे मैं मर गई। निकालो इसे बहुत मोटा है।
और मैं बस चोदता रहा। बिस्तर के ठीक सामने आईना था। मैंने कहा- कव्या जानू अपने आपको आईने में तो देखो।
कव्या ने देखा और कहा- हम दोनों क्या लग रहे हैं !
वाकई में- आप चोदते हुए कभी आईने में देखोगे तो जोश दूना हो जाएगा।
खैर !
मैंने एक हाथ नीचे डालकर उसका एक मम्मा दबाया। वो और उछली फिर मैंने अपना दूसरा हाथ भी इस्तेमाल किया। उसको धीरे से चोदते हुए मैं घुटने के बल खड़ा हुआ। उसको भी खड़ा किया और उसको पकड़कर उसे ऊपर-नीचे करके चोदने लगा। मैं झटका दे रहा था और दोनों हाथों से उसके मम्मे भी दबा रहा था।
उसके मुँह से जो आहें निकल रही थी- बार बार कह रही थी- अज्जू और करो। उफ़ क्या मज़ा आ रहा है। फाड़ डालो मेरी इस निगोड़ी चूत को। बहुत परेशान करती है। इसको खूब सजा दो- तुम्हारी कव्या को काफी परेशान करती है। और चोदो मुझे। खूब चोदो मेरे राजा। मेरा सारा पानी निकाल दो आज मेरी चूत से अज्जू।
और फिर वो भी ऊपर नीचे करने लगी। मैंने फिर से उसको कुतिया बनाया और पूरे जोर से चोदना शुरू किया। पूरा बिस्तर हिल गया। पूरे कमरे में सिर्फ फच-फच की आवाज़ के साथ कव्या की आहें सुनाई दे रहीं थीं- अज्जू-अज्जू, मम्मी, उई मेरी माँ, थोडा रुको अज्जू मुझे दर्द हो रहा है।
मैंने पूछा- मज़ा आ रहा है या नहीं।
खूब आ रहा है।
इतनी गति से चुदते वक़्त उसके मम्मे एक पैन्डूलम की तरह झूल रहे थे। अगर शरीर से बाहर निकल पाते तो शायद दो किलोमीटर दूर जाकर गिरते। मैंने काफी संभालने की कोशिश की लेकिन यह राजधानी ट्रेन ऐसी दौड़ रही थी कि सिर्फ अपना आखिरी स्टेशन पर ही रुकने वाली थी। मैंने तकरीबन इस तरह उसे आठ मिनट तक चोदा।
शायद वो फिर झड़ने वाली थी, बोली- अज्जू और तेज़ करो और तेज़।
मैंने कहा- ले कव्या और चुद-और चुद रानी। यह चूत तो होती ही चुदने के लिये। और यह लंड भी तुम्हारा है मेरी बिल्लो। और चुद !
ऐसा कहते मैं उसे और स्पीड से चोदने लगा।
कव्या बोली- अज्जू, मुझे फिर वही हो रहा है। और करो।
मैंने कहा- ले मेरी जान ! निचुड़ जा।

अब लगा कि जैसे मैं भी फटने वाला हूँ, मैंने कहा कव्या – मेरा रायता भी निकलने वाला है- कहाँ डालूँ? चूत के अन्दर, पीठ के ऊपर, तुम्हारे चेहरे पर या फिर तुम पीना चाहती हो।
उसने कहा- मुझे नहीं पता, कुछ भी करो। आखिरी मिनट में मैंने अपना लंड निकला और उसकी चूतड़ों की मांग पर रख दिया। लंड का सारा रायता उसकी मांग से बहकर उसकी झांटों पर जाने लगा। मैंने उसकी मांग पर खूब लंड रगड़ा। ऐसा करते हुए मैंने उसकी गुलाबी गांड देखी और मन ने कहा- ऐसी लौंडिया की अगर गांड नहीं मारी तो क्या किया !
कव्या बिस्तर पर गिर चुकी थी और तेज़ साँसे ले रही थी। मैं उसके बगल में लेट गया और उसकी पीठ पर हाथ फेरता रहा।
वो उचकी- छूओ मत मुझे ! बस छोड़ दो ऐसे ही।
मैंने विशु को देखा- देख विशु तेरी जिज्जी की मैंने क्या हालत बना दी। क्या चुदती है यार तेरी बहन। जो भी इसका पति बनेगा साला ऐश करेगा। मुँह में लेती है, कुतिया की तरह चुदती है, अब गांड भी मरवाने वाली है। सुन्दर लौंडियों को चोदने का अलग ही मजा है।
शाम के चार बज रहे थे। यह दो घंटे चुदम-चुदाई में कैसे निकले पता ही नहीं चला। मेरा लंड काफी थक सा गया था। मुझमें भी उठने की क्षमता नहीं थी- सोचा घर चलें।
फिर सोचा कव्या की गांड मार कर चला जाए। फिर उसे सामने से भी तो चोदना था। बड़ी असमंजस में था मैं। यह सोचते हुए ना जाने कैसे मुझे नींद आ गई। थोड़ी देर में मैं एकदम से हड़बड़ाकर उठा। देखा, चारों और सन्नाटा और कव्या अभी भी लस्त थी।
उसकी पीठ पर धीरे से हाथ फेरा। उसके चूतड़ों पर हाथ फेरा। वो ऊंह-ऊंह कर के उठी। अपने आप को देखकर पता चला कि वो मेरे साथ थी। वो भी नंगी। एक बार तो वो शरमाई, फिर हंस पड़ी। अब हंसी तो फँसी। मैं उसकी गोद में लेट गया।

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