desi hot sex story - मस्त राधा रानी
Re: desi hot sex story - मस्त राधा रानी
मम्मी ने मेरी ओर देखा शायद पूछना चाहती थी कि क्या मैं रुकना चाहती हूँ। अगर दिल की बात कहूँ तो मेरा वापिस जाने का मन नहीं था पर मुझे स्कूल भी तो जाना था। बस इसी लिए मैंने मम्मी को बोला,”नहीं मम्मी मुझे स्कूल भी तो जाना हैं, आगे जब छुट्टियाँ होंगी तो रहने आ जाउंगी।”
मामा ने एक भरपूर नज़र मुझे देखा। तभी मम्मी को किसी ने आवाज़ दी और मम्मी उठ कर चली गई। अब मामा के पास सिर्फ मैं रह गई। मैं भी उठकर जाने लगी तो मामा बोले,”राधा रानी, नाराज़ तो नहीं हो अपने मामा से ?”
मेरे से जवाब देते नहीं बन रहा था। पर मेरी गर्दन अपने आप ही ना में हिल गई और जुबान ने भी गर्दन का साथ दिया,”नहीं… नहीं तो मामा जी !” मैंने ‘मामा जी’ शब्द पर थोड़ा ज्यादा जोर दिया था।
“तो रुक जाओ ना !” मामा ने थोड़ा मिन्नत सी करते हुए कहा।
“नहीं मामा, मुझे स्कूल भी जाना होता है और रुकने से पढाई का बहुत हर्ज होगा। मैं बाद में छुट्टियों में आ जाउंगी।”
“चल जैसी तेरी मर्ज़ी, पर अगर रूकती तो मुझे बहुत अच्छा लगता !”
अब हम दोनों रात की बात को लेकर बिलकुल निश्चिन्त थे। ना तो मामा ने और ना ही मैंने रात की बात का जिक्र किया था। पर हम दोनों की ही आँखें रात की मस्ती की खुमारी बाकी थी जो दिल की धड़कन बढ़ा रही थी।
खैर मम्मी और मैं शाम की गाड़ी से वापिस आ गए।
घर पहुँच कर मेरा बिल्कुल भी दिल नहीं लग रहा था। पर फिर जब स्कूल आना जाना शुरू हो गया तो सहेलियों के साथ पढ़ने घूमने और गप्पें मारने में मैं वो बात दिन में तो भूल जाती थी पर रात को अपने बिस्तर पर लेटते ही मुझे मामा की याद फिर से सताने लगती।
कुछ दिन के बाद मामा का फोन आया। संयोग ही था कि उस समय मैं घर पर अकेली ही थी। मम्मी पड़ोस में गई हुई थी और पापा ऑफिस। मामा की आवाज़ सुनते ही मेरी चूत गीली हो गई। मामा पहले तो ठीक बात करते रहे पर जब उन्हें पता चला कि मैं घर पर अकेली हूँ तो मामा ने बात करने का टॉपिक बदल दिया।
“कैसी हो राधा रानी?” राधा बेटी से मामा सीधे राधा रानी पर आ गए।
“ठीक हूँ मामा जी।”
“मामा की याद आती है राधा रानी?”
“आती तो है ! क्यूँ ???”
“मुझे तो बहुत याद आती है तुम्हारी…. मेरी जान !”
“मामा, अपनी भांजी को ‘जान’ कह रहे हो ! इरादे तो नेक हैं ना तुम्हारे ?”
मामा थोड़ा झेंप गया।
“अरी नहीं…. बस उस रात को याद कर कर के दिल में दर्द सा होने लगता है राधा रानी !”
“मामा तुम भी ना !”
“क्या तुम भी ना?”
“मैं नहीं बोलती आप से। आप बहुत बेशर्म हैं।”
“अच्छा ऐसा मैंने क्या किया ?”
मैंने बात का टॉपिक फिर से बदलते हुए पूछा,”शहर कब आओगे मामा ?”
“जब मेरी राधा रानी बुलाएगी तो चले आयेंगे।”
“तो आ जाओ, तुम्हें पूरा शहर घुमा कर लाऊंगी।”
“चल ठीक है, मैं एक दो दिन में आने का कार्यक्रम बनाता हूँ, पर तू अपना वादा मत भूलना, पूरा शहर घुमाना पड़ेगा।”
“ठीक है ….ये लो मम्मी आ गई मम्मी से बात करो।”
मम्मी आ गई थी तो मैंने फोन मम्मी को दिया और बाथरूम में चली गई।
बाथरूम में जाने का एक कारण तो ये था कि मामा से बात करते करते मेरी पेंटी पूरी गीली हो गई थी और चूत भी चुनमुनाने लगी थी। मैं बाथरूम में गई और चूत को सहलाने लगी और तब तक सहलाती रही जब तक उसने पानी नहीं छोड़ दिया।
अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।
अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।
मामा चार दिन के बाद आये। आने से पहले उन्होंने पापा को फोन कर दिया था पर मुझे इस बात का पता नहीं था। मेरे लिए तो यह एक सरप्राइज से कम नहीं था। जैसे ही मैं स्कूल से वापिस आई तो घर में घुसते ही सामने मामा बैठे थे। मैं अवाक सी उन्हें देखती रही। तभी मामा ने आगे आकर मुझे गले से लगा लिया और इसी दौरान मेरे कूल्हे को भी स्कर्ट के ऊपर से ही दबा दिया।
“मामा पहले बताना तो चाहिए था ना !” मैंने ऊपरी मन से नाराज़ होने का नाटक सा किया।
“बस अपनी बेटी से मिलने का दिल किया और और दौड़ते हुए आ गए मिलने के लिए !” मामा ने मुझे आपनी बाहों में अच्छे से जकड़ते हुए कहा।
मामा ने एक भरपूर नज़र मुझे देखा। तभी मम्मी को किसी ने आवाज़ दी और मम्मी उठ कर चली गई। अब मामा के पास सिर्फ मैं रह गई। मैं भी उठकर जाने लगी तो मामा बोले,”राधा रानी, नाराज़ तो नहीं हो अपने मामा से ?”
मेरे से जवाब देते नहीं बन रहा था। पर मेरी गर्दन अपने आप ही ना में हिल गई और जुबान ने भी गर्दन का साथ दिया,”नहीं… नहीं तो मामा जी !” मैंने ‘मामा जी’ शब्द पर थोड़ा ज्यादा जोर दिया था।
“तो रुक जाओ ना !” मामा ने थोड़ा मिन्नत सी करते हुए कहा।
“नहीं मामा, मुझे स्कूल भी जाना होता है और रुकने से पढाई का बहुत हर्ज होगा। मैं बाद में छुट्टियों में आ जाउंगी।”
“चल जैसी तेरी मर्ज़ी, पर अगर रूकती तो मुझे बहुत अच्छा लगता !”
अब हम दोनों रात की बात को लेकर बिलकुल निश्चिन्त थे। ना तो मामा ने और ना ही मैंने रात की बात का जिक्र किया था। पर हम दोनों की ही आँखें रात की मस्ती की खुमारी बाकी थी जो दिल की धड़कन बढ़ा रही थी।
खैर मम्मी और मैं शाम की गाड़ी से वापिस आ गए।
घर पहुँच कर मेरा बिल्कुल भी दिल नहीं लग रहा था। पर फिर जब स्कूल आना जाना शुरू हो गया तो सहेलियों के साथ पढ़ने घूमने और गप्पें मारने में मैं वो बात दिन में तो भूल जाती थी पर रात को अपने बिस्तर पर लेटते ही मुझे मामा की याद फिर से सताने लगती।
कुछ दिन के बाद मामा का फोन आया। संयोग ही था कि उस समय मैं घर पर अकेली ही थी। मम्मी पड़ोस में गई हुई थी और पापा ऑफिस। मामा की आवाज़ सुनते ही मेरी चूत गीली हो गई। मामा पहले तो ठीक बात करते रहे पर जब उन्हें पता चला कि मैं घर पर अकेली हूँ तो मामा ने बात करने का टॉपिक बदल दिया।
“कैसी हो राधा रानी?” राधा बेटी से मामा सीधे राधा रानी पर आ गए।
“ठीक हूँ मामा जी।”
“मामा की याद आती है राधा रानी?”
“आती तो है ! क्यूँ ???”
“मुझे तो बहुत याद आती है तुम्हारी…. मेरी जान !”
“मामा, अपनी भांजी को ‘जान’ कह रहे हो ! इरादे तो नेक हैं ना तुम्हारे ?”
मामा थोड़ा झेंप गया।
“अरी नहीं…. बस उस रात को याद कर कर के दिल में दर्द सा होने लगता है राधा रानी !”
“मामा तुम भी ना !”
“क्या तुम भी ना?”
“मैं नहीं बोलती आप से। आप बहुत बेशर्म हैं।”
“अच्छा ऐसा मैंने क्या किया ?”
मैंने बात का टॉपिक फिर से बदलते हुए पूछा,”शहर कब आओगे मामा ?”
“जब मेरी राधा रानी बुलाएगी तो चले आयेंगे।”
“तो आ जाओ, तुम्हें पूरा शहर घुमा कर लाऊंगी।”
“चल ठीक है, मैं एक दो दिन में आने का कार्यक्रम बनाता हूँ, पर तू अपना वादा मत भूलना, पूरा शहर घुमाना पड़ेगा।”
“ठीक है ….ये लो मम्मी आ गई मम्मी से बात करो।”
मम्मी आ गई थी तो मैंने फोन मम्मी को दिया और बाथरूम में चली गई।
बाथरूम में जाने का एक कारण तो ये था कि मामा से बात करते करते मेरी पेंटी पूरी गीली हो गई थी और चूत भी चुनमुनाने लगी थी। मैं बाथरूम में गई और चूत को सहलाने लगी और तब तक सहलाती रही जब तक उसने पानी नहीं छोड़ दिया।
अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।
अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।
मामा चार दिन के बाद आये। आने से पहले उन्होंने पापा को फोन कर दिया था पर मुझे इस बात का पता नहीं था। मेरे लिए तो यह एक सरप्राइज से कम नहीं था। जैसे ही मैं स्कूल से वापिस आई तो घर में घुसते ही सामने मामा बैठे थे। मैं अवाक सी उन्हें देखती रही। तभी मामा ने आगे आकर मुझे गले से लगा लिया और इसी दौरान मेरे कूल्हे को भी स्कर्ट के ऊपर से ही दबा दिया।
“मामा पहले बताना तो चाहिए था ना !” मैंने ऊपरी मन से नाराज़ होने का नाटक सा किया।
“बस अपनी बेटी से मिलने का दिल किया और और दौड़ते हुए आ गए मिलने के लिए !” मामा ने मुझे आपनी बाहों में अच्छे से जकड़ते हुए कहा।
Re: desi hot sex story - मस्त राधा रानी
मम्मी मामा का और मेरा प्यार देख कर हँस रही थी। उसे अंदर की खिचड़ी का पता थोड़े ही था। मैंने महसूस किया की मामा के स्पर्श मात्र से मेरी चूत गीली हो गई थी। मैं भाग कर बाथरूम में गई और चूत को सहला दिया।
कपड़े बदल कर मैं फिर से मामा के पास आकर बैठ गई। तभी मम्मी को बुलाने पड़ोस की एक औरत आई और मम्मी उससे बात करने के लिए बाहर चली गई। मैं भी उठकर जाने लगी तो मामा ने मेरी बाहँ पकड़ कर अपनी और खींचा तो मैं सीधे मामा की गोद में जाकर गिरी। मुझे अपनी गाण्ड के नीचे कुछ चुभता हुआ सा महसूस हुआ तो मेरा दिमाग एक दम से ठनका कि कहीं यह वही तो नहीं ?? मोटा सा, लंबा सा, मोहित के जैसा। सोचते ही मैं फिर से झनझना गई। वो मुझे बहुत कठोर महसूस हो रहा था। मामा ने मेरा मुँह पकड़ा और मेरे नाजुक होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मस्त हो चूसने लगे।
“मामा तुम्हारी मूछें बहुत गुदगुदी करती हैं।”
मेरी बात सुन कर मामा हँस पड़े। मैं अपने को छुड़वाते हुए मामा से अलग हुई तो मामा के पायजामे में तम्बू बना हुआ था। उस तम्बू से उस के अंदर छुपे काले नाग का एहसास मुझे हो गया था। इसे महसूस करके मेरा मन थोड़ा डर भी गया था कि अगर मामा इसे मेरी चूत में घुसाने लगा तो मेरी तो फट ही जायेगी। जिस चूत में अंगुली भी नहीं जाती उसमे इतना मोटा लण्ड कैसे जाएगा भला ???
मैं इसी उधेड़बुन में थी कि मामा खड़े होकर मेरे पीछे आ गया और पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ कर सहलाने लगे। मामा का लण्ड अब मुझे अपने कूल्हों पर महसूस होने लगा था।
तभी मम्मी आ गई और मामा मुझ से दूर होकर सोफे पर बैठ गए।
अभी दोपहर के तीन बजे थे, मौसम बहुत सुहाना हो रहा था, मामा बोले “राधा बेटा ! तुम तो कह रही थी कि जब मैं शहर आऊंगा तो तुम मुझे शहर घुमाओगी, अब क्या हुआ ??”
मैं मामा के शहर घूमने का मतलब अच्छे से समझ रही थी। मैंने भी हँसते हुए बोला,”आप पापा के साथ घूम आना।”
“पर बेटा वादा तो तुमने किया था !”
“ठीक है, माँ से पूछ लो अगर वो बोलेगी तो घुमा लाऊंगी।”
मम्मी जो वहीं बैठी थी बोली,”अरी बेटी, घुमा लाओ ! इसमें पूछने वाली क्या बात है? तुम्हारे मामा हैं !”
बस फिर देर किस बात की थी। मैं झट से तैयार हो गई। मैंने टॉप स्कर्ट और ठण्ड से बचने के लिए जैकेट पहन लिया। मैंने मामा को अपनी एक्टिवा पर बैठाया और निकल पड़े घूमने।
शहर में इधर-उधर घूमते-घूमते मैं मामा को मॉल दिखाने ले गई। वहाँ मूवी भी लगी हुई थी। मामा का मन पसंद एक्टर अभिषेक बच्चन है और वहाँ उसकी फिल्म ‘रावण” लगी हुई थी। मैं मूवी देख चुकी थी और मुझे पता था कि बिल्कुल डिब्बा फिल्म है पर मामा बोले कि उन्हें वही फिल्म देखनी है।
सो हम टिकेट लेकर अंदर चले गए। हॉल में एक दो लोग ही बैठे थे बाकि सारा हॉल बिल्कुल खाली था। हम दोनों कोने की एक सीट पर बैठ गए। मुझे मालूम था कि अब क्या होने वाला है।
मैंने मम्मी को फ़ोन करके बोल दिया कि मैं मामा के साथ सहारा मॉल में मूवी देख रही हूँ। मम्मी को बताने के बाद मैं निश्चिन्त हो गई। फिल्म शुरू होते ही मामा का हाथ मेरे बदन पर घुमने लगा। आज मैंने ब्रा जानबूझ कर नहीं पहनी थी। जब मामा का हाथ मेरे टॉप पर गया तो मेरी चूचियाँ एकदम से तन गई, चुचूक कड़े हो गए, आँखें बंद हो गई।
तभी मामा ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींचा। मुझे कुछ अंदाजा नहीं था कि एकदम से मुझे कुछ गर्म-गर्म सा महसूस हुआ। आँख खोल कर देखा तो वो मामा का मूसल था- आठ इंच लंबा और करीब तीन इंच मोटा लण्ड लोहे की तरह सख्त, सर तान कर खड़ा हुआ। उसे देखते ही मेरी चूत चुनमुना गई। मैंने मामा का लण्ड हाथ में पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी। मामा का हाथ भी मेरी पेंटी के अंदर घुस कर मेरी चूत का दाना सहला रहा था। मुझे इस बात का एहसास था कि मैं कहाँ हूँ तभी मैंने अपनी आहें अंदर ही दबा ली अगर कहीं और होती तो सीत्कार निकल ही जाती । आसपास कोई नहीं था।
मामा बोले “राधा कभी चुदवाया है किसी से?”
चुदवाया शब्द सुनते ही दिल धक-धक करने लगा, मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी, बस मैंने ना में गर्दन हिला दी।
कपड़े बदल कर मैं फिर से मामा के पास आकर बैठ गई। तभी मम्मी को बुलाने पड़ोस की एक औरत आई और मम्मी उससे बात करने के लिए बाहर चली गई। मैं भी उठकर जाने लगी तो मामा ने मेरी बाहँ पकड़ कर अपनी और खींचा तो मैं सीधे मामा की गोद में जाकर गिरी। मुझे अपनी गाण्ड के नीचे कुछ चुभता हुआ सा महसूस हुआ तो मेरा दिमाग एक दम से ठनका कि कहीं यह वही तो नहीं ?? मोटा सा, लंबा सा, मोहित के जैसा। सोचते ही मैं फिर से झनझना गई। वो मुझे बहुत कठोर महसूस हो रहा था। मामा ने मेरा मुँह पकड़ा और मेरे नाजुक होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मस्त हो चूसने लगे।
“मामा तुम्हारी मूछें बहुत गुदगुदी करती हैं।”
मेरी बात सुन कर मामा हँस पड़े। मैं अपने को छुड़वाते हुए मामा से अलग हुई तो मामा के पायजामे में तम्बू बना हुआ था। उस तम्बू से उस के अंदर छुपे काले नाग का एहसास मुझे हो गया था। इसे महसूस करके मेरा मन थोड़ा डर भी गया था कि अगर मामा इसे मेरी चूत में घुसाने लगा तो मेरी तो फट ही जायेगी। जिस चूत में अंगुली भी नहीं जाती उसमे इतना मोटा लण्ड कैसे जाएगा भला ???
मैं इसी उधेड़बुन में थी कि मामा खड़े होकर मेरे पीछे आ गया और पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ कर सहलाने लगे। मामा का लण्ड अब मुझे अपने कूल्हों पर महसूस होने लगा था।
तभी मम्मी आ गई और मामा मुझ से दूर होकर सोफे पर बैठ गए।
अभी दोपहर के तीन बजे थे, मौसम बहुत सुहाना हो रहा था, मामा बोले “राधा बेटा ! तुम तो कह रही थी कि जब मैं शहर आऊंगा तो तुम मुझे शहर घुमाओगी, अब क्या हुआ ??”
मैं मामा के शहर घूमने का मतलब अच्छे से समझ रही थी। मैंने भी हँसते हुए बोला,”आप पापा के साथ घूम आना।”
“पर बेटा वादा तो तुमने किया था !”
“ठीक है, माँ से पूछ लो अगर वो बोलेगी तो घुमा लाऊंगी।”
मम्मी जो वहीं बैठी थी बोली,”अरी बेटी, घुमा लाओ ! इसमें पूछने वाली क्या बात है? तुम्हारे मामा हैं !”
बस फिर देर किस बात की थी। मैं झट से तैयार हो गई। मैंने टॉप स्कर्ट और ठण्ड से बचने के लिए जैकेट पहन लिया। मैंने मामा को अपनी एक्टिवा पर बैठाया और निकल पड़े घूमने।
शहर में इधर-उधर घूमते-घूमते मैं मामा को मॉल दिखाने ले गई। वहाँ मूवी भी लगी हुई थी। मामा का मन पसंद एक्टर अभिषेक बच्चन है और वहाँ उसकी फिल्म ‘रावण” लगी हुई थी। मैं मूवी देख चुकी थी और मुझे पता था कि बिल्कुल डिब्बा फिल्म है पर मामा बोले कि उन्हें वही फिल्म देखनी है।
सो हम टिकेट लेकर अंदर चले गए। हॉल में एक दो लोग ही बैठे थे बाकि सारा हॉल बिल्कुल खाली था। हम दोनों कोने की एक सीट पर बैठ गए। मुझे मालूम था कि अब क्या होने वाला है।
मैंने मम्मी को फ़ोन करके बोल दिया कि मैं मामा के साथ सहारा मॉल में मूवी देख रही हूँ। मम्मी को बताने के बाद मैं निश्चिन्त हो गई। फिल्म शुरू होते ही मामा का हाथ मेरे बदन पर घुमने लगा। आज मैंने ब्रा जानबूझ कर नहीं पहनी थी। जब मामा का हाथ मेरे टॉप पर गया तो मेरी चूचियाँ एकदम से तन गई, चुचूक कड़े हो गए, आँखें बंद हो गई।
तभी मामा ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींचा। मुझे कुछ अंदाजा नहीं था कि एकदम से मुझे कुछ गर्म-गर्म सा महसूस हुआ। आँख खोल कर देखा तो वो मामा का मूसल था- आठ इंच लंबा और करीब तीन इंच मोटा लण्ड लोहे की तरह सख्त, सर तान कर खड़ा हुआ। उसे देखते ही मेरी चूत चुनमुना गई। मैंने मामा का लण्ड हाथ में पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी। मामा का हाथ भी मेरी पेंटी के अंदर घुस कर मेरी चूत का दाना सहला रहा था। मुझे इस बात का एहसास था कि मैं कहाँ हूँ तभी मैंने अपनी आहें अंदर ही दबा ली अगर कहीं और होती तो सीत्कार निकल ही जाती । आसपास कोई नहीं था।
मामा बोले “राधा कभी चुदवाया है किसी से?”
चुदवाया शब्द सुनते ही दिल धक-धक करने लगा, मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी, बस मैंने ना में गर्दन हिला दी।
Re: desi hot sex story - मस्त राधा रानी
यानि अभी तक कोरी हो?”
“हाँ !”
“लण्ड का मज़ा लोगी ?”
अब मैं क्या कहती कि नहीं लूँगी। अगर लण्ड का मज़ा नहीं लेना होता तो क्या मैं ऐसे उसका लण्ड सहला रही होती और उसे अपनी चूत सहलाने दे रही होती। ये गांव के लोग भी ना बहुत भोले होते है पर इनका लण्ड सच में कमाल होता है।
“यहाँ पर नहीं, घर पर चलते हैं ना !”
“पर घर पर तो सभी होंगे ?”
“आप चिंता ना करें, रात को जब सब सो जायेंगे तो मैं आपके कमरे में आ जाउंगी !”
“सच?”
“हुं ”
“चलो ठीक है !” कहते हुए मामा ने मुझे एक बार फिर चूम लिया ।
तय कार्यक्रम के मुताबिक़ मैं रात को 11 बजे उनके कमरे में पहुँच गई।
कमरे में पहुँचते ही मामा ने दरवाज़ा बंद किया और मुझे गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। मामा ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मैं बेड पर लेटी हुई मामा को देख रही थी। जब मामा ने अपना कुरता उतारा तो मामा की बालों से भरी मर्दाना छाती देख कर ही मस्त हो उठी। मेरे दिल में अब गुदगुदी होने लगी थी यह सोच कर कि कुछ देर के बाद मेरी चूत भी लण्ड का मज़ा लेने वाली है।
मामा ने अपने सारे कपड़े उतार दिए, अब सिर्फ एक कच्छा ही मामा के शरीर पर रह गया था। मामा मेरे पास आये और एक एक करके मेरे कपड़े उतारने लगे। और मात्र एक मिनट में ही मैं मामा के सामने सिर्फ पेंटी में पड़ी थी। और मामा मेरे चुचूक पकड़ कर मसल रहे थे और अपने होंठों में दबा-दबा कर चूस रहे थे। मामा की इस हरकत से मेरे बदन में आग सी लगती जा रही थी। मामा ने अब मेरी पेंटी भी उतार दी और मेरी रेशमी बालों से भरी चूत पर हाथ फेरने लगे और फिर अचानक अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए। मैं एक दम से चिंहुक उठी। होंठों की गर्मी और चूत की गर्मी का मिलन इतना अच्छा था कि उसका वर्णन शब्दों में बताना मेरे बस में नहीं है।
“आह्हह्ह” मेरी सीत्कारें अब खुल कर निकल रही थी और मैं मस्ती में मामा का सर अपनी चूत पर अपनी जाँघों के बीच दबा रही थी, मन कर रहा था कि मामा अपना पूरा सर मेरी चूत में घुसेड़ दें।
“खा जा बहन के लौड़े मेरी चूत को….. अह्ह्ह मामा…….” ना जाने कैसे मेरे मुँह से अपने आप गाली निकल गई।
मामा तो मेरी कुंवारी चूत को चाटने में मस्त था। वो अपनी खुरदरी जीभ मेरी चूत में अंदर तक घुसाने की कोशिश कर रहा था। जीभ का खुरदरा एहसास हाय कैसे बयान करूँ, मैं तो जन्नत में थी उस समय।
कुछ देर बाद मामा ने दशा बदली और अब उसका मोटा मूसल अब मेरे मुँह के सामने था। मैंने देखा तो नहीं था पर सुना था कि कुछ लडकियां और औरतें लंड को मुँह में लेकर चूसती भी हैं। बस मैंने भी अपना मुँह खोला और मामा का वो काला भुजंग मैंने अपने नाजुक होंठों में दबा लिया। मामा का लण्ड मेरे मुँह के लिए भी मोटा था पता नहीं चूत में कैसे जाएगा। अभी मैं यह सोच ही रही थी कि मामा अब सीधे हुए और मेरी टाँगें पकड़ कर मेरी जांघे चौड़ी की। मामा ने अपना मस्त कलंदर मेरी मुनिया से भिड़ा दिया। एक बार तो ऐसा लगा जैसे कोई गर्म लोहे की राड भिड़ा दी हो। मेरी अब सीत्कारें निकल रही थी और मामा मेरी कुंवारी चूत में अपना लण्ड घुसाने के लिए मरा जा रहे थे और मैं भी आने वाले दर्द से अनजान मामा के लण्ड का इंतज़ार कर रही थी कि कब घुसेगा यह मूसल मेरी चूत में ??
मामा ने काफी सारा थूक मेरी चूत पर लगाया। मामा के लण्ड पर तो पहले से ही मेरा थूक लगा हुआ था। थूक लगा कर मामा ने अपना काला नाग मेरी सुरंग में घुसाने के हलकी सी कोशिश करी तो मुझे पहली बार कुछ दर्द का एहसास हुआ पर मस्ती पूरे जोर पर थी तो मैंने उस दर्द की तरफ ध्यान नहीं दिया। तभी मामा ने अपना लण्ड सही से सेट करके एक जोरदार धक्का लगाया तो मामा का मोटा सुपारा मेरी चूत में उतर गया और मैं हलाल होते बकरे की तरह मिमिया उठी। दर्द की एक तीखी लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे चाकू से मेरी चूत को कोई चीर रहा हो।
अभी मैं कुछ सोच पाती कि मामा ने एक और जोर दार धक्का मारा और मामा का दो इंच मोटा लण्ड करीब 4 इंच तक मेरी कोरी चूत में उतर गया। मेरी आँखों से गंगा-जमुना बह निकली। दर्द के मारे मैं अब बिलबिला रही थी। मामा ने मेरे होंठ आपने होंठों में दबा रखे थे इस कारण मैं चिल्ला नहीं पा रही थी वरना मेरी चीख से तो पूरा घर हिल जाता।
“हाँ !”
“लण्ड का मज़ा लोगी ?”
अब मैं क्या कहती कि नहीं लूँगी। अगर लण्ड का मज़ा नहीं लेना होता तो क्या मैं ऐसे उसका लण्ड सहला रही होती और उसे अपनी चूत सहलाने दे रही होती। ये गांव के लोग भी ना बहुत भोले होते है पर इनका लण्ड सच में कमाल होता है।
“यहाँ पर नहीं, घर पर चलते हैं ना !”
“पर घर पर तो सभी होंगे ?”
“आप चिंता ना करें, रात को जब सब सो जायेंगे तो मैं आपके कमरे में आ जाउंगी !”
“सच?”
“हुं ”
“चलो ठीक है !” कहते हुए मामा ने मुझे एक बार फिर चूम लिया ।
तय कार्यक्रम के मुताबिक़ मैं रात को 11 बजे उनके कमरे में पहुँच गई।
कमरे में पहुँचते ही मामा ने दरवाज़ा बंद किया और मुझे गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। मामा ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मैं बेड पर लेटी हुई मामा को देख रही थी। जब मामा ने अपना कुरता उतारा तो मामा की बालों से भरी मर्दाना छाती देख कर ही मस्त हो उठी। मेरे दिल में अब गुदगुदी होने लगी थी यह सोच कर कि कुछ देर के बाद मेरी चूत भी लण्ड का मज़ा लेने वाली है।
मामा ने अपने सारे कपड़े उतार दिए, अब सिर्फ एक कच्छा ही मामा के शरीर पर रह गया था। मामा मेरे पास आये और एक एक करके मेरे कपड़े उतारने लगे। और मात्र एक मिनट में ही मैं मामा के सामने सिर्फ पेंटी में पड़ी थी। और मामा मेरे चुचूक पकड़ कर मसल रहे थे और अपने होंठों में दबा-दबा कर चूस रहे थे। मामा की इस हरकत से मेरे बदन में आग सी लगती जा रही थी। मामा ने अब मेरी पेंटी भी उतार दी और मेरी रेशमी बालों से भरी चूत पर हाथ फेरने लगे और फिर अचानक अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए। मैं एक दम से चिंहुक उठी। होंठों की गर्मी और चूत की गर्मी का मिलन इतना अच्छा था कि उसका वर्णन शब्दों में बताना मेरे बस में नहीं है।
“आह्हह्ह” मेरी सीत्कारें अब खुल कर निकल रही थी और मैं मस्ती में मामा का सर अपनी चूत पर अपनी जाँघों के बीच दबा रही थी, मन कर रहा था कि मामा अपना पूरा सर मेरी चूत में घुसेड़ दें।
“खा जा बहन के लौड़े मेरी चूत को….. अह्ह्ह मामा…….” ना जाने कैसे मेरे मुँह से अपने आप गाली निकल गई।
मामा तो मेरी कुंवारी चूत को चाटने में मस्त था। वो अपनी खुरदरी जीभ मेरी चूत में अंदर तक घुसाने की कोशिश कर रहा था। जीभ का खुरदरा एहसास हाय कैसे बयान करूँ, मैं तो जन्नत में थी उस समय।
कुछ देर बाद मामा ने दशा बदली और अब उसका मोटा मूसल अब मेरे मुँह के सामने था। मैंने देखा तो नहीं था पर सुना था कि कुछ लडकियां और औरतें लंड को मुँह में लेकर चूसती भी हैं। बस मैंने भी अपना मुँह खोला और मामा का वो काला भुजंग मैंने अपने नाजुक होंठों में दबा लिया। मामा का लण्ड मेरे मुँह के लिए भी मोटा था पता नहीं चूत में कैसे जाएगा। अभी मैं यह सोच ही रही थी कि मामा अब सीधे हुए और मेरी टाँगें पकड़ कर मेरी जांघे चौड़ी की। मामा ने अपना मस्त कलंदर मेरी मुनिया से भिड़ा दिया। एक बार तो ऐसा लगा जैसे कोई गर्म लोहे की राड भिड़ा दी हो। मेरी अब सीत्कारें निकल रही थी और मामा मेरी कुंवारी चूत में अपना लण्ड घुसाने के लिए मरा जा रहे थे और मैं भी आने वाले दर्द से अनजान मामा के लण्ड का इंतज़ार कर रही थी कि कब घुसेगा यह मूसल मेरी चूत में ??
मामा ने काफी सारा थूक मेरी चूत पर लगाया। मामा के लण्ड पर तो पहले से ही मेरा थूक लगा हुआ था। थूक लगा कर मामा ने अपना काला नाग मेरी सुरंग में घुसाने के हलकी सी कोशिश करी तो मुझे पहली बार कुछ दर्द का एहसास हुआ पर मस्ती पूरे जोर पर थी तो मैंने उस दर्द की तरफ ध्यान नहीं दिया। तभी मामा ने अपना लण्ड सही से सेट करके एक जोरदार धक्का लगाया तो मामा का मोटा सुपारा मेरी चूत में उतर गया और मैं हलाल होते बकरे की तरह मिमिया उठी। दर्द की एक तीखी लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे चाकू से मेरी चूत को कोई चीर रहा हो।
अभी मैं कुछ सोच पाती कि मामा ने एक और जोर दार धक्का मारा और मामा का दो इंच मोटा लण्ड करीब 4 इंच तक मेरी कोरी चूत में उतर गया। मेरी आँखों से गंगा-जमुना बह निकली। दर्द के मारे मैं अब बिलबिला रही थी। मामा ने मेरे होंठ आपने होंठों में दबा रखे थे इस कारण मैं चिल्ला नहीं पा रही थी वरना मेरी चीख से तो पूरा घर हिल जाता।